औरंगाबाद गरीबी, बेबसी व लाचारी : परिवार के कमाउं बेटे की तेलंगाना में पेड़ से लटकी मिली लाश, शव को घर नहीं ला सके परिजन, पुतला बना कर किया दाह संस्कार
औरंगबाद इस खबर को पढ़कर कलेजा मुंह को आ जाएगा। यह खबर गरीबी का दर्द बयां करनेवाली है, तो सिस्टम की भी पोल खोलने वाली है। खबर झकझोर देनेवाली भी है। खबर पढ़कर अनायास ही आप यह भी कह उठेंगे कि ऐसा भी होता है क्या ?
ऐसा किसी गरीब, लाचार और बेबस किसी परिवार के साथ न हो। खबर यहां से 1,322 किमी. दूर तेलंगाना की है, पर औरंगाबाद से जुड़ी है। खबर यह है कि तेलंगाना के जंगली इलाके में पेड़ से झूलती हुई एक युवक की लाश मिलती है। युवक की पहचान बिहार के औरंगाबाद जिले के नबीनगर थाना क्षेत्र के शिवपुर गांव निवासी सुरेंद्र मालाकार के पुत्र अंकित(21) के रूप में होती है। वहां की पुलिस को यह पता चलता है
कि मृतक
तेलंगाना के जगदलपुर जिले के बेलकाटूर में रहकर काफी दिनों से जीबीआर नामक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, और पिछले 1 मई से वह लापता था। वह 20 दिन पहले घर आया था। इसके बाद वह घर वालों को यह कहकर तेलंगाना वापस लौट गया था कि काम नही करेंगे तो कमाएंगे कैसे ? इस बार 20 दिन पहले जो वह घर से गया तो वापस नही लौटा। इतना तक कि मरने के बाद उसकी लाश तक घर नही लौट सकी। मृतक के पैतृक गांव शिवपुर के लोगो के मुताबिक अंकित का बहनोई राजन कुमार भी उसके साथ ही रहता था। अंकित के अचानक से गायब होने पर उसके बहनोई ने घरवालों को इसकी सूचना भी दी थी। साथ ही वहां अपने स्तर से अपने साले की खोजबीन भी की थी लेकिन कुछ भी अता पता नही चलने पर वह थक-हार कर बैठ गया था। इसी बीच 3 मई को वहां बेलकादुर के पास जंगली इलाके से अंकित का शव पेड़ से लटका हुआ मिला। वहां की पुलिस ने कपड़ो में मिले कागजातों से मृतक की पहचान की और मृतक के मोबाइल में नियमित कॉल होने वाले नंबर पर जब संपर्क किया तो, वह उसके बहनोई का निकला। पुलिस से लाश मिलने की सूचना पर बहनोई ने इसकी सूचना परिजनों को दी।
गरीबी के कारण लाश लाने में सक्षम नही होने पर परिजनों ने पुतला बना कर किया दाह संस्कार-तेलंगाना की पुलिस ने लाश मिलने के बाद पोस्टमार्टम कराया और शव को अंकित के बहनोई को सौंप दिया। अब दाह संस्कार के लिए शव को गांव लाने की बारी थी, पर यही पर गरीबी का दानव मुंह बाये खड़ा हो गया और अंकित का शव मिलने के बाद भी गरीबी के कारण घर नहीं लाया जा सका।
अंकित का बहनोई भी गरीब ही ठहरा। इस कारण उसकी भी ऐसी हैसियत नही रही कि वह अपने साले की लाश को तेलंगाना से 1,322 किमी. की दूरी तय कर औरंगाबाद ला सके। यहां तक कि गरीबी और पैसे के अभाव में परिजन भी तेलंगाना नहीं जा सके। इस स्थिति में बेचारा बहनोई मरता क्या न करता। उसने भी अर्थाभाव में बहनोई की लाश को वही मिट्टी में दफना दिया। इधर शिवपुर गांव में परिजनों ने मृतक के नाम का पुतला बना कर दाह संस्कार कर दिया।
शिवपुर के ग्रामीण भरत पाठक, ललित पाठक और रघुवीर पासवान ने बताया कि सुरेंद्र मालाकार का परिवार बेहद गरीब है। अंकित ही मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करता था। उसकी मौत के बाद स्थिति और भी खराब हो गयी है। फिलहाल तो परिजनों के पास अंकित का ब्रह्मभोज करने के लिए भी पैसे नहीं है। इस हादसे के बाद शिवपुर गांव में मातम पसरा है। गांव के लोग गरीबी के कारण परिजनों द्वारा लाश नही लाए जाने से हतप्रभ है।
स्थिति यह हैं कि यदि गांव वाले आपस में चंदा कर कुछ रूपये का इंतजाम कर भी लेते तो भी दूरी इतनी लंबी थी कि लाश तो आ जाती पर उसकी हालत बेहद खराब हो जाती।
इस वजह से भी परिजनों ने पुतला बनाकर ही दाह संस्कार की क्रिया करना मुनासिब समझा। परिजनों को अंकित की लाश नही ला पाने से गम दोहरा हो गया है। उनका रो रोकर हाल-बेहाल है। इस बीच ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन के स्थानीय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का ध्यान आकृष्ट कराते हुए गरीब परिवार को मदद पहुंचाने की गुहार लगायी है।
May 05 2023, 17:06