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50 साल पहले लगे आपातकाल के विरोध में भाजपा आज मनाएगी संविधान हत्या दिवस, दिलाई जाएगी काले दौर की याद

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देश में आपातकाल की घोषणा हुए आज 50 साल हो गए। साल 1975 में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर बुधवार को भाजपा देशभर में संविधान हत्या दिवस का आयोजन करेगी। विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के जरिये लोगों को आपातकाल के काले दौर की याद दिलाई जाएगी। जिला स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों में मीसा बंदियों का सम्मान किया जाएगा।

पीएम मोदी ने लिया संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय

इससे पहले आपातकाल की 50वीं बरसी की पूर्व संध्या पर नई दिल्ली में श्यामा प्रसाद मुखर्जी न्यास की ओर से आयोजित आपातकाल के 50 साल कार्यक्रम में शाह ने कहा कि जब 11 जुलाई 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया कि हर वर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जाएगा, तब यह सवाल उठे कि 50 साल पहले हुई किसी घटना पर बात करके आज क्या हासिल होगा?

आपातकाल तानाशाही मानसिकता और सत्ता की भूख की उपज-शाह

गृह मंत्री अमित शाह ने आपातकाल को अन्यायकाल बताया है। अमित शाह ने कहा कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का लाया आपातकाल असल में कांग्रेस का अन्यायकाल था। आपातकाल परिस्थिति और मजबूरी की नहीं बल्कि तानाशाही मानसिकता और सत्ता की भूख की उपज होता है। शाह ने यह भी कहा कि 25 जून सभी को याद दिलाता है कि कांग्रेस सत्ता के लिए किस हद तक जा सकती है।

50 साल पहले जब इंदिरा गांधी ने देश में लगा दिया था आपातकाल, जानें इमरजेंसी का “काला सच”

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25 जून 1975 की आधी रात जब देश पर आपातकाल थोप दिया गया था। लोकतंत्र के इतिहास में इस दिन को काला दिन माना जाता है। यही वो दिन था जब तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत, इंदिरा गांधी की सरकार की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की। देश में आपातकाल लग चुका है इसका ऐलान खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो पर किया।

25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। 26 जून, 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर कहा, 'राष्ट्रपति ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है...'। इसके बाद से ही विपक्षी नेताओं में हलचल मच गई और गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया था। पौ फटने के पहले ही विपक्ष के कई बड़े नेता हिरासत में ले लिए गए। यहां तक कि कांग्रेस में अलग सुर अलापने वाले चंद्रशेखर भी हिरासत में लिए गए नेताओं की जमात में शामिल थे।

ये इमरजेंसी 21 मार्च, 1977 तक देशभर में लागू रही। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये 21 महीने काफी विवादास्पद रहे। लोकतांत्रिक देश में भी ऐसा कुछ हो सकता है, यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। यह भी कि लोकतांत्रिक देश की संसद में किसी दल की मजबूती का बेजा इस्तेमाल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इन 21 महीनों में जो कुछ भी हुआ। सत्ता दल अभी भी कांग्रेस को समय-समय पर कोसते रहते हैं। गांधी परिवार के दिग्गज नेता राहुल गांधी ने इस इमरजेंसी को गलत बताया और खुले तौर पर माफी भी मांगी थी।

इंदिरा सरकार ने बताई आपातकाल लागू करने के पीछे कई वजहें

इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 1971 के लोकसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी। तत्कालीन 521 सदस्यीय संसद में कांग्रेस ने 352 सीटें जीती थीं। उन दिनों इंदिरा गांधी की सरकार पर भारत अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। गुजरात में सरकार के खिलाफ छात्रों का नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था। बिहार में जयप्रकाश नारायण (JP) का आंदोलन चल रहा था। 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे हड़ताल चल रही थी। आपातकाल लागू करने के पीछे कई वजहें बताई जाती हैं। इसमें से मुख्य कारण था राजनीतिक अस्थिरता।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद बढ़ा तनाव

इस राजनीतिक अस्थिरता की शुरुआत उस वक्त हुई, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को चुनावी धांधली का दोषी पाया और उन्हें छह साल के लिए किसी भी चुने हुए पद पर आसीन होने से वंचित कर दिया। इस फैसले के बाद, देश भर में विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक तनाव बढ़ गया।

इन्ही सब को देखते हुए इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी। इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने दावा किया कि देश में गहरी अशांति और आंतरिक अस्थिरता है, जिसके चलते राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। इसी कारण से उन्होंने आपातकाल की घोषणा की, जिससे वे बिना किसी विधायी और न्यायिक हस्तक्षेप के सरकार चला सकें।

असहमति के हर स्वर का मुंह बंद किया

इमरजेंसी लागू होने के तुरंत बाद विपक्षी नेताओं को जेल में डालने का सिलसिला शुरु हो गया। इनमें जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और मोरारजी देसाई समेत कई बड़े नेताओं का नाम था, जो कई महीनों और सालों तक जेल में पड़े रहे थे। आरएसएस समेत 24 संगठनों पर बैन लगा दिया गया। इसके अलावा, इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में व्यापक सामाजिक और आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिसमें जबरन नसबंदी और स्लम क्लीयरेंस जैसे कठोर उपाय शामिल थे। कई इतिहासकारों का मानना है कि आपातकाल का उपयोग इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को मजबूत करने और विरोधी आवाजों को दबाने के लिए किया। यह घटना भारतीय लोकतंत्र पर एक गहरा आघात थी और इसने देश के राजनीतिक इतिहास में एक गहरी छाप छोड़ी।

आ गई शुभांशु शुक्ला के स्पेस जाने की नई तारीख, 25 जून को लॉन्च होगा एक्सिओम-4 मिशन

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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) के लिए जाने वाले एक्सिओम-4 मिशन के लॉन्चिंग की नई तारीख आ चुकी है। नासा और स्पेसएक्स के एक्सिओम मिशन को अब 25 जून को लॉन्च करने की तैयारी है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला 25 जून को एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन रवाना होंगे। छह बार तकनीकी खामियों के कारण टलने के बाद अब लॉन्चिंग तय हुई है।

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जानकारी दी है कि एक्सिओम-4 मिशन अब 25 जून को लॉन्च किया जाएगा। एक्सिओम-4 मिशन की लॉन्चिंग फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से होगी। नासा ने बताया कि यह मिशन 25 जून को भारतीय समयानुसार सुबह 12:01 बजे स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा।

अब तक 6 बार टला मिशन

इससे पहले इस मिशन को 29 मई को लॉन्च करने की योजना थी, लेकिन तकनीकी खामी की वजह से इसे टाल दिया गया। एक्सिओम-4 मिशन को अब तक 6 बार टाला जा चुका है। पहले यह मिशन 29 मई को शुरू होने वाला था, लेकिन मौसम की वजह से इसे 8 जून तक के लिए टाल दिया गया। बाद में, फाल्कन-9 रॉकेट के बूस्टर में लिक्विड ऑक्सीजन के रिसाव के कारण तारीख 10 जून और फिर 11 जून कर दी गई। इसके बाद, तकनीकी खराबी के कारण इसे 19 जून और फिर 22 जून के लिए स्थगित कर दिया गया।

मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल

एक्सिओम-4 मिशन एक निजी अंतरिक्ष यात्री मिशन है। इस मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल हैं। खास बात यह है कि यह मिशन तीनों देशों के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है। भारत के लिए यह मिशन इसलिए अहम है क्योंकि लंबे समय बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में जाएगा। इस मिशन में अमेरिका से डॉ. पेगी व्हिटसन मिशन कमांडर हैं। पोलैंड से स्लावोज उज्नान्स्की-विस्निएव्स्की और हंगरी से टिबोर कापू (दोनों मिशन विशेषज्ञ) शामिल हैं। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को पायलट बनाया गया है।

अब बांग्लादेश की बारी, गंगा संधि की समीक्षा की तैयारी मे मोदी सरकार, पड़ोसी देश पर डाला दबाव

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भारत को पड़ोसी देश उसे आंखे दिखाने से बाज नहीं आ रहे। ऐसे में भारत सरकार ने भी इनपर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। हाल ही में जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु समझौते को निलंबित कर दिया है। अब मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ गंगा नदी जल संधि पर फिर से बातचीत करने का फैसला किया है।

बांग्लादेश को पहुंचाया संदेश

भारत ने बांग्लादेश के साथ भी गंगा जल संधि पर फिर दोबारा विचार शुरू कर दिया है। बांग्लादेश के साथ गंगा नदी जल संधि की मियाद अगले साल ही पूरी होने वाली है। ऐसे में भारत ने अभी से बांग्लादेश को यह संदेश पहुंचा दिया है कि उसे अपनी जरूरत पूरा करने लिए और पानी चाहिए। भारत ने अपने समकक्ष को बताया है कि उसे अपनी विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता है।

छोटी अवधी के लिए हो सकती है नई संधि

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अगर संधि बढ़ी भी तो पहली जितनी लंबी अवधि के लिए नहीं होगी। नई संधि संभवतः छोटी अवधि की होगी, जो 10 से 15 वर्ष तक चलेगी। छोटी अवधि दोनों देशों के लिए आगे बढ़ने में लचीलापन और अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देगी।

बता दें कि गंगा जल संधि पर 12 दिसम्बर 1996 को हस्ताक्षर किये गये थे, जिसमें जल बंटवारे, विशेष रूप से कम वर्षा वाले मौसम में फरक्का बैराज के आसपास जल बंटवारे पर जोर दिया गया था।

पहलगाम हमले के बाद स्थिति बदली

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि पहले सरकार गंगा जल संधि को पहले की तरह 30 साल के लिए बढ़ाना चाहती थी। लेकिन, पहलगाम की घटना के बाद स्थिति बदल गई। मई में बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ एक बैठक हुई थी। अधिकारी ने कहा कि यह एक सामान्य बैठक थी, जो साल में दो बार होती है। इस बैठक में भारत ने अपने लिए पानी की जरूरत के बारे में बताया।

कैसे होता है गंगा जल संधि के तहत पानी का बंटवारा

1996 की गंगा जल संधि के अनुसार अगर फरक्का में पानी की उपलब्धता 70,000 क्यूसेक या उससे कम रहती है, तो दोनों देशों को आधा-आधा पानी मिलता है। लेकिन, अगर यह उपलब्धता 70,000 क्यूसेक से 75,000 क्यूसेक के बीच होता है तो बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक और भारत को बाकी हिस्सा मिलता है। लेकिन, अगर पानी की उपलब्धता 75,000 क्यूसेक या उससे भी ज्यादा होता है तो भारत उसका 40,000 क्यूसेक हिस्सा इस्तेमाल कर सकता है और बाकी प्रवाह बांग्लादेश को जाता है

इजराइल-ईरान के बीच सीजफायर! डोनाल्ड ट्रंप ने किया ऐलान, खामेनेई का अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे से इनकार

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल और ईरान के बीच 12 दिन से जारी युद्ध को खत्म कराने का दावा कर दिया। उन्होंने दोनों देशों के बीच ‘पूर्ण सीजफायर’ की करते हुए इसे ‘12 डे वॉर’ का अंत बताया। उन्होंने ट्रुथ सोशल पर एक के बाद एक कई पोस्ट किए। इनमें उन्होंने यह भी बताया कि यह संघर्ष विराम कैसे हुआ और क्यों इसका एलान ट्रंप ने किया। ट्रंप के इस ऐलान पर इजरायल की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया तो नहीं आई है। धर ईरानी सुप्रीम लीडर ने कहा है कि ईरान सरेंडर करने वाला मुल्क नहीं।

ट्रंप ने क्या कहा?

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को सोशल मीडिया पर कहा कि सभी को बधाई! इजराइल और ईरान के बीच पूरी तरह से सहमति बन गई है। इजराइल और ईरान 24 घंटे में युद्ध विराम करने पर सहमत हो गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने ट्रुथ सोशल पर कहा कि युद्ध विराम से युद्ध का आधिकारिक अंत होगा, जो कि तीन ईरानी परमाणु स्थलों पर अमेरिकी हमले के बाद शत्रुता में एक बड़ा बदलाव है। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि मैं दोनों देशों, इजराइल और ईरान को बधाई देना चाहूंगा कि उनके पास वह सहनशक्ति, साहस और बुद्धिमत्ता है।

ईरान आत्मसमर्पण करने वाला राष्ट्र नहीं- खामेनेई

अयातुल्लाह खामेनेई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में कहा, जो ईरानी लोगों और उनके इतिहास को जानते हैं, वे जानते हैं कि ईरानी राष्ट्र आत्मसमर्पण करने वाला राष्ट्र नहीं है।

इजराइल हमले बंद करता है तो ईरान भी शांत बैठेगा-अराघची

वहीं, ईरान के विदेश मंत्री ने मंगलवार को कहा कि अगर इस्राइल स्थानीय समयानुसार सुबह 4 बजे तक अपने हवाई हमले बंद कर देता है तो तेहरान भी अपने हमले बंद कर देगा।अराघची ने तेहरान समयानुसार सुबह 4:16 बजे सोशल प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अपना संदेश भेजा। अराघची ने लिखा, 'अभी तक किसी भी युद्ध विराम या सैन्य अभियानों को रोककने पर कोई समझौता नहीं हुआ है। हालांकि, बशर्ते कि इस्राइली शासन ईरानी लोगों के खिलाफ अपने अवैध आक्रमण को तेहरान समय के अनुसार सुबह 4 बजे से पहले बंद कर दे, उसके बाद हमारा जवाबी कार्रवाई जारी रखने का कोई इरादा नहीं है। अराघची ने कहा कि हमारे सैन्य अभियानों को रोकने पर अंतिम निर्णय बाद में लिया जाएगा।

ईरान ने अमेरिका से लिया बदला, कतर के बाद इराक और सीरिया में यूएस सैन्य ठिकानों को बनाया निशाना

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ईरान ने अपने परमाणु ठिकानों पर हुए हमलों का बदला लेने के लिए सोमवार रात को कतर स्थित अमेरिका के अल-उदीद सैन्य ठिकाने को निशाना बनाते हुए मिसाइलें दागी हैं। दोहा के अलावा ईरान ने इराक और सीरिया में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाया है। कतर में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर ईरानी मिसाइलें गिरी हैं। कतर की राजधानी दोहा में भी विस्फोट की आवाजें सुनी गई हैं। यह धमाके तब हुए हैं, जब कतर में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर ईरान के जवाबी हमले की अटकलें लगाई जा रही थीं।

कतर ने अपना एयरस्पेस अस्थायी रूप से बंद किया

ईरान की हमले की धमकी के बाद ही कतर ने अपना एयरस्पेस अस्थायी रूप से बंद कर दिया था। कतर में नया नोटम जारी किया गया था। ईरान की धमकी के बाद दोहा जाने वाले दर्जनों विमानों का रूट डायवर्ट किया गया। कतर पहुंचने से पहले ही विमान का रूट बदल दिया गया।

बहरीन में ब्लैकआउट किया गया

कुवैत के कतर और इराक में ईरानी हमले के बाद बहरीन में ब्लैकआउट किया गया। लोगों से बाहर न निकलने को कहा गया। कुल मिलाकर इस वक्त मिडिल ईस्ट में हालात काफी खराब हो गए हैं।कुवैत, बहरीन, कतर, यूएई, सीरिया, इराक, जॉर्डन और सऊदी अरब में अमेरिकी ठिकानों पर सायरन बज रहे हैं।

पश्चिम एशिया में अमेरिका के कई सैन्य ठिकाने

बता दें कि पश्चिम एशिया में अमेरिका के कई सैन्य ठिकाने हैं। इनमें सबसे प्रमुख ठिकाने कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में हैं। यह सभी देश ईरान से सिर्फ फारस की खाड़ी के फासले पर मौजूद हैं। सोमवार रात को ईरान ने इन्हीं मुख्य अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाकर कई मिसाइलें दागी।

अमेरिका के बाद अब इजरायल ने ईरान को दिए गहरे घाव, 6 मिलिट्री एयरपोर्ट, 15 लड़ाकू विमान किए तबाह

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पश्चिम एशिया में ईरान और इजराइल के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। अमेरिका के बाद अब इजराइल ने एक बार फिर ईरान पर हमला किया है। दावा किया जा रहा है कि इजराइल ने ईरान के छह सैन्य हवाई ठिकानों को निशाना बनाया। इजरायली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने कहा कि केरमानशाह क्षेत्र में 15 से अधिक लड़ाकू विमानों के साथ ईरानी बैलिस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण स्थलों को निशाना बनाकर हमले किए। हालांकि, इस पर ईरान की ओर से अभी प्रतिक्रिया नहीं आई है।

आईडीएफ ने सोमवार को इसकी जानकारी देते हुए दावा किया है कि रात में किए गए इन हमलों में 15 ईरानी लड़ाकू विमानों, कई हेलीकॉप्टरों और दूसरी अहम सुविधाओं को तबाह कर दिया। इजरायल ने ड्रोन के जरिए ये हमले किए हैं, जिनमें ईरान के एयरफोर्स के ठिकानों पर भारी नुकसान हुआ है। 

ईरानी वायुसेना को भारी नुकसान

आडीएफ के अनुसार, उसके ड्रोन हमले के टारगेट पर ईरानी सेना और शासन के विमान शामिल थे। इनमें एफ-14 और एफ-5 लड़ाकू विमान और एएच-1 हेलीकॉप्टर शामिल थे। एक हवाई ईंधन भरने वाले विमान को भी निशाना बनाया गया। हमलों में रनवे, भूमिगत हैंगर और अतिरिक्त बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा। आईडीएफ ने ड्रोन का इस्तेमाल इजरायली अभियानों के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले विमानों को निष्क्रिय करने के लिए किया।

इजरायल के खिलाफ संभावित हमले की तैयारी से पहले निशाना

इजराइली सेना के बयान के अनुसार, उनकी सैन्य खुफिया एजेंसी की सूचना के आधार पर ईरान के कर्मनशाह क्षेत्र में सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों के कई लॉन्च और स्टोरेज साइट्स को भी नष्ट किया गया। ये मिसाइलें इजरायल के खिलाफ संभावित हमले के लिए तैयार की जा रही थीं। 

अमेरिका भी इस जंग में एंट्री

इजरायल को समर्थन देते हुए अमेरिका भी इस लड़ाई में एंट्री कर चुका है। अमेरिकी एयरफोर्स ने रविवार सुबह सैकड़ों लड़ाकू विमानों, बमवर्षकों और बंकर बस्टर बमों से ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनकी सेना के हमलों में ईरान को भारी नुकसान हुआ है और ईरान का परमाणु कार्यक्रम तबाह हो गया है।

बता दें कि ईरान और इजरायल के बीच बीते दस दिन से लड़ाई चल रही है। दोनों देशों ने सोमवार को ग्यारहवें दिन भी एक-दूसरे पर हमले जारी रखे हैं। इस लड़ाई की शुरुआत 13 जून को हुई थी, जब इजरायल ने ईरान पर भीषण हमला करते हुए उसके कई सैन्य अफसरों और परमाणु वैज्ञानिकों को मार डाला था। इसके बाद ईरान ने भी इजरायल के प्रमुख शहरों पर मिसाइल हमले किए हैं।

ट्रंप को नोबेल नामांकन पर पाकिस्तान में ही घिरी शहबाज सरकार, जानें पूरा मामला

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने के फैसले के बाद पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार अपने ही लोगों के निशाने पर आ गई है। पाकिस्तान के कुछ नेताओं और प्रमुख हस्तियों ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हमले के बाद सरकार से 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कह रहे हैं।

पाकिस्तान सरकार ने शुक्रवार को अचानक घोषणा की थी कि भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव कम करने में डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका को देखते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया जाएगा। इसके लिए उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने नॉर्वे में नोबेल कमेटी को सिफारिश पत्र भी भेज दिया। 

ट्रंप के लिए इस सिफारिश के कुछ घंटों बाद ही अमेरिका ने ईरान के तीन अहम परमाणु ठिकानों पर हमला बोल दिया, जिसके बाद पाकिस्तान में सरकार की कड़ी आलोचना शुरू हो गई। देश के कुछ प्रमुख राजनेताओं ने सरकार से नवीनतम घटनाक्रम के मद्देनजर अपने फैसले की समीक्षा करने की मांग की है। 

शहबाज सरकार से फैसला वापस लेने की मांग

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI-F) के प्रमुख वरिष्ठ नेता मौलाना फजलुर रहमान ने मांग की कि सरकार अपना फैसला वापस ले। फजल ने रविवार को मरी में पार्टी की एक बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप का शांति का दावा झूठा साबित हुआ है। नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्ताव वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप की हाल में पाकिस्तान के सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ बैठक और दोनों के साथ में भोजन करने से ‘पाकिस्तानी शासकों को इतनी खुशी हुई’ कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने की सिफारिश कर दी।

‘अफगानों और फिलिस्तीनियों का खून लगा’

फजल ने सवाल किया, ट्रंप ने फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और ईरान पर इजराइल के हमलों का समर्थन किया है। यह शांति का संकेत कैसे हो सकता है?' उन्होंने कहा, जब अमेरिका के हाथों पर अफगानों और फिलिस्तीनियों का खून लगा हो, तो वह शांति का समर्थक होने का दावा कैसे कर सकता है?'

ट्रंप कोई शांति दूत नहीं- पूर्व सांसद

पूर्व सांसद मुशाहिद हुसैन ने ट्रंप की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि ट्रंप अब कोई 'शांति दूत' नहीं, बल्कि 'युद्ध का समर्थक' बन चुके हैं। उन्होंने पाकिस्तान सरकार से नोबेल की सिफारिश को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि ट्रंप ने खुद को इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू और युद्ध लॉबी के चंगुल में फंसा लिया है।

ईरान-इजरायल-अमेरिका युद्ध का भारत पर क्या होगा असर?

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ईरान और इजराइल के बीच जारी संघर्ष न केवल मध्य पूर्व को, बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है। इस टकराव का असर वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों, व्यापारिक मार्गों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति तक महसूस किया जा रहा है। अमेरिका इस संघर्ष में स्पष्ट रूप से इजराइल का समर्थन कर रहा है। हालांकि, अब अमेरिका भी आधिकारिक तौर पर जंग मे कूद चुका है। अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर हमले किए हैं। जिसके बाद युद्ध के विकराल होने के पूरे आसार हैं। इस बीच सवाल उठ रहा है कि इस युद्ध का भारत पर क्या असर होगा?

बीते कुछ सालों में भारत और इजरायल करीब आए हैं। सेक्योरिटी और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत और इजरायल के बीच गहरा सहयोग देखने को मिला है। साल 2023 के अक्तूबर महीने में हमास के हमले को लेकर भारत ने सख्त शब्दों में प्रतिक्रिया दी थी और साथ ही गाजा में सीजफायर से जुड़े यूएन प्रस्ताव पर वोटिंग से किनारा भी किया था। वहीं पहलगाम हमले के बाद इजरायल उन देशों में था जो भारत की आत्मरक्षा के अधिकार के साथ खुलकर सामने आया।

वहीं दूसरी ओर, भारत और ईरान के बीच लंबे समय से मजबूत और सभ्यतागत स्तर के संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जुड़ाव गहरे हैं। ऐसे में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह बिना अपने दीर्घकालिक हितों को नुकसान पहुंचाए इस संघर्ष में किसके साथ खुलकर खड़ा हो सकता है।

चाबहार पोर्ट पर संकट मंडरा रहा

ऐसे में हालिया युद्ध के मद्देनजर भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है। चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट भारत को अफगानिस्तान, सेंट्रल एशिया और ईरान तक सीधी पहुंच देता है। भारत ने इस प्रोजेक्ट में अच्छा खासा निवेश किया है। चीन की बीआरआई परियोजना के मद्देनजर रूचि और पाकिस्तान की छुपी प्रतिद्वंद्विता की वजह से ये भारत के लिए अहम रणनीतिक प्रोजेक्ट है । सेंट्रल एशिया ना सिर्फ एनर्जी बल्कि रेयर अर्थ मिनरल्स के कारण भी बहुत अहम है। ऐसे में युद्ध कनेक्टिविटी को लेकर भारत की योजना को आघात पहुंचा सकता है।

अपने लोगों के जान और माल की सुरक्षा की चिंता

इजरायल और ईरान, दोनों देशों में अच्छी खासी तादाद में भारतीय नागरिक मौजूद हैं। अगर हालात बिगड़ते हैं तो भारत को तात्कालिक तौर पर इन लोगों की जान और माल की सुरक्षा की चिंता करनी होगी। भारत ने ऑपरेशन सिंधु के चलते इन देशों से अपने नागरिक निकाले भी हैं। लेकिन अभी भी तादाद बहुत बड़ी है। एक आंकड़े के मुताबिक इजरायल में करीब 18 हजार और ईरान में करीब 10000 भारतीय मौजूद हैं।

कई देशों से व्यापार होगा प्रभावित

भारत के मध्य एशिया में कई अहम हित जुड़े हुए हैं। तेल की कीमतों में वृद्धि देश में ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती व महंगाई बढ़ा सकती है। अब, ईरान-इजरायल युद्ध के कारण, एक और प्रमुख व्यापारिक मार्ग - होर्मुज जलडमरूमध्य प्रभावित हो रहा है। युद्ध ने पहले ही ईरान और इजरायल को भारत के निर्यात को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। युद्ध के और बढ़ने से इराक, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और यमन सहित पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापार पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा

क्या इसलिए ट्रंप को नोबेल पीस प्राइज देने की सिफारिश की थी? ईरान पर अमेरिकी हमले के बाद गरजे ओवैसी

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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने ईरान के तीन परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी हमलों के बाद डोनाल्ड ट्रंप और उन्हें नोबल शांति पुरस्कार देने की सिफारिश करने वाले पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई।ओवैसी ने कहा, अमेरिका ने जो ईरान पर अटैक किया है, उसकी न्यूक्लियर साइट पर हमला किया है यह अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है।

अब कई अरब देश परमाणु क्षमता की जरूरत पर सोचेंगे-ओवैसी

ईरान पर अमेरिकी हमलों पर एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा, यह अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है। ऐसा करके मुझे यकीन है कि आने वाले पांच साल में ईरान एक परमाणु राज्य बन जाएगा। हमले से पहले ईरान ने अपने भंडार को स्थानांतरित कर दिया होगा। यह एक निवारक नहीं होगा। अब कई अरब देश सोचेंगे कि उन्हें परमाणु क्षमता की जरूरत है।

कोई नहीं पूछ इजराइल के पास कितने परमाणु भंडार हैं-ओवैसी

ओवैसी ने कहा कि अमेरिका की ओर से किए गए इस हमले से नेतन्याहू को मदद मिली है, जो फिलिस्तीनियों का कत्लेआम करने वाला है। गाजा में नरसंहार हो रहा है और अमेरिका को इसकी कोई चिंता नहीं है। अमेरिका की नीति केवल इजराइली सरकार के अपराधों को छिपाने की है। गाजा में जो हो रहा है, वह नरसंहार है और कोई भी इसके बारे में बात नहीं कर रहा है। कोई यह क्यों नहीं पूछ रहा है कि इजराइल के पास कितने परमाणु भंडार हैं?

उम्मीद है कि हमारी सरकार अमेरिकी हमले की निंदा करेगी-ओवैसी

एआईएमआईएम चीफ ने आगे कहा कि ईरान में इन तीन या चार जगहों पर अमेरिकी बमबारी करने से वे नहीं रुकेंगे। मेरे शब्दों पर ध्यान दें, ईरान भी अगले 5 से 10 वर्षों में ऐसा करेगा, दूसरे देश भी ऐसा करेंगे क्योंकि अब उन्हें एहसास हो गया है कि परमाणु बम और परमाणु हथियार होना ही इजराइल के वर्चस्व के खिलाफ एकमात्र निवारक है। मुझे उम्मीद है कि हमारी सरकार अमेरिका की इस एकतरफा बमबारी की निंदा करेगी, जो अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है। मुझे उम्मीद है कि सरकार ईरान के परमाणु संयंत्रों पर बमबारी की निंदा करेगी, जो आज हुई है।

बता दें कि अमेरिका शुरू से ही ईरान की परमाणु शक्ति बनने के खिलाफ है। वो हमेशा से कहता आया है कि वो ईरान को परमाणु ताकत बनने से रोकेगा। इसी के चलते अमेरिका ने ईरान की 3 न्यूक्लियर साइट फार्डो, नतांज, इस्फहान पर अटैक किया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने तीनों साइट को नष्ट कर दिया।