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सुप्रीम कोर्ट की ओर से समयसीमा तय किए जाने पर राष्ट्रपति ने उठाए सवाल, सर्वोच्च अदालत से पूछे ये 14 सवाल

#president_droupadi_murmu_questions_supreme_court

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 8 अप्रैल 2025 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास वीटो का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना होगा। इसमें राष्‍ट्रपति और राज्‍यपालों को विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा तय करने पर टिप्पणी की गई थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले पर सर्वोच्च अदालत से 14 सवाल पूछे हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत 14 बेहद अहम सवाल पूछते हुए यह साफ किया है कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो विधेयकों पर मंजूरी या नामंजूरी की समयसीमा तय करती हो। राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत विधेयकों पर फैसला लेते हैं, लेकिन ये अनुच्छेद कहीं भी कोई समयसीमा या प्रक्रिया निर्धारित नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति का यह विवेकपूर्ण निर्णय संघवाद, कानूनों की एकरूपता, राष्ट्रीय सुरक्षा और शक्तियों के बीच संतुलन जैसे बहुपक्षीय पहलुओं पर आधारित होता है।

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है। इन सवालों में पूछा गया है कि राज्यपाल के पास क्या विकल्प हैं जब कोई बिल उनके पास आता है? क्या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं? क्या राज्यपाल का विवेकाधिकार न्यायिक समीक्षा के अधीन है?

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल-

1. राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं?

2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?

3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है?

4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है?

5. क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है?

6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है?

7. क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?

8. अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए?

9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं।

10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है?

11. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?

12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है?

13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो?

14. क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?

मणिपुर में सेना का बड़ा एक्शन, 10 उग्रवादी ढेर, हथियारों का जखीरा बरामद*


#assam_rifles_killed_10_militants_in_manipur

मणिपुर के चांदेल में भारतीय सेना ने उग्रवादियों के खिलाफ एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है। चंदेल जिले में बुधवार को असम राइफल्स की एक यूनिट ने मुठभेड़ में कम से कम 10 उग्रवादियों को मार गिराया।भारतीय सेना की पूर्वी कमान ने बताया कि खुफिया जानकारी मिलने के बाद शुरू किया गया ऑपरेशन अभी भी जारी है।

इंडियन आर्मी ने एक्स पर इस एक्शन की जानकारी दी है। सेना के मुताबिक, मणिपुर के चांदेल जिले के खेंगजॉय तहसील के न्यू समतल गांव के पास उग्रवादियों की गतिविधियों का पता चला था। भारत-म्यांमार सीमा के पास सशस्त्र कैडरों यानी उग्रवादियों की गतिविधियों की खुफिया जानकारी पर एक्शन लिया गया। स्पीयर कॉर्प्स के तहत असम राइफल्स यूनिट ने 14 मई को एक अभियान शुरू किया।जैसे ही सेना के जवानों ने ऑपरेशन शुरू किया, उग्रवादियों ने उन पर गोलियां चलाई। जिसका सेना ने करारा जवाब दिया।

सेना ने बताया कि सुरक्षाबलों ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और जवाबी कार्रवाई के दौरान हुई गोलीबारी में 10 कैडरों को मार गिराया गया। मौके से बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किए गए हैं।इस ऑपरेशन को कैलिब्रेटेड यानी योजनाबद्ध और सटीक बताया गया है।

सूत्रों के अनुसार, इलाके में और भी उग्रवादी छिपे होने की आशंका के मद्देनजर सर्च ऑपरेशन अभी भी चलाया जा रहा है। ऑपरेशन के दौरान किसी भी जवान के हताहत होने की खबर नहीं है। यह कार्रवाई मणिपुर में जारी अशांति के बीच सुरक्षाबलों की ओर से एक अहम सफलता मानी जा रही है।

NYT के बाद वॉशिंगटन पोस्ट ने किया पाकिस्तान के खोखले दावों का पर्दाफाश, लिखा- पाकिस्तान के 6 एयरफील्ड्स तबाह

#indianstrikesonpakdamagedwashingtonpost_analysis

भारत ने हाल ही में चार दिनों तक पाकिस्तान की ओर से किए गए हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया था। इस दौरान भारत की ओर से पाकिस्तान की सैन्य सुविधाओं और हवाई अड्डों को निशाना बनाया था। हालांकि, करारी शिकस्त के बाद भी पाकिस्तान ने दुनिया में झूठा प्रोपेगैंडा फैलाया था कि उसे रत्ती भर भी नुकसान नहीं पहुंचा है। हालांकि, भारत ने सबूतों के साथ उसे बेनकाब किया था। अब पाकिस्तान की सेना और सरकार की खोखली बातों का पर्दाफाश अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी कर रहा है।पहले न्यूयॉर्क टाइम्स और अब वॉशिंगटन पोस्ट ने भी पाकिस्तान के नापाक चेहरे को बेनकाब कर दिया है।

वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, शनिवार को पाकिस्तान पर भारतीय हमलों में कम से कम छह एयरबेसों पर रनवे और संरचनाओं को नुकसान पहुंचा। विशेषज्ञों ने बताया कि प्रतिद्वंद्वियों के बीच दशकों से चल रहे संघर्ष में यह अपनी तरह का सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक हमला था। दो दर्जन से अधिक सैटेलाइट इमेजों और उसके बाद के वीडियो की समीक्षा में पाया गया कि हमलों में वायुसेना की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले तीन हैंगर, दो रनवे और दो मोबाइल इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा। भारत की ओर से किए प्रहार देश के 100 मील अंदर तक थे।

वाशिंगटन पोस्ट में क्या बोले एक्सपर्ट्स

वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में, एक्सपर्ट्स ने कहा है कि दक्षिण एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के बीच दशकों से चल रहे संघर्ष में यह अपनी तरह का सबसे बड़ा हमला है।

-किंग्स कॉलेज लंदन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के वरिष्ठ व्याख्याता और दक्षिण एशियाई सुरक्षा मुद्दों के विशेषज्ञ वाल्टर लैडविग के मुताबिक, हमले 1971 की जंग के बाद से पाकिस्तानी सैन्य ढांचे पर सबसे बड़े पैमाने पर भारतीय हवाई हमले थे।

-कॉन्टेस्टेड ग्राउंड के भू-स्थानिक विश्लेषक विलियम गुडहिंड ने कहा कि सटीक हमलों में हाईप्रोफाइल लक्ष्यों को निशाना बनाया गया, जिसका मकसद पाकिस्तान की आक्रामक और रक्षात्मक हवाई क्षमताओं को गंभीर रूप से चोट पहुंचाना और उसे कम करना था।

-यूनिवर्सिटी एट अल्बानी में एसोसिएट प्रोफेसर और भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता पर एक किताब के लेखक क्रिस्टोफर क्लेरी ने कहा, 'सैटेलाइट से मिले सबूतों से इस दावे की पुष्टि होती है कि भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में कई ठिकानों पर पाकिस्तानी वायु सेना को करारी चोट पहुंचाई है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी खोली पाक के झूठ की पोल

इससे पहले न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट ने पाकिस्तान के दावों की बुरी तरह से धज्जियां उड़ा दी। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने पाकिस्तान पर साफ तौर पर ज़्यादा और सटीक नुकसान पहुंचाया, खासकर पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों और एयरफील्ड्स को उन्होंने अपने निशाने पर रखा। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट कहा गया है कि, जहां सैटेलाइट तस्वीरों से भी इस बात की पुष्टि हो गई कि भारत के हमलों से पाकिस्तानी ठिकानों को निशाना बनाया गया और वहां नुकसान हुआ है। वहीं पाकिस्तान के दावे खोखले नज़र आ रहे हैं, क्योंकि वो जिन भारतीय सैन्य अड्डों पर हमले की बात कर रहा है, इलाकों की सैटेलाइट तस्वीरों में कोई ठोस नुकसान नजर नहीं आ रहा। सारे सबूत इशारा कर रहे हैं कि पाकिस्तान ने सिर्फ झूठी कहानियां गढ़ीं हैं, जबकि भारत ने ज़मीन पर असरदार कार्रवाई की।

UN में भारत खोलेगा पाकिस्तान का काला चिट्ठा, टीआरएफ के खिलाफ प्रस्ताव पेश करेनी की तैयारी

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पहलगाम में हुए खौफनाक आतंकी हमले के बाद भारत एक्शन मोड में है। अब निशाने पर है आतंकी संगठन टीआरएफ (द रेजिस्टेंस फ्रंट), जिसे भारत संयुक्त राष्ट्र में आतंकी संगठन घोषित करवाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है। भारत सरकार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की 1267 प्रतिबंध समिति की आगामी बैठक में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मामला जोरशोर से उठाने की तैयारी कर रही है। आतंकियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने वाली संयुक्त राष्ट्र के समिति के साथ भारतीय अधिकारी काम कर रहे हैं।

सबूत के साथ खोलेगी काला चिठ्ठा

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भारतीय टीम न्यूयॉर्क में है। भारतीय टीम संयुक्त राष्ट्र में 1267 प्रतिबंध समिति की निगरानी टीम तथा अन्य साझेदार देशों के साथ बातचीत कर रही है। टीम संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद निरोधक कार्यालय (यूएनओसीटी) और आतंकवाद निरोधक समिति कार्यकारी निदेशालय (सीटीईडी) के साथ भी बैठक करेगी। माना जा रहा है कि टीम पहलगाम हमले में द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) की संलिप्तता को लेकर संयुक्त राष्ट्र की संबंधित समितियों को कुछ अहम सबूत भी मुहैया कराएगी।

पाकिस्तान की भूमिका भी होगी उजागर

भारत अब एक ओर जहां टीआरएफ को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करवाने की कोशिश करेगा, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की भूमिका को उजागर कर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसे घेरने की रणनीति अपनाएगा। इसके साथ ही, भारत पाकिस्तान को फिर से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डालने के लिए प्रयास तेज कर रहा है और इस्लामाबाद को दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता को भी चुनौती देने की योजना बना रहा है।

क्या है UNSC की 1267 समिति?

UNSC की 1267 प्रतिबंध समिति आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई का एक मजबूत स्तंभ है। 1999 में स्थापित यह समिति ISIS, अल-कायदा और उनके सहयोगी संगठनों पर नकेल कसती है। भारत इस समिति के जरिए टीआरएफ को आतंकी संगठन घोषित करवाकर इसके सदस्यों पर यात्रा प्रतिबंध और आर्थिक पाबंदियां लगवाना चाहता है। यह कदम टीआरएफ की कमर तोड़ने के लिए काफी है।

भारतीय सेना में नीरज चोपड़ा को मिला बड़ा पद, बने लेफ्टिनेंट कर्नल

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ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा को भारतीय सेना में एक बड़ी जिम्मेदारी मिली है। दो बार के ओलंपिक मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा को टेरिटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट कर्नल की ऑनररी रैंक से सम्मानित किया गया है। रक्षा मंत्रालय की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी कर ये जानकारी दी गई है।

रक्षा मंत्रालय की ओर से बुधवार 14 मई को एक नोटिफिकेशन के जरिए इसका ऐलान किया गया। राष्ट्रपति ने 9 मई को इस नोटिफिकेशन में इसका ऐलान किया। रक्षा मंत्रालय की इस अधिसूचना के मुताबिक नीरज राष्ट्रपति ने टेरिटोरियल आर्मी रेगुलेशन के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए नीरज चोपड़ा को मानद लेफ्टिेंट कर्नल की रैंक से सम्मानित किया है। नीरज की ये रैंक 16 अप्रैल 2025 से ही लागू हो गई थी।

नीरज चोपड़ा को भारत की टेरिटोरियल आर्मी रेगुलेशन, 1948 के Para-31 के तहत शामिल किया गया है। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक दी है। इससे पहले नीरज राजपूताना राइफल्स में सूबेदार के पद पर थे। नीरज 2016 में नायब सूबेदार के पद पर भारतीय सेना में शामिल हुए थे।

नीरज गोल्ड मेडल जीतकर रच चुके हैं इतिहास

नीरज टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत के लिए जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। वह देश के लिए व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले ट्रैक एंड फील्ड एथलीट बने थे। नीरज ने अपने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर की दूरी के साथ पहला स्थान हासिल कर गोल्ड अपने नाम किया था। उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए पहला गोल्ड जीता था। नीरज चोपड़ा ने जहां टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता। वहीं पेरिस ओलंपिक 2024 में भी नीरज भारत के लिए सिल्वर मेडल लेकर आए।

इन दिग्गजों को भी मिल चुका है सम्मान

ये पहला मौका नहीं है जब किसी खिलाड़ी को राष्ट्रपति ने टेरिटोरियल आर्मी में इस रैंक से सम्मानित किया है। भारत को पहला वर्ल्ड कप जिताने वाले पूर्व कप्तान कपिल देव को लेफ्टिनेंट कर्नल बनाया गया था। फिर 2011 में एमएस धोनी और अभिनव बिंद्रा को भी ये सम्मान मिला था। वहीं महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर को भारतीय वायु सेना ने ऑनररी ग्रुप कैप्टन बनाया था।

जंग में ‘पिटने’ के बाद पाकिस्तान अब भारत के सामने गिड़गिड़ाया, सिंधु जल समझौते को लेकर लगाई ये गुहार

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भारतीय सेना से करारी शिकस्त के बाद पाकिस्तान अब पानी को लेकर भारत के सामने गिड़गिड़ाने लगा है। घुटनों पर आई पाकिस्तान की सरकार ने बुधवार को भारत के जल शक्ति मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर सिंधु जल समझौते को स्थगित करने को लेकर दोबारा विचार करने की अपील की है।

पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय में सचिव सैय्यद अली मुर्तुजा ने जल शक्ति मंत्रालय में सचिव देवश्री मुखर्जी को पत्र लिखा है। इसमें फैसले पर दोबारा विचार करने की अपील की है। पत्र में कहा गया है कि पाकिस्तान इस मसले पर बात करने को तैयार है। सूत्रों के अनुसार नियम के मुताबिक यह पत्र विदेश मंत्रालय भेज दिया गया है।

नरमी के मूड में नहीं भारत

पाकिस्तान का कहना है कि अगर भारत तीन नदियों के जल पर अपने अधिकार का पूर्ण उपयोग करने लगा, तो पाक‍िस्‍तान के कई राज्‍यों में गंभीर जल संकट पैदा हो जाएगा। इस खतरे को भांपते हुए पाकिस्तान ने भारत से तुरंत बात करने की अपील की है। लेकिन भारत इस बार नरमी के मूड में नहीं दिखता। पीएम मोदी ने एक द‍िन पहले ही कहा था क‍ि पाक‍िस्‍तान को क‍िसी भी तरह की रियायत नहीं दी जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालिया राष्ट्र के नाम संबोधन में साफ किया कि खून और पानी साथ नहीं बह सकते। यह बयान पाकिस्तान के लिए भारत के कड़े संदेश की तरह देखा जा रहा है।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने लिया सख्त फैसला

दरअसल, पहलगाम हमले के अगले ही दिन भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया था। 1960 में हुए सिंधु जल समझौते को पाकिस्तान की लाइफ लाइन माना जाता है। पाकिस्तान की करीब 21 करोड़ से ज्यादा की आबादी पानी के लिए सिंधु और उसकी चार सहायक नदियों पर निर्भर है। इसके अलावा 90% जमीन में सिंचाई का पानी सिंधु नदी से मिलता है।

तनाव के बाद भारत ने रोका चिनाब नदी पानी

भारत ने पाकिस्तान के साथ 1965, 1971 और 1999 की जंग के बाद भी सिंधु जल समझौते को सस्पेंड नहीं किया था। लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए बड़ा कदम उठाया है. भारत ने चिनाब नदी पर बने बगलिहार बांध से पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी के प्रवाह को रोक दिया और झेलम पर किशनगंगा परियोजना से भी पानी के बहाव को कम कर दिया

अब तुर्की का होगा मालदीव जैसा हाल, पाकिस्तान का साथ देकर बड़ी गलती कर बैठे एर्दोगन

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पिछले साल जनवरी में मालदीव के कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी के लक्षद्वीप दौरे के दौरान अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। जिसके बाद भारत और मालदीव के बीच विवाद काफी बढ़ गया। इस दौरान भारत सरकार के पहले भारतीय अपने प्रधानमंत्री की ढाल बनकर खड़े हो गए थे। भारतीय पर्यटकों ने मालदीव का बहिष्कार शुरू कर दिया, जिसने कुछ ही समय में मालदीव के नेताओं को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। अब लगता है मालदीव के बाद तुर्की की बारी है।

दरअसल, 22 अप्रैल को पाकिस्तान की ओर से आए आतंकियों ने पहलगाम में 26 लोगों का धर्म पूछकर नरसंहार कर दिया। भारत ने आतंकी हमला का जवाब देते हुए पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद आतंक को पालने वाला पाकिस्तान तिलमिला गया और भारत पर ड्रोन और मिसाइल दागने लगा। पाकिस्तान ने तुर्की के ड्रोन से हमला किया था। इन हमलों को भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके बाद पाकिस्तान घुटने पर आ गया। तुर्की ने इस तनाव के वक्त में भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दिया। तुर्की की मीडिया ने प्रोपेगेंडा चलाने में पाकिस्तान का पक्ष लिया। जिससे गुस्साए भारतीय पर्यटकों ने तुर्की का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। अब टूर ऑपरेटर्स ने तुर्की का दौरा कैंसिल करना शुरू किया। भारत की कई टूर कंपनियों ने तुर्की, चीन और अजरबैजान की बुकिंग कैंसिल करनी शुरू कर दी है।

तुर्की को भारी पड़ सकता है भारत का बहिष्कार

अब बड़ा सवाल ये है कि भारतीय पर्यटकों के बहिष्कार से तुर्की को कितना नुकसान होगा? पिछले कुछ सालों में भारी संख्या में भारतीय पर्यटकों ने घुमने के लिए तुर्की को चुना है। साल 2023 में करीब 2.74 लाख भारतीय नागरिक घुमने के लिए तुर्की गये थे। जबकि 2024 में तुर्की जाने वाले भारतीय पर्यटकों का ये आंकड़ा बढ़कर करीब 3.5 लाख पहुंच गया। भारतीय लोगों के बीच शादी करने, हनीमुन मनाने और फैमिली ट्रिप्स के लिए तुर्की तेजी से पॉपुलर हो रहा था।

भारतीयों के बहिष्कार से तुर्की को कितना नुकसान?

बात अगर तु्र्की को भारतीय पर्यटकों से होने वाले फायदे की करें तो तुर्की की सरकार ने 2025 में भारतीय टूरिज्म से 300 मिलियन डॉलर तक की इनकम करने की उम्मीद की थी। अगर बहिष्कार लंबे समय तक चला तो अनुमान है कि 150–200 मिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। वहीं टूरिज्म सेक्टर से जुड़े होटल, ट्रांसपोर्ट, गाइड्स को मिलाकर नुकसान 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकता है। वहीं भारतीय काफी खर्च करने के लिए जाने जाते है। वो चीनियों की तरह खर्च करने में कंजूस नहीं होते हैं। भारत का एक पर्यटक मालदीव या तुर्की जैसे देशों में 2500 डॉलर से ज्यादा खर्च करता है। इसके अलावा शादियों और अन्य तरह का आयोजन करने के लिए भी भारती के लोग तुर्की जाते हैं। शादियों का खर्च और भी ज्यादा होता। जिससे भारत का बहिष्कार तुर्की को भारी पड़ सकता है।

तुर्की से आयातित सेब की बिक्री पर भी असर

भारत के लोगों का गुस्सा सिर्फ तुर्की की यात्रा का बहिष्कार करने तक नहीं है। भारतीय बाजारों में तुर्की से आयातित सेब की बिक्री पर भी असर पड़ा है। थोक व्यापारी बता रहे हैं कि अब ग्राहक तुर्की के सेब नहीं खरीद रहे हैं। 2024-25 में भारत ने तुर्की से करीब 1.6 लाख टन सेब आयात किए थे जो कुल विदेशी सेब बाजार का 6-8% हिस्सा रखते थे। अब सेब उत्पादक संघ तुर्की से आयात पर पूरी तरह से रोक की मांग कर रहा है।

कर्नल सोफिया कुरैशी पर बयान देकर घिरे मंत्री विजय शाह, हाईकोर्ट ने चार घंटे के अंदर FIR दर्ज करने का दिया आदेश

#ordertofilefiragainstministervijay_shah

मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिए विवादित बयान पर अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।कोर्ट ने कहा है कि चार घंटे में एफआईआर दर्ज हो।कोर्ट ने एमपी के डीजीपी को विजय शाह पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट की जस्टिस अतुल श्रीधरन की डिवीजन बेंच ने आदेश दिया है कि मंत्री पर चार घंटे में एफआईआर दर्ज हो। गुरुवार सुबह सबसे पहले इसी मामले पर अगली सुनवाई करेंगे।

कोर्ट ने खुद ही संज्ञान लिया

हाईकोर्ट ने सोफिया कुरैशी पर की गई टिप्पणी के मामले में खुद ही संज्ञान लिया। कोर्ट ने मंत्री विजय शाह के खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और अनुराधा शुक्ला की बेंच के सामने राज्य सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह पेश हुए। युगलपीठ ने पुलिस विभाग को शाम 6 बजे तक एफआईआर करने के निर्देश दिए हैं। युगलपीठ ने मामले की सुनवाई संज्ञान याचिका के रूप में करते हुए उक्त आदेश जारी किये। युगलपीठ ने मंत्री के खिलाफ बीएनएस की धारा 196 तथा 197 के तहत प्रकरण दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं। याचिका में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को अनावेदक बनाया गया है। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि एफआईआर दर्ज किए जाने के संबंध में न्यायालय को अवगत कराया जाए। याचिका पर अगली सुनवाई गुरुवार की सुबह 10.30 बजे निर्धारित की गई है।

क्या है विजय शाह का बयान

दरअसल, मोहन सरकार के मंत्री विजय शाह ने मानपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर विवादित बयान दे डाला था। मानपुर में आयोजित हलमा कार्यक्रम में मंत्री शाह ने पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए कहा, जिन आंतकियों ने पहलगाम में लोगों को मारा, उनके कपड़े उतरवाए, उन आंतकियों ने हमारी बहनों का सिंदूर उजाड़ा। मंत्री शाह ने कहा, पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हीं की बहन को भेजकर उनकी ऐसी-तैसी करवाई। बयान को लेकर जब राजनीति गरमा गई।

कभी अमेरिका के आतंकियों के लिस्ट में था नाम, अब उससे रियाद में मिले राष्ट्रपति ट्रंप

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डोनाल्ड ट्रंप ने जब से अमेरिका के राष्ट्रपति का पद संभाला है, तब से उन्होंने अपने फैसलों से दुनिया को टौंका कर रख दिया है। इस बार अपनी मध्य पूर्व यात्रा के दौरान ट्रंप ने सीरिया पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने का ऐलान किया। यही नहीं, ट्रंप ने सीरिया के लीडर अहमद अल-शरा से भी मुलाकात की है। सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल-शरा वही शख्स हैं, जो पिछले साल तक अमेरिकी आतंकी सूची में था।

13 साल पुराने प्रतिबंध हटाने का एलान

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से रियाद में मुलाकात की। उनके साथ सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी थे। डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के राष्ट्रपति अल-शरा से अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने और इजरायल को मान्यता देने को कहा है। इसके अलावा ट्रंप ने सीरिया पर लगे 13 साल पुराने प्रतिबंध हटाने का एलान किया। साथ ही कहा कि हमें उम्मीद है कि सीरिया की नई सरकार देश में स्थिरता और शांति लाएगी।

क्राउन प्रिंस और एर्दोआन भी बैठक में हुए शामिल

डोनाल्ड ट्रंप और सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल-शरा के बीच बैठक लगभग 33 मिनट तक चली, जिसमें सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी मौजूद रहे और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन ने वीडियो कॉल के जरिए हिस्सा लिया। बैठक के बाद ट्रंप ने बताया कि उन्हें अल-शरा से मिलने के लिए सऊदी और तुर्की नेताओं ने प्रेरित किया। साथ ही इस बैठक के बाद ट्रंप ने ऐलान किया कि सीरिया पर 2011 से लगे आर्थिक प्रतिबंध हटा लिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सीरिया में अब एक नई सरकार है जो देश में शांति और स्थिरता ला सकती है। यही हम देखना चाहते हैं।

ट्रंप की इस मुलाकात पर उठ रहे सवाल

अल-शरा सीरिया के चरमपंथी संगठन हयात तहरीर अल-शाम के प्रमुख है। इसी संगठन ने सीरिया से बशर अल-असद के तख्तापलट में अहम भूमिका निभाई है और अल-कायदा से जुड़े रहे हैं। ये संगठन भी अमेरिका की प्रतिबंधित सूची में शामिल है। ट्रंप की इस मुलाकात के बाद उनके ऊपर कई सवाल उठाए जा रहे हैं, जिस अमेरिका ने आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर मध्य पूर्व के कई देशों में बम गिराए उसका नेता आज एक ‘आतंकवादी’ से मिल रहा है।

अल-शरा ने उखाड़ फेंका असद की सरकार

सीरिया में बशर अल-असद ने लगभग 25 सालों तक सख़्ती के साथ शासन किया था और अक्सर पश्चिमी देशों सहित कई अन्य देश इसकी निंदा भी करते रहे हैं। लेकिन पिछले साल नवंबर में हयात तहरीर अल-शाम या एचटीएस के नेतृत्व वाले विद्रोहियों ने असद सरकार को उखाड़ फेंका और देश पर कब्जा कर लिया। बशर अल-असद के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद एचटीएस के प्रमुख अहमद अल-शरा उर्फ अबू मोहम्मद अल जुलानी देश की कमान संभाल रहे हैं।

क्या शरद और अजीत पवार फिर आ रहे साथ, जानें अटकलों को क्यों पकड़ा जोर?

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महाराष्ट्र की राजनीति में इन दोनों फिर इस बात की चर्चा जोरों पर है कि क्या एनसीपी और एनसीपी-एसपी का विलय होने वाला है। इन अटकलों को बल तक मिला जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (सपा) प्रमुख शरद पवार ने अपने भतीजे और राकांपा अध्यक्ष तथा महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार चार दिनों में दूसरी बार एक मंच पर नजर आए। शरद पवार और अजित पवार ने सोमवार को मुंबई में महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में मंच साझा किया। इससे पहले शुक्रवार को सतारा में रयत शिक्षण संस्था द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दोनों नेताओं के एक साथ दिखे थे।

इसी बीच एनसीपी-एसपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील ने आज बुधवार को पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के कुछ नेता और सांसद चाहते हैं कि अजीत पवार को साथ लेकर चला जाए, क्योंकि वे सरकार में हैं ही और अब तक उन्होंने एनसीपी-एसपी के नेताओं को मदद भी पहुंचाई है, जो सकारात्मक है।

मिली जानकारी के मुताबिक एनसीपी (एसपी) के 10 विधायकों में से आधे से ज्यादा अजित पवार के साथ पार्टी का मर्जर चाहते हैं। दरअसल महाराष्ट्र में अक्टूबर में होने वाले शहरी निकाय चुनाव से पहले एनसीपी (SP) में बड़ी टूट का खतरा पैदा हो गया है। एनसीपी (SP) के बहुत सारे नेता अजित पवार की एनसीपी में जाने की तैयारी में थे। इस टूट की भनक शरद पवार और सुप्रिया सुले को हो गया था। अब कहा जा रहा है कि पार्टी में टूट फूट को रोकने के लिए साथ ही अजित पवार और सुप्रिया सुले में सुलह को ध्यान में रखते हुए शरद पवार भी दोनों धड़ों को एक करने के पक्ष में आ गए।

अपनी पार्टी में दो गुट होने की खुद शरद पवार भी स्वीकार कर चुके हैं। पवार ने 7 मई को इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में अजित के साथ हाथ मिलाने के सवाल पर अपनी पार्टी में आंतरिक मतभेदों को स्वीकार करके चर्चा को हवा दी थी। उन्होंने कहा, पार्टी में दो तरह के विचार हैं। एक यह है कि हम अजित के साथ फिर से जुड़ जाएं, जबकि दूसरा कहता है कि हमें सीधे या परोक्ष रूप से भाजपा के साथ नहीं जाना चाहिए।