42 डिग्री तापमान, तपती छत… बुजुर्ग मां को बेसहारा छोड़ गए बेटा-बहू, रुला देगी ये कहानी
मध्य प्रदेश के जबलपुर से हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां भीषण गर्मी पड़ रही है, तापमान 42 डिग्री पार कर चुका है. वहीं एक 95 वर्षीया बुजुर्ग मां को उसके अपने बेटे और पोते ने ठंड बरसात हो या भीषण गर्मी सभी मौसम में खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया. एक पुरानी खाट, एक फटी हुई तिरपाल और कुछ टूटे-फूटे बर्तन के सहारे उसके जीवन की संध्या वेला गुजर रही है. इतना ही नहीं वो बासी रोटियों और गंदे पानी के सहारे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव के दिन और रात गुजार रही है.
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कभी जिस मां ने अपने बेटे को धूप से बचाने के लिए अपनी चुनरी फैलाई थी. उन्हीं बेटों ने उसे झुलसा देने वाली धूप में मरने के लिए छोड़ दिया. पहले प्यार से रहने वाली इस मां को अब अपने ही घर में जगह नहीं मिली. जमीन-जायदाद बेटे के नाम होते ही मां का मूल्य समाप्त हो गया. एक समय था जब बेटा उसकी गोद में सिर रखकर मीठी नींद सोता था. आज वही बेटा उसकी आखिरी सांसे गिनने के लिए खुले आसमान के नीचे तिल-तिल मरने को मजबूर कर दिया.
जब कॉलोनी वासियों ने वृद्धा को देखा और उसका दर्द महसूस किया तो उनका दिल कांप उठा. किंतु डर और असहायता के कारण खुलकर सामने नहीं आ सके. आखिरकार, एक गुमनाम पत्र के जरिये कलेक्टर दीपक सक्सेना को इस अमानवीय कृत्य की सूचना दी गई. पत्र में लिखा था “माँ को आग की भट्टी में झोंक दिया गया है. वे छत पर जलती हुई जमीन पर बैठी हैं, नन्हीं सी छांव भी नसीब नहीं.”
तपती धूप में छत पर बैठी बुजुर्ग मां
कलेक्टर दीपक सक्सेना ने तुरंत एक्शन लिया. तहसीलदार और पुलिस टीम को भेजा गया. जब टीम वहां पहुंची तो जो हृदय विदारक दृश्य सामने आया, उसने हर किसी का दिल दहला दिया. एक कांपती, डरी-सहमी बूढ़ी मां फटी हुई तिरपाल के नीचे सिकुड़ी बैठी थी. पैरों के नीचे तपती हुई छत, सिर पर आग बरसाता सूरज. लेकिन उसके चेहरे पर कोई शिकवा नहीं. बस एक अजीब सी खामोशी थी. जैसे मां अपने ही बच्चों के हाथों मिले इस दर्द को चुपचाप सह रही थी.
पड़ोसियों ने डीएम को लिखा पत्र
कलेक्टर के आदेश पर जब तहसीलदार पुलिस के साथ रेस्क्यू करने पहुंची तो पोते और बहु ने मना कर दिया कि कुछ भी ऐसा नहीं है. लेकिन जब अधिकारियों ने ऊपर जाकर देखा तो होस पाख्ता हो गए. पुलिस ने तुरंत वृद्धा को रेस्क्यू किया और सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. पड़ोसियों की मांग पर उसे वृद्धाश्रम में रखने की प्रक्रिया शुरू की गई, जहां उसे कम से कम एक सम्मानजनक जीवन मिल सकेगा.
क्या मां को नहीं समझ पाए नादान?
“मां” शब्द का मतलब केवल जन्म देना नहीं है वह त्याग है, समर्पण है और ममता की छांव है. मां के बिना जीवन अधूरा है, और मां की उपेक्षा करके कोई भी सुखी नहीं रह सकता. जिस मां ने अपने बेटे को सींचा, उसे दुनिया से लड़ना सिखाया. वही मां जब वृद्धावस्था में सहारा मांगती है तो उसके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार होना, समाज के पतन का संकेत है. क्या हम मां शब्द की गहराई को सच में समझते हैं? मां को केवल शब्दों में नहीं, अपने आचरण में सम्मान देना ही उसकी सच्ची पूजा है.
Apr 27 2025, 10:31