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बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग, याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम पर पहले ही लग रहे आरोप

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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई है।वकील विष्णु शंकर जैन ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष याचिका पेश की, जिसके बाद याचिका को कल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने और पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की याचिका सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि वक्फ कानून के विरोध में हुई मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद कोर्ट इस पर फैसला ले। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कोई आदेश नहीं दिया। बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा, क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को इसे लागू करने का आदेश भेजें? हम पर दूसरों के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी के आरोप लग रहे हैं।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाया सवाल

बता दें कि हाल ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के काम में दखल देने का आरोप लगाया है। जिस पर खासा विवाद हो रहा है। साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर सवाल उठाए थे और सुप्रीम कोर्ट पर सुपर संसद के रूप में काम करने का आरोप लगाया था।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए थे, जिसमें शीर्ष अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को निर्देश दिया था कि अगर कोई विधेयक संसद या विधानसभा की तरफ से दोबारा पारित किया गया हो, तो तीन महीने के भीतर उसे मंजूरी दी जाए।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति को कोर्ट द्वारा निर्देशित किया जाएगा। राष्ट्रपति भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें एक निश्चित समय में निर्णय लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है।

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाए गंभीर आरोप

वहीं इसके कुछ ही दिनों बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए जिम्मेदार है। निशिकांत दुबे ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था, अगर शीर्ष अदालत को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

पोप फ्रांसिस का निधन, 88 साल की उम्र में ली आखिरी सांस

#pope_francis_died_age_of_88

पोप फ्रांसिस का सोमवार को निधन हो गया है। पोप फ्रांसिस का वेटिकन सिटी में निधन हुआ। वेटिकन के कैमर्लेंगो कार्डिनल केविन फेरेल ने बताया है कि पोप फ्रांसिस ने रोम के समय के हिसाब से सोमवार सुबह 7:35 बजे अंतिम सांस ली। वह 88 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे।निमोनिया की शिकायत पर फ्रांसिस पिछले दिनों अस्पताल में भर्ती हुए थे।

पोप फ्रांसिस ईस्टर रविवार के अवसर पर सेंट पीटर्स स्क्वायर में हजारों लोगों की भीड़ के सामने कुछ समय के लिए आए थे और सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। पोप फ्रांसिस ने लोगों को ईस्टर की शुभकामनाएं भी दी थीं। हालांकि पोप फ्रांसिस ने पियाजा में ईस्टर की प्रार्थना में हिस्सा नहीं लेकर इसे सेंट पीटर्स बेसिलिका के सेवानिवृत्त कार्डिनल एंजेलो कोमास्ट्री को सौंप दिया।

पोप फ्रांसिस ब्रोंकाइटिस से पीड़ित थे और उन्हें शुक्रवार, 14 फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन उनकी हालत बिगड़ती गई, क्योंकि डॉक्टरों को ‘जटिल नैदानिक स्थिति” के कारण पोप के श्वसन पथ के संक्रमण के इलाज में बदलाव करना पड़ा और फिर एक्स-रे कराने पर पुष्टि हुई कि वह डबल निमोनिया से पीड़ित थे।उनको लंबे समय से ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जा रहा था। उनको लगातार खून चढ़ाया जा रहा था।

लगभग एक महीने तक अस्पताल में इलाज कराने के बाद पोप 24 मार्च को अपने निवास स्थान कासा सांता मार्टा लौटे थे। अस्पताल से लौटने पर उन्होंने बड़ी संख्या में अस्पताल के बाहर जमा हुए लोगों को आशीर्वाद दिया था। सार्वजनिक रूप से पोप को देखने के बाद लोग काफी खुश दिखे थे और जयकारे भी लगाए थे।

पोप फ्रांसिस का जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में हुआ था। उनका असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। उन्होंने 13 मार्च 2013 को पोप का पद संभाला था, जो रोमन कैथोलिक चर्च का सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है। रोम के बिशप और वैटिकन के राज्याध्यक्ष को पोप कहा जाता है। पोप फ्रांसिस लैटिन अमेरिका से आने वाले पहले पोप थे। पोप फ्रांसिस ने अपने कार्यकाल में चर्च में सुधारों को बढ़ावा दिया। उनको अपने मानवीय क्षेत्र में किए कामों के लिए भी जाना गया।

पाकिस्तान की एक और “नापाक” हरकत, कुलभूषण जाधव से अपील करने का अधिकार छीना

#pakistan_denied_kulbhushan_jadhav_right_to_appeal 

पाकिस्तान ने एक बार फिर अपनी नापाक हरकत दिखाई है। पाकिस्तान ने भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को अपील का अधिकार देने से मना कर दिया है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने वहां के सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि कुलभूषण जाधव को अंतरराष्ट्रीय न्याय न्यायालय से सिर्फ काउंसुलर एक्सेस देने का आदेश दिया गया था और कुलभूषण जाधव के पास अपील करने का अधिकार नहीं है। बता दें कि पाकिस्तान कुलभूषण जाधव पर भारतीय जासूस होने का आरोप लगाता रहा है।

पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय के वकील ख्वाजा हारिस अहमद ने बुधवार को पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में एक संवैधानिक पीठ के सामने कुलभूषण जाधव के मामले का जिक्र किया है। कुलभूषण जाधव का जिक्र उस वक्त किया गया है, जब मई 2023 में पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन मामले की सुनवाई चल रही थी। इस दौरान इमरान समर्थकों को सैन्य अदालत की तरफ से सजा सुनाया गया है और उन लोगों ने सैन्य अदालत के फैसले को चुनौती दी है। जिसको लेकर शहबाज सरकार ने दलील दी है कि सैन्य अदालत से सजा मिलने के बाद उसे ऊपरी अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

कुलभूषण जाधव एक सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी हैं, जो सेवानिवृत्ति के बाद ईरान के चाबहार में व्यवसाय कर रहे थे। साल 2016 में पाकिस्तान ने कथित तौर पर कुलभूषण जाधव का अपहरण कर लिया और उन पर भारत का जासूस होने का आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया। एक साल बाद यानी 2017 में पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी के आरोप में कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुना दी। भारत ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया और इसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्याय न्यायालय में अपील की। अंतरराष्ट्रीय न्याय न्यायालय ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कुलभूषण जाधव की मौत की सजा पर रोक लगा दी और पाकिस्तान को सुनवाई की समीक्षा करने और भारतीय नागरिक को काउंसुलर एक्सेस देने का आदेश दिया। 

पाकिस्तान का दावा है कि जाधव को 2016 में जासूसी और आतंकवाद के आरोप में बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया गया था। भारत ने पाकिस्तान के आरोपों को खारिज कर दिया है। भारत का कहना है कि कुलभूषण जाधव चाबहार पोर्ट पर काम कर रहे थे, जब आतंकवादियों ने उन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर अगवा कर लिया।

क्या फिर साथ आ रहा पवार परिवार? 15 दिन के भीतर शरद-अजित ने तीसरी बार किया मंच साझा

#sharad_pawar_and_ajit_pawar_will_join_hands

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने की अटकलों के बीच अब शरद पवार-अजित पवार के भी एकसाथ होने की चर्चा जोर पकड़ रही है। बीते दिनों में दोनों नेता कई बार एक मंच पर देखे जा चुके हैं। ताजा मामला सोमवार का है, जब राष्ट्रवादी कांग्रेस (एसपी) प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने एक पखवाड़े में तीसरी बार मंच साझा किया। इस बार कृषि और चीनी उद्योग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के उपयोग पर चर्चा के दौरान दोनों एक ही मंच पर दिखे।

पुणे के शुगर कॉम्प्लेक्स में एआई से संबंधित बैठक के बाद, वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट के कामकाज के संबंध में बैठक हो रही है। इस बैठक में शरद पवार, अजित पवार और वीएसआई के पदाधिकारी मौजूद हैं। जब अजित पवार से दोनों के बीच जारी एकता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारे कार्यकर्ता होशियार हैं। इस तरह एक बार फिर अप्रत्यक्ष रूप से दोनों पवारों के एक साथ आने की खबर की ओर इशारा किया।

अजित पवार ने हाल ही में सतारा स्थित रयत शिक्षण संस्था में उनकी संयुक्त उपस्थिति पर भी टिप्पणी की, जहां उनके चाचा अध्यक्ष हैं और वे स्वयं ट्रस्टी हैं। उन्होंने कहा, जब मैं रयात शिक्षण संस्था की बैठकों में जाता हूं, तो मैं एक ट्रस्टी के रूप में जाता हूं, न कि उपमुख्यमंत्री के रूप में। उस बैठक में छात्रों को लाभ पहुंचाने के लिए शिक्षा में एआई के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया था। आज की बैठक कृषि में एआई के बारे में थी। सरकार में काम करते समय, हमें हमेशा किसानों की आय बढ़ाने और उनकी इनपुट लागत कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ विषय राजनीति से परे होते हैं।

अजित पवार लंबे समय तक शरद पवार के साथ मिलकर राजनीति करते रहे। लेकिन करीब 2 साल पहले जुलाई 2023 में उन्होंने चाचा के खिलाफ बगावत कर दिया और एनसीपी के एक धड़े के साथ राज्य में बने महायुति गठबंधन में शामिल हो गए। बाद में अजित पवार की अगुवाई वाले एनसीपी को मुख्य पार्टी घोषित कर दिया गया। यह पार्टी अभी राज्य में महायुति गठबंधन का हिस्सा है।

हमारी मंजूरी जरूरी नहीं...', निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

#nishikantdubeycasesupremecourt

सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई के खिलाफ टिप्पणी करने वाले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। अब दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने की मांग की गई है, जिसपर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान आया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप इसे दायर करें, याचिका दायर करने के लिए आपको हमारी मंजूरी की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि इसके लिए हमसे नहीं बल्कि अटॉर्नी जनरल से मांग कीजिए।

अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने दायर की है। अनस तनवीर भी वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं में से एक का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी को पत्र लिखकर उनकी मंजूरी मांगी है। पत्र में कहा गया है कि दुबे ने सर्वोच्च अदालत की गरिमा को कम किया है। आवेदन में कहा गया है कि दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला करते हुए कहा था कि अगर कानून सुप्रीम कोर्ट को ही बनाना है, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर भी निशाना साधा और उन्हें देश में गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराया

बीजेपी नेता का बयान 'खतरनाक रूप से भड़काऊ'

अधिवक्ता अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल को लिखे पत्र में कहा है कि निशिकांत दुबे ने सार्वजनिक रूप से जो बयान दिए हैं, वे अत्यंत आपत्तिजनक, भ्रामक और माननीय सुप्रीम कोर्ट की गरिमा एवं अधिकार को कम करने की नीयत से दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के भेजे गए पत्र के अनुसार, दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ जो आपत्तिजनक टिप्पणियां की है वह कंटेप्ट वाली हैं और बेहद अपत्तिजनक है। पत्र में कहा कि दुबे की टिप्पणी 'गंभीर रूप से अपमानजनक' और 'खतरनाक रूप से भड़काऊ' हैं।

बीजेपी ने खुद को दुबे के बयान से अलग किया

निशिकांत दुबे की यह टिप्पणी वक्फ संशोधन कानून को लेकर आई। वक्फ संशोधन कानून के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर सवाल उठाए हैं, जिसके बाद केंद्र सरकार ने अगली सुनवाई तक कानून के कुछ प्रावधानों को लागू करने पर रोक लगा दी है। भाजपा ने भी शनिवार को खुद को निशिकांत दुबे के बयान से अलग कर लिया और दुबे के बयान को उनके निजी विचार बताया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी नेताओं से अपील की है कि वे ऐसी टिप्पणियां न करें।

बीसीसीआई ने किया सेंट्रल कॉन्ट्रेक्ट का ऐलान, 5 भारतीय खिलाड़ियों को मिली जगह

#bcciannounces202425annualcontractlist

बीसीसीआई ने साल 2024-2025 के लिए खिलाड़ियों के सेंट्रल कॉन्ट्रेक्ट की सूची का एलान कर दिया है। इस लिस्ट में कुल 34 खिलाड़ी हैं। 34 नामों को चार ग्रेड में बांटा गया है। हमेशा की तरह खिलाड़ियों को A+, A, B और C कैटेगरी में बांटा गया है। इनकी सैलरी एक करोड़ से 7 करोड़ तक है। 34 खिलाड़ियों में 5 ऐसे नाम शामिल हैं जिन्हें बीसीसीआई ने पहली बार सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट में जगह दी है। बड़ी बात ये है कि ईशान किशन और श्रेयस अय्यर की कॉन्ट्रेक्ट में फिर से वापसी हुई है।

किस ग्रेड को कितना पैसा?

बीसीसीआई सेंट्रल कॉन्ट्रेक्ट में 34 खिलाड़ियों को 4 ग्रेड में बांटा गया है। हर खिलाड़ी को उसके ग्रेड के मुताबिक सालाना रकम दी जाएगी। सबसे ज्यादा 7 करोड़ रुपये A+ ग्रेड के खिलाड़ियों को मिलते हैं। वहीं A ग्रेड में 5 करोड़ रुपये मिलते हैं। जबकि B ग्रेड के खिलाड़ियों को 3 करोड़ रुपये। वहीं C ग्रेड में शामिल खिलाड़ियों को सालाना 1-1 करोड़ रुपये मिलते हैं। बीसीसीआई के केंद्रीय अनुबंध की सूची में उन्हीं खिलाड़ियों को जगह मिलती है जो एक साल के अंदर कम से कम तीन टेस्ट, आठ वनडे या 10 टी20 मैच जरूर खेले हों।

ऋषभ पंत ग्रेड- B से ग्रेड- A में प्रमोट

A+ ग्रेड में 4 खिलाड़ियों को जगह दी है। उसने रोहित शर्मा, विराट कोहली, जसप्रीत बुमराह और रवींद्र जडेजा को इस ग्रेड में रखा है। वहीं A ग्रेड में 6 खिलाड़ी शामिल किए गए हैं, जिसमें मोहम्मद सिराज, केएल राहुल, शुभमन गिल, हार्दिक पंड्या, मोहम्मद शमी और ऋषभ पंत हैं। विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत को इस कॉन्ट्रेक्ट में फायदा हुआ है। वह ग्रेड- B से ग्रेड- A में प्रमोट किए गए हैं।

ईशान और श्रेयस की वापसी

वहीं, पांच खिलाड़ी B ग्रेड और 19 खिलाड़ी C ग्रेड में हैं। नीतीश रेड्डी, हर्षित राणा, अभिषेक शर्मा और वरुण चक्रवर्ती को पहली बार बीसीसीआई के केंद्रीय अनुबंध में जगह मिली है। इन सभी को ग्रेड- C में रखा गया है। इस केंद्रीय अनुबंध की सबसे बड़ी खबर ईशान किशन और श्रेयस अय्यर की इस सूची मे वापसी है। ईशान और श्रेयस को बीसीसीआई से अनबन के बाद 2023-24 के केंद्रीय अनुबंध की सूची से बाहर होना पड़ा था। बीसीसीआई के कहने के बावजूद ईशान और श्रेयस ने घरेलू टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं लिया था। हालांकि, अब इन दोनों की वापसी हो गई है। ईशान को ग्रेड- C और श्रेयस को ग्रेड- B में रखा गया है।

विदेशी जमीन से फिर राहुल ने देश के आतंरिक मुद्दों पर उठाए सवाल, बोले- चुनाव आयोग ने किया समझौता

#rahulsaidinamericaelection_commission

लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि, इस बार उन्होंने भारत से नहीं बल्कि अमेरिका की धरती से कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि चुनाव आयोग ने समझौता कर लिया है और सिस्टम में कुछ गड़बड़ है।

निर्वाचन आयोग को कटघरे में खड़ा किया

राहुल 2 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। राहुल गांधी शनिवार देर रात को अमेरिका के बॉस्टन एयरपोर्ट पर उतरे थे। माना जा रहा था कि राहुल एक बार फिर विदेशी जमीन से देश की मोदी सरकार और देश के आतंरिक मुद्दों पर बोलेंगे, वैसा ही हुआ। उन्होंने बोस्टन में ब्राउन यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ एक सत्र में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने पिछले साल हुए महाराष्ट्र चुनाव का मुद्दा उठाया। उन्होंने देश की चुनाव प्रणाली और निर्वाचन का आयोग की मंशा को कटघरे में खड़ा किया।

महाराष्ट्र में वयस्कों की संख्या से ज्यादा मतदान-राहुल

राहुल गांधी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी में संबोधन के दौरान राहुल ने कहा कि मैंने यह कई बार कहा है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में वयस्कों की संख्या से ज्यादा लोगों ने मतदान किया। राहुल गांधी ने आगे कहा कि चुनाव आयोग ने हमें शाम 5:30 बजे तक के मतदान के आंकड़े दिए और शाम 5:30 बजे से 7:30 बजे के बीच 65 लाख मतदाताओं ने मतदान कर दिया। ऐसा होना शारीरिक रूप से असंभव है। एक मतदाता को मतदान करने में लगभग 3 मिनट लगते हैं और अगर आप गणित लगाएं तो इसका मतलब है कि सुबह 2 बजे तक मतदाताओं की लाइनें लगी रहीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब हमने उनसे वीडियोग्राफी देने के लिए कहा तो उन्होंने न केवल मना कर दिया, बल्कि उन्होंने कानून भी बदल दिया ताकि हम वीडियोग्राफी के लिए न कह सकें।

महीने में पांच साल से ज्यादा वोटर्स जोड़े गए-राहुल

राहुल ने आरोप लगाया था कि लोकसभा चुनाव के लिए पांच साल में महाराष्ट्र में 32 लाख वोटर्स जोड़े गए, जबकि इसके पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव के लिए 39 लाख वोटर्स को जोड़ा गया। उन्होंने चुनाव आयोग से पूछा कि पांच महीने में पांच साल से ज्यादा वोटर्स कैसे जोड़े गए? विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल वयस्क आबादी से ज्यादा रजिस्टर्ड वोटर्स कैसे थे? राहुल ने कहा कि इसका एक उदाहरण कामठी विधानसभा है, जहां भाजपा की जीत का अंतर लगभग उतना ही है जितने नए वोटर्स जोड़े गए।

पहले भी उठा चुके हैं सवाल

यह पहली बार नहीं है, जब राहुल गांधी ने चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े किए हैं। पिछले महीने 10 मार्च को राहुल ने सदन में मतदाता सूची का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि कई राज्यों में वोटर लिस्ट पर सवाल उठे हैं, इसलिए संसद में चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि सरकार वोटर लिस्ट नहीं बनाती है, यह तो सबको पता है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं तो अच्छा होगा कि संसद में इस विषय पर चर्चा हो।

भारत पहुंचे अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, आज शाम पीएम मोदी से होगी मुलाकात

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अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपने 4 दिवसीय भारत दौरे के लिए दिल्ली पहुंच गए हैं। उनके साथ उनकी भारतीय मूल की पत्नी उषा चिलुकुरी और तीन बच्चे भी आए हैं। वेंस का प्लेन दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर लैंड हुआ। एयरपोर्ट पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जेडी वेंस और उनके परिवार का स्वागत किया। पालम एयरपोर्ट पर वेंस का स्वागत गार्ड ऑफ ऑनर के साथ किया गया।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और उनकी पत्नी उषा वेंस का पालम हवाई अड्डे पर स्वागता किया गया। इसके बाद उनके तीन बच्चे इवान, विवेक, मीराबेल विमान से उतरे। सभी भारतीय परिधानों में नजर आए। बेटों ने कुर्ता-पायजामा पहना था, जबकि बेटी लहंगे में बेहद खूबसूरत लग रही थी। जेडी वेंस खुद अपनी बेटी को उतारने के लिए विमान की सीढ़ियों पर चढ़े और गोद में लेकर चलते रहे, जिसने सबका ध्यान खींचा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो अप्रैल को अमेरिका के सभी कारोबारी साझेदारों पर जवाबी टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। हालांकि बाद में ट्रंप ने चीन को छोड़कर अन्य सभी देशों पर लगाए गए टैरिफ को 90 दिन के लिए स्थगित कर दिया। इसके बाद से ही अमेरिकी नेता अलग-अलग देशों के साथ बातचीत कर द्विपक्षीय समझौतों के जरिये इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। इस बीच वेंस का दौरा काफी अहम माना जा रहा है।

दिल्ली पहुंचने के बाद वेंस और उनका परिवार स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर की ओर रवाना हो गया। उनका काफिला अक्षरधाम मंदिर के सामने से गुजरते हुए देखा गया। मंदिर की प्रवक्ता राधिका शुक्ला ने बताया, वेंस और उषा वेंस सीधे पालम हवाई अड्डे से मंदिर आएंगे। उषा की भारतीय जड़ें हैं। वे पहले भगवान स्वामीनारायण की प्रतिमा के दर्शन करेंगे, फिर मंदिर की स्थापत्य कला देखेंगे। मंदिर के बाहर स्वागति पोस्टर और कड़ी सुरक्षा है। यहां वे पारंपरिक भारतीय दस्तकारी सामान बेचने वाले एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का भी दौरा कर सकते हैं।

करणी सेना नहीं वो योगी सेना, सरकार ने की फंडिंग”, अखिलेश यादव का यीपी सरकार पर हमला

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राणा सांगा पर राज्यसभा में दिए बयान के बाद छिड़े सियासी घमासान के बीच शनिवार को सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन से मिलने आगरा उनके आवास पहुंचे।जहां उन्होंने सरकार पर जमकर हमला बोला। अखिलेश यादव ने करणी सेना पर हमले का आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा है, जिसका उद्देश्य दलितों और अल्पसंख्यकों को डराना है। अखिलेश यादव ने कहा कि करणी सेना नहीं ये योगी सेना है, जिसके लिए सरकार से फंडिंग हो रही है।

यह संदेश दिया गया कि राजपूत योगी के साथ-अखिलेश

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपने सांसद रामजीलाल सुमन के आवास पर मीडिया से वार्ता करते हुए करणी सेना के प्रदर्शन पर कहा कि यह लखनऊ और दिल्ली में सत्ता में बैठे लोगों के वर्चस्व की लड़ाई थी। भोले-भाले लोगों को तलवारें पकड़ाकर आगे कर दिया गया। प्रदर्शन से यह संदेश दिया गया कि राजपूत योगी के साथ हैं।

लोगों की आवाज दबाने के लिए योगी सेना-अखिलेश

अखिलेश यादव ने करणी सेना को योगी सेना बताया। उन्होंने कहा, जिस तरह हिटलर सेना रखता था, लोगों की आवाज दबाने के लिए उसी तरह ये योगी सेना लोगों को डरा रही है सवाल उठाए कि इन्हें फंडिंग किसने की। योगी को कुछ नहीं आता है।

पीडीए को डराने की कोशिश-अखिलेश

अखिलेश ने मीडिया से बातचीत के दौरान सरकार पर आरोप लगाया कि ये पीडीए को तोड़ने की कोशिश है। अखिलेश यादव ने सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के घर पर करणी सेना की तरफ से किए गए हमले को लेकर कहा कि ये पीडीए को डराने की कोशिश की गई है। उन्होंने कहा कि सांसद के आवास पर अचानक हमला नहीं हुआ। ये हमला एक साजिश के तहत हुआ है। हमलावरों का इरादा जान लेने का था।

अखिलेश ने कहा कि हाल में हुए उप चुनाव भी ये लोग डराकर ही जीते हैं। प्रयागराज में एक दलित को मारकर जला दिया गया। ये एक तरह से दलितों-अल्पसंख्यकों को डराने कोशिश पूरी कोशिश की गई है।

ब्राह्मणों पर मैं मू...कोई समस्या?' फिल्म 'फुले' विवाद के बीच अनुराग कश्यप का ये कैसा बयान

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फिल्में समाज का आइना कही जाती हैं। हालांकि, कई बार लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सच्चाई को पेश करने में सतर्कता बरती जाती है। इन दिनों फिल्म “फुले” को लेकर भी विवाद हो रहा है। इस बीच फिल्म निर्माता-अभिनेता अनुराग कश्यप ने ब्राह्मण समुदाय द्वारा फिल्म “फुले” के खिलाफ आपत्ति जताए जाने के बीच ब्राह्मण हिंदुओं के खिलाफ नफरत भरी टिप्पणी की है। अपने इंस्टाग्राम पोस्ट के तहत एक टिप्पणी का जवाब देते हुए, अनुराग कश्यप ने कथित तौर पर कहा कि वह ब्राह्मणों पर पेशाब करेंगे।

फिल्ममेकर ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है जिसमें 'फुले' को लेकर चल रहे जातिवाद वाले हंगामे के खिलाफ अपनी बात रखी है। उन्होंने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर करते हुए देश में आज भी जातिवाद की मौजूदगी को लेकर एक बड़ा और बेबाक सवाल किया है। उन्होंने इस पोस्ट में महाराष्ट्रियन ब्राह्मण समूहों द्वारा नाराजगी और अनंत महादेवन निर्देशित 'फुले' की रिलीज में देरी पर अपनी निराशा जताई।

अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में कश्यप ने लिखा, "मेरी जिंदगी का पहला नाटक ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले पे था। भाई अगर जातिवाद नहीं होता इस देश में तो उनको क्या जरूरी थी लड़ने की। अब ये ब्राह्मण लोगों को शर्म आ रही है या वो शर्म में मारे जा रहे हैं या फिर एक अलग ब्राह्मण भारत में जी रहे हैं जो हम देख नहीं पा रहे हैं। यदि इस देश में जातिवाद मौजूद नहीं होता, तो उन्हें इसके खिलाफ लड़ने की आवश्यकता क्यों होती? अब ये ब्राह्मण समूह या तो शर्मिंदा महसूस करते हैं, शर्म से मर रहे हैं, या शायद वे किसी वैकल्पिक ब्राह्मण-केवल भारत में रह रहे हैं जिसे हम देख नहीं पा रहे हैं। कोई कृपया समझाए- यहां असली मूर्ख कौन है?

'असहज सच्चाई' को बयां करने पर सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है

कश्यप ने आगे कहा, मेरा सवाल यह है कि जब फिल्म सेंसरशिप के लिए जाती है, तो बोर्ड में चार सदस्य होते हैं। आखिर कैसे इन समूहों और विंग्स को फिल्मों तक पहुंच मिलती है, जब तक कि उन्हें इसकी अनुमति न दी जाए? पूरी व्यवस्था ही धांधली वाली है। उन्होंने इस बात पर भी दुख जताया कि समाज की कथित 'असहज सच्चाई' को बयां करने वाली पंजाब 95, तीस, धड़क 2 जैसी कई फिल्मों को सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है और वे रिलीज नहीं हो पाती हैं। मुझे नहीं पता कि इस जातिवादी, क्षेत्रवादी, नस्लवादी सरकार के एजेंडे को उजागर करने वाली और कितनी फिल्में ब्लॉक की गई हैं... उन्हें अपना चेहरा आईने में देखकर शर्म आती है। उन्हें इतनी शर्म आती है कि वे खुलकर यह भी नहीं बता पाते कि फिल्म में ऐसा क्या है जो उन्हें परेशान करता है। कायरों।

जाति व्यवस्था पर उठाया सवाल

अनुराग कश्यप ने सवाल किया, धड़क 2 की स्क्रीनिंग के दौरान, सेंसर बोर्ड ने हमें बताया कि मोदीजी ने भारत में जाति व्यवस्था को खत्म कर दिया है। इसी आधार पर, संतोष को भी भारत में रिलीज़ नहीं किया जा सका। अब, ब्राह्मण फुले पर आपत्ति कर रहे हैं। भाई, अगर जाति व्यवस्था नहीं है तो आप ब्राह्मण कैसे हो सकते हैं? आप कौन हैं? आप क्यों परेशान हो रहे हैं?

ब्राह्मणों के खिलाफ घृणा का प्रदर्शन

के इसी पोस्ट पर लोगों ने उनके खिलाफ और कुछ ने उन्हें सपोर्ट करते हुए भी कॉमेंट किए हैं। एक ने लिखा- ब्राह्मण तुम्हारे बाप हैं, जितना तुम्हारी उनसे सुलगती उतना तुम्हारी सुलगाएंगे। अनुराग कश्यप ने इस कॉमेंट का जवाब भी दिया है और लिखा, 'ब्राह्मण पे मैं मूतूंगा, कोई प्रॉब्लम?

केंद्रीय मंत्री सतीश दुबे ने लगाई लताड़

अनुराग कश्यप ब्राह्मण समुदाय पर दिए गए अपने बयान के कारण विवादों में आ गए हैं। हालांकि, उन्होंने शुक्रवार देर रात एक सोशल मीडिया पोस्ट में माफी मांग ली, पर विवाद और बढ़ता जा रहा है। अब केंद्रीय मंत्री सतीश दुबे ने बुरी तरह भड़क गए हैं और अनुराग कश्यप को सोशल मीडिया पर खरी-खोटी सुनाई है।

सतीश दुबे ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, इस नीच बदमाश अनुराग कश्यप को लगता है कि वह पूरे ब्राह्मण समुदाय पर गंदगी फैलाकर बच सकता है? अगर वह तुरंत सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगता है, तो मैं कसम खाता हूं कि मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि उसे कहीं भी शांति न मिले। इस गटर मुंह वाले की नफरत बहुत हो गई, हम चुप नहीं बैठेंगे।

25 अप्रैल को सिनेमाघरों में आएगी

बता दें कि फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी। अब यह फिल्म 25 अप्रैल को सिनेमाघरों में आएगी। फुले सामाजिक कार्यकर्ता ज्योतिराप गोविंदराव फुले (प्रतीक गांधी द्वारा अभिनीत) और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले (पत्रलेखा द्वारा अभिनीत) के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ और महिलाओं के शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी, जिसमें 1848 में भारत के पहले लड़कियों के स्कूल की स्थापना भी शामिल है।