सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कीं ‘सेम सेक्स मैरिज’ पर पुनर्विचार याचिका, कहा- फैसले में कोई खामी नहीं
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सुप्रीम कोर्ट ने भारत में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता खारिज करने के अपने ऐतिहासिक फैसले को चुनौती देने वाली समीक्षा याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें कोई खामी नहीं है। फैसले कानून के मुताबिक हैं। इसमें हस्तक्षेप ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2023 में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से दोबारा विचार की मांग की गई थी। लेकिन 5 जजों की बेंच ने माना है कि वह फैसला सही था। पहले दिए गए एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि समान-लिंग संघों को कानूनी मंजूरी देने का कोई संवैधानिक आधार नहीं था।
अपने नए फैसले में, कोर्ट ने कहा कि उसके पहले के फैसले में रिकॉर्ड के अनुसार कोई त्रुटि स्पष्ट नहीं थी। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि मूल फैसले में व्यक्त विचार कानून के अनुरूप थे और इसमें किसी और हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। नतीजतन, फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली सभी समीक्षा याचिकाएं खारिज कर दी गईं, जिससे कोर्ट के पहले के रुख को बल मिला।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने पुनर्विचार याचिकाओं के लिए तय नियम के मुताबिक इसे बंद चैंबर में देखा। अगर जजों को लगता कि पहले आए फैसले में कोई कानूनी कमी है या कुछ अहम सवालों के जवाब उस फैसले में नहीं दिए गए, तब वह इसे खुली अदालत में सुनवाई के लिए लगाने का निर्देश देते। लेकिन जजों को दोबारा सुनवाई की ज़रूरत नहीं लगी।
जस्टिस गवई के साथ जो 4 जज बेंच में शामिल थे, उनके नाम हैं- जस्टिस सूर्य कांत, बी वी नागरत्ना, पी एस नरसिम्हा और दीपांकर दत्ता। इनमें से सिर्फ जस्टिस नरसिम्हा ही इकलौते जज हैं, जो 2023 में फैसला देने वाली 5 जजों की बेंच के सदस्य थे। उस बेंच के बाकी 4 सदस्य जज अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
जिस फैसले पर दोबारा विचार की मांग करते हुए 13 याचिकाएं दाखिल हुई थीं, उसमें कहा गया था कि विवाह कोई मौलिक अधिकार नहीं है। समलैंगिकों को भी अपना साथी चुनने और उसके साथ रहने का अधिकार है, लेकिन उनके संबंधों को शादी का दर्जा देने या किसी और तरह से कानूनी मान्यता देने का आदेश सरकार को नहीं दिया जा सकता. सरकार अगर चाहे तो ऐसे जोड़ों की चिंताओं पर विचार करने के लिए कमेटी बना सकती है। कोर्ट ने माना था कि यह विषय सरकार और सांसद के अधिकार के क्षेत्र में आता है। कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि समलैंगिक जोड़े बच्चा गोद नहीं ले सकते।
Jan 10 2025, 13:22