40 साल बाद जहरीले कचरे से मुक्त हुआ भोपाल, जानें क्या है पूरी कहानी
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भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल से भी ज्यादा का समय हो चुका है। नए साल यानी एक जनवरी 2025 को पूरे 40 साल 30 दिन बाद मध्य प्रदेश सरकार आखिरकार यूनियन कार्बाइड के 337 मीट्रिक टन (एमटी) जहरीले कचरे को ठिकाने लगाने की कार्रवाई शुरू कर रही है। इस केमिकल कचरे को यूनियन कार्बाइड के बंद पड़े फैक्टरी वाले इलाके से हटाकर नष्ट करने के लिए दूसरी जगह ले जाया जा रहा है।
भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद जहरीले कचरे को शिफ्ट किया गया है। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से 337 टन जहरीला कचरा भोपाल से पीथमपुर पहुंचाया गया। कचरे को ले जाने के लिए 250 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। विशेषज्ञों की निगरानी में इसे 12 कंटेनर में भरकर ले जाया गया। 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार ‘यूनियन कार्बाइड' कारखाने में पड़े इस कचरे को इंदौर के पास पीथमपुर की एक औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में नष्ट किया जाएगा। केंद्र सरकार ने 4 मार्च को कचरा निपटारा के लिए 126 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।
कचरे को ले गया 40 वाहनों का काफिला
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह कचरा 40 वाहनों के काफिले में फैक्ट्री से बाहर निकाला गया. करीब एक किलोमीटर लंबे इस काफिले में 12 बड़े ट्रक शामिल थे। इस कचरे को सुरक्षित रूप से ले जाने के लिए पांच जिलों में हाई अलर्ट लगाया गया। कचरे के ट्रांसफर के दौरान सुरक्षा के लिए 1,000 से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया।
हाई कोर्ट ने दी सख्त चेतावनी
इस जहरीले कचरे के निस्तारण को लेकर अब भी स्थानीय लोगों में डर का माहौल है। पीथमपुर में रहने वाले लोग भी इससे चिंतित हैं। हालांकि, एमपी गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह का कहना है कि कचरे का निपटान वैज्ञानिक तरीके से किया जाएगा, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं होगा। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के सख्त रुख के बाद इस कचरे को हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई। अदालत ने अधिकारियों से पूछा था कि क्या वे किसी और त्रासदी का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट ने कचरे के निपटान के लिए चार हफ्तों की समय सीमा तय की थी।
भोपाल में उस रात हुआ क्या था?
आज से चार दशक पहले मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक ऐसी त्रासदी हुई, जिससे पूरी दुनिया कांप उठी थी। 2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनेट ने पांच हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगी छीन ली थी। लाखों लोग प्रभावित हो गए थे। यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली गैस 40 किलोमीटर दूर तक में फैल गई थी। शहर की एक चौथाई आबादी गैस चेंबर में तब्दील हो गई थी। सबसे अधिक बच्चों पर गैस का प्रभाव पड़ा था। जिस रात यह घटना घटी थी। उसके कई दिनों बाद तक भोपाल से लोगों का पलायन चलता रहा। हजारों लोग सैकड़ों किसोमीटर दूर चले गए। यहां से जाने के बाद बड़ी संख्या में लोग अस्पतालों में भर्ती हुए थे। इस उन्माद के बीच साहस और हौसले की भी कमी नहीं थी। बड़ी संख्या में लोगों ने प्रभावित लोगों को निकालने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी।
कितना खतरनाक है यह कचरा?
बताया जाता है कि इस गैस लीक के चलते फैक्टरी के आसपास बड़ी मात्रा में फैली चीजें जहरीली हो गईं। खासकर कीटनाशक उत्पादन के बाद जो बचा हुआ कचरा फैक्टरी के सौर वाष्पीकरण तालाब (जहां सूरज की रोशनी से भाप बनाकर गंदे पानी को खत्म कर दिया जाता हो और ठोस पदार्थों को अलग इकट्ठा कर लिया जाता था) में पड़ा था, उसे गैस लीक के बाद जहां-तहां ही छोड़ दिया गया। इसका असर यह हुआ कि जहरीली गैस के प्रभाव में आने के बाद यह कचरा और ज्यादा खतरनाक हो गया। इसका असर फैक्टरी के आसपास मौजूद जल स्रोतों पर भी पड़ा और बड़ी संख्या में क्षेत्र में लगे हैंडपंपों को सील किया जा चुका है।
यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के पास जो कचरा पड़ा है, उसमें कीटनाशक- सेविन के बायप्रोडक्ट शामिल हैं। इसके अलावा अधूरे उत्पादन के चलते कुछ केमिकल्स और इसे बनाने में लगा कच्चे केमिकल भी कचरे में शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतने वर्षों में यह कचरा जानलेवा केमिकल्स का भंडार बन चुका है। इसमें भारी धातुएं, जैसे निकेल और मैंगनीज की मौजूदगी है। इसके अलावा लेड, मरकरी और क्लोरिनेटेड नैप्थलीन शामिल हैं, जो कि कचरे के जहरीले होने की असली वजह हैं। यह केमिकल कैंसर जैसी बीमारी को जन्म दे सकते हैं। इसके अलावा यह बच्चों के विकास और मानव शरीर में कई और तरह की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
अब तक यह साफ नहीं है कि इस कचरे ने भोपाल में कितने क्षेत्र पर असर डाला है। हालांकि, एक एनजीओ ने 2004 में कहा था कि यूनियन कार्बाइड प्लांट से 5 से 10 किलोमीटर की दूरी तक कई हैंडपंपों में जहरीले केमिकल पाए जाने की बात सामने आई है। भारत के राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग संस्थान की रिपोर्ट में भूमिगत जल के डरावने स्तर तक जहरीले होने की बात सामने आने के बाद सरकार ने कई हैंडपंपों को सील कर दिया था।
Jan 02 2025, 16:25