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बेंगलुरु में एआई इंजीनियर अतुल शुभाष की खुदकुशी के बाद परिवार का दर्द, मां की हालत बिगड़ी

बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल शुभाष की खुदकुशी के बाद उनके परिवार का रो-रोकर हाल बुरा हो रहा है. उनकी मां बुधवार शाम को परिवार के साथ पटना एयरपोर्ट पहुंची हैं और वहां पर उनकी तबीयत बिगड़ गई और वह रोते-रोते बेहोश हो गईं. उनके परिवार से मिलने के लिए पटना एयरपोर्ट पर मीडियाकर्मी इंतजार कर रहे थे. जैसे ही अतुल सुभाष का परिवार बाहर आया उनकी मां रो रही थीं. अचानक रोते-रोते वह बेहोश होकर गिर पड़ीं.

बेंगलुरु में एआई इंजीनियर सुभाष अतुल का परिवार बिहार के समस्तीपुर के पूसा का रहने वाला है. अतुल ने 9 नवंबर को खुदकुशी कर ली थी जिसके बाद उनका परिवार बेंगलुरु पहुंचा था और उनके अंतिम संस्कार के बाद उनका अस्थि कलश लेकर लौटा है. इस दौरान उनका परिवार रो रहा था. उनकी मां अचानक रोते-रोते बेहोश हो गईं. हालांकि परिजनों ने उन्हें तुरंत संभाला और ढांढस बंधाया जिसके बाद उन्हें होश आया.

बिहार सरकार ने नहीं किया संपर्क

पटना एयरपोर्ट से उनका परिवार समस्तीपुर के लिए रवाना हो गया है. एयरपोर्ट पर मौजूद उनके रिश्तेदार प्रकाश चंद्र मोदी ने मीडिया से चर्चा के दौरान बताया है कि इस पूरे मामले में उन्हें न्यायपालिका से पूरी उम्मीदें हैं. 2019 में दोनों की शादी हुई थी जिसके बाद एक बच्चा हुआ और वह बच्चा अभी भी मां के पास ही है. उन्होंने आगे कहा कि कोर्ट में तलाक का केस चल रहा है. इस हालात में उनके परिजनों से अभी तक बिहार सरकार ने संपर्क नहीं किया है.

न्याय के बाद ही गंगा में ले जाएंगे अस्थियां

सुभाष अतुल के परिजनों ने कहा कि उनकी सुसाइड नोट की पहली लाइन है ‘जस्टिस इज ड्यू’. उन्होंने कहा कि अब उन्हें किसी भी कीमत पर न्याय चाहिए. उन्होंने मीडिया से भी सपोर्ट करने को कहा है. वह अतुल सुभाष का अंतिम संस्कार करने के बाद अस्थि कलश अपने साथ लाए हैं. परिजनों ने बताया कि वह अस्थियां तभी गंगा में ले जाएंगे जब उन्हें न्याय मिलेगा. परिजनों ने कहा कि लड़कों के लिए भी कानून बनने चाहिए. कानून का मजाक बनाकर फायदा उठाया जा रहा है.

दिल्ली में वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने चुनाव आयोग से की मुलाकात

दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चुकी है. सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने की कोशिश में लगी है. इस बीच पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने आज बुधवार को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) राजीव कुमार को पत्र लिखकर मांग की है कि हाल ही में वोटर लिस्ट से नाम हटाए जाने के विवाद के बीच चुनावी प्रक्रिया की अखंडता की रक्षा की जाए. साथ ही किसी भी विधानसभा क्षेत्र में वोटर्स के नाम नहीं हटाए जाएं.

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी और अन्य नेताओं के साथ बीजेपी के वोट काटने के खिलाफ चुनाव आयोग से मुलाकात की. आयोग से मुलाकात के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, “हमने आयोग के सामने 3 हजार पेज के सबूत रखे कि किस तरह से बीजेपी दिल्ली के मौजूदा लोगों के वोट कटवाने का षड्यंत्र रच रही है और यह संख्या हजारों की है. जिन वोट कटवाए जा रहे हैं वो गरीब लोगों, दलितों और झुग्गियों में रहने वाले लोग हैं. हमारी मांग है कि इस प्रक्रिया को बंद किया जाए.”

कई क्षेत्रों में वोटर्स के नाम काटे जा रहे’

केजरीवाल ने कहा, “हमने आयोग के सामने यह पक्ष रखा कि कैसे शाहदरा में बीजेपी के एक पदाधिकारी ने चोरी-छिपे 11 हजार से अधिक वोटर्स की लिस्ट कटवाने के लिए चुनाव आयोग को दी. और आयोग ने इस पर काम करना भी शुरू कर दिया. यह प्रक्रिया दिल्ली के जनकपुरी, तुगलकाबाद समेत कई क्षेत्रों में चलाई जा रही है.”

उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग ने हमें यह आश्वासन दिया है कि चुनाव से पहले कोई मास डिलीशन नहीं किया जाएगा. अगर किसी का नाम हटवाना है को यह फॉर्म 7 से ही हटेगा. साथ ही आयोग अगर तय करता है कि कोई मास डिलीशन होनी है तो पहले फील्ड अधिकारी इसकी जांच करेंगे. जांच के दौरान अधिकारी अन्य दलों के पदाधिकारियों को साथ लेकर जाएंगे. इस पर पूरी प्रक्रिया किए जाने का आयोग ने भरोसा दिलाया है.

SDM खुद जांच करने जाएंगेः केजरीवाल

उन्होंने बताया कि अगर कहीं पर कोई एक आदमी की ओर से 5 से ज्यादा लोगों के वोट कटवाने को लेकर आवेदन किया गया है तो SDM खुद मौके पर जाकर इसका निरीक्षण करेंगे. चुनाव आयोग ने हमें यह आश्वासन दिया है कि जो लोग भी फर्जी तरीके से वोट कटवाने का काम कर रहे हैं, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी.

इससे पहले आम आदमी पार्टी (AAP) के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आज बीजेपी पर अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों में हार के डर से 7 निर्वाचन क्षेत्रों में वोटर लिस्ट से वोटर्स के नाम हटाने के लिए भारी मात्रा में आवेदन जमा करने का आरोप लगाया.

यह बीजेपी की साजिशः मनीष सिसोदिया

राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा के साथ संवाददाता सम्मेलन में सिसोदिया ने दावा किया, “जब बीजेपी केजरीवाल को रोकने और उन्हें हराने में नाकाम रही, तो अन्य तरीकों से चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है.” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बीजेपी के सदस्यों और समर्थकों की ओर से वोटर लिस्ट से 22 हजार वोटर्स के नाम हटाने के लिए बड़े पैमाने पर अप्लाई किए गए.

उन्होंने निराशा जताते हुए कहा, “यह एक चिंताजनक मुद्दा है, जो यह उजागर करता है कि किस प्रकार 22,000 वोटर्स के नाम हटाए जा रहे हैं और यह बीजेपी की ओर से रची गई एक संभावित साजिश है. यह तथ्य और भी खतरनाक हो जाता है कि चुनाव आयोग इन आवेदनों पर विचार कर रहा है.

बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार को लेकर ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार से की ये मांग

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर भारत में काफी नाराजगी जताई जा रही है. आम लोगों के साथ ही तमाम नेता भी उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार 11 दिसंबर को केंद्र सरकार से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि जो लोग बांग्लादेश से वापस भारत आना चाहते हैं, उन्हें वापस लाया जाए.

मुख्यमंत्री जगन्नाथ मंदिर के निर्माण की समीक्षा के लिए दीघा के दो दिवसीय दौरे पर हैं. इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि केंद्र को हिंसा प्रभावित बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देनी चाहिए और जो लोग लौटना चाहते हैं उन्हें वापस लाना चाहिए. सीएम ने कहा कि हम बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा चाहते हैं. केंद्र को इस मामले में कदम उठाना चाहिए.

‘कुछ लोग जानबूझकर फर्जी वीडियो प्रसारित कर रहे’

इसके साथ ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि कुछ लोग जानबूझकर फर्जी वीडियो प्रसारित कर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह के फर्जी वीडियो से समाज में सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा, जो कि ठीक नहीं. इससे देश का माहौल खराब होगा.

हिंदू समुयाए के लोगों को बनाया जा रहा निशाना

बांग्लादेश की 17 करोड़ की आबादी में करीब 8 प्रतिशत अल्पसंख्यक हिंदू हैं, जिन्हें पांच अगस्त को शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद से 50 से अधिक जिलों में हमलों का सामना करना पड़ा है. लगातार हिंदू धर्म को निशाना बनाया जा रहा है. उनके धार्मिक स्थलों पर हमले किए जा रहे हैं. अब तक कई मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी की कई. इस्कॉन मंदिर में तोड़फोड़ की गई. मंदिर में मौजूद मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया.

अत्याचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ भारत में कई जगह विरोध प्रदर्शन किए. वहीं विदेशों में सुरक्षा का मांग को लेकर आवाज उठाई जा रही है. कनाडा में बांग्लादेश वाणिज्य दूतावास के सामने हिंदू समुदाय के लोग एकत्रित हुए विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान उन्होंने हिंदुओं को बचाने की मांग की.

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में बड़ा हादसा: स्कूल की 35 छात्राएं फूड पॉइजनिंग का शिकार, एक की मौत

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के एक स्कूल से हैरान करने वाला मामला सामने आया है. माता रुक्मणी आश्रम स्कूल की 35 छात्राओं की तबीयत अचानक बिगड़ गई. जिन्हें आनन-फानन में इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहीं 9 छात्राओं की हालत गंभीर बनी हुई है. जानकारी के मुताबिक, स्कूल में खराब खाना खाने की वजह से छात्राओं की तबीयत बिगड़ी थी. इससे पहले भी 27 छात्राओं की तबीयत बिगड़ने का मामला सामने आया था.

बीजापुर जिले में माता रुक्मणी आश्रम में पढ़ने वाली 35 छात्राओं की तबीयत अचानक बिगड़ गई. खराब खाना खाने की वजह से छात्राों की तबीयत बिगड़ी, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहीं 9 छात्रों की हालत गंभीर होने पर उन्हें जगदलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया है. जहां उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया है. जबकि एक छात्रा की मौत हो गई है.

जानकारी के मुताबिक, हालात गंभीर होने पर छात्रा को जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती करने के लिए ले जाया जा रहा था. उसी दौरान छात्रा शिवानी तेलाम की मौत हो गई. वहीं इससे एक दिन पहले भी खराब खाना खाने की वजह से 27 छात्राओं की तबीयत खराब हो गई थी. छात्राओं की तबीयत खराब होने के बाद आश्रम की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं.

लोगों ने लगाए गंभीर आरोप

छात्राओं की तबीयत बिगड़ने का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. लोग आश्रम की व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं. लोगों ने कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग जिले में आश्रम विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को लेकर गंभीर नहीं है. बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ लगातार हो रहा है. ये पहला मामला नहीं है जब छात्राओं की तबीयत बिगड़ी हो. वहीं ये भी सवाल उठ रहा है कि इतने ज्यादा संख्या में बच्चे फूड पॉइजनिंग का शिकार कैसे हो रहे हैं.

शिकायत के बाद भी नहीं हुई कोई कार्रवाई

लोगों ने बताया कि आश्रम की जर्जर हालत और खराब व्यवस्था को लेकर शिकायत की जा चुकी है. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है. लोगों ने कहा कि आश्रम में पढ़ने वाले बच्चों को मिलने वाले खाने की क्वालिटी का ध्यान नहीं रखा जाता है और खाने की हमेशा कमी रहती है. बच्चों को स्वास्थ्य को लेकर हमेशा लापरवाही बरती जाती है. जिससे कई बार छात्राओं की तबीयत बिगड़ने का मामला सामने आया है.

बिहार की राधा ने तोड़ी दिव्यांगता की बेड़ियां, बनीं जोमैटो की पहली महिला फूड डिलीवरी पार्टनर

शायर निदा फाजली की गजल ‘दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए, जब तक न टूटे सांस जिए जाना चाहिए’ की ये लाइनें बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली राधा के ऊपर एकदम सटीक बैठती हैं. वह दोनों पैर से दिव्यांग और पैरा बैडमिंटन, पैरा रग्बी खिलाड़ी हैं. राधा न केवल पटना बल्कि पूरे बिहार की जोमैटो की पहली महिला फूड डिलिवरी पार्टनर हैं. बचपन से राधा के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. उनकी कहानी लोगों के लिए प्रेरणा देती है.

राधा मूल रूप से पटना के दानापुर की रहने वाली हैं. उनकी कहानी बहुत ही अजीब है. वह बताती हैं कि जब उनका जन्म हुआ तब वह बिल्कुल सही सलामत थीं. उनकी आवाज नहीं थी और वह बोल नहीं पाती थी. लेकिन कुदरत ने कुछ ऐसा किया कि एक साल के बाद उनके दोनों पैर पोलियो के कारण खराब हो गए. कुदरत का करिश्मा यह हुआ कि उनके पैर तो खराब जो गए लेकिन आवाज वापस आ गई.

बिहार की पहली महिला फूड डिलिवरी पार्टनर

राधा के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड दर्ज है. राधा न केवल पटना बल्कि पूरे बिहार की जोमैटो की पहली महिला फूड डिलिवरी पार्टनर हैं. वह दिव्यांग और महिला दोनों श्रेणी की पहली महिला फूड डिलिवरी पार्टनर हैं. राधा बताती हैं, उन्होंने करीब एक साल पहले जोमैटो जॉइन किया था. राजधानी में करीब 6000 से भी ज्यादा जोमैटो के फूड डिलीवरी पार्टनर हैं. अपनी इस अनोखी यात्रा के बारे में राधा बताती हैं कि वह काम तो करती हैं, लेकिन साथ-साथ दिव्यांग भाई बहनों को यह भी संदेश देना चाहती हैं कि अगर कोई भी कुछ करना चाहे तो करने के लिए दृढ़ निश्चय होना चाहिए.

कोरोना से हुआ पिता का निधन, नॉर्मल लड़की से कम नहीं है राधा

राधा कहती हैं कि कोई काम मुश्किल नहीं होता. उनका कहना है कि वह दिव्यांग तो है, लेकिन कहीं से भी किसी नॉर्मल लड़की से कम नहीं है. वह अपनी चुनौती को स्वीकार करती हैं. उम्र के 36वें पड़ाव पर आ चुकी राधा के पिता नहीं हैं. उनके पिता राम खेलावन सहनी कोरोना की पहली लहर की चपेट में आ गए थे.राधा बताती हैं कि जोमैटो को ज्वाइन करने के पीछे भी कहानी है.

करने के पीछे भी कहानी है.

वह कहती हैं, नौकरी के सिलसिले में वह जहां कहीं भी इंटरव्यू देने जाती थी तो उनके साथ कुछ अलग व्यवहार किया जाता था, जो की उनको नापसंद था. उनको कहा जाता था कि आपको कॉल चली जाएगी. उसे बहुत निराशा होती थी. इसके बाद उसने इंटरव्यू देना बंद कर दिया. राधा ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है. साथ ही साथ वह कंप्यूटर ऑपरेटिंग भी बहुत अच्छे तरीके से जानती हैं.

जोमैटो में बनी फूड डिलीवर गर्ल्स

राधा कहती हैं, इसी बीच उन्हें जोमैटो की फूड डिलीवरी के बारे में जानकारी मिली. जब इसके बारे में कुछ लोगों से जानकारी ली तो उन लोगों ने भी उसे प्रोत्साहित नहीं किया. उन लोगों ने भी यहीं कहा कि तुमसे यह काम नहीं हो सकता है. मुझे तब बहुत गुस्सा आया लेकिन मैंने लोगों की इन बातों को चलैंज के रूप में लिया. इसके बाद उसने जोमैटो को ज्वाइन किया. राधा कहती है कि मेरी कोशिश यह थी कि मैं अपने पैर पर खड़ी हो जाऊं. क्योंकि वह दिव्यांग थी और कोई भी किसी की भी मदद कितने दिनों तक कर सकता है.

स्कूटी से फूड डिलिवरी, इन्होंने की मदद

राधा बताती हैं कि वह प्रतिदिन आठ से 10 घंटे फूड डिलीवरी पार्टनर के रूप में काम करती हैं. फूड डिलीवरी का काम स्कूटी के माध्यम से करती हैं. वह कहती हैं, अपनी सारी ज्वेलरी को बेच के स्कूटी के लिए पैसे एकत्र किए. स्कूटी को फाइनेंस करने लायक ही पैसे थे. बाकी पैसे ईएमआई में देने थे. इस काम में उनकी मदद सेंट डोमिनिक स्कूल की प्रिंसिपल ने की. उन्होंने दो सालों तक ईएमआई भरने में मदद की. स्कूटी के साइड के पहिए लगवाने में राजधानी के ही होली फैमिली के फादर डे मेलो ने मदद की. इसके लिए उन्होंने 19 हजार रूपये दिए थे.

प्लेयर भी हैं राधा

राधा न केवल फूड डिलिवरी पार्टनर हैं बल्कि वह पैरा बैडमिंटन और पैरा रग्बी भी खेलती हैं. वह बताती है कि झारखंड के जमशेदपुर में जब पैरा खिलाड़ियों का कंपटीशन आयोजित किया गया था तो उसमें उन्होंने बिहार की तरफ से हिस्सा लिया था. वहां तक पहुंचने और वहां रहने की सारी व्यवस्था जोमैटो की तरफ से ही कराई गई थी. गत अक्टूबर में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में आयोजित कंपीटिशन में भी राधा ने व्हील चेयर रग्बी में बिहार के लिए कांस्य पदक हासिल किया था.

सोच को हमेशा अव्वल रखने की जरूरत

राधा कहती है कि वह दिव्यांग को यह संदेश देना चाहती हैं कि मायूस होने से कुछ नहीं होता. दिव्यांग किसी अंग को खराब कर सकता है लेकिन सोच को नहीं बदल सकता. सोच को हमेशा ऊपर रखने की जरूरत होती है तभी आप जीवन में बदलाव ला सकते हैं. राधा बताती है, उनकी मां की उम्र भी बहुत ज्यादा है और वह हृदय रोग की मरीज हैं. उनकी कोशिश होती है कि वह किसी भी तरह से अपनी मां की मदद कर सकें. तीन बहन और एक भाई वाली राधा के अन्य सभी भाई बहन सामान्य हैं.

रेलवे किराया में बड़ी कटौती: 1 जनवरी 2025 से लागू होगा नया किराया, जानें क्या होंगे फायदे और किन ट्रेनों पर लागू होगा यह नियम

पैसेंजर और लोकल ट्रेन में सफर करने वाले यात्रियों के लिए राहत भरी खबर है. रेलवे बोर्ड ने पैसेंजर और लोकल ट्रेन के किराए में एक तिहाई की कमी करने का फैसला लिया है. इस बदलाव के साथ ही नजदीक रेलवे स्टेशनों का टिकट 10 रुपए का हो जाएगा. यह किराया डेमू, मेमू और पैसेंजर ट्रेनों पर लागू होगा.

मीडिया में छपी रिपोर्टों के मुताबिक, पैसेंजर और लोकल ट्रेनों में नया किराया 1 जनवरी 2025 से लागू होगा. रेलवे के एक अधिकारी के मुताबिक, बीते सप्ताह 167 पैसेंजर ट्रेनों के किराया कम करने के आदेश जारी किए गए थे. कोविड के बाद यह कदम उठाए गए हैं. जानकारी के मुताबिक, कुछ पैसेंजर और लोकर ट्रेनों के किराए पहले ही कम किए जा चुके हैं. बाकी सभी पैसेंजर, डेमू और मेमू ट्रेनों के किराया भी अब कम कर दिया जाएगा. यह कमी तीन गुणा तक की होगी.

चार साल बाद रेलवे किराए में आएगी कमी

रेलवे ने 2020 में कोविड महामारी के दौरान पैसेंजर ट्रेनों को मेल एक्सप्रेस में चलाने का आदेश दिया था. इस बीच उनका किराया बढ़ा दिया था, जो न्यूनतम किराया 10 रुपए था उसे बढ़ाकर 30 रुपए कर दिया था. हालात सामान्य होने पर इसमें कमी लाई गई और कुछ रेलवे रूट पर किराया भी कम किया गया था. चार साल के बाद रेलवे बोर्ड फिर से सभी लोकल और पैसेंजर ट्रेनों के किराए में कमी कर रहा है

यात्रियों की संख्या में होगी बढ़ोत्तरी

पैसेंजर और लोकल ट्रेनों के किराया कम होने से रेलवे यात्रियों के सफर में आसानी होगी. उन्हें पहले नजदीकी रेलवे स्टेशन के किए 30 रुपए देने पड़ते थे, जबकि इसी जगह ऑटो या अन्य सवारियों से जाने पर उनके केवल 10 रुपए खर्च हुआ करते थे. रेलवे का एक तिहाई किराया कम होने से 30 वाला टिकट फिर से 10 रुपए का हो जाएगा. इससे पैसेंजर और लोकल ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों में बढ़ोत्तरी होगी.

गोरखपुर में 12वीं के छात्र ने की मां की हत्या, सांइटिस्ट पिता ने बेटे के खिलाफ दर्ज कराया केस

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पिपराइच थाना क्षेत्र से एक सनसनीखेज हत्या का मामला सामने आया है, जहां एक साइंटिस्ट ने अपना मकान बनवाया था. घर में उनकी पत्नी और नाबालिग बेटा रहता था. 3 दिसंबर को जब पत्नी से फोन पर बात नहीं हो पा रही थी, तो साइंटिस्ट आठ दिसंबर को चेन्नई से घर पहुंचे, लेकिन घर पर ताला बंद मिला. उनका बेटा बाहर घूम रहा था. ताला खोलकर अंदर गए तो पत्नी का शव देख सन्न हो गए.

जब बेटे से मां के बारे में पूछा गया तो उसने बताया कि फर्श पर गिरने से मां की मौत हो गई लेकिन जब पुलिस ने जांच पड़ताल के दौरान कड़ी से कड़ी जोड़ी तो सच्चाई सामने आ गई. बेटे ने मां को धक्का दिया और उनका सिर दीवार से लगा था, जिससे उनकी मौत हो गई. उसके बाद घर में बाहर से ताला बंद कर इधर-उधर घूम रहा था. इसके बाद साइंटिस्ट ने अपने नाबालिग बेटे के खिलाफ पुलिस से लिखित शिकायत की.

वैज्ञानिक ने पुलिस को क्या बताया?

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र चेन्नई में वैज्ञानिक राममिलन ने पुलिस को बताया कि वह कुशीनगर के रहने वाले हैं. करीब 4 साल पहले पिपराइच थाना क्षेत्र के जंगल धुषण स्थित सुशांत सिटी में जमीन लेकर मकान बनवाया था. उस मकान में उनकी पत्नी अपने नाबालिक बेटे के साथ रहती थी. बेटा मोहित 12वीं में पढ़ता है, जबकि बेटी ऋचा MBBS की पढ़ाई लखनऊ से कर रही है. राममिलन ने पुलिस को आगे बताया कि मैं चेन्नई में रहता हूं. रोज से पत्नी से बात करता हूं. 2 दिसंबर की शाम को उनसे बात हुई और फिर तीन दिसंबर को सुबह भी मेरी बात पत्नी से हुई, लेकिन शाम के समय उनका फोन बंद आ रहा था.

फर्श पर पड़ा था महिला का शव

इसके बाद मैंने 6 दिसंबर तक फोन मिलाया लेकिन बात नहीं हो पाई. ऐसे में मैंने अपनी साली ज्ञानती को भेजा तो घर पर ताला बंद था. बेटा मोहल्ले के एक मंदिर पर बैठा हुआ था. उसने जब बेटे से उसकी मां के बारे में पूछा तो उसने कोई सही जवाब नहीं दिया. बताया कि वह बाजार गई हैं. बाद में मेरी साली ने बताया कि कुछ गड़बड़ लग रही है. मैं 8 दिसंबर को फ्लाइट से गोरखपुर आ गया. घर में ताला बंद था, बेटे को ढूंढा और उसके साथ घर आया तो पत्नी फर्श पर गिरी पड़ी थी. उनकी सांस नहीं चल रही थी.

पिता ने बेटे को बताया नादान

बेटे से पूछा तो उसने रोते हुए बताया कि मैं 3 दिसंबर को देर तक सो गया था. दिन में 3:30 बजे जगा तो मम्मी को बुलाया लेकिन वह नहीं आईं तो मैं किचन में गया. वह फर्श पर गिरी पड़ी थी और उनके सिर से खून बह रहा था. मैं डर गया और ताला बंद कर बाहर चला गया. शाम को आया तो उनकी सांस नहीं चल रही थी. इसलिए मैं डर की वजह से बाहर ही रहा. अंदर नहीं आया. मैं किसी को कुछ बता भी नहीं पा रहा था. साइंटिस्ट ने पुलिस को बताया कि मेरा बेटा नादान है, इसलिए वह घबरा गया और उसे सच्चाई पता नहीं है. किसी ने मेरी पत्नी की हत्या कर दी है, गिरने से उनकी मौत नहीं हुई है. मेरा बेटा जब घर से बाहर गया हो तो हो सकता है. उसी समय कोई आया हो और हत्या करके चला गया हो.

घर पर दो जगह पड़ा मिला खून

इसके बाद पुलिस ने घर में लगे तीन सीसीटीवी कैमरे को खंगाला तो कोई आदमी बाहर से आता हुआ नहीं दिखा. पहले बेटे पर हत्या की आशंका जब पुलिस ने जताई तो साइंटिस्ट ने एक सिरे से उसे खारिज कर दिया और कहा कि मेरा बेटा ऐसा नहीं कर सकता. वह अपनी मां से बहुत प्यार करता था. बेटे ने बताया था की मां की मौत 4 दिन पहले हुई है, लेकिन जब शव का पोस्टमार्टम करवाया गया तो रिपोर्ट में आया कि हत्या कम से कम 6 दिन पहले हुई होगी. ऐसे में पुलिस ने जांच पड़ताल शुरू की. घर को देखा तो किचन में ही नहीं दो जगह और भी खून पड़ा था.

बेटे-पिता से दो घंटे की पूछताछ

पुलिस का कहना था कि अगर किसी की गिरने से मौत होती है तो खून एक ही जगह गिरना चाहिए और इतना ज्यादा खून नहीं होना चाहिए. यहां पर घर में तीन जगह खून मिला है. इसका मतलब हत्या कर शव को घसीटा गया है. पुलिस ने बेटे के कमरे की तलाशी ली तो उसके बेड के नीचे से 500,200 और 100 के बहुत सारे नोट मिले. पुलिस ने साइंटिस्ट और उसके बेटे को पिपराइच थाने में बुलाकर दो घंटे तक पूछताछ की.

बेटे ने ही की मां की हत्या

काफी पूछताछ के बाद बेटे ने सच उगल दिया और कहा कि मां मेरी पढ़ाई को लेकर बहुत चिंता करती थी. उन्होंने मेरे मना करने के बाद भी इंटर में फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ सब्जेक्ट दिलवा दिया था. एक दिसंबर को मम्मी स्कूल गई थीं और मेरी शिकायत की थी. स्कूल में प्रिंसिपल ने सबके सामने मुझे काफी डांट फटकार लगाई. दो दिसंबर को स्कूल गया तो दोस्तों ने मेरा काफी मजाक उड़ाया. फिर अगले दिन मैं स्कूल नहीं जाना चाह रहा था. मैं बार-बार मना कर रहा था, लेकिन वह नहीं मान रही थीं. इसी बीच मैंने उन्हें दीवार पर धक्का दे दिया, जिससे उनका सिर फट गया और खून निकलने लगा. उसके बाद मैं मकान में ताला बंद कर घूमने चला गया. वापस आया तो मां की सांस नहीं चल रही थी.

साइंटिस्ट का रो-रोकर बुरा हाल

उसने आगे बताया कि उसने मां के की अलमारी में रखे पैसे निकाले और उन्हीं से खाना खाया, जब मां के शव से बदबू आने लगी तो अगरबत्ती जलाई. वह रात को अपनी मां के शव के साथ ही सोता था. अब अपनी पत्नी की मौत और बेटे की इस हरकत से साइंटिस्ट का रो-रोकर बुरा हाल है. पुलिस ने बताया कि वैज्ञानिक ने बेटे के खिलाफ केस दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जाएगी.

जम्मू कश्मीर में रोहिंग्याओं पर सियासी बवाल, मिलने पहुंची संयुक्त राष्ट्र की टीम

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी अधिकार एजेंसी UNHCR (United Nations High Commissioner for Refugees) की टीम ने मंगलवार को जम्मू के करयानी तालाब में रोहिंग्या बस्ती का दौरा किया. ये दौरा ऐसे समय में हुआ है जब जम्मू कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों की ओर से गैर कानूनी तरीके से रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है.

सुरक्षा एजेंसियों के इस अभियान का कई संगठनो ने विरोध भी किया है और अब इस मामले में संयुक्त राष्ट्र ने भी दखल दे दिया है. संयुक्त राष्ट्र के दो अधिकारियों ने रोहिंग्याओं से मुलाकात की, इन अधिकारियों में एक भारतीय और एक जापानी नागरिक थे. खबर है कि आज फिर से UNHRC की टीम रोहिंग्याओं से मुलाकात कर सकती है.

इससे पहले मार्च में UNHRC के चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने रोहिंग्याओं को कठुआ स्थानांतरित किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर के कठुआ का दौरा किया था.

गैर कानूनी तरीके से रहने का आरोप

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 158 रोहिंग्या शरणार्थी ने गैर कानूनी तरीके से जम्मू कश्मीर के आधार कार्ड बनवाए हैं. इसके अलावा यह भी जानकारी सामने आई है की सुरक्षा एजेंसियों ने 4 ऐसे NGO की पहचान की है जो रोहिंग्याओं को जम्मू कश्मीर में मदद कर रहे हैं.

बिजली पानी का काटा कनेक्शन

बता दें कि जम्मू के नरवाल इलाके में रह रहे रोहिंग्या की जनगणना के बाद उनके बिजली पानी के कनेक्शन काट दिए गए थे. जिसके बाद इस पर सियासत तेज हो गई है और इसको कुछ लोगों ने मानव अधिकारों के विरुद्ध बताया था. कई खबरें ऐसी भी जिनमें देश विरोधी गतिविधियों में रोहिंग्या के होने की बात कही गई है, जिसके चलते सुरक्षा एजेंसियां इन बस्तियों पर नजर बनाए हुए हैं.

UNHRC की टीम के दौरे का विरोध करने वाले कह रहे हैं कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर UN चुप है लेकिन जम्मू कश्मीर में गैर कानूनी तरीके से रह रहे रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए UNHCR की टीम जम्मू पहुंची हैं.

सोशल मीडिया का बच्चों पर बुरा असर: ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन, क्या भारत में भी होना चाहिए?

अपने मोबाइल और अपने लैपटॉप के साथ अपने कमरे में ही बिजी टीएनएजर आजकल महानगरों के पेरेंट्स के लिए चिंता की बात बने हुए हैं. ऐसे में दूर देश ऑस्ट्रेलिया से उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन की ख़बर से हिंदुस्तानी पैरेंट्स भी उत्साहित है बच्चों में स्क्रीन टाइम के लिए आई ग्लोबल अवेयरनेस बताती है मामला सीरियस है. जानिए कैसे?

15 साल की लड़की घर में पेंटिंग बनाती और अंग्रेजी गाने सुनती थी. घर वालों को अंग्रेजी आती नहीं थी लेकिन बेटी के व्यवहार में उन्हें कभी कुछ असामान्य नहीं लगा. अलार्म तो तब बजा जब उसने बिना वजह खुद को नुकसान पहुचांने की कोशिश की. ऐसा दो तीन बार और हुआ. परिवार ने साइकॉलजिस्ट की मदद ली. मालूम चला वो जो गाने सुनती है, वो डिप्रेशन से भरे हैं और वो जो तस्वीरे बनाती हैं, वो हिंसा से भरी हैं. गाने के लिरिक्स एडल्ट और पेंटिंग खून-खराबे से भरी. उनके पेरेंट्स को पता ही नहीं था कि बच्ची सोशल मीडिया पर एक्टिव है और वहीं का वर्चुअल तनाव वो अपने सिर पर लिए बैठी है.

ये केस साइबर सेफ्टी एक्सपर्ट मुकेश चौधरी के पास आया था. वो बताते हैं, टीएनएजर बच्चों के ऐसे कई मामले उनके पास आते हैं जहां सोशल मीडिया की वजह बच्चा एकदम बदल गया है.

टीएनएजर बच्चों पर सोशल मीडिया का असर

साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट मुकेश चौधरी एक और केस का जिक्र करते हैं. 16 साल के दसवीं में पढ़ने वाले बच्चे ने अपनी टीचर की फेक प्रोफाइल बनाकर उनकी ऑब्जेक्शनेबल ऑफ सीन फोटो एडिट करके सोशल मीडिया पर शेयर कर दिए. स्कूल के बच्चों को पता था, लेकिन ना तो किसी फैकल्टी को पता था और ना ही उस बच्चे के पेरेंट्स को. खोजबीन करके जब मामला खुला तो पेरेंट्स भी हैरत में थे कि उन्हें लगता था, बच्चा लैपटॉप पर पढ़ाई कर रहा है.

ऐसे ही एक बच्ची हाफ स्क्रीन पर क्लास खोल के दूसरी तरफ चैटिंग करती थी. घरवालों को बहुत दिन बाद पता चला कि वो पढ़ाई नहीं करती थी बल्कि चैटिंग करती थी. मुकेश चौधरी कहते हैं, कई बार सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा एक्टिव रहने से कुछ चीजें आपको ऐसी दिख जाती है, जो हिट कर जाती हैं. बच्चों को समझ में नहीं आता कि वो सही है या फिर गलत. वो उसे फॉलो करने लगते हैं.

कम उम्र में सोशल मीडिया के नुकसान

हमने साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट मुकेश चौधरी, साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल, मनोचिकित्सक समीर मल्होत्रा और शिक्षाविद अनुराधा जोशी से लेकर तमाम अभिभावकों से भी बात की और सब सोशल मीडिया के जो नुकसान देख रहे हैं वो शरीर और मन दोनों पर असर कर रहा है.

फिजिकल प्रॉब्लम

स्लीप साइकल डिस्टर्ब-डॉक्टर भी रिकमेंड करते हैं कि सोने के कुछ घंटे पहले तक आपको मोबाइल नहीं चलाना है. फोन से निकलने वाली ब्लू रे खतरा हैं. अगर बच्चे रात में ठीक से सोते नहीं हैं तो उनको सुबह उठने में भी दिक्कत होती है. अगर उनका कोई एग्जाम है तो उस पर भी असर पड़ता है.

पोस्चर पेन- जब आप बहुत देर तक सिर झुकाकर या बैठकर फोन देखते हैं तो बॉडी का पोस्चर बिगड़ता है. रीढ़ की हड्डी से लेकर सर्वाइकल पेन तक की संभावना बनती है.

कम उम्र में चश्मा-अगर बच्चा ज्यादा समय सोशल मीडिया पर इन्वेस्ट करेगा तो उसकी आंखों पर अभी असर पड़ेगा. इसकी वजह से बहुत कम उम्र में बच्चों के चश्मे भी लग रहे हैं.

एक्स्ट्रा एक्टिविटीज पर असर- कई घंटे लगातार फ़ोन चलाने की वजह से बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी कम हो रही है. सोशल मीडिया की वजह से एक्स्ट्रा-करिकुलम एक्टिविटीज में बच्चों की भागीदारी कम हो गई है.

स्टंट वीडियो बना खतरा- बच्चे सोशल मीडिया पर स्टंट करते लोगों के वीडियो देख खुद भी वही करते हैं, इसमें चोट लगने का खतरा होता है.

नशे की प्रवृत्ति– पहले 16 से 18 साल तक के बच्चे नशे करते थे लेकिन अब 9 से 10 साल के बच्चे भी कई तरह के नशे करने लगे हैं. नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है.

दिमाग पर इम्पैक्ट- मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन्स में थर्मल और मैग्नेटिक रेडिएशन होता है, जिसका बच्चों के दिमाग पर भी बुरा असर पड़ता है. उससे सिर दर्द की भी समस्या होती है और हार्मोनल इंबैलेंस भी रहता है.

सेल्फ हार्म: बच्चे सेल्फ हार्म भी करने लगे हैं और अगर आप उनको फोन नहीं देंगे तो वो पेरेंट्स के अगेंस्ट बहुत एग्रेसिव हो जाते हैं.

मेंटल प्रॉब्लम

डिप्रेशन-मोबाइल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से डिप्रेशन, सुसाइडल थॉट और बिहेवियर में कई तरह से बदलाव आ रहे हैं.

फोकस में कमी-बहुत ज्यादा मोबाइल के इस्तेमाल करने से बच्चों का फोकस भी कम हुआ है. ये बात कई रिसर्च भी सामने आई है.

लर्निंग एबिलिटी पर असर-बच्चे बहुत ज्यादा फ़ोन चलाने की वजह से लर्निंग एबिलिटी और आत्मनियंत्रण खो रहे हैं. जिसकी वजह से कई बीमारियां भी हो रही हैं.

एग्रेशन– सोशल मीडिया पर लाइक डिस्लाइक के प्रेशर में बच्चों के अंदर बढ़ते तनाव ने उन्हें चिड़चिड़ा और आक्रामक बना दिया है और बच्चों में अपराधी बनने की भी प्रबल संभावना रहती है.

ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन

आस्ट्रेलिया में सरकार ने 16 साल के कम बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बैन कर दिया है. इसके पीछे का कारण है कि बच्चों की मेंटल हेल्थ ठीक रहे. सोशल मीडिया के एडिक्शन, साइबर बुलिंग और हानिकारक कंटेंट से बच्चे बहुत प्रभावित होते हैं. इस नियम के अनुसार, बच्चों को इंस्टाग्राम, टिक टॉक और स्नेपचैट जैसे प्लेटफॉर्म पर अकाउंट बनाने और उन्हें एक्सप्लोर करने की इजाजत नहीं होगी.

भारतीय बच्चे और सोशल मीडिया

Sentiment की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 13 साल से 17 साल तक के करीब 93 परसेंट बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. अमेरिका में 4 करोड़ बच्चों में से 3 करोड़ 70 लाख बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. एक व्यक्ति करीब सोशल मीडिया पर प्रति दिन 1 घंटा और 40 मिनट बिताते हैं.

International Journal of Pediatric Research की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 87.82% बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. जिसमें से 81.14% बच्चे व्हाट्सएप, 54.94% बच्चे फेसबुक, 10.5% बच्चे ट्विटर, 70.61% बच्चे यूट्यूब, 65.34% ईमेल और 9% बच्चे अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ्रॉम का इस्तेमाल करते हैं.

भारत में क्या कोई कानून है?

भारत में बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल करने को लेकर कोई अलग से कानून नहीं बनाया गया है. डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023 में कुछ नियम बनाए गए हैं. DPDPA की धारा 9 में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के डेटा को संभालने के लिये 3 शर्तें बताई गई हैं. जिसमें किसी बच्चे की प्रोफाइल बनाने के लिए कंपनी को माता-पिता या अभिभावक से सहमति लेनी होती है. इसके साथ बच्चों के कल्याण, उनपर निगरानी और उन्हें किस तरह के विज्ञापन दिखें, इस पर ध्यान भी देना है.

भारत में भी होना चाहिए बैन?

मुकेश चौधरी कहते हैं, दुनिया ने इससे पहले ब्लू व्हेल जैसा गेम देखा है, जिसमें बच्चे कई तरह के टास्क पूरे करते-करते अपनी जान तक दे देते थे. ये सब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से ही आया है. पेरेंट्स अपनी लाइफ स्टाइल में बिज़ी हैं जो बिनी किसी रिस्ट्रिक्शन के बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं. ऐसी कोई पॉलिसी भी बच्चों के लिए नहीं बनाई गई है कि बच्चे इंटरनेट पर क्या देख रहे हैं.अनरिस्ट्रिक्टेड मोबाइल हाथ में होने से बच्चे के हाथ से क्या बटन दब रहा है और उसके सामने कैसे वीडियो आ रहे हैं, इस तरह के कंटेंट को भी रेगुलेट करने के लिए कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं है. अगर कोई नियम बने भी हैं तो कोई उन्हें फॉलो नहीं करता है.

साइबर सुरक्षा एक्सपर्ट डॉ पवन दुग्गल कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में जो बैन हुआ है, इसका उद्देश्य सही है लेकिन ये बहुत ज्यादा enforcement नहीं होगा क्योंकि आपने शेर के मुंह में खून लगा दिया है. उसे वापस लेना बहुत मुश्किल हो जाएगा. भारत में इस तरह की चीज संभव ही नहीं उसके पीछे का कारण है कि भारत में 18 साल से कम बच्चे को नाबालिग माना जाता है और नाबालिग में इतनी क्षमता नहीं है कि वो किसी भी कानून के अंदर आ सके. किसी एप को बैन करें तो उससे उसका ट्रैफिक और बढ़ जाता है. जो ऑस्ट्रेलिया में हुआ वो भारत में नहीं हो सकता अगर होगा तोबहुत ज्यादा विरोध होगा. ये भारतीय संविधान के कानून का उल्लंघन होगा. आप बच्चे ही क्यों ना हो लेकिन आपके मौलिक अधिकार तो हैं. आज जीवन जीने के मौलिक अधिकार में आपका राइट टू एक्सेस इंटरनेट तो है ही. वह कहते हैं भारत ऑस्ट्रेलिया से अलग है, वहां से भारत का संविधान भी अलग है. यहां का लीगल फ्रेमवर्क अलग है इसलिए यहां पर इस तरह की चीज संभव नहीं है. अगर ऐसा होता भी है तो उसे अदालतों में कई तरह की चुनौती का सामना करना ही पड़ेगा.

क्रीम लगाने पर नहीं हुआ गोरा, अब कंपनी भरेगी 15 लाख

कई बार लोग गोरा होने होने के लिए क्रीम खरीदते हैं. कुछ क्रीम किसी के चेहरे पर असर दिखा देती है, तो कुछ नहीं दिखाती लेकिन एक शख्स ने गोरा होने के लिए 79 रुपये की क्रीम खरीदी. उसने एक दिन में दो बार अपने चेहरे पर क्रीम लगाई, लेकिन वह गोरा नहीं हुआ तो उसने कंपनी की शिकायत कर दी. उसने कहा कि क्रीम का विज्ञापन गुमराह करने वाला है. अब कंपनी को 15 लाख रुपये देने पड़ेंगे.

दिल्ली के जिला उपभोक्ता फोरम ने इमामी लिमिटेड पर ये 15 लाख का जुर्माना लगाया है. आयोग ने कंपनी पर ये जुर्माना भ्रामक विज्ञापन के चलते लगाया है. दरअसल इमामी लिमिटेड के खिलाफ एक शख्स ने शिकायत करते हुए आरोप लगाया था कि फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन भ्रामक है. उसने साल 2013 में 79 रुपये की फेयर एंड हैंडसम क्रीम खरीदी थी. उसने निर्देशों के मुताबिक क्रीम को यूज किया लेकिन इसके बावजूद उसे अपनी स्किन में कोई बदलाव नजर नहीं आया, तो उसने शिकायत कर दी.

क्रीम लगाई गोरापन नहीं आया

शिकायत करने वाले शख्स ने कहा कि प्रोडक्ट की पैकेजिंग और लेबल पर दिए गए निर्देशों के मुताबिक क्रीम का इस्तेमाल किया गया तेजी से चमकने वाले गोरेपन के लिए दिन में दो बार चेहरे और गर्दन पर क्रीम का यूज किया, लेकिन स्किन पर गोरापन नहीं आया. इस पर कंपनी की ओर से कहा गया कि शिकायत करने वाला शख्स ये बताने में असमर्थ था कि उसने निर्देशों के मुताबिक क्रीम का यूज किया

प्रोडक्ट की बिक्री के लिए किया

आयोग की ओर से कहा गया कि कंपनी के प्रोडक्ट की पैकेजिंग और लेबल पर इस बात की जानकारी नहीं दी गई कि ये किस शख्स के लिए है और किस के लिए नहीं. प्रोडक्ट पर लिखा गया “बीमार व्यक्ति के लिए नहीं” का क्या मतलब था. कंपनी जानती थी प्रोडेक्ट पर लिखे गए निर्देश अधूरे हैं और बाकी चीजों की वजह से स्किन में बदलाव नहीं होगा. इससे गुमराह करने वाला विज्ञापन साबित होता है कि प्रोडक्ट की बिक्री के लिए ऐसा किया गया.