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बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त तलब, जानें क्या है मामला?

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बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में मंगलवार को भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को तलब किया है। यह घटना त्रिपुरा के अगरतला में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में हमले में एक दिन बाद हुई है। त्रिपुरा के अगरतला में स्थित बांग्लादेश के उप-उच्चायोग में हुई तोड़फोड़ के मामले में प्रणय वर्मा को बुलाया गया। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए त्रिपुरा के अगरतला स्थित उप उच्चायोग में वीजा और वाणिज्य दूतावास से जुड़े कामकाज भी रोकने का निर्णय भी लिया है।

सरकारी समाचार एजेंसी बांग्लादेश संगबाद संस्था (बीएसएस) ने कहा कि भारतीय दूत शाम 4 बजे विदेश मंत्रालय में दाखिल हुए। भारतीय उच्चायुक्त को कार्यवाहक विदेश सचिव रियाज हमीदुल्लाह ने तलब किया।

भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने मंगलवार को कहा कि भारत और बांग्लादेश के बीच “व्यापक और बहुआयामी संबंध” हैं और इसे “सिर्फ एक मुद्दे तक सीमित नहीं किया जा सकता।” द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, “हमारे बीच व्यापक और बहुआयामी संबंध हैं।” उन्होंने कहा कि भारत आपसी लाभ के लिए दोनों देशों के बीच “निर्भरता” का निर्माण करना चाहता है। वर्मा ने यह टिप्पणी ढाका में बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश सचिव रियाज हमीदुल्लाह से मुलाकात के बाद की।

भारत ने हमले की निंदा की

इससे पहले भारतीय विदेश मंत्रालय ने पहले एक बयान में हमले को "बेहद खेदजनक" बताया और कहा कि किसी भी परिस्थिति में राजनयिक और वाणिज्य दूतावास की संपत्तियों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। भारत ने कहा, "सरकार नई दिल्ली में बांग्लादेश उच्चायोग और देश में उनके उप/सहायक उच्चायोगों की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के लिए कार्रवाई कर रही है।" अगरतला में बांग्लादेश सहायक उच्चायोग पर भीड़ द्वारा हमला करने, परिसर में कथित तौर पर तोड़फोड़ करने और बांग्लादेशी 'राष्ट्रीय ध्वज' को जबरन हटाने के बाद सोमवार को सात लोगों को गिरफ्तार किया गया और तीन पुलिस अधिकारियों को निलंबित भी किया गया।

अगरतला में क्या हुआ था?

अगरतला में हजारों लोगों ने हिंदू नेता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के साथ-साथ बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों के खिलाफ सोमवार को ढाका के मिशन के पास एक विशाल प्रदर्शन किया था। प्रदर्शनकारी कथित तौर पर कुंजाबन क्षेत्र में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में घुस गए और कथित तौर पर तोड़फोड़ की। अब बांग्लादेश इसी को लेकर नाराज है।

ये कैसा युद्धविराम? सीजफायर के बीच इजरायल ने लेबनान पर दागी मिसाइलें

#israeli_strikes_on_lebanon_killing_11_people 

इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर पर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, लेबनान में 27 नवंबर को हुए युद्धविराम के बावजूद दोनों पक्षों से हमले जारी हैं। हिजबुल्लाह के साथ लंबे समय से जारी युद्ध के बीच लागू हुए सीजफायर के बाद इजरायल ने लेबनान में अपना सबसे बड़ा एयर स्ट्राइक किया है। दो दिसंबर (सोमवार) को इजरायली लड़ाकू विमानों ने हिजबुल्लाह के ठिकानों पर कई मिसाइलें दागी। जिससे करीब 11 लोगों की मौत हुई है।इजरायल ने ये हमले लेबनान से हिजबुल्लाह के मोर्टार दागे जाने के बाद किए हैं। पिछले बुधवार को 60 दिनों के युद्ध विराम को प्रभावी होने के बाद हिजबुल्लाह का इजरायल के ऊपर मोर्टार दागे जाने का यह पहला मामला है।

27 नवंबर इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच करीब एक साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से युद्ध विराम हुआ था।हालांकि युद्ध विराम के बावजूद दोनों देश एक दूसरे पर उल्लंघन का आरोप लगाते हुए युद्धविराम के प्रोटोकॉल को बार-बार तोड़ते नजर आ रह हैं।

एक बयान में इजरायली रक्षा बलों ने कहा कि लड़ाकू विमानों ने लेबनान में हिजबुल्लाह के ऑपरेटिव्स और दर्जनों रॉकेट लांचरों और आतंकी समूह से संबंधित सुविधाओं पर हमला किया। हिजबुल्लाह ने इसके पहले सोमवार को दावा किया था कि उसने पिछले सप्ताह हुए युद्ध विरम समझौते के बार-बार उल्लंघन के जवाब में मोर्टार दागे और इसे संघर्ष विराम के दौरान लेबनान पर आईडीएफ के हमलों के खिलाफ 'प्रारंभिक चेतावनी' बताया था।

आईडीएफ ने कहा कि हमले के दौरान उसने हिजबुल्लाह की सुविधाओं के अलावा माउंट डोव पर दो मोर्टार दागने के लिए इस्तेमाल किए गए लांचर को भी निशाना बनाया। इजरायली सेना के अनुसार, हमले के कुछ समय बाद ही साइट को निशाना बनाया गया। सेना ने कहा, 'इजराइल की मांग है कि लेबनान में संबंधित पक्ष अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करें और लेबनानी क्षेत्र के भीतर हिज्बुल्लाह की शत्रुतापूर्ण गतिविधि को रोकें। इजराइल लेबनान में युद्ध विराम समझौते की शर्तों को पूरा करने के लिए बाध्य है।

27 नवंबर की सुबह हुए युद्धविराम में यह तय किया गया है कि इजरायल लेबनान में नागरिक, सैन्य या अन्य सरकारी लक्ष्यों के खिलाफ आक्रामक सैन्य अभियान नहीं चलाएगा। वहीं लेबनान हिजबुल्ला समेत किसी भी सशस्त्र समूह को इजरायल के खिलाफ अभियान चलाने से रोकेगा। लेबनान और इजरायल ने पहले ही एक-दूसरे पर युद्धविराम के उल्लंघन का आरोप लगा चुके हैं।

ट्रंप ने भारत समेत ब्रिक्स देशों को क्यों दी चेतावनी, किस बात की है बौखलाहट?

#worried_about_the_dollar_trump_threatens_brics 

अमेरिकी के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी शपथ ग्रहण नहीं किया है। हालांकि, पदभार ग्रहण करने से पहले ही ट्रंप एक्शन में दिख रहे हैं। एक तरफ ट्रंप अपनी टीम बनाने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ अपनी धमकी भरी घोषणाओं से सनसनी फैलाने में लगे हैं। अब अमेरिका के नए चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स (BRICS) देशों को चेतावनी दी है। ट्रंप ने चेताया है कि अगर इन देशों ने अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उसका कोई विकल्प लाने का प्रयास किया तो उन्हें अमेरिकी बाजार से हाथ धोना पड़ सकता है। बता दें कि ब्रिक्स में केवल रूस और चीन जैसे अमेरिका विरोधी माने जाने वाले देश ही नहीं हैं, बल्कि भारत, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के साथ ही अब इजिप्ट, ईरान और यूएई भी शामिल हैं।

ट्रंप ने कहा है कि अगर ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साऊथ अफ्रीका जैसे विकासशील देशों का समूह) देशों ने अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस करने की कोशिश की तो उन पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा।यही नहीं, यहां तक कह दिया कि फिर वे देश अमेरिकी बाजार तक पहुंचने का ख्वाब छोड़ दें। अब बड़ा सवाल ये है कि ट्रंप की इस धमकी की वजह क्या है? क्या अमेरिका को अपने डॉलर का दबदबा घटता नजर आ रहा है? या फिर अमेरिका दुनियाभर के देशों के बदलते समीकरण से चिंतित है?

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के अपने हैंडल पर लिखा, “डॉलर से दूर होने की ब्रिक्स देशों की कोशिश में हम मूकदर्शक बने रहें, यह दौर अब ख़त्म हो गया है। हमें इन देशों से प्रतिबद्धता की ज़रूरत है कि वे न तो कोई नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे, न ही ताक़तवर अमेरिकी डॉलर की जगह लेने के लिए किसी दूसरी मुद्रा का समर्थन करेंगे, वरना उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ़ का सामना करना पड़ेगा।”

ट्रंप ने लिखा, “अगर ब्रिक्स देश ऐसा करते हैं तो उन्हें शानदार अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपने उत्पाद बेचने को विदा कहना होगा। वे किसी दूसरी जगह तलाश सकते हैं। इसकी कोई संभावना नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ब्रिक्स अमेरिकी डॉलर की जगह ले पाएगा और ऐसा करने वाले किसी भी देश को अमेरिका को गुडबॉय कह देना चाहिए।”

क्या ब्रिक्स करेंसी की आहट से डरा अमेरिका?

ट्रंप का यह बयान ब्रिक्स देशों के अक्टूबर में हुए शिखर सम्मेलन का जवाब माना जा रहा है, जिसमें नॉन-डॉलर ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने पर चर्चा की गई थी। हालांकि सम्मेलन के आखिर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने साफ कर दिया था कि सिस्टम सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशल टेलिकम्युनिकेशन (SWIFT) जैसी वित्तीय संरचना का विकल्प खड़ा करने की दिशा में अब तक ठोस कुछ नहीं किया गया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि ब्रिक्स को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे उसकी छवि ऐसी बने कि वह वैश्विक संस्थानों की जगह लेना चाहता है।

अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना चाहता है ब्रिक्स

बता दें कि ब्रिक्स 9 देशों का एक समूह है, जो अपने हितों को ध्यान में रखकर आपसी व्यापार को बढ़ावा देने का काम करता है। भारत इसका कोर मेंबर है। भारत, चीन, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका ने 2009 में इस ग्रुप का गठन किया था। ब्रिक्स देशों ने वैश्विक व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में कदम उठाए हैं। इसका ताजा उदाहरण है, भारत और चीन द्वारा रूस से तेल खरीदना। इस सौदे के लिए डॉलर का उपयोग नहीं किया गया।

रूस और यूक्रेन में लड़ाई के चलते अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद, रूस, भारत और चीन ने अपनी-अपनी करेंसियों का इस्तेमाल करके व्यापार किया। अमेरिका को लग रहा था कि बिना डॉलर रूस का तेल बिक नहीं पाएगा, मगर ऐसा हुआ नहीं। भारत और चीन ने रूस से ताबड़तोड़ तेल खरीदा। ये बात अमेरिकी को काफी चुभी है।

दुनियाभर में कम हो रहा डॉलर का दबदबा?

बता दें कि दुनियाभर में डॉलर का दबदबा है, क्योंकि इसे ही व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। हर देश अपने रिजर्व में डॉलर को रखना चाहता है, क्योंकि किसी भी स्थिति में इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरे देशों द्वारा डॉलर को रिजर्व मे रखने से इस करेंसी की मांग बढ़ी रहती है। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका के लिए कर्ज लेना आसान हो जाता है और उसे कम ब्याज चुकानी पड़ती है।भारत या अन्य देशों को कर्ज लेने पर ज्यादा ब्याज दरें चुकानी पड़ती हैं। ऐसे में वह अपनी वित्तीय पूंजी की पूर्ति के लिए भी डॉलर का इस्तेमाल करता है। हालांकि, रूस-युक्रेन युद्ध के बाद से हालात बदले हैं। यह बदलाव अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती की तरह है।

चिन्मय दास के वकील रेगन आचार्य पर ‘क्रूर हमला’, इस्कॉन कोलकाता ने किया तोड़फोड़ का दावा


* इस्कॉन कोलकाता ने मंगलवार को दावा किया कि हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के दिन उनका प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों में से एक रेगन आचार्य पर सुनवाई के बाद “क्रूर हमला” किया गया। इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) कोलकाता के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता राधारमण दास ने एक्स पर जाकर आचार्य के चैंबर के वीडियो पोस्ट किए, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि उसमें तोड़फोड़ की गई। राधारमण ने लिखा, “इस वीडियो में उनके चैंबर के साइनबोर्ड पर उनका नाम बंगाली में दिखाई दे रहा है।” उन्होंने पूछा कि कोई भी वकील पूर्व इस्कॉन पुजारी के लिए कैसे पेश हो सकता है “जब उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।” उल्लेखनीय है कि राधारमण के अकाउंट से यह पोस्ट अब डिलीट कर दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, इस्कॉन कोलकाता के प्रवक्ता का यह दावा बांग्लादेश की एक अदालत द्वारा चिन्मय की जमानत की सुनवाई स्थगित करने के कुछ घंटों बाद आया है, क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई वकील उपलब्ध नहीं था। आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार, चिन्मय की अगली जमानत सुनवाई 2 जनवरी, 2025 को तय की गई है। बांग्लादेश सम्मिलिता सनातनी जागरण जोत के प्रवक्ता के रूप में काम करने वाले चिन्मय को पिछले सोमवार को ढाका के हजरत शाहजलाल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया था। साधु को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा, चिन्मय, जिन्हें इस्कॉन समुदाय के भीतर श्री चिन्मय कृष्ण प्रभु के नाम से भी जाना जाता है, बांग्लादेश में एक प्रभावशाली धार्मिक नेता हैं। उन्होंने पहले चटगाँव में इस्कॉन के लिए संभागीय आयोजन सचिव का पद भी संभाला था। इससे पहले दिन में, राधारमण ने दावा किया था कि बांग्लादेश में एक कानूनी मामले में चिन्मय का बचाव करने वाले अधिवक्ता रामेन रॉय पर "इस्लामवादियों" ने क्रूरतापूर्वक हमला किया था, जिन्होंने उनके घर में तोड़फोड़ भी की थी। इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष ने कहा था कि रामेन रॉय एक अस्पताल में अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि रॉय की "गलती" अदालत में चिन्मय दास का बचाव करना था। हमले में रॉय गंभीर रूप से घायल हो गए और फिलहाल वह आईसीयू में हैं और अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गौरतलब है कि चिन्मय की गिरफ्तारी के बाद से बांग्लादेश में स्थिति तनावपूर्ण हो गई है, जिससे ढाका और पूरे भारत में हिंदू और इस्कॉन समुदाय में भारी हंगामा मच गया है।
चीन की दक्षिणी महाद्वीप में धमक, अंटार्कटिका में पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन किया स्थापित
#china_expands_presence_in_antarctica_with_monitoring_station

* चीन ने अब अंटार्कटिका में अपना परचम लहराते हुए पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन स्थापित किया है।चीन मौसम विज्ञान प्रशासन (सीएमए) के अनुसार, पूर्वी अंटार्कटिका में लार्समैन हिल्स में स्थित, झोंगशान राष्ट्रीय वायुमंडलीय पृष्ठभूमि स्टेशन ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया। चीन मौसम विज्ञान प्रशासन यानी सीएमए वेबसाइट पर सोमवार को प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि यह स्टेशन "अंटार्कटिका के वायुमंडलीय घटकों में सांद्रता परिवर्तनों का सतत और दीर्घकालिक परिचालनात्मक अवलोकन करेगा, तथा क्षेत्र में वायुमंडलीय संरचना और संबंधित विशेषताओं की औसत स्थिति का विश्वसनीय प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।" हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लेख में कहा गया है कि निगरानी डेटा "जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करेगा"। यह चीन का नौवां चालू वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन है और विदेश में इसका पहला स्टेशन है। इसके अलावा, चीन में वर्तमान में 10 नए वायुमंडलीय निगरानी स्टेशनों का परीक्षण किया जा रहा है। साल 2024 की शुरुआत में, चीन ने अंटार्कटिका में अपने विशाल 5वें शोध स्टेशन का संचालन किया, जिसमें 5,244 वर्ग मीटर का फर्श क्षेत्र है, जिसमें गर्मियों के दौरान 80 अभियान दल के सदस्यों और सर्दियों के दौरान 30 सदस्यों का समर्थन करने की सुविधाएँ हैं। अपने कॉम्पीटीटर संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, चीन अंटार्कटिका में अपने 5 वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशनों और अंटार्कटिका में 2 के माध्यम से ध्रुवीय संसाधनों का पता लगाने के प्रयासों का विस्तार कर रहा है।
चीन की दक्षिणी महाद्वीप में धमक, अंटार्कटिका में पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन किया स्थापित
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* चीन ने अब अंटार्कटिका में अपना परचम लहराते हुए पहला वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन स्थापित किया है।चीन मौसम विज्ञान प्रशासन (सीएमए) के अनुसार, पूर्वी अंटार्कटिका में लार्समैन हिल्स में स्थित, झोंगशान राष्ट्रीय वायुमंडलीय पृष्ठभूमि स्टेशन ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया। चीन मौसम विज्ञान प्रशासन यानी सीएमए वेबसाइट पर सोमवार को प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि यह स्टेशन "अंटार्कटिका के वायुमंडलीय घटकों में सांद्रता परिवर्तनों का सतत और दीर्घकालिक परिचालनात्मक अवलोकन करेगा, तथा क्षेत्र में वायुमंडलीय संरचना और संबंधित विशेषताओं की औसत स्थिति का विश्वसनीय प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।" हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लेख में कहा गया है कि निगरानी डेटा "जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करेगा"। यह चीन का नौवां चालू वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन है और विदेश में इसका पहला स्टेशन है। इसके अलावा, चीन में वर्तमान में 10 नए वायुमंडलीय निगरानी स्टेशनों का परीक्षण किया जा रहा है। साल 2024 की शुरुआत में, चीन ने अंटार्कटिका में अपने विशाल 5वें शोध स्टेशन का संचालन किया, जिसमें 5,244 वर्ग मीटर का फर्श क्षेत्र है, जिसमें गर्मियों के दौरान 80 अभियान दल के सदस्यों और सर्दियों के दौरान 30 सदस्यों का समर्थन करने की सुविधाएँ हैं। अपने कॉम्पीटीटर संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, चीन अंटार्कटिका में अपने 5 वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशनों और अंटार्कटिका में 2 के माध्यम से ध्रुवीय संसाधनों का पता लगाने के प्रयासों का विस्तार कर रहा है।
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मुझे यकीन नहीं है कि वह पूरी तरह समझती हैं': बांग्लादेश के लिए ममता की यूएन शांति सैनिकों की मांग पर शशि थरूर


* कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बांग्लादेश में यूएन शांति सैनिकों की तैनाती के अनुरोध पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि उन्हें यकीन नहीं है कि वह उनकी भूमिका को पूरी तरह समझती हैं या नहीं। तिरुवनंतपुरम के सांसद ने पीटीआई को बताया कि संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों को किसी देश के अंदर बहुत कम ही भेजा जाता है, सिवाय इसके कि जब उसकी सरकार खुद अनुरोध करती है। बंगाल राज्य विधानसभा में बोलते हुए बनर्जी ने सोमवार को केंद्र से बांग्लादेश में शांति सैनिकों की तैनाती के लिए संयुक्त राष्ट्र से अनुरोध करने को कहा था, जहां अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी मांग की कि विदेश मंत्री को मौजूदा स्थिति पर देश के रुख से संसद को अवगत कराना चाहिए। बनर्जी ने विधानसभा में कहा था कि, "यदि आवश्यक हो, तो वहां की (अंतरिम) सरकार से बात करने के बाद एक अंतरराष्ट्रीय शांति सेना को बांग्लादेश भेजा जाना चाहिए ताकि उन्हें सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद मिल सके।" इस मांग पर थरूर ने कहा, "मुझे यकीन नहीं है कि वह संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की भूमिका को पूरी तरह समझती हैं या नहीं। कई वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के रूप में काम करने के बाद, मैं आपको बता सकता हूं कि संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को किसी देश के अंदर बहुत कम ही भेजा जाता है, सिवाय किसी देश के अनुरोध के।" उन्होंने आगे कहा कि जब कोई देश पूरी तरह से ढह जाता है, तभी शांति सैनिकों को भेजा जाता है और वह भी "उस देश की सरकार को उनसे अनुरोध करना पड़ता है, लेकिन मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि हमें इस बात पर नज़र रखनी होगी कि क्या हो रहा है"। इसके अलावा, ममता बनर्जी ने विदेशी धरती से सताए गए भारतीयों को वापस लाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप की भी मांग की थी। हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर कथित हमलों और पूर्व इस्कॉन पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के साथ बांग्लादेश में स्थिति तनावपूर्ण होती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, दास को मंगलवार को कोई राहत नहीं मिली क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई वकील उपलब्ध नहीं होने के कारण अदालत में उनकी जमानत की सुनवाई स्थगित कर दी गई। उनकी अगली सुनवाई 2 जनवरी, 2025 को तय की गई है। इस बीच, पड़ोसी देश की मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने ढाका में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना तैनात करने के बनर्जी के आह्वान पर आश्चर्य व्यक्त किया। बांग्लादेश के विदेश मंत्री तौहीद हुसैन ने पश्चिम बंगाल की सीएम की टिप्पणी पर असंतोष व्यक्त किया और कहा, "मुझे नहीं पता, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ममता बनर्जी ने ऐसा बयान क्यों दिया। मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, मैं कई बार उनके घर गया हूं।" हालांकि, हुसैन ने यह भी कहा कि समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। "पारस्परिक हितों को संरक्षित किया जाना चाहिए, और बांग्लादेश भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है।" पड़ोसी देश में मौजूदा स्थिति को लेकर पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें लोगों और संगठनों ने हिंदुओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की मांग की, और चिन्मय दास को जेल से रिहा करने की भी मांग की।
मुझे यकीन नहीं है कि वह पूरी तरह समझती हैं': बांग्लादेश के लिए ममता की यूएन शांति सैनिकों की मांग पर शशि थरूर


* कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बांग्लादेश में यूएन शांति सैनिकों की तैनाती के अनुरोध पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि उन्हें यकीन नहीं है कि वह उनकी भूमिका को पूरी तरह समझती हैं या नहीं। तिरुवनंतपुरम के सांसद ने पीटीआई को बताया कि संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों को किसी देश के अंदर बहुत कम ही भेजा जाता है, सिवाय इसके कि जब उसकी सरकार खुद अनुरोध करती है। बंगाल राज्य विधानसभा में बोलते हुए बनर्जी ने सोमवार को केंद्र से बांग्लादेश में शांति सैनिकों की तैनाती के लिए संयुक्त राष्ट्र से अनुरोध करने को कहा था, जहां अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी मांग की कि विदेश मंत्री को मौजूदा स्थिति पर देश के रुख से संसद को अवगत कराना चाहिए। बनर्जी ने विधानसभा में कहा था कि, "यदि आवश्यक हो, तो वहां की (अंतरिम) सरकार से बात करने के बाद एक अंतरराष्ट्रीय शांति सेना को बांग्लादेश भेजा जाना चाहिए ताकि उन्हें सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद मिल सके।" इस मांग पर थरूर ने कहा, "मुझे यकीन नहीं है कि वह संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की भूमिका को पूरी तरह समझती हैं या नहीं। कई वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के रूप में काम करने के बाद, मैं आपको बता सकता हूं कि संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को किसी देश के अंदर बहुत कम ही भेजा जाता है, सिवाय किसी देश के अनुरोध के।" उन्होंने आगे कहा कि जब कोई देश पूरी तरह से ढह जाता है, तभी शांति सैनिकों को भेजा जाता है और वह भी "उस देश की सरकार को उनसे अनुरोध करना पड़ता है, लेकिन मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि हमें इस बात पर नज़र रखनी होगी कि क्या हो रहा है"। इसके अलावा, ममता बनर्जी ने विदेशी धरती से सताए गए भारतीयों को वापस लाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप की भी मांग की थी। हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर कथित हमलों और पूर्व इस्कॉन पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के साथ बांग्लादेश में स्थिति तनावपूर्ण होती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, दास को मंगलवार को कोई राहत नहीं मिली क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई वकील उपलब्ध नहीं होने के कारण अदालत में उनकी जमानत की सुनवाई स्थगित कर दी गई। उनकी अगली सुनवाई 2 जनवरी, 2025 को तय की गई है। इस बीच, पड़ोसी देश की मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने ढाका में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना तैनात करने के बनर्जी के आह्वान पर आश्चर्य व्यक्त किया। बांग्लादेश के विदेश मंत्री तौहीद हुसैन ने पश्चिम बंगाल की सीएम की टिप्पणी पर असंतोष व्यक्त किया और कहा, "मुझे नहीं पता, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ममता बनर्जी ने ऐसा बयान क्यों दिया। मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, मैं कई बार उनके घर गया हूं।" हालांकि, हुसैन ने यह भी कहा कि समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। "पारस्परिक हितों को संरक्षित किया जाना चाहिए, और बांग्लादेश भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है।" पड़ोसी देश में मौजूदा स्थिति को लेकर पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें लोगों और संगठनों ने हिंदुओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की मांग की, और चिन्मय दास को जेल से रिहा करने की भी मांग की।
चीन के साथ कैसे सुधरे संबंध? एस जयशंकर ने लोकसभा में बताई कूटनीतिक कामयाबी की कहानी*
#s_jaishankar_said_in_lok_sabha_situation_on_lac
भारत-चीन के संबंध में हाल के दिनों में बेहतर हुए हैं। गलवां घाटी झड़प के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। हालांकि, कई दौर के बातचीत के बाद संबंध पटरी पर लौटे हैं। अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को लोकसभा में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर मौजूदा हालात की जानकारी दी और बताया कि अब हालात बेहतर हैं।जयशंकर ने साफ किया कि पूर्वी लद्दाख के इलाकों में डिसइंगेजमेंट पूरी तरह पूरा हो चुका है। अब दोनों देश आगे तनाव न हो इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन एलएसी पर सीमा विवाद खत्म करने के लिए दशकों से बात कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमलोग आपसी सहमति से विवाद हल करने के लिए सहमत हुए हैं। उन्होंने बताया कि मई-जून 2020 में चीन ने एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती की थी जिसके बाद भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग में दिक्कत आई थी। गलवां में हुए तनाव के बाद दोनों देशों के बीच तनातनी काफी बढ़ गई थी। इसके बाद भारत ने भी एलएसी पर बड़ी संख्या में हथियार और सैनिकों की तैनाती की थी। जयशंकर ने आगे कहा कि यह सदन जानता है कि चीन ने 1962 के युद्ध और उससे पहले की घटनाओं में अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसके अलावा पाकिस्तान ने 1963 में चीन को 5,180 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र अवैध रूप से सौंप दिया था। भारत और चीन ने सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दशकों से बातचीत की है। एस जयशंकर ने कहा, हम एक निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य सीमा समाधान के लिए बायलेट्रल बातचीत के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। *कोई भी पक्ष स्थिति से छेड़छाड़ नहीं करेगा- विदेश मंत्री* विदेश मंत्री ने आगे कहा कि, सीमा पर हालात सुधारने के लिए दोनों देश प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने बताया कि, कोई भी पक्ष स्थिति से छेड़छाड़ नहीं करेगा और सहमति से ही सभी मसलों का समाधान किया जाएगा। चीन से बातचीत के बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, सीमा पर हालात सामान्य होने के बाद ही चीन से बातचीत की गई है। *एलएसी पर बहाली के लिए सेना को श्रेय- विदेश मंत्री* विदेश मंत्री ने कहा कि, एलएसी पर बहाली का पूरा श्रेय सेना को जाता है। उन्होंने आगे कहा कि, कूटनीतिक पहल से सीमा पर हालात सामान्य हुए हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच सहमति बनी है कि यथास्थिति में एकतरफा बदलाव नहीं किया जाएगा और साथ ही दोनों देशों के बीच पुराने समझौतों का पालन किया जाएगा। सीमा पर शांति के बिना भारत-चीन के संबंध सामान्य नहीं रह सकते। *विवादित जगह से हटीं दोनों देशों की सेनाएं* बता दें कि बीते 21 अक्तूबर को भारत और चीन की सेनाओं ने विवादित पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों से अपने-अपने सामान समेटने शुरू किए थे और नवंबर महीने से पहले ही इसे पूरा कर लिया गया था। भारत और चीन के संबंध 2020 के जून में गलवान घाटी में हुई घातक झड़प के बाद काफी बिगड़ गए थे। यह झड़प दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष थी।