माता कात्यायनी की महिमा: गोपियों ने अपने हाथों से बनाई थी मूर्ति, भगवान कृष्ण को वर रूप में चाहा था
नवरात्रि में देवी के विभिन्न स्वरुपों की पूजा हो रही है. इनमें एक माता कात्यायनी का स्वरूप भी शामिल है. दिल्ली के पास देवी कात्यायनी का ऐसा मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आज भी माता के दरबार से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता. हम बात कर रहे हैं कि भगवान की रास स्थली वृंदावन के कात्यायनी माता मंदिर की. यह मंदिर तो बाद में बना, लेकिन मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति द्वापर युग में खुद गोपियों ने अपने हाथों से बनाई थीं और नियमित माता की पूजा कर भगवान कृष्ण को वर रूप में चाहा था.
माता की कृपा से उनकी इच्छा पूरी भी हुई.इसके बाद तमाम ऋषि मुनियों ने इस स्थान पर तप कर माता की कृपा का फल प्राप्त किया. इस प्रसंग में हम श्रीमद भागवत के हवाले से उसी मंदिर की चर्चा करेंगे, जहां माता आज भी अपने भक्तों की झोली सहज ही भर देती हैं. श्रीमदभागवत की कथा के मुताबिक भगवान कृष्ण वृंदावन में 11 वर्ष 56 दिनों तक रहे. जब भगवान गोप गोपियों के साथ खेलते हुए 7 वर्ष के हो गए, तो गोपियों के मन में भाव जगा कि उन्हें पति के रूप में कृष्ण की ही प्राप्ति हो.
इस भाव के चलते गोपियां रोज सुबह ब्रह्म मुर्हुत में उठ जातीं, यमुना स्नान करतीं और अपने हाथों से माता कात्यायनी की मूर्ति बनाकर ‘कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्द गोपसुतं देविपतिं मे कुरु ते नमः॥’ मंत्र से उनकी पूजा करतीं.
ऐसे पूरी हुई गोपियों की कामना
उनकी इस पूजा से भगवान प्रसन्न हुए और जब अघासुर के वध के बाद एक वर्ष का कालाक्षेप हुआ था, भगवान खुद ही वृंदावन के सभी ग्वाल बाल बन गए थे, उसी समय सभी गोपियों से शादी कर उनकी इच्छा की पूर्ति की थी.श्रीमद भागवत कथा के मुताबिक खुद भगवान जब 11 वर्ष 56 दिन तक वृंदावन में गुजारने के बाद कंस वध के लिए मथुरा जाने लगे तो इस मंदिर में आए और कंस वध की कामना के साथ विधि विधान से माता की स्तुति की थी. बाद में इस स्थान पर कई ऋषि मुनियों ने माता की पूजा की और अभीष्ठ फल की प्राप्ति की.
शक्तिपीठ है माता का मंदिर
देवी पुराण और मार्कंडेय पुराण के मुताबिक यह मंदिर ठीक उसी स्थान पर है, जहां पूर्व में माता सती के केश गिरे थे. इसलिए यह स्थान शक्तिपीठ भी हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में आज भी कोई भक्त मन वचन और कर्म से शुद्ध होकर ‘कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्द गोपसुतं देविपतिं मे कुरु ते नमः॥’ का जाप करता है तो उसकी मनोकामना सहज ही पूरी हो जाती है. खासतौर पर जिन लोगों की शादी में बाधा आती है, उनकी कुंडली में ग्रहों के दोष की वजह से तय हुई शादी भी टूट जाती है, उन्हें इस मंदिर में पूजा का बड़ा फल मिलता है.
कौन हैं मां कात्यायनी
देवी भागवत की एक कथा के मुताबिक ऋषि कात्य के गोत्र में कात्यायन नाम के एक ऋषि हुए. उस समय महामारी फैली हुई थी. इससे दुखी होकर ऋषि ने देवी भगवती की खूब तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता उनके सामने प्रकट हुईं और वरदान मांगने को कहा. उस समय ऋषि माता के स्वरुप पर मोहित हो गए और कहा कि वह उन्हें बेटी स्वरूप में पाना चाहते हैं. माता ने तथास्तु कहा और नियत समय पर मां भगवती कात्यायन ऋषि के घर बेटी बनकर अवतरित हुईं और महामारी का हरण किया था. उस समय उनका नाम कात्यायनी रखा गया.
Oct 17 2024, 12:26