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कम उम्र में सफेद हो रहे हैं बालों से परेशान हैं तो इस तरह लगाएं कलौंजी, कुछ ही दिनों में दिखेगा असर

बालों का सफेद होना एक ऐसी दिक्कत है जिससे अनेक लोगों को दो चार होना पड़ता है।आधुनिक समय में लोगों के बाल कम उम्र में ही सफेद हो रहे हैं, इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं। मुख्य रूप से कम उम्र में सफेद बाल होना, जेनेटिक होता है। लेकिन आज के समय में बढ़ते प्रदूषण और गलत लाइफस्टाइल की वजह से भी लोगों के बाल कम उम्र में सफेद हो रहे हैं। इसके अलावा थायराइड डिजीजस शरीर में पोषक तत्वों की कमी जैसे- विटामिन बी12, विटामिन सी इत्यादि और धूमपान का सेवन करने वालों के बाल भी कम उम्र में सफेद हो रहे हैं। 

अगर आपके बाल सामान्य कारणों से सफेद हो रहे हैं, तो इस परेशानी को कुछ नैचुरल उपायों द्वारा कम किया जा सकता है। इन नैचुरल उपायों में कलौंजी शामिल है। जी हां, कलौंजी के प्रयोग से आप अपने बालों को काफी हद तक काला कर सकते हैं। आइए जानते हैं सफेद बालों को काला करने में कलौंजी किस तरह फायदेमंद है और किस तरह से करें इसका प्रयोग?

कलौंजी बालों को काला करने में कैसे है फायदेमंद?

कलौंजी में कई तरह के महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट्स और पोषक तत्व होते हैं, जो आपके सफेद बालों को काला करने में प्रभावी साबित हो सकते हैं। इससे बालों की परेशानियों को काफी हद तक कम की जा सकती है।

दरअसल, कलौंजी में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो आपके फ्री रेडिकल्स और ऑक्सीडेटिव तनाव से लड़ने में मदद कर सकते हैं। इससे समय से पहले बुढ़ापा और सफेद होते बालों की परेशानी कम की जा सकती है।

इसके अलावा कलौंजी विटामिन बी, मिनरल्स और अमीनो एसिड जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिससे बालों को हेल्दी बनाए रखने में मदद मिल सकती है। स्वस्थ बालों को बनाए रखने और सफ़ेद बालों को रोकने में मदद कर सकते हैं। इसमें मौजूद थाइमोक्विनोन बालों के विकास को उत्तेजित कर सकता है और बालों के विकास में शामिल कोशिकाओं के प्रसार को बढ़ावा दे सकता है।

इतना ही नहीं, कलौंजी के प्रयोग से स्कैल्प में होने वाली सूजन और जलन को कम किया जा सकता है। इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करके आपके बालों के विकास को बढ़ा सकते हैं और इससे सफेद होते बालों को भी कम किया जा सकता है।

सफेद बालों को काला करने के लिए किस तरह इस्तेमाल करें कलौंजी?

सफेद होते बालों को काला करने के लिए आप कलौंजी का प्रयोग कर सकते हैं। इसका प्रयोग आप तेल के रूप में कर सकते हैं, जिसे घर पर तैयार करना बहुत ही आसान है। 

आइए जानते हैं कलौंजी तेल की रेसिपी-

आवश्यक सामग्री

सरसों या नारियल का तेल - 1 कटोरी

करी पत्ता- 10 से 15

कलौंजी - 2 से 3 चम्मच

विधि

कलौंजी का तेल तैयार करने के लिए सबसे पहले एक पैन लें, इसमें कलौंजी और करी पत्ता डाल डालकर रंग बदलने तक पकाएं। इसके बाद जब तेल गर्म हो जाए, तो इसे ठंडा करके स्टोर कर लें। तैयार तेल को अपने बालों पर एप्लाई करें। 

कुछ सप्ताह तक इस तेल को बालों में लगाने से आपके सफेद बाल काले हो सकते हैं।

अगर आप झारखंड आए तो इन 5 लजीज डिशों का मज़ा न लिया, तो यात्रा रह जाएगी अधूरी।


झारखंड एक ऐसा राज्य है जो सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी अनोखी और स्वादिष्ट पारंपरिक व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के खाने में स्थानीय मसालों और पारंपरिक विधियों का समावेश होता है, जो हर किसी का दिल जीत लेता है। अगर आप झारखंड घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो इन 5 व्यंजनों को ज़रूर चखें। ये व्यंजन आपके स्वाद को एक नए स्तर पर ले जाएंगे और आपकी झारखंड यात्रा को यादगार बना देंगे।

1. लिट्टी-चोखा

लिट्टी-चोखा न केवल बिहार बल्कि झारखंड का भी एक प्रसिद्ध व्यंजन है। यह गेंहू के आटे से बनी लिट्टी होती है, जिसमें सत्तू (भुने हुए चने का आटा) भरा जाता है। इसे चूल्हे या ओवन में सेंका जाता है और चोखा (आलू, बैंगन और टमाटर से बनी चटनी) के साथ परोसा जाता है। सरसों के तेल की खुशबू और मसालों का अनोखा स्वाद इसे खास बनाता है।

2. धुस्का

धुस्का एक पारंपरिक झारखंडी स्नैक है, जो चावल और उड़द की दाल के घोल से तैयार किया जाता है। इसे तेल में तलकर कुरकुरा बनाया जाता है और आलू की चटपटी सब्जी के साथ खाया जाता है। इसका स्वाद और बनावट दोनों ही इसे एक लोकप्रिय नाश्ता बनाते हैं, जिसे स्थानीय लोग सुबह या शाम की चाय के साथ लेना पसंद करते हैं।

3. चिरौंजी की चटनी

यह झारखंड की एक खास चटनी है, जिसे चिरौंजी (चारोली) के बीज से बनाया जाता है। इसमें नींबू, हरी मिर्च, धनिया और नमक का प्रयोग होता है, जो इसे चटपटा और तीखा बनाता है। यह चटनी चावल, पराठा या अन्य झारखंडी व्यंजनों के साथ खाई जाती है, जो खाने में अलग ही स्वाद जोड़ती है।

4. अरसा

अरसा एक पारंपरिक मीठा व्यंजन है, जो झारखंड की खास पहचान है। इसे चावल के आटे और गुड़ से बनाया जाता है। इसकी बनावट सख्त और कुरकुरी होती है, और इसका स्वाद मीठा और हल्का होता है। अरसा ज्यादातर त्योहारों, शादियों और अन्य विशेष अवसरों पर परोसा जाता है।

5. पीठा

पीठा झारखंड और पूर्वी भारत में बहुत लोकप्रिय है। यह चावल के आटे और दाल के मिश्रण से तैयार किया जाता है। पीठा कई प्रकार के होते हैं, जैसे - मीठे पीठा, नमकीन पीठा और भरे हुए पीठा। इसे ज्यादातर स्टीम करके तैयार किया जाता है, जिससे यह हेल्दी भी होता है। इसका अनोखा स्वाद और बनाने की विधि इसे एक खास व्यंजन बनाते हैं, जो हर किसी को पसंद आता है।

निष्कर्ष

झारखंड की इन पारंपरिक डिशों का स्वाद न सिर्फ आपके स्वाद को तृप्त करेगा, बल्कि आपको राज्य की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं से भी परिचित कराएगा। ये व्यंजन न सिर्फ स्वादिष्ट हैं बल्कि इनमें झारखंड की आत्मा भी बसी हुई है। तो जब भी आप झारखंड की यात्रा पर जाएं, इन डिशों को अपने खाने की लिस्ट में ज़रूर शामिल करें। एक बार इन्हें चखने के बाद, आप बार-बार इन्हें ऑर्डर किए बिना नहीं रह पाएंगे!

जानिए ऐसे अद्भुत जानवर के बारे में जो बिना सोए पूरी जिंदगी निकाल देते है


कुछ जानवर ऐसे होते हैं जो या तो बहुत कम सोते हैं या बिना सोए भी अपनी जिंदगी गुजार सकते हैं। यह उनकी शारीरिक संरचना और व्यवहार पर निर्भर करता है। नीचे 8 ऐसे जानवरों की सूची दी गई है, जो या तो बिना सोए रहते हैं या बहुत कम सोने की क्षमता रखते हैं:

1. डॉल्फिन (Dolphin)

डॉल्फिन्स के पास असामान्य रूप से नींद लेने का तरीका होता है। वे आधे दिमाग (ब्रेन) के साथ सोती हैं जबकि उनका दूसरा आधा जागृत रहता है, ताकि वे श्वास (breathing) के लिए सतह पर आ सकें और किसी भी खतरे से बच सकें। यह प्रक्रिया उनके लिए जीवनभर चलती है।

2. शार्क (Sharks)

कई शार्क प्रजातियां कभी भी पूरी तरह नहीं सोतीं, क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए निरंतर तैरना पड़ता है। वे अपनी मांसपेशियों की क्रियाओं के द्वारा गिल्स (gills) में पानी का प्रवाह बनाए रखती हैं, जिससे वे सांस ले पाती हैं।

3. चींटियां (Ants)

चींटियां बहुत कम समय के लिए सोती हैं, औसतन एक दिन में केवल 4-5 घंटे की छोटी-छोटी झपकियों के रूप में। उनकी नींद इतनी कम होती है कि यह लगभग न के बराबर समझी जाती है। वे बिना सोए भी अपना काम पूरा करने में सक्षम होती हैं।

4. हाथी (Elephants)

हाथी प्रतिदिन केवल 2-3 घंटे सोते हैं, और कुछ हाथी कई दिनों तक बिना सोए रह सकते हैं। यह क्षमता उन्हें जंगल में किसी भी खतरे से बचने और समूह का नेतृत्व करने में मदद करती है।

5. जिराफ (Giraffe)

जिराफ भी बहुत कम सोते हैं, प्रतिदिन केवल 1-2 घंटे। वे ज्यादातर खड़े-खड़े सोते हैं और बहुत ही छोटी-छोटी झपकियां लेते हैं ताकि शिकारियों से बच सकें।

6. गाय (Cows)

गाय भी बहुत कम सोती हैं। वे सामान्यतः केवल 4 घंटे की झपकियां लेती हैं। उन्हें ज्यादातर समय चरने और जुगाली करने में लगता है, जिससे वे बिना अधिक सोए भी सक्रिय रहती हैं।

7. बैल (Bull)

बैल भी कम सोने की क्षमता रखते हैं। वे दिन में कुछ ही घंटों के लिए विश्राम करते हैं और बिना सोए भी अपने सभी कार्य कर सकते हैं।

8. नीली व्हेल (Blue Whale)

नीली व्हेल, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा स्तनधारी है, बहुत ही कम सोती है। यह सतह के पास या थोड़ा गहरे पानी में बहुत ही कम समय के लिए सोती है। इसके जाग्रत रहने का मुख्य कारण यह है कि उसे भी श्वास लेने के लिए सतह पर आना पड़ता है।

इन जानवरों की नींद की आदतें और सोने के तरीके उनके प्राकृतिक आवास और जीवनशैली से प्रभावित होती हैं, जो उन्हें अपने-अपने वातावरण में जीवित रहने के लिए अनुकूल बनाते हैं।

आईए जानते है, वैसे अद्भुत जानवर के बारे में जो अपने अंगों को पुनः उगा सकते हैं...


कुछ जानवरों में अद्भुत पुनर्जीवन की क्षमता होती है, जो उन्हें अपने खोए हुए अंगों को पुनः उत्पन्न करने की अनुमति देती है। इस लेख में हम ऐसे ही कुछ जीवों के बारे में जानेंगे जो इस असाधारण गुण के धनी हैं:

1. स्टारफिश (Starfish)

स्टारफिश, जिसे समुद्री सितारा भी कहा जाता है, के पास अपने हाथों (arms) को पुनः उगाने की क्षमता होती है। यदि किसी कारणवश इसका हाथ कट जाए, तो वह कुछ ही महीनों में अपने खोए हुए अंग को फिर से उत्पन्न कर लेती है। इतना ही नहीं, कुछ प्रजातियों में तो एक कटा हुआ हाथ भी नया स्टारफिश बना सकता है।

2. सैलामैंडर (Salamander)

सैलामैंडर के पास अपने शरीर के लगभग किसी भी हिस्से, जैसे पैर, पूंछ, और यहां तक कि रीढ़ की हड्डी के हिस्सों को पुनः उत्पन्न करने की अविश्वसनीय क्षमता होती है। ये जीव अपने तंत्रिका तंतु (nerve tissues) और हृदय की कोशिकाओं तक को पुनः बना सकते हैं।

3. एक्सोलोटल (Axolotl)

मैक्सिकन सैलामैंडर के नाम से भी जाना जाने वाला एक्सोलोटल विशेष रूप से अपने पुनरुत्पादन गुण के लिए प्रसिद्ध है। यह अपनी आंखें, अंग, रीढ़ की हड्डी और यहां तक कि हृदय और मस्तिष्क की कोशिकाओं को भी पुनः उत्पन्न कर सकता है। यह शोधकर्ताओं के लिए पुनर्जनन (regeneration) के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय है।

4. केकड़ा (Crab)

केकड़े के पास अपने पैर और पंजों को पुनः उगाने की क्षमता होती है। यदि इसके पैर या पंजे टूट जाएं या गिर जाएं, तो यह अगले कई मोल्टिंग (molting) चक्रों के दौरान इन्हें पुनः विकसित कर सकता है।

5. गिरगिट (Lizard)

गिरगिट की पूंछ को पुनः उगाने की क्षमता सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। जब गिरगिट खतरे का सामना करता है, तो यह अपनी पूंछ को छोड़ देता है, जिससे शिकारी उसका पीछा छोड़ देता है। फिर कुछ ही महीनों में यह एक नई पूंछ विकसित कर लेता है।

6. समुद्री खीरा (Sea Cucumber)

समुद्री खीरे अपने पूरे आंतरिक अंगों (internal organs) को पुनः उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। यदि ये किसी खतरे में होते हैं, तो अपने कुछ अंगों को छोड़कर दुश्मन को चकमा दे सकते हैं और बाद में इन्हें पुनः विकसित कर सकते हैं।

7. मेडुसा जेलीफ़िश (Turritopsis dohrnii)

मेडुसा जेलीफ़िश को "अमर जेलीफ़िश" भी कहा जाता है, क्योंकि यह अपने जीवनचक्र को पुनः प्रारंभ कर सकती है। यदि इसे चोट लगती है या इसके जीवित रहने की स्थिति बिगड़ जाती है, तो यह अपने आप को एक युवा अवस्था में बदलकर जीवनचक्र को पुनः शुरू कर सकती है।

इन जानवरों की पुनरुत्पादन क्षमता प्रकृति का अद्भुत उदाहरण है। वैज्ञानिक इन जीवों का अध्ययन करके यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि इनकी कोशिकाएं इस प्रकार से कैसे पुनः विकसित होती हैं, ताकि भविष्य में मनुष्यों में भी अंग पुनर्जनन की संभावना को खोजा जा सके।

गाजियाबाद में पुलिस और बदमाशों के बीच मुठभेड़ का मामला आया सामने


उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले से पुलिस और बदमाश के बीच मुठभेड़ होने का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि भोजपुर पुलिस द्वारा मुकीमपुर गांव व अमीपुर गांव नगोला के बीच पुलिया के पास चेंकिग के दौरान हुई मुठभेड़ में एक बदमाश घायल हो गया। जिसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

पुलिस को मारने की फिराक में था आरोपी

सहायक पुलिस आयुक्त मोदीनगर ज्ञानप्रकाश राय ने बताया कि गाजियाबाद पुलिस रात में चैकिंग कर रही थी तभी एक सिल्वर कलर की कार आते हुए दिखायी दी,जिसे रोकने का इशारा किया गया तो उसमें से 3 बदमाश उतरकर भागे। उनमें से एक बदमाश ने भागते हुए पुलिस टीम पर जान से मारने की नीयत से फायर किया। जबावी फायरिंग में उस बदमाश के पैर में गोली लगी। 

पूछने पर इसने अपना नाम आसिफ पुत्र इद्रीश निवासी मेरठ बताया था। मौके से दो बदमाश फरार हो गये। इस सम्बन्ध में कन्ट्रोल, स्वाट टीम ग्रामीण जोन को सूचना दी गई एवं इनकी गिरफ्तारी के लिए सघन चेंकिग अभियान चलाया गया। कुछ समय के बाद एक अन्य बदमाश नुरु पुत्र पृथ्वी को गिरफ्तार किया गया तथा स्वाट टीम द्वारा तीसरे बदमाश की घेराबन्दी की गई तो बदमाश द्वारा अपने आप को घिरता हुआ देख स्वाट टीम पर जान से मारने की नीयत से फायर किया। 

आत्मरक्षार्थ फायरिंग में बदमाश के पैर में गोली लगी।पूछने पर इसने अपना नाम वारिस पुत्र आबिद निवासी भोजपुर बताया।

आरोपियों ने स्वीकार की गलती

बदमाशों के कब्जे से दो तमंचा, कारतूस एवं प्रयुक्त कार की तलाशी लेने पर उसमें से गौकशी करने के औजार बरामद हुए। पूछताछ में इन्होंने विगत दिनों ग्राम मुकीमपुर व अमीपुर नगोला के बीच पुलिया के पास गौकशी करना स्वीकार किया।

बदमाशों के आपराधिक इतिहास की जानकारी की जा रही है। घायल बदमाशों को उपचार के लिए सीएचसी मोदीनगर भेजा गया।

गांधीजी ने क्यों छोड़ा नमक का सेवन? जानें इसके पीछे की कहानी


महात्मा गांधी ने नमक खाना छोड़ने का फैसला 1939 में किया था, और इसका एक विशेष कारण था। दरअसल, उन्होंने यह कदम एक व्यक्तिगत प्रतिज्ञा के रूप में उठाया था, जिसे उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी की बीमारी के दौरान लिया था।

1939 में, कस्तूरबा गांधी बहुत बीमार थीं और उनकी हालत गंभीर थी। उनकी बीमारी के दौरान, महात्मा गांधी ने प्रार्थना की और प्रतिज्ञा की कि अगर कस्तूरबा स्वस्थ हो जाएंगी, तो वे जीवन भर नमक का त्याग कर देंगे। यह प्रतिज्ञा गांधीजी के आत्मसंयम और व्यक्तिगत अनुशासन को दर्शाती है। कस्तूरबा की स्थिति में सुधार हुआ, और गांधीजी ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए नमक का सेवन पूरी तरह से बंद कर दिया।

इस प्रतिज्ञा के पीछे एक और कारण भी था। गांधीजी नमक को जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक मानते थे और उन्होंने नमक सत्याग्रह के जरिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया था। नमक पर कर लगाए जाने के खिलाफ 1930 में नमक सत्याग्रह शुरू करने के पीछे गांधीजी का उद्देश्य यही था कि यह कर गरीबों पर अतिरिक्त बोझ डालता है और यह एक अन्यायपूर्ण कर है। जब उन्होंने नमक का त्याग किया, तो यह त्याग उनके लिए केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि उनके अनुयायियों और पूरे देश के लिए एक प्रतीकात्मक संदेश भी था।

इस प्रकार, महात्मा गांधी का नमक छोड़ने का फैसला न केवल व्यक्तिगत प्रतिज्ञा थी, बल्कि यह उनके आत्मानुशासन और संकल्प का भी उदाहरण है।

ब्रह्म कमल: उत्तराखंड का अनमोल और पवित्र राज्य पुष्प


ब्रह्म कमल (Saussurea obvallata) उत्तराखंड राज्य का राजकीय पुष्प है। इसे हिमालय के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है और यह अपनी अद्वितीय सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण विशेष पहचान रखता है।

खिलने का समय और स्थान:

यह पुष्प जुलाई से सितंबर के बीच, मानसून के दौरान, 3,000 से 4,500 मीटर की ऊँचाई पर खिलता है। उत्तराखंड के अलावा, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम के ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में भी यह फूल देखा जा सकता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

ब्रह्म कमल को हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है। इसे भगवान शिव और विष्णु से जोड़ा जाता है, और इसका उपयोग मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों में होता है। यह फूल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व रखता है।

पारिस्थितिक महत्व:

यह फूल राज्य की समृद्ध जैव-विविधता और प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है। इसका संरक्षण बेहद जरूरी है, क्योंकि यह एक दुर्लभ और विलुप्तप्राय पौधों की श्रेणी में आता है।

उत्तराखंड की पहचान:

ब्रह्म कमल न केवल उत्तराखंड की पारिस्थितिकी को दर्शाता है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और प्रकृति प्रेम का भी प्रतीक है।

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और भी ऊंची होती जा रही है, जानें क्यों


माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में हर साल थोड़ा-थोड़ा बदलाव होता है, तिब्बती में ‘चोमोलुंगमा’ और नेपाली में ‘सागरमाथा’ के नाम से मशहूर माउंट एवरेस्ट करीब 5 करोड़ साल पहले तब बनना शुरू हुआ था, जब भारतीय उपमहाद्वीप यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट से टकराया था. विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस चोटी की ऊंचाई और बढ़ती जा रही है.

कितनी बढ़ गई एवरेस्ट की ऊंचाई

माउंट एवरेस्ट 8,849 मीटर (29,032 फीट) ऊंचा है. 30 सितंबर को नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक पिछले 89,000 वर्षों में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 15 से 50 मीटर तक बढ़ी है. 

स्टडी में कहा गया है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की प्रक्रिया अभी भी जारी है. हर साल एवरेस्ट की ऊंचाई लगभग 2 मिलीमीटर बढ़ रही है. इस स्टडी को को-ऑथर और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में अर्थ साइंसेज के पीएचडी छात्र एडम स्मिथ कहते हैं, “माउंट एवरेस्ट एक किंवदंती है, जो हर साल और ऊंचा होता जा रहा है..’

बीजिंग में चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेज (China University of Geosciences) के भू-वैज्ञानिक और स्टडी के लेखक जिन-जेन दाई कहते हैं कि माउंट एवरेस्ट, हिमालय की अन्य सबसे ऊंची चोटियों के मुकाबले लगभग 250 मीटर ऊपर फैला हुआ है. हमें लगता है कि पहाड़ जस के तस हैं, लेकिन वास्तव में उनकी ऊंचाई बढ़ती रहती है. माउंट एवरेस्ट इसका उदाहरण है.

क्यों बढ़ रही एवरेस्ट की ऊंचाई?

नेपाल और चीन के बॉर्डर पर स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की सबसे बड़ी वजह नदियों के प्रवाह में बदलाव (River Capture) है. लगभग 89,000 साल पहले, हिमालय में कोसी नदी ने अपनी सहायक नदी अरुण नदी के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, जो आज एवरेस्ट के उत्तर में स्थित है. स्टडी के मुताबिक रिवर कैप्चर एक दुर्लभ घटना है. ऐसा तब होता है जब एक नदी अपना मार्ग बदलती है और दूसरी नदी से जा मिलती है या उसके रास्ते में आ जाती है.

कैसे नदी इसके लिए जिम्मेदार

शोधकर्ताओं का कहना है कि जब दोनों नदियां आपस में मिल गईं, तो एवरेस्ट के पास नदी का कटाव बढ़ गया, जिससे भारी मात्रा में चट्टानें और मिट्टी बह गई. इससे अरुण नदी घाटी का निर्माण हुआ. अध्ययन के लेखकों में से एक दाई कहते हैं, “एवरेस्ट क्षेत्र में नदियों की एक दिलचस्प प्रणाली है. ऊपर की ओर बहने वाली अरुण नदी समतल घाटी के साथ पूर्व की ओर बहती है. फिर यह अचानक दक्षिण की ओर मुड़कर कोसी नदी में मिल जाती है, जिससे इसकी ऊंचाई कम हो जाती है. नदियों की प्रणाली में यह बदलाव एवरेस्ट की अत्यधिक ऊंचाई के लिए जिम्मेदार है.

आसान उदाहरण से समझिये

जैसे ही अरुण नदी, कोसी नदी प्रणाली का हिस्सा बनी, दोनों और अधिक कटाव होने लगा. पिछली कई सदी में अरुण नदी ने अपने किनारों से अरबों टन मिट्टी को बहा दिया, जिससे एक बड़ी घाटी बन गई. मिट्टी के कटाव से आसपास की जमीन ऊपर उठ गई, जिसे आइसोस्टेटिक रिबाउंड कहते हैं. भू-वैज्ञानिक दाई कहते हैं कि “जब कोई भारी चीज जैसे कि बर्फ का बड़ा टुकड़ा या घिसी हुई चट्टान, पृथ्वी की पपड़ी से हटाई जाती है, तो उसके नीचे की जमीन धीरे-धीरे प्रतिक्रिया में ऊपर उठती है, ठीक वैसे ही जैसे माल उतारने पर नाव पानी में ऊपर उठती है. एवरेस्ट के साथ ही यही हुआ.

पर्वतारोहियों को क्या नुकसान

माउंट एवरेस्ट के आपसापस हो रहे ‘आइसोस्टेटिक रिबाउंड’ ने हिमालयी की दूसरी चोटियों को भी प्रभावित किया है. जैसे लोत्से और मकालू, जो क्रमशः दुनिया की चौथी और पांचवीं सबसे ऊंची चोटियां हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि माउंट मकालू, जो अरुण नदी के सबसे करीब है, उसके चलते यह चोटी और ऊंची हो सकती है. द गार्जियन के अनुसार, दाई ने कहा, “चोटियों की ऊंचाई अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ती रहेगी. जब नदी प्रणाली एक संतुलित स्थिति में पहुंच जाएगी तो चीजें ठीक हो जाएंगी.

शोधकर्ता कहते हैं कि सबसे बड़ा प्रभाव उन पर्वतारोहियों पर पड़ेगा जिन्हें एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के लिए 20 मीटर या उससे अधिक की चढ़ाई करनी होगी. यह खर्चीला, थकाऊ और पहले के मुकाबले ज्यादा जानलेवा होगा।

बच्चों को हर बात पर टोकना पड़ सकता है भारी: पेरेंट्स हो जाएं सावधान,जानें 4 बड़े नुकसान


बचपन किसी भी व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील दौर होता है। इस दौरान बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास तेजी से होता है। पेरेंट्स का बच्चों के जीवन में बहुत बड़ा रोल होता है, लेकिन कभी-कभी अति-प्रोटेक्टिव पेरेंटिंग या हर छोटी-बड़ी बात पर बच्चों को टोकना उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। ऐसे पेरेंट्स जो अपने बच्चों को हर छोटी बात पर डांटते या टोकते हैं, उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि इस तरह की आदत बच्चों के मस्तिष्क और शरीर पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। आइए जानते हैं इससे होने वाले 4 मुख्य नुकसान:

1. आत्मविश्वास की कमी

हर समय बच्चों को टोकने से उनके आत्मविश्वास में कमी आ सकती है। जब बच्चा हर बार किसी काम को करते हुए टोकाटाकी सुनता है, तो उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं होता और उसे लगता है कि वह कोई काम सही से नहीं कर सकता। इससे बच्चे के मन में हीन भावना उत्पन्न हो सकती है और वह भविष्य में किसी भी चुनौती का सामना करने से डरने लगेगा।

2. रचनात्मकता और सोचने की क्षमता में गिरावट

अगर बच्चे को बार-बार टोका जाए और उसकी हर गतिविधि पर पाबंदियां लगाई जाएं, तो उसकी रचनात्मकता और सोचने की क्षमता सीमित हो जाती है। बच्चे के पास अपनी कल्पनाओं को उड़ान देने का अवसर नहीं रहता और वह हर चीज को सिर्फ अपने माता-पिता की नजर से देखने लगता है। इससे उसकी समस्या सुलझाने की क्षमता और नए विचारों को अपनाने की क्षमता भी कम हो जाती है।

3. मानसिक तनाव और चिंता

बच्चों को हर बात पर टोकने से उनके मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे वे हमेशा तनाव और चिंता में रहने लगते हैं। पेरेंट्स के बार-बार टोकने से बच्चों के दिमाग में यह धारणा बन जाती है कि वे कभी कुछ ठीक नहीं कर सकते। यह मानसिक तनाव धीरे-धीरे बच्चे की सोच को प्रभावित करता है और उसे चिड़चिड़ा और अवसादग्रस्त बना सकता है।

4. शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव

ज्यादा टोकाटाकी बच्चों के शारीरिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है। जब बच्चे मानसिक रूप से तनाव में रहते हैं, तो इसका असर उनके शरीर पर भी पड़ता है। उनकी भूख कम हो जाती है, नींद प्रभावित होती है, और इससे उनका शारीरिक विकास रुक सकता है। इसके अलावा, बच्चे जल्दी-जल्दी बीमार भी पड़ सकते हैं क्योंकि मानसिक तनाव से उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।

समाधान और सुझाव

बच्चों को टोकना या सुधारना आवश्यक है, लेकिन हर छोटी बात पर टोकना सही नहीं है। पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद स्थापित करें, उनकी भावनाओं को समझें और उन्हें बिना टोकाटाकी के सही मार्गदर्शन दें। बच्चों के साथ धैर्य से पेश आना चाहिए और उन्हें स्वतंत्रता देनी चाहिए ताकि वे अपनी गलतियों से सीख सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।

याद रखें, बच्चों का मस्तिष्क मिट्टी की तरह होता है, जिसे जैसे गढ़ेंगे, वह वैसा ही आकार लेगा। इसलिए, उन्हें खुलकर सीखने और विकसित होने का मौका दें, ताकि वे आत्मविश्वासी, रचनात्मक और खुशहाल जीवन जी सकें।

दुनिया के वो 5 देश जहां कभी नहीं ढलता सूरज! जानिए मिडनाइट सन का अनोखा अनुभव

दुनिया भर में कुछ ऐसे देश हैं जहां रात का अंधेरा कभी नहीं छाता, यानी जहां सूरज कई महीनों तक अस्त नहीं होता। यह असामान्य खगोलीय घटना पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों के पास होती है। इसे मिडनाइट सन या पोलर डे कहा जाता है। आइए जानते हैं उन पांच देशों के बारे में जहां कभी रात नहीं होती:

1. नॉर्वे

नॉर्वे को "मिडनाइट सन की भूमि" कहा जाता है। यहां मई के अंत से जुलाई के अंत तक सूरज कभी नहीं डूबता। विशेष रूप से उत्तरी नॉर्वे के स्वालबार्ड क्षेत्र में, यह घटना लगभग 76 दिनों तक चलती है। इस समय के दौरान, लोग यहां बिना अंधेरे के 24 घंटे की दिन की रोशनी का अनुभव कर सकते हैं।

2. स्वीडन

स्वीडन के उत्तरी भागों में, मई के शुरुआती दिनों से अगस्त तक सूरज हमेशा आकाश में बना रहता है। किर्बुना और अबिस्को जैसे स्थानों में पर्यटक खासतौर पर इस घटना का अनुभव लेने आते हैं। यहां लोग आधी रात को भी सूरज की रोशनी में बाहर टहल सकते हैं और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।

3. फिनलैंड

फिनलैंड में गर्मियों के दौरान, जून से जुलाई के महीनों में, सूरज पूरे दिन और रात चमकता रहता है। उत्तरी फिनलैंड, जिसे लैपलैंड के नाम से भी जाना जाता है, इस घटना का केंद्र है। यहां लोग मिडनाइट सन का आनंद लेते हुए रात के समय भी बोटिंग, गोल्फ और मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं।

4. आइसलैंड

आइसलैंड एकमात्र ऐसा देश है जो आर्कटिक सर्कल के अंदर होने के बावजूद भी पूरे वर्ष अंधकारमुक्त रहता है। यहां जून के महीने में सूर्य कभी भी पूरी तरह से अस्त नहीं होता। हालांकि आइसलैंड में 24 घंटे की रोशनी केवल जून के अंत तक ही रहती है, लेकिन यह अनुभव किसी सपने जैसा लगता है।

5. कनाडा

कनाडा के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र, विशेष रूप से युकोन प्रांत में, गर्मियों के समय मिडनाइट सन का अनुभव किया जा सकता है। यहां की कई जगहों पर जून से जुलाई तक सूरज पूरी तरह अस्त नहीं होता। युकोन का डॉसन सिटी मिडनाइट सन का आनंद लेने के लिए एक प्रमुख स्थान है।

यह कैसे संभव है?

यह खगोलीय घटना पृथ्वी के झुकाव और उसकी कक्षा में घूमने के कारण होती है। जब पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है, तो उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में गर्मी का मौसम होता है और वहां सूरज 24 घंटे तक दिखाई देता है। इसके विपरीत, जब पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है, तो दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में यह घटना घटती है।

इन देशों में मिडनाइट सन का अनुभव करना किसी रोमांचक यात्रा से कम नहीं होता। ये स्थल पर्यटकों को अजीबोगरीब अनुभव और खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे प्रदान करते हैं। अगर आपको कभी मौका मिले, तो आप भी इस अनोखी घटना का आनंद लेने के लिए इनमें से किसी देश की यात्रा कर सकते हैं।