आजमगढ़: ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रव्यापी काला दिवस के समर्थन में उतरा संयुक्त किसान मोर्चा
ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रव्यापी काला दिवस के समर्थन में उतरा संयुक्त किसान मोर्चा
आजमगढ़। संयुक्त किसान मोर्चा ने चार श्रम संहिताओं के क्रियान्वयन, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण, रोजगार के ठेकाकरण और भर्ती नीति पर प्रतिबंध के खिलाफ 23 सितंबर 2024 को काला दिवस मनाने के केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान का समर्थन किया है। संयुक्त किसान मोर्चा आजमगढ़ के किसान संग्राम समिति, अ.भा.किसान सभा,क्रांतिकारी किसान यूनियन, खेत मजदूर किसान संग्राम समिति, संयुक्त किसान मजदूर संघ, जय किसान आंदोलन ,भारतीय किसान यूनियन, जनमुक्ति किसान मंच , लोक जनवादी मंच आदि ने संयुक्त रूप से अमर शहीद कुंवर सिंह उद्यान में बैठक किया । बैठक के बाद किसानों ने 25सूत्रीय मांगों का ज्ञापन राष्ट्रपति महोदया श्रीमती द्रौपदी मूर्मू को जिलाधिकारी आजमगढ़ के माध्यम से ज्ञापन सौंपा। वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र सरकार की किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, जन विरोधी व राष्ट्र विरोधी नीतियों से आज पूरा देश त्रस्त है। इनकी विनाशकारी नीतियों के कारण एक तरफ किसान बढ़ती लागत व घटती आय के कारण कर्ज व आत्महत्या के शिकार हो रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ मजदूर बेकारी, छटनीं, मँहगाई और शोषण का शिकार हैं। एमएसपी की कानूनी गारण्टी और किसानों की आय दुगुनी करने के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आयी, किन्तु उसने किसानों के साथ विश्वासघात किया है। कोविड महामारी के दौरान पूँजीपतियों से हाथ मिलाकर तीन काले कृषि कानूनों की मदद से सरकार ने खेती को पूँजीपतियों को सौंपने की साजिश रची थी। मण्डी कानून व आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर सरकार ने फसल खरीद व खाद्य वितरण पर कारपोरेट का कानूनी नियन्त्रण स्थापित करने और मूल्य समर्थन व खाद्य सुरक्षा समाप्त करने का षड्यन्त्र किया है। किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की व्यूह रचना की गई। इन तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ देश के किसानों ने 13 महीने की ऐतिहासिक लम्बी लड़ाई लड़ी जिसमें 750 किसान शहीद हुये। किसानों के आन्दोलन के दबाव में सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लिये। किन्तु बिजली और एमएसपी के सम्बन्ध में किये गये लिखित समझौते को लागू नहीं किया। सरकार की इन्हीं कारपोरेटपरस्त नीतियों ने देश के श्रमिक वर्ग को भी संकट में ढकेल दिया है। बढ़ती छंटनी, बेकारी, घटती आय, और मँहगाई ने श्रमिकों को बर्बाद कर दिया है। कारपोरेट हित के लिये लाई गई चार श्रम संहितायें श्रमिकों के सभी अधिकारों पर हमला कर उन्हें गुलाम बनाने की साजिश है। स्थायी सरकारी नौकरियों का ठेकाकरण और निजीकरण किया जा रहा है। निमित्त रोजगार घट रहे हैं तथा दैनिक आमदनी में भी गिरावट आई है।आज सरकार किसानों मजदूरों की एकता को तोड़ने के लिये विभाजकारी साम्प्रदायिक नीतियों का इस्तेमाल कर रही है। ज्ञापन सौंपने वालों में कामरेड दुखहरन राम,का.वेद प्रकाश उपाध्याय,राम नयन यादव,का रामकुमार यादव,डा रवीन्द्र नाथ राय, दानबहादुर मौर्य,का. नंदलाल, रामराज, अवधराज,राजेश आज़ाद, राजदेव,दान बहादुर मौर्य,भीमराम,अवधराज यादवआदि शामिल रहे।
Sep 29 2024, 12:49