गजब : बिहार का एक ऐसा गांव जहां परिवार से अधिक संख्या में है नाव, जानिए क्यों…
डेस्क : बिहार में कई ऐसे अद्भुत गांव है जो अपने नाम, संस्कृति और विशेष कारणों से अपनी अलग पहचान बनाते है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे गांव के विषय में बताने जा रहे जिसकी विशेषता जानकर आप आश्चर्य में पर जाएंगे।
बिहार के सारण प्रमंडल अंतगर्त सीवान जिले में एक ऐसा गांव है जहां परिवार की संख्या से भी अधिक नाव है। इस गांव का नाम है तीर बलुआ गांव है। गंडक और सरयू नदी के तट पर स्थित इस गांव में परिवार की संख्या 120 है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इससे अधिक यहां नाव की संख्या है। इस गांव में तकरीबन 150 नाव है।
अब आप यह समझ रहे होंगे कि यह इस गांव में निवास करने वाले लोगों का शौक होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। यहां के लोगों के लिए नाव रखना शौक नहीं बल्कि मजबूरी है। यह गांव अपने आप में भी काफी अजूबा है। यहां के लोगों की पूरी दिनचर्या नाव पर ही व्यतीत हो जाता है। नहाने-धोने से लेकर बर्तन मांजने तक का काम नाव पर ही होता है।
तीर बलुआ गांव के एक निवासी ने बताया कि इस गांव में कुल परिवारों की संख्या 120 है। जबकि यहां नाव की 150 के आस-पास है। यानि कि यहां परिवार की संख्या से अधिक नावों की संख्या है। यहां के लोगों के पास बाइक, कार या घोड़ा सहित अन्य साधन भले ना मिले, लेकिन प्रत्येक घर में नाव जरूर मिल जाएगा। इस गांव के लोगों की डोर नाव बन गयी है। सभी दैनिक कार्य नाव के सहारे हीं होता है। चाहे वे नहाने, कपड़ा धोने, बर्तन मांजने, खेती बाड़ी करने जाना, पशुओं के चारा लाने, फसलों को लाने, जीविका के लिए मछली पकड़ने या फिर जीवन बचाना हो, सभी काम नाव से हीं होता है।
आखिर क्या है इसकी वजह ?
स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां प्रत्येक वर्ष नदियों में पानी बढ़ने से बाढ़ आ जाता है। इस वजह से नाव ही एक सहारा बचता है। अगर नदी के तट पर रिंग बांध बन जाए तो बाढ़ की समस्या से निजात मिलेगा और बाढ़ के साथ-साथ नाव रखने की समस्या से भी निजात मिल जाएगा। ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ के समय आपदा विभाग या जिला प्रशासन की ओर से कोई राहत नहीं दी जाती है। बाढ़ के दिनों में फसल भी पूरी तरीके से बर्बाद हो जाता है। खाने-पीने तक के लाले पड़ने लगते हैं। जैसे-तैसे व्यवस्था की जाती है। इसके बावजूद राहत सामग्री नहीं मिल पता है।
Jul 16 2024, 18:51