बदहाल हैं देश के 80 फीसदी सरकारी अस्पताल, सरकार ने खुद माना, क्या होगा सुधार?
#80ofthegovernmenthospitalsareinpoorcondition
स्वस्थ समुदाय किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है। यह एक सुविचारित संबंध है कि जैसे-जैसे किसी देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होता है, वैसे-वैसे उसके नागरिकों का स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। जो बात शायद कम स्पष्ट हो, वह यह है कि इसका विपरीत भी सच है - किसी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य में सुधार का सीधा परिणाम आर्थिक विकास हो सकता है, क्योंकि कार्यबल में प्रभावी गतिविधियों का संचालन करने में सक्षम अधिक लोग होंगे। आज हमारा देश विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है। वाबजूद ये कहना कि यहां 80 फीसदी सरकारी अस्पताल में ना तो नर्सें उपलब्ध हैं ना डॉक्टर कैसा लगेगा? शादय ये सुनने में अजीब लगे लेकिन ये सच है कि देश के देश के 80 फीसदी सरकारी अस्पतालों की हालत बहुत खराब है।
हाल के सालों में सरकार ने देश की ग्रामीण आबादी के लिये स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार के लिये कई पहलों की शुरुआत की है, जैसे “आयुष्मान भारत योजना” जिसका उद्देश्य 500 मिलियन से अधिक लोगों को स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना है। हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जिसमें अपर्याप्त वित्तपोषण, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी और अपर्याप्त आधारभूत संरचना शामिल हैं। देश में लगभग 80 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं सरकार द्वारा निर्धारित बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य कर्मी, उपकरण और अन्य मानकों के लिए न्यूनतम आवश्यक मानकों पर खरा नहीं उतरती हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा खुद सरकार द्वारा किए गए एक मूल्यांकन अभियान के जरिए हुआ है।
इस अभियान के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत आने वाले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों से उनके पास मौजूद डॉक्टरों, नर्सों या बुनियादी चिकित्सा उपकरणों और अन्य सुविधाओं की संख्या जैसे विवरण ओपन डाटा किट के जरिए ‘इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड’ के पोर्टल पर भरने के लिए कहा गया था। पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, एनएचएम के 200988 स्वास्थ्य केंद्रों में से 43,140 केंद्रों ने ही जानकारी उपलब्ध करवाई है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जिला अस्पताल से लेकर उप स्वास्थ्य केंद्रों में 80 फीसदी स्वास्थ्य केंद्रों (35051) के पास इतनी भी सुविधाएं नहीं हैं कि वे ‘इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड’ (आइपीएचएस) पर खरें उतरें।
जानकारी देने वाले 40,451 अस्पतालों में से केवल 8,089 अस्पताल ही आइपीएचएस के मानकों पर खरे उतरे।आसान भाषा में कहें तो पूरे देश में मात्र 8089 केंद्रों के अस्पतालों में जरूरी मात्रा में बेड, दवाएं, जांच सुविधाएं, वांछित कर्मी, पंखे, शौचालय, पीने का पानी, एसी आदि सुविधाएं थीं। रिपोर्ट के मुताबिक, 42% अस्पतालों ने आइपीएचएस के मानकों पर 50% से भी कम अंक हासिल किए। बाकी के 15,172 अस्पतालों को 50 से 80% के बीच अंक मिले। सरकार ने यह सारी जानकारी आइपीएचएस के डैशबोर्ड पर सार्वजनिक कर दी है।
100 दिन में 70,000 अस्पतालों बनेंगे बेहतर?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह रिपोर्ट इसलिए तैयार की गई है ताकि यह पता चल सके कि अस्पतालों में क्या कमियां हैं। उन्होंने बताया, 'हमारा मकसद यह सुनिश्चित करना है कि सभी सरकारी अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं, उपकरण और डॉक्टर मौजूद हों ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके।' केंद्र का लक्ष्य है कि नई सरकार बनने के 100 दिनों के भीतर 70,000 सरकारी अस्पतालों को आइपीएचएस के मानकों के अनुसार बनाया जाए। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'हम राज्यों को अस्पतालों में सुधार के लिए पूरी मदद दे रहे हैं। हमारा मकसद सरकारी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
इस तरह के हैं सुविधा मानक
जरूरी सुविधाएं
• प्रति 1000 की आबादी पर अस्पताल में एक बेड अनिवार्य, 2 बेड वांछित
• रोगी के प्रतीक्षा वाले क्षेत्र में अनिवार्य सुविधाएं जैसे पंखा, स्वच्छ पेयजल, महिला और पुरुषों के लिए अलग स्वच्छ शौचालय
वांछनीय सुविधाएं– एयर-कंडीशनर, प्रतीक्षा क्षेत्र में टेलीविजन/एलसीडी जिसमें सुविधा-संबंधी जानकारी, स्वास्थ्य-संबंधी जानकारी प्रदर्शित हो।
फंड की कमी या लापरवाही?
6 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में आश्वासन दिया गया था कि देश की जीडीपी की 2.5 प्रतिशत रकम स्वास्थ्य पर खर्च की जाएगी। उसका क्या हुआ? स्वास्थ्य के लिए सरकारी फंड कम है या जानबूझकर उदासीनता या लापरवाही बरती जा रही है? नियमानुसार सरकारी अस्पतालों का 60 प्रतिशत खर्च केंद्र सरकार उठाती है व शेष 40 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार को उठाना पड़ता है।
Jul 04 2024, 09:54