थाईलैंड ने चावल निर्यात को लेकर भारत को घेरा, विश्व व्यापार संगठन की बैठक में लगाए ये आरोप, दोनों देशों के बीच बढ़ा तनाव
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विश्व व्यापार संगठन (WTO) की बैठक में थाईलैंड के राजदूत ने भारत के खिलाफ बयान देकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। विश्व व्यापार संगठन की बैठक में थाईलैंड ने चावल के मुद्दे पर भारत को घेरने की कोशिश की है। भारत ने इस पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है। इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव पैदा हुआ है।
डब्ल्यूटीओ में थाईलैंड की राजदूत पिम्चनोक वोंकोरपोन पिटफील्ड ने भारत पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए सब्सिडी वाले चावल बांटने पर आपत्ति जता दी। थाई राजदूत ने कहा कि भारत सब्सिडी वाला चावल का उपयोग करके एक्सपोर्ट मार्केट पर हावी हो जाता है।
भारत ने थाई राजदूत के इस बयान पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया और थाई राजदूत की मौजूदगी वाले कुछ सामूहिक चर्चाओं (ग्रुप डिस्कशंस) में भाग लेने से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ, अमीर देशों ने थाई राजदूत की टिप्पणी का सराहना कर दी तो भारत ने उनसे भी अपनी कड़ी नाराजगी का इजहार किया।
भारतीय अधिकारियों ने थाई राजदूत के बयान पर असंतोष व्यक्त करते हुए थाई सरकार को अपनी चिंता से अवगत करा दिया है। भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इस मुद्दे को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई और यूरोपीय संघ के कार्यकारी उपाध्यक्ष वाल्डिस डोम्ब्रोव्स्की के साथ भी उठाया है। उन्होंने अपनी शिकायत में इस बात पर जोर दिया कि भारत के के लिए ऐसी भाषा और ऐसा व्यवहार स्वीकार नहीं है।
दरअसल, थाईलैंड वर्षों से अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की बोली बोलता रहा है। ये अमीर देश अपने हित साधने के लिए थाइलैंड को आगे कर देते हैं, जो दस साल से भी ज्यादा समय से पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के लिए एक स्थायी समाधान का रास्ता निकालने नहीं दे रहा है।
वैश्विक बाजार में भारतीय चावल की हिस्सेदारी बढ़ रही है। विकसित देश आरोप लगाते हैं कि भारत सरकार किसानों से सब्सिडी पर चावल खरीदकर उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचती है जिससे वैश्विक व्यापार में असंतुलन पैदा हो रहा है। हालांकि, वास्तविकता यह नहीं हैं। अधिकारियों ने बताया कि कैसे डब्ल्यूटीओ के नियम इस तरह से बनाए गए हैं कि उनसे अमीर देशों के हित सधें। उन्होंने बताया कि सब्सिडी की गणना के लिए संदर्भ मूल्य 1986-88 की अवधि के स्तर पर तय किया गया है। इसलिए 3.20 रुपये प्रति किलो की दर से ऊपर की कीमत को सब्सिडी मान ली जाती है।
35 साल पुराने इस 'गलत गणना' की वजह से भारत चावल के उत्पादन मूल्य के 10 फीसदी सब्सिडी सीमा को पार करके दोषी बन जाता है। हालांकि भारत की इस 'गलती' को लेकर कोई भी देश WTO में उसे दोषी नहीं ठहरा सकता है क्योंकि एक दशक पहले ही सदस्य राष्ट्रों ने सहमति व्यक्त की थी कि जब तक एक नया फॉर्मूला स्थापित नहीं हो जाता तब तक वे किसी पर कोई नियम नहीं थोपेंगे।
दरअसल, जनता के लिए खाद्य भंडारण पर सीमा निर्धारित है। अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इसे लेकर स्थायी समाधान को कई बार रोका है। भारत खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर देश में कुल चावल उत्पादन का क़रीब 40 प्रतिशत ख़रीदता है। बाक़ी उत्पादन बाज़ार मूल्य पर बिकता है। भारत ने घरेलू बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए धीरे-धीरे चावल के निर्यात पर रोक लगाई थी। 2022 में जब घरेलू बाज़ार में चावल के दाम बढ़ रहे थे तब भारत ने धीरे-धीरे पाबंदी लगानी शुरू की। पहले टूटे हुए चावल पर रोक लगाई फिर सफेद चावल के निर्यात को रोका। चावल की कुछ क़िस्मों पर निर्यात कर लगाया गया। इसके अलावा ग़ैर बासमती चावल पर भी निर्यात कर लगाया गया, ताकि घरेलू बाज़ार में क़ीमतों को नियंत्रित किया जा सके। सरकार ने अपने भंडार से भी कम क़ीमत पर चावल की बिक्री की। जब भारत ने ये प्रतिबंध लगाए थे तब थाईलैंड ने इसे एक मौक़े की तरह देखा था और थाईलैंड सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री ने कहा था कि थाईलैंड इस स्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगा। हालाँकि, पिछले कुछ सालों में भारत का चावल का निर्यात बढ़ा है। भारत विश्व में चावल के निर्यात में 40 प्रतिशत तक चला गया था। थाइलैंड भी एक बड़ा चावल निर्यातक है, थाईलैंड को लगता है कि भारत उसके बाज़ार पर कब्ज़ा कर रहा है।
Mar 02 2024, 11:38