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मांझी नैया ढूंढे किनारा संदर्भ : सीएम पद का मांझी को मिल रहा आफर ?
आज राजनीति का उपयोग अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ज्यादा किया जाने लगा है । आपकी महत्वाकांक्षा जहां आहत हुई, विरोध शुरू हो जाता है। राजनीति का स्वरूप ऐसा हो गया है कि आज गठबंधन की सरकार चलाना मेंढ़क तौलने के समान है। जिसकी अभिलाषा पूरी नहीं होती वह छलांग मारने को तैयार रहता है।
बिहार में एनडीए की सरकार बन गयी। अब 12 फरवरी को सीएम नीतीश कुमार को विश्वास मत में हासिल करना है । सत्ता पक्ष ( एनडीए) और इंडिया गठबंधन के संख्या बल में अंतर ज्यादा नहीं है । इसलिए सभी दलों को अपने विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती है।
अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस के सामने चुनौतियां कुछ ज्यादा ही हैं। कांग्रेस ऐसी स्थिति से एक बार गुजर चुकी है।  इस बार भी डोरे डाले जा रहे हैं । इंडिया गठबंधन से जदयू के अलग होने के बाद कांग्रेस बिहार में राजद से अधिक सीटों की मांग कर सकती है।
वहीं मंत्रिमंडल विस्तार के लिए भाजपा - जदयू में मंथन हो रहा है । वहीं जीतन राम मांझी ने भी एक और पद की मांग कर दी है । ऐसे भी मंत्रिमंडल का विस्तार विश्वास के बाद ही होने की उम्मीद है । कांग्रेस जीतन राम मांझी पर चारा डाल रही है । उन्हें सीएम पद का ऑफर दिया जा रहा है।  हालांकि मांझी कह चुके हैं कि वह एनडीए छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे। दूसरी ओर इस मसले पर राजद बिल्कुल चुप है।
दूसरी ओर पड़ोसी राज्य झारखंड में भी सियासी ड्रामा हर पल बदल रहा है।शपथ ग्रहण के बाद मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अपने समर्थक विधायकों को बिखरने से बचाने के लिए उन्हें हैदराबाद में जन्नत दिखायी जा रही है।
फरारी की सवारी रास नहीं आयी हेमंत को संदर्भ : झारखंड का सियासी ड्रामा
राजनीति क्या नहीं दिखाती। सीएम तेरह दिन की न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। वहीं झारखंड में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है। घोषित सीएम चंपई सोरेन शपथ ग्रहण करने के लिए राज्यपाल से गुहार पर गुहार लगा रहे हैं। इसी कड़ी में राज्यपाल ने चंपई सोरेन को देर रात राजभवन बुलाया और सरकार बनाने का न्योता दिया। उन्होंने बताया कि वे शुक्रवार को 12:30 बजे शपथ लेंगे।
सोरेन परिवार में कुर्सी पर रहते हुए फरार हो जाने की शायद पुरानी परंपरा है। तभी तो झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री 41 घंटे तक लापता रहे । राज्य की एजेंसियां भी यह पता नहीं लगा पायी कि हेमंत सोरेन कहां हैं। आखिर सीएम ने ऐसा कदम क्यों उठाया । यह रहस्य ही है ।  पर यह घटनाक्रम पहली बार नहीं हुआ है। 
इससे पहले हेमंत सोरेन के पिता श्री भी यह कारनामा कर चुके हैं । शिबू सोरेन मनमोहन सिंह सरकार में कोयला मंत्री थे । 17 जुलाई , 2004 में झारखंड के एक कोर्ट ने 1975 में हुए चिरुडीह नरसंहार ( जिसमें 13 बेकसूर लोग मारे गये थे। ) में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया था । इसकी भनक लगते ही कोयला मंत्री पद पर रहते हुए भी शिबू सोरेन फरार हो गये थे । वे 30 जुलाई को सामने आये। ।
एक- दो नहीं दस-दस समन ईडी ने जारी किये , मगर हेमंत सोरेन का ईडी के समक्ष उपस्थित नहीं हो कर फरार हो जाना चोर की दाढ़ी में तिनका  साबित करता है।
एक बात समझ में नहीं आ रही कि एक तरफ भावी मुख्यमंत्री चंपई सोरेन राजभवन में सरकार बनाने का दावा करते  हैं कि उन्हें 43 विधायकों का समर्थन है और दूसरी तरफ सभी विधायकों को चार्टड प्लेन से हैदराबाद चारमीनार दिखाने भेजा जा रहा है । क्या जेएमएम को विधायकों के छिटकने का डर सता रहा है।
हेमंत सोरेन  को न्यायिक हिरासत में 13 फरवरी तक बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा होटवार भेजा गया है। राज्यपाल की चुप्पी कुछ अलग ही इशारा करती दिखायी दे रही है। झारखंड में भी बिहार जैसा ही कुछ खेला होने के आसार नजर आ रहे हैं।
झारखंड का सियासी ड्रामा हर पल बदल रहा है। विधायकों के चारमीनार दर्शन की फ्लाइट फिलहाल खराब मौसम के कारण रद्द कर दी गयी। सभी विधायकों को एक घंटा प्लेन में बैठा कर वापस सर्किट हाउस ले जाया गया। जेएमएम और कांग्रेस दोनों को अपने विधायकों को एकजुट रखना होगा।
सीएम की कुर्सी ने सोरेन परिवार में हलचल मचा दी है। लालू प्रसाद की तरह हेमंत सोरेन भी अपनी पत्नी कल्पना को सीएम बनाना चाहते थे। मगर परिवार में ही उनका विरोध होने पर चंपई सोरेन का नाम प्रस्तावित किया गया था।
चल अकेला, चल अकेला तेरा गठबंधन पीछे छुटा चल अकेला संदर्भ : इंडिया गठबंधन का निकला दिवाला
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। कांग्रेस की हालत बिल्ली की तरह ही हो गयी है। राम लला  प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र सोनिया गांधी द्वारा ठुकराना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। वहीं उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे नरेंद्र मोदी की तुलना पुतिन से करते हुए जनता को समझा रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद देश में फिर चुनाव नहीं होने वाला। कोई  दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति किम  से कर रहा है। इसका मतलब यही निकलता है कि कांग्रेस जान चुकी है कि एनडीए 400 प्लस सीटों पर विजय प्राप्त कर सकता है। ये सब कांग्रेस की हताशा का परिणाम लग रहा है।
इंडिया गठबंधन में बचे दल अब यह मान चुके हैं कि एनडीए को रोकना उनके बस की बात नहीं। गठबंधन के सृजन कर्ता नीतीश कुमार के पाला बदलते ही उसके कार्यालय में लगता है ताला लग गया है। इधर,  यूपी में सपा ने 16 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर कांग्रेस को आइना दिखा दिया है।
दूसरी ओर कांग्रेस युवराज राहुल गांधी अपनी यात्रा के माध्यम एक वर्ग विशेष को साध रहे हैं। वहीं गठबंधन के सभी दल कांग्रेस को अछूत मान रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस, आप, जदयू और सपा जैसी पार्टियों के गठबंधन से अलग होने के बाद अब राजद, कांग्रेस व वामदल  क्या करेंगे। गठबंधन में अब जान नहीं बची है। कभी चुनाव के बाद गठबंधन का चेहरा चुने जाने के उद्देश्य से एकत्रित हुआ भानुमती का कुनबा समय के साथ बिखरता चला गया।
आज सभी एकला चलो की नीति पर चल पड़े हैं।
और अंत में इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे की चिंता अबतक किसी को भी नहीं दिखती। एक वर्ग विशेष के क्षेत्रों में ही राहुल बाबा अपनी मोहब्बत की दुकान का प्रचार करने से फुर्सत नहीं, लालू एंड फैमिली ईडी के चक्कर में पड़े हुई है। ऐसी स्थिति में एनडीए को विपक्ष की तरफ से कोई टक्कर नहीं दिखायी पड़ रही है।
बिछड़े सभी बारी - बारी , देखी दलों की यारी संदर्भ : इंडी गठबंधन में अब सिर्फ भ्रष्टाचारी
अब कोई गिरगिट से तुलना करे या पलटू कुमार कहे बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में बन  ही गयी। इससे जहां नीतीश अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे , वहीं एनडीए की सरकार बिहार में काबिज हो गयी। लेकिन इस बार नीतीश को फ्री हैंड नहीं मिलेगा। भारतीय जनता पार्टी एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम कर रही है। मंत्रिमंडल का गठन भी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर जातीय समीकरण के तहत किया गया है।
बीजेपी की सारी कवायद 2024 के लोकसभा चुनाव में 40 सीटों को लेकर की गयी है।  जननायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक था। इसका फायदा उसे अवश्य मिलेगा। उसकी 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव पर भी नजर है।
वहीं दूसरी ओर जिस उद्देश्य से इंडिया गठबंधन का गठन किया गया था,वह पूरा होता नहीं दिख रहा। साथ ही घटक दलों के नेताओं की बयानबाजी के साथ सीटों की शेयरिंग में हो रही देरी और तृणमूल कांग्रेस व आप के अलग-अलग हो जाने से गठबंधन का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है। शेष बचे दल इस राजनीतिक हलचल का ठिकरा कांग्रेस पर फोड़ रहे हैं। गठबंधन में अब सिर्फ भ्रष्टाचारी बच गये हैं।
दूसरी ओर लालू प्रसाद का खेल नीतीश कुमार ने ऐन वक्त पर बिगाड़ दिया। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद इस घटनाक्रम से हैरान हैं। वे शांत बैठने वाले नहीं। वे ललन सिंह ग्रुप के कुछ विधायकों को प्रलोभन देने का प्रयास कर सकते हैं।  दूसरी ओर तेजस्वी यादव को बार बार खेला होने की बात कह रहे हैं।  वे शायद कांग्रेस या जदयू के विधायकों पर चारा फेंक रहे हैं।
इस तरह  की स्थिति आने पर एनडीए का दूसरा प्लान भी है। वैसे लगता है कि इसकी जरूरत शायद नहीं पड़े। वहीं भाजपा से भी कांग्रेसी विधायकों के संपर्क में होने की हवा में चल रही है। भाजपा किसी भी परिस्थिति का सामना करने को तैयार है।
और अंत में नीतीश कुमार को ममता बनर्जी को धन्यवाद कहना चाहिए क्योंकि अगर उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव गठबंधन के अध्यक्ष पद के लिए न रखा होता तो नीतीश का ध्यान गठबंधन में ही लगा रहता। इस घटनाक्रम के बाद ही वे गठबंधन में अपने को कंफर्ट महसूस नहीं कर रहे थे। वहीं दूसरी ओर लगता है कि अब लालू प्रसाद परिवार पर परेशानी की बारिश होने वाली है। वहीं एनडीए शासित राज्यों की संख्या भी अब 17 हो गयी है।

बिहार में भी अब राम राज संदर्भ : नीतीश कुमार बनेंगे नौंवी बार सीएम
राजनीति एक ऐसी काजल की कोठरी है, जिसमें से निकलने के बाद भी कपड़े पर दाग नहीं लगता है। अर्थात कोई किसी का पर्मानेंट दुश्मन नहीं होता। परिस्थितियां दलों के इधर-उधर होने का कारण बनती हैं।
राजद के साथ साझा सरकार जब तक चल रही थी, सब कुछ ठीक था। मगर जैसे ही नीतीश को लगा कि उनकी पार्टी पर ही खतरा उत्पन्न हो रहा है, उन्होंने राजद से अलग होने का निर्णय  ले लिया।
दूसरी ओर राजद के साथ आने के बाद बिहार में फिर जंगल राज वाली स्थिति दिखायी पड़ रही थी। आम जनता भी ला एंड आर्डर में फर्क महसूस कर रही थी। बड़े भाई लालू प्रसाद भी जानते थे कि छोटे भाई के सहारे ही उनके पुत्र मोह की लालसा पूरी हो सकती थी। मगर रोहिणी आचार्य प्रकरण ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद नीतीश ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। उनके खिलाफ साजिश रची जा रही थी।
28 जनवरी,  2024 को बिहार में नीतीश कुमार एनडीए के साथ सरकार बनायेंगे। आज नीतीश कुमार एनडीए विधायक दल के नेता चुने जायेंगे और शाम सात बजे वे अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ ग्रहण करेंगे। सम्राट चौधरी बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गये। नीतीश कुमार के साथ ही सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा डिप्टी सीएम पद की शपथ लेंगे।
और अंत में बिहार में हुए सियासी परिवर्तन के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया जा रहा है।
आज की रात बड़ी भारी है संदर्भ : संयोजक नहीं बनना नीतीश के लिए रहा फायदेमंद
बिहार में चल रही सियासी हलचल का पटाक्षेप कुछ घंटों में हो जायेगा। इसका फायदा केवल और केवल दो पार्टियों को होगा। पहला भाजपा को, वह बिहार को साधना चाहती थी, जो हो गया। दूसरा जदयू, नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गये। लेकिन भाजपा इस बार फूंक - फूंक कर और सोच-समझकर ही कदम उठा रही है।
दूसरी ओर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की बेचैनी उनके पुत्र मोह को उजागर कर रही है। वे अब दबाव की राजनीति पर उतर आये हैं। लेकिन लगता है अब बाजी उनके हाथों से निकल चुकी है।
वहीं कांग्रेस को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह बिहार के इस हालात पर क्या करे। कांग्रेस के बड़े नेता और लालू प्रसाद फोन पर एक बार बात करने को लालायित हैं लेकिन नीतीश कोई भाव नहीं दे रहे। इससे सारा मामला साफ है कि नीतीश कुमार भाजपा के साथ सरकार  बनायेंगे और नौवीं बार बिहार के सीएम बनेंगे।
भाजपा एक सोची-समझी रणनीति पर काम कर रही है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है वहां एनडीए की सरकार बनाना चाहती है। उदाहरण महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान है। अब इसमें बिहार का नाम और जुड़ गया है।
बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में एनडीए की सरकार चाहती थी। भानुमती के कुनबे को एकजुट करने वाले नीतीश जब गठबंधन में पीएम का चेहरा नहीं बन पाने से नाराज दिखे, तभी बीजेपी ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिये।
और अंत में 2024  की शुरुआत बीजेपी के लिए बहुत ही शुभ साबित हो रही है। पहले 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य और अलौकिक मंदिर में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा, 24 जनवरी को जन नायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा और अब 28 जनवरी को बिहार में एनडीए की सरकार ( संभावित) ।
तेजस्वी का सीएम का सपना भी टूटा संदर्भ : खंड-खंड इंडिया गठबंधन
कांग्रेस खुद तो डूबेगी औरों को भी ले डूबेगी। कांग्रेस की सीटों की शेयरिंग में की जा रही लेट लतीफी के कारण इंडिया गठबंधन आखिर खंड - खंड हो ही गया। पहले तृणमूल कांग्रेस, फिर आप और अब जदयू। गठबंधन में बचे दल इस राजनीतिक हलचल का आरोप कांग्रेस पर लगा रहे हैं। कहा जाता है कि राजनीति में एक सप्ताह बहुत लंबा समय माना जाता है अर्थात माननीय कभी इधर तो कभी उधर।
आज पुराने सारे गिले-शिकवे भुलाकर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गलबहियां डालेंगे ।
इधर राजद भी अपनी सारी कोशिशों को अंजाम दे रहा है। लग रहा है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद का दिली सपना  ( पुत्र को सीएम देखना ) मुंगेरीलाल के हसीन सपने के समान हो गया।  राजद और कांग्रेस दोनों परिवारवाद की पोषक पार्टियां रही हैं । राजद को उसका परिवारवाद ले डूबा।जिस प्रकार कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, उसी प्रकार राजद भी कांग्रेस के नक्शे कदम पर चल रहा है।
वही इंडिया गठबंधन में नीतीश कंफर्ट महसूस नहीं कर रहे थे। गठबंधन का पीएम का चेहरा नहीं बन पाने के बाद नीतीश को कुर्सी बचाने की चिंता होने लगी। लालू प्रसाद की चाल सफल होती इससे पहले नीतीश कुमार ने भाजपा का दामन थामना श्रेयस्कर समझा। ये बाद की बात है कि उन्हें इस बार कुर्सी मिलेगी या नहीं। नीतीश कुमार इस घटनाक्रम की पटकथा पहले ही लिख चुके थे। वे  राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर रुके हुए थे। 
दूसरी और बीजेपी इस इसी शर्त पर एनडीए में उनको वापस ले सकती है जब 2024 का लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव तक नीतीश कोई खेल नहीं करेंगे।  साथ ही यह भी हो सकता है कि इस बार यानी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को ध्यान में रखकर भाजपा का मुख्यमंत्री बने और जदयू  का डिप्टी सीएम हो। यह राजनीति है। कभी भी,कहीं भी, कुछ भी हो सकता है। भाजपा की नजर अब बिहार पर है।

राम लला की लहर, विपक्ष होगा किधर संदर्भ : बिहार में सियासी पारा हाई
नीतीश कुमार अपने ऊपर आने वाले किसी भी खतरे को भांपने में माहिर हैं। पार्टी में टूट की आशंका देख वे ललन सिंह से इस्तीफा लेकर स्वयं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये। वहीं दूसरी ओर अयोध्या में भव्य और अलौकिक मंदिर में राम लला के विराजमान होने के बाद इंडी गठबंधन में शामिल नीतीश कुमार समझ चुके हैं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा राम लहर पर सवार होकर 415 का आंकड़ा पार कर सकती है। राम मंदिर निर्माण का भाजपा का वादा था, जिसे उसने पूरा कर दिया। इसलिए राम लहर के आगे कोई भी गठबंधन सफल नहीं हो पायेगा।
बिहार में जारी उठा - पटक के पीछे सिर्फ कुर्सी का ही खेल है। नीतीश कुमार कुर्सी मोह के कारण पलटू कुमार बन गये। वहीं लालू प्रसाद भी पुत्र मोह से ग्रस्त हैं। पर इस बार भी तेजस्वी के सामने आ रही कुर्सी में उनकी बहन रोहिणी ने लात मारकर दूर कर दिया।
बिहार में राजनीतिक हलचल काफी बढ़ गयी है। सर्द मौसम में सियासी पारा हाई है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपने पुत्र को ऐन केन प्रकारेण मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। इसलिए राजद की ओर से हम और ओवैसी की पार्टी को चारा फेंका जा रहा है।
लेकिन राजद के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है। वहीं अगर नीतीश एनडीए में शामिल होते हैं तो उनकी कुर्सी बच सकती है।  भाजपा के 78, नीतीश कुमार के 45,  हम के चार और एक निर्दलीय को मिलाकर नीतीश के पास कुल विधायकों की संख्या 128 होती है। यानी बहुमत के लिए 122 के जादुई आंकड़े से 6 ज्यादा। वहीं राजद के पास 79 , कांग्रेस 19,वाम दल 16 । इस तरह राजद के पास जादुई आंकड़ा 114 पर ही अटक जा रहा है । इसलिए राजद द्वारा अब ओवैसी की पार्टी और हम को डिप्टी सीएम का प्रलोभन भी दिया जा रहा है। लेकिन राजद की दाल गलती नजर नहीं आ रही है। कारण राजद की प्रवृत्ति परिवारवाद की है।
और अंत में शनिवार को नीतीश कुमार राज्यपाल से मिलने वाले हैं। क्या वे विधानसभा भंग करने की अनुशंसा करेंगे या अपना इस्तीफा देंगे। वहीं शुक्रवार को राजभवन में हुई टी पार्टी में तेजस्वी यादव शामिल नहीं हुए।
लोकसभा चुनाव के साथ बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट संदर्भ : घर में आग लगी घर के चिराग से
लालू प्रसाद की पुत्री रोहिणी आचार्य के पोस्ट से नाराज होने के कारण इंडिया गठबंधन से अलग हो सकते हैं नीतीश कुमार। ताजा प्रकरण में  जिस तरह का सियासी पारा पटना और दिल्ली में चढ़ा हुआ दिखायी दे रहा है उससे लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव होने की आहट भी सुनायी पड़ ‌रही है। भाजपा भली भांति जानती है कि उसके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को विजय दिला सके। इसलिए बिहार में सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार का साथ जरूरी है।
दूसरी ओर लालू प्रसाद यादव की दिली इच्छा ( तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनते देखना) लगता है उनके जीवनकाल में पूरी नहीं हो पायेगी। ऐसा नहीं है कि तेजस्वी यादव को मौका नहीं मिला। मौके मिले, दो- दो बार। मगर वो उसका फायदा नहीं उठा पाये। इस बार बहन रोहिणी ने उनकी ओर आती कुर्सी को दूर कर दिया है।
कर्पूरी ठाकुर जन्म शताब्दी समारोह में नीतीश कुमार के परिवारवाद पर दिये गये बयान के जवाब में लालू प्रसाद की पुत्री रोहिणी आचार्य के किये गये तीन पोस्ट ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। पोस्ट से तिलमिलाये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंडी गठबंधन से दूरी बनानी शुरू कर दी है। उन्होंने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने से इंकार कर दिया है।
क्या फिर पलटी मारेंगे : इंडी गठबंधन के सूत्रधार नीतीश अपनी पूरी ताकत लगा कर सभी को एकजुट करने में सफल हुए। मगर घटक दलों की कारस्तानी से इंडी गठबंधन में बिखराव शुरू हो गया। पहले मायावती ने साफ कह दिया कि वह गठबंधन में शामिल नहीं होंगी। इसके बाद पं बंगाल में ममता बनर्जी ने भी एकला चलो की घोषणा कर दी। फिर पंजाब में आप भी अकेले चुनाव लड़ेगा।  बसपा, तृणमूल कांग्रेस, आप तो गठबंधन से अलग हो गये। अब रोहिणी आचार्य प्रकरण के बाद नीतीश कुमार का मन अब राजद के साथ नहीं मिल पा रहा है। इस बीच बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल तेज हो गयी है। बिहार के सर्द मौसम में सियासी हलचल तेज होने से माहौल बहुत ही गरम हो गया है। दूसरी ओर इतनी सारी कवायद हो रही है मगर न तो जदयू और न राजद की ओर से किसी तरह का कोई बयान सामने नहीं आया है।
और अंत में जिस तरह का घटनाक्रम बिहार में घट रहा है उससे तो नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने की उम्मीद दिखने लगी है। वहीं दूसरी ओर लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार में विधानसभा चुनाव भी हो तो कोई ताज्जुब नहीं।
इंडी गठबंधन को न माया मिली न ममता संदर्भ : पं बंगाल में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी तृणमूल कांग्रेस
यूपीए का नया अवतार इंडिया गठबंधन जब से अस्तित्व में आया है, तभी से कुछ न कुछ होता आ रहा है। कांग्रेस और राजद को गठबंधन में सीटों की शेयरिंग में हो रही देरी की कोई चिंता नहीं है। लगता है गठबंधन में शामिल घटक दल एक - दूसरे से धीरे-धीरे छिटक रहे हैं। इंडिया गठबंधन खंड-खंड होता दिख रहा है।
यूपी में मायावती की एकला चलो के बाद आज पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने इंडी गठबंधन को तगड़ा झटका देते हुए अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वहीं पंजाब में आप कांग्रेस के साथ समझौता न कर अकेले चुनाव लड़ेगा।
ममता ने यह फैसला कांग्रेस द्वारा पश्चिम बंगाल में 10 से ज्यादा सीटों की मांग को देखते हुए किया है, जबकि ममता केवल दो सीटें ही कांग्रेस को देने को तैयार हैं।  हाल के दिनों में जो घटनाक्रम घट रहे हैं, उससे तो लगता है कि ममता पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश बनाना चाहती हैं। क्योंकि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुसलमान पं बंगाल में शरणार्थी के रूप में आ कर बस रहे हैं। और तृणमूल कांग्रेस के ये स्थायी वोटर बन गये हैं। ममता ने बाकायदा उन्हें आधार कार्ड, वोटर कार्ड आदि सब कुछ उपलब्ध करा दिया है। ये ममता के इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
तृणमूल कांग्रेस का स्वरूप धीरे-धीरे राजद वाला ही बनता जा रहा है।  लालू प्रसाद के 15 साल के शासन में बिहार में जंगल राज कायम हो गया था, उसी प्रकार पं बंगाल में भी एक तरह से जंगल राज ही कायम होता जा रहा है। इडी के अधिकारियों पर टीएमसी समर्थकों का हमला इसका ताजा उदाहरण है।
इंडिया गठबंधन में जितनी भी पर्टियां शामिल हैं उनके प्रमुखों के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई ना कोई केस जरूर चल रहा है। आप के केजरीवाल हों या राजद के लालू प्रसाद,  तृणमूल की ममता हों या यूपी के अखिलेश यादव सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुके हैं। इंडिया गठबंधन में शामिल दल अपने - अपने स्वार्थ के कारण ही इकट्ठे दिख रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऐसे ही अवसरवादी लोगों के लिए श्री रामचरितमानस में लिखा है-
      स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति । सुर,नर , मुनि सबकी यहि रीति।।
इंडी गठबंधन जो कुछ भी हो रहा है, उससे भाजपा को ही फायदा होता दिख रहा है।  गठबंधन में हो रही उठा - पटक का ठिकरा कांग्रेस पर ही फूटेगा। क्योंकि कांग्रेस के युवा नेता राहुल बाबा को सीटों की शेयरिंग पर चिंता ही नहीं है।  ममता के गठबंधन से हटने का असर बिहार और यूपी पर भी पड़ सकता है। इंडी गठबंधन से धीरे-धीरे पार्टियां छिटकना शुरू कर रही हैं।  सबसे पहले नीतीश कुमार गठबंधन का चेहरा नहीं बन पाने के कारण संयोजक नहीं बने। उनका मन डोल रहा है। और अब ममता का भी मोह भंग हो गया, क्योंकि उनके मन में भी इंडी गठबंधन का चेहरा बनने की ललक थी,  मगर जब उनके नाम का प्रस्ताव किसी ने नहीं किया तो उन्होंने एकला चलने का फैसला ले लिया। इसके बाद नीतीश क्या करवट लेंगे यह तो समय ही बतायेगा। कर्पूरी ठाकुर शताब्दी समारोह के अवसर पर नीतीश कुमार की परिवार वाद पर की गयी टिप्पणी के माध्यम से राजद पर कटाक्ष किया है। जदयू और राजद दोनों पसोपेश में हैं । उन्हें अपने विधायकों को एकजुट रखना होगा क्योंकि सत्ता का नशा सिर पर चढ़कर बोलता है।
और अंत में ममता के अकेले चुनाव लड़ने का फायदा भाजपा को मिल सकता है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ तृणमूल कांग्रेस का संबंध नहीं रहेगा यानी सभी पार्टियां अकेले चुनाव लड़ेंगी।