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ज्ञानवापी में अभी नहीं रुकेगी पूजा ! इलाहाबाद HC से भी मुस्लिम पक्ष को झटका, ASI रिपोर्ट देख जिला कोर्ट ने दी थी अनुमति

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज शुक्रवार (2 फ़रवरी) को 31 जनवरी के जिला अदालत के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें हिंदू पक्षों को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में प्रार्थना और पूजा करने की अनुमति दी गई थी। उच्च न्यायालय ने आज मुस्लिम पक्ष (जिसने जिला अदालत के आदेश को चुनौती दी थी) को 17 जनवरी के आदेश को चुनौती देने के लिए अपनी याचिका में संशोधन करने के लिए 6 फरवरी तक का समय दिया, जिसके परिणामस्वरूप 31 जनवरी का आदेश पारित किया गया था।

ऐसा होने पर मामले की अगली सुनवाई हो सकेगी। इस बीच, कोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार (उसके महाधिवक्ता द्वारा प्रतिनिधित्व) को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि ज्ञानवापी क्षेत्र में कानून और व्यवस्था बनी रहे। अदालत इस मामले में वाराणसी अदालत के 31 जनवरी के आदेश को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने आज इस मामले की सुनवाई की। 

शुरुआत में, उन्होंने पाया कि मुस्लिम पक्षों ने 17 जनवरी को पारित पहले के आदेश को अभी तक चुनौती नहीं दी है, जिसके तहत एक जिला मजिस्ट्रेट को रिसीवर के रूप में नियुक्त किया गया था। इस रिसीवर को बाद में 31 जनवरी को मस्जिद के तहखाने में हिंदू प्रार्थनाओं के संचालन को सुविधाजनक बनाने का आदेश दिया गया था। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने मस्जिद समिति को संबोधित करते हुए कहा कि, "आपने जिला मजिस्ट्रेट को रिसीवर नियुक्त करने के 17 जनवरी के आदेश का विरोध नहीं किया है। यह (31 जनवरी का आदेश) एक परिणामी आदेश है...अपनी अपील में संशोधन करें।" न्यायाधीश ने यह भी सवाल किया कि क्या 31 जनवरी का आदेश पारित करने से पहले वाराणसी अदालत ने मस्जिद समिति को सुना था। कोर्ट ने कहा कि जब तक जिला मजिस्ट्रेट को कोर्ट रिसीवर नियुक्त करने के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती नहीं दी जाती, तब तक मस्जिद समिति की चुनौती पर सुनवाई करना संभव नहीं होगा।

मस्जिद समिति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि, "मामले में तात्कालिकता है। उन्होंने पहले ही व्यास तहखाना (दक्षिणी तहखाने) में पूजा शुरू कर दी है।" नकवी ने यह भी तर्क दिया कि जिला अदालत के 31 जनवरी के आदेश को जल्दबाजी में लागू करने से अराजकता पैदा हुई है। उन्होंने बताया कि पूजा की व्यवस्था के लिए जिलाधिकारी को सात दिन का समय दिया गया था। नकवी ने कहा, "हालांकि, डीएम ने सात घंटे के भीतर प्रक्रिया शुरू कर दी...इससे आसपास के इलाके में अराजकता फैल गई।" नकवी ने कहा कि 17 जनवरी के आदेश को चुनौती देने के लिए मस्जिद समिति की दलीलों में भी संशोधन किया जाएगा। इस दौरान उन्होंने कोर्ट से 31 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया। इस सुझाव का हिंदू पक्ष ने विरोध किया, जिसका प्रतिनिधित्व वकील विष्णु जैन ने किया।

वकील जैन ने जोर देकर कहा कि मस्जिद समिति 17 जनवरी के आदेश को चुनौती दिए बिना 31 जनवरी के आदेश को चुनौती नहीं दे सकती। उन्होंने तर्क दिया कि इसलिए समिति की अपील सुनवाई योग्य नहीं है। जैन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि हिंदू पक्षों द्वारा अपने आवेदन में मांगी गई राहत (जिसके कारण 31 जनवरी का आदेश आया) और मुख्य मुकदमा (ज्ञानवापी परिसर के धार्मिक चरित्र के संबंध में) पूरी तरह से अलग थे। ज्ञानवापी परिसर पर मुख्य विवाद में हिंदू पक्ष का दावा शामिल है कि उक्त भूमि पर एक प्राचीन मंदिर का एक खंड 17 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब के शासन के दौरान नष्ट कर दिया गया था।

दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि मस्जिद औरंगजेब के शासनकाल से पहले की है और समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं। संपत्ति (जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद है) के धार्मिक चरित्र पर चल रहे इस अदालती विवाद के बीच, वाराणसी की एक जिला अदालत ने 31 जनवरी को एक रिसीवर को निर्देश दिया कि वह हिंदू पक्षों को ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में प्रार्थना और पूजा करने की अनुमति दे। जिला अदालत के न्यायाधीश एके विश्वेश, जो आदेश पारित करने के एक दिन बाद सेवानिवृत्त हुए, ने कहा था कि पूजा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड द्वारा नामित पुजारी द्वारा आयोजित की जानी चाहिए। जिला अदालत ने निर्देश दिया कि इस उद्देश्य के लिए सात दिनों के भीतर बाड़ भी लगाई जा सकती है।

उक्त आदेश हिंदू वादी द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद की भूमि के व्यास 'तहखाना' (तहखाने) में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली याचिका के जवाब में पारित किया गया था। हिंदू पक्ष ने प्रस्तुत किया कि नवंबर 1993 तक सोमनाथ व्यास और उनके परिवार द्वारा तहखाने में पूजा गतिविधियां आयोजित की गईं, जब मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था। मुस्लिम पक्ष ने इन दावों का खंडन किया और कहा कि मस्जिद की इमारत पर हमेशा उनका कब्ज़ा था। मस्जिद समिति ने सबसे पहले वाराणसी अदालत के 31 जनवरी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और मामले में शीघ्र सुनवाई की मांग की। हालाँकि, रजिस्ट्रार ने निर्देशों पर कार्रवाई करते हुए मुस्लिम पक्ष को इसके बजाय इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया।

संबंधित नोट पर, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 31 जनवरी को एक हिंदू पक्ष द्वारा मस्जिद के परिसर के भीतर वुज़ुखाना क्षेत्र के एएसआई सर्वेक्षण की मांग करने वाली याचिका पर मस्जिद समिति से प्रतिक्रिया मांगी थी। विशेष रूप से, ASI ने पहले ही वुज़ुखाना को छोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का व्यापक वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया था। ASI ने हाल ही में वाराणसी जिला अदालत को एक सर्वेक्षण रिपोर्ट भी सौंपी है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले साइट पर एक प्राचीन हिंदू मंदिर मौजूद था।

हेमंत सोरेन के बचाव में उतरा विपक्ष ! झारखंड मुद्दे पर कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों ने राज्यसभा से किया वॉकआउट

 झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) नेता हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद राज्य के गवर्नर द्वारा राज्य में शासन के लिए अंतरिम व्यवस्था नहीं करने पर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने शुक्रवार को राज्यसभा से वॉकआउट किया। विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सदन में हाल की घटनाओं की तुलना एक सप्ताह पहले बिहार में हुई घटना से की। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और उनका इस्तीफा तुरंत स्वीकार भी कर लिया गया. फिर उन्हें नई सरकार स्थापित होने तक पद पर बने रहने के लिए कहा गया और कुछ ही समय बाद, उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। यह पूरी प्रक्रिया 12 घंटे के अंदर हो गई।

उन्होंने कहा कि लेकिन झारखंड में, जब हेमंत सोरेन ने बुधवार को इस्तीफा दिया, तो कोई अंतरिम व्यवस्था नहीं की गई। सोरेन के इस्तीफे के बाद, 81 सदस्यीय विधानसभा में 43 समर्थक विधायकों के हस्ताक्षर के साथ उनके उत्तराधिकारी का नाम दिया गया,और चार अन्य विधायक, जो इस तरह के स्थानांतरण का समर्थन कर रहे थे, राज्य के बाहर थे और अपने हस्ताक्षर नहीं दे सकते थे। खड़गे ने आरोप लगाया कि, 'राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन ने सोरेन के इस्तीफा देने के बाद कोई व्यवस्था नहीं की।''

खड़गे ने कहा कि संविधान में मुख्यमंत्री के इस्तीफे की स्थिति में सरकार बनाने का प्रावधान है और राज्यपाल वैकल्पिक व्यवस्था होने तक इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री या किसी अन्य व्यक्ति को पद पर बने रहने की अंतरिम व्यवस्था करते हैं। उन्होंने कहा, राज्यपाल बहुमत विधायकों का समर्थन दिखाने वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं और विश्वास मत मांगते हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि करीब 20 घंटे के इंतजार के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नवनिर्वाचित नेता चंपई सोरेन को राज्यपाल से मिलने का निमंत्रण मिला, लेकिन समर्थन पत्र के बावजूद उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने कहा, आज शुक्रवार को नया मुख्यमंत्री शपथ ले रहा है।

उन्होंने कहा, "कृपया बताएं कि संविधान को कैसे टुकड़े-टुकड़े किया जा रहा है।" खड़गे ने आरोप लगाया कि, "जैसा बिहार में हुआ था वैसा झारखंड में क्यों नहीं हुआ?" उन्होंने पूछा कि अगर बिहार में 12 घंटे में इस्तीफा, समर्थन पत्र स्वीकार करना और शपथ ग्रहण हो सकता है तो झारखंड में क्यों नहीं। उन्होंने कहा, ''यह शर्मनाक है। '' सत्ता पक्ष ने खड़गे के बयान का विरोध किया और सदन के नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि झारखंड में एक बड़ा भूमि घोटाला हुआ है, जिसके कारण सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा।

गोयल ने कहा कि, "इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार स्थापित हो गया है, मुख्यमंत्री ने भूमि घोटाला कैसे किया। इसके बावजूद, कांग्रेस उस मुख्यमंत्री का बचाव कर रही है। उस मुख्यमंत्री के आचरण पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है। वह भ्रष्टाचार के बारे में बात नहीं कर रही है।" उन्होंने कहा कि, ''यह केवल यह स्थापित करता है कि भ्रष्टाचार कांग्रेस के DNA में है। कांग्रेस भ्रष्टाचार को स्वीकार करती है।'' गोयल ने कहा कि राज्यपाल के आचरण पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती। राज्यपाल के कार्यों का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि राज्यपाल को सरकार बनाने के लिए किसी को बुलाने से पहले समर्थन के बारे में संतुष्ट होना होगा।

हालाँकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर जोर दिया कि राज्य नेतृत्वविहीन क्यों हो गया और सरकार बनने तक सोरेन को पद पर बने रहने या किसी और को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाने के लिए कोई अंतरिम व्यवस्था नहीं की गई। इसके बाद वे सदन से बहिर्गमन कर गये। हालाँकि, खड़गे जी शायद यह भूल गए थे कि चंपई सोरेन के शपथ लेने तक हेमंत सोरेन ही कार्यवाहक सीएम थे, राज्य नेतृत्वहीन नहीं हुआ था। इसके बावजूद विपक्ष ने सदन में हंगामा करके संसद का बहिष्कार कर दिया।

15 राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों पर इस दिन होंगे चुनाव, ECI ने किया ऐलान

 देश के 15 प्रदेशों की 56 राज्यसभा सीटों पर चुनाव की घोषणा हो गई है। इन सभी सीटों पर 27 फरवरी को मतदान होगा। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की तरफ से सोमवार को यह घोषणा की गई। ध्यान हो कि 13 राज्यों के 50 राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल 2 अप्रैल को समाप्त होने वाला है, जबकि 2 प्रदेशों के शेष 6 सदस्य 3 अप्रैल को रिटायर्ड हो जाएंगे।

वही जिन 15 प्रदेशों में राज्यसभा चुनाव होने हैं उनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, हरियाणा एवं हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। मालूम हो कि राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों की तरफ से अप्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है।

वही जनवरी में ही राज्यसभा के लिए दिल्ली में AAP की तरफ से नामित संजय सिंह, एनडी गुप्ता एवं स्वाति मालीवाल निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। इन चुनावों के लिए किसी भी अन्य पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। नामांकन दाखिल करने की अंतिम दिनांक 9 जनवरी थी जबकि नामांकन पत्रों की जांच 10 जनवरी को की गई। नामांकन वापस लेने की अंतिम दिनांक 12 जनवरी थी। सिंह, गुप्ता और दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मालीवाल ने 19 जनवरी के राज्यसभा चुनावों के लिए अपना-अपना नामांकन 8 जनवरी को दाखिल किया था। AAP ने मालीवाल को अपना राज्यसभा प्रत्याशी नामित किया था। सिंह और गुप्ता को संसद के उच्च सदन में दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से नामित किया गया।

हेमंत सोरेन ही नहीं इन राज्यों के सीएम पर भी ईडी की नजर, कभी भी कस सकता है शिकंजा

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झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन ने दो दिन पहले अपने पद से इस्तीपा दे दिया। सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेन को कई घंटों की पूछताठ के बाद गिरफ्तार कर लिया।हालांकि वह अकेले मुख्यमंत्री नहीं हैं जो ईडी के शिकंजे में हैं। हेमंत सोरेन के अलावा भी कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ ईडी की जांच जारी है। यानी कह सकते हैं कि इन मुख्यमंत्रियों पर भी गिरफ्कतारी की तलवार लटक रही है। इनमें से एक नाम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है। जो अब तक ईडी के पांच समन की अनदेखी कर चुके हैं और उन्हें लगातार गिरफ्तारी का डर सता रहा है। इसके अलावा दक्षिण भारत के राज्यों के सीएम भी ईडी की नजर में हैं।

ईडी ने कई नेताओं को समन जारी किया और पूछताछ भी कर चुकी है। जेएमएम नेता हेमंत सोरेन के बाद ईडी की रडार पर कई और बड़े नेता हैं, जिनकी गिरफ्तारी से या फिर उनके ऊपर कार्रवाई से इनकार भी नहीं किया जा सकता। तो जानते हैं उनके बारे में।

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल

ईडी की रडार पर रहे नेताओं में पहला नाम दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखियाा अरविंद केजरीवाल का आता है। जो केंद्रीय एजेंसी ईडी की जांच के दायरे में हैं। जिसको लेकर ईडी ने उन्हें अब तक 5 समन भेजा है। हालांकि, वो एक बार भी पेश नहीं हुए हैं। ईडी ने दिल्ली के अरविंद केजरीवाल को इससे पहले 17 जनवरी , 3 जनवरी, 21 दिसंबर और 2 नवंबर को समन भेजा था लेकिन केजरीवाल एक बार फिर ईडी के दफ्तर नहीं पहुंचे थे। केजरीवाल को अंतिम बार 31 दिसंबर को समन भेजा गया था, जिसमें उन्हें शुक्रवार यानी 2 फरवरी को पेश होना था। हालांकि केजरीवाल ने एक बार फिर समन को इग्नोर किया।आम आदमी पार्टी ने कहा कि ईडी का समन गैर कानूनी है। दरअसल अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली शराब नीति मामले में ईडी जांच कर रही है।

केरल के सीएम पिनाराई विजयन

वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के खिलाफ भी ईडी मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच कर रही है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के खिलाफ ईडी ने साल 2021 में जांच शुरू की थी। उनके ऊपर साल 1995 में बिजली मंत्री रहते हुए जलविद्युत परियोजनाओं के आधुनिकीकरण के अनुबंध में कथित भ्रष्टाचार का मामला चल रहा है। 

आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी

वहीं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और वाईएसआरसीपी प्रमुख वाई एस जगनमोहन रेड्डी भी ईडी की रडार पर हैं। जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ भारती सीमेंट्स के आर्थिक मामलों को लेकर जांच चल रही है। जगनमोहन रेड्डी यूपीए के कार्यकाल के दौरान से ही जांच का सामना कर रहे हैं। हालांकि ईडी ने साल 2015 में उनके खिलाफ पीएमएलए के नए मामले में केस दर्ज किया था। ये मामला उनके वित्तीय मामलों से जुड़ा हुआ है।

तेलंगाना के नए सीएम बने रेवंत रेड्डी

तेलंगाना में हाल ही में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी है और रेवंत रेड्डी पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री बने हैं। वो भी एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी की जांच के दायरे में हैं। विधानसभा में टीडीपी के तत्कालीन नेता रेड्डी पर 2015 में एमएलसी चुनावों में अपने पक्ष में वोट देने के लिए एक नामांकित विधायक को कथित तौर पर 50 लाख रुपये की रिश्वत देने का मामला दर्ज किया गया था।

यूसीसी के लिए बनाई गई समिति ने धामी सरकार को सौंपी अपनी सिफारिशें, जानें 800 पन्ने वाले ड्राफ्ट में क्या-क्या?

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उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मसौदा तैयार करने वाली एक्सपर्ट कमेटी ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। अब कल यानी शनिवार को कैबिनेट बैठक में यूसीसी ड्राफ्ट रिपोर्ट को मंजूरी मिलने के बाद इसे छह फरवरी को विधानसभा में पेश किए जाने की उम्मीद है। उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र 5 फरवरी से शुरू हो रहा है। ऐसे में सत्र की शुरुआत के अगले ही दिन धामी सरकार इतिहास रच सकती है। विधानसभा से अध्यादेश को मंजूरी दिए जाने के बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल की मंजूरी के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा, जहां समान नागरिक संहिता लागू हो जाएगी। इसके साथ ही यूसीसी को लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा।

वहीं ड्राफ्ट मिलने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने कहा, ‘लम्बे समय से हम सभी को प्रतीक्षा थी हमको आज ड्राफ्ट मिल गया है। चुनाव से पहले उत्तराखण्ड की देव तुल्य जनता को वादा था। अब इस ड्राफ्ट की परिक्षण कर के इसे विधेयक में लाकर आगे बढ़ाएंगे।हम इस मसौदे का परीक्षण करेंगे और सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद इसे राज्य विधानसभा के दौरान रखेंगे। इस पर आगे चर्चा की जाएगी। 

विधानसभा चुनाव 2022 के बाद सीएम धामी ने यूसीसी लागू करने के लिए जस्टिस देसाई की अध्यक्षता में समिति बनाई थी। मुख्यमंत्री धामी ने समिति का तीन बार कार्यकाल बढ़ाया। अब समिति ने करीब ढाई लाख सुझावों और 30 बैठकों में रायशुमारी के बाद तैयार हुआ ड्राफ्ट सीएम धामी को सौंपा।

यूसीसी के ड्राफ्ट में ये हैं प्रावधान

-तलाक के लिए सभी धर्मों का एक कानून होगा।

-तलाक के बाद भरण पोषण का नियम एक होगा।

-पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार उपलब्ध होंगे। तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्री के लिए भी लागू होगा। फिलहाल पर्सनल लॉ के तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग अलग ग्राउंड हैं।

-गोद लेने के लिए सभी धर्मों का एक कानून होगा।मुस्लिम महिलाओं को भी मिलेगा गोद लेने का अधिकार।गोद लेने की प्रक्रिया आसान की जाएगी।

-संपत्ति बटवारे में लड़की का समान हक सभी धर्मों में लागू होगा।

-अन्य धर्म या जाति में विवाह करने पर भी लड़की के अधिकारों का हनन नहीं होगा।

-सभी धर्मों में विवाह की आयु लड़की के लिए 18 वर्ष अनिवार्य होगी।

-शादी का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन होगा। बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नही मिलेगा. ग्राम स्तर पर भी शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी।

-लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण जरूरी होगा।

-उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों के बराबर का हिस्सा मिलेगा। अभी तक पर्सनल लॉ के मुताबिक लड़के का शेयर लड़की से अधिक।

-नौकरीशुदा बेटे की मौत पर पत्री को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी। अगर पत्नी पुर्नविवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले कंपेंशेसन में माता पिता का भी हिस्सा होगा।

-एक पति पत्नी का नियम सब पर लागू होगा।

पेटीएम पर आरबीआई का “डंडा” आम लोगों पर क्या होगा असर?

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क्या आप भी जेब में पर्स लेकर घूमने के बजाय डीजिटल पेमेंट करने में ज्यादा सुविधा महसूस करते हैं। दरअससर आज हमारे देश में हर दूसरा शख्स ऐसी ही सोच रखता है। डिजिटल मोड के इस दौरा मे एक नाम तेजी से उभरा Paytm, जिसने भारतीय लोगों को डिजिटल लेनदेन का चस्का लगाया। डिजिटल पेमेंट सर्विस की दुनिया की बेताज बादशाह कही जाने वाली कंपनी पेटीएम पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कई तरह के बैन लगा दिए हैं।

आरबीआई ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35ए के तहत पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड (पीपीबीएल या बैंक) को तुरंत नए ग्राहकों को नहीं जोड़ने का निर्देश हाल ही में दिया था। इतना ही नहीं, आरबीआई सर्कुलर के अनुसार, 29 फरवरी, 2024 के बाद पेटीम पेमेंट्स बैंक से किसी भी ग्राहक के खाते, प्रीपेड कार्ड, वॉलेट, फास्टैग, एनसीएमसी कार्ड आदि में जमा, लेनदेन, टॉप-अप या निकासी की अनुमति नहीं दी जाएगी। 

30 करोड़ पेटीएम यूजर्स पर होगा असर

आरबीआई के आदेश का असर बड़े तबके पर पड़ सकता है क्योंकि पेटीएम के पास डिजिटल पेमेंट बाज़ार का 16-17 फ़ीसदी हिस्सा है और जानकारों के मुताबिक करोड़ों लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं।ऐसे में बड़ा सवाल है कि आम लोगों पर इसका क्या असर होगा।कंपनी का दावा है कि उसके पास 300 मिलियन यानी 30 करोड़ से अधिक वॉलेट यूजर्स हैं। वहीं पेटीएम पेमेंट्स बैंक में 30 मिलियन यानी 3 करोड़ ग्राहकों ने बैंक खाता खोल रखा है। इसका आसान मतलब यह होता है कि इसका सीधा असर 30 करोड़ पेटीएम यूजर्स पर पड़ने वाला है।

पेटीएम बैंक क्या है

आरबीआई के फ़ैसले का क्या असर होगा ये समझने के लिए पहले ये जानना ज़रूरी है कि पेटीएम बैंक है क्या और ये आम बैंक से कैसे अलग है। पेटीएम पेमेंट बैंक में केवल पैसे जमा किए जा सकते हैं, उनके पास कर्ज़ देने का अधिकार नहीं है। ये डेबिट कार्ड तो जारी कर सकते हैं लेकिन क्रेडिट कार्ड जारी करने के लिए किसी लेंडर रेगुलेटर के साथ डील करनी पड़ेगी। यानी ये एक ऐसा बैंक अकाउंट है जिसमें पैसे रखे जा सकते हैं, आम तौर पर मर्चेंट्स को जो भुगतान मिलता है वो उनके पेटीएम पेमेंट अकाउंट में जाता है और फिर उनके बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर होते हैं। इसके बदले में पेटीएम अपने ग्राहकों को क्रेडिट प्वाइंट देता है। पेटीएम की पेरेंट कंपनी का नाम है वन97 कंम्यूनिकेशंस और इसी कंपनी के पास प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट यानी पीपीआई लाइसेंस है जिसे साल 2017 में पेटीएम पेमेंट बैंक शुरू करने के लिए इस्तेमाल किया गया।

पेटीएम वॉलेट और यूपीआई इस्तेमाल करने वाले का क्या होगा?

29 फरवरी तक पेटीएम की सभी सर्विस सामान्य रूप से ही काम करेंगी। इसके बाद पेटीएम वॉलेट और यूपीआई सेवा का इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए कुछ बदलाव होंगे। सबसे अहम ये कि अगर आपके वॉलेट में पहले से पैसे हैं तो आप उसे दूसरी जगह ट्रांसफ़र कर सकते हैं लेकिन वॉलेट में कोई भी राशि डिपॉज़िट नहीं की जा सकती। हालांकि, अगर आपने पेटीएम अकाउंट को किसी थर्ड पार्टी बैंक से जोड़ रखा है तो आपका पेटीएम काम करता रहेगा और यूपीआई पेमेंट का भी इस्तेमाल करते रहेंगे। थर्ड पार्टी या एक्सटर्नल बैंक का मतलब है कि आप पेटीएम पर अगर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, एचडीएफ़सी बैंक या पंजाब नेशनल बैंक सहित किसी भी मान्यता प्राप्त बैंक के अकाउंट का इस्तेमाल करते हैं तो आपके लिए कुछ भी नहीं बदलने वाला है। लेकिन अगर आप पेटीएम बैंक से लिंक वॉलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप ऐसा नहीं कर पाएंगे। 29 फ़रवरी के बाद से ना तो बैंक अकाउंट में और ना तो वॉलेट में कोई क्रेटिड लिया जा सकेगा।

दुकानदार पेटीएम के जरिए पेमेंट रिसीवकर सकेंगे?

जो दुकानदार अपने पेटीएम पेमेंट्स बैंक अकाउंट में पैसा रिसीव करते हैं, वे पेमेंट रिसीव नहीं कर पाएंगे। इसकी वजह यह है कि उनके अकाउंट्स में क्रेडिट की अनुमति नहीं है, लेकिन कई व्यापारियों या कंपनियों के पास दूसरी कंपनियों के क्यूआर स्टिकर्स हैं जिनके जरिए वे डिजिटल पेमेंट्स स्वीकार कर सकते हैं।

मुंबई में 6 जगह रखे गए बम, पुलिस कंट्रोल रूम को आया धमकी भरा मैसेज, मचा हड़कंप

#mumbai_police_received_a_threatening_message 

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में उस वक्त हड़कंप मच गया, जब पुलिस को एक धमकी भरा संदेश मिला।मुंबई ट्रैफिक पुलिस कंट्रोल रूम को एक अज्ञात व्यक्ति ने धमकी भरा संदेश भेजा गया। जिसमें कहा गया है कि पूरे मुंबई में छह स्थानों पर बम रखे गए हैं। मैसेज के बाद मुंबई पुलिस और अन्य एजेंसियां सतर्क हैं। संदेश भेजने वाले का पता लगाने के प्रयास जारी हैं।

मुंबई ट्रैफिक पुलिस के मुताबिक, उनके हेल्पलाइन नंबर के वाट्सऐप नंबर पर ये मेसेज आया था। इस मैसेज में में लिखा था कि मुंबई में 6 जगह बम रखे हुए हैं, जोकि किसी भी वक्त ब्लास्ट हो सकते हैं। इस मैसेज के बाद सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट हो गईं और संवेदनशील जगहों पर तलाशी अभियान शुरू कर दिया। लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला है। इसके साथ ही पुलिस मैसेज करने वाले का भी पता लगा रही है।

पहले भी आ चुके हैं ऐसे कॉल

ये पहली बार नहीं है, इससे पहले भी मुंबई पुलिस को ऐसे कॉल आ चुके हैं। पिछले साल दिसंबर में मुंबई पुलिस को ऐसे ही कॉल आए थे। वहीं पिछले साल अगस्त में मुंबई पुलिस के कंट्रोल रूम को कॉल करके एक शख्स ने जानकारी दी कि मुंबई की एक लोकल ट्रेन में बम ब्लास्ट होने वाला है। शख्स ने मुंबई पुलिस को बताया था कि ट्रेन में बम हैं। हालांकि, पुलिस ने आरोपी को अरेस्ट कर लिया है। आरोपी का नाम अशोक मुखिया था, वह बिहार के सीतामढ़ी जिले का रहनेवाला था। अशोक ने शराब के नशे में कॉल किया है।

आज भी ईडी के सामने पेश नहीं होंगे दिल्ली सीएम, 5वें समन की भी अनदेखी, बोले-गिरफ्तार करके सरकार गिराना है मकसद

#delhi_cm_arvind_kejriwal_reply_ed_summons_in_excise_policy_case 

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आज यानी 2 फरवरी को भी ईडी के सामने पेश नहीं होंगे। आम आदमी पार्टी ने लिखित बयान जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि अरविंद केजरीवाल आज भी ईडी दफ्तर पूछताछ में शामिल होने नहीं जाएंगे। दिल्ली शराब कांड में केजरीवाल इससे पहले भी चार समन की अनदेखी कर चुके हैं।

आम आदमी पार्टी ने कहा कि ईडी का समन गैर कानूनी है। कानूनी रूप से सही समन की तामील की जाएगी। उसने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मकसद सीएम केजरीवाल को गिरफ्तार करना है और गिरफ्तार करके दिल्ली की सरकार गिराना चाहते हैं। इसे हम बिल्कुल होने नहीं देंगे।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली आबकारी नीति मामले में चल रही जांच में पूछताछ के लिए आज अरविंद केजरीवाल को बुलाया था। ईडी ने बीते बुधवार को पांचवां समन भेजकर केजरीवाल को पूछताछ में शामिल होने को कहा था।

कब- कब भेजा समन

ईडी ने दिल्ली के अरविंद केजरीवाल को इससे पहले 17 जनवरी , 3 जनवरी, 21 दिसंबर और 2 नवंबर को समन भेजा था लेकिन केजरीवाल एक बार फिर ईडी के दफ्तर नहीं पहुंचे थे। ऐसे में इस बार वो ईडी के दफ्तर जाएंगे या नहीं इस पर संशय बना हुआ है। ईडी ने जब अरविंद केजरीवाल को चौथी बार समन भेजकर पूछताछ के लिए दफ्तर बुलाया था तो उस वक्त भी वो ईडी के दफ्तर नहीं गए। दरअसल अरविंद केजरीवाल उस वक्त गोवा के दौरे पर गए थे

क्या है शराब नीति घोटाला

शराब नीति घोटाला दिल्ली सरकार द्वारा 2021 में लागू की गई नई आबकारी नीति से संबंधित है। इस नीति के तहत दिल्ली सरकार ने शराब की बिक्री का ठेका निजी कंपनियों को दे दिया था। आरोप है कि इस नीति में कई अनियमितताएं की गईं और शराब कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।इस घोटाले की जांच सीबीआई और ईडी कर रही है। सीबीआई ने इस मामले में मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, दिनेश अरोड़ा, विजय नायर, समीर महेंद्रू और अभिषेक बोइनपल्ली सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया है।

लद्दाख से चीनी सैनिकों और भारतीय चरवाहों के नोंक-झोंक वाले वीडियो पर विदेश मंत्रालय का बयान, जानें क्या कहा

#ladakh_chinese_army_viral_video_issue_randhir_jaiswal_mea_statements

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो जमकर वायरल हुआ, जिसमें भारत के “जाबांज” चरवाहे चीनी सैनिकों से “दो-दो हाथ” करने पर आमादा थे।दरअसल, लद्दाख में लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल के पास चीनी सैनिकों और चरवाहों का एक वीडियो वायरल हो रहा था, जिसमें भारतीय चरवाहों को चीनी सैनिकों से झगड़ते देखा गया था। विदेश मंत्रालय की तरफ से भी एक बयान सामने आया है।

इस मामले में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि हमने भी ऐसा एक वीडियो देखा है। इस मसले पर संबंधित एजेंसियां इसका जवाब दे सकेंगी। लेकिन इतना साफ है कि दोनों देशों के लोगों को अपने चारागाह वाले क्षेत्रों के बारे में जानकारी है। लेकिन अगर नियंत्रण रेखा पर ऐसी खटपट होती है तो हम बातचीत के लिए तय प्लेटफॉर्म पर उसकी चर्चा करेंगे और उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे।

लेह-लद्दाख के सुदूर पर्वतीय इलाके से एक वीडियो सामने आया था। इस वीडियो में देका जा सकता है कि चीन की पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) के जवानों ने भारतीय चरवाहों को रोकने की कोशिश की। निहत्‍थे चरवाहकों ने साहस का परिचय देते हुए हथियारों से लैस चीनी सेना के जवानों से मुकाबला किया। चरवाहों ने चीनी सेना की बख्‍तरबंद गाड़ियों पर पत्‍थरबाजी भी की। और उन्हें याद दिलाई की ये जमीन उनकी है। भारतीय चरवाहों और चीनी सेना के जवानों के बीच झगड़े का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हो रहा है।

बता दें कि पूर्वी लद्दाख के गलवान इलाके में 16 जून 2020 को भारत और चीनी सैनिकों के बीच जबरदस्त संघर्ष हुआ था। इस झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। चीन के भी कई सैनिक मारे गए थे। इसके बाद से इस इलाके में तनाव की स्थिति बनी रहती है।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, जानें क्या है मामला

#supreme_court_reserves_verdict_on_minority_status_of_amu 

भारत के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर 57 साल पुराने विवाद मामले की सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। बेंच इस मामले में बीते आठ दिनों से लगातार सुनवाई कर रही थी। इस दौरान अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें विस्तार से सुनीं।जल्दी ही इस मामले पर कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी। बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जे बी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं। 

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमाम दलीलें सुनीं। सुनवाई के दौरान कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि किसी भी राष्ट्रीय महत्व के संस्थान को राष्ट्र के ढांचे को प्रतिबिंबित करना चाहिए। एएमयू में 70 से 80 फीसदी मुस्लिम छात्र पढ़ रहे हैं और वे आरक्षण के बगैर वहां पढ़ रहे हैं। मेहता ने कहा, 'मैं धर्म के नजरिए से बात नहीं कर रहा हूं। यह बहुत ही गंभीर मामला है। संविधान में जिस संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है, उसे राष्ट्रीय ढांचे को प्रतिबिंबित करना चाहिए। प्रवेश में आरक्षण के बिना यह स्थिति है।' मेहता ने कहा है कि एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान को केंद्रीय शिक्षण संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 (2012 में संशोधित) की धारा 3 के तहत आरक्षण नीति लागू करने की आवश्यकता नहीं है। इस पर अदालत ने कहा कि किसी अल्पसंख्यक संस्थान के राष्ट्रीय महत्व का संस्थान होने में कुछ गलत नहीं है।

बता दें कि मुसलमानों में शिक्षा की कमी को देखते हुए सुधारवादी नेता सर सैय्यद अहमद ख़ान ने 1877 में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (एमएओ कॉलेज) की स्थापना की थी। एमएओ कॉलेज और मुस्लिम यूनिवर्सिटी एसोसिएशन को एएमयू में लाने के लिए द अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920 (एएमयू एक्ट) पास किया गया। 1951 में एएमयू एक्ट में संशोधन किया गया और इसमें मुसलमानों के लिए धार्मिक शिक्षा को बाध्यकारी बनाने और यूनिवर्सिटी कोर्ट में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के मैन्डेट को हटा दिया गया। इस एक्ट में 1965 में एक बार फिर संशोधन किया गया और कोर्ट की शक्तियों को कार्यपालिका के साथ साथ दूसरे निकायों के बीच बाँट दिया गया, जिसमें गवर्निंग बॉडी के लिए सदस्यों के नामांकन की ज़िम्मेदारी राष्ट्रपति को दी गई।

इस विवाद की शुरुआत 1967 में हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने एस अज़ीज़ बाशा बनाम भारत सरकार मामले में एएमयू एक्ट में 1951 और 1965 में हुए संशोधन की समीक्षा की। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चूंकि एएमयू की स्थापना मुसलमानों ने की है इसके कामकाज के संचालन का हक़ उनके पास होना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने संविधान में किए गए संशोधनों को बरकरार रखा। बेंच ने कहा कि न तो अल्पसंख्यक मुसलमानों ने इसकी स्थापना की है और न ही वो इसका प्रबंधन करते हैं। कोर्ट ने कहा कि इस एक्ट को केंद्रीय क़ानून के ज़रिए लागू किया गया था। कोर्ट के इस फ़ैसले को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसके बाद 1981 में एएमयू एक्ट में एक और संशोधन किया गया, इसमें इसके अल्पसंख्यक दर्जे पर मुहर लगाई गई।

साल 2005 में एएमयू ने स्नातकोत्तर मेडिकल सीटों में से 50 फ़ीसदी को मुसलमान छात्रों के लिए रिज़र्व किया। इसी साल डॉक्टर नरेश अग्रवाल बनाम भारत सरकार मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रिज़र्वेशन पॉलिसी को रद्द कर दिया और कहा कि 1981 का संशोधन अधिकार क्षेत्र से बाहर था। इसके बाद 2006 में भारत सरकार और यूनिवर्सिटी दोनों ने ही सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 

फिर भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले लेगी। इसने बाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले का हवाला देते हुए दावा किया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि यह सरकार द्वारा वित्त पोषित एक सेंट्रलल यूनिवर्सिटी है।