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राम लला की लहर 400 के पार न ले जाये संदर्भ : घट सकती हैं विपक्ष की सीटों की संख्या
घटक दलों के नेताओं के सनातन , श्री रामचरित मानस और भगवान राम के विरुद्ध की गयी अपमानजनक टिप्पणियों के कारण इंडी गठबंधन में शामिल पार्टियां एक - दूसरे से खुद को असहज महसूस कर रही हैं।
दूसरी और भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां विपक्ष की सीटों की शेयरिंग पर हो रही नूरा कुश्ती को देख कर निश्चिंत होकर बैठी हैं। कांग्रेस और राजद को सीटों की शेयरिंग हो रही देरी की कोई चिंता नहीं है। बैठक पर बैठक हो रही हैं मगर अब तक उनके बीच सीटों पर कोई सहमति नहीं बन पा रही। उधर नीतीश कुमार का मन डोल रहा है।
वे समझ चुके हैं कि कि राजद के साथ अब ज्यादा दिन तक गलबहियां नहीं रह पायेंगी। इंडी गठबंधन का चेहरा नहीं बन पाने के बाद वे अब अपनी कुर्सी बचाने में लग गये। वे यह भी जानते हैं कि कुर्सी मोदी की शरण में जाने से ही संभव है। मगर लगता है भाजपा इस बार कुछ कड़ा कदम उठा सकती है। हो सकता है इस बार मुख्यमंत्री बीजेपी का हो ।
भव्य, अद्भुत और अलौकिक मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की गूंज भारत  ही नहीं सारी दुनिया में हो रही है । विपक्षी पार्टियों की समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें । पीएम मोदी के सामने किसी की दाल नहीं गल पा रही है । जो कहा वो कर के दिखाया का नया नारा सामने आ सकता है। राम मंदिर की लहर भाजपा को  400 के पार न धकेल दे।
बिहार में शिक्षा का स्तर सुधरने की उम्मीद संदर्भ : चंद्रशेखर से शिक्षा विभाग छिना
बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के साथ खटास पूर्ण संबंध और श्री रामचरितमानस व भगवान राम पर विवादित टिप्पणी के कारण चर्चा में रहे शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर को आखिर पद से हटा ही दिया गया। अब उनको गन्ना उद्योग मंत्री बनाया गया है।
उनके विभाग की अदला-बदली 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम लला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की ऐन मौके पर हुई है। शिक्षा मंत्री के भगवान राम और श्री रामचरित मानस पर विवादित बयान देने के कारण भाजपा और उसके सहयोगी बिहार में सत्ताधारी महा गठबंधन के खिलाफ माहौल तैयार करने में सफल रहे। शिक्षा मंत्री के बड़बोलेपन के कारण जदयू की तो बात ही छोड़ दीजिए, राजद भी खुद को असहज महसूस कर रहा था।
         जाको प्रभु दारुण दुख देही। ताकी मति पहले हर लेही।
अर्थात भगवान प्रारब्ध के अनुसार जिसको दुख देते हैं उसकी मति ( बुद्धि ) को पहले हर लेते हैं। इस कारण वह इंसान उल्टे - सीधे काम बिना विचारे करने लगता है।
मालूम हो कि गत शुक्रवार को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले थे। लगता है कि इस बैठक में शिक्षा मंत्री और विभाग के अपर मुख्य सचिव के बीच विवाद पर गहन विचार - विमर्श किया गया। इसके बाद ही यह घटनाक्रम हुआ।
मालूम हो कि शिक्षा मंत्री और अपर मुख्य सचिव के बीच कभी बनी ही नहीं। दोनों तरफ से पत्र युद्ध चला। खटास इतनी बढ़ गयी थी कि श्री पाठक स्वास्थ्य का हवाला देकर छुट्टी पर चले गये। उनको 18 जनवरी को ज्वाइन करना था लेकिन उन्होंने 19 तारीख को ज्वाइन किया। केके पाठक के छुट्टी पर जाने से यह अफवाह फैली कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। वहीं शिक्षा मंत्री ने भी अस्पष्ट रूप से कहा कि काम करने का मन नहीं होगा, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया है।
अपर मुख्य सचिव को उच्च पदस्थ स्तर पर समझाया गया और आश्वासन दिया गया था। प्रो चंद्रशेखर को शिक्षा मंत्री पद से हटाया जाना इस बात को पुष्ट करता है।
और अंत में बिहार में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए बात - बात में स्कूलों को बंद करने की परंपरा पर रोक लगानी होगी। बिहार में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने हड़कंप मचा दिया है। उनके फरमान से स्कूल समय पर खुलने और बंद होने लगे हैं।  शिक्षक समय पर स्कूल आने लगे हैं। अब उच्च शिक्षा में भी सुधार की उम्मीद दिखने लगी है।



अनुदान की राशि से कैसे होगा काम संदर्भ : होल्डिंग टैक्स -19 नगर निगमों में पटना 17वें स्थान पर
होल्डिंग टैक्स या संपत्ति कर वह वार्षिक शुल्क है जो आप अपने क्षेत्र में पंचायत, नगर पालिका या नगर निगम जैसे निकाय को देते हैं। नगर निगम द्वारा होल्डिंग टैक्स वसूलकर अर्जित राशि का उपयोग बुनियादी ढांचे और क्षेत्र में  सीवरेज सिस्टम, प्रकाश व्यवस्था, पार्क समेत अन्य सुविधाओं के रखरखाव के लिए किया जाता है।
होल्डिंग टैक्स का भुगतान उस स्थानीय नगर निगम को किया जाता है जहां संपत्ति स्थित है।  होल्डिंग टैक्स समाज के कल्याण और विकास के लिए एकत्रित किया जाता है।  पहले होल्डिंग टैक्स का भुगतान करने के लिए जिला कार्यालय जाना पड़ता था पर आधुनिकीकरण कार्यक्रम के बाद होल्डिंग टैक्स का भुगतान अब ऑनलाइन किया जाने लगा है।
इससे विडंबना ही कहा जायेगा कि आम नागरिक अगर समय पर टैक्स जमा नहीं कर पाता है तो उसे नोटिस पर नोटिस दी जाती है। वहीं सरकारी विभागों पर करोड़ों-करोड़ बकाया रहने के बावजूद नगर निगम में कान में तेल डालकर सोया रहता है।
होल्डिंग टैक्स की वसूली सही ढंग से नहीं हो पाने के कारण नगर निगम को केन्द्र या राज्य सरकार  के अनुदान पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे विकास कार्यों पर असर पड़ता है।
नगर निगम में ऐसी इकाई है जो राज्य सरकार को आर्थिक रूप से लाभ पहुंचाने का काम करती है। नगर निगम बड़े स्तर पर शहरीकरण करके लोगों को आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराता है।  इसके एवज में वह शहरी आबादी से टैक्स के रूप में राजस्व की वसूली करता है।  एक ऐसा उपक्रम है जो अगर अपनी टैक्स वसूली प्रणाली में सुधार ले आये तो यह राजस्व उगाही के मामले में अन्य उपक्रमों को पीछे छोड़ देगा।
मगर आज इसकी टैक्स वसूली की व्यवस्था बिल्कुल ही चरमरा गयी है।  राज्य के 19 नगर निगमों में पटना को टैक्स वसूली के मामले में 17वां स्थान मिला है। वहीं राजस्व वसूली में पटना को पीछे छोड़ते हुए मुंगेर नगर निगम ने पहला स्थान प्राप्त किया है।
दरअसल पटना नगर निगम और राजस्व वसूल करने वाली एजेंसियों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर बात नहीं बन पा रही है। इसलिए 6 बार टेंडर होने के बावजूद कोई भी एजेंसी नहीं मिली। निगम को इस समस्या का समाधान कर जल्द से जल्द एजेंसी नियुक्त कर डोर-टू-डोर टैक्स वसूली करने के साथ-साथ बड़े बकायेदारों पर नकेल कसनी होगी।
और अंत में बड़े बकायेदारों ( सरकारी या निजी ) पर बकाया करोड़ों रुपयों की वसूली के लिए एक तंत्र विकसित करना होगा। कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि सभी सरकारी और निजी उपक्रमों में ऐसी आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाये जिससे आटोमेटिक मंथली, त्रैमासिक, अर्धवार्षिक या वार्षिक सरकारी टैक्स नगर निगम के खाते में चला जाये।
तृतीय विश्व युद्ध के मुहाने पर दुनिया संदर्भ : पाकिस्तान ने ईरान के रिहायशी इलाकों पर किया हमला
यूक्रेन- रूस युद्ध , इसराइल - हमास युद्ध , अमेरिका- हूती युद्ध और ताजा ईरान- पाकिस्तान युद्ध । आज विश्व में कहीं भी शांति नहीं है।  हजारों लोग मारे जा रहे हैं। शहर के शहर तबाह हो रहे हैं । आबादी वाले क्षेत्रों में मिसाइलों से हमले किये जा रहे हैं । कभी इंसानी चहल-पहल से भरे रहने वाले शहर आज खंडहर के रूप में नजर आ रहे हैं।  इन युद्धों में कितनी क्षति होती है उसका आकलन कर पाना मुमकिन नहीं।
शायर बसीर बद्र की एक ग़ज़ल है -
    लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में।
    तुम तरस खाते नहीं बस्तियां जलाने में।।
    हर धड़कते पत्थर को दिल समझते हैं।
    उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में।।
युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं होते। इससे युद्ध में शामिल देशों को भी बहुत भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।  युद्ध वर्तमान और आने वाली पीढ़ी पर बुरा असर डालता है।  युद्ध लंबा चलने से लोगों को मानसिक और भावनात्मक आघात लगता है।
आज जब भी दो देशों के बीच युद्ध होता है तो ऐसी- ऐसी मिसाइलें दागी जाती हैं जो इंसानी बस्तियों को श्मशान बनाने में देर नहीं करतीं। मालूम हो कि युद्ध रत देशों को आधुनिक हथियारों की आवश्यकता होती है। इनमें गोला-बारूद, मिसाइलें, अत्याधुनिक ड्रोन आदि शामिल हैं।
इनकी सप्लाई के लिए एक लाबी सक्रिय रहती है जो हथियार बनाने वाले देशों के संपर्क में रहती है। इनमें अमेरिका सबसे पहले स्थान पर है।
क्यों होते हैं युद्ध : युद्ध आमतौर पर किसी देश या देशों के समूह द्वारा किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विद्रोही ताकतों के खिलाफ लड़ा जाता है। युद्ध आर्थिक, क्षेत्रीय ,धार्मिक ,राजनीतिक ,नागरिक प्रतिशोध और वैचारिक सहित कई कारणों से लड़े जाते हैं।
युद्ध रत देशों की पीठ थपथपाते रहते हैं हथियार निर्माता देश : आज दुनिया तृतीय विश्व युद्ध के मुहाने पर आप पहुंची है। कहीं भेड़िया आया - भेड़िया आया वाली कहावत चरितार्थ न हो जाये। क्योंकि हथियार निर्माता देश युद्ध में शामिल देशों की पीठ को थपथपाते रहते हैं और उन्हें हथियारों की आपूर्ति कर अपना खजाना भरते रहते हैं।
वहीं युद्ध तभी होने चाहिए जब कोई हमारी शांति की नीति को हमारी कमजोरी मानकर आतंकवादी हरकतों को अंजाम दे, किसी देश की न्यूक्लियर धमकी आदि पर युद्ध करना आवश्यक हो जाता है। 2014 से पहले तक हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमेशा सीमा पर गोलीबारी करता रहता था। इससे हमारे सैनिक मारे जाते थे। लेकिन सर्जिकल और एयर स्ट्राइक  से उसके होश ठिकाने आ गये। भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन की पाकिस्तान से वापसी की कहानी तो सबको मालूम ही है।
और अंत में युद्ध एक दुखद जुनून कहा जा सकता है। लालच,भय, और घमंड ही है जो दो देशों को युद्ध करने के लिए उकसाते हैं।
इंडी गठबंधन की नजर केवल 143 सीटों पर संदर्भ : राजद और कांग्रेस को सीटों के बंटवारे की कोई चिंता नहीं
इंडी गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। उसकी नजर भारतीय जनता पार्टी से बची सीटों पर ही है। सभी जानते हैं कि बीजेपी को रोकना उनके बस की बात नहीं। और ये भी समझ रहे हैं कि बीजेपी 400 आंकड़ा छू सकती है।
वहीं दूसरी ओर कुर्सी का मोह नीतीश कुमार को एक बार फिर पलटी मारने पर विवश कर सकता है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का प्रधानमंत्री बनने का सपना तो चारा घोटाले के कारण चूर-चूर हो गया। अब वे अपने पुत्र तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनता देखना चाहते हैं। यह नीतीश के बिहार में रहते संभव नहीं दिखता। इस लिए इंडी गठबंधन के घटक दल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संयोजक बनाने को राजी हो गये थे।
मगर नीतीश कुमार को भनक लग गयी और ललन सिंह से इस्तीफा लेकर वे खुद दोबारा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये। दूसरी ओर राजद नेता भाई वीरेंद्र ने तो यहां तक कह दिया कि लालू प्रसाद के आशीर्वाद से ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। इस तरह के बयान पर बिहार में सियासत तेज हो गयी है।
दिल को बहलाने का गालिब ख्याल अच्छा है : लालू प्रसाद के दिल की बात बुधवार को उनके मुंह से निकल ही आयी उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने और नीतीश कुमार प्रधानमंत्री। जो कि संभव नहीं दिखता।
इंडी गठबंधन के घटक दल कांग्रेस और राजद को सीटों की शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाने की कोई चिंता नहीं है। बिहार की बात करें तो जदयू 16 से कम सीटों पर कोई समझौता नहीं करेगा। वहीं कांग्रेस  9 से 10 , भाकपा 3 और माले 5 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती हैं। लालू प्रसाद को भी कोई हड़बड़ी नहीं है। राजद कितनी सीटों पर लड़ेगा इसका खुलासा भी लालू प्रसाद ने अब तक नहीं किया है।
और अंत में एक कहावत है यथा राजा तथा प्रजा अर्थात जैसा राजा वैसी प्रजा। अब ये जनता जनार्दन को सोचना है कि वह कैसा माहौल चाहती है।
दुविधा में दोनों गये माया मिली ना राम संदर्भ : कांग्रेस द्वारा प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण ठुकराना
आज विपक्ष की हालत सांप के मुंह में फंसे छछूंदर जैसी हो गयी है, जिसे न तो वह निगल पा रहा है न उगल पा रहा है । राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र ठुकरा कर विपक्ष ( इंडी गठबंधन ) भी पूरी तरह से उलझन में फंसा हुआ है।
उधर कांग्रेस राजमाता सोनिया गांधी ने निमंत्रण ठुकराया कर कहा था कि कोई अधिकारी अयोध्या नहीं जायेगा । उसके उलट यूपी कांग्रेस के प्रभारी गये, सरयू में स्नान किया और राम लला के दर्शन भी किये।  कांग्रेस के लिए यह स्थिति
           दुविधा में दोनों गये न माया मिली न राम वाली बन गयी है। इंडी गठबंधन के घटक दल भी अब समझ चुके हैं कि उनके नेताओं द्वारा सनातन और  भगवान राम के विरुद्ध उल्टे सीधे बयान देना अपना पैर खुद ही कुल्हाड़ी पर मारना कहा जायेगा। इसका आभास उन्हें देर से हुआ।
वहीं दूसरी ओर इंडी गठबंधन के घटक दल ' आप' अब हनुमान जी की शरण में है। वह दिल्ली में सुंदरकांड का पाठ करा रही है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भी मां काली की शरण में गयी हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सपरिवार तिरुपति बालाजी मंदिर में चार्टड प्लेन से दर्शन करने गये और सपरिवार मुंडन कर कर लौटे। वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव का कहना है कि जब भगवान बुलायेंगे तभी जायेंगे। उनको भगवान के बुलावे का इंतजार है।
एक तरह से इंडी गठबंधन की सभी पार्टियां मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रही हैं और कह रही हैं कि आने वाले समय में बीजेपी का सफाया हो जायेगा। भगवान श्री राम भारत की आत्मा में बसते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी पुस्तक विनय पत्रिका में एक पद में लिखा है कि
                             जाके प्रिय न राम वैदेही।
                             तजिये ताहि कोटि बैरी सम।
                               जद्दपि परम सनेही
राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र ठुकराना कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। कांग्रेस का साफ्ट हिंदुत्व का कार्ड भी फेल हो चुका है। इंडी गठबंधन की तरफ से अब यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि आधे - अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कैसे हो रही है।
सनातन, हिंदुत्व और  भगवान राम भारत की अस्मिता माने जाते हैं। विपक्ष भी जान चुका है कि लोकसभा चुनाव 2024 में राम मंदिर निर्माण और राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा का फायदा भाजपा को मिलना ही है। और वह 400 के आंकड़े को छू सकती है।
और अंत में  राक्षस राज दशानन भी भगवान राम का धुर विरोधी था। मगर उन्होंने उसका वध कर मोक्ष प्रदान किया। इसी प्रकार राम के अस्तित्व पर अंगुली उठाने वाले आने वाले समय में खुद अप्रासंगिक हो जायेंगे।
दोस्तों को जोड़ नहीं सके, निकाल रहे भारत जोड़ो न्याय यात्रा संदर्भ : प्रथम ग्रासे मक्षिका पात, मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस से दिया इस्तीफा
ये कैसी विडंबना है कि जो शख्स अपने चार जिगरी दोस्तों को साथ नहीं जोड़ पाया,  वह मजमा लेकर भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहा है। एक समय था जब ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा राहुल गांधी के सबसे नजदीक देखे जाते थे। मगर राहुल गांधी अपने मित्रों को सहेज नहीं पाये और तीन साथी छिटक गये। सिर्फ सचिन पायलट ही बचे हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया तो 11 मार्च , 2020 को भाजपा में शामिल हुए थे। वहीं जितिन प्रसाद ने 9 जून , 2021 को बीजेपी ज्वाइन कर ली। इसके बाद मिलिंद देवड़ा का कांग्रेस से मोह भंग हुआ और 14 जनवरी, 2024 को कांग्रेस से इस्तीफा देकर शिवसेना ( शिंदे गुट ) में शामिल हो गये।
इंडी गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों जानती हैं कि मोदी को रोकना उनके बस की बात नहीं है । और यह जो इंडी गठबंधन बना है वह सिर्फ व सिर्फ मोदी को 375 से 400 सीटों के बीच सीमित करना चाहता है । बाकी बची सीटों पर ही गठबंधन अपनी नज़रें गड़ाये हुए हैं। सीटों की शेयरिंग पर एक राय अब तक नहीं बन पायी है। वहीं चुनाव में ज्यादा समय नहीं रह गया है। सभी दल मंथन कर रहे हैं। मगर लगता है कांग्रेस को इसकी कोई चिंता नहीं है। वैसे गठबंधन की पार्टियां कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं दिख रहीं। वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने ऐलान कर दिया है कि वे एकला चलेंगी यानी अकेले चुनाव में उतरेंगी। बसपा का यह कदम इंडी गठबंधन के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
दूसरी ओर कांग्रेस युवराज राहुल बाबा की " भारत जोड़ो न्याय यात्रा " का शुभारंभ अच्छा नहीं रहा । " प्रथम ग्रासे मक्षिका पात " वाली कहावत चरितार्थ हो गयी।  मणिपुर में जहां मल्लिकार्जुन खड़गे न्याय यात्रा को हरी झंडी दिखा रहे थे,  उधर मुंबई में कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
दूसरी और 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम लला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र सोनिया गांधी द्वारा ठुकराना कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति को दर्शाता है। इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा या नहीं, यह तो समय के गर्भ में है।  2024 का लोकसभा चुनाव एक तरह से कांग्रेस के अस्तित्व का निर्णय करेगा।  यह तो वक्त ही बताया कि मणिपुर से शुरू यात्रा पार्ट 2 कांग्रेस में नयी जान फूंकेगी या जो भी जान बची है वह भी खत्म ना हो जाये।
और अंत में इंडी गठबंधन के सभी दलों में अब तक सीटों की शेयरिंग पर सहमति न बन पाने  का कारण कांग्रेस का इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर तव्वजो न देना ही लग रहा है।
समय से पहले बच्चों को बना रहा व्यस्क संदर्भ : दोधारी तलवार के समान है सोशल मीडिया
सोशल मीडिया कई मायनों में हर क्षेत्र में जहां ताकत बन कर उभरा है वहीं दूसरी तरफ इसके दुरुपयोग को लेकर भी काफी चिंता हो रही है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के कारण बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और स्क्रीन पर बिताये जा रहे टाइम ने सभी चिंताओं को पीछे छोड़ दिया है।
माता - पिता बच्चों के गैजेट्स इस्तेमाल और उस पर बिताये जा रहे समय को लेकर चिंतित दिख रहे हैं। कम उम्र में गैजेट्स का इस्तेमाल बहुत ही खतरनाक है। इससे बच्चों का विकास बाधित होने लगता है।
आज प्रायः सभी स्कूलों में स्मार्ट क्लासेज संचालित की जाती हैं। इस कारण छोटे बच्चे भी स्मार्टफोन के आदी होते जा रहे हैं और अपना ज्यादातर समय इसी पर व्यतीत करते हैं।
इसमें दो राय नहीं कि सोशल मीडिया का उपयोग आज के समय में काफी तेजी से हो रहा है। यह एक तरफ जहां बच्चों को फायदा पहुंचा सकता है वहीं दूसरी तरफ इसका अत्यधिक इस्तेमाल बच्चों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके द्वारा बच्चों को असीमित सूचनाओं का भंडार प्राप्त होता है।  इसके माध्यम से बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों के बारे में भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।  किसी कारण अगर बच्चा स्कूल नहीं जा पा रहा है तो वह वीडियो कॉल कर अपने शिक्षकों से संपर्क कर अपनी पढ़ाई की क्षतिपूर्ति कर सकता है। बच्चे सोशल मीडिया पर सकारात्मक चीज देखकर अपना मनोरंजन भी कर सकते हैं। इसके माध्यम से दिमाग वाले गेम्स खेल सकते हैं जिससे मनोरंजन के साथ-साथ उनका दिमाग भी तेज होता है।
दूसरी और सोशल मीडिया पर अधिक समय व्यतीत करना बच्चों की मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है । जो बच्चे देर रात तक फोन का इस्तेमाल करते हैं उनकी नींद प्रभावित होती है , जिससे वे अवसाद का शिकार हो सकते हैं।  स्मार्टफोन के अधिक उपयोग के कारण बच्चों की सामाजिक गतिविधियों और स्कूल की परफॉर्मेंस भी गड़बड़ होने लगती है।
इसका अधिक उपयोग समय की बर्बादी के साथ-साथ पारिवारिक दूरियां  बढ़ाने में सहायक होता है । छुट्टी के दिन ही बच्चे जब घर में रहते हैं तो भी वह अपने माता-पिता के साथ बातचीत न कर मोबाइल पर ही ज्यादा समय व्यतीत करते हैं । इसके साथ ही उनमें चिड़चिड़ापन और हिंसक प्रवृत्ति भी बढ़ने लगती है।
इसलिए बच्चों के माता-पिता को सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करना होगा। स्क्रीन टाइम का समय निर्धारित करना बहुत ही जरूरी है। इसके सकारात्मक उपयोग से बच्चे नयी - नयी चीजें सीखते हैं।
और अंत में सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार के समान है, अगर सावधान नहीं रहे तो घायल हो सकते हैं।

नीतीश कुमार : दिल मांगे मोर संदर्भ : इंडी गठबंधन का संयोजक बनने से किया इनकार
ये बात तो इंडी गठबंधन भली भांति जानता है कि उसके भानुमती के कुनबे में एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसके सहारे वह  2024 के लोकसभा चुनाव नामक वैतरणी पार कर सके। वहीं घटक दलों के नेताओं की बयानबाजी रही सही कसर भी नहीं छोड़ रही है। घटक दल बयान जारी कर एक दूसरे के हितों को घायल कर रहे हैं। इसलिए गठबंधन के सभी नेता एक दूसरे से मिल तो रहे हैं मगर उनके दिल नहीं मिल रहे। दूसरी ओर भाजपा इस वैतरणी पर बाकायदा पुल बना चुकी है। अयोध्या धाम में भव्य और अलौकिक मंदिर में 22 जनवरी को होने वाली राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उसके वोट प्रतिशत में इजाफा होना लाजिमी है।
इंडी गठबंधन की शनिवार को हुई बैठक पिछली अन्य बैठकों से अलग नहीं रही।  हां, ये इस मामले में अलग रही कि बैठक वर्चुअल थी। मजे की बात यह है कि  28 दलों वाले गठबंधन में से मात्र  10 दलों के नेता इसमें शामिल हुए। ममता दीदी और अखिलेश यादव ने इससे दूरी बनाये रखी। इस वर्चुअल बैठक में भी सीटों की शेयरिंग पर कोई चर्चा नहीं की गयी । इस मसले पर बैठक में शामिल नेताओं में एक राय नहीं बन पायी। अब जो बैठक होगी वह फिजिकल होने वाली है। देखना होगा कि इसमें कितने दलों के नेता सशरीर उपस्थित हो पाते हैं।
इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंडी गठबंधन का संयोजक बनने से इनकार कर दिया। नीतीश ने कहा कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है, इसलिए उसे गठबंधन को लीड करना चाहिए। साथ ही उन्होंने लालू प्रसाद का नाम भी संयोजक पद के लिए उछाल दिया। नीतीश कुमार के पेट की बात कोई नहीं जान पाता। नीतीश कुमार जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने उनकी दाल गलने वाली नहीं है।
                वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन।
                 उसे इक खुबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।।
शायद नीतीश कुमार इस बात को समझ गये हैं। इसलिए उन्होंने इस कुनबे का  मुखिया बनने से इंकार कर दिया। नीतीश कुमार का कुर्सी मोह जग जाहिर है। वे कब और कहां पलटी मारेंगे कहा नहीं जा सकता। पिछले घटनाक्रमों को याद करें तो वे कब कौन सा कदम उठायेंगे कोई नहीं जानता।  ( मांझी को पहले सीएम बनाना, फिर इस्तीफा लेना,  कभी राजद के साथ तो कभी बीजेपी के साथ) । इसलिए मकरसंक्रांति के बाद लगता है कोई नया समीकरण बन कर सामने आ सकता है।
इंडी गठबंधन की अब तक पांच बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।  पीएम का चेहरा कौन होगा , कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा इस पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया जा सका है। दूसरी तरफ कांग्रेस तो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है । राहुल बाबा को 2024 के चुनाव की चिंता नहीं वरन अपनी मोहब्बत की दुकान का प्रचार करने के लिए फिर निकलने वाली भारत जोड़ो न्याय यात्रा की है।  कांग्रेस को अपने अस्तित्व की बिल्कुल ही चिंता नहीं है।
और अंत में भाजपा को छोड़ कर कोई भी दल अभी तक साफ रणनीति नहीं बना पाया है। सब एक-दूसरे को टटोल रहे हैं। जिस तरह से विपक्षी पार्टियां अपनी-अपनी रोटी सेंकने में लगी हुई हैं, उसका फायदा भाजपा को ही मिलेगा। नीतीश कुमार का अगला कदम क्या होगा ये तो वक्त बतायेगा, मगर एक बात यह है कि खरमास के बाद कुछ होने वाला है।
क्या सोशल मीडिया से लोगों का हो रहा मोह भंग संदर्भ : दूरी बना रहे सेलिब्रिटीज
हर दिल को छूने वाले हरदिल अजीज सोशल मीडिया से अब लोगों का मोह लगता है धीरे-धीरे भंग हो रहा है। वहीं आम लोग भी इससे दूरी बनाने में लगे हैं। बताते हैं कि 1997 में पहली सोशल नेटवर्किंग साइट लॉन्च की गयी थी।
सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है जहां लोग अपने विचारों को एक - दूसरे के साथ साझा करते हुए अपना-अपना एक ग्रुप बना लेते हैं । भारत में लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। कोई भी, कभी भी, कहीं भी किसी के बारे में कुछ भी बोल सकता है।
सोशल मीडिया का उद्देश्य था समाज में बदलाव लाना।  यह एक ऐसा मंच है जहां मिनटों में एक विचार सैकड़ों लोगों के साथ साझा किया जा सकता है। संसार में कोई भी चीज ऐसी नहीं है जिसके परिणाम केवल सकारात्मक हों।हर चीज के सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम होते हैं।  सोशल मीडिया ने जो अवसर लोगों को उपलब्ध कराये हैं, इसकी कल्पना भी हम लोगों ने नहीं की थी।
दरअसल इस मंच का उपयोग कर समाज में बदलाव की बयार लाना था, मगर चिंता की बात यह है कि आज इसका उपयोग सामाजिक समरसता को बिगाड़ना तथा सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने में ज्यादा किया जाने लगा है।
सोशल मीडिया के द्वारा हम उन लोगों को आगे ला सकते हैं जो समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग पड़े हैं। यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
यह एक ऐसा स्थान है जहां मशहूर हस्तियां या फिल्मी सितारों को अपने चाहने वालों तक पहुंचाने का मौका मिलता है, परंतु इसका ज्यादा इस्तेमाल मेंटल हेल्थ पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। साथ ही यह फेक न्यूज, हेट स्पीच, साइबर बूलिंग आदि को बढ़ावा देता है।
इसी वजह से कई सिलेब्रिटीज अब सोशल मीडिया से अपनी दूरी बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी गायक जॉन लीजेंड का कहना है अब यह मंच जहरीला और खतरनाक बनता जा रहा है।
और अंत में यह सच है कि सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को एक नया आयाम दिया है । कोई भी बिना किसी हिचक के अपने विचार रख सकता है और हजारों लोगों तक पहुंचा सकता है।  परंतु इसके दुरुपयोग की घटनाएं इसे खतरनाक उपकरण बना रही हैं । इसलिए आवश्यक है की निजता के अधिकार का दुरुपयोग किये बिना विचार-  विमर्श कर नये-नये विकल्प खोज जाएं , जिससे इसके दुष्प्रभावों से समाज को बचाया जा सके।