ओपन एयर थियेटर के जनक थे भिखारी ठाकुर
संदर्भ : शागिर्द को मिल चुका है पद्म श्री
भिखारी ठाकुर को भारत में ओपन एयर थियेटर का जनक कहा जा सकता है। इनका जन्म बिहार के गरीब और उपेक्षित हज्जाम परिवार में 18 दिसंबर, 1887 को हुआ था। उस समय ठाकुर परिवार से आने के कारण इनका पढ़ने- लिखने का मौका नहीं मिला।
शुरूआती जीवन में रोजी-रोटी के लिए घर-गांव छोड़कर खड़गपुर चले गये।पर,इस दौरान उन्होंने अपना पुश्तैनी धंधा नहीं छोड़ा। बाद में भिखारी ठाकुर गांव लौट आये और गांव में लोक कलाकारों की एक नृत्य मंडली बनायी। मंच तो था नहीं, इसलिए पेड़ के नीचे चौकी का मंच बना रामलीला का मंचन करने लगे। इसलिए भिखारी ठाकुर को ओपन एयर थियेटर का जनक माना जा सकता है।
उन्होंने अपने आरंभिक जीवन में स्वस्थ और समता मूलक समाज के निर्माण पर केंद्रित नाटक और गीतों की रचना की,जो आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं, जो उनकी दूरदर्शी सोच को दर्शाता है।
उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कई नाटक और गीत लिखे, जिसने लोगों की मानसिकता बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । उन्होंने समाज की हर कुरीतियों पर चोट की। उन्होंने सामंतवादी संस्कृति और लोगों पर चढ़े जाति व समुदाय के रंग के खिलाफ अपने गीतों के माध्यम से खूब प्रहार किया।
उनके नाटकों में जीवन संघर्ष, सामंती ठसक, गांव की गरीबी, जातिवाद, पलायन की पीड़ा और विरह की वेदना साफ-साफ झलकती है। उनकी प्रमुख रचनाओं में बिदेसिया, बेटी बेचवा, गबर धिचोर, कलजुग प्रेम,भाई बिरोध, राधेश्याम बहार आदि प्रमुख हैं।
बिहारी ठाकुर जनमानस के कलाकार थे। उनके कार्यों से प्रभावित होकर राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा था।
और अंत में भोजपुरी लोक साहित्य की धरोहर भिखारी ठाकुर को आज तक कोई आधिकारिक सम्मान नहीं मिला। उनके परिजनों को राजकीय या राष्ट्रीय स्तर पर कोई सामान नहीं मिलने पर मलाल तो है। हां , ये बात दीगर है कि उनके शागिर्द पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
Jan 02 2024, 20:53
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