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कश्मीर पर सुप्रीम फैसला संदर्भ : धारा 370 को हटाने का केंद्र का फैसला सही : सुप्रीम कोर्ट
कश्मीर स्थित शालीमार बाग को देखकर मुगल सम्राट अकबर के बड़े बेटे जहांगीर ने कहा था " गर फिरदौस बर रूये अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त " यानी धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है यही है।
कश्मीर यानी डल झील, शिकारे, बर्फ से ढंके पहाड़ और खूबसूरत वादियां। मगर अपने अस्तित्व में आने के बाद ये खूबसूरत वादियां आतंकवादी घटनाओं से दो-चार होने लगीं। पड़ोसी देश पाकिस्तान से सीमा पर हमेशा गोलीबारी होने लगी, जिससे हमारे सैनिकों की जान चली जाती थी। इसके बाद वहां कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया जाने लगा। इससे परेशान होकर उन्होंने वहां से पलायन कर लिया।
दूसरी ओर अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तान का समर्थन किये जाने से हालात और बदतर हो गये। यह देख केंद्र सरकार ने सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी गयी। मगर अलगाववादी नौजवानों को बरगला कर सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करवाने लगे। वहीं पाकिस्तान द्वारा सुरक्षा बलों को भी निशाना बनाया जाने लगा। बड़ी संख्या में सैनिकों की जान चली गयी। पाकिस्तान द्वारा देश में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया जाने लगा। देशवासियों में इससे काफी आक्रोश था।
मालूम हो कि ये सब कश्मीर को विशेष दर्जा दिये जाने के कारण हुआ। 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी उपबंध के रूप में भारतीय संविधान में जोड़ा गया था जिसमें जम्मू और कश्मीर को विशेष छूट प्रदान की गयी थी। इसे अपने स्वयं के संविधान का मसौदा तैयार करने की अनुमति प्राप्त हुई और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों को नियंत्रित रखा गया ।
दूसरी ओर जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने का विरोध जवाहरलाल नेहरू के दौर में ही कांग्रेस पार्टी में होने लगा था । संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री भीमराव अंबेडकर भी अनुच्छेद 370 के विरोधी थे । उस समय हिंदू महासभा,  भारतीय जन संघ , भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य पार्टियां कश्मीर को विशेष दर्जा दिये जाने अर्थात अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग करती आ रही थीं।
कश्मीर में पाकिस्तान की बढ़ती आतंकी हरकतों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को एक ऐतिहासिक निर्णय अचानक लिया। यह तिथि एक ऐतिहासिक तिथि बन गयी, जब भारत सरकार ने राज्यसभा में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया, जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर और लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्र के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया।
भारत सरकार द्वारा 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के 4 साल बाद 11 दिसंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि इस विषय पर चर्चा ठीक नहीं । सुप्रीम कोर्ट की पांच  सदस्यीय बेंच ने अपने फैसले में कहा कि पांच अगस्त , 2019 को केंद्र सरकार ने जो फैसला लिया था वह सही था और यह बरकरार रहेगा ।
भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कांग्रेस ने इसका काफी विरोध किया था लेकिन अब सुप्रीम मुहर लगने के बाद वह वहां जल्द चुनाव कराने की बात करने लगी है।
इन चार सालों में जम्मू-कश्मीर में काफी बदलाव देखे जा रहे हैं। पत्थरबाजी बंद है। पाकिस्तान के नापाक इरादों पर लगाम लग चुकी है (ऐसे वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा )। अलगाववादी या तो खत्म हो गये या दूसरी पार्टियों में शामिल हो गये हैं।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे संदर्भ : कांग्रेस नेता के यहां मिले 354 करोड़ नकद
दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान लगता है लेकिन जब बात अपने पर आती है तो सारे कानून - कायदे ताक पर रख दिये जाते हैं । ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि पांच-छह दिनों से लगातार छापेमारी के बाद कांग्रेस सांसद धीरज साहू के ठिकानों से 354 करोड़ हार्ड कैश और अकूत आभूषण आयकर विभाग को मिले। इस राशि को गिनने के लिए 40-50 मशीनें लगायी गयी। नोटों की गड्डियां इस तरह से आलमारी में रखी गयी थीं कि नोट आपस में चिपके हुए थे, जिन्हें मशीन में डालते ही वह नोटों को नहीं गिन पायी और खराब हो गयी। छापेमारी अभी भी जारी है।
वैसे एक साल पहले कांग्रेस सांसद धीरज साहू ने कहा था कि इस देश में  फैले भ्रष्टाचार को सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही मिटा सकती है।
वहीं कांग्रेस सांसद के ठिकानों से इतनी बड़ी संख्या में नोटों के मिलने पर अभी I.N.D.I.A गठबंधन के सारे नेता चुप बैठे हैं। कांग्रेस को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या बोले। कांग्रेस के युवा नेता व मोहब्ब्त की दुकान चलाने वाले राहुल गांधी भी शांत बैठे हैं।
इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि सांसद के पास इतनी संपत्ति कहां से आयी। इससे यही साबित होता है कि कांग्रेस पार्टी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है।
सच कुछ देर के लिए छुपाया जा सकता है लेकिन जब वह सामने आ जाता है तो सभी भौंचक रह जाते हैं । सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के बारे में अब कुछ ऐसे-  ऐसे खुलासे हो रहे हैं जिसे जानकर जनता भी अब सोचने लगी है। रही सही कसर झारखंड में कांग्रेस के सांसद धीरज साहू के यहां 354 करोड़ नकद मिलने के बाद अब सभी सोचने पर मजबूर हो गये हैं कि कांग्रेस पार्टी क्या सचमुच भ्रष्टाचार की पोषक रही है। कांग्रेस के किसी भी माननीय के यहां इतनी बड़ी मात्रा में नकद का मिलना तो यही साबित करता है।
और अंत में इतनी राशि कहां से आयी , किसकी है और क्यों सांसद के यहां रखी, यह बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है।
अचंभित कर देता है इंद्रजाल संदर्भ : बच्चे, बूढ़े और जवान सभी को आता है पसंद
जब हम तिलिस्म, रहस्यमय , उत्तेजना बढ़ाने वाली और आश्चर्यजनक चीजों को देखते हैं तो अनायास ही मुंह से निकल जाता है कि वाह क्या जादू है। जादू बच्चों को बहुत पसंद आता है। कारण एक तो जादूगर की ड्रेस, मंच पर रंग-बिरंगी रोशनी और बैकग्राउंड से बजता रहस्यमय संगीत यह उन्हें मंत्रमुग्ध कर देता है।
बचपन में मदारी का खेल तो हमारी पीढ़ी के लोगों ने अवश्य देखा होगा।
सड़क के किनारे एक व्यक्ति ढोलक बजा कर लोगों को एकत्रित करता था। जब लोग जमा हो जाते थे तो दूसरा व्यक्ति बीन बजाने लगता था। पास में रखी टोकरी से एक रस्सी निकल कर आसमान की ओर खड़ी हो कर लहराने लगती थी। इसके बाद दूसरा व्यक्ति उस पर चढ़कर ऊपर जाकर गायब हो जाता था। दर्शक मंत्रमुग्ध। कहां गया वो। थोड़े सस्पेंस के बाद वह व्यक्ति दर्शकों के बीच से निकल कर अभिवादन करता था।
भारत का यह जादू विदेशियों को खूब पसंद आता था। इसलिए इस विद्या को सीखने के लिए बहुत से विदेशी भारत आते थे। एक समय था जब समाज में मदारी, जादूगर, नट, सम्मोहन विद्या जानने वालों की अच्छी खासी आबादी थी। उस समय अंग्रेजों की गुलामी के दर्द को भूलकर लोग इस तरह के जादू देख कर आनंदित होते थे क्योंकि उस समय मोबाइल फोन तो था नहीं और मनोरंजन के अन्य कोई साधन थे नहीं।
जादू शो की शुरुआत सड़क से ही हुई और फिर मंच और थियेटरों तक पहुंच गया। भारत में जादू की दुनिया हैरी पॉटर और गेम्स आफ थ्रोन्स से पहले आ चुकी थी।
जादू या तिलिस्म की दुनिया का रोचक वर्णन 1888 में देवकीनंदन खत्री ने अपने पहले उपन्यास चंद्रकांता में किया। इसमें उन्होंने एय्यार (जो जादू करना और रूप बदलने की कला में पारंगत होते थे) और तिलिस्म का ऐसा वर्णन किया कि लोगों ने इस उपन्यास को पढ़ने के लिए हिंदी सीख ली।
चंद्रकांता के बाद देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता संतति और भूतनाथ जैसे रहस्यमय उपन्यास लिखे। उनके उपन्यास पर एक सीरियल चंद्रकांता भी काफी लोकप्रिय हुआ था।
और अंत में जादू शो ऐसा होता है कि जिसे बच्चे, बूढ़े और जवान सभी देखना पसंद करते हैं।
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय संदर्भ : पाकिस्तान में दुबके भारत के गुनहगारों में फैली दहशत
अंग्रेजों के शासन से भारत आजाद तो हो गया था , मगर उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी बंटवारे के रूप में । 14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ यानी हमसे एक दिन पहले पाकिस्तान आजाद हुआ । 15 अगस्त,  1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने ।
अपने जन्म के साथ ही पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था। इसलिए उसने स्वतंत्र होने के दो महीने बाद ही कश्मीर को कब्जे में लेने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया । दो नये- नये स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच पहला युद्ध 1947 48 में हुआ ।
इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर के कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया , जिसे POK ( पाक अधिकृत कश्मीर)  कहा जाता है। इसके बाद पाकिस्तान में जितने भी शासक हुए वे अपने कार्यकाल में भारतीय सीमा पर हमेशा गोलीबारी के साथ-साथ ही भारत के विभिन्न शहरों में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते रहे ।
ऐसी कई घटनाएं हैं जिनकी लोगों के जेहन में आज तक खौफनाक तस्वीरें घूमती रहती हैं। 6/11 ताज होटल हमला , अक्षरधाम मंदिर हमला, पुलवामा हमला। ऐसी कई घटनाएं हैं जिन्हें हम भूल नहीं सकते । भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले खूंखार आतंकियों को पाकिस्तान ने शरण दे रखी है।
पर कहते हैं न कि समय एक सा नहीं रहता । पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर को जहन्नुम बनाने का ख्वाब देखने वाला पाकिस्तान आज खुद आतंक की आग में जल रहा है। उसके पाले- पोसे आतंकवादी आज उसे ही आंखें दिखा रहे हैं। भारत सरकार ने 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया।
जैसी करनी वैसी भरनी : आज पाकिस्तान जिन हालात से गुजर रहा है, वह तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पूरी दुनिया को दिखा रहा है।  कुछ साल पहले तक जिस तरह की आतंकवादी गतिविधियों से भारत परेशान रहा करता था, अब उसी तरह की आतंकवादी घटनाएं पाकिस्तान में होने लगी हैं। 
दूसरी ओर भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधियों  को ( जिन्होंने पाकिस्तान में ही शरण ले रखी थी) अज्ञात हमलावरों द्वारा चुन चुन कर गोलियों का शिकार बनाया जा रहा है। उनमें इतना खौफ है कि वे अपने- अपने मोबाइल को आफ कर लगातार अपने ठिकाने बदल रहे हैं ।
भारत के गुनहगारों में शामिल पांच मोस्ट वांटेड अपराधियों ( दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद, मसूद अजहर , टाइगर मेमन और सैयद सलाहुद्दीन ) में इतनी दहशत फैल गयी है कि वह पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के पनाह में छुप कर बैठे हैं ।
दूसरी ओर बुधवार को संसद में गृह मंत्री ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि पाक अधिकृत कश्मीर हमारा है।
और अंत में लगता है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कुछ होने वाला है।
शब्दों की चोट कभी नहीं भरती संदर्भ : बातचीत में शब्दों का इस्तेमाल सावधानी से करें
मनुष्य की प्रवृत्ति है छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होना । गुस्से में किसी को डांट देना, अपशब्द कहना या कुछ ऐसा कह देना जो हमें नहीं कहना चाहिए। गुस्से में कभी-कभी हम अपने मित्रों, परिजनों या दूसरे लोगों से इतनी कड़वी बात कह देते हैं कि मित्र हमसे नाराज हो जाते हैं । बसे- बसाये घर उजड़ जाते हैं। और दूसरे लोगों से हम दुश्मनी मोल ले लेते हैं।
इंसान क्रोध में सबसे पहले अपना विवेक खो देता है । शास्त्रों में भी कहा गया है कि तीर -गोली आदि का घाव तो मरहम - पट्टी से भर जाता है , लेकिन शब्दों का प्रहार ऐसा होता है  कि वह एक बार चुभ जाता है तो बरसों तक याद रहता है ।
हमारे शब्द ही अमृत और जहर होते हैं । कहते हैं कि शब्दों के दांत नहीं होते लेकिन जब शब्द काटते हैं तब बहुत दर्द होता है । और कभी-कभी घाव इतने गहरे होते हैं कि जीवन समाप्त हो जाता है पर घाव भर नहीं पाता।
पति-पत्नी का रिश्ता बहुत ही खास होता है।  इसमें पति-पत्नी मिलकर एक दूसरे की जिम्मेदारी लेते हैं । लेकिन मौजूदा समय में यह देखने को ज्यादा मिल रहा है कि कई युवा जोड़े अपने वैवाहिक जीवन को सही ढंग से नहीं निभा पा रहे हैं । इस तरह के रिश्तों में बात-बात पर बहस और झगड़ा होने लगता  है, जिससे घर में हमेशा तनाव बना रहता है । इस दौरान पति-पत्नी एक - दूसरे के बीच कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर बैठते हैं जिसकी गूंज हमेशा कानों में गूंजती रहती है । वहीं जिन रिश्तों में विश्वास नहीं रहता वह रिश्ता कभी लंबा नहीं चल पाता। वहीं एक दूसरे के प्रति भरोसा भी कम होता जाता है।
इसलिए किसी को कुछ भी बोलने से पहले एक बार जरूर सोचें कि हम क्या बोल रहे हैं।  चाहे हम किसी से गुस्से में बोल रहे हो या बिना गुस्से के। ये सोचें कि जो हम बोल रहे हैं अगर वही हमारे लिए बोला जायेगा तो हमें कैसा महसूस होगा । इसलिए जो भी बोलें अच्छी तरह सोच- विचार कर बोलें।
पति- पत्नी दोनों का फर्ज बनता है कि एक -दूसरे पर भरोसा रखें । एक -दूसरे का सम्मान करें । पति-पत्नी के खुशहाल रिश्ते की प्यारी शर्त होती है एक दूसरे की इज्जत करना। कई बार देखा गया है कि पति-पत्नी एक दूसरे से प्यार तो करते हैं लेकिन एक- दूसरे की प्रॉब्लम नहीं सुनना चाहते या उन्हें महत्व नहीं देते । इसलिए पार्टनर की समस्याओं को सुनें और उसका समाधान निकालने की कोशिश करें । इससे रिश्ते में भी मजबूती आयेगी और एक- दूसरे के लिए प्यार भी बढ़ेगा।
और अंत में किसी ने क्या खूब कहा है "लफ्ज भी क्या चीज है महके तो लगाव और बहके तो घाव"।
बढ़ता तापमान और प्रदूषण कुत्तों को बना रहा आक्रामक संदर्भ : अब तो दिन में भी काट रहे हैं
कुत्ता से वफादार जानवर कोई नहीं हो सकता । यह अपने मालिक के लिए अपनी जान तक दे देता है तो जान ले भी सकता है।  कई ऐसी घटनाएं घटी हैं जिसमें मालिक की मौत के बाद कुत्ते ने खाना - पीना तक छोड़ दिया या कई बार अपने मालिक या परिवार की जान बचाते- बचाते कुत्ते ने अपनी जान दे दी । आजकल इनका महत्व पुलिस सहित अन्य विभागों में भी जाना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल करीब 55 हजार लोग कुत्तों के काटने से रैबीज होने के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं ।
मौसम में उतार- चढ़ाव का असर इंसान , जानवर और पेड़ -पौधों पर भी पड़ता है । दुनिया भर में कुत्तों के काटने के हर साल लाखों मामले सामने आते हैं । कुत्ते जिन्हें इंसानों के लिए सबसे भरोसेमंद और वफादार समझा जाता है वही इंसान को क्यों निशाना बना रहे हैं । ठंड का मौसम कुत्तों की मेटिंग का सीजन होता है । इस समय उनके हारमोंस में बदलाव होता है । इसलिए इस मौसम में वह ज्यादा एग्रेसिव ( गुस्सैल)  हो जाते हैं । इनके झुंड में आठ-दस कुत्ते रहते हैं।
बढ़ता तापमान और प्रदूषण जैसे पर्यावरण से जुड़े कारक जानवरों के व्यवहार में बदलाव ला रहे हैं । इसलिए बढ़ता तापमान और प्रदूषण कुत्तों को ज्यादा आक्रामक बना रहा है। इनके शिकार ज्यादातर बच्चे होते हैं।
अगर कुत्ता काट ले तो सबसे पहले उसे स्थान को साबुन से अच्छी तरह धोकर बीटाडिन मलहम लगाकर अस्पताल जाकर एंटी रैबीज इंजेक्शन जरूर लगवा लेना चाहिए।  रेबीज 100% जानलेवा बीमारी है। इसलिए कुत्ता- बिल्ली आदि के काटने पर एंटी रैबीज इंजेक्शन जरूर लेना चाहिए। साथ ही अगर कुत्तों का झुंड दिख जाये तो सावधान हो जाएं। आजकल तो पालतू कुत्तों के द्वारा अपने मालिक की जान ले लेने की घटनाएं भी समाज में होती रहती हैं।
कई क्षेत्रों में वरदान साबित हो सकती है डीपफेक तकनीक संदर्भ : बिना सहमति के डीपफेक बनाना होगा अपराध
रियल इमेज वीडियो को बेहतर रियल फेक वीडियो में बदलने की प्रक्रिया है डीपफेक । डीप फेक वीडियो या फोटो कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का उपयोग करके बनाये जाते हैं , जो देखने में बिल्कुल असली जैसे दिखते हैं । इस तरह के वीडियो में किसी विशिष्ट व्यक्ति की आवाज को एआई मॉडल में उस व्यक्ति का वास्तविक ऑडियो डाटा फिट करके दोहराया जा सकता है, जिससे उसे उनकी नकल करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है । ऐसे वीडियो उस व्यक्ति की आवाज की नकल करते हुए नये एआई जेनरेटेड ऑडियो के साथ बात करने वाले व्यक्ति के मौजूदा फुटेज को ओवर डब करके तैयार किये जाते हैं ।
डीप फेक अक्सर गलत इरादों से से जुड़े होते हैं , जिसमे गलत सूचना पैदा करना और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मामलों में भ्रम पैदा करना शामिल है। डीपफेक से तैयार वीडियो या चित्र का उपयोग अपमानित करने , डराने और परेशान करने के लिए किया जाता है। इसके शिकार न केवल मशहूर हस्तियां , राजनेताओं सहित आम नागरिक भी बन जाते हैं ।
इसके परिणाम चिंताजनक और खतरनाक दोनों ही होते हैं । इनमें झूठी जानकारी से लेकर किसी व्यक्ति या संगठन की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने से लेकर कॉरपोरेट जासूसी और साइबर हमल तक शामिल होते हैं । इस तरह के फोटो और वीडियो को एक बार में पहचानना आसान नहीं होता । बहुत बारीकी से गौर करने पर चलता है कि फोटो या वीडियो फेक है।
वहीं यदि आप बिना सहमति के किसी का भी मजाक में डीप फेक वीडियो बनाते हैं और शेयर करते हैं तो आपके खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है । साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है और मानहानि का केस भी दायर किया जा सकता है ।
हर चीज के दो पहलू होते हैं अच्छा या बुरा । डीप फेक के भी कुछ सकारात्मक उपयोग किये जा सकते हैं । इसके माध्यम से हम सामाजिक मुद्दों के बारे में समाज में जागरूकता फैला सकते हैं । साथ ही शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में भी ये तकनीक लाभदायक हो सकती है।  स्वास्थ्य की देखभाल के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करने से ट्यूमर की पहचान करने की क्षमता में सटीकता आती है जिससे उसका इलाज करने में आसानी होती है।
थोड़ी सी लापरवाही पड़ सकती है भारी संदर्भ : पटना का एक्यूआई 356 पहुंचा
जाड़ा , शरद ऋतु, शीतकाल, ठंड ,हेमंत ऋतु कई नाम है इस मौसम के।  गजब की होती है यह ऋतु । यह अगहन के मध्य से शुरू होकर फागुन के आरंभ तक रहती है।
दूसरी ओर सर्दियों का मौसम सेहत के लिए कई मामलों में चुनौतीपूर्ण माना जाता है । क्योंकि इस मौसम में थोड़ी सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। इसलिए इस मौसम में सभी उम्र के लोगों को सतर्क रहने की जरूरत होती है। ठंड का असर इंसान,  जानवर और पेड़ पौधों सभी पर साफ नजर आता है। सर्दियों के मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है।
इस मौसम में सब्जी मंडी में फलों और सब्जियों की भरमार होती है और सारी की सारी विटामिन्स और मिनरल्स से भरी होती हैं। इसलिए इस मौसम में फलों और सब्जियों का भरपूर सेवन करना चाहिए। साथ ही सर्दियों में तिल का सेवन करना काफी लाभदायक माना जाता है।
इस मौसम में सबसे ज्यादा लापरवाही पानी पीने के मामले में होती है। इससे शरीर में पानी की कमी होने का अंदेशा रहता है जो कि हानिकारक हो सकता है । इसलिए इस मौसम में बिना प्यास के पानी पीना चाहिए। बॉडी को हाइड्रेटेड रखने के लिए उचित मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है। ठंड के मौसम में वैसे भी हमारी इम्यूनिटी काफी कमजोर हो जाती है । ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि अपने खान-पान में उचित बदलाव करते हुए अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखें। इस मौसम में ज्यादा से ज्यादा गर्म  तासीर वाली चीजों का सेवन करना चाहिए। गुड़ ,लहसुन , अदरक ,मेथी, खजूर आदि का सेवन लाभदायक माना जाता है।
ठंड का मौसम आरंभ होते ही जैसे-जैसे को कुहासा में बढ़ोतरी होती जाती है वैसे-वैसे वायु प्रदूषण भी बढ़ता जाता है। इससे लोगों में सांस की तकलीफ और आंखों में जलन की समस्या होने लगती है । अपशिष्ट ( कूड़ा - कचरा) व खेतों में फसलों के अवशेषों को जलाने से वायु प्रदूषण खतरनाक  स्थिति में पहुंच जाता है।
रफ्तार पर ब्रेक लगा देता है कोहरा संदर्भ : ट्रेनों की लेटलतीफी से यात्रियों की हो रही फजीहत
कोहरा आम जनजीवन को तो प्रभावित करता ही है , यह सड़क, रेल और हवाई यातायात को भी पूरी तरह बाधित कर देता है ।
गर्मी के मौसम में गैस के रूप में होने के कारण कोहरा बादलों के साथ काफी ऊपर उड़ता रहता है और हमें दिखायी नहीं पड़ता। वहीं सर्दियों के मौसम में हवा ठंडी होने के कारण इसमें  जल कणों की मात्रा ज्यादा होने के कारण हवा ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाती है और वातावरण में कोहरे के रूप में फैली रहती है। कोहरे में दृश्यता काफी कम हो जाती है। हमें सामने से आने वाले वाहन दिखायी नहीं पड़ते। इससे दुर्घटना का डर बना रहता है।
कोहरा रफ्तार पर भी ब्रेक लगा देता है । कोहरे के कारण ट्रेनें विलंब से चलती हैं या उनका परिचालन रद्द कर दिया जाता है । वहीं हवाई जहाजों को लैंडिंग और टेक ऑफ करने में परेशानी होती है। इस कारण फ्लाइट के टेक ऑफ में देर होती है या फ्लाइट रद्द कर दी जाती है । वहीं सड़क यातायात का हाल तो और भी बुरा हो जाता है।  सड़कों पर वाहनों की रफ्तार धीमी पड़ जाती है । कभी-कभी तो कोहरा इतना घना हो जाता है कि वाहन चालकों को दिन में भी लाइट जला कर चलना पड़ता है।
वहीं ट्रेनों और फ्लाइट के लेट होने से स्टेशन और एयरपोर्ट पर यात्रियों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। परिवार के साथ यात्रा करने वाले मुश्किलों का अधिक सामना करते हैं।
कोहरा के कारण हवा में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। साथ ही प्रदूषित धूल और कणों की मात्रा भी अधिक हो जाती है । इसके कारण कुछ बीमारियों का प्रकोप बढ़ने लगता है । इससे शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो  जाता है और शरीर में बार-बार इंफेक्शन होने लगता है।
थोड़ी सी सावधानी से इससे हम बच सकते हैं। जाड़े के मौसम में ऐसे ही प्यास कम लगती है। इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। वहीं घर से बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग करें। दूसरी ओर कोहरे के कारण सूर्य की किरणों में उतना ताप नहीं होता। इस कारण शरीर को विटामिन डी कम मिलता है । इसलिए इसका विकल्प है कि कुछ देर धूप में भी बैठना चाहिए।
देसी उपाय से जिंदगी मिली दोबारा संदर्भ : सकुशल बाहर आये उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल में फंसे 41 मजदूर
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी , हिंदू हैं हम वतन है हिंदोस्तां हमारा। कोशिश करने से क्या नहीं हो सकता। सामने चाहे कितनी भी कठिनाइयां आयें , लगातार प्रयास करते रहने से सफलता अवश्य मिलती है । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल के अंदर मलबा गिरने से टनल में 17 दिनों से फंसे 41 मजदूरों को सकुशल बाहर निकालना । इंसानी  इरादों के आगे पहाड़ भी नतमस्तक हो गया।
जब अत्याधुनिक मशीनें जवाब दे गयीं तो देसी उपाय से ही इन श्रमिकों की जान बच सकी। पुरातन काल में राजा- महाराजाओं द्वारा अपने राज्य और परिवार की सुरक्षा के लिए महल के नीचे कई - कई किलोमीटर लंबी सुरंगें  बनवायी जाती थीं। उस समय आधुनिक मशीनें तो थी नहीं इसलिए यह काम मनुष्य ही करते थे । जिस प्रकार चूहे अपना बिल बनाते हैं इस तरह यह रेट माइनर्स भी थोड़ी-थोड़ी मिट्टी काटकर सुरंग बनाते हैं।
महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों की हत्या करने की नीयत से लाक्षागृह  का निर्माण कराया था। मगर भगवान कृष्ण की तत्परता से उन्होंने भी सुरंग के माध्यम से ही अपनी जान बचायी थी।
रेट माइनर्स किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं करते । यह हाथ से काम आने वाले औजार ही इस्तेमाल करते हैं । वह धीरे-धीरे पतली सुरंग खोदते हैं और उसका मलबा बाहर निकालते जाते हैं । जैसे चूहे बिल बनाते वक्त करते हैं।  इसलिए इन्हें रैट होल माइनर्स कहा जाता है । ये भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में रहने वाली जनजाति के लोग हैं।  इनकी कद-काठी ऐसी होती है कि पतली से पतली सुरंग में भी आसानी से घुस जाते हैं।  उत्तर पूर्वी इलाकों की छोटी - छोटी-छोटी खदानों से खनिज निकालने के लिए ये लोग इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। परंतु यह तकनीक काफी खतरनाक मानी जाती है क्योंकि इसमें सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किया जा सकते । इसलिए इसे गैरकानूनी बताते हुए बैन कर दिया गया । क्योंकि बिना सुरक्षा उपाय किये बिना सुरंग खोदते समय मिट्टी धंसने से कई लोग  अपनी जान गंवा चुके हैं। परंतु उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने में अत्याधुनिक और विशाल मशीनें  जब कामयाब नहीं हो पा रही थीं तब इन्हीं रैट होल माइनर्स के अथक प्रयास से ही 17 दिनों बाद वे मजदूर टनल से बाहर निकल सके और अपने परिजनों से मिले सके।