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बढ़ता तापमान और प्रदूषण कुत्तों को बना रहा आक्रामक संदर्भ : अब तो दिन में भी काट रहे हैं
कुत्ता से वफादार जानवर कोई नहीं हो सकता । यह अपने मालिक के लिए अपनी जान तक दे देता है तो जान ले भी सकता है।  कई ऐसी घटनाएं घटी हैं जिसमें मालिक की मौत के बाद कुत्ते ने खाना - पीना तक छोड़ दिया या कई बार अपने मालिक या परिवार की जान बचाते- बचाते कुत्ते ने अपनी जान दे दी । आजकल इनका महत्व पुलिस सहित अन्य विभागों में भी जाना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल करीब 55 हजार लोग कुत्तों के काटने से रैबीज होने के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं ।
मौसम में उतार- चढ़ाव का असर इंसान , जानवर और पेड़ -पौधों पर भी पड़ता है । दुनिया भर में कुत्तों के काटने के हर साल लाखों मामले सामने आते हैं । कुत्ते जिन्हें इंसानों के लिए सबसे भरोसेमंद और वफादार समझा जाता है वही इंसान को क्यों निशाना बना रहे हैं । ठंड का मौसम कुत्तों की मेटिंग का सीजन होता है । इस समय उनके हारमोंस में बदलाव होता है । इसलिए इस मौसम में वह ज्यादा एग्रेसिव ( गुस्सैल)  हो जाते हैं । इनके झुंड में आठ-दस कुत्ते रहते हैं।
बढ़ता तापमान और प्रदूषण जैसे पर्यावरण से जुड़े कारक जानवरों के व्यवहार में बदलाव ला रहे हैं । इसलिए बढ़ता तापमान और प्रदूषण कुत्तों को ज्यादा आक्रामक बना रहा है। इनके शिकार ज्यादातर बच्चे होते हैं।
अगर कुत्ता काट ले तो सबसे पहले उसे स्थान को साबुन से अच्छी तरह धोकर बीटाडिन मलहम लगाकर अस्पताल जाकर एंटी रैबीज इंजेक्शन जरूर लगवा लेना चाहिए।  रेबीज 100% जानलेवा बीमारी है। इसलिए कुत्ता- बिल्ली आदि के काटने पर एंटी रैबीज इंजेक्शन जरूर लेना चाहिए। साथ ही अगर कुत्तों का झुंड दिख जाये तो सावधान हो जाएं। आजकल तो पालतू कुत्तों के द्वारा अपने मालिक की जान ले लेने की घटनाएं भी समाज में होती रहती हैं।
कई क्षेत्रों में वरदान साबित हो सकती है डीपफेक तकनीक संदर्भ : बिना सहमति के डीपफेक बनाना होगा अपराध
रियल इमेज वीडियो को बेहतर रियल फेक वीडियो में बदलने की प्रक्रिया है डीपफेक । डीप फेक वीडियो या फोटो कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का उपयोग करके बनाये जाते हैं , जो देखने में बिल्कुल असली जैसे दिखते हैं । इस तरह के वीडियो में किसी विशिष्ट व्यक्ति की आवाज को एआई मॉडल में उस व्यक्ति का वास्तविक ऑडियो डाटा फिट करके दोहराया जा सकता है, जिससे उसे उनकी नकल करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है । ऐसे वीडियो उस व्यक्ति की आवाज की नकल करते हुए नये एआई जेनरेटेड ऑडियो के साथ बात करने वाले व्यक्ति के मौजूदा फुटेज को ओवर डब करके तैयार किये जाते हैं ।
डीप फेक अक्सर गलत इरादों से से जुड़े होते हैं , जिसमे गलत सूचना पैदा करना और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मामलों में भ्रम पैदा करना शामिल है। डीपफेक से तैयार वीडियो या चित्र का उपयोग अपमानित करने , डराने और परेशान करने के लिए किया जाता है। इसके शिकार न केवल मशहूर हस्तियां , राजनेताओं सहित आम नागरिक भी बन जाते हैं ।
इसके परिणाम चिंताजनक और खतरनाक दोनों ही होते हैं । इनमें झूठी जानकारी से लेकर किसी व्यक्ति या संगठन की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने से लेकर कॉरपोरेट जासूसी और साइबर हमल तक शामिल होते हैं । इस तरह के फोटो और वीडियो को एक बार में पहचानना आसान नहीं होता । बहुत बारीकी से गौर करने पर चलता है कि फोटो या वीडियो फेक है।
वहीं यदि आप बिना सहमति के किसी का भी मजाक में डीप फेक वीडियो बनाते हैं और शेयर करते हैं तो आपके खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है । साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है और मानहानि का केस भी दायर किया जा सकता है ।
हर चीज के दो पहलू होते हैं अच्छा या बुरा । डीप फेक के भी कुछ सकारात्मक उपयोग किये जा सकते हैं । इसके माध्यम से हम सामाजिक मुद्दों के बारे में समाज में जागरूकता फैला सकते हैं । साथ ही शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में भी ये तकनीक लाभदायक हो सकती है।  स्वास्थ्य की देखभाल के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करने से ट्यूमर की पहचान करने की क्षमता में सटीकता आती है जिससे उसका इलाज करने में आसानी होती है।
थोड़ी सी लापरवाही पड़ सकती है भारी संदर्भ : पटना का एक्यूआई 356 पहुंचा
जाड़ा , शरद ऋतु, शीतकाल, ठंड ,हेमंत ऋतु कई नाम है इस मौसम के।  गजब की होती है यह ऋतु । यह अगहन के मध्य से शुरू होकर फागुन के आरंभ तक रहती है।
दूसरी ओर सर्दियों का मौसम सेहत के लिए कई मामलों में चुनौतीपूर्ण माना जाता है । क्योंकि इस मौसम में थोड़ी सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। इसलिए इस मौसम में सभी उम्र के लोगों को सतर्क रहने की जरूरत होती है। ठंड का असर इंसान,  जानवर और पेड़ पौधों सभी पर साफ नजर आता है। सर्दियों के मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है।
इस मौसम में सब्जी मंडी में फलों और सब्जियों की भरमार होती है और सारी की सारी विटामिन्स और मिनरल्स से भरी होती हैं। इसलिए इस मौसम में फलों और सब्जियों का भरपूर सेवन करना चाहिए। साथ ही सर्दियों में तिल का सेवन करना काफी लाभदायक माना जाता है।
इस मौसम में सबसे ज्यादा लापरवाही पानी पीने के मामले में होती है। इससे शरीर में पानी की कमी होने का अंदेशा रहता है जो कि हानिकारक हो सकता है । इसलिए इस मौसम में बिना प्यास के पानी पीना चाहिए। बॉडी को हाइड्रेटेड रखने के लिए उचित मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है। ठंड के मौसम में वैसे भी हमारी इम्यूनिटी काफी कमजोर हो जाती है । ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि अपने खान-पान में उचित बदलाव करते हुए अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखें। इस मौसम में ज्यादा से ज्यादा गर्म  तासीर वाली चीजों का सेवन करना चाहिए। गुड़ ,लहसुन , अदरक ,मेथी, खजूर आदि का सेवन लाभदायक माना जाता है।
ठंड का मौसम आरंभ होते ही जैसे-जैसे को कुहासा में बढ़ोतरी होती जाती है वैसे-वैसे वायु प्रदूषण भी बढ़ता जाता है। इससे लोगों में सांस की तकलीफ और आंखों में जलन की समस्या होने लगती है । अपशिष्ट ( कूड़ा - कचरा) व खेतों में फसलों के अवशेषों को जलाने से वायु प्रदूषण खतरनाक  स्थिति में पहुंच जाता है।
रफ्तार पर ब्रेक लगा देता है कोहरा संदर्भ : ट्रेनों की लेटलतीफी से यात्रियों की हो रही फजीहत
कोहरा आम जनजीवन को तो प्रभावित करता ही है , यह सड़क, रेल और हवाई यातायात को भी पूरी तरह बाधित कर देता है ।
गर्मी के मौसम में गैस के रूप में होने के कारण कोहरा बादलों के साथ काफी ऊपर उड़ता रहता है और हमें दिखायी नहीं पड़ता। वहीं सर्दियों के मौसम में हवा ठंडी होने के कारण इसमें  जल कणों की मात्रा ज्यादा होने के कारण हवा ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाती है और वातावरण में कोहरे के रूप में फैली रहती है। कोहरे में दृश्यता काफी कम हो जाती है। हमें सामने से आने वाले वाहन दिखायी नहीं पड़ते। इससे दुर्घटना का डर बना रहता है।
कोहरा रफ्तार पर भी ब्रेक लगा देता है । कोहरे के कारण ट्रेनें विलंब से चलती हैं या उनका परिचालन रद्द कर दिया जाता है । वहीं हवाई जहाजों को लैंडिंग और टेक ऑफ करने में परेशानी होती है। इस कारण फ्लाइट के टेक ऑफ में देर होती है या फ्लाइट रद्द कर दी जाती है । वहीं सड़क यातायात का हाल तो और भी बुरा हो जाता है।  सड़कों पर वाहनों की रफ्तार धीमी पड़ जाती है । कभी-कभी तो कोहरा इतना घना हो जाता है कि वाहन चालकों को दिन में भी लाइट जला कर चलना पड़ता है।
वहीं ट्रेनों और फ्लाइट के लेट होने से स्टेशन और एयरपोर्ट पर यात्रियों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। परिवार के साथ यात्रा करने वाले मुश्किलों का अधिक सामना करते हैं।
कोहरा के कारण हवा में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। साथ ही प्रदूषित धूल और कणों की मात्रा भी अधिक हो जाती है । इसके कारण कुछ बीमारियों का प्रकोप बढ़ने लगता है । इससे शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो  जाता है और शरीर में बार-बार इंफेक्शन होने लगता है।
थोड़ी सी सावधानी से इससे हम बच सकते हैं। जाड़े के मौसम में ऐसे ही प्यास कम लगती है। इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। वहीं घर से बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग करें। दूसरी ओर कोहरे के कारण सूर्य की किरणों में उतना ताप नहीं होता। इस कारण शरीर को विटामिन डी कम मिलता है । इसलिए इसका विकल्प है कि कुछ देर धूप में भी बैठना चाहिए।
देसी उपाय से जिंदगी मिली दोबारा संदर्भ : सकुशल बाहर आये उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल में फंसे 41 मजदूर
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी , हिंदू हैं हम वतन है हिंदोस्तां हमारा। कोशिश करने से क्या नहीं हो सकता। सामने चाहे कितनी भी कठिनाइयां आयें , लगातार प्रयास करते रहने से सफलता अवश्य मिलती है । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल के अंदर मलबा गिरने से टनल में 17 दिनों से फंसे 41 मजदूरों को सकुशल बाहर निकालना । इंसानी  इरादों के आगे पहाड़ भी नतमस्तक हो गया।
जब अत्याधुनिक मशीनें जवाब दे गयीं तो देसी उपाय से ही इन श्रमिकों की जान बच सकी। पुरातन काल में राजा- महाराजाओं द्वारा अपने राज्य और परिवार की सुरक्षा के लिए महल के नीचे कई - कई किलोमीटर लंबी सुरंगें  बनवायी जाती थीं। उस समय आधुनिक मशीनें तो थी नहीं इसलिए यह काम मनुष्य ही करते थे । जिस प्रकार चूहे अपना बिल बनाते हैं इस तरह यह रेट माइनर्स भी थोड़ी-थोड़ी मिट्टी काटकर सुरंग बनाते हैं।
महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों की हत्या करने की नीयत से लाक्षागृह  का निर्माण कराया था। मगर भगवान कृष्ण की तत्परता से उन्होंने भी सुरंग के माध्यम से ही अपनी जान बचायी थी।
रेट माइनर्स किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं करते । यह हाथ से काम आने वाले औजार ही इस्तेमाल करते हैं । वह धीरे-धीरे पतली सुरंग खोदते हैं और उसका मलबा बाहर निकालते जाते हैं । जैसे चूहे बिल बनाते वक्त करते हैं।  इसलिए इन्हें रैट होल माइनर्स कहा जाता है । ये भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में रहने वाली जनजाति के लोग हैं।  इनकी कद-काठी ऐसी होती है कि पतली से पतली सुरंग में भी आसानी से घुस जाते हैं।  उत्तर पूर्वी इलाकों की छोटी - छोटी-छोटी खदानों से खनिज निकालने के लिए ये लोग इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। परंतु यह तकनीक काफी खतरनाक मानी जाती है क्योंकि इसमें सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किया जा सकते । इसलिए इसे गैरकानूनी बताते हुए बैन कर दिया गया । क्योंकि बिना सुरक्षा उपाय किये बिना सुरंग खोदते समय मिट्टी धंसने से कई लोग  अपनी जान गंवा चुके हैं। परंतु उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने में अत्याधुनिक और विशाल मशीनें  जब कामयाब नहीं हो पा रही थीं तब इन्हीं रैट होल माइनर्स के अथक प्रयास से ही 17 दिनों बाद वे मजदूर टनल से बाहर निकल सके और अपने परिजनों से मिले सके।

चुनावी हवा कभी गरम कभी नरम संदर्भ : बिहार में 2024 की सरकारी छुट्टियों के कैलेंडर पर विपक्षी हमलावर
तुष्टिकरण की राजनीतिक देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा मानी जाती है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने भी तुष्टिकरण को राष्ट्र विरोधी बताया था। भारत में यह शब्द अल्पसंख्यक वोट बैंक के चक्कर में समूहों को लुभाने वाले वादे एवं नीतियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। चुनाव नजदीक आते देख विभिन्न पार्टियां अपना वोट बैंक साधने के लिए एक विशेष वर्ग को खुश करने में जुट जाती हैं।
कुर्सी के खेल निराले होते हैं जो इससे दूर है वह इसे पाना चाहता है और जिसके पास है वह इसे ऐन- केन- प्रकारेण दूर जाने देना नहीं चाहता । इसके लिए चाहे जो कुछ भी करना पड़े , बस यहीं से शुरू होता है तुष्टिकरण का खेल। हालिया मामला जदयू - राजद के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा सनातन धर्म से जुड़े पर्व - त्योहारों की घोषित छुट्टियों में कटौती करते हुए अल्पसंख्यकों के पर्व- त्योहारों में घोषित छुट्टियां बढ़ाने का है।
नीतीश कुमार का यह कदम हिंदुओं को जातियों में बांटने और अल्पसंख्यकों का हित साधने वाला दिखायी देता है। इससे पहले भी बिहार सरकार द्वारा इसी प्रकार का आदेश जारी किया गया था मगर बाद में इसको लेकर बढ़ते आक्रोश को देखते हुए आदेश को वापस ले लिया गया था।
वहीं बिहार मुसलमानों के लिए जुमे ( शुक्रवार)  को सरकारी साप्ताहिक अवकाश घोषित करने वाला संभवत देश का पहला राज्य बन गया है।
इस तुगलकी आदेश से क्या नीतीश कुमार अपना वोट बैंक बढ़ा पायेंगे या इससे राजद को फायदा होगा, यह तो वक्त ही बतायेगा , लेकिन कैलेंडर के  जारी होते ही सवाल उठने लगे हैं। नीतीश सरकार के एक मंत्री ने कहा कि इसमें सुधार किया जा सकता है।
12 मासों में सर्वश्रेष्ठ है कार्तिक माह संदर्भ : देव दीपावली के दिन देवता पृथ्वी का करते हैं भ्रमण
शास्त्रों में वेद , नदियों में गंगा और युगों में सतयुग श्रेष्ठ माने गये हैं। इसी तरह सभी मासों में कार्तिक मास सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । इसे हम त्योहारों का महीना भी कह सकते हैं, क्योंकि करवा चौथ, अहोई अष्टमी, रमा एकादशी, धनतेरस, दीपावली , गोवर्धन पूजा , भैया दूज और छठ जैसे महापर्व इसी माह में मनाये जाते हैं । वहीं देवोत्थान एकादशी, जिसे हम देव उठनी एकादशी भी कहते हैं, मनायी जाती है ।
इस दिन भगवान विष्णु चातुर्मास के बाद योग निंदा से जगते हैं। इसके साथ ही एक और त्योहार कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । इसे देव दीपावली के नाम से जाना जाता है।
दीपावली क्यों मनायी जाती है , यह हर हिंदू जानता है लेकिन देव दीपावली का त्योहार क्यों मनाया जाता है , इसे बहुत कम ही लोग जानते हैं । देव दीपावली यानी ऐसी दीपावली जिस देवता ने मनाया था। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन 33 करोड़ देवी - देवता स्वर्ग से काशी आये थे और गंगा किनारे दीप दान कर पृथ्वी का भ्रमण किया था।
हमारे पुराणों में इस दीपावली का जिक्र है। तभी से देव दीपावली मनायी जाती है । मालूम हो कि दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या और देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है । सनातन धर्म में देव दीपावली का बहुत ही महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस को पराजित किया था । इसी खुशी में देवताओं ने दीप मालाएं सजायी थीं। भगवान शिव की नगरी काशी में देव दीपावली भव्यता के साथ मनायी जाती है।
सेना के लिए हाथियों और घोड़ों की होती थी खरीदारी संदर्भ : सोनपुर मेले का समृद्ध इतिहास रहा है
बिहार का विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होता है। इसे हरिहर क्षेत्र मेला या छतर मेला के नाम से भी जाना जाता है । इसे एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जाना जाता है। पुराने जमाने में यहां हाथी, घोड़े,गाय,बैल, बकरी, पालतू कुत्तों समेत अन्य पशु-पक्षियों की बिक्री की जाती थी। यह मेला सेना के लिए हाथियों की खरीद - बिक्री का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता था।
हरिहर क्षेत्र में स्थापित बाबा हरिहरनाथ मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां स्थापित शिवलिंग में हरि ( भगवान विष्णु)  और हर ( भोलेनाथ ) की आकृति है । मान्यता है कि इसी क्षेत्र के कोनहरा घाट पर गज और ग्राह ( मगरमच्छ ) के बीच भयंकर युद्ध हुआ था और गज की करूण प्रार्थना ( हे गोविन्द राखौ शरण,अब तो जीवन हारे )   पर भगवान विष्णु ने आकर उसकी रक्षा की थी।
पर आज इस मेले का स्वरूप काफी बदल गया है। पशु-पक्षियों की खरीद- बिक्री पर रोक लगने से अब यहां पशु कम ही लाये जाते हैं। अब नयी- नयी कंपनियों के शोरूम और बिक्री केंद्र  ही ज्यादा दिखायी पड़ते हैं । पटना से गरीब 25 किलोमीटर दूर सोनपुर में गंडक नदी के किनारे लगभग एक माह  तक यह मेला चलता है ।
सोनपुर मेले का ऐतिहासिक महत्व भी बताया गया है। जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने - जाने के आधुनिक साधन नहीं थे, उस समय  इस मेले में मध्य एशिया से पशुओं की खरीदारी करने के लिए बड़ी संख्या में कारोबारी आते थे। कारोबारियों के रात में ठहरने से लेकर उनके मनोरंजन के लिए नाच- गान का आयोजन किया जाता था। इसी परंपरा ने आधुनिक युग में थियेटर का स्वरूप अख्तियार कर लिया।
बताते हैं कि मौर्य वंश के संस्थापक चंद्र गुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुंवर सिंह भी इसी पशु मेले से अपनी  सेना के लिए हाथियों की खरीद करते थे ।
इस मेले में पालतू पशु - पक्षियों की बिक्री के अलावा ऊनी कपड़े, कंबल के स्टॉल झूले ,खेल - खिलौने , मौत का कुआं  आदि मेला घूमने आने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। इस मेले का इतना क्रेज है कि विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में भ्रमण करते नजर आते हैं। इनके लिए सरकारी व्यवस्था के तहत आधुनिक  सुविधाओं से लैस स्विस काटेज का निर्माण कराया जाता है, जहां वे ठहरते हैं।
पुराने जमाने में सोनपुर मेले में बड़ी-बड़ी  नौटंकी कंपनियां आया करती थीं। गीत- संगीत की महफिल सजती थी। लोग रात भर गायन का लुत्फ उठाते थे। 
पर आज सोनपुर मेले का मतलब थियेटर ही है, जहां गीत- संगीत की महफिल तो नहीं सजती, मगर आधुनिक गानों पर बालाएं अपनी अदाओं से लोगों का मनोरंजन करती हैं। बीच के कुछ साल अश्लील प्रदर्शन करने के कारण थियेटरों के लाइसेंस रद्द कर दिये गये थे। हालांकि बाद में प्रशासन  और स्थानीय लोगों के आश्वासन के बाद से फिर से थियेटर लगने शुरू हो गये।
शाम होते ही लोगों का हुजूम थियेटरों के टिकट काउंटर पर उमड़ने लगता है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में न तो पहले जैसी गायन मंडलियां हैं और न लोगों को अपने वादन से झुमाने वाले वादक। आधुनिकता के नाम पर केवल भौंडे गीत ही थियेटरों में गूंजते हैं।
आज नौटंकी की सुसंस्कृत परंपरा समाप्त हो चुकी है। पर, अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे इस मेले की रौनक और देखने की उमंग लोगों में आज भी मौजूद है।
पकड़ौआ विवाह : जबरदस्ती मांग भरना वैध विवाह नहीं संदर्भ : पवित्र अग्नि के समक्ष अपनी मर्जी से सात फेरे होना जरूरी : हाईकोर्ट
शादी को पाणिग्रहण या विवाह भी कहा जाता है । शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाह बताये गये हैं। ये हैं ब्रह्म, दैव आर्य, प्राजापत, असुर , गंधर्व,  राक्षस और पिशाच।  इनमें श्रेष्ठ ब्रह्म विवाह माना जाता है  । इसके बाद दैव और फिर आर्य विवाह को ही उत्तम माना गया है। अन्य प्रकार के विवाह अशुभ माने जाते हैं।
आज से कुछ दशक पहले बिहार में एक अन्य प्रकार के विवाह ने जोर पकड़ा था। इसका इतना खौफ पैदा हो गया था कि नाबालिग , कुंवारे लड़के और नौकरीपेशा लड़के घरों से बाहर नहीं निकलते थे। इसे पकड़ौआ विवाह  कहा जाता था। बिहार के कुछ जिलों में इस प्रकार का विवाह कराने वाले गिरोह सक्रिय हो गये थे और कुछ संपन्न गृहस्थ अपनी लड़की की शादी करने के लिए इन गिरोहों से संपर्क करते थे।
इन गिरोहों के पास मैट्रिक- इंटरमीडिएट पास, ग्रेजुएट और नौकरीपेशा लड़कों की लिस्ट रहती थी। अपनी पसंद बताने पर गिरोह  द्वारा उस लड़के का अपहरण कर उसका पकड़ौआ विवाह करा दिया जाता था। लड़का अगर ना-नुकुर करता था तो उसे डरा-धमकाकर, मारपीट कर जबरदस्ती आनन-फानन में शादी का मंडप तैयार कर लड़की की मांग अपह्वत कर लाये गये लड़के से भरवा दी जाती थी ।
इसकी एवज में में लड़की पक्ष द्वारा गिरोह को मुंह मांगी रकम दी जाती थी। परंतु ऐसे विवाह के लिए ना तो लड़का मानसिक रूप से तैयार होता है ना लड़की । कभी-कभी तो नाबालिगों की शादी भी इसी प्रकार करा दी जाती थी और दोनों को साथ निभाने की कसम खिला दी जाती थी । शादी के कुछ दिनों बाद लड़के को छोड़ दिया जाता था । लड़का घर पहुंच कर अपने साथ हुई घटना की जानकारी अपने परिजनों को देता था । परिजन थाने में इसकी शिकायत दर्ज कराते थे , तो गिरोह के सदस्य परिजनों को इतना डरा-धमका देते थे कि वह परिवार विवाह को स्वीकार कर लेता था।
परंतु आज पकड़ौआ विवाह बीते दिनों की बात हो गयी है । इस विषय पर टीवी सीरियल "भाग्य विधाता " और एक फिल्म "जबरिया जोड़ी " नाम से बन चुकी है ।
इस प्रकार के विवाह के पीछे कई कारण हो सकते हैं । सबसे बड़ा कारण दहेज प्रथा हो सकती है परंतु हो सकता है कि शिक्षा और जागरूकता के अभाव के कारण परिजन इस प्रकार के कृत्य करते थे । पर आज की युवा पीढ़ी जागरूक और समझदार है। वह अपना भला - बुरा समझती है।
इसी संदर्भ में 24 नवंबर , 2023 को पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि जिस विवाह में पवित्र अग्नि के समक्ष लड़का-लड़की अपनी मर्जी से सात फेरे  ( सप्तपदी ) नहीं लेते , वह विवाह कानूनन वैध नहीं माना जा सकता । पटना हाईकोर्ट का यह फैसला फैमिली कोर्ट के द्वारा दिये गये एक फैसले के विपरित है । पीड़ित युवक ने फैमिली कोर्ट के फैसले के विरुद्ध पटना हाईकोर्ट में अपील की थी। इस पर कोर्ट ने  यह फैसला सुनाया।
आज तकिया के नीचे किताबें नहीं मोबाइल रहता है संदर्भ : आधुनिक युग में किताबें स्क्रिप्ट में बदली
पुस्तकों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है । पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं। ये हमारे जीवन में सबसे अच्छे मित्र की भूमिका भी निभाती हैं । महान लोगों के कार्य , विचार , ज्ञान , संस्कृति पुस्तकों में हमेशा के लिए दर्ज रहते हैं। इसी कारण पुस्तकों का कभी भी महत्व कम नहीं हुआ।
दूसरी ओर आज कंप्यूटर युग में जहां हर कार्य इंटरनेट पर सुलभ है । नेट पर आज कोई भी पुस्तक पढ़ी जा सकती है। नयी पीढ़ी आज पुस्तकों से थोड़ी दूरी बना रही है। इस दूरी को कम करने के लिए साहित्यकारों और रचनाकारों को सृजन के साथ-साथ नयी पीढ़ी को जोड़े रखना होगा । पुस्तकें हमें अपने आसपास की दुनिया को समझने व सही और गलत का निर्णय लेने की समझ विकसित करती हैं।
पुस्तक मेले का उद्देश्य नवीनतम, दुर्लभ तथा महत्वपूर्ण पुस्तकों और उसके लेखक की विचारधाराओं से पाठक वर्ग और साहित्य प्रेमियों को परिचित करवाना होता है। पुस्तक मेले ज्ञान , संस्कृति और रचनात्मकता का भंडार होते हैं । यह कल्पना शीलता बढ़ाने और सीखने की जिज्ञासा पैदा करते हैं। पुस्तक क्यों पढ़नी चाहिए : पुस्तकें पढ़ना अच्छा होता है । यह हमारी एकाग्रता बढ़ती हैं और जानकारी में इजाफा करती हैं । किताबें आपके माननीय मूल्य के कोष को बढ़ाती हैं । आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाने के साथ-साथ आपके सोचने और समझने के क्षेत्र को भी विकसित करती हैं।
आज पुस्तक मेले का स्वरूप बदल रहा है। ये सैर- सपाटे का माध्यम बनते जा रहे हैं। पुस्तक मेले में भीड़ तो होती है मगर लगता है पाठक नहीं होते। आज कुछ भी जानकारी हासिल करनी हो, नेट पर हाजिर है ।
एक क्लिक में इंटरनेट पर दूसरे देशों के ख्याति प्राप्त लेखकों  की विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हैं। आज प्रिंटिंग कॉस्ट अधिक होने के कारण पुस्तकों की कीमतें भी बढ़ जाती हैं, शायद यही कारण है कि युवा पीढ़ी पुस्तकों से दूर हो रही है ।
किताबें हमारा मनोरंजन भी करती थी पर आज लोगों के मनोरंजन का साधन मोबाइल फोन बन गया है । सब कुछ है इसमें । आधुनिक युग में तकिया के नीचे किताबें रखकर सोने की आदत अब नहीं रही । अब तकिया के नीचे किताबें नहीं मोबाइल दिखता है। आज साहित्य, प्रेम , रहस्य, विद्रोह आदि अब किताबों की बजाय स्क्रिप्ट के रूप में मोबाइल की स्क्रीन पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं । आप जो चाहें वह पलक छपकते हाजिर हो जाता है।