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गंभीर होता जा रहा वायु प्रदूषण संदर्भ : नमी बढ़ने के साथ ही बढ़ा प्रदूषण
ठंड के मौसम में हवा सघन होती है और गर्म हवा की तुलना में धीमी गति से चलती है । इसका मतलब है कि ठंडी हवा प्रदूषण को रोक लेती है लेकिन उसे दूर नहीं ले जाती। सर्दियों में वायु प्रदूषण काफी लंबे समय तक बना रहता है। वायु प्रदूषण तब होता है जब गैस, धूल , गंदगी, पराग, कालिख, वायरस आदि हवा को दूषित करते हैं, जिससे यह अशुद्ध , अस्वास्थ्यकर और विषाक्त बन जाती है ।  हवा में मौजूद वायु प्रदूषण की मात्रा मनुष्यों , जानवरों और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र प्रभाव डालती है । वाहन, कल- कारखाने, कचरा जलाना ,धूल, बिजली संयंत्र , निर्माण, विध्वंसक  गतिविधियां , विमान और विमानों  से उत्सर्जन, जंगलों में लगी आग , ज्वालामुखी विस्फोट भी वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं । 
वायु प्रदूषण के कारण क्या बीमारियां होती है : वायु प्रदूषण से चक्कर आना ,सांस लेने में कठिनाई ,अस्थमा, आंख नाक और गले में जलन  आदि परेशानियां होने लगती हैं।
कैसे करें कम : सरकार की तरफ से तो वायु प्रदूषण कम करने के प्रयास लगातार किये जा रहे हैं ,वहीं कुछ प्रयास हम लोगों को भी करने होंगे। प्रदूषण पर रोक लगाने में पेड़- पौधे सबसे पहले स्थान पर आते हैं । पूरे विश्व में जो वायु प्रदूषण बढ़ रहा है उसका एक कारण यह  भी है कि विकास के लिए अंधाधुंध पेड़ों की कटायी की जा रही है, इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करना चाहिए।
वायु प्रदूषण का सबसे बुनियादी समाधान जीवाश्म ईंधन से दूर जाना है। उसकी जगह सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और भूतापीय ऊर्जा वैकल्पिक समाधान हो सकते हैं ।
वहीं लोग निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का उपयोग  करें ।  सड़कों के किनारे अधिक से अधिक पेड़ लगाये जायें। आबादी वाले क्षेत्र खुले और हवादार हों। कल- कारखाने आबादी वाले क्षेत्रों से  होने चाहिए।
दूसरी ओर देश की राजधानी दिल्ली में बुरी तरह बढ़ चुके प्रदूषण को देखते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए उचित उपाय करने का निर्देश दिया है। प्रदूषण चाहे वह किसी तरह का हो जब वह हद से बढ़ जाता है तो मनुष्य के लिए हानिकारक बन जाता है।
बच्चों को दें संस्कार जो जीवन मूल्यों की शिक्षा देंगे संदर्भ : कलह युग बन रहा कलियुग
यह संसार है जो मधुर और कटु भी है। कटु भी मनुष्य बनता है और मधुर भी मनुष्य ही बनता है ।  इसे दो दृश्यों से समझते हैं। पहला दृश्य  लगभग 40 वर्ष की आयु की एक विधवा मां थी । उसके दो लड़के थे। लड़के काम पर लगे । संसार में सामान्यतः जैसा होता है उसी प्रकार लड़कों का विवाह हुआ । बहुएं आयीं। पर कहावत है ना सब दिन होत  न एक समान ।  मां के दिन भी पलटे। बहुएं  तो कहती ही थी ,बेटे भी  माँ की उपेक्षा करने लगे। धीरे-धीरे मां को तिरस्कार का कटु अनुभव होने लगा। कभी-कभी ऐसे शब्द भी  सुनाई पड़ते कि बुढ़िया मरती भी नहीं है ।
एक बार छोटी सी बात पर दोनों भाइयों और बहुओं में झगड़ा हो गया । दोनों अलग-अलग रहने की बात करने लगे ।  मां ने समझाया लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। बेटे अलग हो गय। मां का क्या करना है या प्रश्न उठा। छोटे ने कहा भाई आप बड़े हैं मां को आप रखो । बड़े ने कहा मां मुझ अकेले की थोड़े ही है। छोटे ने कहा कि मैं अपने हिस्से वाला खर्च देता रहूंगा। इस पर बड़े ने कहा कि मैं ही मां की सार-संभाल अकेले क्यों करूं। दोनों ने अस्विकृति दे दी।   माँ भगवान से प्रार्थना करने लगी, हे संसार के रक्षक मुझे बुला ले । पेट का जाया लड़का ही खाने को नहीं देता यह दुख किसे सुनाऊं। न किसी से कहा जाता है न  सहा जाता है।
अब एक दूसरा दृश्य देखिए ,एक मां के तीन बेटे थे। वह सभी पढ़े-लिखे । पहला प्रोफेसर बन गया,दूसरे ने व्यापार करना शुरू किया और तीसरा डॉक्टर बना। भाग्य का खेल मां लगभग 45 वर्ष की आयु में विधवा हो गयी। पिता के जाने का पुत्रों को अपार दुख हुआ परंतु उन्होंने मां के दुख के आगे अपना दुख भुलाकर मां को सान्त्वना दी।  अलग-अलग व्यवसाय होने के  कारण भाइयों को अलग-अलग रहना पड़ता था ।  मां बड़े लड़के के पास रहने लगी। एक दिन मंझला भाई बड़े के घर आय और बोला कि बड़े भाई मां आपके यहां बहुत रह चुकी अब मैं मां को ले जाना चाहता हूं । तभी छोटा भाई भी पत्नी के साथ आ गया  और दोनों कहने लगे कि मां हम आपको ले जाने के लिए आये हैं।
यह सुन कर बड़े भाई ने कहा कि मां को तो हमारे पास ही रहने दो , मां तो बड़े के पास ही अच्छी लगती है । मां एक मधुर उलझन का अनुभव करने लगी । आंखों से आंसू बहने लगे।  मन ही मन कहने लगी, बेटे हों  तो ऐसे ही हों। पहला दृश्य कलियुग या कलह युग का और दूसरा दृश्य है सत्य युग ,कर्तव्य और त्याग का उदाहरण है । अच्छा  या बुरा सभी समझते हैं परंतु ऐसे प्रसंग देख सुनकर या पढ़कर कुछ लोग ही आचरण में लाते हैं।
फिर डोली धरती संदर्भ बिहार समेत उत्तर भारत में भूकंप
भूकंप यानी पृथ्वी का डोलना ।  जब से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है तब से पृथ्वी पर भूकंप आते रहे हैं। हमारी पृथ्वी के नीचे मौजूद प्लेट्स घूमती रहती हैं , जिनके आपस में टकराने से पृथ्वी की सतह के नीचे कंपन होता है । वहीं जब प्लेट्स अपनी जगह से की खिसकती हैं तो भूकंप के झटके महसूस होते हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार धरती के अंदर कुल सात प्लेट्स होती हैं जो चलायमान रहती हैं। जहां प्लेट आपस में टकराती हैं उसे फॉल्ट जॉन कहते हैं। जब प्लेट्स टकराती हैं तो टकराहट से उत्पन्न ऊर्जा बाहर निकालने की कोशिश करती है और इससे जो हलचल होती है उसे ही भूकंप कहा जाता है ।
15 जनवरी 1934 को बिहार में सबसे खौफनाक भूकंप आया था। बताते हैं कि इस भूकंप में हजारों लोगों की जान चली गयी थी ।
वैज्ञानिकों के अनुसार बिहार का हर जिला भूकंप की जद में आता है। 38 में से पांच जिले जोन 5 में हैं, जो सबसे खतरनाक जोन माना जाता है । 22 जिले जोन 4 में आते हैं । आठ जिले जोन 3 में आते हैं। दूसरी और वैज्ञानिकों ने भूकंप बढ़ने का कारण पृथ्वी का ठंडा होना भी बताया है। बरतें सावधानी :- भूकंप आने पर यदि आप घर से बाहर हों तो जहां हैं  वहां से ना हिलें। बड़े भवनों ,पेड़ों, स्ट्रीट लाइटों तथा बिजली और टेलीफोन के तारों आदि से दूर रहें। यदि आप खुली जगह पर हैं तो वहीं रुके रहें जब तक झटका शांत ना हो जाए ।
सबसे बड़ा खतरा बिल्डिंगों के बाहर निकास द्वारों तथा इसकी बाहरी दीवारों के पास होता है ।  ज्ञात हो कि शुक्रवार की देन रात भूकंप के तेज झटके महसूस किए गये। यूपी , बिहार, दिल्ली ,उत्तराखंड में भी भूकंप के झटके महसूस किए गय। भूकंप रात में करीब 11:35 पर आया। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के मुताबिक इसकी तीव्रता 5.9 मापी गयी। भूकंप का केंद्र नेपाल था।
निष्ठुर क्यों हो रहे धरती के भगवान संदर्भ : प्रसव के दौरान डॉक्टर की लापरवाही से टूटा बच्चे का हाथ
लोगों के जीवन की रक्षा करने और बचाने की उनकी क्षमता के कारण ही डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है ।  डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है ।  भगवान ने तो हमें एक बार जीवन दे दिया लेकिन वह डॉक्टर ही  है जो भगवान के दिए जीवन पर संकट आने की स्थिति में हमारे जीवन की रक्षा करता है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां डॉक्टर ने कठिन ऑपरेशन के बाद मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुके लोगों की जान बचायी। बच्चे को जन्म देना हो या  वृद्ध को बचाना हो तो डॉक्टरों की मदद हमेशा काम आती है । 
यही एक ऐसा पेशा है जिसे सबसे पवित्र माना जाता है ।  कठिन परिश्रम और कई वर्षों की अथक पढ़ाई के बाद डॉक्टर बनता है । हालांकि आज इस पेशे का व्यवसायीकरण हो चुका है। डाक्टरी का पेशा आज बहुत ही मुश्किलों से भरा है।
दूसरी ओर वर्तमान समय में पैसे की लालच में ऐसे भी लोग हैं जो चिकित्सा पेशे को कलंकित कर देते हैं । ऐसे लोग कुछ पैसे के लिए लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर देते हैं । ताजा मामला एक शिशु का है जिसने अभी ठीक तरह से दुनिया को देखा भी नहीं था कि एक झोला छाप चिकित्सक ने  कुछ पैसों की खातिर उसे अपंग बना दिया । प्रसव के दौरान जबरदस्ती गर्भ से बाहर निकालने के दौरान बच्चों के बाएं हाथ की हड्डी कई जगह से टूट गयी। ऐसे कई उदाहरण है जिसमें डॉक्टरों की लापरवाही सामने साफ दिखाई देती है । ऑपरेशन के बाद पेट में बैंडेज ,कैंची ,  तौलिया आदि छोड़ देना और टांके लगा देना यह लापरवाही ही दर्शाता है । लोगों को जब इन बातों की जानकारी होती है तो वैसे डॉक्टर के प्रति उनका क्रोध कभी-कभी हिंसक रूप ले लेता है ।
दूसरी और डॉक्टर को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके पास जो लोग अपने मरीज को लेकर आते हैं ,वे तो पहले से ही परेशान रहते हैं ऊपर से अगर लापरवाही से मरीज की परेशानी जब बढ़ जाती है तो वह और भी परेशान हो जाते हैं । इसलिए डॉक्टर को भी चाहिए कि वह मरीज के साथ-साथ परिजनों को भी सात्वना देते रहें। अपने कर्तव्य का पालन सही ढंग से करें ताकि मरीज की जान बन सके और उनके परिजन को भी संतुष्टि मिल सके कि उनका मरीज स्वस्थ हो गया ।
और अंत में डॉक्टर पृथ्वी के भगवान हैं यह बात सही साबित करने के लिए अपने कर्तव्य का उनको सही ढंग से पालन करना होगा । किसी एक की गलती की वजह से बदनामी सारे चिकित्सा पेशे को कलंकित कर देती है।
बदल रहा है मौसम रहिए सतर्क संदर्भ : गर्मी का जाना और ठंड का आना
मौसम में बदलाव होने का असर सभी लोगों पर पड़ता है। चाहे वह बच्चे हों, जवान हों, अधेड़ हों या बुजुर्ग सभी संक्रमित हो जाते हैं ।  मौसम हमारे शरीर ,मन और भावनाओं सबको प्रभावित करता है ।  मौसम के  बदलने पर अक्सर मौसमी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस समय बीमारियों का शिकार हो सकते हैं । 
मौसमी फल और सब्जियों का करें सेवन : बदलते मौसम में हेल्दी रहने के लिए मौसमी फल और सब्जियां स्वस्थ रहने के लिए बहुत ही जरूरी हैं इससे आपको मौसमी बीमारियों से निपटने में भरपूर ताकत मिलेगी । 
पानी खूब पीएं : चाहे मानसून हो या गर्मी या सर्दी आपको नियमित रूप से दो से तीन लीटर तक पानी अवश्य पीना पीना चाहिए ।  पानी पीने का कोई ऑप्शन नहीं हो सकता। वही काम और व्यस्तताओं के बीच हम आराम करना भूल जाते हैं ।  अनुशासित जीवन स्वस्थ जीवन की कुंजी है इसलिए उचित दिनचर्या बनाएं और शरीर को आराम के लिए कुछ समय दें ।
ठंड का मौसम सेहत के लिए लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है लेकिन जरा सी लापरवाही आपकी सेहत पर भारी पड़ सकती है ।  इस मौसम में सर्दी ,खांसी, बुखार जैसी बीमारियों का खतरा अधिक रहता है । ठंड से बचने के लिए सिर्फ गर्म कपड़े ही काफी नहीं होते बल्कि खान-पान में अभी बदलाव जरूरी है, क्योंकि बाहर के साथ-साथ बॉडी को  भीतर से  भी गर्म रखना बहुत जरूरी होता  है ।  ठंड में गुड़ का सेवन करना लाभप्रद माना जाता है ।  गुड में मिनरल और विटामिन होते हैं जो सर्दी, जुकाम, अस्थमा आदि से हमें बचाते हैं । ठंड में गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक ,लहसुन ,नट्स, हल्दी , खजूर आदि का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद रहता है । ठंड में लोंग ,तुलसी ,काली मिर्च और अदरक से बनी चाय का सेवन करें। वहीं मौसमी बीमारियों से बचने के लिए शारीरिक रूप से एक्टिव रहे । और अंत में
स्वस्थ रहें और मस्त रहें।
बदल रहा है मौसम रहिए सतर्क संदर्भ : गर्मी का जाना और ठंड का आना
मौसम में बदलाव होने का असर सभी लोगों पर पड़ता है। चाहे वह बच्चे हों, जवान हों, अधेड़ हों या बुजुर्ग सभी संक्रमित हो जाते हैं ।  मौसम हमारे शरीर ,मन और भावनाओं सबको प्रभावित करता है ।  मौसम के  बदलने पर अक्सर मौसमी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस समय बीमारियों का शिकार हो सकते हैं । 
मौसमी फल और सब्जियों का करें सेवन : बदलते मौसम में हेल्दी रहने के लिए मौसमी फल और सब्जियां स्वस्थ रहने के लिए बहुत ही जरूरी हैं इससे आपको मौसमी बीमारियों से निपटने में भरपूर ताकत मिलेगी । 
पानी खूब पीएं : चाहे मानसून हो या गर्मी या सर्दी आपको नियमित रूप से दो से तीन लीटर तक पानी अवश्य पीना पीना चाहिए ।  पानी पीने का कोई ऑप्शन नहीं हो सकता। वही काम और व्यस्तताओं के बीच हम आराम करना भूल जाते हैं ।  अनुशासित जीवन स्वस्थ जीवन की कुंजी है इसलिए उचित दिनचर्या बनाएं और शरीर को आराम के लिए कुछ समय दें ।
ठंड का मौसम सेहत के लिए लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है लेकिन जरा सी लापरवाही आपकी सेहत पर भारी पड़ सकती है ।  इस मौसम में सर्दी ,खांसी, बुखार जैसी बीमारियों का खतरा अधिक रहता है । ठंड से बचने के लिए सिर्फ गर्म कपड़े ही काफी नहीं होते बल्कि खान-पान में अभी बदलाव जरूरी है, क्योंकि बाहर के साथ-साथ बॉडी को  भीतर से  भी गर्म रखना बहुत जरूरी होता  है ।  ठंड में गुड़ का सेवन करना लाभप्रद माना जाता है ।  गुड में मिनरल और विटामिन होते हैं जो सर्दी, जुकाम, अस्थमा आदि से हमें बचाते हैं । ठंड में गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक ,लहसुन ,नट्स, हल्दी , खजूर आदि का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद रहता है । ठंड में लोंग ,तुलसी ,काली मिर्च और अदरक से बनी चाय का सेवन करें। वहीं मौसमी बीमारियों से बचने के लिए शारीरिक रूप से एक्टिव रहे । और अंत में
स्वस्थ रहें और मस्त रहें।
दीपावली व महापर्व छठ घर कैसे आएंगे परदेसी संदर्भ : ट्रेनों में सीट नहीं विमान किराया भी बढ़ा
भारत त्योहारों का देश है ।  यहां हर त्योहार परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर मनाते हैं ।  वहीं जो बाहर रहते हैं वह भी समय पर अपने पैतृक गांव जाकर परिजनों के साथ त्योहार का आनंद उठाते हैं ।  ज्ञात हो कि इस साल दीपावली 12 नवंबर तथा महापर्व छठ की शुरुआत 17 नवंबर को नहाए - खाए के साथ होगी । यह दोनों ही पर्व ऐसे हैं जो परिवार के साथ मनाए जाते हैं। घर से बाहर रहने वाले भी अपने कार्यों से छुट्टी लेकर पहले से ही घर आ जाना चाहते हैं ।
कैसे आएंगे घर :  ज्ञात हो कि दिल्ली , कोलकाता ,मुंबई, अहमदाबाद , बेंगलुरु समेत अन्य शहरों में बिहार के लोग बड़ी संख्या में कार्य करते हैं और सभी पर्व- त्योहार पर अपने घर आना चाहते हैं , मगर उन शहरों से बिहार आने के लिए दीपावली से लेकर छठ तक ट्रेनों में कोई सीट ही उपलब्ध नहीं है ,वहीं हवाई जहाज का किराया भी तिगुना- चौगान हो गया है । अधिकतर ट्रेनों में छठ से पहले के टिकट बुक हो चुके हैं या लंबी वेटिंग लिस्ट है । 
यात्रियों को मिलेगी राहत : वहीं यात्रियों की सहूलियत के लिए भारतीय रेलवे द्वारा दीपावली और छठ के मद्देनजर स्पेशल ट्रेनें बिहार के विभिन्न स्टेशनों से चलायी जाएंगी। साथ ही भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त कोच भी विभिन्न ट्रेनों में जोड़े जाएंगे ।  इसके साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से स्पेशल ट्रेनें भी चलायी जायेंगी।
यात्रा के दौरान रहें सावधान  : वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में यात्री जब छठ महापर्व पर बिहार आते हैं तो ट्रेनों में नशा खुरानी  गिरोह भी सक्रिय हो जाते हैं ।  इस गिरोह के सदस्य  यात्रियों  से जान - पहचान कर उन्हें नशीली चीजें  (  बिस्कुट, खैनी आदि ) खिलाकर बेहोश कर देते हैं और गिरोह के सदस्य उसका सामान लूट कर फरार हो जाते हैं। इसलिए इस अवसर पर यात्रियों को सावधान रहना चाहिए। साथ ही अपने सामान पर नजर रखनी चाहिए। अनजाने लोगों द्वारा मेलजोल बढ़ाने पर सावधान हो जाएं। साथ ही अनजान लोगों द्वारा दी गयी खाने- पीने की चीजों से परहेज करें और सुखद यात्रा का आनंद उठाएं।
वायु प्रदूषण से रहें सावधान हो सकते हैं बीमार संदर्भ : राजधानी पटना का एक्यूआई लेवल 200 के पार
वायु प्रदूषण का मतलब हवा में किसी भी भौतिक, रासायनिक या जैविक परिवर्तन है । यह हानिकारक गैसों और धूल द्वारा वायु का प्रदूषण होता है, जो मनुष्यों, जानवरों और पेड़ - पौधों पर असर डालता है । ज्ञात हो कि वायुमंडल में गैसों का निश्चित प्रतिशत मौजूद है । इन गैसों की संरचना में वृद्धि या कमी मानव अस्तित्व के लिए हानिकारक है । इस असंतुलन के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई जिसे ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जाना जाता है।
वायु प्रदूषण के कारण :  आवागमन के साधनों से निकलने वाली गैस  पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं । वाहन ग्रीन हाउस गैसों के प्रमुख स्रोत हैं । इसके साथ ही  कारखाने- उद्योग भी कार्बन मोनोऑक्साइड ,कार्बनिक यौगिक, हाइड्रोकार्बन और रसायनों के मुख्य स्रोत है ।  इन्हीं से हवा की गुणवत्ता खराब होती है । वहीं घरेलू सफाई उत्पाद और पेंट में जहरीले रसायन होते हैं जो हवा में आसानी से फैल कर उसे प्रदूषित कर देते हैं ।
दूसरी ओर हवा में नमी बढ़ने के कारण वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगता है । नम हवा में धूल कणों की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ने लगी है ।
क्या पड़ता है प्रभाव : वायु प्रदूषण के कारण मनुष्यों में श्वसन संबंधी बीमारियां ,हृदय रोग ,फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं ।वहीं प्रदूषित क्षेत्रों के आसपास रहने वाले बच्चों में निमोनिया और अस्थमा का खतरा अधिक रहता है । साथ ही प्रदूषण का असर पेड़ - पौधों और जानवरों पर भी पड़ता है ।
क्या हो निदान : वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग किया जाए । दूसरी ओर ई वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए ।  वहीं पेट्रोल और डीजल चालित वाहनों का प्रयोग बंद किया जाए और उसकी जगह सीएनजी वाले वाहनों को उपयोग में लाया जाए । साथ ही गोइंग ग्रीन जीवन शैली को अपनाना होगा अपनाना होगा ।
पौधे लगाएं : पेड़ - पौधे हवा की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं, इसलिए अधिक से अधिक पौधा रोपण करना चाहिए साथ ही हमें सौर ऊर्जा का आधिकारिक प्रयोग करना चाहिए। और अंत में वायु प्रदूषण को कम करना किसी एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं है । इसके लिए सभी को संवेदनशील होना होगा । वैसे सरकार भी इस समस्या को लेकर पहले से ही प्रयासरत है । सरकार की तरफ से वायु प्रदूषण कम करने के लिए सड़कों पर एंटी स्मोक गन से पानी का छिड़काव किया जाता है।
म्यूजिक थैरेपी से मन और तन दोनों होते हैं स्वस्थ संदर्भ : मरीजों की थमती सांसों में जान फूंक रहा संगीत मरीजों के स्वस्थ होने में लग रहा कम समय
संगीत के बारे में एक अच्छी बात यह है कि जब यह आप पर प्रभाव डालता है तो आपको कोई दर्द महसूस नहीं होता। आधुनिक युग में हुए  कई शोधों  से हमें  मालूम होता है कि संगीत सुनते वक्त मानव मस्तिष्क कुछ प्राकृतिक रसायन छोड़ता है। शरीर का तंत्रिका तंत्र एंडोर्फिन नामक रसायन का उत्सर्जन करता है जो दर्द और तनाव को कम करने में मदद करता है।
काफी कारगर है : संगीत थैरेपी तनाव को कम करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में काफी कारगर मानी जाती है। म्यूजिक थैरेपी सभी उम्र और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों की मदद करती है। संगीत सुनने से मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है जो भावनाओं को उत्पन्न और नियंत्रित करते हैं।
संगीत चिकित्सा आमतौर पर काफी सुरक्षित होती है और इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है, लेकिन बहुत तेज या विशेष प्रकार का संगीत कुछ लोगों को परेशान कर सकता है।
संगीत सुनने से शरीर डोपामाइन नामक हार्मोन रिलीज करता है जो लोगों को अच्छा महसूस कराता है। संगीत सुनने से चिंता, रक्तचाप और दर्द कम हो सकता है। साथ ही नींद की गुणवत्ता, मानसिक सतर्कता और यादाश्त में सुधार हो सकता है।
सैड सांग्स ज्यादा कारगर : 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने ऐसे लोगों को विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय संगीत सुनने को कहा जो पहले अवसाद से पीड़ित थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रतिभागियों ने अधिक तेज संगीत के बजाय सैड सांग्स ज्यादा पसंद किये क्योंकि उन्हें यह ज्यादा आरामदायक लगे। सैड सांग्स सुनने से लोगों को अपनी भावनाओं को स्वस्थ तरीके से अभिव्यक्त करने की ताकत मिलती है। सच में संगीत भगवान् की ऐसी देन है जो बीमार और अस्वस्थ मनुष्यों को नयी ताजगी और स्वास्थ्य दुबारा प्रदान करता है।
ध्वनि प्रदूषण से मानव व्यवहार में आ रहा परिवर्तन संदर्भ : दुर्गा पूजा में अत्यधिक रहा ध्वनि प्रदूषण
साधारणतया एक मनुष्य की क्षमता 30 से 40 डेसिबल ध्वनि सहन करने की होती है। इससे अधिक तीव्रता वाली ध्वनि मनुष्य पर हानिकारक प्रभाव डालती है। आधुनिक युग ने हमें उच्च शक्ति वाली मशीनों से परिचित करवाया। ये हमारे चारों तरफ हैं और इनसे उच्च ध्वनि निकलती है। हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन और कारखानों के आसपास रहने वाले लोग ध्वनि प्रदूषण के अधिक शिकार होते हैं। दुनिया भर में ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत बड़ी- बड़ी मशीनें, परिवहन प्रणाली और प्रसार प्रणालियां हैं।
क्या होता है असर : ध्वनि प्रदूषण का वायुमंडल पर भी व्यापक असर पड़ता है। लोगों की श्रवण शक्ति कम होने लगती है। अनिद्रा की बीमारी हो सकती है। साथ ही हृदय रोग  तथा रक्तचाप की समस्याएं बढ़ जाती हैं। ध्वनि प्रदूषण केवल मनुष्यों पर ही बुरा प्रभाव नहीं डालता पशु- पक्षी भी इससे प्रभावित होते हैं। ध्वनि प्रदूषण का असर समुद्रीय जीवन फर भी पड़ता है।
कैसे करें कम : ध्वनि प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों को लेकर सरकार ने भी इसे कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाये हैं। साथ ही सरकार जागरूकता अभियान भी चला रही है। पौधारोपण से भी ध्वनि प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। दूसरी तरफ ऐसी तकनीक का उपयोग करना होगा जिससे कम ध्वनि प्रदूषण हो। साथ ही ध्वनि अवशोषक का प्रयोग करना होगा। वहीं अनावश्यक ध्वनि पैदा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी होगी।