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कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की बढ़ीं मुश्किलें, ईडी ने दर्ज की नई शिकायत, मुडा मामले में सबूत नष्ट करने का आरोप

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मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री मूडा में कथित घोटाले को लेकर लगातार घिरते जा रहे हैं। अब उनके और अन्य लोगों के खिलाफ एक नई शिकायत दर्ज कराई गई है। मुडा मामले में सबूतों को नष्ट करने का आरोप लगा है। मूडा मामले में सुबूतों को नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री और उनके बेटे यतीन्द्रा के खिलाफ ईडी ने एक और शिकायत को दर्ज किया है।

प्रदीप कुमार नाम के एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने सिद्धारमैया एवं अन्य के खिलाफ सबूतों से छेड़छाड़ के लिए जांच और मामला दर्ज करने की मांग की।इस शिकायत में दावा किया गया है कि मुडा अधिकारियों की संलिप्तता से साइटों को पुनः प्राप्त करके साक्ष्य नष्ट कर दिए गए हैं। प्रदीप कुमार ने जांच का अनुरोध किया है और साक्ष्यों से छेड़छाड़ के लिए मामला दर्ज करने की मांग की है।

25 सितंबर को विशेष अदालत ने लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया था। इस आदेश के बाद 27 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, उनकी पत्नी पार्वती बीएम सिद्धरमैया, उनके साले मल्लिकार्जुन स्वामी एवं देवराजू सहित अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। ईडी ने भी मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ 14 भूखंडों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले में मामला दर्ज किया है। वहीं पार्वती ने भूखंड लौटाने की पेशकश की तो एमयूडीए ने उनको आवंटित 14 भूखंडों को वापस ले लिया है।

कथित मुडा भूमि घोटाला क्या है?

मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया।

मुख्यमंत्री की पत्नी का 50:50 योजना से क्या संबंध?

आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी।

मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया था, जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित की गई थीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं।

सिद्धारमैया की बढ़ी मुश्किलें तो पत्नी ने उठाया बड़ा कदम, क्या प्लॉट सरेंडर करने से कम होगी मुश्किल?

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कर्नाटक के चर्चित मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने सिद्धारमैया के खिलाफ केस दर्ज किया है। मुडा स्कैम में सिद्धारमैया और उनके परिवार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी की जांच शुरू कर दी है। इस बीच सिद्धारमैया की पत्नी ने बड़ा कदम उठाया है। पार्वती ने मुडा को पत्र लिखकर उन्हें आवंटित 14 प्लॉट वापस करने की बात कही है। अब सवाल उठता है कि जमीन लौटाने का दांव कारगर साबित होगा? 

सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती ने मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण मुडा को पत्र लिखा है। पार्वती ने कहा है कि मुडा से मुझे जो प्लॉट मिले हैं, वो मैं वापस करना चाहती हूं। पार्वती ने मुडा से कहा है कि उनके लिए पति ज्यादा जरूरी है, इसलिए मैं उन 14 साइटों को वापस करना चाहती हूं, जो मुझे आवंटित की गई है। पार्वती के इस फैसले पर मुडा की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं सिद्धारमैया ने पार्वती के इस पत्र पर कहा है कि ये उनका फैसला है, लेकिन मैं लंबी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार हूं।

बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुडा भूमि मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पार्वती और अन्य पर मामला दर्ज किया है। एफआईआर में पार्वती के भाई मल्लिकार्जुन स्वामी भी शामिल हैं। आरोप है कि उन्होंने जमीन खरीदी थी और बाद में उसे पार्वती को तोहफे में दे दिया था। यह मामला लोकायुक्त की एफआईआर के बाद दर्ज किया गया है। ईडी का मामला इस आरोप पर आधारित है कि पार्वती को मैसूरु के एक प्रमुख स्थान पर मुआवजे के 14 प्लॉट आवंटित किए गए थे। इस प्लॉट आवंटन में लेनदेन की वैधता पर सवाल उठे हैं। 

पिछले हफ्ते बेंगलुरु की एक विशेष अदालत द्वारा मामले में सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस जांच का आदेश देने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी। कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार, सिद्धारमैया को पूछताछ के लिए बुलाने के लिए ईडी अधिकृत है और जांच के दौरान उनकी संपत्ति भी कुर्क कर सकता है। पिछले हफ्ते एक बयान में, सिद्धारमैया ने आरोपों का जवाब देते हुए दावा किया कि राजनीतिक प्रतिशोध के परिणामस्वरूप मामले में उन्हें अनुचित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।

साल 2020 में मुडा ने एक स्कीम की शुरुआत की। स्कीम में कहा गया कि जिन लोगों की जमीन विकास के काम के लिए लिया जाएगा, उन्हें 50-50 पॉलिसी के तहत मैसूर शहर में प्लॉट और मुआवजा दिया जाएगा। बीजेपी सरकार की तरफ से शुरू की गई इस स्कीम की खूब आलोचना हुई, जिसके बाद 2023 में इसे रद्द कर दिया गया। सिद्धारमैया परिवार पर फर्जी दस्तावेज और पावर का दुरुपयोग कर इस स्कीम का लाभ लेने का आरोप है। सिद्धारमैया की पत्नी पर करीब 55 करोड़ रुपए का लाभ लेने का आरोप है। हालांकि, सिद्धारमैया इस पूरे मामले को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर, MUDA स्कैम मामले में बढ़ सकती हैं मुश्किलें

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले मामले में एफआईआर दर्ज की है। कर्नाटक के एक स्पेशल कोर्ट ने लोकायुक्त टीम को जांच का जिम्मा सौंपा है। याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जन प्रतिनिधि कोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक लोकयुक्त से इस मामले की जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद आज मैसूरु लोकयुक्त पुलिस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला दर्ज किया।

लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम और भूमि कब्जा निवारण अधिनियम के तहत अदालत द्वारा निर्धारित आईपीसी धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज की। सीएम सिद्धारमैया पर आरोप A 1 है, पत्नी पार्वती पर आरोप A 2 है। वहीं, मुख्यमंत्री के साले मल्लिकार्जुन स्वामी को आरोपी नम्बर 3 और देवराज को आरोपी नम्बर 4 बनाया गया है। मुख्यमंत्री पर अपने अधिकारों को दुरुपयोग करके उनकी पत्नी के नाम मैसुरु में MUDA साइट आवंटित करने का आरोप लगा है।

सिद्धरमैया ने बीजेपी पर साधा निशाना

वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने शुक्रवार को दावा किया कि मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि आवंटन मामले में उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि विपक्ष उनसे डरता है। इसके साथ ही, सिद्धरमैया ने कहा कि यह उनके खिलाफ पहला राजनीतिक मामला है। मुख्यमंत्री ने दोहराया कि मामले में अदालत द्वारा उनके खिलाफ जांच का आदेश दिये जाने के बाद भी वह इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कानूनी रूप से लड़ाई लड़ेंगे।

केंद्र सरकार पर सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों और देश भर में विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासन में राज्यपाल के ‘हस्तक्षेप’ के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की जरूरत है।

खरगे ने क्या कहा?

इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि इस मामले में कानून अपना काम करेगा। उन्होंने कहा कि MUDA के लोग जो चाहें वे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह जरूरी नहीं है कि सरकार उसके सभी सवालों का जवाब दें, क्योंकि वह एक स्वायत्त निकाय होने के कारण कार्रवाई कर ही सकता है।

खरगे ने सीएम सिद्धारमैया का समर्थन करते हुए कहा कि उनलोगों निजी तौर पर कोई भी अपराध यदि किया हो तो इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं, लेकिन वह ऐसा मानते हैं कि उन्होंने ऐसा कोई भी अपराध नहीं किया है। उन्हें बदनाम किया जा रहा है। पार्टी को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने साफ कहा कि सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता है।

जांच की जरूरत, MUDA घोटाले में सीएम सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा : कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में राज्यपाल द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत और राज्यपाल की मंजूरी उचित है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत जांच का आदेश दिया गया था। उच्च अदालत ने सिद्धारमैया की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में तथ्यों की जांच की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि राज्यपाल का मंजूरी आदेश प्रथम दृष्टया दोषी होने का कोई कारण नहीं बताता है और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां सीमित हैं। वहीं, सिद्धारमैया की ओर से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एक निर्वाचित लोक सेवक के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही चुनावी प्रक्रिया को कमजोर कर सकती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए को 2010 से पहले के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कानून 2010 के बाद लागू हुआ था।

दूसरी ओर, राज्यपाल कार्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्यपाल ने सभी तथ्यों पर विचार कर मंजूरी दी है, और इस स्तर पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस फैसले के बाद कांग्रेस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ, पार्टी के नेता और वकील, सीएम को कानूनी प्रक्रिया से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों में भ्रष्टाचार के बड़े मामले सामने आ रहे हैं।

कर्नाटक के अलावा, झारखंड में भी कांग्रेस के नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। झारखंड में कांग्रेस मंत्री आलमगीर आलम के नौकर के घर से 30 करोड़ रुपये नकद मिले थे, जबकि कांग्रेस सांसद धीरज साहू के पास से 350 करोड़ रुपये की बरामदगी हुई थी। कर्नाटक में भी वाल्मीकि विकास विभाग में कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था।

कर्नाटक सीएम सिद्दरमैया की बढ़ी मुश्किलें, कोर्ट ने लोकायुक्त को सौंपी जांच; तीन महीने में देनी होगी रिपोर्ट

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया को बुधवार को एमपी/एमएलए कोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। विशेष अदालत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाला में सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ लोकायुक्त जांच की मंजूरी दी है। कर्नाटक लोकायुक्त की मैसूरु जिला पुलिस को MUDA घोटाले की जांच कर 3 महीने में रिपोर्ट सौंपनी होगी।

न्यायाधीश संतोष गजानन भट ने मामले की जांच मैसूर जिले के लोकायुक्त अधीक्षक को सौंपी है। उन्हें तीन महीने यानी 24 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी।जांच अधिकारी के पास सीएम से पूछताछ करने और गिरफ्तार करने का भी अधिकार होगा। अदालत ने स्पष्ट कहा कि मामले की जांच सीआरपीसी की धारा 156 (3) के प्रावधानों के तहत की जाएगी। सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद जांच शुरू की जाएगी।

बता दें, याचिकाकर्ता कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने एक निजी शिकायत के साथ जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इसी पर कोर्ट ने जांच का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के सामने मुडा घोटाला उठाया था। राज्यपाल ने सीएम के खिलाफ अभियोजन चलाने की मंजूरी दी थी। मगर 19 अगस्त को सीएम सिद्दरमैया ने राज्यपाल के आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। मगर वहां भी राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को बरकरार रखा।

अदालत के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कल धारा 17 ए के तहत जांच का आदेश दिया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद जन प्रतिनिधि अदालत ने फैसला सुनाया है। कोर्ट के आदेश की कॉपी मिलने के बाद मैं जवाब दूंगा। उन्होंने कहा कि मैं जांच का सामना करने के लिए तैयार हूं। मुझे जांच से कोई डर नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरे आदेश की कॉपी मिलने के बाद अगला निर्णय लिया जायेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोर्ट का आदेश मिलने के बाद वह वकील से चर्चा करेंगे और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।

*కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పుతో సీఎం సిద్ధరామయ్య కుర్చీకి చిక్కు! రాజీనామా చేయాలని బీజేపీ డిమాండ్*

ముడా (మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ) కేసులో కర్నాటక ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్యకు ఎదురుదెబ్బ తగిలింది. గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాల్ చేస్తూ ఆయన వేసిన పిటిషన్‌ను కోర్టు తోసిపుచ్చింది. హైకోర్టు తీర్పు తర్వాత ఇప్పుడు బీజేపీ ఆయనపై విరుచుకుపడుతోంది. ఆయన రాజీనామా చేయాలని ప్రతిపక్షాలు నిరంతరం డిమాండ్ చేస్తున్నాయి.

సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలని డిమాండ్

కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పు చారిత్రాత్మకమని కేంద్ర మంత్రి ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. ప్రభుత్వం, సిద్ధరామయ్య తప్పు చేశారన్నారు. ముందుగా సీఎం పదవికి రాజీనామా చేసి ఉండాల్సింది కానీ నిజానిజాలు తెలుసుకుని విచారణ నుంచి తప్పించుకోవాలన్నారు. అందుకే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాలు చేశారు. గవర్నర్ ఫోటోను చెప్పులతో కొట్టారు. టెర్రర్ సృష్టించేందుకు ఇలా చేశారన్నారు. ఏమాత్రం ఆలస్యం చేయకుండా సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలి. వివరణాత్మక మరియు నిష్పక్షపాత దర్యాప్తు జరగాలి, దాని కోసం అతను రాజీనామా చేయాలి.

కర్ణాటక ప్రభుత్వాన్ని కూల్చే ఉద్దేశం బీజేపీకి లేదు - ప్రహ్లాద్ జోషి

రాజకీయ అధికారం లేకుండా ఇది జరగదని ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. దీనిపై సీబీఐతో విచారణ జరిపించాలి. కర్నాటక ప్రభుత్వాన్ని పడగొట్టాలన్నా, అస్థిరపరచాలన్నా బీజేపీకి ఎలాంటి ఉద్దేశం లేదు, అలాంటి ప్రయత్నాలేవీ చేయడం లేదు. ఎవరు సీఎం అవుతారో తేల్చుకోవాల్సింది కాంగ్రెస్సే. కాంగ్రెస్ మరొకరిని సీఎం చేయాలి. బీజేపీ మాత్రం ప్రతిపక్షంలో కూర్చుంటుంది.

త్వరలోనే నిజం బయటకు వస్తుందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు

అదే సమయంలో, కోర్టు ఈ ఆదేశాల తర్వాత సిద్ధరామయ్య స్పందన వెలుగులోకి వచ్చింది. బీజేపీ, జేడీఎస్‌లను టార్గెట్ చేస్తూ ఇది రాజకీయ పోరు అని అన్నారు. రాష్ట్ర ప్రజలు నా వెంటే ఉన్నారు. మరికొద్ది రోజుల్లో నిజానిజాలు బయటకు వస్తాయని, విచారణ రద్దవుతుందని విశ్వసిస్తున్నాను. సెక్షన్ 218 కింద గవర్నర్ జారీ చేసిన ఉత్తర్వులను కోర్టు పూర్తిగా తిరస్కరించిందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు. గవర్నర్ ఉత్తర్వుల్లోని సెక్షన్ 17ఎకి మాత్రమే న్యాయమూర్తులు పరిమితమయ్యారు. అటువంటి విచారణ చట్టం ప్రకారం అనుమతించబడుతుందా లేదా అనే దానిపై నేను నిపుణులను సంప్రదిస్తాను. న్యాయ నిపుణులతో చర్చించిన తర్వాత పోరాట రూపురేఖలు నిర్ణయిస్తాను.

సిద్ధరామయ్యకు సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లే అవకాశం ఉంది

అయితే, ఈ కేసులో ముఖ్యమంత్రిపై దర్యాప్తునకు ఆమోదం తెలిపే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని ఆమోదించడం ద్వారా సిద్ధరామయ్యను హైకోర్టు తీవ్ర ఇబ్బందుల్లోకి నెట్టింది. ఇప్పటి వరకు, హైకోర్టు నుండి స్టే ఆర్డర్ కారణంగా, దిగువ కోర్టు ద్వారా ఈ కేసులో చర్యలు ప్రారంభించబడలేదు. ఇప్పుడు ఈ స్టే ఆర్డర్ వల్ల స్టే ఎత్తివేయడంతో సిద్ధరామయ్యపై చట్టపరమైన చర్యలు తీసుకునే అవకాశం ఉంది. ఇప్పటికే ఆయన పదవి నుంచి వైదొలగాలని విపక్షాలు ఒత్తిడి చేస్తుండగా, కాంగ్రెస్ పార్టీలో కూడా దీనిపై తీవ్ర దుమారం చెలరేగింది. ప్రస్తుతం సిద్ధరామయ్య ముందున్న మొదటి ఆప్షన్ సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లి మళ్లీ ఈ కేసులో స్టే ఆర్డర్ తెచ్చుకునే ప్రయత్నం చేయడమే.

ఆరోపించిన ముడా భూ కుంభకోణం ఏమిటి?

పట్టణాభివృద్ధిలో భూములు కోల్పోయిన వారి కోసం ముడ ఒక పథకాన్ని తీసుకొచ్చింది. 50:50 అనే ఈ పథకంలో, భూమి కోల్పోయిన వ్యక్తులు అభివృద్ధి చేసిన భూమిలో 50% అర్హులు. ఈ పథకం మొదటిసారిగా 2009లో అమలులోకి వచ్చింది. దీన్ని 2020లో అప్పటి బీజేపీ ప్రభుత్వం మూసివేసింది.

ఈ పథకాన్ని ప్రభుత్వం నిలిపివేసిన తర్వాత కూడా ముడ 50:50 పథకం కింద భూములను సేకరించి కేటాయిస్తూనే ఉంది. వివాదమంతా దీనికి సంబంధించినదే. ఇందులోభాగంగా ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి బెనిఫిట్‌లు ఇచ్చారని ఆరోపించారు.

మూడా అంటే ఏమిటి?

మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ లేదా MUDA అనేది కర్ణాటక రాష్ట్ర స్థాయి అభివృద్ధి సంస్థ, ఇది మే 1988లో ఏర్పడింది. MUDA యొక్క విధి పట్టణ అభివృద్ధిని ప్రోత్సహించడం, నాణ్యమైన పట్టణ మౌలిక సదుపాయాలను అందించడం, సరసమైన గృహాలను అందించడం, గృహనిర్మాణం మొదలైనవి.

ఆరోపణ ఏమిటి?

ముఖ్యమంత్రి భార్యకు చెందిన 3 ఎకరాల 16 గుంటల భూమిని ముడ కబ్జా చేసిందని ఆరోపించారు. ప్రతిఫలంగా ఉన్నతస్థాయి ప్రాంతంలో 14 స్థలాలు కేటాయించారు. మైసూరు శివార్లలోని కేసరేలోని ఈ భూమిని 2010లో ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి ఆయన సోదరుడు మల్లికార్జున స్వామి కానుకగా ఇచ్చారు. ఈ భూమిని సేకరించకుండానే దేవనూరు మూడోదశకు ముడ ప్రణాళిక రూపొందించిందని ఆరోపించారు.

ముఖ్యమంత్రి కె పార్వతి పరిహారం కోసం దరఖాస్తు చేసుకున్నారు, దాని ఆధారంగా ముడ విజయనగరం III మరియు IV ఫేజ్‌లలో 14 స్థలాలను కేటాయించింది. రాష్ట్ర ప్రభుత్వం యొక్క 50:50 నిష్పత్తి పథకం కింద మొత్తం 38,284 చదరపు అడుగుల కేటాయింపు జరిగింది. ముఖ్యమంత్రి సతీమణి పేరున కేటాయించిన 14 స్థలాల్లో కుంభకోణం జరిగినట్లు ఆరోపణలు వస్తున్నాయి. పార్వతికి ముడ ద్వారా ఈ స్థలాల కేటాయింపులో అక్రమాలు జరిగాయని ప్రతిపక్షాలు అంటున్నాయి.

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के बाद सीएम सिद्धारमैया की कुर्सी संकट में! बीजेपी मांग रही इस्तीफा*
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं।MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) मामले में उन्हें हाई कोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट की ओर से फैसला आने के बाद अब उन पर बीजेपी हमलावर दिख रही है। विपक्ष लगातार उनसे इस्तीफे की मांग कर रही है। *सिद्धारमैया से इस्तीफे की मांग* केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। सरकार और सिद्धारमैया ने गड़बड़ी की है। उनको सीएम पद से पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए था पर वो सच जानते हैं और जांच से बचना चाहते हैं। इसलिए राज्यपाल के फैसले को चैलेंज किया। गवर्नर के फोटो को चप्पल से मारा गया। यह टेरर पैदा करने के लिए किया गया। बिना देरी किए सिद्धारमैया को इस्तीफा दे देना चाहिए। इसकी विस्तृत और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, जिसके लिए उनको इस्तीफा देना चाहिए। *बीजेपी का कर्नाटक सरकार गिराने का इराना नहीं-प्रह्लाद जोशी* प्रह्लाद जोशी ने आगे कहा कि बिना पॉलिटिकल पावर के यह नहीं हो सकता। सीबीआई से इसकी जांच कराई जाए। बीजेपी का कर्नाटक सरकार गिराने या अस्थिर करने का न इरादा है और न कोई ऐसी कोशिश कर रहे हैं। यह कांग्रेस को तय करना है कि कौन सीएम बनेगा। किसी और को सीएम बनाए कांग्रेस। बीजेपी विपक्ष में ही बैठेगी। *सिद्धारमैया बोले- सच्चाई जल्द सामने आएगी* वहीं, कोर्ट के इस आदेश के बाद सिद्धारमैया की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने बीजेपी और जेडीएस पर निशाना साधते हुए कहा कि ये सियासी लड़ाई है। प्रदेश की जनता मेरे साथ है। मुझे विश्वास है अगले कुछ दिनों में सच्चाई सामने आएगी और जांच रद्द हो जाएगी। सिद्धारमैया ने कहा, न्यायालय ने धारा 218 के तहत राज्यपाल द्वारा जारी आदेश को सिरे से खारिज कर दिया। न्यायाधीशों ने खुद को राज्यपाल के आदेश की धारा 17ए तक ही सीमित रखा। मैं विशेषज्ञों से परामर्श करूंगा कि क्या कानून के तहत ऐसी जांच की अनुमति है या नहीं। मैं कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा कर लड़ाई की रूपरेखा तय करूंगा। *सिद्दारमैया के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का है विकल्प* हालांकि, हाई कोर्ट ने इस मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच को मंजूरी दिए जाने के गवर्नर के फैसले पर मुहर लगाकर सिद्दारमैया को भारी संकट में ला दिया है। अभी तक हाई कोर्ट से स्थगन आदेश की वजह से निचली अदालत से इस मामले में कार्रवाई शुरू नहीं हो रही थी। अब इस स्थगन आदेश से रोक हट गया है और सिद्दारमैया पर कानूनी शिकंजा कसने की आशंका है। विपक्ष पहले से ही उनपर पद छोड़ने का दबाव बना रहा है और कांग्रेस पार्टी के अंदर भी इसको लेकर काफी विवाद रहा है। फिलहाल सिद्दारमैया के सामने सबसे पहला विकल्प यही है कि वह सुप्रीम कोर्ट में जाकर इस केस में फिर से स्थगन आदेश लेने की कोशिश करें। कथित मुडा भूमि घोटाला क्या है? मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया। मुडा क्या है? मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण या मुडा कर्नाटक की एक राज्य स्तरीय विकास एजेंसी है, जिसका गठन मई 1988 में किया गया था। मुडा का काम शहरी विकास को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण शहरी बुनियादी ढांचे को उपलब्ध कराना, किफायती आवास उपलब्ध कराना, आवास आदि का निर्माण करना है। क्या है आरोप? आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके केसारे में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी। मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित कीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि पार्वती को मुडा द्वारा इन साइटों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है।
कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को हाई कोर्ट से झटका, मैसूर जमीन घोटाला केस में चलेगा मुकदमा

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हाई कोर्ट से झटका लगा है। MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) मामले में अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी है।हाई कोर्ट की ओर से ये कहा गया है कि जमीन घोटाले में सिद्धारमैया पर केस चलेगा। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिका में बताए गए तथ्यों की जांच करने की जरूरत है। बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की याचिका पर आज फैसला सुनाया है।

दरअसल मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण साइट आवंटन मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंजूरी दी थी। राज्यपाल की इसी मंजूरी मिलने के बाद हाई कोर्ट में सिद्धारमैया की तरफ से अर्जी दाखिल की गई थी। इस मामले में मंगलवार हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, राज्यपाल कानून के हिसाब से केस चला सकते हैं। 

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, राज्यपाल "स्वतंत्र निर्णय" ले सकते हैं और राज्यपाल गहलोत ने "अपने दिमाग का पूरी तरह से इस्तेमाल किया है। इसलिए, जहां तक आदेश (मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने का) का सवाल है, राज्यपाल के एक्शन में कोई खामी नहीं है।

क्या है मामला?

आरोप है कि सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में जमीन आवंटित की गई थी। संपत्ति का मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे MUDA द्वारा अधिगृहीत किया गया था। MUDA ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ जमीन के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे, जहां MUDA ने एक आवासीय लेआउट विकसित किया था।

अगस्त में कर्नाटक के मंत्रियों और कांग्रेस विधायकों ने राज्यपाल गहलोत द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के खिलाफ ‘राजभवन चलो’ विरोध प्रदर्शन किया था। कांग्रेस ने राज्यपाल पर भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाया। पार्टी का कहना है कि राज्यपाल के समक्ष कई अन्य मामले भी लंबित हैं, लेकिन उन्होंने उन पर कोई निर्णय नहीं लिया है। इस बीच राज्यपाल गहलोत ने पिछले हफ्ते राज्य की मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को पत्र लिखा और जल्द से जल्द दस्तावेजों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट की मांग की।

खड़गे परिवार को कैसे मिल गई डिफेंस एयरोस्पेस की जमीन ? विवादों में आई कर्नाटक सरकार तो मंत्री ने दिए ये तर्क

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार एक बार फिर विवादों में घिर गई है। वाल्मीकि घोटाला और MUDA घोटाले के बाद अब राज्य सरकार पर जमीन आवंटन में गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे राहुल खड़गे को फायदा पहुंचाने की बात कही जा रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद लाहर सिंह सिरोया ने आरोप लगाया है कि कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB) की साइट नियमों के खिलाफ राहुल खड़गे को आवंटित की गई है।

सिरोया ने दावा किया कि बेंगलुरु के पास हाईटेक डिफेंस एयरोस्पेस पार्क में 5 एकड़ जमीन सिद्धार्थ विहार एजुकेशन ट्रस्ट को आवंटित की गई है, जिसका नेतृत्व राहुल खड़गे करते हैं। सिरोया ने कहा कि खड़गे परिवार द्वारा संचालित इस ट्रस्ट को SC कोटे के तहत यह जमीन मिली है, जो कि नियमों के खिलाफ है। उन्होंने सवाल उठाया कि उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने मार्च 2024 में इस आवंटन की अनुमति कैसे दी और पुछा कि खड़गे परिवार कब एयरोस्पेस उद्यमी बने ? बता दें कि सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के ट्रस्टियों में मल्लिकार्जुन खड़गे, उनकी पत्नी राधाबाई खड़गे, उनके दामाद राधाकृष्ण डोड्डामणि, बेटे और कर्नाटक सरकार के मंत्री प्रियांक खड़गे और राहुल खड़गे शामिल हैं। सिरोया ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज भी पेश किए हैं और इसे सत्ता का दुरुपयोग, भाई-भतीजावाद और हितों के टकराव का मामला करार दिया है।

वहीं, कर्नाटक कांग्रेस के मंत्री एमबी पाटिल ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि जमीन आवंटन में कोई नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि साइट को निर्धारित मूल्य पर बिना किसी छूट के आवंटित किया गया है और यह आवंटन राज्य स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर हुआ है। पाटिल के अनुसार, राहुल खड़गे IIT ग्रेजुएट हैं और वे इस जमीन पर रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर स्थापित करना चाहते हैं, जो KIADB के मानदंडों के अनुसार सही है। मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने भी सिरोया के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि आवंटित स्थल औद्योगिक नहीं, बल्कि शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ट्रस्ट का इरादा मल्टी स्किल डेवलपमेंट सेंटर स्थापित करने का है, जो कि पूरी तरह से वैध है।

क्या है MUDA केस, जिसमें सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा; राज्यपाल ने दी मंजूरी

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मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बुरी तरह फंस गए हैं। अब उनके खिलाफ केस चलेगा। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने बीते दिनों मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण के कथित भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कैबिनेट की राय मांगी थी। जिसके बाद गुरुवार को मंत्रिपरिषद की बैठक हुई, जिसमें राज्यपाल को कारण बताओ नोटिस वापस लेने की सलाह दी गई। साथ ही मंत्रिपरिषद ने इसे बहुमत से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करार दिया। हालांकि राज्यपाल ने कानूनी विशेषज्ञों से इस संबंध में राय ली। जिसके बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। 

आरटीआई एक्टिविस्ट टीजे अब्राहम, प्रदीप और स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दायर तीन याचिकाओं पर सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ केस चलाया जाएगा। अब्राहम ने राज्यपाल से सीएम के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत केस चलाने की मांग की थी क्योंकि उनकी मंजूरी के बिना सीएम के खिलाफ केस नहीं चल सकता। अपनी शिकायत में अब्राहम ने सिद्धारमैया के अलावा उनकी पत्नी, बेटे और मुडा के कमिश्नर के खिलाफ केस चलाने की भी मांग की थी।

बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि साल 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया राज्य के प्रभावशाली और अहम पदों पर रहे। उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, सिद्धारमैया भले ही सीधे तौर पर इस लेनदेन से न जुड़े हों, लेकिन उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल न किया हो ऐसा नहीं हो सकता।

केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे तो पहले ही कह चुके हैं कि जमीन के लेनदेन का मामला (MUDA Case) जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे, इस मामले में उनके परिवार पर लाभार्थी होने का आरोप है। ऐसे में उनकी इसमें भूमिका ना हो ऐसा हो ही नही सकता।

क्या है MUDA केस?

मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी। उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था। लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था। यानी एक बार फिर ये जमीन कृषि की जमीन बन गई थी। साल 1998 में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने साल 2004 में डेनोटिफाई 3 एकड़ 14 गुंटा ज़मीन के एक टुकड़े को खरीदा था। 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार थी. उस सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। इसी दौरान जमीन के विवादास्पद टुकड़े को दोबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग किया गया. लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक़ लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था. ऐसे में MUDA से हक़ की लड़ाई शुरू हुई।

साल 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे। उनके परिवार की तरफ़ से जमीन की अर्जी उन तक पहुंचाया गया। लेकिन सीएम सिद्धारमैया ने इस अर्जी को ये कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि लाभार्थी उनका परिवार है, इसीलिए वह इस फाइल को आगे नहीं बढ़ाएंगे। 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास जब फाइल पहुंची। तब सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे। बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने MUDA के 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का फैसला किया।

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की बढ़ीं मुश्किलें, ईडी ने दर्ज की नई शिकायत, मुडा मामले में सबूत नष्ट करने का आरोप

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मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री मूडा में कथित घोटाले को लेकर लगातार घिरते जा रहे हैं। अब उनके और अन्य लोगों के खिलाफ एक नई शिकायत दर्ज कराई गई है। मुडा मामले में सबूतों को नष्ट करने का आरोप लगा है। मूडा मामले में सुबूतों को नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री और उनके बेटे यतीन्द्रा के खिलाफ ईडी ने एक और शिकायत को दर्ज किया है।

प्रदीप कुमार नाम के एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने सिद्धारमैया एवं अन्य के खिलाफ सबूतों से छेड़छाड़ के लिए जांच और मामला दर्ज करने की मांग की।इस शिकायत में दावा किया गया है कि मुडा अधिकारियों की संलिप्तता से साइटों को पुनः प्राप्त करके साक्ष्य नष्ट कर दिए गए हैं। प्रदीप कुमार ने जांच का अनुरोध किया है और साक्ष्यों से छेड़छाड़ के लिए मामला दर्ज करने की मांग की है।

25 सितंबर को विशेष अदालत ने लोकायुक्त पुलिस को आदेश दिया था। इस आदेश के बाद 27 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, उनकी पत्नी पार्वती बीएम सिद्धरमैया, उनके साले मल्लिकार्जुन स्वामी एवं देवराजू सहित अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। ईडी ने भी मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ 14 भूखंडों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले में मामला दर्ज किया है। वहीं पार्वती ने भूखंड लौटाने की पेशकश की तो एमयूडीए ने उनको आवंटित 14 भूखंडों को वापस ले लिया है।

कथित मुडा भूमि घोटाला क्या है?

मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया।

मुख्यमंत्री की पत्नी का 50:50 योजना से क्या संबंध?

आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी।

मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया था, जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित की गई थीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं।

सिद्धारमैया की बढ़ी मुश्किलें तो पत्नी ने उठाया बड़ा कदम, क्या प्लॉट सरेंडर करने से कम होगी मुश्किल?

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कर्नाटक के चर्चित मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने सिद्धारमैया के खिलाफ केस दर्ज किया है। मुडा स्कैम में सिद्धारमैया और उनके परिवार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी की जांच शुरू कर दी है। इस बीच सिद्धारमैया की पत्नी ने बड़ा कदम उठाया है। पार्वती ने मुडा को पत्र लिखकर उन्हें आवंटित 14 प्लॉट वापस करने की बात कही है। अब सवाल उठता है कि जमीन लौटाने का दांव कारगर साबित होगा? 

सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती ने मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण मुडा को पत्र लिखा है। पार्वती ने कहा है कि मुडा से मुझे जो प्लॉट मिले हैं, वो मैं वापस करना चाहती हूं। पार्वती ने मुडा से कहा है कि उनके लिए पति ज्यादा जरूरी है, इसलिए मैं उन 14 साइटों को वापस करना चाहती हूं, जो मुझे आवंटित की गई है। पार्वती के इस फैसले पर मुडा की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं सिद्धारमैया ने पार्वती के इस पत्र पर कहा है कि ये उनका फैसला है, लेकिन मैं लंबी लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार हूं।

बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुडा भूमि मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पार्वती और अन्य पर मामला दर्ज किया है। एफआईआर में पार्वती के भाई मल्लिकार्जुन स्वामी भी शामिल हैं। आरोप है कि उन्होंने जमीन खरीदी थी और बाद में उसे पार्वती को तोहफे में दे दिया था। यह मामला लोकायुक्त की एफआईआर के बाद दर्ज किया गया है। ईडी का मामला इस आरोप पर आधारित है कि पार्वती को मैसूरु के एक प्रमुख स्थान पर मुआवजे के 14 प्लॉट आवंटित किए गए थे। इस प्लॉट आवंटन में लेनदेन की वैधता पर सवाल उठे हैं। 

पिछले हफ्ते बेंगलुरु की एक विशेष अदालत द्वारा मामले में सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस जांच का आदेश देने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी। कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार, सिद्धारमैया को पूछताछ के लिए बुलाने के लिए ईडी अधिकृत है और जांच के दौरान उनकी संपत्ति भी कुर्क कर सकता है। पिछले हफ्ते एक बयान में, सिद्धारमैया ने आरोपों का जवाब देते हुए दावा किया कि राजनीतिक प्रतिशोध के परिणामस्वरूप मामले में उन्हें अनुचित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।

साल 2020 में मुडा ने एक स्कीम की शुरुआत की। स्कीम में कहा गया कि जिन लोगों की जमीन विकास के काम के लिए लिया जाएगा, उन्हें 50-50 पॉलिसी के तहत मैसूर शहर में प्लॉट और मुआवजा दिया जाएगा। बीजेपी सरकार की तरफ से शुरू की गई इस स्कीम की खूब आलोचना हुई, जिसके बाद 2023 में इसे रद्द कर दिया गया। सिद्धारमैया परिवार पर फर्जी दस्तावेज और पावर का दुरुपयोग कर इस स्कीम का लाभ लेने का आरोप है। सिद्धारमैया की पत्नी पर करीब 55 करोड़ रुपए का लाभ लेने का आरोप है। हालांकि, सिद्धारमैया इस पूरे मामले को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर, MUDA स्कैम मामले में बढ़ सकती हैं मुश्किलें

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने शुक्रवार को मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले मामले में एफआईआर दर्ज की है। कर्नाटक के एक स्पेशल कोर्ट ने लोकायुक्त टीम को जांच का जिम्मा सौंपा है। याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जन प्रतिनिधि कोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक लोकयुक्त से इस मामले की जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद आज मैसूरु लोकयुक्त पुलिस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला दर्ज किया।

लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम और भूमि कब्जा निवारण अधिनियम के तहत अदालत द्वारा निर्धारित आईपीसी धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज की। सीएम सिद्धारमैया पर आरोप A 1 है, पत्नी पार्वती पर आरोप A 2 है। वहीं, मुख्यमंत्री के साले मल्लिकार्जुन स्वामी को आरोपी नम्बर 3 और देवराज को आरोपी नम्बर 4 बनाया गया है। मुख्यमंत्री पर अपने अधिकारों को दुरुपयोग करके उनकी पत्नी के नाम मैसुरु में MUDA साइट आवंटित करने का आरोप लगा है।

सिद्धरमैया ने बीजेपी पर साधा निशाना

वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने शुक्रवार को दावा किया कि मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि आवंटन मामले में उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि विपक्ष उनसे डरता है। इसके साथ ही, सिद्धरमैया ने कहा कि यह उनके खिलाफ पहला राजनीतिक मामला है। मुख्यमंत्री ने दोहराया कि मामले में अदालत द्वारा उनके खिलाफ जांच का आदेश दिये जाने के बाद भी वह इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह कानूनी रूप से लड़ाई लड़ेंगे।

केंद्र सरकार पर सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों और देश भर में विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासन में राज्यपाल के ‘हस्तक्षेप’ के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की जरूरत है।

खरगे ने क्या कहा?

इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि इस मामले में कानून अपना काम करेगा। उन्होंने कहा कि MUDA के लोग जो चाहें वे कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह जरूरी नहीं है कि सरकार उसके सभी सवालों का जवाब दें, क्योंकि वह एक स्वायत्त निकाय होने के कारण कार्रवाई कर ही सकता है।

खरगे ने सीएम सिद्धारमैया का समर्थन करते हुए कहा कि उनलोगों निजी तौर पर कोई भी अपराध यदि किया हो तो इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं, लेकिन वह ऐसा मानते हैं कि उन्होंने ऐसा कोई भी अपराध नहीं किया है। उन्हें बदनाम किया जा रहा है। पार्टी को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने साफ कहा कि सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता है।

जांच की जरूरत, MUDA घोटाले में सीएम सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा : कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में राज्यपाल द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत और राज्यपाल की मंजूरी उचित है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत जांच का आदेश दिया गया था। उच्च अदालत ने सिद्धारमैया की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में तथ्यों की जांच की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि राज्यपाल का मंजूरी आदेश प्रथम दृष्टया दोषी होने का कोई कारण नहीं बताता है और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां सीमित हैं। वहीं, सिद्धारमैया की ओर से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एक निर्वाचित लोक सेवक के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही चुनावी प्रक्रिया को कमजोर कर सकती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए को 2010 से पहले के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कानून 2010 के बाद लागू हुआ था।

दूसरी ओर, राज्यपाल कार्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्यपाल ने सभी तथ्यों पर विचार कर मंजूरी दी है, और इस स्तर पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस फैसले के बाद कांग्रेस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ, पार्टी के नेता और वकील, सीएम को कानूनी प्रक्रिया से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों में भ्रष्टाचार के बड़े मामले सामने आ रहे हैं।

कर्नाटक के अलावा, झारखंड में भी कांग्रेस के नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। झारखंड में कांग्रेस मंत्री आलमगीर आलम के नौकर के घर से 30 करोड़ रुपये नकद मिले थे, जबकि कांग्रेस सांसद धीरज साहू के पास से 350 करोड़ रुपये की बरामदगी हुई थी। कर्नाटक में भी वाल्मीकि विकास विभाग में कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था।

कर्नाटक सीएम सिद्दरमैया की बढ़ी मुश्किलें, कोर्ट ने लोकायुक्त को सौंपी जांच; तीन महीने में देनी होगी रिपोर्ट

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया को बुधवार को एमपी/एमएलए कोर्ट से भी बड़ा झटका लगा है। विशेष अदालत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाला में सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ लोकायुक्त जांच की मंजूरी दी है। कर्नाटक लोकायुक्त की मैसूरु जिला पुलिस को MUDA घोटाले की जांच कर 3 महीने में रिपोर्ट सौंपनी होगी।

न्यायाधीश संतोष गजानन भट ने मामले की जांच मैसूर जिले के लोकायुक्त अधीक्षक को सौंपी है। उन्हें तीन महीने यानी 24 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी।जांच अधिकारी के पास सीएम से पूछताछ करने और गिरफ्तार करने का भी अधिकार होगा। अदालत ने स्पष्ट कहा कि मामले की जांच सीआरपीसी की धारा 156 (3) के प्रावधानों के तहत की जाएगी। सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद जांच शुरू की जाएगी।

बता दें, याचिकाकर्ता कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने एक निजी शिकायत के साथ जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इसी पर कोर्ट ने जांच का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के सामने मुडा घोटाला उठाया था। राज्यपाल ने सीएम के खिलाफ अभियोजन चलाने की मंजूरी दी थी। मगर 19 अगस्त को सीएम सिद्दरमैया ने राज्यपाल के आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। मगर वहां भी राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को बरकरार रखा।

अदालत के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कल धारा 17 ए के तहत जांच का आदेश दिया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद जन प्रतिनिधि अदालत ने फैसला सुनाया है। कोर्ट के आदेश की कॉपी मिलने के बाद मैं जवाब दूंगा। उन्होंने कहा कि मैं जांच का सामना करने के लिए तैयार हूं। मुझे जांच से कोई डर नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरे आदेश की कॉपी मिलने के बाद अगला निर्णय लिया जायेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोर्ट का आदेश मिलने के बाद वह वकील से चर्चा करेंगे और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे।

*కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పుతో సీఎం సిద్ధరామయ్య కుర్చీకి చిక్కు! రాజీనామా చేయాలని బీజేపీ డిమాండ్*

ముడా (మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ) కేసులో కర్నాటక ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్యకు ఎదురుదెబ్బ తగిలింది. గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాల్ చేస్తూ ఆయన వేసిన పిటిషన్‌ను కోర్టు తోసిపుచ్చింది. హైకోర్టు తీర్పు తర్వాత ఇప్పుడు బీజేపీ ఆయనపై విరుచుకుపడుతోంది. ఆయన రాజీనామా చేయాలని ప్రతిపక్షాలు నిరంతరం డిమాండ్ చేస్తున్నాయి.

సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలని డిమాండ్

కర్ణాటక హైకోర్టు తీర్పు చారిత్రాత్మకమని కేంద్ర మంత్రి ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. ప్రభుత్వం, సిద్ధరామయ్య తప్పు చేశారన్నారు. ముందుగా సీఎం పదవికి రాజీనామా చేసి ఉండాల్సింది కానీ నిజానిజాలు తెలుసుకుని విచారణ నుంచి తప్పించుకోవాలన్నారు. అందుకే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని సవాలు చేశారు. గవర్నర్ ఫోటోను చెప్పులతో కొట్టారు. టెర్రర్ సృష్టించేందుకు ఇలా చేశారన్నారు. ఏమాత్రం ఆలస్యం చేయకుండా సిద్ధరామయ్య రాజీనామా చేయాలి. వివరణాత్మక మరియు నిష్పక్షపాత దర్యాప్తు జరగాలి, దాని కోసం అతను రాజీనామా చేయాలి.

కర్ణాటక ప్రభుత్వాన్ని కూల్చే ఉద్దేశం బీజేపీకి లేదు - ప్రహ్లాద్ జోషి

రాజకీయ అధికారం లేకుండా ఇది జరగదని ప్రహ్లాద్ జోషి అన్నారు. దీనిపై సీబీఐతో విచారణ జరిపించాలి. కర్నాటక ప్రభుత్వాన్ని పడగొట్టాలన్నా, అస్థిరపరచాలన్నా బీజేపీకి ఎలాంటి ఉద్దేశం లేదు, అలాంటి ప్రయత్నాలేవీ చేయడం లేదు. ఎవరు సీఎం అవుతారో తేల్చుకోవాల్సింది కాంగ్రెస్సే. కాంగ్రెస్ మరొకరిని సీఎం చేయాలి. బీజేపీ మాత్రం ప్రతిపక్షంలో కూర్చుంటుంది.

త్వరలోనే నిజం బయటకు వస్తుందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు

అదే సమయంలో, కోర్టు ఈ ఆదేశాల తర్వాత సిద్ధరామయ్య స్పందన వెలుగులోకి వచ్చింది. బీజేపీ, జేడీఎస్‌లను టార్గెట్ చేస్తూ ఇది రాజకీయ పోరు అని అన్నారు. రాష్ట్ర ప్రజలు నా వెంటే ఉన్నారు. మరికొద్ది రోజుల్లో నిజానిజాలు బయటకు వస్తాయని, విచారణ రద్దవుతుందని విశ్వసిస్తున్నాను. సెక్షన్ 218 కింద గవర్నర్ జారీ చేసిన ఉత్తర్వులను కోర్టు పూర్తిగా తిరస్కరించిందని సిద్ధరామయ్య అన్నారు. గవర్నర్ ఉత్తర్వుల్లోని సెక్షన్ 17ఎకి మాత్రమే న్యాయమూర్తులు పరిమితమయ్యారు. అటువంటి విచారణ చట్టం ప్రకారం అనుమతించబడుతుందా లేదా అనే దానిపై నేను నిపుణులను సంప్రదిస్తాను. న్యాయ నిపుణులతో చర్చించిన తర్వాత పోరాట రూపురేఖలు నిర్ణయిస్తాను.

సిద్ధరామయ్యకు సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లే అవకాశం ఉంది

అయితే, ఈ కేసులో ముఖ్యమంత్రిపై దర్యాప్తునకు ఆమోదం తెలిపే గవర్నర్ నిర్ణయాన్ని ఆమోదించడం ద్వారా సిద్ధరామయ్యను హైకోర్టు తీవ్ర ఇబ్బందుల్లోకి నెట్టింది. ఇప్పటి వరకు, హైకోర్టు నుండి స్టే ఆర్డర్ కారణంగా, దిగువ కోర్టు ద్వారా ఈ కేసులో చర్యలు ప్రారంభించబడలేదు. ఇప్పుడు ఈ స్టే ఆర్డర్ వల్ల స్టే ఎత్తివేయడంతో సిద్ధరామయ్యపై చట్టపరమైన చర్యలు తీసుకునే అవకాశం ఉంది. ఇప్పటికే ఆయన పదవి నుంచి వైదొలగాలని విపక్షాలు ఒత్తిడి చేస్తుండగా, కాంగ్రెస్ పార్టీలో కూడా దీనిపై తీవ్ర దుమారం చెలరేగింది. ప్రస్తుతం సిద్ధరామయ్య ముందున్న మొదటి ఆప్షన్ సుప్రీంకోర్టుకు వెళ్లి మళ్లీ ఈ కేసులో స్టే ఆర్డర్ తెచ్చుకునే ప్రయత్నం చేయడమే.

ఆరోపించిన ముడా భూ కుంభకోణం ఏమిటి?

పట్టణాభివృద్ధిలో భూములు కోల్పోయిన వారి కోసం ముడ ఒక పథకాన్ని తీసుకొచ్చింది. 50:50 అనే ఈ పథకంలో, భూమి కోల్పోయిన వ్యక్తులు అభివృద్ధి చేసిన భూమిలో 50% అర్హులు. ఈ పథకం మొదటిసారిగా 2009లో అమలులోకి వచ్చింది. దీన్ని 2020లో అప్పటి బీజేపీ ప్రభుత్వం మూసివేసింది.

ఈ పథకాన్ని ప్రభుత్వం నిలిపివేసిన తర్వాత కూడా ముడ 50:50 పథకం కింద భూములను సేకరించి కేటాయిస్తూనే ఉంది. వివాదమంతా దీనికి సంబంధించినదే. ఇందులోభాగంగా ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి బెనిఫిట్‌లు ఇచ్చారని ఆరోపించారు.

మూడా అంటే ఏమిటి?

మైసూర్ అర్బన్ డెవలప్‌మెంట్ అథారిటీ లేదా MUDA అనేది కర్ణాటక రాష్ట్ర స్థాయి అభివృద్ధి సంస్థ, ఇది మే 1988లో ఏర్పడింది. MUDA యొక్క విధి పట్టణ అభివృద్ధిని ప్రోత్సహించడం, నాణ్యమైన పట్టణ మౌలిక సదుపాయాలను అందించడం, సరసమైన గృహాలను అందించడం, గృహనిర్మాణం మొదలైనవి.

ఆరోపణ ఏమిటి?

ముఖ్యమంత్రి భార్యకు చెందిన 3 ఎకరాల 16 గుంటల భూమిని ముడ కబ్జా చేసిందని ఆరోపించారు. ప్రతిఫలంగా ఉన్నతస్థాయి ప్రాంతంలో 14 స్థలాలు కేటాయించారు. మైసూరు శివార్లలోని కేసరేలోని ఈ భూమిని 2010లో ముఖ్యమంత్రి సిద్ధరామయ్య భార్య పార్వతికి ఆయన సోదరుడు మల్లికార్జున స్వామి కానుకగా ఇచ్చారు. ఈ భూమిని సేకరించకుండానే దేవనూరు మూడోదశకు ముడ ప్రణాళిక రూపొందించిందని ఆరోపించారు.

ముఖ్యమంత్రి కె పార్వతి పరిహారం కోసం దరఖాస్తు చేసుకున్నారు, దాని ఆధారంగా ముడ విజయనగరం III మరియు IV ఫేజ్‌లలో 14 స్థలాలను కేటాయించింది. రాష్ట్ర ప్రభుత్వం యొక్క 50:50 నిష్పత్తి పథకం కింద మొత్తం 38,284 చదరపు అడుగుల కేటాయింపు జరిగింది. ముఖ్యమంత్రి సతీమణి పేరున కేటాయించిన 14 స్థలాల్లో కుంభకోణం జరిగినట్లు ఆరోపణలు వస్తున్నాయి. పార్వతికి ముడ ద్వారా ఈ స్థలాల కేటాయింపులో అక్రమాలు జరిగాయని ప్రతిపక్షాలు అంటున్నాయి.

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के बाद सीएम सिद्धारमैया की कुर्सी संकट में! बीजेपी मांग रही इस्तीफा*
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं।MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) मामले में उन्हें हाई कोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट की ओर से फैसला आने के बाद अब उन पर बीजेपी हमलावर दिख रही है। विपक्ष लगातार उनसे इस्तीफे की मांग कर रही है। *सिद्धारमैया से इस्तीफे की मांग* केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। सरकार और सिद्धारमैया ने गड़बड़ी की है। उनको सीएम पद से पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए था पर वो सच जानते हैं और जांच से बचना चाहते हैं। इसलिए राज्यपाल के फैसले को चैलेंज किया। गवर्नर के फोटो को चप्पल से मारा गया। यह टेरर पैदा करने के लिए किया गया। बिना देरी किए सिद्धारमैया को इस्तीफा दे देना चाहिए। इसकी विस्तृत और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, जिसके लिए उनको इस्तीफा देना चाहिए। *बीजेपी का कर्नाटक सरकार गिराने का इराना नहीं-प्रह्लाद जोशी* प्रह्लाद जोशी ने आगे कहा कि बिना पॉलिटिकल पावर के यह नहीं हो सकता। सीबीआई से इसकी जांच कराई जाए। बीजेपी का कर्नाटक सरकार गिराने या अस्थिर करने का न इरादा है और न कोई ऐसी कोशिश कर रहे हैं। यह कांग्रेस को तय करना है कि कौन सीएम बनेगा। किसी और को सीएम बनाए कांग्रेस। बीजेपी विपक्ष में ही बैठेगी। *सिद्धारमैया बोले- सच्चाई जल्द सामने आएगी* वहीं, कोर्ट के इस आदेश के बाद सिद्धारमैया की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने बीजेपी और जेडीएस पर निशाना साधते हुए कहा कि ये सियासी लड़ाई है। प्रदेश की जनता मेरे साथ है। मुझे विश्वास है अगले कुछ दिनों में सच्चाई सामने आएगी और जांच रद्द हो जाएगी। सिद्धारमैया ने कहा, न्यायालय ने धारा 218 के तहत राज्यपाल द्वारा जारी आदेश को सिरे से खारिज कर दिया। न्यायाधीशों ने खुद को राज्यपाल के आदेश की धारा 17ए तक ही सीमित रखा। मैं विशेषज्ञों से परामर्श करूंगा कि क्या कानून के तहत ऐसी जांच की अनुमति है या नहीं। मैं कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा कर लड़ाई की रूपरेखा तय करूंगा। *सिद्दारमैया के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का है विकल्प* हालांकि, हाई कोर्ट ने इस मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच को मंजूरी दिए जाने के गवर्नर के फैसले पर मुहर लगाकर सिद्दारमैया को भारी संकट में ला दिया है। अभी तक हाई कोर्ट से स्थगन आदेश की वजह से निचली अदालत से इस मामले में कार्रवाई शुरू नहीं हो रही थी। अब इस स्थगन आदेश से रोक हट गया है और सिद्दारमैया पर कानूनी शिकंजा कसने की आशंका है। विपक्ष पहले से ही उनपर पद छोड़ने का दबाव बना रहा है और कांग्रेस पार्टी के अंदर भी इसको लेकर काफी विवाद रहा है। फिलहाल सिद्दारमैया के सामने सबसे पहला विकल्प यही है कि वह सुप्रीम कोर्ट में जाकर इस केस में फिर से स्थगन आदेश लेने की कोशिश करें। कथित मुडा भूमि घोटाला क्या है? मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50:50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50% के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50:50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया। मुडा क्या है? मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण या मुडा कर्नाटक की एक राज्य स्तरीय विकास एजेंसी है, जिसका गठन मई 1988 में किया गया था। मुडा का काम शहरी विकास को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण शहरी बुनियादी ढांचे को उपलब्ध कराना, किफायती आवास उपलब्ध कराना, आवास आदि का निर्माण करना है। क्या है आरोप? आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके केसारे में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी। मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर III और IV फेज में 14 साइटें आवंटित कीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50:50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि पार्वती को मुडा द्वारा इन साइटों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है।
कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को हाई कोर्ट से झटका, मैसूर जमीन घोटाला केस में चलेगा मुकदमा

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हाई कोर्ट से झटका लगा है। MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) मामले में अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी है।हाई कोर्ट की ओर से ये कहा गया है कि जमीन घोटाले में सिद्धारमैया पर केस चलेगा। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिका में बताए गए तथ्यों की जांच करने की जरूरत है। बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की याचिका पर आज फैसला सुनाया है।

दरअसल मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण साइट आवंटन मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंजूरी दी थी। राज्यपाल की इसी मंजूरी मिलने के बाद हाई कोर्ट में सिद्धारमैया की तरफ से अर्जी दाखिल की गई थी। इस मामले में मंगलवार हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, राज्यपाल कानून के हिसाब से केस चला सकते हैं। 

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, राज्यपाल "स्वतंत्र निर्णय" ले सकते हैं और राज्यपाल गहलोत ने "अपने दिमाग का पूरी तरह से इस्तेमाल किया है। इसलिए, जहां तक आदेश (मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने का) का सवाल है, राज्यपाल के एक्शन में कोई खामी नहीं है।

क्या है मामला?

आरोप है कि सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में जमीन आवंटित की गई थी। संपत्ति का मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे MUDA द्वारा अधिगृहीत किया गया था। MUDA ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ जमीन के बदले 50:50 अनुपात योजना के तहत भूखंड आवंटित किए थे, जहां MUDA ने एक आवासीय लेआउट विकसित किया था।

अगस्त में कर्नाटक के मंत्रियों और कांग्रेस विधायकों ने राज्यपाल गहलोत द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के खिलाफ ‘राजभवन चलो’ विरोध प्रदर्शन किया था। कांग्रेस ने राज्यपाल पर भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाया। पार्टी का कहना है कि राज्यपाल के समक्ष कई अन्य मामले भी लंबित हैं, लेकिन उन्होंने उन पर कोई निर्णय नहीं लिया है। इस बीच राज्यपाल गहलोत ने पिछले हफ्ते राज्य की मुख्य सचिव शालिनी रजनीश को पत्र लिखा और जल्द से जल्द दस्तावेजों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट की मांग की।

खड़गे परिवार को कैसे मिल गई डिफेंस एयरोस्पेस की जमीन ? विवादों में आई कर्नाटक सरकार तो मंत्री ने दिए ये तर्क

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार एक बार फिर विवादों में घिर गई है। वाल्मीकि घोटाला और MUDA घोटाले के बाद अब राज्य सरकार पर जमीन आवंटन में गड़बड़ी के आरोप लग रहे हैं, जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे राहुल खड़गे को फायदा पहुंचाने की बात कही जा रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद लाहर सिंह सिरोया ने आरोप लगाया है कि कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB) की साइट नियमों के खिलाफ राहुल खड़गे को आवंटित की गई है।

सिरोया ने दावा किया कि बेंगलुरु के पास हाईटेक डिफेंस एयरोस्पेस पार्क में 5 एकड़ जमीन सिद्धार्थ विहार एजुकेशन ट्रस्ट को आवंटित की गई है, जिसका नेतृत्व राहुल खड़गे करते हैं। सिरोया ने कहा कि खड़गे परिवार द्वारा संचालित इस ट्रस्ट को SC कोटे के तहत यह जमीन मिली है, जो कि नियमों के खिलाफ है। उन्होंने सवाल उठाया कि उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने मार्च 2024 में इस आवंटन की अनुमति कैसे दी और पुछा कि खड़गे परिवार कब एयरोस्पेस उद्यमी बने ? बता दें कि सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के ट्रस्टियों में मल्लिकार्जुन खड़गे, उनकी पत्नी राधाबाई खड़गे, उनके दामाद राधाकृष्ण डोड्डामणि, बेटे और कर्नाटक सरकार के मंत्री प्रियांक खड़गे और राहुल खड़गे शामिल हैं। सिरोया ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज भी पेश किए हैं और इसे सत्ता का दुरुपयोग, भाई-भतीजावाद और हितों के टकराव का मामला करार दिया है।

वहीं, कर्नाटक कांग्रेस के मंत्री एमबी पाटिल ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि जमीन आवंटन में कोई नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि साइट को निर्धारित मूल्य पर बिना किसी छूट के आवंटित किया गया है और यह आवंटन राज्य स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर हुआ है। पाटिल के अनुसार, राहुल खड़गे IIT ग्रेजुएट हैं और वे इस जमीन पर रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर स्थापित करना चाहते हैं, जो KIADB के मानदंडों के अनुसार सही है। मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने भी सिरोया के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि आवंटित स्थल औद्योगिक नहीं, बल्कि शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ट्रस्ट का इरादा मल्टी स्किल डेवलपमेंट सेंटर स्थापित करने का है, जो कि पूरी तरह से वैध है।

क्या है MUDA केस, जिसमें सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा; राज्यपाल ने दी मंजूरी

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मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बुरी तरह फंस गए हैं। अब उनके खिलाफ केस चलेगा। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने बीते दिनों मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण के कथित भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कैबिनेट की राय मांगी थी। जिसके बाद गुरुवार को मंत्रिपरिषद की बैठक हुई, जिसमें राज्यपाल को कारण बताओ नोटिस वापस लेने की सलाह दी गई। साथ ही मंत्रिपरिषद ने इसे बहुमत से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करार दिया। हालांकि राज्यपाल ने कानूनी विशेषज्ञों से इस संबंध में राय ली। जिसके बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। 

आरटीआई एक्टिविस्ट टीजे अब्राहम, प्रदीप और स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दायर तीन याचिकाओं पर सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ केस चलाया जाएगा। अब्राहम ने राज्यपाल से सीएम के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत केस चलाने की मांग की थी क्योंकि उनकी मंजूरी के बिना सीएम के खिलाफ केस नहीं चल सकता। अपनी शिकायत में अब्राहम ने सिद्धारमैया के अलावा उनकी पत्नी, बेटे और मुडा के कमिश्नर के खिलाफ केस चलाने की भी मांग की थी।

बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि साल 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया राज्य के प्रभावशाली और अहम पदों पर रहे। उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, सिद्धारमैया भले ही सीधे तौर पर इस लेनदेन से न जुड़े हों, लेकिन उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल न किया हो ऐसा नहीं हो सकता।

केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे तो पहले ही कह चुके हैं कि जमीन के लेनदेन का मामला (MUDA Case) जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे, इस मामले में उनके परिवार पर लाभार्थी होने का आरोप है। ऐसे में उनकी इसमें भूमिका ना हो ऐसा हो ही नही सकता।

क्या है MUDA केस?

मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी। उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था। लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था। यानी एक बार फिर ये जमीन कृषि की जमीन बन गई थी। साल 1998 में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने साल 2004 में डेनोटिफाई 3 एकड़ 14 गुंटा ज़मीन के एक टुकड़े को खरीदा था। 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार थी. उस सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। इसी दौरान जमीन के विवादास्पद टुकड़े को दोबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग किया गया. लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक़ लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था. ऐसे में MUDA से हक़ की लड़ाई शुरू हुई।

साल 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे। उनके परिवार की तरफ़ से जमीन की अर्जी उन तक पहुंचाया गया। लेकिन सीएम सिद्धारमैया ने इस अर्जी को ये कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि लाभार्थी उनका परिवार है, इसीलिए वह इस फाइल को आगे नहीं बढ़ाएंगे। 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास जब फाइल पहुंची। तब सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे। बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने MUDA के 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का फैसला किया।