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वॉशिंगटन डीसी में बड़ा हादसा, सेना के हेलीकॉप्टर से टकराया यात्री विमान, 60 लोग थे सवार

#america_plane_crashes_in_near_ronald_region_washington_dc

अमेरिका में व्हाइट हाउस के पास बड़ा विमान हादसा हो गया है। हादसे के बाद विमान पोटोमैक नदी में गिर गया। विमान में 60 लोग सवार थे। जानकारी के मुताबिक, हादसा एक हेलीकॉप्टर से प्लेन के टकराने की वजह से हुआ। क्रैश के बाद यात्रियों से भरा विमान और हेलीकॉप्‍टर दोनों पोटोमैक नदी में गिर जा गिरे। नदी से दो शव निकाले गए हैं। सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। हादसे के बाद से रीगन नेशनल एयरपोर्ट पर सभी उड़ानें अस्थायी रूप से रोक दी गई हैं।

अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में व्हाइट हाउस के पास ये हादसा हुआ। वॉशिंगटन के रोनाल्ड रिगन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास ये हादसा हुआ है। यह विमान कंसास सिटी से वॉशिंगटन जा रहा था। लैंडिंग के दौरान यह हेलीकॉप्टर से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई।अमेरिकन एयरलाइंस ने पुष्टि की कि विमान में 60 यात्री और चार चालक दल के सदस्य सवार थे। समाचार एजेंसी एएफपी ने अमेरिकी सेना के हवाले से बताया कि ब्लैक हॉक सिकोरस्की एच-60 नामक हेलीकॉप्टर में तीन सैनिक सवार थे।

जहां पर मौजूद थे ट्रंप, वहां से कुछ दूर पर विमान हादसा

व्हाइट हाउस से एयरपोर्ट के बीच एयर डिस्टेंस तीन किलोमीटर से भी कम है। जिस समय यह हादसा हुआ, ट्रंप उस समय व्हाइट हाउस में मौजूद थे। यह हादसा है या साजिश, फिलहाल इसका पता नहीं चला है। मिलिट्री हेलीकॉप्टर के अचानक आने से कई सवाल उठे हैं।

राहत एवं बचाव कार्य जारी

इस बीच अमेरिकी गृह मंत्री ने कहा कि दुर्घटना के बाद राहत एवं बचाव कार्य के लिए तटरक्षक बल सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर रहा है। संघीय विमानन प्रशासन (एफएए) ने बताया कि यह टक्कर पूर्वी मानक समयानुसार रात लगभग नौ बजे हुई, जब कंसास के विचिटा से उड़ान भरने वाला एक क्षेत्रीय विमान हवाई अड्डे के रनवे पर पहुंचते समय एक सैन्य ‘ब्लैकहॉक’ हेलीकॉप्टर से टकरा गया।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

#indiaexpectsgoodtieswithamericaposttrumpsinaugration

भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

अमेरिका में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक, मीटिंग के बाद यूएस के नए विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

#quadministerialmeetingjaishankarmetamericanewforeignminister

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में शपथ के बाद मंगलवार को क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया। नए ट्रंप प्रशासन में होने वाली ये पहली बड़ी बैठक थी। इसमें मीटिंग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की ये पहली बैठक थी। वे पद संभालने के महज 1 घंटे बाद ही इसमें शामिल हुए। इसके बाद मार्को रुबियो ने अपनी पहली द्विपक्षीय बातचीत भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ की।

क्वाड मंत्रिस्तरीय बैठक के तुरंत बाद अमेरिका के नए विदेश मंत्री रुबियो की जयशंकर के साथ पहली द्विपक्षीय बैठक हुई, जो एक घंटे से अधिक समय तक चली। बैठक में अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा भी मौजूद थे। रुबियो और जयशंकर बैठक के बाद एक फोटो सेशन के लिए प्रेस के सामने आए, हाथ मिलाया और कैमरों की ओर देखकर मुस्कुराए।

मार्को रुबियो से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा कि अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक के लिए मिलकर खुशी हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘आज वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. मार्को रूबियो का आभार, जिन्होंने हमारी मेजबानी की। पेनी वोंग और ताकेशी इवाया का भी शुक्रिया, जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया। ये अहम है कि ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। इससे पता चलता है कि ये अपने सदस्य देशों की विदेश नीति में कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी व्यापक चर्चाओं में एक स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करने के अलग-अलग पहलुओं पर बात हुई। इस बात पर सहमति बनी कि हमें बड़ा सोचने, एजेंडा को और गहरा करने और अपने सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है। आज की बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में क्वाड देश वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बने रहेंगे।

डॉ जयशंकर और मार्को रुबियो की मुलाकात के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, 'विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने आज वाशिंगटन डीसी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को मजबूत करने के लिए साझा प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों और अमेरिका-भारत संबंधों को और गहरा करने के अवसरों सहित कई विषयों पर चर्चा की।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई। इस बैठक में चीन को साफ-साफ सुना दिया गया। बैठक में चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि वे किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं, जो बल या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है। यह बात चीन की उस धमकी के संदर्भ में कही गई है, जिसमें उसने लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है। क्वाड बैठक में यह तय किया गया कि वे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका के लिए भारत अहम

ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई। ट्रंप के शपथ के अगले दिन ही इस बैठक से यह समझ आता है कि अमेरिका के लिए भारत और अन्य सहयोगी कितने अहम साथी हैं। यही नहीं, अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने मंगलवार को एस जयशंकर से अलग से मुलाकात भी की।

क्वाड के लिए भारत आ सकते हैं ट्रम्प

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस साल क्वाड देशों की बैठक के लिए भारत के दौरे पर आ सकते हैं। भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है। ये सम्मेलन अप्रैल या अक्टूबर में आयोजित किया जा सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस साल के अंत तक अमेरिकी दौरे पर जा सकते हैं। इस दौरान वे व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ औपचारिक बैठक में हिस्सा लेंगे।

अमेरिका के न्‍यू ऑर्ल‍ियन्‍स हमले में 15 लोगों की जान लेने वाला आर्मी का पूर्व सैनिक, ISIS से जुड़े तार

#americaneworleansattackerwasinspiredby_isis

अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस में नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ पर आतंकी हमला हुआ। अधिकारियों ने बताया कि नरसंहार पर आमादा हमलावर ने भीड़ की ओर अपना वाहन मोड़ दिया और लोगों को रौंदते हुए निकल गया। रॉटर्स के मुताबिक अब तक 15 लोगों की मौत हो गई है और 35 घायल हैं। इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकी की पहचान कर ली गई है। इस आतंकी साजिश को लेकर अमेरिका की फेडरल जांच एजेंसी (एफबीआई) ने कई बड़े खुलासे किए हैं।

संदिग्ध का नाम शम्सुद दीन जब्बार

न्यू ऑर्लियंस पुलिस ने अब हमलावर के बारे में कई जानकारी जारी की हैं। हमलावर की पहचान की पहचान 42 साल के शम्सुद दीन जब्बार के रूप में हुई है और वह अमेरिका में ही जन्मा है। हैरान करनी वाली बात ये है कि शम्सुद दीन जब्बार ने अमेरिका सेना में भी काम किया है। जांच एजेंसिया हमले के दूसरे पहलुओं की जांच कर रही हैं। एफबीआई को हमलावर का आईएसआईएस से भी लिंक मिला हैं, जिसके बाद अमेरिका में बढ़ती आईएसआईएस की पकड़ पर चिंता बढ़ गई है।

कैसे दिया हमले को अंजाम?

शम्सुद दीन जब्बार एक पिकअप ट्रक पर सवार होकर न्यू ऑर्लियंस के बॉर्बन स्ट्रीट पहुंचा। जहां उसने रास्ते में चल रही भीड़ पर ट्रक चढ़ा दिया, फिर गोलीबारी शुरू कर दी और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। पुलिस के अनुसार, यह घटना स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 3:15 बजे फ्रेंच क्वार्टर के मध्य में घटी, जहां नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ थी।

चश्मदीदों के मुताबिक जब्बार एक सफेद फोर्ड एफ-150 इलेक्ट्रिक पिकअप में आया और पैदल चलने वालों के एक ग्रुप में घुसा दिया, भीड़ को रौंदने के बाद वह बार निकला और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। हमलावर के ट्रक से एक काले कलर का झंडा भी मिला है, जिसको आईएसआईएस का झंडा माना जा रहा है।

एफबीआई ने कहा हमले के पीछे अकेले जब्बार नहीं

न्यू ओर्लियंस हमले के बाद एफबीआई ने मामले की जांच की कमान अपने हाथ में संभाल ले ली है। हमले पर एफबीआई ने भी अपना बयान जारी किया है। एफबीआई एजेंट एलेथिया डंकन ने कहा कि हम यह नहीं मानते कि बॉर्बन स्ट्रीट हमले के लिए अकेले जब्बार पूरी तरह जिम्मेदार था। हम उसके ज्ञात सहयोगियों समेत अन्य सभी सुराग पर आक्रामकता से काम कर रहे हैं। इसलिए हमें जनता की मदद की जरूरत है। हम पूछ रहे हैं कि क्या पिछले 72 घंटों में किसी ने जब्बार से कोई बातचीत की है, तो हमसे संपर्क करे। जिस किसी के पास इससे जुड़ी कोई जानकारी, वीडियो या तस्वीरें हैं, उसे एफबीआई से साझा करें।

जो बाइडेन ने जताया दुख

अमेरिका के न्यू ओर्लियंस पर नये साल के मौके पर हुए आतंकी हमले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने इस हमले में मारे गए लोगों पर गहरा शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा, "...जो लोग न्यू ओर्लियंस के आतंकी हमले में मारे गए हैं और जो घायल हुए हैं, उन सभी लोगों के लिए आज शोक मना रहे परिवारों से मैं कहना चाहता हूं कि मैं भी उनके इस दुख में शामिल हूं। बाइडेन ने कहा कि पूरा राष्ट्र आपके साथ दुखी है। जो लोग घायल हुए हैं उम्मीद है कि वह भी आने वाले हफ्तों में ठीक हो जाएंगे। तो भी हम आपके साथ खड़े रहेंगे। बाइडेन ने कहा कि एफबीआई यह पता लगाने के लिए जांच कर रही है कि क्या हुआ, क्यों हुआ और क्या सार्वजनिक सुरक्षा को और कोई खतरा बना हुआ है।

पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइल के खिलाफ क्यों हो गया अमेरिका, खुद के लिए किस खतरे की कर रहा बात?

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पाकिस्तान अब अमेरिका के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल विकसित कर रहा है। वह ऐसी मिसाइलें बनाने में लगा है जिसमें दक्षिण एशिया के बाहर अमेरिका पर भी हमला करने की क्षमता हो। जिसके बाद अमेरिका ने एक अहम फैसले में पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम में शामिल चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के उप सलाहकार जॉन फाइनर ने कहा कि पाकिस्तान की गतिविधियां उसके इरादों पर गंभीर सवाल उठाती हैं। कार्नेगी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक भाषण के दौरान जॉन फाइनर ने कहा, 'साफ तौर पर हमें पाकिस्तान की गतिविधियां अमेरिका के लिए एक उभरते हुए खतरे के रूप में ही दिखाई देती हैं।'

फाइनर के मुताबिक ऐसे सिर्फ तीन ही देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार और अमेरिका तक मिसाइल हमला करने की क्षमता है। इनमें रूस, चीन और नॉर्थ कोरिया शामिल हैं। ये तीनों ही देश अमेरिका के विरोधी हैं। ऐसे में पाकिस्तान के ये कदम अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बनते जा रहे हैं।

फाइनर ने कहा,पाकिस्तान का ये कदम चौंकाने वाला है, क्योंकि वह अमेरिका का सहयोगी देश रहा है। हमने पाकिस्तान के सामने कई बार अपनी चिंता जाहिर की है। हमने उसे मुश्किल समय में समर्थन दिया है और आगे भी संबंध बनाए रखने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में पाकिस्तान का ये कदम हमें ये सवाल करने पर मजबूर करता है कि वह ऐसी क्षमता हासिल क्यों करना चाहता है, जिसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ किया जा सकता है।

एक दिन पहले ही अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल से जुड़ी चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। विदेश विभाग की वेबसाइट पर जारी बयान में कहा गया है कि यह निर्णय पाकिस्तान की लंबी दूरी की मिसाइलों के विकास से होने वाले खतरे को देखते हुए लिया गया है।अमेरिका ने गुरुवार को बताया कि चार संस्थाओं को कार्यकारी आदेश 13382 के तहत प्रतिबंधित किया गया है, जो विनाशकारी हथियारों और उनके वितरण के साधनों के प्रसार से जुड़े लोगों पर लागू होता है। बयान के मुताबिक पाकिस्तान की 'नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स' और उससे जुड़ी अन्य संस्थाएं जैसे अख्तर एंड संस प्राइवेट लिमिटेड और रॉकसाइड एंटरप्राइज पर पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम के लिए उपकरण आपूर्ति करने का आरोप है।

पाकिस्तान ने बैन को बताया पक्षपातपूर्ण

अमेरिका के प्रतिबंधों की पाकिस्तान ने कड़ी निंदा करते हुए इसे पक्षपाती करार दिया है और कहा कि यह फैसला क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक परिणाम लाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा, 'पाकिस्तान की रणनीतिक क्षमताएं उसकी संप्रभुता की रक्षा और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हैं। प्रतिबंध शांति और सुरक्षा के उद्देश्य को विफल करते हैं।

चीन की 3 कंपनियों पर लगाया था बैन

इससे पहले इसी साल अप्रैल में अमेरिका ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के लिए तकनीक सप्लाई करने पर चीन की 3 कंपनियों पर बैन लगा दिया था। इस लिस्ट में बेलारूस की भी एक कंपनी शामिल थी।

80 के दशक में शुरू हुआ पाकिस्तान का मिसाइल प्रोग्राम

पाकिस्तान ने 1986-87 में अपने मिसाइल प्रोग्राम हत्फ की शुरुआत की थी। भारत के मिसाइल प्रोग्राम का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हुई थी।

हत्म प्रोग्राम में पाक रक्षा मंत्रालय को फौज से सीधा समर्थन हासिल था। इसके तहत पाकिस्तान ने सबसे पहले हत्फ-1 और फिर हत्फ-2 मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, हत्फ-1 80 किमी और वहीं हत्फ-2 300 किमी तक मार करने में सक्षम थी।

यह दोनों मिसाइलें 90 के दशक में सेना का हिस्सा बनी थीं। इसके बाद हत्फ-1 को विकसित कर उसकी मारक क्षमता को 100 किलोमीटर बढ़ाया गया। 1996 में पाकिस्तान ने चीन की मदद से बैलिस्टिक मिसाइल की तकनीक हासिल की।

फिर 1997 में हत्फ-3 का सफल परीक्षण हुआ, जिसकी मार 800 किलोमीटर तक थी। साल 2002 से 2006 तक भारत के साथ तनाव के बीच पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा मिसाइलों की टेस्टिंग की थी।

सरकारी शटडाउन पर ट्रंप समर्थित बिल को नहीं मिला पूर्ण बहुमत, 38 रिपब्लिकंस ने भी विरोध में की वोटिंग

#americagovernmentshutdowntrumpbackedbillfailed

अमेरिका पर इस समय आर्थिक संकट आ गया है। उसके पास इतना पैसा नहीं बचा है कि वह सरकारी कर्मचारियों को सैलरी दे सके। हालात शटडाउन जैसे हो चुके हैं। सरकार को फंड जुटाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थित बिल गुरुवार रात अमेरिकी संसद में गिर गया।इससे बचने के लिए अमेरिका के पास 24 घंटे से भी कम का समय बचा है।

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की फेडरल ऑपरेशन को फंड देने और गवर्नमेंट शटडाउन से एक दिन पहले कर्ज सीमा को बढ़ाने या सस्पेंड करने के प्लान को खारिज कर दिया है। गुरुवार रात अमेरिकी संसद में सरकारी शटडाउन से बचने के लिए बिल लाया गया था। इस बिल को ट्रंप का समर्थन था। करीब 3 दर्जन रिपब्लिकन ने डेमोक्रेट्स के साथ मिलकर ट्रंप समर्थित इस बिल के खिलाफ वोटिंग की। संसद में यह बिल 174-235 से गिर गया और बहुमत वोट भी हासिल करने में विफल रहा।

दरअसल, डेमोक्रेट्स ट्रंप को उनके नए कार्यकाल के पहले साल के दौरान बातचीत का फायदा नहीं देना चाहते। इस वजह से उन्होंने इस बिल का विरोध किया। ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से जीते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी शटडाउन को रोकने के लिए देश की कर्ज सीमा को बढ़ाने या निलंबित करने का प्रावधान को कानून में शामिल किए जाने की मांग की थी, खास बात यह है कि इस कदम का उनकी अपनी पार्टी नियमित तौर पर विरोध करती रही है। उन्होंने बुधवार को एक बयान में कहा कि इसके अलावा कुछ भी हमारे देश के साथ विश्वासघात है।

क्या होता है सरकार का शटडाउन?

अमेरिकी सरकार में शटडाउन तब होता है, जब सरकार के खर्च संबंधी विधेयक अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले लागू नहीं हो पाते हैं। शटडाउन के चलते संघीय सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ती है और गैर जरूरी सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजना पड़ता है। इस दौरान सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली जरूरी एजेंसियों के कर्मचारी ही काम करते हैं। शटडाउन के चलते संघीय और राज्य सरकारों के बीच का समन्वय भी बाधित होता है। फंडिंग में अंतराल के चलते साल 1980 में अमेरिका में शटडाउन को लेकर पहली बार कानूनी राय दी गई थी। साल 1990 से शटडाउन लागू होने लगे और फरवरी 2024 तक अमेरिका में 10 फंडिंग शटडाउन हो चुके हैं।

क्यों जरूरी है इसका पास होना?

दरअसल, अमेरिका को अपने खर्च चलाने के लिए फंड की जरूरत होती है। यह फंड कर्ज लेकर पूरा किया जाता है। इसके लिए एक बिल अमेरिकी संसद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में लाया जाता है। मौजूदा बिल को ट्रंप की ओर से लाया गया था, जिसे विपक्ष से खारिज कर दिया। इसका सीधा का मतलब है कि अमेरिका को खर्च के लिए पैसा नहीं मिलेगा। अमेरिका इस पैसे से ही न केवल सरकारी अधिकारियों को सैलरी देती है बल्कि दूसरे खर्च भी चलते हैं।

तो अमेरिका में हो जाएगा शटडाउन

इस बिल को पास कराने के लिए शुक्रवार रात तक का ही समय है। यानी अमेरिकी सरकार के पास 24 घंटे खर्च चलाने लायक पैसा भी नहीं है। अगर यह पास नहीं हो पाया तो अमेरिका में शटडाउन लग जाएगा। ऐसा होने पर अमेरिका पर बड़ी मुसीबत आ जाएगी। उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। इसका सबसे ज्यादा असर ट्रंप पर पड़ेगा

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

अमेरिका में मतदान शुरू, ट्रंप और कमला हैरिस में कांटे की टक्कर, वोटिंग के बीच 7 स्विंग स्टेट्स पर सबकी नजर

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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। भारतीय समय के मुताबिक शाम 6 बजे से मतदान शुरू हो गया है। जहां डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है।ट्रंप अगर जीत हासिल करते हैं तो वो दूसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे। वहीं, अगर कमला हैरिस को जीत मिलती है तो वो पहली बार राष्ट्रपति बनेंगी।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कई राज्यों में मतदान जारी है। वैसे तो मतदान की तारीख आज यानि कि 5 नवंबर है. लेकिन इससे पहले ही करोड़ों लोग वोटिंग कर चुके हैं. यह सुविधा में अमेरिका में है, इसे अर्ली वोटिंग कहते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के इलेक्शन लैब के मुताबिक, अमेरिका के कई हिस्सों में हो रही अर्ली वोटिंग में अब तक लगभग आठ करोड़ लोग वोट डाल चुके हैं। वहीं, आज फ्लोरिडा, जॉर्जिया, इलिनॉइस, लुइसियाना, मैरीलैंड, मैसाचुसेट्स, मिशिगन, मिसौरी, पेंसिल्वेनिया, रोड आइलैंड, साउथ कैरोलाइना और वॉशिंगटन में वोटिंग हो रही है।

अमेरिका के पेन्सिलवेनिया राज्‍य पर दुनिया की नजरें

इस चुनाव में जॉर्जिया, मिशिगन, और पेंसिल्वेनिया जैसे महत्वपूर्ण स्विंग स्टेट्स का खास महत्व है। विशेष रूप से पेंसिल्वेनिया को चुनावी परिणामों के लिहाज से अहम माना जा रहा है। यह राज्‍य अमेरिका के स्विंग स्‍टेट का हिस्‍सा है। अमेरिका में 7 स्विंग स्‍टेट हैं और यही फैसला करते हैं कि अगला राष्‍ट्रपति कौन होगा। पेन्सिलवेनिया में कुल 19 इलेक्‍टोरल वोट हैं जो किसी अन्‍य राज्‍य की तुलना में ज्‍यादा है। यहां अब तक कमला हैरिस की डेमोक्रेटिक पार्टी का दबदबा था।

किस 'स्विंग स्टेट' में कौन आगे?

अमेरिका चुनाव से पहले ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नेवादा में ट्रंप को 51.2 प्रतिशत समर्थन मिला जबकि हैरिस को 46 प्रतिशत। इसी तर्ज पर नॉर्थ कैरोलिना में ट्रंप को 50.5 प्रतिशत और हैरिस को 47.1 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। उधर, जॉर्जिया की बात की जाए तो यहां डोनाल्‍ड ट्रंप को 50.1% से 47.6% के अंतर से कमला हैरिस से आगे हैं। मिशिगन में ट्रंप को 49.7 प्रतिशत तो हैरिस को 48.2 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे ही पेंसिल्वेनिया में ट्रंप को 49.6 प्रतिशत के मुकाबले हैरिस को 47.8 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। उधर, विस्कॉन्सिन में ट्रंप 49.7 प्रतिशत और कमला हैरिस 48.6 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं।

स्विंग स्टेट क्या हैं और वे महत्वपूर्ण क्यों हैं?

जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, स्विंग स्टेट - जिन्हें बैटलग्राउंड स्टेट भी कहा जाता है - राष्ट्रीय चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। अमेरिकी राजनीति में, राष्ट्रपति चुनाव एक वेटेज वोटिंग सिस्टम द्वारा तय किए जाते हैं जिसे इलेक्टोरल कॉलेज के रूप में जाना जाता है, न कि लोकप्रिय वोट द्वारा। इस वजह से, स्विंग स्टेट नतीजे तय करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 50 राज्यों में से प्रत्येक को उनकी जनसंख्या के अनुपात में एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल कॉलेज वोट आवंटित किए जाते हैं। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जीतने के लिए 270 इलेक्टर हासिल करने होंगे।

राष्ट्रपति चुनाव के बीच अमेरिका एजेंसियां किस बात से डरी? घोषित किया 84 करोड़ का इनाम

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जल्द ही अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिल जाएगा। अमेरिका राष्‍ट्रपति चुनाव में डोनाल्‍ड ट्रंप जीतेंगे या फिर कमला हैरिस, ये तो वक्‍त ही बताएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का सारी दुनिया इंतजार कर रही है।इसी बीच दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका को राष्ट्रपति चुनाव में बाहरी ताकतों के दखल का डर सताने लगा है।अमेरिका को चुनाव के दौरान बाहरी ताकतों के दखल देने या अड़ंगा डालने की खुफिया सूचना मिली है। जिसके बाद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक एजेंसियों ने बाहरी दखल से बचने के लिए इससे जुड़ी जानकारी देने वाले को 10 मिलियन डॉलर यानी भारतीय करेंसी में 84 करोड़ रुपये का इनाम देने की घोषणा भी कर दी है।

ईरानी साइबर फर्म पर आरोप

अमेरिका की राजनीतिक सुरक्षा सेवा न्याय विभाग में इस बाबत बाकायदा पोस्टर निकाल कर जानकारी भी आम लोगों से साझा की है। इसमें उसने ईरानी साइबर फर्म पर आरोप लगाया है कि उसने साल 2020 की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया था। अमेरिकी एजेंसी को डर है कि यह साइबर फर्म एक बार फिर ऐसी कोशिश कर सकती है।

ईरान और रूस से जुड़े लोगों की तस्वीरें जारी

ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कार्पस से जुड़े कुछ लोगों की तस्वीर जारी करते हुए कहा गया है कि इन लोगों ने 2024 के अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप करने के प्रयास में अनेक साइबर ऑपरेशन किए है। अगर किसी के पास इन व्यक्तियों के बारे में जानकारी है तो सूचना देने पर उसे 10 मिलियन डॉलर तक का इनाम दिया जा सकता है।

अमेरिकी प्रशासन द्वारा एक रूसी मीडिया संगठन से जुड़े लोगों की कुछ तस्वीरें भी जारी की गई है और कहा गया है कि इन लोगों ने 2024 की अमेरिकी चुनाव को टारगेट करते हुए अनेक दुष्प्रचार और गलत सूचनाओं फैलाई है।

बता दें कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए आज 5 नवम्बर को मतदान होने जा रहा है। राष्ट्रपति पद की रेस के लिए रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की उनकी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है। अमेरिका भर में प्रारंभिक मतदान और डाक से मतदान पर नजर रखने वाले फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के ‘इलेक्शन लैब’ के अनुसार, 7.8 करोड़ से अधिक अमेरिकी पहले ही अपने वोट डाल चुके हैं। सात अहम राज्यों में से पेंसिल्वेनिया सबसे महत्वपूर्ण राज्य बनकर उभरा है, जिसके पास 19 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावःकैसे चुना जाता है नया राष्ट्रपति, क्या है 'इलेक्टोरल कॉलेज' सिस्टम

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अमेरिका में आज राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं, अब से कुछ ही घंटों बाद जब अमेरिका में सुबह होगी तो लाखों करोड़ों अमेरिकी अपने-अपने मतों का इस्तेमाल करने घर से बाहर निकलेंगे। अमेरिका में महीनों से चल रही राष्ट्रपति पद की रेस का प्रचार 4 नवंबर की रात थम गया। अब इंतजार है मंगलवार की सुबह 7 बजे से शुरु होने वाले मतदान का जो तय करेगा कि व्हाइट हाउस में अगले 4 साल के लिए कौन सा चेहरा होगा। अमेरिका के दो सबसे प्रमुख राजनीतिक दल रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस चुनावी मैदान में हैं। दोनों उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर होनी है, लिहाजा चुनावी नतीजे भी काफी चौंकाने वाले हो सकते हैं।

वोटिंग का समय क्या है?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग अलग-अलग राज्यों के स्थानीय समयानुसार सुबह 7 बजे से लेकर 9 बजे के बीच शुरू होगी। यह भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे से लेकर रात 9:30 बजे तक का समय होगा। वहीं मतदान के लिए अंतिम समय की बात करें तो ज्यादातर वोटिंग सेंटर्स शाम 6 बजे से लेकर देर रात तक जारी रह सकते हैं। यानी अमेरिका में वोटिंग खत्म होने तक भारत में अगला दिन शुरू हो जाएगा। यानी अमेरिका में मतदान भारतीय समयानुसार बुधवार की सुबह 4:30 बजे तक खत्म हो सकते हैं। कई राज्यों में यह समय और अधिक हो सकता है क्योंकि अमेरिका के राज्य कई अलग-अलग टाइम जोन में बंटे हुए हैं।

कब आएंगे नतीजे?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग खत्म होते ही मतों की गिनती शुरू हो जाएगी। काउंटिंग खत्म होने पर पॉपुलर वोट (जनता के वोट) का विजेता घोषित किया जाता है, लेकिन यह हर बार जरूरी नहीं कि जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट मिले हैं वह वाकई में राष्ट्रपति पद का विजेता हो। क्योंकि अमेरिका में असल में राष्ट्रपति का चुनाव पॉपुलर वोट्स नहीं बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज करते हैं। इसके अलावा कई बार ऐसा भी हो सकता है कि किसी राज्य में अनुमानित विजेता घोषित किया जा रहा हो जबकि दूसरे में वोटिंग जारी हो। लिहाजा कई बार सटीक नतीजे आने में एक-दो दिन का समय लग जाता है। वहीं दिसंबर में इलेक्टर्स की वोटिंग के बाद 25 दिसंबर तक सारे इलेक्टोरल सर्टिफिकेट सीनेट के प्रेसिडेंट को सौंप दिए जाएंगे। इसके बाद 6 जनवरी, 2025 को कांग्रेस के संयुक्त सत्र में इलेक्टर्स के वोटों की गिनती होगी, इसी दिन उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस सदन में विजेता के नाम का ऐलान करेंगी।

इलेक्टोरल कॉलेज क्या होते हैं?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका सबसे अहम होती है। इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिका के हर राज्य के लिए तय किए गए इलेक्टर्स की संख्या है। किसी भी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए 538 में से 270 इलेक्टोरल कॉलेज जीतने होंगे। हर राज्य को यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और अमेरिकी सीनेट में उसके प्रतिनिधियों की संख्या के अनुसार ही इलेक्टर्स मिलते हैं। वर्तमान में सबसे ज्यादा 55 इलेक्टर्स कैलिफोर्निया स्टेट में हैं, वहीं सबसे कम इलेक्टर्स की संख्या 3 है, जो कि अमेरिका के वायोमिंग समेत 6 राज्यों में हैं। हालांकि सबसे ज्यादा अहमियत 7 स्विंग स्टेट्स की होती है क्योंकि ज्यादातर राज्यों की तरह इनका रुख पहले से साफ नहीं होता है और यही वजह है कि इन स्विंग स्टेट्स को प्रमुख ‘बैटल फील्ड’ माना जाता है।

किस 'स्विंग स्टेट' में कौन आगे?

अमेरिका चुनाव से पहले ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नेवादा में ट्रंप को 51.2 प्रतिशत समर्थन मिला जबकि हैरिस को 46 प्रतिशत। इसी तर्ज पर नॉर्थ कैरोलिना में ट्रंप को 50.5 प्रतिशत और हैरिस को 47.1 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। उधर, जॉर्जिया की बात की जाए तो यहां डोनाल्‍ड ट्रंप को 50.1% से 47.6% के अंतर से कमला हैरिस से आगे हैं। मिशिगन में ट्रंप को 49.7 प्रतिशत तो हैरिस को 48.2 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे ही पेंसिल्वेनिया में ट्रंप को 49.6 प्रतिशत के मुकाबले हैरिस को 47.8 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। उधर, विस्कॉन्सिन में ट्रंप 49.7 प्रतिशत और कमला हैरिस 48.6 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं।

क्या होते हैं स्विंग स्टेट?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में स्विंग स्टेट्स या युद्धक्षेत्र वाले राज्य, उन राज्यों को कहा जाता है, जो चुनाव में डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी, किसी भी तरफ झुक सकते हैं। अमेरिका में कई राज्य अक्सर किसी एक ही पार्टी को वोट देते आए हैं, लेकिन जिन राज्यों में मुकाबला कड़ा रहता है और जिनका तय नहीं है कि वे किस तरफ जाएंगे, उन्हें ही स्विंग स्टेट कहा जाता है। इन राज्यों में दोनों पार्टी के उम्मीदवार प्रचार के दौरान ज्यादा धन और समय लगाते हैं। स्विंग स्टेट की पहचान के लिए कोई परिभाषा या नियम नहीं है और चुनाव के दौरान ही इन राज्यों का निर्धारण होता है।

वॉशिंगटन डीसी में बड़ा हादसा, सेना के हेलीकॉप्टर से टकराया यात्री विमान, 60 लोग थे सवार

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अमेरिका में व्हाइट हाउस के पास बड़ा विमान हादसा हो गया है। हादसे के बाद विमान पोटोमैक नदी में गिर गया। विमान में 60 लोग सवार थे। जानकारी के मुताबिक, हादसा एक हेलीकॉप्टर से प्लेन के टकराने की वजह से हुआ। क्रैश के बाद यात्रियों से भरा विमान और हेलीकॉप्‍टर दोनों पोटोमैक नदी में गिर जा गिरे। नदी से दो शव निकाले गए हैं। सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। हादसे के बाद से रीगन नेशनल एयरपोर्ट पर सभी उड़ानें अस्थायी रूप से रोक दी गई हैं।

अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में व्हाइट हाउस के पास ये हादसा हुआ। वॉशिंगटन के रोनाल्ड रिगन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास ये हादसा हुआ है। यह विमान कंसास सिटी से वॉशिंगटन जा रहा था। लैंडिंग के दौरान यह हेलीकॉप्टर से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई।अमेरिकन एयरलाइंस ने पुष्टि की कि विमान में 60 यात्री और चार चालक दल के सदस्य सवार थे। समाचार एजेंसी एएफपी ने अमेरिकी सेना के हवाले से बताया कि ब्लैक हॉक सिकोरस्की एच-60 नामक हेलीकॉप्टर में तीन सैनिक सवार थे।

जहां पर मौजूद थे ट्रंप, वहां से कुछ दूर पर विमान हादसा

व्हाइट हाउस से एयरपोर्ट के बीच एयर डिस्टेंस तीन किलोमीटर से भी कम है। जिस समय यह हादसा हुआ, ट्रंप उस समय व्हाइट हाउस में मौजूद थे। यह हादसा है या साजिश, फिलहाल इसका पता नहीं चला है। मिलिट्री हेलीकॉप्टर के अचानक आने से कई सवाल उठे हैं।

राहत एवं बचाव कार्य जारी

इस बीच अमेरिकी गृह मंत्री ने कहा कि दुर्घटना के बाद राहत एवं बचाव कार्य के लिए तटरक्षक बल सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर रहा है। संघीय विमानन प्रशासन (एफएए) ने बताया कि यह टक्कर पूर्वी मानक समयानुसार रात लगभग नौ बजे हुई, जब कंसास के विचिटा से उड़ान भरने वाला एक क्षेत्रीय विमान हवाई अड्डे के रनवे पर पहुंचते समय एक सैन्य ‘ब्लैकहॉक’ हेलीकॉप्टर से टकरा गया।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

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भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

अमेरिका में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक, मीटिंग के बाद यूएस के नए विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में शपथ के बाद मंगलवार को क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया। नए ट्रंप प्रशासन में होने वाली ये पहली बड़ी बैठक थी। इसमें मीटिंग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की ये पहली बैठक थी। वे पद संभालने के महज 1 घंटे बाद ही इसमें शामिल हुए। इसके बाद मार्को रुबियो ने अपनी पहली द्विपक्षीय बातचीत भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ की।

क्वाड मंत्रिस्तरीय बैठक के तुरंत बाद अमेरिका के नए विदेश मंत्री रुबियो की जयशंकर के साथ पहली द्विपक्षीय बैठक हुई, जो एक घंटे से अधिक समय तक चली। बैठक में अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा भी मौजूद थे। रुबियो और जयशंकर बैठक के बाद एक फोटो सेशन के लिए प्रेस के सामने आए, हाथ मिलाया और कैमरों की ओर देखकर मुस्कुराए।

मार्को रुबियो से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा कि अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक के लिए मिलकर खुशी हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘आज वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. मार्को रूबियो का आभार, जिन्होंने हमारी मेजबानी की। पेनी वोंग और ताकेशी इवाया का भी शुक्रिया, जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया। ये अहम है कि ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। इससे पता चलता है कि ये अपने सदस्य देशों की विदेश नीति में कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी व्यापक चर्चाओं में एक स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करने के अलग-अलग पहलुओं पर बात हुई। इस बात पर सहमति बनी कि हमें बड़ा सोचने, एजेंडा को और गहरा करने और अपने सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है। आज की बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में क्वाड देश वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बने रहेंगे।

डॉ जयशंकर और मार्को रुबियो की मुलाकात के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, 'विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने आज वाशिंगटन डीसी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को मजबूत करने के लिए साझा प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों और अमेरिका-भारत संबंधों को और गहरा करने के अवसरों सहित कई विषयों पर चर्चा की।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई। इस बैठक में चीन को साफ-साफ सुना दिया गया। बैठक में चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि वे किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं, जो बल या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है। यह बात चीन की उस धमकी के संदर्भ में कही गई है, जिसमें उसने लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है। क्वाड बैठक में यह तय किया गया कि वे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका के लिए भारत अहम

ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई। ट्रंप के शपथ के अगले दिन ही इस बैठक से यह समझ आता है कि अमेरिका के लिए भारत और अन्य सहयोगी कितने अहम साथी हैं। यही नहीं, अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने मंगलवार को एस जयशंकर से अलग से मुलाकात भी की।

क्वाड के लिए भारत आ सकते हैं ट्रम्प

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस साल क्वाड देशों की बैठक के लिए भारत के दौरे पर आ सकते हैं। भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है। ये सम्मेलन अप्रैल या अक्टूबर में आयोजित किया जा सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस साल के अंत तक अमेरिकी दौरे पर जा सकते हैं। इस दौरान वे व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ औपचारिक बैठक में हिस्सा लेंगे।

अमेरिका के न्‍यू ऑर्ल‍ियन्‍स हमले में 15 लोगों की जान लेने वाला आर्मी का पूर्व सैनिक, ISIS से जुड़े तार

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अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस में नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ पर आतंकी हमला हुआ। अधिकारियों ने बताया कि नरसंहार पर आमादा हमलावर ने भीड़ की ओर अपना वाहन मोड़ दिया और लोगों को रौंदते हुए निकल गया। रॉटर्स के मुताबिक अब तक 15 लोगों की मौत हो गई है और 35 घायल हैं। इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकी की पहचान कर ली गई है। इस आतंकी साजिश को लेकर अमेरिका की फेडरल जांच एजेंसी (एफबीआई) ने कई बड़े खुलासे किए हैं।

संदिग्ध का नाम शम्सुद दीन जब्बार

न्यू ऑर्लियंस पुलिस ने अब हमलावर के बारे में कई जानकारी जारी की हैं। हमलावर की पहचान की पहचान 42 साल के शम्सुद दीन जब्बार के रूप में हुई है और वह अमेरिका में ही जन्मा है। हैरान करनी वाली बात ये है कि शम्सुद दीन जब्बार ने अमेरिका सेना में भी काम किया है। जांच एजेंसिया हमले के दूसरे पहलुओं की जांच कर रही हैं। एफबीआई को हमलावर का आईएसआईएस से भी लिंक मिला हैं, जिसके बाद अमेरिका में बढ़ती आईएसआईएस की पकड़ पर चिंता बढ़ गई है।

कैसे दिया हमले को अंजाम?

शम्सुद दीन जब्बार एक पिकअप ट्रक पर सवार होकर न्यू ऑर्लियंस के बॉर्बन स्ट्रीट पहुंचा। जहां उसने रास्ते में चल रही भीड़ पर ट्रक चढ़ा दिया, फिर गोलीबारी शुरू कर दी और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। पुलिस के अनुसार, यह घटना स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 3:15 बजे फ्रेंच क्वार्टर के मध्य में घटी, जहां नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ थी।

चश्मदीदों के मुताबिक जब्बार एक सफेद फोर्ड एफ-150 इलेक्ट्रिक पिकअप में आया और पैदल चलने वालों के एक ग्रुप में घुसा दिया, भीड़ को रौंदने के बाद वह बार निकला और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। हमलावर के ट्रक से एक काले कलर का झंडा भी मिला है, जिसको आईएसआईएस का झंडा माना जा रहा है।

एफबीआई ने कहा हमले के पीछे अकेले जब्बार नहीं

न्यू ओर्लियंस हमले के बाद एफबीआई ने मामले की जांच की कमान अपने हाथ में संभाल ले ली है। हमले पर एफबीआई ने भी अपना बयान जारी किया है। एफबीआई एजेंट एलेथिया डंकन ने कहा कि हम यह नहीं मानते कि बॉर्बन स्ट्रीट हमले के लिए अकेले जब्बार पूरी तरह जिम्मेदार था। हम उसके ज्ञात सहयोगियों समेत अन्य सभी सुराग पर आक्रामकता से काम कर रहे हैं। इसलिए हमें जनता की मदद की जरूरत है। हम पूछ रहे हैं कि क्या पिछले 72 घंटों में किसी ने जब्बार से कोई बातचीत की है, तो हमसे संपर्क करे। जिस किसी के पास इससे जुड़ी कोई जानकारी, वीडियो या तस्वीरें हैं, उसे एफबीआई से साझा करें।

जो बाइडेन ने जताया दुख

अमेरिका के न्यू ओर्लियंस पर नये साल के मौके पर हुए आतंकी हमले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने इस हमले में मारे गए लोगों पर गहरा शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा, "...जो लोग न्यू ओर्लियंस के आतंकी हमले में मारे गए हैं और जो घायल हुए हैं, उन सभी लोगों के लिए आज शोक मना रहे परिवारों से मैं कहना चाहता हूं कि मैं भी उनके इस दुख में शामिल हूं। बाइडेन ने कहा कि पूरा राष्ट्र आपके साथ दुखी है। जो लोग घायल हुए हैं उम्मीद है कि वह भी आने वाले हफ्तों में ठीक हो जाएंगे। तो भी हम आपके साथ खड़े रहेंगे। बाइडेन ने कहा कि एफबीआई यह पता लगाने के लिए जांच कर रही है कि क्या हुआ, क्यों हुआ और क्या सार्वजनिक सुरक्षा को और कोई खतरा बना हुआ है।

पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइल के खिलाफ क्यों हो गया अमेरिका, खुद के लिए किस खतरे की कर रहा बात?

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पाकिस्तान अब अमेरिका के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल विकसित कर रहा है। वह ऐसी मिसाइलें बनाने में लगा है जिसमें दक्षिण एशिया के बाहर अमेरिका पर भी हमला करने की क्षमता हो। जिसके बाद अमेरिका ने एक अहम फैसले में पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम में शामिल चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के उप सलाहकार जॉन फाइनर ने कहा कि पाकिस्तान की गतिविधियां उसके इरादों पर गंभीर सवाल उठाती हैं। कार्नेगी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक भाषण के दौरान जॉन फाइनर ने कहा, 'साफ तौर पर हमें पाकिस्तान की गतिविधियां अमेरिका के लिए एक उभरते हुए खतरे के रूप में ही दिखाई देती हैं।'

फाइनर के मुताबिक ऐसे सिर्फ तीन ही देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार और अमेरिका तक मिसाइल हमला करने की क्षमता है। इनमें रूस, चीन और नॉर्थ कोरिया शामिल हैं। ये तीनों ही देश अमेरिका के विरोधी हैं। ऐसे में पाकिस्तान के ये कदम अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बनते जा रहे हैं।

फाइनर ने कहा,पाकिस्तान का ये कदम चौंकाने वाला है, क्योंकि वह अमेरिका का सहयोगी देश रहा है। हमने पाकिस्तान के सामने कई बार अपनी चिंता जाहिर की है। हमने उसे मुश्किल समय में समर्थन दिया है और आगे भी संबंध बनाए रखने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में पाकिस्तान का ये कदम हमें ये सवाल करने पर मजबूर करता है कि वह ऐसी क्षमता हासिल क्यों करना चाहता है, जिसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ किया जा सकता है।

एक दिन पहले ही अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल से जुड़ी चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। विदेश विभाग की वेबसाइट पर जारी बयान में कहा गया है कि यह निर्णय पाकिस्तान की लंबी दूरी की मिसाइलों के विकास से होने वाले खतरे को देखते हुए लिया गया है।अमेरिका ने गुरुवार को बताया कि चार संस्थाओं को कार्यकारी आदेश 13382 के तहत प्रतिबंधित किया गया है, जो विनाशकारी हथियारों और उनके वितरण के साधनों के प्रसार से जुड़े लोगों पर लागू होता है। बयान के मुताबिक पाकिस्तान की 'नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स' और उससे जुड़ी अन्य संस्थाएं जैसे अख्तर एंड संस प्राइवेट लिमिटेड और रॉकसाइड एंटरप्राइज पर पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम के लिए उपकरण आपूर्ति करने का आरोप है।

पाकिस्तान ने बैन को बताया पक्षपातपूर्ण

अमेरिका के प्रतिबंधों की पाकिस्तान ने कड़ी निंदा करते हुए इसे पक्षपाती करार दिया है और कहा कि यह फैसला क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक परिणाम लाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा, 'पाकिस्तान की रणनीतिक क्षमताएं उसकी संप्रभुता की रक्षा और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हैं। प्रतिबंध शांति और सुरक्षा के उद्देश्य को विफल करते हैं।

चीन की 3 कंपनियों पर लगाया था बैन

इससे पहले इसी साल अप्रैल में अमेरिका ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के लिए तकनीक सप्लाई करने पर चीन की 3 कंपनियों पर बैन लगा दिया था। इस लिस्ट में बेलारूस की भी एक कंपनी शामिल थी।

80 के दशक में शुरू हुआ पाकिस्तान का मिसाइल प्रोग्राम

पाकिस्तान ने 1986-87 में अपने मिसाइल प्रोग्राम हत्फ की शुरुआत की थी। भारत के मिसाइल प्रोग्राम का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हुई थी।

हत्म प्रोग्राम में पाक रक्षा मंत्रालय को फौज से सीधा समर्थन हासिल था। इसके तहत पाकिस्तान ने सबसे पहले हत्फ-1 और फिर हत्फ-2 मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, हत्फ-1 80 किमी और वहीं हत्फ-2 300 किमी तक मार करने में सक्षम थी।

यह दोनों मिसाइलें 90 के दशक में सेना का हिस्सा बनी थीं। इसके बाद हत्फ-1 को विकसित कर उसकी मारक क्षमता को 100 किलोमीटर बढ़ाया गया। 1996 में पाकिस्तान ने चीन की मदद से बैलिस्टिक मिसाइल की तकनीक हासिल की।

फिर 1997 में हत्फ-3 का सफल परीक्षण हुआ, जिसकी मार 800 किलोमीटर तक थी। साल 2002 से 2006 तक भारत के साथ तनाव के बीच पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा मिसाइलों की टेस्टिंग की थी।

सरकारी शटडाउन पर ट्रंप समर्थित बिल को नहीं मिला पूर्ण बहुमत, 38 रिपब्लिकंस ने भी विरोध में की वोटिंग

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अमेरिका पर इस समय आर्थिक संकट आ गया है। उसके पास इतना पैसा नहीं बचा है कि वह सरकारी कर्मचारियों को सैलरी दे सके। हालात शटडाउन जैसे हो चुके हैं। सरकार को फंड जुटाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थित बिल गुरुवार रात अमेरिकी संसद में गिर गया।इससे बचने के लिए अमेरिका के पास 24 घंटे से भी कम का समय बचा है।

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की फेडरल ऑपरेशन को फंड देने और गवर्नमेंट शटडाउन से एक दिन पहले कर्ज सीमा को बढ़ाने या सस्पेंड करने के प्लान को खारिज कर दिया है। गुरुवार रात अमेरिकी संसद में सरकारी शटडाउन से बचने के लिए बिल लाया गया था। इस बिल को ट्रंप का समर्थन था। करीब 3 दर्जन रिपब्लिकन ने डेमोक्रेट्स के साथ मिलकर ट्रंप समर्थित इस बिल के खिलाफ वोटिंग की। संसद में यह बिल 174-235 से गिर गया और बहुमत वोट भी हासिल करने में विफल रहा।

दरअसल, डेमोक्रेट्स ट्रंप को उनके नए कार्यकाल के पहले साल के दौरान बातचीत का फायदा नहीं देना चाहते। इस वजह से उन्होंने इस बिल का विरोध किया। ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से जीते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी शटडाउन को रोकने के लिए देश की कर्ज सीमा को बढ़ाने या निलंबित करने का प्रावधान को कानून में शामिल किए जाने की मांग की थी, खास बात यह है कि इस कदम का उनकी अपनी पार्टी नियमित तौर पर विरोध करती रही है। उन्होंने बुधवार को एक बयान में कहा कि इसके अलावा कुछ भी हमारे देश के साथ विश्वासघात है।

क्या होता है सरकार का शटडाउन?

अमेरिकी सरकार में शटडाउन तब होता है, जब सरकार के खर्च संबंधी विधेयक अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले लागू नहीं हो पाते हैं। शटडाउन के चलते संघीय सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ती है और गैर जरूरी सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजना पड़ता है। इस दौरान सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली जरूरी एजेंसियों के कर्मचारी ही काम करते हैं। शटडाउन के चलते संघीय और राज्य सरकारों के बीच का समन्वय भी बाधित होता है। फंडिंग में अंतराल के चलते साल 1980 में अमेरिका में शटडाउन को लेकर पहली बार कानूनी राय दी गई थी। साल 1990 से शटडाउन लागू होने लगे और फरवरी 2024 तक अमेरिका में 10 फंडिंग शटडाउन हो चुके हैं।

क्यों जरूरी है इसका पास होना?

दरअसल, अमेरिका को अपने खर्च चलाने के लिए फंड की जरूरत होती है। यह फंड कर्ज लेकर पूरा किया जाता है। इसके लिए एक बिल अमेरिकी संसद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में लाया जाता है। मौजूदा बिल को ट्रंप की ओर से लाया गया था, जिसे विपक्ष से खारिज कर दिया। इसका सीधा का मतलब है कि अमेरिका को खर्च के लिए पैसा नहीं मिलेगा। अमेरिका इस पैसे से ही न केवल सरकारी अधिकारियों को सैलरी देती है बल्कि दूसरे खर्च भी चलते हैं।

तो अमेरिका में हो जाएगा शटडाउन

इस बिल को पास कराने के लिए शुक्रवार रात तक का ही समय है। यानी अमेरिकी सरकार के पास 24 घंटे खर्च चलाने लायक पैसा भी नहीं है। अगर यह पास नहीं हो पाया तो अमेरिका में शटडाउन लग जाएगा। ऐसा होने पर अमेरिका पर बड़ी मुसीबत आ जाएगी। उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। इसका सबसे ज्यादा असर ट्रंप पर पड़ेगा

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

अमेरिका में मतदान शुरू, ट्रंप और कमला हैरिस में कांटे की टक्कर, वोटिंग के बीच 7 स्विंग स्टेट्स पर सबकी नजर

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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग जारी है। भारतीय समय के मुताबिक शाम 6 बजे से मतदान शुरू हो गया है। जहां डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है।ट्रंप अगर जीत हासिल करते हैं तो वो दूसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे। वहीं, अगर कमला हैरिस को जीत मिलती है तो वो पहली बार राष्ट्रपति बनेंगी।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कई राज्यों में मतदान जारी है। वैसे तो मतदान की तारीख आज यानि कि 5 नवंबर है. लेकिन इससे पहले ही करोड़ों लोग वोटिंग कर चुके हैं. यह सुविधा में अमेरिका में है, इसे अर्ली वोटिंग कहते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के इलेक्शन लैब के मुताबिक, अमेरिका के कई हिस्सों में हो रही अर्ली वोटिंग में अब तक लगभग आठ करोड़ लोग वोट डाल चुके हैं। वहीं, आज फ्लोरिडा, जॉर्जिया, इलिनॉइस, लुइसियाना, मैरीलैंड, मैसाचुसेट्स, मिशिगन, मिसौरी, पेंसिल्वेनिया, रोड आइलैंड, साउथ कैरोलाइना और वॉशिंगटन में वोटिंग हो रही है।

अमेरिका के पेन्सिलवेनिया राज्‍य पर दुनिया की नजरें

इस चुनाव में जॉर्जिया, मिशिगन, और पेंसिल्वेनिया जैसे महत्वपूर्ण स्विंग स्टेट्स का खास महत्व है। विशेष रूप से पेंसिल्वेनिया को चुनावी परिणामों के लिहाज से अहम माना जा रहा है। यह राज्‍य अमेरिका के स्विंग स्‍टेट का हिस्‍सा है। अमेरिका में 7 स्विंग स्‍टेट हैं और यही फैसला करते हैं कि अगला राष्‍ट्रपति कौन होगा। पेन्सिलवेनिया में कुल 19 इलेक्‍टोरल वोट हैं जो किसी अन्‍य राज्‍य की तुलना में ज्‍यादा है। यहां अब तक कमला हैरिस की डेमोक्रेटिक पार्टी का दबदबा था।

किस 'स्विंग स्टेट' में कौन आगे?

अमेरिका चुनाव से पहले ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नेवादा में ट्रंप को 51.2 प्रतिशत समर्थन मिला जबकि हैरिस को 46 प्रतिशत। इसी तर्ज पर नॉर्थ कैरोलिना में ट्रंप को 50.5 प्रतिशत और हैरिस को 47.1 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। उधर, जॉर्जिया की बात की जाए तो यहां डोनाल्‍ड ट्रंप को 50.1% से 47.6% के अंतर से कमला हैरिस से आगे हैं। मिशिगन में ट्रंप को 49.7 प्रतिशत तो हैरिस को 48.2 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे ही पेंसिल्वेनिया में ट्रंप को 49.6 प्रतिशत के मुकाबले हैरिस को 47.8 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। उधर, विस्कॉन्सिन में ट्रंप 49.7 प्रतिशत और कमला हैरिस 48.6 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं।

स्विंग स्टेट क्या हैं और वे महत्वपूर्ण क्यों हैं?

जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, स्विंग स्टेट - जिन्हें बैटलग्राउंड स्टेट भी कहा जाता है - राष्ट्रीय चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। अमेरिकी राजनीति में, राष्ट्रपति चुनाव एक वेटेज वोटिंग सिस्टम द्वारा तय किए जाते हैं जिसे इलेक्टोरल कॉलेज के रूप में जाना जाता है, न कि लोकप्रिय वोट द्वारा। इस वजह से, स्विंग स्टेट नतीजे तय करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 50 राज्यों में से प्रत्येक को उनकी जनसंख्या के अनुपात में एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल कॉलेज वोट आवंटित किए जाते हैं। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जीतने के लिए 270 इलेक्टर हासिल करने होंगे।

राष्ट्रपति चुनाव के बीच अमेरिका एजेंसियां किस बात से डरी? घोषित किया 84 करोड़ का इनाम

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जल्द ही अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिल जाएगा। अमेरिका राष्‍ट्रपति चुनाव में डोनाल्‍ड ट्रंप जीतेंगे या फिर कमला हैरिस, ये तो वक्‍त ही बताएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का सारी दुनिया इंतजार कर रही है।इसी बीच दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका को राष्ट्रपति चुनाव में बाहरी ताकतों के दखल का डर सताने लगा है।अमेरिका को चुनाव के दौरान बाहरी ताकतों के दखल देने या अड़ंगा डालने की खुफिया सूचना मिली है। जिसके बाद अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक एजेंसियों ने बाहरी दखल से बचने के लिए इससे जुड़ी जानकारी देने वाले को 10 मिलियन डॉलर यानी भारतीय करेंसी में 84 करोड़ रुपये का इनाम देने की घोषणा भी कर दी है।

ईरानी साइबर फर्म पर आरोप

अमेरिका की राजनीतिक सुरक्षा सेवा न्याय विभाग में इस बाबत बाकायदा पोस्टर निकाल कर जानकारी भी आम लोगों से साझा की है। इसमें उसने ईरानी साइबर फर्म पर आरोप लगाया है कि उसने साल 2020 की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया था। अमेरिकी एजेंसी को डर है कि यह साइबर फर्म एक बार फिर ऐसी कोशिश कर सकती है।

ईरान और रूस से जुड़े लोगों की तस्वीरें जारी

ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कार्पस से जुड़े कुछ लोगों की तस्वीर जारी करते हुए कहा गया है कि इन लोगों ने 2024 के अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप करने के प्रयास में अनेक साइबर ऑपरेशन किए है। अगर किसी के पास इन व्यक्तियों के बारे में जानकारी है तो सूचना देने पर उसे 10 मिलियन डॉलर तक का इनाम दिया जा सकता है।

अमेरिकी प्रशासन द्वारा एक रूसी मीडिया संगठन से जुड़े लोगों की कुछ तस्वीरें भी जारी की गई है और कहा गया है कि इन लोगों ने 2024 की अमेरिकी चुनाव को टारगेट करते हुए अनेक दुष्प्रचार और गलत सूचनाओं फैलाई है।

बता दें कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए आज 5 नवम्बर को मतदान होने जा रहा है। राष्ट्रपति पद की रेस के लिए रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की उनकी प्रतिद्वंद्वी कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है। अमेरिका भर में प्रारंभिक मतदान और डाक से मतदान पर नजर रखने वाले फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के ‘इलेक्शन लैब’ के अनुसार, 7.8 करोड़ से अधिक अमेरिकी पहले ही अपने वोट डाल चुके हैं। सात अहम राज्यों में से पेंसिल्वेनिया सबसे महत्वपूर्ण राज्य बनकर उभरा है, जिसके पास 19 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावःकैसे चुना जाता है नया राष्ट्रपति, क्या है 'इलेक्टोरल कॉलेज' सिस्टम

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अमेरिका में आज राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं, अब से कुछ ही घंटों बाद जब अमेरिका में सुबह होगी तो लाखों करोड़ों अमेरिकी अपने-अपने मतों का इस्तेमाल करने घर से बाहर निकलेंगे। अमेरिका में महीनों से चल रही राष्ट्रपति पद की रेस का प्रचार 4 नवंबर की रात थम गया। अब इंतजार है मंगलवार की सुबह 7 बजे से शुरु होने वाले मतदान का जो तय करेगा कि व्हाइट हाउस में अगले 4 साल के लिए कौन सा चेहरा होगा। अमेरिका के दो सबसे प्रमुख राजनीतिक दल रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस चुनावी मैदान में हैं। दोनों उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर होनी है, लिहाजा चुनावी नतीजे भी काफी चौंकाने वाले हो सकते हैं।

वोटिंग का समय क्या है?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग अलग-अलग राज्यों के स्थानीय समयानुसार सुबह 7 बजे से लेकर 9 बजे के बीच शुरू होगी। यह भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे से लेकर रात 9:30 बजे तक का समय होगा। वहीं मतदान के लिए अंतिम समय की बात करें तो ज्यादातर वोटिंग सेंटर्स शाम 6 बजे से लेकर देर रात तक जारी रह सकते हैं। यानी अमेरिका में वोटिंग खत्म होने तक भारत में अगला दिन शुरू हो जाएगा। यानी अमेरिका में मतदान भारतीय समयानुसार बुधवार की सुबह 4:30 बजे तक खत्म हो सकते हैं। कई राज्यों में यह समय और अधिक हो सकता है क्योंकि अमेरिका के राज्य कई अलग-अलग टाइम जोन में बंटे हुए हैं।

कब आएंगे नतीजे?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग खत्म होते ही मतों की गिनती शुरू हो जाएगी। काउंटिंग खत्म होने पर पॉपुलर वोट (जनता के वोट) का विजेता घोषित किया जाता है, लेकिन यह हर बार जरूरी नहीं कि जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट मिले हैं वह वाकई में राष्ट्रपति पद का विजेता हो। क्योंकि अमेरिका में असल में राष्ट्रपति का चुनाव पॉपुलर वोट्स नहीं बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज करते हैं। इसके अलावा कई बार ऐसा भी हो सकता है कि किसी राज्य में अनुमानित विजेता घोषित किया जा रहा हो जबकि दूसरे में वोटिंग जारी हो। लिहाजा कई बार सटीक नतीजे आने में एक-दो दिन का समय लग जाता है। वहीं दिसंबर में इलेक्टर्स की वोटिंग के बाद 25 दिसंबर तक सारे इलेक्टोरल सर्टिफिकेट सीनेट के प्रेसिडेंट को सौंप दिए जाएंगे। इसके बाद 6 जनवरी, 2025 को कांग्रेस के संयुक्त सत्र में इलेक्टर्स के वोटों की गिनती होगी, इसी दिन उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस सदन में विजेता के नाम का ऐलान करेंगी।

इलेक्टोरल कॉलेज क्या होते हैं?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका सबसे अहम होती है। इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिका के हर राज्य के लिए तय किए गए इलेक्टर्स की संख्या है। किसी भी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए 538 में से 270 इलेक्टोरल कॉलेज जीतने होंगे। हर राज्य को यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और अमेरिकी सीनेट में उसके प्रतिनिधियों की संख्या के अनुसार ही इलेक्टर्स मिलते हैं। वर्तमान में सबसे ज्यादा 55 इलेक्टर्स कैलिफोर्निया स्टेट में हैं, वहीं सबसे कम इलेक्टर्स की संख्या 3 है, जो कि अमेरिका के वायोमिंग समेत 6 राज्यों में हैं। हालांकि सबसे ज्यादा अहमियत 7 स्विंग स्टेट्स की होती है क्योंकि ज्यादातर राज्यों की तरह इनका रुख पहले से साफ नहीं होता है और यही वजह है कि इन स्विंग स्टेट्स को प्रमुख ‘बैटल फील्ड’ माना जाता है।

किस 'स्विंग स्टेट' में कौन आगे?

अमेरिका चुनाव से पहले ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक नेवादा में ट्रंप को 51.2 प्रतिशत समर्थन मिला जबकि हैरिस को 46 प्रतिशत। इसी तर्ज पर नॉर्थ कैरोलिना में ट्रंप को 50.5 प्रतिशत और हैरिस को 47.1 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। उधर, जॉर्जिया की बात की जाए तो यहां डोनाल्‍ड ट्रंप को 50.1% से 47.6% के अंतर से कमला हैरिस से आगे हैं। मिशिगन में ट्रंप को 49.7 प्रतिशत तो हैरिस को 48.2 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। ऐसे ही पेंसिल्वेनिया में ट्रंप को 49.6 प्रतिशत के मुकाबले हैरिस को 47.8 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं। उधर, विस्कॉन्सिन में ट्रंप 49.7 प्रतिशत और कमला हैरिस 48.6 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं।

क्या होते हैं स्विंग स्टेट?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में स्विंग स्टेट्स या युद्धक्षेत्र वाले राज्य, उन राज्यों को कहा जाता है, जो चुनाव में डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी, किसी भी तरफ झुक सकते हैं। अमेरिका में कई राज्य अक्सर किसी एक ही पार्टी को वोट देते आए हैं, लेकिन जिन राज्यों में मुकाबला कड़ा रहता है और जिनका तय नहीं है कि वे किस तरफ जाएंगे, उन्हें ही स्विंग स्टेट कहा जाता है। इन राज्यों में दोनों पार्टी के उम्मीदवार प्रचार के दौरान ज्यादा धन और समय लगाते हैं। स्विंग स्टेट की पहचान के लिए कोई परिभाषा या नियम नहीं है और चुनाव के दौरान ही इन राज्यों का निर्धारण होता है।