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*युद्ध कौशल में निपुण वो वीरांगना, जिसने 30 अंग्रेजों को अकेले मार गिराया*
*बुंदेले हरबोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी*
जैसे इस एक पंक्ति से रानी लक्ष्मीबाई की पहचान सुनिश्चित हो जाती है, ठीक वैसे ही एक पंक्ति है – *कोई उनको हब्सिन कहता कोई कहता नीच अछूत,अबला कोई उन्हें बताए कोई बताए उन्हें मजबूत*
ये पंक्ति भी किसी वीरांगना के सम्मान में कही गई है। वो वीरांगना जिसने 1857 की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।हममे से शायद ही कोई इस दलीत वीरांगना *ऊदा देवी* को कोई जानता हो, जिसने लखनऊ के सिकंदर बाग में ब्रिटिश सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया था। ऊदा देवी का जन्म अवध के उजरियांव में हुआ था। उनके जन्म की ठीक-ठीक तारीख कहीं दर्ज नहीं है, इसलिए वह कब पैदा हुईं यह बताना मुश्किल है।ऊदा देवी का संबंध पासी जाति से था। वक्त के साथ-साथ बड़ी हुईं ऊदा की शादी कम उम्र में ही उनकी शादी मक्का पासी नाम के युवक से कर दी गयी।इस तरह वह ससुराल पहुंच गई। जहां उन्हें नया नाम *जगरानी* मिला।


*पति से प्रेरणा लेकर महिला दस्ता में हुईं शामिल*
देश अंग्रेजों के अधीन था, लेकिन धीरे धीरे स्वतंत्रता के लिए भारतीय मुखर होने लगे थे। ऐसा ही एक वक्त था 1847 का, जब अमजद अली शाह के पुत्र वाजिद अली शाह ने छठवें नवाब के तौर पर लखनऊ की गद्दी संभाली। सत्ता संभालते ही उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए रंगरूटों की भर्ती करनी शुरू कर दी। ऊदा देवी के पति मक्का पासी जो काफी साहसी और वीर थे अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए सेना में भर्ती हो गए। कहते हैं अपने पति मक्का पासी को शाह दस्ते में भर्ती होता देख ऊदा देवी भी वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में भर्ती हो गई।


*पति की मौत से टूटी नहीं*
1857 देश के इतिहास का वो वक्त था जब पूरे भारतवर्ष में गदर छिड़ गया था।हिन्दुस्तान की आजादी का पहला गदर शुरू हो चुका था। सैनिक विद्रोह की शक्ल में, अलग-अलग जगहों पर देश के वीर सपूत अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे।10 जून सन 1857 जब अंग्रेजों ने अवध पर हमला कर दिया था। लखनऊ के इस्माइलगंज में ब्रिटिश हुकूमत की सैनिक टुकड़ी से मौलवी अहमद उल्लाह शाह के नेतृत्व में एक पलटन लड़ रही थी। इस पलटन में ही मक्का पासी भी थे। अंग्रेजों से लड़ते हुए मक्का वीरगति को प्राप्त हुए।जब ये खबर ऊदा देवी तक पहुंची तो वो किसी आम औरत की तरह टूटी नहीं, बल्कि उनमें अंग्रेजों के खिलाफ लड़के की भावना और तेज हो गई।


*और खुंखार हुई घायल शेरनी*
इस घायल शेरनी ने अंग्रेजों से इसका प्रतिशोध लेने की ठानी।वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में तो वह पहले से ही थीं। पति की शहादत के बाद अग्रेजों से बदला लेने की ठानी इस वीरांगना ने बेगम हजरत महल की मदद से महिला लड़ाकों का पृथक बटालियन बना लिया।


*30 अंग्रेजों को अकेले मौत के घाट उतारा*
16 नवंबर 1857 को जब सार्जेंट कैल्विन कैम्बेल के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने अवध के सिकंदर बाग में ठहरे भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया।इस विकट परिस्थिति में पुरूषों के वेश में ऊदा देवी और उनकी बटालियन की दलित वीरांगनाओं ने मोर्चा संभाला और अंग्रेज सैनिकों को द्वार पर ही रोक दिया। लड़ाई के वक्त ऊदा देवी अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर पीपल के पेड़ पर चढ़ गई। उन्होंने पेड़ पर से ही गोलियां बरसानी शुरू कर दीं और 30 से ज्यादा अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। अपने पराक्रम से उन्होंने काफी देर तक अंग्रेज सैनिकों को प्रवेशद्वार पर ही रोके रखा।

*ऊदा देवी के युद्ध कौशल के अंग्रेज भी हुए कायल* अंग्रेजों की समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार गोलियां कहां से चल रही हैं। मारे गये सैनिकों के शरीर में लगे गोलियों के निशान से पता चला कि कोई ऊपर से फायरिंग कर रहा है। अंग्रेजों ने देखा कि कोई पीपल के पेड़ के झुरमुट में छिपकर गोलियां चला रहा है। इस पर अंग्रेजों ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए गोलियां चलायीं।गोलियां लगते ही ऊदा देवी नीचे गिर पड़ीं। अब अंग्रेजों ने ताबड़तोड़ गोलियां दागनी शुरू कर दीं। उनके प्राण पखेरू उड़ गये, तब जाकर अंग्रेज उनके करीब पहुंचे और देखा कि जिसे वे पुरुष मान रहे थे, वह तो एक औरत थी। एक महिला का अदम्य साहस देख अंग्रेज सार्जेंट काल्विन चकित था। ऊदा देवी की वीरता से अभिभूत काल्विन ने अपना हैट उतारकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। भले ही भारतीय इतिहास में अंग्रेजों खिलाफ साहस दिखाने वाली इस वीरांगना का जिक्र ना हो, लेकिन लंदन टाइम्स अखबार के वार कॉरेस्पोंडेंट विलियम हावर्ड रसेल जो लखनऊ में ही कार्यरत थे ने सिकंदर बाग में हुई लड़ाई के बाद लंदन स्थित लंदन टाइम्स दफ्तर में खबरें भेजी थीं। विलियम हावर्ड रसेल ने सिकंदर बाग की लड़ाई को लेकर अपनी खबर में पुरुषों के कपड़े पहनकर एक महिला द्वारा पेड़ से फायरिंग करने और कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डालने का जिक्र किया था। अपने अदम्य साहस और युद्ध कौशल से ऊदा देवी ने साबित कर दिया की महिलाएं कमजोर नहीं होती। वो चाहें तो बड़ी से बड़ी फौज से टकरा सकती है।
*चीन के कब्जे में कश्मीर का कौन सा हिस्सा? जयशंकर के पीओके वाले बयान पर उमर अब्दुल्ला का बयान*
विदेश मंत्री एस जयशंकर के पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर बयान दिया। जयशंकर बुधवार को लंदन में कहा कि पाकिस्तान के पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की वापसी से कश्मीर मुद्दा पूरी तरह से हल हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर का केवल वह हिस्सा समस्याओं के पूर्ण समाधान से बचा हुआ है। जयशंकर के इस बयान के बाद भारत की सियासत गरमा गई है। दरअसल, कश्मीर के सीएम अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार से ये काम जल्द से जल्द करने की बात कही। यही नहीं, उन्होंने कश्मीर के उस हिस्से पर सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया जो चीन के कब्जे में है।


जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा में लंदन में एस जयशंकर के दिए बयान का जिक्र करते हुए भाजपा सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री साहब ने कहा है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला हिस्सा हम वापस लेकर आएंगे। किसने रोका? मुझे बताइए किसने रोका? हमने कहा कि मत लाइए? हम तो कहते हैं कि लाना है तो लाइए।


इस दौरान उमर अब्दुल्ला ने कारगिल युद्ध का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उस समय पीओके वापस लिया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब्दुल्ला ने सवाल किया कि ठीक है, तब नहीं हो सका, लेकिन अगर आज आप इसे वापस ले सकते हैं, तो हम में से कौन कहेगा कि इसे वापस मत लो? उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कश्मीर का एक हिस्सा चीन के पास भी है। उन्होंने कहा कि कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है, तो एक हिस्सा चीन के पास भी है। उस हिस्से का जिक्र क्यों नहीं होता? उमर अब्दुल्ला ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि जब आप पीओके वापस लेंगे, तो कृपया करके चीन के कब्जे वाले कश्मीर को भी वापस लेने का काम करें।


अब कई लोगों को ये बात पता नहीं है कि कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान के अलावा चीन का भी कब्जा है। पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्ज कर लिया था, जिसे आज पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके के नाम से सभी लोग जानते हैं। लेकिन आज हम बात उस कश्मीर के हिस्से की करेंगे, जो चीन के कब्जे में है और जिसे आजाद कराने की बात उमर अब्दुल्ला ने कही है।


चीन ने कश्मीर के करीब 20 फीसदी हिस्से पर कब्जा किया है. इस हिस्से को अक्साई चिन के नाम से जाना जाता है। चीन और भारत के बीच जब 1962 में युद्ध हुआ तो उसने भारत के इस पूरे हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया था। ये जम्मू-कश्मीर का उत्तर पूर्वी हिस्सा है, जिसे लेकर पिछले कई सालों से भारत और चीन के बीच तनाव है। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश में भी चीन कई हिस्सों पर अपनी दावा करता है, जिसे लेकर लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है।
*क्या दो खेमे में बंट जाएंगे अमेरिका और यूरोप? ट्रंप-जेलेंस्की झगड़े के बाद दिख रहे हालात*
अमेरिका नाटो से अलग हो जाएगा? क्या अमेरिका और यूरोप दो अलग-अलग गुट में बंट जाएंगे? यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच तनावपूर्ण बातचीत के बाद यह सवाल इस समय काफी गर्माया हुआ है। दरअसल, इसकी वजह है अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और यूरोपीय लीडर्स के बीच बढ़ती अनबन। रूस-यूक्रेन वॉर के मुद्दे पर अमेरिका और यूरोप के देशों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। हाल ही में यूक्रेन के प्रेसिडेंट ज़ेलेंस्की और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की ट्रंप से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात के बाद अमेरिका और यूरोप के बीच तनाव साफ दिखाई दे रहा है।


ज़ेलेंस्की और ट्रंप के बीच मीडिया के सामने ही तीखी बहस हो गई। जिसके बाद दुनिया के समीकरण एकदम से बदल गए। ज़ेलेंस्की को यूरोपीय लीडर्स से जमकर सपोर्ट मिला। कल तक जो ब्रिटेन, अमेरिका के साथ था उसने जेलेंस्की को न सिर्फ लगे लगाया बल्कि भारी भरकम मदद का भरोसा देकर करोड़ों डॉलर भी दिए। ब्रिटेन के साथ साथ फ्रांस भी यूक्रेन के सपोर्ट में उतर आया है। मतलब कल तक जो यूरोपीय देश अमेरिका के आगे नतमस्तक थे। वो आज जेलेंस्की और यूक्रेन को लेकर ट्रंप के खिलाफ खड़े होने की हिमाकत कर रहे हैं। जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज भी दबी जुबान में जेलेंस्की को मदद देने का ऐलान करते नजर आए हैं।


मतलब अभी तक अमेरिका के दम पर पुतिन से पंगा लेने वाले जेलेंस्की अब यूरोप के दम पर सीना ताने खड़े होते दिख रहे हैं। हालांकि यूक्रेन के मुद्दे पर यूरोपीय यूनियन में भी दो फाड़ है। स्लोवाकिया ने यूक्रेन को मदद देने से इनकार कर दिया। हंगरी ने भी ट्रंप को मजबूत राष्ट्रपति बताकर साफ कर दिया कि वो जंग में जेलेंस्की के साथ नहीं है। ऐसे में अगर यूरोप की बड़ी ताकतों ने ट्रंप से दुश्मनी मोल ली। और जेलेंस्की को मदद देकर जंग में उतरने की गलती की तो ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के लिए हालात ऐसे होंगे कि एक तरफ कुआ तो दूसरी तरफ खाई यानी एक तरफ पुतिन तो दूसरी तरफ ट्रंप मुश्किल खड़ी कर देंगे।


वैसे, इतिहास को देखते हुए अमेरिका-यूरोप के दो गुटों में बंट जाने की ज्यादा उम्मीद करना गलत होगा। दशकों तक अमेरिका की सुरक्षा के भरोसे रहने के कारण खासकर पश्चिमी यूरोप के देश बात करने में तो माहिर हो गए हैं, लेकिन खर्च करने में नहीं।
यह भी समझना जरूरी है कि यूरोप की भौगोलिक स्थिति क्या है। जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे ताकतवर देश रूस से काफी दूर हैं, जो इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। जब तक रूस पूर्वी यूरोप पर कब्जा नहीं करता, वह पश्चिमी यूरोप के लिए सीधा खतरा नहीं बन सकता।
यही कारण है कि ये देश सिर्फ बातचीत कर रहे हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे। उनकी पहली प्रतिक्रिया एक शिखर सम्मेलन आयोजित करना थी, जो महज औपचारिक चर्चा का एक और दौर साबित हुआ। दूसरी प्रतिक्रिया यह रही कि यूरोपीय नेता वॉशिंगटन दौड़ पड़े ताकि ट्रंप को समझा सकें। पहले फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों अमेरिका पहुंचे। जिसके बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर। लेकिन, यह भी एक निरर्थक कोशिश ही है।
*इस महिला ने दी ट्रंप को देख लेने की धमकी, दक्षिण कोरिया में बढ़ती अमेरिकी सैन्य गतिविधि पर दे डाली चेतावनी*
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के नए राष्ट्रपति के रूप में वापसी के बाद पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है। कभी टैरिफ को लेकर तो कभी अवैध अप्रवासियो को लेकर ट्रंप की कार्रवाई से दुनियाभर के देशों में हड़कंप है। अभी डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को बुरी तरह धमकाया था। उसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल भी हो रहा है। इस बीच दुनिया के सबसे ताकतवर नेता अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को धमकी मिली है। ये धमकी दी है उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन की बहन किम यो-जोंग ने। किम यो-जोंग ने दक्षिण कोरिया में अमेरिकी विमानवाहक पोत की तैनाती और अन्य अमेरिकी सैन्य गतिविधियों के जवाब में कार्रवाई की धमकी दी है।


किम यो जोंग ने इसे "अमेरिका और उसके पिट्ठुओं का टकरावपूर्ण उन्मादी" कदम करार दिया। केसीएनए रिपोर्ट के अनुसार, किम यो जोंग ने अमेरिका पर उत्तर कोरिया के प्रति अपनी टकराव वाली इच्छा को स्पष्ट रूप से दिखाने का आरोप लगाया। उन्होंने उत्तर कोरिया के आधिकारिक नाम डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया के संक्षिप्त नाम का उपयोग करते हुए कहा, "डीपीआरके रणनीतिक स्तर पर दुश्मन की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली कार्रवाइयों को बढ़ाने के विकल्प की सावधानीपूर्वक जांच करने की योजना बना रहा है ताकि इस तथ्य से निपटा जा सके कि कोरियाई प्रायद्वीप में अमेरिकी जहाजों की तैनाती एक बुरी आदत बन गई है।यह डीपीआरके की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।


किम यो जोंग ने अमेरिका के दक्षिण कोरिया में एयरक्राफ्ट भेजने कों सैन्य उकसावे की कार्रवाई करार दिया है। किम यो जोंग ने कहा कि अमेरिका ने यूएसएस कार्ल विंसन और अन्य अमेरिकी सैन्य संपत्तियों को तैनात कर के स्पष्ट रूप से उत्तर कोरिया के खिलाफ 'अपनी सबसे शत्रुतापूर्ण और संघर्षात्मक मंशा' दिखाई है। साथ ही कहा है कि इस तरह की कार्रवाइयां उत्तर कोरिया के निरंतर परमाणु विस्तार को ठीक ठहराती हैं। उनका यह बयान इस बात को संकेत देता है कि उत्तर कोरिया अपनी मिसाइल परीक्षण गतिविधियों को बढ़ा सकता है, जिनमें इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल हो सकती हैं, जो अमेरिका के मुख्य भूमि या क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य ठिकानों को लक्ष्य बना सकती हैं।


इससे पहले, रविवार को यूएसएस कार्ल विंसन और उसका स्ट्राइक समूह दक्षिण कोरिया पहुंचे थे। यह तैनाती उत्तर कोरिया की तरफ से किए गए मिसाइल परीक्षणों के जवाब में अमेरिका और दक्षिण कोरिया की सैन्य साझेदारी को मजबूत करने के उद्देश्य से की गई थी।
*पहले पद से हटाया अब पार्टी से भी निकाला, अपने भतीजे आकाश आनंद से क्यों नाराज हैं मायावती?*
बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद से नेशनल कोआर्डिनेटर सहित सभी पद छीनने के बाद अब उन्हें पार्टी से ही निष्कासित कर दिया है। मायावती ने रविवार को ऐलान किया कि वह अब किसी को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाएंगी। इसके साथ ही मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद से सभी जिम्‍मेदारियां छीन ली हैं और उन्‍हें एक साल में दूसरी बार उत्तराधिकारी और नेशनल कॉर्डिनेटर के पद से हटा दिया गया है। इसके बाद मायावती ने एक बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को आज सोमवार को पार्टी से निकाल दिया है। अब सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद से नाराज क्‍यों हैं?


बसपा चीफ मायावती ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा-“बीएसपी की आल-इण्डिया की बैठक में कल आकाश आनन्द को पार्टी हित से अधिक पार्टी से निष्कासित अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ के प्रभाव में लगातार बने रहने के कारण नेशनल कोआर्डिनेटर सहित सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया था, जिसका उसे पश्चताप करके अपनी परिपक्वता दिखानी थी। लेकिन इसके विपरीत आकाश ने जो अपनी लम्बी-चौड़ी प्रतिक्रिया दी है वह उसके पछतावे और राजनीतिक मैच्युरिटी का नहीं बल्कि उसके ससुर के ही प्रभाव वाला ज्यादातर स्वार्थी, अहंकारी व गैर-मिशनरी है, जिससे बचने की सलाह मैं पार्टी के ऐसे सभी लोगों को देने के साथ दण्डित भी करती रही हूं।”


बसपा प्रमुख ने आगे कहा कि, अतः परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान मूवमेन्ट के हित में तथा मान्यवर कांशीराम की अनुशासन की परम्परा को निभाते हुए आकाश आनन्द को, उनके ससुर की तरह, पार्टी व मूवमेन्ट के हित, में पार्टी से निष्कासित किया जाता है। बताया जा रहा है कि मायावती को ऐसा लगता है कि आकाश आनंद शादी के बाद से ही अपने ससुर, अपनी पत्‍नी और अपने ससुराल पक्ष के ज्‍यादा प्रभाव में हैं।


*क्या कहा था आकाश ने?*
इससे पहले पार्टी मुखिया द्वारा जिम्मेदारी छीनने पर आकाश आनंद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया था। इसमें आकाश लिखते हैं, ‘मैं मायावती जी का कैडर हूं और उनके नेतृत्व में त्याग, निष्ठा और समर्पण के कभी ना भूलने वाले सबक सीखे हैं। ये सब मेरे लिए केवल एक विचार नहीं बल्कि जीवन का उद्देश्य हैं। बहन जी का हर फैसला मेरे लिए पत्थर की लकीर के समान है। मैं उनके हर फैसले का सम्मान करता हूं और फैसले के साथ खड़ा हूं’। ‘मायावती जी द्वारा मुझे पार्टी के सभी पदों से मुक्त करने का फैसला मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भावनात्मक है। साथ ही अब एक बड़ी चुनौती भी है, परीक्षा कठिन है और लड़ाई लंबी है। ऐसे कठिन समय में धैर्य और संकल्प ही सच्चे साथी होते हैं। बहुजन मिशन और मूवमेंट के एक सच्चे कार्यकर्ता की तरह मैं पार्टी और मिशन के लिए पूरी निष्ठा से काम करता रहूंगा और अपनी आखिरी सांस तक अपने समाज के हक की लड़ाई लड़ता रहूंगा’। आकाश आगे लिखते हैं, ‘कुछ विरोधी दल के लोग ये सोच रहे हैं कि पार्टी के इस फैसले से मेरा राजनीतिक करियर समाप्त हो गया। उन्हें समझना चाहिए कि बहुजन मूवमेंट कोई करियर नहीं, बल्कि करोड़ों दलित, शोषित, वंचित और गरीबों के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान की लड़ाई है। यह एक विचार है, एक आंदोलन है, जिसे दबाया नहीं जा सकता। इस मशाल को जलाए रखने और इसके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए लाखों आकाश आनंद हमेशा तैयार हैं’।
*परिसीमन को लेकर “संदेह में साउथ”,क्या सच में घट जाएंगी लोकसभा में उनकी सीटें?*
देश में एक बार फिर परिसीमन का मुद्दा चर्चा में है। लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन का काम अगले साल शुरू होने की संभावना है। इससे पहले परिसीमन को लेकर दक्षिण भारत के राज्यों का माहौल काफी गर्म है। वहां के राजनेता इसे दक्षिणी राज्यों पर लटक रही तलवार की तरह देख रहे हैं। असल में भारत के दक्षिणी राज्यों की आबादी उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम है और उन्हें डर है कि अगले परिसीमन में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दक्षिण भारत के राज्यों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि 2026 के बाद होनी वाली जनगणना के आधार पर होने वाले परिसीमन में दक्षिण भारत के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगीं। उन्होंने साफ किया कि कम जनसंख्या के बाद भी परिसीमन में दक्षिण भारत के राज्यों में लोकसभा की सीटें भी उत्तर भारत के राज्यों के अनुपात में ही बढ़ाई जाएंगी। सबसे पहले जानते हैं जिस परिसीमन को लेकर “पारा” चढ़ा है वो है क्या? यह कब कराया जाता है, इससे बदलता क्या है और दक्षिण भारत के राज्यों का डर कितना जायज है?

*क्या होता है परिसीमन?*
समय के साथ जनसंख्या में बदलाव के कारण किसी लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है। परिसीमन आयोग ये कार्य करता है। यह एक स्वतंत्र निकाय होता है जिसके फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसका उद्देश्य इस तरह से सीमाएं निर्धारित करना होता है कि सभी सीटों के अंतर्गत लगभग बराबर आबादी आए। ये सीटों की संख्या घटा और बढ़ा भी सकता है। यह भी तय करता है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित होंगी। अनुच्छेद 80 और 170 के अनुसार, प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन किया जाना चाहिए। यह कार्य संसद द्वारा पारित कानून के माध्यम से गठित परिसीमन आयोग द्वारा किया जाना चाहिए। 1951, 1961 और 1971 में परिसीमन किया गया, क्योंकि जनसंख्या 36.1 करोड़ से बढ़कर 43.9 करोड़ और 54.8 करोड़ हो गई। परिणामस्वरूप, सीटों की संख्या 494 से बढ़कर 522 और 543 हो गई।

*परिसीमन 2026 तक स्थगित*
हालाँकि, 1976 में, जब परिवार नियोजन अभियान अपने चरम पर था, तब जन्म नियंत्रण को प्रोत्साहित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को नियंत्रित जनसंख्या वाले राज्यों पर लाभ न मिल जाए, परिसीमन की प्रक्रिया को 25 वर्षों के लिए स्थगित करने का निर्णय लिया गया। यह 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए किया गया, जो 2000 तक लागू रहा। 2001 में, 84वें संविधान संशोधन को पारित करके परिसीमन प्रक्रिया को अगले 25 वर्षों के लिए स्थगित कर दिया गया। यह 2026 में समाप्त हो जाएगा। देश की जनसंख्या 141 अरब हो गई है, इसलिए लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़कर 753 होनी चाहिए।

*दक्षिणी राज्य क्यों परेशान हैं?*
वर्तमान में दक्षिणी राज्यों से लोकसभा की सीटों की संख्या 129 है, जो कुल सीटों की संख्या 543 का लगभग 24% है। इसमें तेलंगाना: 17 सीटें, आंध्र प्रदेश: 25 सीटें, केरल: 20 सीटें, तमिलनाडु: 39 सीटें और कर्नाटक: 28 सीटें शामिल हैं। यदि 20 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट का फार्मूला लागू किया जाए तो दक्षिणी राज्यों का हिस्सा होगा- तेलंगाना: 20, आंध्र प्रदेश: 28, केरल: 19, तमिलनाडु: 41 और कर्नाटक: 36। 753 सदस्यीय सदन में कुल सीटें 144 होंगी, जो लगभग 19% होंगी, यानी 5% की गिरावट।

*दक्षिणी राज्यों का विद्रोह*
यही वजह है कि दक्षिणी राज्य प्रस्तावित परिसीमन के खिलाफ हैं। परिसीमन पर तमिलनाडु की सीटें कम होने की आशंका के बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अगले हफ्ते मंगलवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। स्टालिन की पार्टी डीएमके को लगता है कि जनसंख्या नियंत्रण पर मिली उसकी सफलता की वजह से लोकसभा में तमिलनाडु की सीटें कम हो जाएंगी। उसे लगता है कि उत्तर भारत जहां जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, वहां लोकसभा की सीटों में बेतहाशा बढ़ोतरी होगी। इससे लोकसभा में तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत की आवाज कमजोर पड़ेगी। वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा, यह स्पष्ट है कि अगर नवीनतम जनसंख्या अनुपात के आधार पर परिसीमन किया जाता है, तो यह दक्षिणी राज्यों के साथ घोर अन्याय होगा।
*बांग्लादेश का इतिहास बदलने में लगी यूनुस सरकार, मुजीब-हसीना को “मिटाया”, भारत की भूमिका का क्या?*


भारत का पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश बदल रहा है। हिंसा और विरोध के बाद पहले सरकार बदली अब सत्ता में आई अंतरिम सरकार देश का इतिहास बदलने में लगी हुई है। इसी क्रम में बांग्लादेश में नई पाठ्यपुस्तकें जारी की गई हैं। नई स्कूली किताबों में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। किताबों से शेख हसीना से जुड़ी सारी तस्वीरों और चैप्टर्स को पूरी तरह से हटा दिया गया है। उनके पिता और देश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़े कॉन्टेंट भी लगभग हटा दिए गए हैं। इसके अलावा भारत के बांग्लादेश की आजादी में योगदान को भी कम करके बताया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में शिक्षा मंत्रालय ने 57 विशेषज्ञों की एक टीम बनाई है। इसी टीम 441 स्कूली किताबों में बदलाव किए हैं। ये किताबें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में इस्तेमाल की जाती हैं। बदलाव के बाद 40 करोड़ से ज्यादा नई किताबें छापी गई हैं।

*मुजीबुर्रहमान के लिए 'राष्ट्रपिता' की उपाधि हटायी* पाठ्यपुस्तकों में मुजीबुर्रहमान के लिए 'राष्ट्रपिता' की उपाधि भी हटा दी गई है। खबर में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर एकेएम रियाजुल हसन के हवाले से कहा गया है कि शैक्षणिक वर्ष 2025 के लिए नई पाठ्यपुस्तकों में उल्लेख होगा कि “26 मार्च 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता का एक और ऐलान किया।

*नई किताब से क्या-क्या गायब*
दिसंबर 1971 में भारत और बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों ने साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इसी के कारण बांग्लादेश अस्तित्व में आया। पांचवी क्लास की किताब में इसको बताने के लिए एक चैप्टर है। इसका नाम है, 'पाकिस्तानी बहिनिर अंतमोसमर्पण ओ आमदेर बिजॉय (पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण और हमारी जीत)'। इस चैप्टर में बताया गया है कि कैसे भारतीय सेना और मुक्तिजोद्धा (बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानी) ने पाकिस्तानी सेना को हराने के लिए हाथ मिलाया। इसी पाठ में एक ऐतिहासिक तस्वीर भी थी। तस्वीर में पाकिस्तान, भारत के समझ आत्मसमर्पण कर रहा है। भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट-जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट-जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी से आत्मसमर्पण का दस्तावेज स्वीकार कर रहे हैं। इस तस्वीर को भी हटा दिया गया है।

*इंदिरा गांधी की भी तस्वीर हटी*
इसके अलावा छठी क्लास की अंग्रेजी की किताब के अंदर के कवर पेज से दो तस्वीरें हटाई गई हैं. इनमें इंदिरा गांधी और मुजीबुर्रहमान साथ में दिख रहे थे. पहली तस्वीर 6 फरवरी, 1972 की है. मुजीबुर्रहमान इस तस्वीर में कोलकाता में एक रैली में भाषण दे रहे थे और गांधी मंच पर थीं. दूसरी तस्वीर 17 मार्च, 1972 की थी. उसमें बांग्लादेश के राष्ट्रपति ढाका हवाई अड्डे पर भारतीय प्रधानमंत्री का स्वागत कर रहे थे।

*आगे भी होंगे बदलाव*
किताबों में अन्य बदलावों में राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को पहले पेज से हटाकर पीछे कर दिया गया है। माना जा रहा है कि बाद में इन्हें पूरी तरह से हटाया जा सकता है। किताबों में सबसे बड़े बदलावों में से एक मुक्तिजुद्धो (बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम) के कई नेताओं को शामिल करना है। संशोधित पाठ्यक्रम में मौलाना अब्दुल हमीद खान भाषानी, हुसैन सुहरावर्दी, अबुल कासम फजलुल हक, ताजुद्दीन अहमद और खालिदा जिया भी को पढ़ाया जाएगा।

*नोटों से हटी शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर*
इससे पहले, बांग्लादेश ने पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर करके अपनी कागजी मुद्रा से शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया था। यह कदम पांच अगस्त को मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के बाद उठाया गया था। हसीना के भारत जाने के बाद मुजीबुर्रहमान की प्रतिमाओं और तस्वीरों को निशाना बनाया गया था। अंतरिम सरकार ने मुजीबुर्रहमान की हत्या की बरसी पर 15 अगस्त के लिए घोषित राष्ट्रीय अवकाश भी रद्द कर दिया था।

बता दें कि बांग्लादेश में बीते साल अगस्त में विरोध प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना की सरकार गिर गई थी। हसीना के बाद आई दक्षिणपंथी रुख वाली अंतरिम सरकार कई तरह के बदलाव देश में कर रही है। पाठ्यक्रम में बदलाव भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है।
#stalin_says_hindi_destroy_25_indian_languages *
“25 भाषाओं को 'निगल' गई हिंदी, यूपी-बिहार 'हिंदी हार्टलैंड' नहीं…” एमके स्टालिन के दावों में कितना दम* राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। एनईपी के तहत त्रि-भाषा फॉर्मूले पर तमिलनाडु और केंद्र सरकार आमने-सामने है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन केन्द्र सरकार पर लगातार हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। स्टालिन ने गुरुवार को बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने को लेकर हमला तेज करते हुए बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि हिंदी ने उत्तर भारत की 20 से ज्यादा क्षेत्रीय भाषाओं को निगल लिया है। साथ ही उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश और बिहार कभी भी हिंदी क्षेत्र नहीं थे।

*यूपी-बिहार कभी सिर्फ 'हिंदी भाषी क्षेत्र' नहीं-स्टालिन*
स्टालिन ने एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा, 'एक ही हिंदी भाषा को थोपने की कोशिश से प्राचीन भाषाएं मरती हैं। यूपी और बिहार कभी सिर्फ 'हिंदी भाषी क्षेत्र' नहीं थे। उनकी असली भाषाएं अब इतिहास बन चुकी हैं।' स्टालिन ने इस मामले में एक पत्र भी लिखा है, जिसे उन्होंने अपनी पोस्ट के साथ शेयर किया है।

*उत्तर भारतीय भाषाएं दबंग हिंदी-संस्कृत भाषाओं के आक्रमण से खत्म-स्टालिन*
स्टालिन ने लिखा- दूसरे राज्यों के मेरे प्रिय बहनों और भाइयों, क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खरिया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख, मुंडारी, और कई सारी भाषाएं अब अस्तित्व के लिए हांफ रहे हैं। डीएमके प्रमुख ने कहा, 25 से ज्यादा उत्तर भारतीय भाषाएं दबंग हिंदी-संस्कृत भाषाओं के आक्रमण से खत्म हो चुकी हैं। सदियों पुराने द्रविड़ आंदोलन ने तमिल और उसकी संस्कृति को बचाया है, क्योंकि इसने जागरूकता पैदा की और कई आंदोलन चलाए।

*हिंदी मुखौटा है-स्टालिन*
स्टालिन ने कहा- हिंदी थोपने का विरोध किया जाएगा क्योंकि हिंदी मुखौटा और संस्कृत छुपा हुआ चेहरा है। द्रविड़ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई ने दशकों पहले दो भाषा नीति लागू की थी। इसका मकसद यह था कि तमिल लोगों पर हिंदी-संस्कृत की आर्य संस्कृति को न थोपा जाए। *भाषाई विविधता को व्यवस्थित रूप से मिटाने का आरोप* स्टालिन ने नई शिक्षा नीति को बीजेपी की 'योजनाबद्ध' कोशिश करार दिया है ताकि हिंदी को थोपा जा सके। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुए महाकुंभ में, जहां देशभर से और अलग-अलग संस्कृतियों के लोग आए थे, क्या गैर-हिंदी भाषाओं में साइन बोर्ड लगाए गए थे? स्टालिन यही नहीं रुके। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक भाषाएं सूचीबद्ध हैं, लेकिन फिर भी कई भाषाओं को इसमें जगह नहीं मिली है। स्टालिन ने आरोप लगाया कि केंद्र का मकसद एकता नहीं, बल्कि केंद्रीकरण के बहाने भाषाई विविधता को व्यवस्थित रूप से मिटाना है।

*हिंदी को लेकर तमिलनाडु- केंद्र के बीच विवाद?*
बता दें कि दक्षिण के राज्यों में पिछले काफी समय से हिंदी को लेकर विवाद है। यह विवाद तब और बढ़ गया, जब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई, जिसमें हर राज्य के छात्रों को 3 भाषा सीखनी है, जिसमें एक हिंदी शामिल है। तमिलनाडु में ऐतिहासिक रूप से 'दो-भाषा' नीति रही है। इसका मतलब, यहां तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। इससे पहले 1930 और 1960 के दशक में यहां बड़े पैमाने पर हिंदी विरोधी आंदोलन हो चुके हैं।