कौन हैं अल्लूरी सीताराम राजू? जो 2 साल तक अंग्रेजों को खदेड़ा
स्वतंत्रता के लिए हमारे देश में कई लोगों ने एक से एक बलिदान दिए हैं. स्वतंत्रता की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत के सामने हंसते-हंसते गोलियां खाते रहे लेकिन कदम नहीं डिगे.
ऐसे स्वतंत्रता के दीवानों की वजह से ही आज हम स्वतंत्र देश में बैठे हैं. इस स्वतंत्रता के पीछे कई गुमनाम हीरोज ने अपनी जान गंवाई है जिनका नाम अब बहुत कम लोग ही जानते हैं या फिर वह सिर्फ एक क्षेत्र विशेष के हीरो बनकर रह गए हैं.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं दक्षिण भारत के उस जननायक के बारे में जिन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासी लोगों की भलाई में लगा दिया. उन्होंने अंग्रेजों से सीधे तौर पर लोहा लिया और 2 साल तक जंगलों से खदेड़ा.
अल्लूरी सीताराम राजू आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में 4 जुलाई 1897 को हुए थे. राजू के पिता वेंकटराम राजू थे जो उन्हें बचपन से ही अंग्रेजी हुकूमत के बारे में बताते थे. भारतीयों पर अंग्रेजी हुकूमत किस तरह से जुल्म ढा रही है इसकी राजू को बचपन से ही गहरी जानकारी हो गई.
इसी बीच उन्होंने साधु बनने का फैसला किया और घर से चले गए. महज 18 साल की उम्र में राजू ने जानवरों को वश में करने की क्षमता हासिल की और ज्योतिष के साथ-साथ चिकित्सा भी सीखी.
उनकी इन सभी खूबियों की वजह से पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोग उन्हें बहुत मानने लगे. सीताराम राजू को भारतीय इतिहास राम्पा विद्रोह के लिए जानता है.
जंगल में जाने पर लगाया प्रतिबंध
जनजातीय लोगों के बीच अल्लूरी सीताराम राजू की बहुत जल्द अच्छी साख बन गई थी. राजू ने अपनी बाकी की उमर इन लोगों के नाम कर दी और कई बड़े स्तरों पर काम किए. 1982 में मद्रास वन अधिनियम लागू किया गया जिसकी वजह से स्थानीय लोगों के जंगल में जाने पर बैन लग गया. यहां के जनजातीय लोगों ने इस फैसले का विरोध किया.
यह लोग जंगलों में आग लगाकर जमीन को खाली करने के बाद खेती करते थे. इसे पोडु कहा जाता था. अधिनियम लागू होने से इनके रोजी-रोटी पर ही बन आई थी.
25 साल की उम्र में शुरू किया राम्पा विद्रोह
अल्लूरी सीताराम राजू बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी सुनकर बड़े हुए थे इसलिए उन्होंने महज 25 साल की उम्र में ही 1922 में राम्पा विद्रोह शुरू किया. उन्होंने आदिवासियों को संग लेकर पुलिस थानों पर हमला किया और हथियार इकट्ठे करने के बाद जंगलों में आने वाली अंग्रेजों की टीम को हर बार ढेर कर दिया. करीब 2 साल तक यही दौर चलता रहा. जंगलों में अंग्रेजी सैनिकों की जो भी टुकड़ी जाती थी वह कभी वापस लौट कर नहीं आई. वह चाहते थे कि गोदावरी के पूर्वी घाट से अंग्रेज पूरी तरह भाग जाएं. 2 साल तक अंग्रेजों को उल्टे पैर खदेड़ने के बाद आखिरकार 1924 को सीताराम राजू पकड़े गए.
गांव के सामने गोलियों से भूना
लंबे संघर्ष के बाद 7 मई 1924 को अंग्रेजी सैनिकों की टुकड़ी ने उन्हें चिंतबल्ली के जंगल में चारों तरफ से घेर लिया. इस लड़ाई में राजू को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और वह पास के एक गांव में ले गए. यहां पर राजू को एक पेड़ से बांध दिया गया. अंग्रेजी अफसर ने राजू को पूरे गांव के सामने गोलियों से भून डाला. अंग्रेज उनकी मौत को एक नजीर के रूप में पेश करना चाहते थे ताकि दूसरे लोग अंग्रेजी हुकूमत से टकराने के बारे में न सोचें. लेकिन अल्लूरी सीताराम राजू के बलिदान को आज भी याद किया जाता है. केंद्र सरकार ने 1986 में उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था.
Aug 15 2024, 21:10