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गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन के दम पर श्रीलंका ने भारत को तीसरे वनडे मुकाबले में 2-0 से हराकर अपने नाम कर ली सीरीज
बल्लेबाजों के उम्दा प्रदर्शन के बाद दुनिथ वेलालागे की अगुआई में गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन के दम पर श्रीलंका ने भारत को तीसरे वनडे मुकाबले में 2-0 से हराकर सीरीज अपने नाम कर ली। 1997 के बाद पहली बार है जब भारत को श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज में हार मिली है। श्रीलंका ने इससे पहले अंतिम बार 1997 में अर्जुन राणातुंगा की कप्तानी में भारत को 3-0 से हराया था। तब से लगातार 11 बार भारत ने वनडे सीरीज अपने नाम की थी, लेकिन रोहित शर्मा की अगुआई वाली टीम इस रिकॉर्ड को बरकरार नहीं रख सकी और उसे 27 साल बाद श्रीलंका से वनडे सीरीज गंवानी पड़ी। इसी के साथ भारत का श्रीलंका दौरा समाप्त हो गया है। भारत ने इस दौरे पर 3-0 से टी20 सीरीज जीती थी, लेकिन वनडे सीरीज में भारतीय टीम इस लय को जारी नहीं रख सकी। श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 50 ओवर में सात विकेट पर 248 रन बनाए थे। जवाब में भारत की पूरी टीम 26.1 ओवर में 138 रन पर ऑलआउट हो गई। श्रीलंका के लिए अविष्का फर्नांडो ने 102 गेंदों पर नौ चौकों और दो छक्कों की मदद से 96 रन बनाए थे, जबकि कुसल मेंडिस ने 59 रनों की पारी खेली थी। गेंदबाजी में स्पिनर दुनिथ वेलालागे ने कमाल का प्रदर्शन किया और 5.1 ओवर में 27 रन देकर पांच विकेट झटके। वहीं, महेश तीक्ष्णा और जेफ्री वांडरसे को दो-दो विकेट मिले। भारत के लिए कप्तान रोहित शर्मा ने सर्वाधिक 35 रन बनाए, जबकि वाशिंगटन सुंदर 30 और विराट कोहली 20 रन बनाकर आउट हुए।

योगाभ्यास के दौरान अधिकतर लोग जाने-अनजाने कुछ  गलतियां करते हैं, जो हो सकती है नुकसानदायक

योग से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। शारीरिक क्षमता को बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए नियमित योगाभ्यास करना चाहिए। योग मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है। योग रोग प्रतिरोध में मदद करता है और शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाता है। बशर्ते योगाभ्यास का सही तरीका अपनाया जाए। नियमित तौर पर सही समय और सही तरीके से किया गया योग ही सकारात्मक असर डालता है, अन्यथा योगाभ्यास के दौरान गलतियां शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं। अधिकतर लोग जाने-अनजाने योगाभ्यास के दौरान कुछ सामान्य गलतियां करते हैं, जो नुकसानदायक हो सकती है।

योग और भोजन अक्सर लोगों को लगता है कि आसन सामान्यत: बैठ कर की जाने वाली क्रिया है, जिसमें शारीरिक श्रम अधिक नहीं होता। इसलिए योग करने से पहले भोजन किया जा सकता है। लोग खाने पीने के बाद योग क्रिया करते हैं। लेकिन भरे पेट योगाभ्यास करने से फायदे मिलने की जगह नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है। पेट में बहुत अधिक भोजन या पानी रखना दोनों सेहत के लिए ठीक नहीं है।

सही तरीका- सबसे बेहतर उपाय है कि योग करने से एक या दो घंटे पहले कुछ हल्का नाश्ता कर लिया जाए। भोजन और योग के बीच एक घंटे की अवधि हो ताकि योगासनों के अभ्यास के समय समस्या महसूस न हो।

फोन और योग व्यस्त जीवनशैली के कारण दो काम एक साथ करना सामान्य हो गया है। योग करते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल, जैसे फोन पर बात करना, बीच-बीच में टेक्स्ट करना आदि, सामान्य है। लेकिन योग ध्यान क्रिया है, जिसमें फोन का उपयोग योगी के ध्यान को भटकाता है।

सही तरीका- बेहद जरूरी है कि योग करते समय फोन को कम से कम एक घंटे के लिए फोन साइलेंट कर लिया जाए। मोबाइल को एक घंटे के लिए ही सही खुद से दूर कर दें ताकि दिमागी तनाव कम किया जा सके और मन भ्रमित या ध्यान भटकने से रोका जा सके।

श्वास पर ध्यान न देना योग क्रिया श्वास पर आधारित होती है। योग करते समय सांसों के पैटर्न को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। लेकिन योगी कई बार योग क्रिया के अनुसार सांसों की गति को अनदेखा कर देते हैं। वह श्वास रोककर योगाभ्यास करते हैं या सांस अंदर या बाहर लेने-छोड़ने का तरीका गलत अपनाते हैं।

सही तरीका- योग के दौरान अक्सर धीमी और गहरी सांसें लेने की सलाह दी जाती है। कई योगासनों को सांसों के आने-जाने के हिसाब से करना होता है। लगातार अभ्यास से इसे आसान बनाया जा सकता है।

योग और पानी योग के बीच में या योगाभ्यास के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। योग के बाद पानी पीने से गले में कफ की समस्या हो जाती है।

सही तरीका- योग क्रिया के दौरान पानी बिल्कुल न पीएं। योग करने के बाद कुछ देर इंतजार करने के बाद ही पानी पीएं।

योग और स्नान

योग करने से शरीर की बहुत सारी ऊर्जा खर्च हो जाती है। योगाभ्यास के बाद शरीर का तापमान बढ़ जाता है। ऐसे में योगाभ्यास के तुरंत बाद नहाना नहीं चाहिए, इससे सर्दी जुकाम जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

सही तरीका- योगाभ्यास के एक घंटे की अवधि के बाद ही स्नान करें। योग क्रिया के कारण शरीर का बढ़ा हुआ तापमान सामान्य होने के बाद ही स्नान करना चाहिए।


नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
अच्छी नींद और सेहतमंद मन व शरीर के लिए रात में सोने से पहले करें ये योगासन

अच्छी सेहत के लिए अच्छी नींद बहुत जरूरी होती है। अच्छी नींद के लिए सात से आठ घंटे सोना चाहिए। हालांकि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में भले ही थकान होती हो लेकिन नींद नहीं होती। लोगों की लाइफस्टाइल में आए बदलाव के कारण देर रात तक लोग जगते हैं। फोन की लत और सोशल मीडिया व टीवी देखने की आदत के कारण आजकल अधिकतर लोग काफी देर रात तक जागते रहते हैं। इस कारण उन्हें अच्छी नींद नहीं आती और सेहत पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में सोने से पहले कुछ योगासन और स्ट्रेचिंग करके आप रात को अच्छी नींद ले सकते हैं। योग व स्ट्रेचिंग आपके स्ट्रेस को दूर करती है। मांसपेशियों को आराम देने के साथ शरीर को लचीला बनाने में भी मदद करती है। ऐसे में अच्छी नींद और सेहतमंद मन व शरीर के लिए रात में सोने से पहले करें ये योगासन।

शलभासन
नींद की समस्या से राहत पाने के लिए रात में सोने से आधे घंटे पहले शलभासन योगाभ्यास कर सकते हैं। इस आसन को करने के लिए पेट के बल लेट जाएं और दोनों हथेलियों को जांघों के नीचे रखें। अब पैर की एड़ियों को आपस में जोड़ते हुए पंजे सीधे रखें। फिर पैरों को ऊपर उठाते हुए गहरी सांस लें। कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद पूर्वावस्था में आ जाएं।

शवासन

रात में नींद की समस्या से निजात पाने के लिए शवासन का नियमित अभ्यास कर सकते हैं। ये योग भी रात में सोने से पहले किया जा सकता है। शवासन करने के लिए पीठ के बल लेटकर दोनों पैरों के बीच एक फीट की दूरी रखें। फिर पैरों से पंजे की तरफ शरीर को ढीला छोड़ते हुए आराम से सांस लें और पूरा शरीर ढीला छोड़ दें। इस आसन से सभी थकी मांसपेशियों और कंधों को आराम मिलता है।

उत्तानासन

उत्तानासन के नियमित अभ्यास से नींद पर जल्द फर्क नजर आने लगेगा। इस आसन को करने के लिए सीधे खड़े हो जाएं। अब लंबी सांस लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर ले जाएं और सांस छोड़ दें। फिर हाथों को नीचे जमीन की ओर ले जाएं और पैरों के अंगूठे को छूने की कोशिश करें।

बालासन
रात में नींद नहीं आती, तो बालासन का अभ्यास कर सकते हैं। इस आसन को करने से दिमाग शांत रहता है। बालासन करने के लिए वज्रासन पोज में बैठ जाएं और सांस को अंदर लेते हुए दोनों हाथों को सीधा सिर के ऊपर उठाएं। फिर सांस बाहर छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें। हथेलियों और सिर को जमीन पर टिकाकर रखें। अब सांस अंदर लेते और छोड़ते समय उंगलियों को आपस में जोड़े और सिर को दोनों हथेलियों के बीच में धीरे से रखें।


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बरसात के मौसम में अक्सर कान का इंफेक्शन अधिकतर लोगों को परेशान करता है, जानिए वजह, लक्षण और उपाय
मानसून में बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। बारिश के मौसम में कई तरह के संक्रमण शरीर में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण सर्दी, खांसी और जुकाम होना आम बात है। लेकिन बरसात के मौसम में कुछ लापरवाहियों के कारण इंफेक्शन का खतरा अधिक होता है। फंगल इंफेक्शन और सीजनल फ्लू के अलावा त्वचा, आंख और कान भी प्रभावित होते हैं। इस मौसम में अक्सर कान का इंफेक्शन अधिकतर लोगों को परेशान करता है। बारिश के पानी के कारण कानों में तेज दर्द, कान सुन्न होना या कान संबंधी अन्य किसी समस्या को महसूस करते हैं। इसके साथ ही कान में खुजली भी हो सकती है। ऐसे में अगर बारिश के मौसम में अगर आप भी कान की समस्या से परेशान हैं तो हो सकता है कि आप कान का इंफेक्शन हुआ हो। इयर इंफेक्शन के लक्षण जानकर मानसून में कान की समस्या से बचने के लिए उपाय अपना सकते हैं।

कानों में इंफेक्शन की वजह विशेषज्ञों के मुताबिक, बारिश के मौसम में आंख, कान और त्वचा से जुड़ी समस्याएं बढ़ जाती हैं। इसका कारण ह्यूमिडिटी होती है, जो कि फंगल इंफेक्शन को उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया के लिए प्रजनन स्थल हो सकती है। कान में गंदगी और ईयरबड्स के निशान भी कान के संक्रमण की वजह बन सकते हैं। कानों के इंफेक्शन के लक्षण:-

कानों में दर्द होना।

कान के अंदर खुजली होना।

कान का बाहरी हिस्सा लाल होना।
सही से आवाज सुनाई न दे पाना।

कानों में भारीपन महसूस होना।

कान से सफेद या पीले रंग का पस निकलना।

कान के संक्रमण की समस्या से बचने के टिप्स:-

मानसून में कानों में आने वाली नमी से बचने के लिए कान को हमेशा साफ और सूखा रखें।

कान को पोंछने के लिए नरम कॉटन के स्वच्छ कपड़े का उपयोग करें। .

हमेशा ईयरफोन या ईयरबड्स का इस्तेमाल न करें।

दूसरे के इस्तेमाल किए गए ईयरफोन का उपयोग न करें।

ईयरफोन का समय समय पर डिसइनफेक्ट करें, ताकि संक्रमण का जोखिम कम हो।

गले में इंफेक्शन या खराश के कारण भी कानों का संक्रमण हो सकता है। इसलिए गले का ख्याल रखें।

हर 6 महीने में ईएनटी विशेषज्ञ से जांच जरूर कराएं।

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शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई और पहली बार किसने  की थी शिवलिंग की पूजा
हिंदू धर्म में बहुत से देवी देवता हैं लेकिन इन सब में सिर्फ भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनको साकार रूप के साथ साथ, शिवलिंग के रूप में निराकार रूप में भी पूजा जाता है। भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए उनके निराकार स्वरूप शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है और पूजा अर्चना की जाती है। शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई और पहली बार किसने शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी, इसके बारे में शिव पुराण में बताया गया है।

शिवलिंग के उत्पत्ति की पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु में सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ देवता होने का विवाद छिड़ गया  इस विवाद को खत्म करने के लिए भोलेनाथ ने ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु की परीक्षा लेने का निर्णय किया। परीक्षा के लिए भगवान शिव ने लीला रची और उसी समय आसमान में एक विशाल और चमकीला पत्थर प्रकट हुआ और आकाशवाणी हुई कि दोनों देवों में से जो भी इसके अंतिम छोर को खोज लेगा वही सबसे अधिक शक्तिशाली और सर्वश्रेष्ठ देवता होगा।

बहुत समय तक खोज करने के बाद भी दोनों देवता इस दिव्य पत्थर का छोर खोजने में नाकाम रहे। तब भगवान विष्णु ने अपनी हार मानी और स्वीकार किया कि ये पत्थर अनंत है। लेकिन ब्रह्मा जी ने अपनी हार नहीं मानी और बोला कि उन्होंने इसके छोर को खोज लिया है। ब्रह्मा जी के झूठ बोलने से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उसी समय आकाशवाणी हुई कि मैं शिवलिंग हूं। मेरा न तो अंत है और न ही आरम्भ।तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने भगवान शिव से पूजा योग्य लिंग रूप में प्रकट होने का आग्रह किया, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार  किया। इसके बाद ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने सबसे पहले शिवलिंग की पूजा की। फिर इसके बाद अन्य देवी देवताओं ने शिवजी के निराकार रूप यानी शिवलिंग की पूजा की। माना जाता है कि यही शिवलिंग दुनिया का पहला शिवलिंग है।

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एक अनोखा शिवलिंग,  एक तिल आकृति बढ़ती है  हर साल , दर्शन से कुंडली दोष दूर, आईए जानते हैं पूरी जानकारी
तिलभांडेश्वर मंदिर वाराणसी का एक प्रमुख और प्राचीन शिव मंदिर है, जो अपनी अनूठी विशेषताओं और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। सावन में यहाँ दर्शन के लिए भक्तों का रेला यहाँ उमड़ता है।

तिलभांडेश्वर मंदिर वाराणसी के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का इतिहास हज़ारों साल पुराना माना जाता है।

तिलभांडेश्वर नाम का अर्थ: मंदिर का नाम "तिलभांडेश्वर" इसलिए पड़ा क्योंकि यह कहा जाता है कि शिवलिंग को तिलों (तिल के बीजों) से बनाया गया था और हर साल मकर संक्रांति के दिन यह शिवलिंग एक तिल के दाने जितना बड़ा हो जाता है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू (स्वतः प्रकट) माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहाँ पूजा करने से उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

मकर संक्रांति: इस दिन विशेष पूजा और उत्सव का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

तिलभांडेश्वर मंदिर की विशेषताएँ

प्राकृतिक शिवलिंग:
मंदिर का शिवलिंग अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। यह हर साल तिल के आकार जितना बढ़ता है, जो इसे और भी अधिक रहस्यमय और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है।

प्राचीन वास्तुकला:
मंदिर की वास्तुकला प्राचीन और भव्य है। इसके पत्थरों पर की गई नक्काशी और शिल्पकला इसे एक ऐतिहासिक धरोहर बनाती है।

धार्मिक गतिविधियाँ:
मंदिर में नियमित रूप से विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजाएँ होती हैं। यहाँ पर भक्तों के लिए विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।


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एक अनोखा शिवलिंग,  एक तिल आकृति बढ़ती है  हर साल , दर्शन से कुंडली दोष दूर, आईए जानते हैं पूरी जानकारी
तिलभांडेश्वर मंदिर वाराणसी का एक प्रमुख और प्राचीन शिव मंदिर है, जो अपनी अनूठी विशेषताओं और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। सावन में यहाँ दर्शन के लिए भक्तों का रेला यहाँ उमड़ता है।

तिलभांडेश्वर मंदिर वाराणसी के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का इतिहास हज़ारों साल पुराना माना जाता है।

तिलभांडेश्वर नाम का अर्थ: मंदिर का नाम "तिलभांडेश्वर" इसलिए पड़ा क्योंकि यह कहा जाता है कि शिवलिंग को तिलों (तिल के बीजों) से बनाया गया था और हर साल मकर संक्रांति के दिन यह शिवलिंग एक तिल के दाने जितना बड़ा हो जाता है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू (स्वतः प्रकट) माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहाँ पूजा करने से उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

मकर संक्रांति: इस दिन विशेष पूजा और उत्सव का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

तिलभांडेश्वर मंदिर की विशेषताएँ

प्राकृतिक शिवलिंग:
मंदिर का शिवलिंग अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। यह हर साल तिल के आकार जितना बढ़ता है, जो इसे और भी अधिक रहस्यमय और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है।

प्राचीन वास्तुकला:
मंदिर की वास्तुकला प्राचीन और भव्य है। इसके पत्थरों पर की गई नक्काशी और शिल्पकला इसे एक ऐतिहासिक धरोहर बनाती है।

धार्मिक गतिविधियाँ:
मंदिर में नियमित रूप से विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजाएँ होती हैं। यहाँ पर भक्तों के लिए विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।


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आज हम आपको शनिदेव के उन चमत्कारी धामों के बारे में बताएंगे जहां शनिदेव विराजते हैं

ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का सामना करना पड़ता है। शनि देव के उपाय और पूजन से शनि दोष दूर होता है। सनातन धर्म में शनि देव की पूजा का बड़ा महत्व है। 'न्याय के देवता' कहे जाने वाले शनि देव की पूजा करने से जीवन से सभी कष्टों से निजात मिलता है। शनि देव को शनिवार का दिन समर्पित है। माना जाता है कि शनिवार को किसी शनि मंदिर में जाकर भगवान की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन में आ रही बाधएं दूर होनी लगती हैं। भारत में शनि देव के कई प्रसिद्ध चमत्कारी मंदिर हैं। देश के हर कोने में शनिदेव को पूजा जाता है। लेकिन शनि देव के कुछ मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।

कोकिलावन धाम शनि मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में दिल्ली से 128 किमी की दूर कोसीकलां नाम की जगह पर सूर्यपुत्र भगवान शनिदेव का मंदिर है। नंदगांव, बरसाना और श्री बांकेबिहारी मंदिर इसके आसपास ही है। यहां की परिक्रमा करने पर मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। मान्यता है कि यहां पर खुद भगवान कृष्ण ने शनिदेव को दर्शन दिए थे और वरदान दिया था कि जो भी मनुष्य पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस वन की परिक्रमा करेगा उसे शनि कभी कष्ट नहीं पहुचाएंगे।

शिंगणापुर मंदिर शनि देव का यह मंदिर महाराष्ट्र के अहमदानगर जिले के शिंगणापुर गांव में है और यह काफी प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर से जुड़ा ऐसा चमत्कार है कि इस गांव के लोग अपने घरों में ताला भी नहीं लगाते हैं। क्योंकि लोगों का ऐसा मानना है कि शनि देव की महिमा के कारण यहां चोरी नहीं होती। साथ ही इस मंदिर के दर्शन से शनि की साढ़ेसारी और ढैय्या भी दूर होती है।

शनि मंदिर (इंदौर) शनिदेव का प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में स्थित है। ये भारत का ही नहीं दुनिया का सबसे प्राचीन शनि मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि जूनी इंदौर में स्थापित इस मंदिर में शनि देवता स्वयं पधारे थे। मंदिर के स्थान पर लगभग 300 वर्ष पहले एक 20 फुट ऊंचा टीला था। यहां आने वाले भक्त पर शनिदेव की विशेष कृपा बरसती है।

शनि तीर्थ क्षेत्र, असोला, फतेहपुर बेरी यह मंदिर दिल्ली के महरौली में स्थित है। यहां शनि देव की सबसे बड़ी मूर्ति विद्यमान है, जो कि अष्टधातुओं से बनी है। शनिदेव की भक्ति का यह स्थान हमेशा से केंद्र रहा है और यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती हैं। यहां एक प्रतिमा में शनिदेव गिद्ध और दूसरे में भैंस पर सवार हैं। असोला शक्ति पीठ को लेकर मान्यता है कि यहां शनिदेव स्वयं जागृत अवस्था में विराजमान हैं।

शनि मंदिर उज्जैन मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। सांवेर रोड पर प्राचीन शनि मंदिर भी यहां का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां शनि देव के साथ-साथ अन्य नवग्रह भी हैं। इसे नवग्रह मंदिर भी कहा जाता है। यहां दूर-दूर से शनि भक्त तथा शनि प्रकोप से प्रभावित लोग दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर के पास से ही शिप्रा नदी बहती है जिसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है।

तिरुनल्लरु मन्दिर, तमिलनाडु तमिलनाडु के तंजावुर जिले में स्थित यह मंदिर भी शनि देव को समर्पित है। यह मंदिर दो नदियों के बीच स्थित है। यहां शनि देव के साथ भगवान शिव के दर्शन और पूजन से कुंडली से जुड़े सभी दोष दूर होते हैं। शनि देव जब राशि परिर्तन करते हैं तब इस मंदिर में विशेष पूजा होती है।

शनिश्चरा मंदिर ग्वालियर यह शनि मंदिर मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में है। यह शनि मंदिर भारत के पुराने शनि मंदिरों में से एक है। यह शनि पिंड भगवान हनुमान ने लंका से फेंका था जो यहां आकर गिरा। तब से शनि देव यहीं पर स्थापित हैं। यहां शनि देव को तेल चढ़ाने के बाद उनसे गले मिलने की प्रथा भी है। जो भी यहां आता है वह बड़े प्यार से शनि देव से गले मिलकर अपनी तकलीफें उनसे बांटता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से शनि उस व्यक्ति की सारी तकलीफें दूर कर देते हैं।

सारंगपुर कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर गुजरात में भावनगर के सारंगपुर में भगवान हनुमान का एक प्राचीन मंदिर है। जिसे कष्टभंजन हनुमानजी के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर अपने आप में ही खास है क्योंकि इस मंदिर में भगवान हनुमान के साथ शनिदेव विराजित हैं। इतना ही नहीं यहां पर शनिदेव स्त्री रूप में हनुमान के चरणों में बैठे दिखाई देते हैं। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यदि किसी भी भक्त की कुंडली में शनि दोष हो तो कष्टभंजन हनुमान के दर्शन और पूजा-अर्चना करने से सभी दोष खत्म हो जाते है।

शनि मंदिर, प्रतापगढ़ भारत के प्रमुख शनि मंदिरों में से एक शनि मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थित है, जो शनि धाम के रूप में प्रख्यात है। प्रतापगढ़ जिले के विश्वनाथगंज बाजार से लगभग 2 किलोमीटर दूर कुशफरा के जंगल में भगवान शनि का प्राचीन पौराणिक मंदिर लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है, जहां आते ही भक्त भगवान शनि की कृपा का पात्र बन जाता है। चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है। अवध क्षेत्र के एकमात्र पौराणिक शनि धाम होने के कारण प्रतापगढ़ (बेल्हा) के साथ-साथ कई जिलों के भक्त आते हैं। प्रत्येक शनिवार भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।

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नहीं था ये आसान,महिला ने शादी के बाद अपने बचपन के अधूरे सपने को किया पूरा

अधिकतर महिलाएं जीवन के कई पड़ाव पर बलिदान देती आईं हैं। परिवार और सपने में से चुनाव करना हो तो अधिकतर मौकों पर महिलाएं परिवार और अपने करीबियों की खुशियों पर चुनती हैं। शादी के बाद तो अक्सर ही महिलाएं खुद के सपनों को भूल जाती हैं और पति व बच्चों के सपनों को अपना बना लेती हैं। हालांकि एक महिला ने शादी के बाद अपने बचपन के अधूरे सपने को पूरा किया। ये आसान नहीं था, महिला पत्नी ही नहीं एक मां भी है, लेकिन अब सफलता हासिल करके वह हर बच्चे और महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं। महिला पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं।

लतिका 20 साल की थीं, तो उनकी शादी हो गई। लतिका मंडल के पति दिहाड़ी मजदूर हैं। परिवार को संभालने के साथ ही लतिका ने अपने सपने को पूरा करने की ठानी और पड़ोसी की मदद से रबींद्र मुक्त विद्यालय में दाखिला लिया।

पिछले साल मई में पश्चिम बंगाल उच्च माध्यमिक शिक्षा संसद (WBCHSE)ने 12वीं बोर्ड के परिणाम घोषित किए, जिसमें 89.25% छात्र उत्तीर्ण रहे। 12वीं की परीक्षा के परिणाम के लिए एक परिवार बहुत उत्साहित था और रिजल्ट देख उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। एक मां भी इस परीक्षा में शामिल हुई थी। खास बात ये है कि मां ने अपने बेटे के साथ परीक्षा दी और उससे अधिक नंबर से पास हुईं हैं।

6वीं के बाद लतिका ने छोड़ी पढ़ाई

महिला बंगाल के शांतिपुर की रहने वाली हैं। इस महिला का नाम लतिका मंडल है, जो कि 38 साल की हैं। लतिका मंडल के परिवार की आर्थिक स्थित ठीक न होने के कारण उन्होंने 6ठी के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। वह स्कूल जाना चाहती थीं लेकिन उनके माता पिता उन्हें पढ़ाने में सक्षम नहीं थे।

शादी के बाद लिया स्कूल में दाखिला


जब लतिका 20 साल की थीं, तो उनकी शादी हो गई। लतिका मंडल के पति दिहाड़ी मजदूर हैं। परिवार को संभालने के साथ ही लतिका ने अपने सपने को पूरा करने की ठानी और पड़ोसी की मदद से रबींद्र मुक्त विद्यालय में दाखिला लिया। साल 2020 में लतिका और उनकी बेटी ने एक साथ 10वीं की परीक्षा दी और अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुईं। उसके बाद उन्होंने नरसिंहपुर हाई स्कूल में दाखिला लिया और 11वीं की पढ़ाई कला स्ट्रीम से की।

बेटे संग पास की 12वीं की परीक्षा

लतिका का बेटा पूर्व बर्धमान के कालना महाराज हाई स्कूल में पढ़ता था। इस साल मां और बेटे की जोड़ी ने 12वीं की परीक्षा दी और अच्छे अंक प्राप्त किए। लतिका और उनका बेटा साथ पढ़ते थे। परीक्षा में लतिका ने बेटे से अधिक अंक हासिल किए। लतिका ने 500 में से 324 अंक प्राप्त किए तो वहीं उनके बेटे सौरव ने 284 अंक हासिल किए।
भारत में कुछ ऐसी प्रथाएं भी हैं जो असाधारण रूप से अजीब हैं, जिनमे से कुछ खतरनाक और दर्दनाक है जबकि कुछ मनोरंजन से भरी हुई

भारत देश बिभिन्न विविधातायों और संस्कृति से भरा देश है। जहाँ भारत का प्रत्येक राज्य, धर्म, समुदाय और प्रत्येक जनजाति के लोग अपनी संस्कृति और परम्परायों का पालन करते हैं। भारत में मनाए जाने वाले त्योहारों की एक विस्तृत विविधता इसकी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं की एक सही अभिव्यक्ति है। लेकिन क्या आप जानते हैं इन रंगीन त्योहारों और जीवंत समारोहों के बीच, भारत में कुछ ऐसी प्रथाएं भी हैं जो असाधारण रूप से अजीब हैं। जिनमे से कुछ खतरनाक और दर्दनाक है जबकि कुछ मनोरंजन से भरी हुई है । लेकिन फिर भी इन्हें पूरी निष्ठा के साथ पालन किया जाता हैं।

सिर पर नारियल फोड़ना अच्छे स्वास्थ्य और सफलता के लिए आप क्या करेंगे? क्या आप एक पुजारी को अपने सिर पर नारियल फोड़ने देंगे? शायद ऩही! लेकिन आश्चर्यजनक रूप से तमिलनाडु के एक दूरदराज के गांव में ऐसा ही होता है।  माना जाता है कि सिर पर नारियल फोड़ने से देवता प्रसन्न होंगे और कस्बों को समृद्धि और कल्याण की ओर ले जाएंगे। चिकित्सा चिकित्सकों से चेतावनी के बावजूद, इस परंपरा का स्थानीय लोगों द्वारा बहुत निष्ठा के साथ पालन किया जाता है।

मेंढक की शादी

आपने भारत में आमतौर में पेड़ से शादी करने वाले लोगों के बारे में सुना होगा लेकिन कभी आपने मेंढक की शादी के बारे में सुना है? अगर नही सुना है तो आप थोड़ा आश्चर्यचकित हो सकते हैं लेकिन यह सत्य है। असम के जोरहाट जिले में पूर्ण विधिविधान के साथ मेढको की आपस में शादी कराई जाती है। असम के जोरहाट जिले के गाँव के लोगों का मानना है कि अगर पारंपरिक हिंदू विवाह में जंगली मेंढकों की शादी की जाती है, तो इससे लंबे समय तक सूखे का अंत होता है और कुछ दिनों के भीतर भारी बारिश होती है। और इन मेढको की  शादी सभी हिंदू विवाह परंपराओं का पालन करती है जो एक पुजारी की उपस्थिति में आयोजित की जाती है।

जलते अंगारों पर चलना तमिलनाडु में लोकप्रिय तिमिथी नामक त्योहार भारत की सबसे विचित्र परम्परायों में से एक है। इस उत्सव में भक्त हिंदू देवी द्रौपती अम्मान का सम्मान करने के लिए जलते हुए कोयला पर नंगे पैर चलकर त्योहार मनाते हैं। यदि आपको लगता है कि भक्त गर्म कोयले में तेजी से चल सकते हैं, तो आप फिर से गलत है! देवी को प्रसन्न करने के लिए, भक्तों को वास्तव में धीमी गति से चलना पड़ता है। जो वास्तव में बहुत खतरनाक और दर्दनाक है।

हवा में लटकना

क्या आपने सुना है की लोग अपने पूजनीय देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किसी भी लम्बाई पर जा सकते हैं। लेकिन यह सत्य है एक ऐसी ही परंपरा केरला के काली मंदिरों में मनाई जाती है। जहाँ अनुष्ठान में भाग लेने वाले व्यक्ति एक नृत्य करते हैं और फिर अपनी पीठ पर हुक लगाते हैं और काली को प्रसन्न करने के लिए खुद को ईगल की तरह हवा में लटकते हैं!  कभी-कभी ये अनुष्ठान एक विचित्र मोड़ ले सकते हैं।

सिर के बाल उखाड़ना

धार्मिक प्रथाओं अक्सर एक दर्दनाक मोड़ ले सकती हैं। इसी तरह जैन धर्म, एक लोकप्रिय और व्यापक रूप से प्राचीन भारतीय धर्म का पालन करता है, जो सांसारिक सुखों से छुटकारा पाने और एक साधारण जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है। जैन धर्म के कट्टर विश्वासियों द्वारा इस  दर्दनाक परंपरा का पालन किया जाता है जहां वे पूरी तरह से गंजे होने तक अपने सिर के एक एक बालों को उखाड़ देते है। जो अत्यंत दर्द और कष्ट से भरा होता है और बाद में घावों को गाय के गोबर से बने एक विशेष उपाय से ठीक किया जाता है।

गरबड़ा एकादशी

गरबड़ा गुजरात का एक शहर है जहाँ गरबड़ा एकादशी के दौरान भारत की सबसे अजीबो गरीब परम्परा को देखा जा सकता है। बता दे यह शहर लोगो की पीठ के उपर से गायों के चलने की परंपरा का घर है। जो कभी कभी अत्यंत दर्दनाक और खतरनाक साबित होता है। चूँकि हिंदू धर्म में गायों को पवित्र माना जाता है। इसलिए माना जाता है कि गायों के आपके ऊपर रौंद कर निकलने से आपकी समस्याएं कम हो जाएंगी। जो बाकई आश्चर्यचकित करने वाली है।

जानवर से शादी चलिये मानते है आपने दो मेढको की आपस में शादी के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी एक लड़की की किसी जानवर या कुत्ते से शादी के बारे में सुना है। जो वास्तव में हैरान कर देने वाली है, लेकिन हम आपको बता दे आज भी भारत के कुछ दूरदराज गाँव में ऐसी परम्परायों का पालन किया जा रहा है। गांवों के लोगों का मानना है कि अगर कोई लड़की किसी विकृति के साथ पैदा होती है, और उस पर किसी बाहरी हवा का शाया है। तो इस समस्या से लड़की को बचाने और राक्षसों को खुद से भगाने के लिए एक जानवर से शादी करनी होती है। एक बार ऐसा हो गया, तो वह एक लड़के से शादी करने के लिए स्वतंत्र हो जाती है।

बच्चो को हवां में फेकना

हमने आमतौर पर बच्चो को हवा में फेकते हुए उनको खिलाते हुए देखा है। लेकिन क्या कभी आपने इसी चीज की कल्पना की होगी की बच्चो को उपर से नीचे हवा में फेकना भी एक परम्परा का हिस्सा हो सकता हैं। लेकिन यह बिलकुल सही है। यह विवादास्पद उत्सव महाराष्ट्र के सोलापुर में होता है जिसमे माता पिता अपने बच्चो को उपर से नीचे हवा में छोड़ते हैं। यह उत्सव कहनो को खतरनाक है लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह अनुष्ठान बच्चों को स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद देता है। यह अनुष्ठान आम तौर पर उन माता-पिता द्वारा किया जाता है जिन्होंने अपनी गर्भावस्था के लिए बाबा उमर दरगाह पर प्रार्थना की है। लेकिन इन दिनों यह उत्सव किसी एक धर्म से बंधा हुआ नहीं है; यहं मुसलमानों, हिंदुओं और सभी धर्मो के लोगो को देख सकते हैं

पुली काली महौत्सव

पुली काली महौत्सव भारत की एक अजीबोगरीब परम्परा के रूप में कार्य करता है। यह त्यौहार केरल के त्रिशूर जिले में हर साल मनाया जाता है जहां प्रशिक्षित कलाकार, टाईगर के रूप में तैयार होते हैं, और सडको पर चलते हुए पारंपरिक लोक गीतों पर प्रस्तुति देते हैं। हालाकि यह परम्परा कोई खतरनाक परंपरा नही है लेकिन अभी भी कुछ हद तक विचित्र और मनोरंजक है।

देवताओं का नृत्य

अगर हम आपसे कहें की भगवान इंसान के अन्दर प्रवेश करते है तो शायद आप वैज्ञानिक रूप से यह मानने से इंकार कर देंगे। लेकिन आध्यात्मिक रूप से यह सत्य माना जाता है। केरला में कुछ इसी तरह के एक उत्सव का आयोजन किया जाता है, जहाँ लोगो के अनुसार माना जाता है की ईश्वर व्यक्तियों के शरीर में प्रवेश करते हैं, ढोल की थाप पर नृत्य करते हैं, और आग पर चलते हैं। और भक्तों को आश्रीबाद देते हैं, जहाँ उत्सव के दौरान भक्तो और श्रद्धालुयों की काफी भीड़ देखी जा सकती है।

बानी महोत्सव खुनी दशहरा

देवारागट्टू मंदिर बानी महोत्सव के लिए प्रसिद्ध है। यह त्योहार निश्चित रूप से भारत का सबसे अजीब और सबसे खूनी दशहरा उत्सव है। जहाँ कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के सैकड़ों ग्रामीण इस खतरनाक उत्सव का हिस्सा बनने के लिए कुरनूल में इकट्ठा होते हैं। जहाँ लोग उत्सव में एक दूसरे पर लाठियों से प्रहार करते है, चाहे उससे किसी का सिर फूटे या कुछ भी लेकिन उत्सव नही रोका जाता है। और माना जाता है की कुछ 100 बर्षो पहले यह उत्सव कुल्हाड़ियों और भाले के साथ मनाया जाता था। लेकिन अब यह वर्तमान स्वरूप में सिर्फ लाठी के साथ मनाया जाता है। जबकि पूरा उत्सव दर्शकों को झकझोर कर रख देता है, यह स्थानीय लोगों का “मारने या मारने” का उत्साह है जो हमें आश्चर्यचकित करता है कि हम बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के लिए कितना दूर जाते हैं।

केमल फेस्टिवल केमल फेस्टिवल नवंबर के महीने में राजस्थान के पुष्कर शहर में मनाया जाता है। इस फेस्टिवल की सबसे विचित्र और रोमंचक बात यह है यह उत्सव 5 दिनों तक चलता है। जिसमे लगभग  50,000 से अधिक ऊँटो को सजाया जाता है और उनकी परेड निकली जाती है। पुष्कर झील के किनारे आयोजित होने वाला यह वार्षिक पांच दिवसीय ऊंट मेला है और यहां पर दुनिया के सबसे बड़े ऊँटों को देखा जा सकता हैं। पशुओ को खरीदने और बेचने के अलावा यहां पर कुछ रोमांचित कर देने वाली पर्तियोगिताएं जैसे – सबसे लंबी मूंछें, मटका फोड़, और दुल्हन प्रतियोगिता जैसी विभिन्न प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं।