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हमास के टॉप लीडर हानिया के 3 बेटों की इजराइली हमले में मौत, आईडीएफ ने कहा-तीनों आतंकी थे

#israel_kills_three_sons_of_hamas_chief_haniyeh_in_gaza_air_strike 

इजराइल के हमले में बुधवार देर रात हमास चीफ इस्माइल हानिया के तीन बेटों की मौत हो गई। 'टाइम्स ऑफ इजराइल' की रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइली सेना ने गाजा के अल-शती कैंप के पास एक कार पर एयरस्ट्राइक की। इसमें इस्माइल हानिया के तीन बेटों, 3 पोतियों और एक पोते की मौत हो गई। मौत की पुष्टि खुद हानिए ने की है।इस्माइल हानिया ने कहा है कि इजरायल ने प्रतिशोध की भावना से उसके तीन बेटों की हत्या कर दी है। 

हमास मीडिया ने बताया कि इजरायल ने गाजा के अल-शती कैंप में एक कार पर एयर स्ट्राइक की। उस हमले में कार सवार उसके बेटे हाजेम, अमीर और मोहम्मद मारे गए। इजरायल ने आतंकी संगठन हमास को बड़ा झटका देते हुए उसके सरगना इस्माइल हानिये के 3 बेटों और पोतों को मार गिराया है। इजरायल ने ऑपरेशन के लिए एयर स्ट्राइक का इस्तेमाल किया।

हानिया ने कहा कि उसके बेटों की हत्या प्रतिशोध की भावना से की गई और इसके लिए किसी भी नियम या मानवाधिकार का पालन नहीं किया गया। हानिया ने कहा, उसके बेटे यरुशलम और अल अक्सा मस्जिद को आजाद कराने की राह पर चलते हुए शहीद हुए हैं। उसने कहा कि इन मौतों से हमास की गतिविधियों और हौसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा, हमास अपने उद्देश्यों के लिए पूर्व की भांति संघर्ष करता रहेगा। 

हानिया कतर में निर्वासन में रह रहा है। हमास के अल-अक्सा टीवी स्टेशन ने दोहा के एक अस्पताल में पहुंचाए गए घायल फिलिस्तीनियों से मिलने के दौरान हनिया को उसके परिवार में हुई मौतों की खबर दी। हनिया ने अपना सिर हिलाया, नीचे जमीन की ओर देखा और धीरे से कमरे से बाहर चला गया। हनिया ने बुदबुदाते हुए कहा कि ईश्वर के अलावा कोई शक्ति या ताकत नहीं है।

वहीं, इजराइली सेना का कहना है कि हानिया के तीनों बेटे आतंकी थे। सेना के मुताबिक, अमीर हानिया हमास सैन्य विंग में एक स्क्वाड कमांडर था। वहीं, हाजेम और मोहम्मद हानिया सैन्य विंग में ऑपरेटिव्स थे। तीनों सेंट्रल गाजा में हमला करने के लिए जा रहे थे। इनमें से एक इजराइलों को बंधक बनाने में भी शामिल था।

सरहुल के गीत और ईद-उल-फितर की नमाज पढ़ी जाएगी एक ही दिन

झारखंड में ईद और सरहुल कल मनाया जायेगा जहां ईद मुस्लिम समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, वहीं सरहुल त्योहार झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उत्सव है। 

ईद-उल-फितर 2024, चंद्रमा का दर्शन आज: बुधवार को अर्धचंद्र देखा गया, जो भारत में ईद समारोह की शुरुआत का प्रतीक है।

सरहुल चैत्र महीने के तीसरे दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल में पड़ता है। 2024 में सरहुल 11 अप्रैल को मतलब कल मनाया जाएगा l यह त्यौहार विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों द्वारा चिह्नित किया जाता है l

ईद-उल-फितर, जो रमज़ान के उपवास महीने की समाप्ति का प्रतीक है, देश में गुरुवार को मनाया जाएगा क्योंकि आज शाम चाँद देखा गया है।

सरहुल शब्द का अर्थ है पेड़ों की पूजा करना या साल के पेड़ की पूजा करना। चूँकि आदिवासी लोग प्रकृति के करीब हैं, वे पेड़ों सहित प्रकृति के तत्वों की पूजा करके सरहुल त्योहार की शुरुआत करते हैं। इस त्योहार के बाद, स्थानीय लोगों द्वारा अधिकांश कृषि गतिविधियाँ, जैसे बीज बोना आदि शुरू की जाती हैं।

संक्षेप में, ईद का चाँद दिखना उत्सव, एकता और चिंतन का समय है। यह एक ऐसा अवसर है जो लोगों को एक साथ लाता है, आध्यात्मिक एकजुटता की भावना को बढ़ावा देता है और एक स्मृति के रूप में कार्य करता हैl

हालाँकि, पूरे केरल और लेह तथा कारगिल में बुधवार को ईद मनाई गई। केरल में मुस्लिम मौलवी जिनमें सैय्यद सादिक अली शिहाब थंगल, जिफरी मुथुक्कोया थंगल और कंथापुरम ए पी अबूबकर शामिल हैं l

प्रसासन के लिए यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है कि त्योहार शांति और सद्भाव के साथ संपन्न हों ,और इसलिए दूसरे राज्यों से 5000+ फोर्स बुलाई गई है l कल के लिए सब कुछ बंद किया जा रहा है और अधिकारी सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसी भी सांप्रदायिक दंगे से बचने के लिए पूरी तरह तैयार हैं l

कच्चाथीवु द्वीप को लेकर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का पलटवार, पूछा-क्या वहां कोई रहता भी है?

#kachchatheevuislandsayscongressleaderdigvijayasingh 

इस बार लोकसभा चुनाव में कच्चातिवु द्वीप बड़ा मुद्दा बनता नजर आ रहा है, खासकर तमिलनाडु में। लोकसभा चुनाव से पहले तमिलनाडू और श्रीलंका के बीच मौजूद कच्चातिवु द्वीप को लेकर देशभर में राजनीतिक बहस जारी है। विवाद तब शुरू हुआ जब आरटीआई से मिले जवाब में सामने आया कि 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था। बीजेपी इसे जोर-शोर से उठा रही है। इस बीच कांग्रेस के दिग्गज नेता राजगढ़ से कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार दिग्विजय सिंह ने इस मसले पर पलटवार किया है। उन्होंने पूछा है कि, "क्या उस द्वीप पर कोई रहता है? 

लोकसभा चुनाव के लिए हो रहे प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक नए मुद्दे को उठाकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। कच्चातिवु द्वीप को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भोपाल में पलटवार किया। उन्होंने पूछा, उस द्वीप पर कोई रहता है क्या? मैं पूछना चाहता हूं। दरअसल, पिछले कई दिनों से पीएम मोदी इस मसले को सार्वजनिक मंचों पर उठा रहे हैं। 

पीएम मोदी लगातार बोल रहे हमला

इससे पहले बुधवार को तमिलनाडु के वेल्लोर में पीएम मोदी ने एक रैली के दौरान कहा कि कांग्रेस और डीएमके पार्टी के एक पाखंड की चर्चा आज पूरा देश कर रहा है। कांग्रेस ने अपनी सरकार के दौरान कई दशक पहले कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया। किस कैबिनेट में ये निर्णय हुआ? किसके फायदे के लिए ये फैसला हुआ? इस पर कांग्रेस की बोलती बंद है। उन्होंने आगे कहा, बीते वर्षों में उस द्वीप के पास जाने पर तमिलनाडु के हजारों मछुआरे गिरफ्तार हुए हैं। उनकी नौकाएं गिरफ्तार कर ली गई हैं।

पीएम मोदी ने कहा, गिरफ्तारी पर कांग्रेस और डीएमके झूठी हमदर्दी दिखाते हैं, लेकिन ये लोग तमिलनाडु के लोगों को ये सच नहीं बताते हैं कि कच्चातिवु द्वीप इन लोगों ने स्वयं श्रीलंका को दे दिया और तमिलनाडु की जनता को अंधेरे में रखा।एनडीए सरकार ऐसे मछुआरों को निरंतर रिहा कराकर वापस ला रही है। इतना ही नहीं 5 मछुआरों को श्रीलंका ने फांसी की सजा दे दी थी। वह उनको भी जिंदा वापस लेकर आए हैं। डीएमके और कांग्रेस सिर्फ मछुआरों के नहीं बल्कि देश के भी गुनहगार हैं।

क्या है श्रीलंका का पक्ष

इससे पहले कच्चातिवु द्वीप को लेकर श्रीलंका ने भी अपनी बात रखी है।राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री जीवन थोंडामन ने साफ कहा कि कच्चातिवू द्वीप श्रीलंकाई नियंत्रण रेखा के भीतर आता है। उन्होंने कहा, श्रीलंका के साथ नरेंद्र मोदी की विदेश नीति सजीव और स्वस्थ है। अभी तक भारत की ओर से कच्चातिवु द्वीप को लौटाने के लिए कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है। अगर ऐसी कोई मांग होती है, तो विदेश मंत्रालय उसका जवाब देगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, एक अन्य श्रीलंकाई मंत्री ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि नई सरकार की इच्छा के अनुसार राष्ट्रीय सीमाओं को नहीं बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि एक बार सीमा तय हो जाने के बाद, केवल सरकार बदलने के कारण कोई भी बदलाव की मांग नहीं कर सकता।

कहां स्थित है यह द्वीप?

कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका में नेदुनथीवु और भारत में रामेश्वरम के बीच स्थित है। यह 285 एकड़ का एक निर्जन स्थान है। अपने सबसे चौड़े बिंदु पर इसकी लंबाई 1.6 किमी से ज्यादा नहीं है। यह भारतीय तट से लगभग 33 किमी दूर, रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित है। श्रीलंका के जाफना से यह लगभग 62 किमी दूर है। पारंपरिक रूप से दोनों पक्षों के मछुआरे इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। कच्चातिवु द्वीप तमिलनाडु के मछुआरों के लिए सांस्कृतिक रूप से अहम है। इसे श्रीलंका को सौंपने के खिलाफ तमिलनाडु में कई आंदोलन हुए हैं।

द्वीप का इतिहास क्या है?

14वीं शताब्दी के ज्वालामुखी विस्फोट के बाद यह द्वीप बना। मध्ययुगीन काल में, इस पर श्रीलंका के जाफना साम्राज्य का नियंत्रण था। 17वीं शताब्दी में, नियंत्रण रामनाद जमींदारी के हाथ में चला गया, जो रामनाथपुरम से लगभग 55 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया। लेकिन 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों ने मछली पकड़ने की सीमा निर्धारित करने के लिए द्वीप पर दावा किया। यह विवाद 1974 तक नहीं सुलझा था।

अब क्या है समझौता?

1974 में, इंदिरा गांधी ने भारत-श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को हमेशा के लिए सुलझाने का प्रयास किया। इस समझौते के एक हिस्से के रूप में इंदिरा गांधी ने कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंप दिया। उस समय, उन्होंने सोचा कि इस द्वीप का कोई रणनीतिक महत्व नहीं है और इस भारत का दावा खत्म करने से श्रीलंका के साथ संबंध और गहरे हो जाएंगे। समझौते के मुताबिक, भारतीय मछुआरों को अभी भी इस द्वीप तक जाने की इजाजत थी। 1976 में भारत में इमरजेंसी की अवधि के दौरान एक और समझौता हुआ। इसमें किसी भी देश को दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया गया।

वाशिंगटन: अमेरिका भारत और पाकिस्तान को अपने मुद्दों को बातचीत के माध्यम से सुलझाने के लिए प्रोत्साहित करता है: अधिकारी

 

विदेश विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, अमेरिका भारत और पाकिस्तान को तनाव से बचने और बातचीत के माध्यम से अपने लंबित मुद्दों को सुलझाने के लिए प्रोत्साहित करेगा और "स्थिति के बीच में नहीं आएगा।" 

विदेश विभाग के अधिकारी ने दोनों देशों से तनाव से बचने और बातचीत के जरिए लंबित मुद्दों को सुलझाने का आग्रह किया l

विदेश विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान को तनाव से बचने और अपने लंबित मुद्दों को बातचीत के माध्यम से सुलझाने के लिए प्रोत्साहित करेगा और "स्थिति के बीच में नहीं आएगा"।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले हफ्ते कहा था कि अगर आतंकवादी भारत में शांति भंग करने की कोशिश करेंगे या आतंकी गतिविधियों को अंजाम देंगे तो करारा जवाब दिया जाएगा और अगर वे पाकिस्तान भाग जाते हैं तो भारत सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए नई दिल्ली के मुखर दृष्टिकोण का जिक्र करते हुए, उन्हें मारने के लिए पड़ोसी देश में प्रवेश करेंगे।

हम इस मुद्दे पर मीडिया रिपोर्टों पर नजर रख रहे हैं।' रेखांकित आरोपों पर हमारी कोई टिप्पणी नहीं है,'' विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने सोमवार को मीडिया रिपोर्टों के बारे में पूछे जाने पर कहा कि भारत सरकार के एजेंटों ने कथित तौर पर पाकिस्तान के अंदर हत्याएं कीं।

 मिलर ने कहा कि हालांकि अमेरिका "इस स्थिति के बीच में नहीं पड़ने वाला", "दोनों पक्षों को तनाव से बचने और बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करेगा"।

राजनाथ सिंह की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए, पाकिस्तान ने उनके भड़काऊ बयान की आलोचना की है और कहा है कि वह अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के अपने इरादे और क्षमता पर दृढ़ है।6 अप्रैल को विदेश कार्यालय के बयान में कहा गया कि पाकिस्तान ने हमेशा क्षेत्र में शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है लेकिन शांति की उसकी इच्छा को गलत नहीं समझा जाना चाहिए।

इतिहास पाकिस्तान के दृढ़ संकल्प और खुद की रक्षा करने की क्षमता का गवाह है, ”पाकिस्तानी विदेश कार्यालय ने एक बयान में हा का सहारा लेने के लिए भारत की सत्तारूढ़ व्यवस्था की आलोचना करते हुए कहा।

भारत द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में गिरावट आई।

भारत के फैसले पर पाकिस्तान की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया हुई, जिसने राजनयिक संबंधों को कम कर दिया और भारतीय दूत को निष्कासित कर दिया। भारत ने पाकिस्तान से बार-बार कहा है कि जम्मू-कश्मीर था, है और रहेगा l

भारत ने कहा है कि वह पाकिस्तान के साथ आतंक, शत्रुता और हिंसा मुक्त माहौल में सामान्य पड़ोसी संबंधों की इच्छा रखता है।

बंगाल के संदेशखाली केस की होगी CBI जांच, हाईकोर्ट ने दिया बड़ा आदेश कलकत्ता हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश

देते हुए पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के यौन उत्पीड़न मामले की CBI जांच के आदेश दिए है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि, इस मामले में TMC के तीन नेता शेख शाहजहां, शिबू हाजरा और उत्तम सरदार आरोपी हैं। पश्चिम बंगाल के संदेशखाली की घटना को लेकर खूब हंगामा हुआ। अब कलकत्ता हाईकोर्ट ने संदेशखाली में महिलाओं पर हुए अत्याचार और जमीन कब्जाने के आरोपों की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया है। संदेशखाली में ईडी के अधिकारियों पर हुए हमले की जांच भी सीबीआई द्वारा ही की जा रही है।
बंगाल के संदेशखाली केस की होगी CBI जांच, हाईकोर्ट ने दिया बड़ा आदेश

 कलकत्ता हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश देते हुए पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के यौन उत्पीड़न मामले की CBI जांच के आदेश दिए है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि, इस मामले में TMC के तीन नेता शेख शाहजहां, शिबू हाजरा और उत्तम सरदार आरोपी हैं।

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली की घटना को लेकर खूब हंगामा हुआ। अब कलकत्ता हाईकोर्ट ने संदेशखाली में महिलाओं पर हुए अत्याचार और जमीन कब्जाने के आरोपों की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया है। संदेशखाली में ईडी के अधिकारियों पर हुए हमले की जांच भी सीबीआई द्वारा ही की जा रही है।

दिल्ली : भाजपा नेताओं ने (आप) मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया, केजरीवाल के इस्तीफे की मांग की

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें दिल्ली की उत्पाद शुल्क नीति में अनियमितता के मामले में उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में गिरफ्तारी के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की याचिका खारिज कर दी और कहा कि मामला वैध है। अदालत ने यह भी कहा कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा एकत्र की गई सामग्री से पता चला है कि उन्होंने दूसरों के साथ मिलकर साजिश रची थी और इसमें आम आदमी पार्टी के संयोजक के साथ-साथ व्यक्तिगत हैसियत से भी शामिल थे। निदेशालय ने खुलासा किया कि उन्होंने दूसरों के साथ मिलकर साजिश रची और आम आदमी पार्टी के संयोजक के साथ-साथ व्यक्तिगत हैसियत से भी इसमें शामिल थे। अदालत ने ईडी द्वारा उनके खिलाफ अनुमोदक के बयान का उपयोग करने पर केजरीवाल की आपत्तियों को भी खारिज कर दिया और कहा, "अनुमोदनकर्ता को क्षमादान देना ईडी के अधिकार क्षेत्र में नहीं है क्योंकि यह एक न्यायिक प्रक्रिया है। यदि आप एस्प देते हैं l केजरीवाल की यह दलील भी अदालत ने खारिज कर दी कि उनसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पूछताछ की जा सकती थी। "यह तय करना आरोपी का काम नहीं है कि जांच कैसे की जानी है। वह नहीं कर सकता।"  यह आरोपी की सुविधा के मुताबिक नहीं हो सकता. यह अदालत दो तरह के कानून नहीं बनाएगी - एक आम लोगों के लिए और दूसरा लोक सेवकों के लिए,'' अदालत ने कहा l
फिर उठी देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग, सड़कों पर उतरे सैकड़ों प्रदर्शनकारी, जमकर हो रहे प्रोटेस्ट

एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र की मांग तेज हो गई है। राजधानी की सड़कों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारी इसके लिए नारे लगा रहे हैं। वे देश में फिर से राजशाही लागू करने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, हिंदू राष्ट्र की मांग नेपाल में उठ रही है। राजधानी काठमांडू की सड़कों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे हैं। काठमांडू में मंगलवार को जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प हो गई। दर्जनों राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारी उस समय घायल हो गए जब वे एक प्रतिबंधित क्षेत्र में घुस गए और बैरिकेड्स तोड़ दिए। इसके बाद पुलिस को लाठी, आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा। यह विरोध प्रदर्शन दक्षिणपंथी समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) द्वारा बुलाया गया था। इसके हजारों कार्यकर्ता और राजशाही समर्थकों ने राजधानी में मार्च किया और 'राजशाही वापस लाओ, गणतंत्र को खत्म करो' के नारे लगाए। जिस सड़क को काठमांडू की लाइफलाइन कहा जाता है, वह सड़क विरोध प्रदर्शन में उमड़ी लोगों की भीड़ के बाद पूरी तरह जाम हो गई। प्रदर्शनकारी नेपाल की प्रशासनिक राजधानी सिंह दरबार की तरफ बढ़ने लगे। स्थानीय अधिकारियों ने क्षेत्र में निषेधाज्ञा को और बढ़ा दिया है, क्योंकि इन विरोध प्रदर्शनों की वजह से अक्सर झड़पें होती रहती हैं। मंगलवार को, आरपीपी अध्यक्ष और पूर्व उप प्रधानमंत्री राजेंद्र लिंगदेन जो प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे, उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्र में आने से रोक दिया गया। वह निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए सेना मुख्यालय के पास भद्रकाली मंदिर के पास पहुंच गए थे। इसके बाद उनके समर्थकों ने दो जगहों पर सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया और फिर फरार हो गए। पुलिस की मोर्चाबंदी राजशाही समर्थकों का सामना नहीं कर सकी। ये सभी प्रदर्शनकारी राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राज्य घोषित करने की मांग को लेकर सड़क पर उतरे थे। चिरिंग लामा नाम के एक प्रदर्शनकारी ने एएनआई को बताया, “इस देश के संविधान को बदलने की जरूरत है, जो राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) की मांगों में से एक है. यदि हम संविधान बदल सकते हैं, नेपाल को एक हिंदू राष्ट्र बना सकते हैं, और राजशाही बहाल कर सकते हैं... यही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प है जो वर्तमान परिदृश्य में इस राष्ट्र को बचा सकता है अन्यथा राष्ट्र की और भी दुर्गति हो जाएगी। जनता इस देश की और बुरी हालत नहीं देख सकती है, इसने लोगों को सड़क पर उतरने के लिए प्रेरित किया है और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया है।' आरपीपी द्वारा मंगलवार को यह विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को अपना 40-सूत्रीय मांगों का चार्टर सौंपने के एक महीने बाद बुलाया गया था। 9 फरवरी को राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र की बहाली के अभियान की घोषणा करते हुए आरपीपी ने 9 अप्रैल (मंगलवार) को एक बड़े विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। संभावित तनाव और हिंसा के मद्देनजर, नेपाल पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और सशस्त्र पुलिस बल (एपीएफ) सहित लगभग 7 हजार पुलिसकर्मियों को विरोध स्थल और उसके आसपास तैनात किया गया था। 2006 में, नेपाल ने सदियों पुरानी संवैधानिक राजशाही को समाप्त कर दिया था. इसके बाद राजा ज्ञानेंद्र ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और आपातकाल लगाकर सभी नेताओं को नज़रबंद कर दिया था। इस दौरान आंदोलन, जिसे "पीपुल्स मूवमेंट II" भी कहा जाता है, में रक्तपात हुआ, सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई में दर्जनों लोग मारे गए। कई हफ्तों के हिंसक विरोध प्रदर्शन और बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद, ज्ञानेंद्र ने हार मान ली और भंग संसद को बहाल कर दिया। नए लोकतंत्र की शुरुआत को लोकतंत्र के रूप में रेखांकित किया गया है। राजशाही खत्म होने के 18 साल के भीतर ही दक्षिणपंथी फिर से सड़क पर उतरकर इसकी बहाली की मांग कर रहे हैं।
फिर उठी देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग, सड़कों पर उतरे सैकड़ों प्रदर्शनकारी, जमकर हो रहे प्रोटेस्ट

एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र की मांग तेज हो गई है। राजधानी की सड़कों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारी इसके लिए नारे लगा रहे हैं। वे देश में फिर से राजशाही लागू करने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, हिंदू राष्ट्र की मांग नेपाल में उठ रही है। राजधानी काठमांडू की सड़कों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे हैं। काठमांडू में मंगलवार को जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प हो गई। दर्जनों राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारी उस समय घायल हो गए जब वे एक प्रतिबंधित क्षेत्र में घुस गए और बैरिकेड्स तोड़ दिए। इसके बाद पुलिस को लाठी, आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा। यह विरोध प्रदर्शन दक्षिणपंथी समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) द्वारा बुलाया गया था। इसके हजारों कार्यकर्ता और राजशाही समर्थकों ने राजधानी में मार्च किया और 'राजशाही वापस लाओ, गणतंत्र को खत्म करो' के नारे लगाए। जिस सड़क को काठमांडू की लाइफलाइन कहा जाता है, वह सड़क विरोध प्रदर्शन में उमड़ी लोगों की भीड़ के बाद पूरी तरह जाम हो गई। प्रदर्शनकारी नेपाल की प्रशासनिक राजधानी सिंह दरबार की तरफ बढ़ने लगे। स्थानीय अधिकारियों ने क्षेत्र में निषेधाज्ञा को और बढ़ा दिया है, क्योंकि इन विरोध प्रदर्शनों की वजह से अक्सर झड़पें होती रहती हैं। मंगलवार को, आरपीपी अध्यक्ष और पूर्व उप प्रधानमंत्री राजेंद्र लिंगदेन जो प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे, उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्र में आने से रोक दिया गया। वह निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए सेना मुख्यालय के पास भद्रकाली मंदिर के पास पहुंच गए थे। इसके बाद उनके समर्थकों ने दो जगहों पर सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया और फिर फरार हो गए। पुलिस की मोर्चाबंदी राजशाही समर्थकों का सामना नहीं कर सकी। ये सभी प्रदर्शनकारी राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राज्य घोषित करने की मांग को लेकर सड़क पर उतरे थे। चिरिंग लामा नाम के एक प्रदर्शनकारी ने एएनआई को बताया, “इस देश के संविधान को बदलने की जरूरत है, जो राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) की मांगों में से एक है. यदि हम संविधान बदल सकते हैं, नेपाल को एक हिंदू राष्ट्र बना सकते हैं, और राजशाही बहाल कर सकते हैं... यही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प है जो वर्तमान परिदृश्य में इस राष्ट्र को बचा सकता है अन्यथा राष्ट्र की और भी दुर्गति हो जाएगी। जनता इस देश की और बुरी हालत नहीं देख सकती है, इसने लोगों को सड़क पर उतरने के लिए प्रेरित किया है और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया है।' आरपीपी द्वारा मंगलवार को यह विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को अपना 40-सूत्रीय मांगों का चार्टर सौंपने के एक महीने बाद बुलाया गया था। 9 फरवरी को राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र की बहाली के अभियान की घोषणा करते हुए आरपीपी ने 9 अप्रैल (मंगलवार) को एक बड़े विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। संभावित तनाव और हिंसा के मद्देनजर, नेपाल पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और सशस्त्र पुलिस बल (एपीएफ) सहित लगभग 7 हजार पुलिसकर्मियों को विरोध स्थल और उसके आसपास तैनात किया गया था। 2006 में, नेपाल ने सदियों पुरानी संवैधानिक राजशाही को समाप्त कर दिया था. इसके बाद राजा ज्ञानेंद्र ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और आपातकाल लगाकर सभी नेताओं को नज़रबंद कर दिया था। इस दौरान आंदोलन, जिसे "पीपुल्स मूवमेंट II" भी कहा जाता है, में रक्तपात हुआ, सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई में दर्जनों लोग मारे गए। कई हफ्तों के हिंसक विरोध प्रदर्शन और बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद, ज्ञानेंद्र ने हार मान ली और भंग संसद को बहाल कर दिया। नए लोकतंत्र की शुरुआत को लोकतंत्र के रूप में रेखांकित किया गया है। राजशाही खत्म होने के 18 साल के भीतर ही दक्षिणपंथी फिर से सड़क पर उतरकर इसकी बहाली की मांग कर रहे हैं।
वाराणसी सीट पर दिलचस्प हुआ मुकाबला, मध्यप्रदेश के इस दिग्गज ने किया PM मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान

लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी लोकसभा सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं. लेकिन इस बार वाराणसी सीट पर बेहद दिलचस्प तस्वीर देखने को मिल रही है. वाराणसी लोकसभा सीट से जहां एक तरफ किन्नर महामंडलेश्‍वर हिमांगी सखी और मृतक लाल बिहारी प्रधानमंत्री के खिलाफ ताल ठोंक दी है, वहीं दूसरी तरफ अब मध्य प्रदेश के एक पूर्व IPS अधिकारी ने भी पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. दरअसल, मध्य प्रदेश के पूर्व आईपीएस अधिकारी मैथिलीशरण गुप्त ने वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. पूर्व IPS ने बनारस के अलावा झांसी और भोपाल से भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. आईपीएस अधिकारी मैथिलीशरण गुप्त 2021 में रिटायर हुए थे. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के लिए सभी सात चरणों में चुनाव होंगे. वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में 1 जून को सातवें चरण में मतदान होगा. इसी सीट से नरेंद्र मोदी ने 2014 में चुनाव लड़कर प्रधानमंत्री बने थे. 2019 में फिर यहीं से चुनाव लड़े और अब तीसरी बार मैदान में हैं.