काल से विराजमान हैं बाबा बड़े शिव,72 साल बाद तीन सिद्ध योग में होगी शिव की आराधना
नितेश श्रीवास्तव ,भदोही। अकाल मृत्यु के हर्ता भगवान शिव की आराधना का महापर्व महाशिवरात्रि आठ मार्च को मनाया जाएगा। इस बार महाशिवरात्रि पर 72 साल बाद अद्भुत संयोग बन रहा है।
शिवयोग , सिद्ध योग और चतुर्ग्रही योग बन रहा है। साथ ही इस दिन शुक्र प्रदोष व्रत भी पड़ा रहा है। जो मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस महासंयोग में भगवान शिव की पूजा और आराधना काफी फलदायी होगा। फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि आठ मार्च को है।
महाशिवरात्रि पर व्रत रखा जाएगा। शास्त्रों के अनुसार, साल में 11 मास शिवरात्रि होती है। लेकिन फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि की शिवरात्रि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है। इस दिन निशा बेला में भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रुप में अवतरित हुए थे।
72 साल बाद तीन योग बन रहे हैं और शुक्र प्रदोष व्रत पड़ा है।देवाधिदेव महादेव की महिमा अपरंपार है। फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि पर्व के निमित्त जिले के शिवालय शिवभक्ति की बयार से बम-बम हो गए हैं।
जिले में प्रतिष्ठापित पांडव काल के शिवधामों से लेकर तीन-चार सौ वर्ष प्राचीन मंदिरों तक की महिमा महाशिवरात्रि के अवसर व्यापक हो जाती है। गोपीगंज नगर से पूरब मिर्जापुर रोड पर स्थित इस मंदिर के स्थापना काल का कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है। बाग-बगीचों और सरोवर के साथ करीब 18 एकड़ रकबे में फैला यह मंदिर अद्वितीय है।
अत्यंत प्राचीन और सुसज्जित मंदिर का लिंगार्घा छोटा है। महाशिवरात्रि में मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। देखने से पता लगता है कि मंदिर मुगलकालीन है, जिसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ होगा। मंदिर परिसर में हनुमान, नंदी, गणेश, शीतला माता, माता पार्वती की मूर्तियां भी विराजमान हैं। मंदिर के सामने तालाब में कमल के पुष्प सुशोभित होते हैं।
मंदिर में एक आश्रम है, जिससे जुड़ी कहावत यह है कि पहले मोरंग के राजा ओमानंद, जो बाद में राजा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने इस स्थान को अपनी तपस्थली बनाया और बहुत दिनों तक यहां तपस्यारत रहे, जिनकी कुटिया आज भी विराजमान हैं। पीपल के जिस वृक्ष के नीचे राजा बाबा ने साधना की, वह वृक्ष आज भी मौजूद है। इस स्थान पर नागा साधुओं का दल आज भी आता रहता है।
Mar 04 2024, 14:40