*गंगा की कल - कल करती धारा के बीच भजनों की मधुर धुन*
सेमराधनाथ धाम कल्पवासियों से गुलजार,काशी,विंध्य,प्रयाग के बीच गंगा किनारे मेले जैसा नजारा, भजन कीर्तन सुनने के लिए ठिठक जा रहे लोग
नितेश श्रीवास्तव,भदोही। काशी, विंध्य,प्रयाग के मध्य गंगा घाट के पावन तट पर साधु, संन्यासी और गृहस्थों का संगम हो रहा है। सेमराधनाथ धाम भजन और कीर्तन से गुलजार है। यहां रेती मेले जैसा नजारा है। धाम में 300 कल्पवासी साधना में लीन है। मां गंगा की कल - कल करती धारा और भजन की मधुर धुन राहगीरों के कान में अमृत घोल रही है।
सूर्योदय से पहले शुरू भजन कीर्तन देर रात तक चल रहा है। जिले के सेमराधनाथ धाम में कल्पवास मेले का शुभारंभ 1992 से हुआ था। महंत पंडित करुणाशंकर दास महाराज के गुरु ने इसकी शुरुआत की थी। तब से मकर संक्रांति से शुरू होने वाला कल्पवास मेला हर साल माघ महीने में लगता है। हर साल गंगा तट पर सैकड़ों कल्पवासी साधना के लिए पहुंचते हैं।
प्रयागराज, नासिक, उज्जैन के अलावा बिहार के हरिहर व सिमिरिया के बाद लगने वाला यह कल्पवास पूरे भारत का छठवां कल्पवास मेला है, जो माघ मेले के नाम से जाना जाता है।
इस समय 40 से 90 साल तक के कल्पवासी गंगा किनारे साधना करते हैं। कल्पवास से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। दिनचर्या सुधर जाती है।कल्पवासियों की दिनचर्या सूर्योदय के पहले शुरू हो जाती है। मां गंगा के पावन जल में स्नान करने के बाद सभी आरती में शामिल होते हैं।
इसके बाद दिनभर भजन, कीर्तन और प्रवचन का आयोजन किया जाता है। इसके बाद सभी कल्पवासी प्रसाद ग्रहण कर भजन, कीर्तन और अराधना में जुट जाते हैं। कल्पवासी केवल एक समय भोजन करते हैं। महंत करुणा शंकर दास ने बताया कि कल्पवास एक साधना है।
इसके नियम व शर्तों को हर कल्पवासी पूरी श्रद्धा से निभाते हैं। बताया कि कल्पवास कायाकल्प और आत्मशुद्धि का एक माध्यम है। पुराने का त्याग और नवीन का ग्रहण ही कल्प है। इस निमित्त ऊर्जा से परिपूर्ण किसी रमणीक नदी तीर्थ पर खास तिथियों में किया गया वास कल्पवास है।
नया जीवन- नई ऊर्जा और एक बेहतर दिनचर्या के शुरुआती अभ्यास का नाम भी कल्पवास है। कल्पवास स्थल भारतवर्ष के हर हिस्से में मौजूद हैं। धाम भारत का छठवां कल्पवास स्थल हइस समय 40 से लेकर 90 साल तक के कल्पवासी गंगा किनारे साधना करते हैं।
कल्पवास से स्वास्थ्य के अच्छा रहता है। दिनचर्या सुधर जाती है। महंत पंडित करुणाशंकर दास महाराज ने गुरु ने इसकी शुरुआत की थी।
Feb 13 2024, 13:01