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2024 के लोकसभा चुनाव मे दक्षिण का किला भेदने की तैयारी में बीजेपी, पीएम मोदी ने खुद संभाली कमान

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लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है। लिहाजा सभी राजनीतिक दलों ने चुनावी दंगल के लिए कसरत शुरू कर दी है। हाल ही में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से 3 में जीत के बाद बीजेपी का फोकस दक्षिण भारतीय राज्यों की तरफ है।बीजेपी ने दक्षिण भारत की कुल 131 सीटों में से 84 को टारगेट करना शुरू किया है। दक्षिण भारत की कमान पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद अपने हाथों में रखी है।

2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी के लिए दक्षिण भारत खासा अहम है। इसके पीछे वजह है कि उत्तर भारत में लोकसभा सीटों के लिहाज से बीजेपी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी है। उतर भारत में बीजेपी के पास अब लोकसभा की सीटें और बढ़ाने की संभावना नहीं है, क्योकि यहां बीजेपी सैचुरेशन के स्तर पर है। बीजेपी को ये भी एहसास है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के चलते तेलंगाना में बीजेपी को नुकसान हुआ है।ऐसे में बीजेपी को लगता है कि अगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम होती है तो उसकी भरपाई या उसको बढ़ाने की गुंजाइश दक्षिण भारत में वोट और लोकसभा सीट लेकर किया जा सकता है।

चुनावी साल की शुरुआत दक्षिण भारत से

यही वजह है कि चुनावी साल की शुरुआत के साथ ही बीजेपी ने विपक्ष का दक्षिणी दुर्ग भेदने के लिए अपने सबसे बड़े चेहरे पीएम मोदी को मैदान में उतार दिया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए साल की शुरुआत दक्षिण भारत से की है। पीएम मोदी इन दिनों दक्षिण के तीन राज्यों तमिलनाडु, लक्षद्वीप और केरल के दो दिवसीय दौरे पर हैं।इसी क्रम में पीएम एक नए हवाई अड्डे सहित 20,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शुभारंभ करने के लिए मंगलवार को तमिलनाडु में थे।आज बुधवार को पीएम मोदी केरल के त्रिशूर में एक बड़ा रोड शो और एक सार्वजनिक बैठक करेंगे। पार्टी सूत्रों ने बताया कि सार्वजनिक बैठक में लगभग दो लाख भाजपा महिला कार्यकर्ता मौजूद रहेंगी।जानकारों की मानें तो इसका असर लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।

दक्षिण भारत में क्या है बीजेपी की स्थिति?

बता दें कि दक्षिण भारत में 131 लोकसभा सीटें हैं। जिसमें से तमिलनाडु में 39, आंध्र प्रदेश में 25, कर्नाटक में 28, केरल में 20, तेलंगाना में 17, पुदुच्चेरी और लक्षद्वीप में एक-एक सीट है। दक्षिण भारत में सिर्फ तेलंगाना और कर्नाटक में ही बीजेपी की लोकसभा सीटें हैं। इसलिए बीजेपी का पूरा प्लॉन लोकसभा चुनाव में तेजी के साथ काम करने का काम है। इनमें पर बीजेपी का फोकस उन 84 सीटों पर है, जो बीजेपी कभी नहीं जीती है। इन सीटों का क्लस्टर बनाकर इनकी जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्रियों को दी गई है। तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु को लेकर लगातार बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह बैठकें कर रहे हैं।

मध्यप्रदेश के शाजापुर में ट्रक ड्राइवर से 'औकात' पूछना कलेक्टर को पड़ा भारी, CM मोहन ने किया बर्खास्त, कहा, ऐसा व्यवहार मंजूर नहीं

 मध्य प्रदेश के शाजापुर में ट्रक डाइवर्स से संबंधित घटना को लेकर मध्य प्रदेश सरकार ने बड़ा एक्शन लिया है। सीएम डॉ मोहन यादव ने शाजापुर कलेक्टर किशोर कन्याल को हटा दिया है। ड्राइवर से 'औकात' पूछने वाले बयान को लेकर कलेक्टर के खिलाफ यह एक्शन लिया गया है। किशोर कन्याल की जगह अब सरकार ने नरसिंहपुर कलेक्टर ऋजु बाफना को शाजापुर का नया कलेक्टर बनाया है।

वही इस मामले को लेकर सीएम डॉ मोहन यादव ने कहा, यह सरकार निर्धनों की सरकार है। सबके काम का सम्मान होना चाहिए तथा भाव का भी सम्मान होना चाहिए। पीएम नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हम गरीबों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। हम निरंतर गरीबों की सेवा कर रहे हैं। सीएम ने कहा मानवता के नाते ऐसी भाषा हमारी सरकार में बर्दाश्त नहीं। मैं स्वयं मजदूर परिवार का बेटा हूं। इस प्रकार की भाषा बोलना उचित नहीं है। अधिकारी भाषा और व्यवहार का ध्यान रखें।

बता दें कि ट्रक ड्राइवर्स की हड़ताल के बीच शाजापुर के कलेक्टर का एक वीडियो मंगलवार को सोशल मीडिया पर सामने आया, जिसमें वह एकमीटिंग के चलते एक ड्राइवर से 'औकात' पूछते दिखाई दे रहे हैं। बाद में कलेक्टर किशोर कान्याल ने इस शब्द के उपयोग को लेकर अफसोस प्रकट किया था। दरअसल, ड्राइवर यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के चलते कलेक्टर अपना आपा खो बैठे थे। वीडियो में दिखाई दे रहा है कि जब ड्राइवर्स के एक प्रतिनिधि ने कलेक्टर से ठीक ढंग से चर्चा करने का आग्रह किया तो उन्होंने ड्राइवर्स और अन्य से कानून अपने हाथ में नहीं लेने को बोला। साथ एक एक व्यक्ति से बोले, क्या करोगे तुम, क्या औकात है तुम्हारी? 

वही शाजापुर कलेक्टर किशोर कन्याल ने 'औकात' वाले बयान पर माफी मांग ली थी। वहीं, अपनी सफाई में कहा था कि जिला और पुलिस प्रशासन ने जिले के 250 ड्राइवर्स की बैठक बुलाई थी। दरअसल, सोमवार को उनमें से कई ड्राइवर्स ने बहुत उपद्रव मचाया था। इसी के चलते कलेक्टर ऑफिस में बैठक बुलाकर ड्राइवर्स को समझाइश दी जा रही थी कि कानून को हाथ में न लें। प्रजातांत्रिक तरीके से अपना विरोध जताएं। इसी के चलते बैठक में सम्मिलित एक शख्स बार-बार पर खलल डाल रहा था तथा कह रहा था कि 3 जनवरी तक मांगें नहीं मानी तो हम किसी भी स्तर पर जा सकते हैं। उसी समय यह शब्द मेरे मुंह से निकल गए गए थे। अगर किसी को मेरी बातचीत से दुख पहुंचा हो तो माफी चाहता हूं।

'कुछ इस तरह से मारती है पुलिस...' बोलकर दोस्तों ने की रस्सी से बांधकर की पिटाई, हुई मौत, पढ़िए, पूरी खबर

मध्य प्रदेश के शाजापुर से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है यहां स्थित टुकराना गांव के पास ढाबे से मिली लाश की गुत्थी को पुलिस ने सुलझा लिया है। मंगलवार को इस मामले में एक और अपराधी जितेंद्र सौराष्ट्रीय को गिरफ्तार कर लिया गया है। इससे पहले पुलिस ने राजेश सौराष्ट्रीय को गिरफ्तार किया था। अपराधियों ने पुलिस को बताया कि वे तीनों शराब के नशे में थे। इसी के चलते उन लोगों ने चोर-पुलिस की गेम खेली। जिसमें सुनील को चोर बनाया गया।

जबकि, राजेश और जितेंद्र पुलिस बने. दोनों ने सुनील को बांध दिया एवं उसे पीटने लगे। कहने लगे कि पुलिस ऐसे पीटती है। फिर वे दोनों वहां से सुनील को उसी स्थिति में छोड़कर चले गए। चोटिल सुनील की फिर मौत हो गई। अगले दिन सुनील की लाश मिली तो पुलिस ने तहकीकात आरम्भ की। घटना 24 दिसंबर की है. पुलिस तभी से अपराधियों की तलाश कर रही थी। इस के चलते पाटीदार समाज के लोगों ने भी एसपी कार्यालय पहुंचकर अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। पुलिस की मेहनत रंग लाई तथा उन्होंने एक आरोपी राजेश सौराष्ट्रीय को गिरफ्तार कर लिया। फिर मंगलवार को दूसरे अपराधी जितेंद्र सौराष्ट्रीय को भी रंथभंवर-बेरछा के पास से गिरफ्तार कर लिया।

कोतवाली टीआई ब्रजेश मिश्रा ने बताया कि इस कार्यवाही में कोतवाली टीआई ब्रजेश मिश्रा, उप निरीक्षक सुरेंद्र मेहता, आरक्षक शैलेंद्रसिंह गुर्जर, आरक्षक शैलेंद्र शर्मा, प्रधान आरक्षक कपिल नागर, प्रधान आरक्षक दीपक शर्मा, आरक्षक संजय पटेल, प्रधान आरक्षक रवि सेंगर, आरक्षक मनोज धाकड़ व मिथुन का सराहनीय किरदार रहा।

बिना छुए 16 साल की लड़की के साथ गैंगरेप! दर्ज हुआ रेप का ऐसा पहला केस, डिटेल में समझिए क्या है यह मामला

 यूनाइटेड किंगडम यानी यूके में मेटावर्स में रेप का पहला मामला दर्ज हुआ है। ऑनलाइन मेटावर्स में 16 साल की लड़की के साथ गैंगरेप के इस मामले की पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने केस भी दर्ज कर लिया है। आरोप लगाने वाली नाबालिग लड़की का कहना है कि कुछ लोगों ने रिएलिटी गेम में उससे ऑनलाइन अवतार में गैंगरेप किया। बताया जा रहा है कि इस वजह से नाबालिग लड़की सदमें में और डरी हुई है।

पीड़िता ने बताया है कि असली दुनिया में यौन शोषण के दौरान असली दुनिया में जैसी तकलीफ होती है वैसी ही उसे इस दौरान हुई। एक ऑनलाइन रूप में कई लोगों की मौजूदगी में उसे शिकार बनाया गया। बताया जा रहा है कि मेटावर्स पर वर्चुअल दुनिया में रेप का यह अपनी तरह का पहला मामला है। किशोरी को दुष्कर्म पीड़िता की तरह ही मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।

डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक 16 साल की यह लड़की एक इमर्सिव गेम में वर्चुअल रियलिटी (वीआर) हेडसेट का इस्तेमाल कर रही थी। इसी दौरान उसपर हमला किया गया। रिपोर्ट में ब्रिटिश अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि पीड़िता को इससे शारीरिक नुकसान तो नहीं हुआ, लेकिन इस घटना से उसपर पड़े भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव को गंभीरता से लिया गया है।

वहीं इसे पहला वर्चुअल यौन अपराध बताया जा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि इससे कानून के सामने भी नई चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि इस तरह के अपराध के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं है। बता दें कि वर्चुअल दुनिया मेटावर्स में असल दुनिया की तरह ही काम हो रहे हैं। इस दुनिया में लोग नहीं होते बल्कि लोगों के अवतार होते हैं। मेटावर्स में साइन इन करने वाले लोग वर्चुअल दुनिया में चले जाते हैं। वे वर्चुअल अवतार में ही लोगों से मिलते हैं।

Adani-Hindenburg Case: सुप्रीम कोर्ट ने SEBI की जांच को उचित ठहराया, गौतम अदाणी ने कहा 'सत्यमेव जयते'

 सुप्रीम कोर्ट ने गौतम अदाणी को हिंडनबर्ग मामले में बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने सेबी की जांच को सही ठहराया है। कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए दो मामलों की जांच के लिए 3 महीने का समय और दिया है। साथ ही, मामले की जांच सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) से एसआईटी को ट्रांसफर करने का कोई आधार नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि सेबी ने रिपोर्ट में आरोपों से जुड़ी हुई 22 मामलों में से 20 पर अपनी जांच को पूरा कर लिया है। सुनवाई के द्वारा सॉलिसिटर जनरल की ओर से दिये गए आश्वासन को ध्यान में रखते हुए हमने सेबी को अन्य दो मामलों में 3 महीने के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया है. बता दें कि इससे पहले 24 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। हालांकि, शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को अमेरिकी ने भी फर्जी करार दे दिया है।

गौतम अदाणी ने दी प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गौतम अदाणी ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि सत्यमेव जयते सत्य की जीत हुई है। साथ देने वाले सभी का आभारी हूं। देश के विकास कार्य में योगदान जारी रहेगा। गौरतलब है कि इससे पहले कंपनी के एजीएम में 18 जुलाई को कहा था कि उन्होंने कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का मकसद केवल ग्रुप की छवि को वैश्विक बाजार में खराब करके मुनाफा कमाना था। रिपोर्ट गलत सूचना और बेबुनियाद आरोपों को मिलाकर तैयार की गई थी, जिनमें से ज्यादातर आरोप 2004 से 2015 तक के थे।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में क्या कहा था

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडाणी समूह के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने वाले बाजार नियामक सेबी पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है। उसने कहा कि बाजार नियामक की जांच के बारे में भरोसा नहीं करने के लायक कोई भी तथ्य उसके समक्ष नहीं है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हिंडनबर्ग रिपोर्ट में किए गए दावों को पूरी तरह तथ्यों पर आधारित नहीं मानकर चल रहा है। पीठ ने कहा कि उसके समक्ष कोई तथ्य न होने पर अपने स्तर पर विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करना उचित नहीं होगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अडाणी-हिंडनबर्ग मामले से संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। न्यायालय ने कुछ मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सेबी को अदाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए कहे जाने पर आपत्ति जताई। उसने कहा कि वह एक वैधानिक नियामक को मीडिया में प्रकाशित किसी बात को अटल सत्य मानने को नहीं कह सकता है।

क्या लोकसभा चुनाव से पहले गिरफ्तार हो सकते हैं सीएम अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन? दोनों लगातार कर रहे ईडी के समन की अनदेखी

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भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों पर कार्रवाई कर रही ईडी के समन की दो राज्यों के मुख्यमंत्री लगातार अनदेखी कर रहे हैं। ऐसे में अगले कुछ महीनों में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।दोनों राज्य विपक्ष शासित हैं।पहला नाम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है, जिनसे कथित शराब घोटाले में पूछताछ की जानी है। आज तीसरे समन पर उन्हें ईडी के सामने पेश होना था लेकिन अब साफ हो गया है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नहीं जाएंगे।इस कड़ी में दूसरा नाम झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का है। वह बार-बार बुलाने पर भी नहीं आए। ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन गिरफ्तार हो सकते हैं।

दोनों सीएम लगा रहे गिरफ्तार करने की साजिश का आरोप

ईडी ने केजरीवाल को दिल्ली में शराब नीति घोटाले मामले में समन भेजा है। वहीं हेमंत सोरेन को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में ईडी सात बार समन भेज चुकी है। दोनों सीएम अभी तक केंद्रीय एजेंसी के सामने पेश नहीं हुए हैं। दोनों ही दल आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार उन्हें गिरफ्तार करने की साजिश कर रही है।ईडी के पास समन की बार-बार अनदेखी करने पर कार्रवाई के अधिकार हैं, लेकिन उसकी सीमाएं भी हैं। ईडी अपने इस अधिकार का तब ही इस्तेमाल कर सकती है जब उसके पास पुख्ता सबूत हों कि मुख्यमंत्री अपराध में लिप्त हैं। अगर पुख्ता सबूत न हों तो संवैधानिक पद पर बैठे शख्स की गिरफ्तारी नहीं हो सकती।इस कारण हेमंत सोरेन और केजरीवाल के मामले में उसके हाथ बंधे हुए हैं। बताया जा रहा है कि इन मामलों में ईडी कानूनविदों की राय ले रही है। 

केजरीवाल ने की तीसरे समन की भी अनदेखी

भ्रष्टाचार के खिलाफ ही आम आदमी पार्टी का गठन करने वाले केजरीवाल अपने राजनीतिक जीवन के एक मुश्किल संकट से गुजर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दिल्ली के सीएम पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। ईडी ने केजरीवाल को अपने पास पेश होने के लिए तीन बार समन भेज चुकी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री को ईडी ने पहली बार 2 नवंबर को पूछताछ के लिए बुलाया था। हालांकि केजरीवाल ईडी के सामने न जाकर लिखित में जवाब भेज देते हैं और उसी दिन चुनाव प्रचार के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ मध्य प्रदेश चले गए।ईडी ने केजरीवाल को दूसरा समन 18 दिसंबर को भेजा था और 21 दिसंबर को दोबारा पूछताछ के लिए बुलाया। एक बार फिर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने लिखित जवाब भेजा और बताया कि पहले से विपश्यना कार्यक्रम निर्धारित है और वह पंजाब के होशियारपुर चले गए।आज भी केजरीवाल शराब घोटाला मामले में ईडी की ओर से तीसरी बार समन भेजे जाने के बाद भी पूछताछ के लिए नहीं पहुंचे।

7 बार ईडी के समन को सोरेन कर चुके हैं नजरअंदाज

इधर, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 7 बार ईडी के समन को नजरअंदाज कर चुके हैं।सातवें समन भेजते हुए ईडी ने उन्हें हरहाल में पेश होने को कहा है। अभीतक ईडी के समन से बचते फिर रहे जेएमएम नेता इसबार घिर गए हैं। कयास हैं कि सोरेन को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी का डर है और इसी कारण वह अपनी जगह पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बनाने का दांव खेल सकते हैं। बीजेपी नेता भी राज्य में ऐसा दावा कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि सोरेन ने पत्नी को सीएम बनाने के लिए दांव चल भी दिया है। राज्य के गांडेय विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के विधायक सरफराज अहमद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। ये सीट जेएमएम के लिए काफी मुफीद मानी जाती है। अगर मनी लॉन्ड्रिंग केस में हेमंत की गिरफ्तारी होती है तो वह अपनी पत्नी के लिए सीएम पद की फील्डिंग पूरी तरह से कर चुके हैं। 

विपक्षी खेमे को लग सकता है तगड़ा झटका

हेमंत और केजरीवाल के मामले में लगातार यह सवाल उठ रहा है कि अगर आगे भे ये राजनेता समन भेजने पर नहीं पहुंचे तो ईडी का अगला कदम क्या होगा। अगर ईडी इंडिया गठबंधन में शामिल आप और जेएमएम के इन दो नेताओं को गिरफ्तार करती है तो फिर चुनावों में विपक्षी खेमे को तगड़ा झटका लग सकता है। चुनाव से पहले अभी इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर स्थिति साफ नहीं हुई है। अगर ईडी के शिकंजे में दोनों सीएम फंसते हैं तो बीजेपी इसका सियासी फायदे लेने से नहीं चूकेगी।

'अबकी बार 400 पार, तीसरी बार मोदी सरकार..', भाजपा ने फूंका लोकसभा चुनाव का बिगुल, दिया नया नारा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 400 सीटें जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करते हुए 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए पूरे जोश के साथ तैयारी कर रही है। पार्टी ने कथित तौर पर अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को प्रेरित करने के लिए "अबकी बार 400 पार, तीसरी बार मोदी सरकार" का नारा अपनाया है। कुछ असंतुष्ट नेताओं द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करते हुए चुनावी तैयारियों पर चर्चा के लिए मंगलवार को दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। पार्टी के भीतर एकता को बढ़ावा देने के प्रयास में, असंतुष्ट नेताओं से जुड़ने और उनके मुद्दों को हल करने की दिशा में काम करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है।

दिल्ली में हुई बैठक के दौरान बीजेपी नेतृत्व ने आगामी लोकसभा चुनाव में निर्णायक जीत हासिल करने के लिए एकजुट मोर्चे की जरूरत पर जोर दिया. पार्टी का 400 सीटें जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और वर्तमान सरकार की उपलब्धियों में उसके विश्वास को दर्शाता है। असंतुष्ट नेताओं द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए स्थापित समिति का उद्देश्य आंतरिक एकजुटता को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करना है कि भाजपा एकजुट मोर्चे के साथ चुनावी मैदान में उतरे।

जैसा कि भाजपा ने 2024 के चुनावों पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं, पार्टी का नारा और भी अधिक शानदार जनादेश के साथ मोदी सरकार के लिए तीसरा कार्यकाल सुरक्षित करने के उसके दृढ़ संकल्प को रेखांकित करता है। असहमत आवाज़ों से जुड़ने के लिए एक समिति बनाने में नेतृत्व का सक्रिय दृष्टिकोण आंतरिक मुद्दों को संबोधित करने और आगामी चुनावी लड़ाई में एक एकजुट और दुर्जेय मोर्चा पेश करने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

अगर मरीज के परिजनों की मर्जी नहीं तो..', ICU के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की नई गाइडलाइन्स

 केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आईसीयू में प्रवेश पर दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें कहा गया है कि अस्पताल गंभीर रूप से बीमार मरीजों को गहन देखभाल इकाई में भर्ती नहीं कर सकते हैं यदि वे या उनके रिश्तेदार इनकार करते हैं। 24 विशेषज्ञों द्वारा संकलित दिशानिर्देश के अनुसार आईसीयू प्रवेश मानदंड अंग विफलता, अंग समर्थन की आवश्यकता, या चिकित्सा स्थिति में गिरावट की आशंका पर आधारित होना चाहिए। दिशानिर्देश जीवित इच्छाशक्ति या आईसीयू देखभाल के खिलाफ उन्नत निर्देश वाले मरीजों को भर्ती करने के खिलाफ सलाह देते हैं और संसाधन सीमाओं के साथ महामारी या आपदा की स्थिति के दौरान कम प्राथमिकता मानदंडों को उजागर करते हैं।

आईसीयू में प्रवेश के लिए मानदंड में चेतना का परिवर्तित स्तर, हेमोडायनामिक अस्थिरता, श्वसन सहायता की आवश्यकता, गंभीर बीमारी के लिए गहन निगरानी या अंग समर्थन की आवश्यकता, प्रमुख अंतःक्रियात्मक जटिलताएं और स्थिति बिगड़ने की आशंका शामिल है। गंभीर रूप से बीमार मरीज़ जिन्हें आईसीयू में भर्ती नहीं किया जाना चाहिए, उनमें उपचार सीमा योजना, लिविंग विल या आईसीयू देखभाल के खिलाफ उन्नत निर्देश के साथ प्रवेश से इनकार करने वाले, असाध्य रूप से बीमार मरीज़ों को व्यर्थ माना जाता है, और महामारी या आपदा के दौरान कम प्राथमिकता वाले मानदंड वाले मरीज़ शामिल हैं। दिशानिर्देश आईसीयू डिस्चार्ज के लिए मानदंडों को भी रेखांकित करते हैं, जिसमें शारीरिक मापदंडों को सामान्य के करीब लाना, गंभीर बीमारी का समाधान और स्थिरता, और उपचार-सीमित निर्णय या उपशामक देखभाल के लिए आईसीयू डिस्चार्ज के लिए समझौता शामिल है।

आईसीयू बिस्तर की प्रतीक्षा कर रहे मरीज के लिए निगरानी मापदंडों में रक्तचाप, नाड़ी दर, श्वसन दर, श्वास पैटर्न, हृदय गति, ऑक्सीजन संतृप्ति, मूत्र उत्पादन और तंत्रिका संबंधी स्थिति सहित अन्य शामिल हैं। दिशानिर्देशों का उद्देश्य रोगी की स्थिति और उपलब्ध संसाधनों को ध्यान में रखते हुए आईसीयू प्रवेश में स्पष्टता और मानकीकरण प्रदान करना है।

जहां 500 सालों तक हुआ कुरान का जिक्र, वो मस्जिद हमने खो दी..', सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी नहीं मान रहे ओवैसी, मुस्लिमों को फिर भड़काया

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी फिर से सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाले बयान दे रहे हैं। ओवैसी ने अब मुसलमान युवकों से कहा है कि वो लोग मस्जिदों को बचाएं। ओवैसी ने कहा कि 500 वर्षों तक जहां कुरान-ए-करीम का जिक्र हुआ, वही मस्जिद हमने खो दी है। हालाँकि, हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने पूरे वीडियों में कहीं भी अयोध्या और राम मंदिर का नाम तो नहीं किया, लेकिन उन्होंने 500 सालों की बात कहकर बाबरी मस्जिद की तरफ इशारा कर दिया।

ओवैसी ने खुद ये वीडियो सोशल मीडिया पर डाला है, उन्होंने मुस्लिम युवाओं से कहा है कि, 'नौजवानों मैं तुमसे कह रहा हूँ, हमारी मस्जिद हमने गवाँ दी और वहाँ अब क्या हो रहा है, आप देख रहे हैं। नौजवानों, क्या तुम्हारे दिलों में तकलीफ नहीं होती? जहाँ 500 साल हमने बैठकर कुरान-ए-करीम का जिक्र किया हो, आज वो जगह हमारे पास नहीं है। नौजवानो, क्या तुमको नहीं दिख रहा कि तीन-चार और मस्जिदों को लेकर साजिश हो रही है, जिसमें दिल्ली की सुनहरी मस्जिद भी शामिल है।'

ओवैसी ने आगे कहा कि, 'ये जो ताकतें हैं, तुम्हारे दिलों से इत्तेहाद (मुस्लिम एकता का एक शब्द) को निकालना चाहते हैं। ये ऐसा क्यों चाहते हैं? क्योंकि मिल्ली गीरत (इस्लामी भावना) को समाप्त कर दिया जाए, मिल्ली हमीयत को खत्म कर दिया जाए। सालों की मेहनत के बाद आज हमारा एक मुकाम हमने खड़ा किया है। आपको इन चीजों पर ध्यान देना है। आप अपनी मिल्ली हमीयत को, अपनी ताकत को बरकरार रखो। अपनी मस्जिदों को आबाद रखो। कहीं ऐसा ना हो कि ये मस्जिदें हमसे छीन ली जाएँ। मुझे उम्मीद है, इंशाअल्लाह, आज का ये नौजवान जो कल का बूढ़ा होगा, वो अपनी नजरों को आगे रखकर, अपने दिमाग पर जोर डालकर सोचेगा कि किस तरह मुझे अपने आपको, अपने खानदान को, अपने शहर को, अपने मुहल्ले को बचाना है। इत्तेहाद एक ताकत है, इत्तेहाद एक नेमत है।' 

हालांकि, गौर करने वाली बात ये भी है कि, सुप्रीम कोर्ट ने सालों तक सुनवाई करने के बाद, तमाम सबूतों को देखने के बाद, हिन्दुओं से उनके आराध्य श्रीराम के अस्तित्व का मांगने के बाद, ये फैसला सुनाया था कि, उस जगह पर मंदिर ही था, जिसे तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी, इसलिए न्याय के हिसाब से उस स्थान पर मंदिर ही होना चाहिए। भारत के बहुसंख्यक समुदाय ने संविधान के दायरे में रहकर और सालों लम्बी कानूनी लड़ाई लड़कर अपना हक हासिल किया। लेकिन, अब उसी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ओवैसी जैसे नेता मुस्लिम समुदाय को भड़का रहे हैं, लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। वो कई बार ये भी कह चुके हैं कि, इंशाल्लाह, बाबरी जिन्दा है और जिन्दा रहेगी। क्या सुप्रीम कोर्ट के तहत ये बातें हेट स्पीच में नहीं आती हैं, या क्या अदालत इसपर स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई नहीं कर सकती ? यदि इन भड़काऊ भाषणों से कहीं कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा ? वो भी ऐसे समय में जब 500 वर्ष बाद पुनः बने राम मंदिर में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है।

राम मंदिर के बाद अब देश में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) की बारी, लोकसभा चुनाव से पहले किया जाएगा अधिसूचित

केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा की तैयारी शुरू कर दी है। चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है। साथ ही सरकार के सूत्रों ने मंगलवार को यह भी बताया कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के नियम को लोकसभा चुनाव की घोषणा से बहुत पहले अधिसूचित किया जाएगा। बता दें कि इस विधेयक को दिसंबर 2019 में संसद द्वारा मंजूरी दे दी गई थी। इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की वकालत की गई है। वहीं, मुसलमानों को इससे अलग रखा गया है। 

कानून पारित होने के तुरंत बाद देश भर में इसके खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। इस कानून के अधिनियमों को कभी भी अधिसूचित नहीं किया गया है। सरकार ने नियम बनाने के लिए बार-बार विस्तार की मांग की है। सूत्रों ने बताया है कि नियम अब तैयार हैं। ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार है। सूत्रों ने यह भी बताया कि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी आवेदन कर सकते हैं। सूत्रों ने कहा, “हम आने वाले दिनों में सीएए के लिए नियम जारी करने जा रहे हैं। एक बार नियम जारी होने के बाद कानून लागू किया जा सकता है और पात्र लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है।”

यह पूछे जाने पर कि क्या लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले नियमों को अधिसूचित किया जाएगा, सूत्रों ने कहा, “सभी चीजें जगह पर हैं और हां उन्हें चुनाव से पहले लागू किए जाने की संभावना है।” आवेदकों को वह वर्ष बताना होगा जब उन्होंने यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था। आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा।

एक अधिकारी ने कहा, ''केंद्र ने नियम बनाने के लिए अब तक आठ तारीखों के विस्तार का लाभ उठाया है। पिछले दो वर्षों में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां दी गई हैं।"

पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल में भाजपा की सभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भाजपा सीएए के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, “दीदी (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) अक्सर सीएए के बारे में हमारे शरणार्थी भाइयों को गुमराह करती हैं। मैं स्पष्ट कर दूं कि सीएए देश का कानून है और इसे कोई नहीं रोक सकता। सबको नागरिकता मिलने वाली है। यह हमारी पार्टी की प्रतिबद्धता है।''

मोदी सरकार द्वारा लाए गए सबसे ध्रुवीकरण वाले कानूनों में से एक के कार्यान्वयन में देरी के लिए सरकार द्वारा कई कारण जिम्मेदार ठहराए गए हैं। इसका एक प्रमुख कारण असम और त्रिपुरा समेत कई राज्यों में सीएए को लेकर हो रहा जोरदार विरोध है। असम में विरोध प्रदर्शन इस आशंका से भड़के थे कि यह कानून राज्य की जनसांख्यिकी को स्थायी रूप से बदल देगा। विरोध प्रदर्शन केवल उत्तर-पूर्व तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी फैल गया। सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हैं।