सरायकेला : चांडिल जलाशय में उमड़ने लगा पर्यटकों का भीड़,अब यहां मछली पालन के साथ होने लगी मोती की खेती
सरायकेला : चांडिल जलाशय में उमड़ने लगा पर्यटकों का भीड़ ,नौका बिहार करने बाद लोगो को नए चीज देखने मिल रहा है ।यहां मोती की खेती और मोती की खरीदारी होने लगी है।
जलाशय में क्रेज कल्चर के माध्यम से मछली की खेती होता है साथ ही मोती की खेती होने पर यहां चर्चा की विषय बना है।फिलहाल मोती की मार्केटिंग का समस्या बना हुआ है ,जिसे विस्थापित बुद्धेश्वर टुड्डू ने सरकार से इसके मार्केटिंग की सुविधा कराए जाने की मांग की है।इस पर लाखो रुपये खर्चा करने के बाद मार्केटिंग नही होने के कारण इस नए व्यवसाय के लिए दिक्कत आ खड़ी हुई है।
सरायकेला खरसावां जिला के बहुउद्देशीय परियोजना के तहत बनाया गया यह डेम विस्थापित हुए 116 गांव के 84 मौजा के ग्रामीण विस्थापन का शिकार हुए और दर दर भटक रहे हैं। निजी स्तर से आज चांडिल बांध विस्थापित मत्स्यजीवी स्वावलंबी सरकारी समिति लि०निबंधन स० 1 सिंहभूम 01/10/2005 द्वारा पुर्ती एग्रोटेक पर्ल मोती फार्मिंग रिचर्स एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हेहल रांची के निर्देशक बुधन सिंह पूर्ति के माध्यम से विस्थापित चांडिल के गागोडिह निवासी बुद्धेश्वर टुड्डू द्वारा पहली बार लाखो रुपया इन्वेष्ट करके चांडिल डेम जलाशय नौका विहार में 15000 हजार सीप (छीनूक) छोड़ा है। ठंड के समय छोड़ने से मोती की अच्छी क्वालिटी होती है। सीप को कुछ दिन तक भूखा रखने पर जल्द सीप का मुंह खुलता है और सीजर करके के समय सहज रूप से सीप के अंदर नियुकेलशी डाला जाता है। इस बार दो प्रकार के नियुकेलशी सीप के अंदर जेसे रिंग के लिए और लॉकेट के लिए डेढ़ बर्ष के अंदर बनकर तैयार हो गया , सिर्फ मार्केटिंग की जरूरत है सरकार की तरफ से अबतक कोई मार्केटिंग की सुविधा उपल्ध नही कराया गया।
बुद्धेश्वर टुड्डू को रांची के मोती फार्मिग निर्देशक बुधन सिंह पूर्ति प्रोत्साहित किया था ,कहा गया था मछली की खेती के साथ मोती के खेती करने पर आपको कमाई की जरिया बनेगा । जिससे देखते हुए क्रेज कल्चर के अंदर और खुले जलाशय में सीप में मोती की फार्मिग करके खेती करने लगा ।
विस्थापित किसान द्वारा आज 22000 हजार हैक्टर जलाशय में मछली की खेती की जाती है। जेसे समूद्र में ज्वार भाटा आने के बाद सीप के अंदर बालू की कण घुस जाता हे,जिसके बाद मोती बनता है, सीप को एक बेग के अंदर 24 का आसपास डाला जाता है ,ओर पानी की 15 से 20 फिट गहरा पानी में डाला जाता है। हमारे चांडिल जलाशय में नेचरल तारीके से मोती की खेती सीप के अंदर बालू के जगह न्यूकेलशी (नाभिक) फसाया जाता है ,जिसे नेचरल तरीके से मोती एक से डेढ़ बर्ष में तैयार हो जाता है।
आज हमारे पास मोती है परंतु मार्केटिंग का कोई सुविधा उपलब्ध नहीं चांडिल छोटी जगह पर खपत करना मुश्किल है, जिससे देखते यह लोगो आने वाले पर्यटकों के साथ आपने द्वारा नेचरल रूप से बनाया गया मोती की जानकारी उपलब्ध कराते देखा गया और बताए गया मोती प्रति पीस 500 रखा गया ।
खेती करने बाद इन किसानों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है । सीप को जलाशय से निकलने के बाद रांची या हैदराबाद जैसे शहर के लेबरोट्री में भेजना पड़ता है,जहा साफ सफाई किया जाता है। जिसका सुविधा चांडिल में नही है।
किसानों का कहना है सरकार हमारे प्रति ध्यान दे और हमे मार्केटिंग की सुविधा उपलब्ध कराया जाए ,जिसे और विस्थापित इस मोती की खेती में जोड़ पाए ।पर्यटन विभाग और झारखंड सरकार की अनदेखी के कारण आज विस्थापित स्वरोजगार की सुविधा उपलब्ध नहीं कराया गया ।
Dec 13 2023, 14:54