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ट्रंप के वफादार काश पटेल एफबीआई निदेशक बने, सीनेट की मंजूरी मिलते ही दहाड़ा

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय मूल के काश पटेल को फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी एफबीआई का निदेशक नियुक्त किया है। डोनाल्ड ट्रंप के कट्टर समर्थक काश पटेल की एफबीआई चीफ के रूप में नियुक्ति को सीनेट ने हरी झंडी दिखा दी। सीनेट में हुए मतदान में उन्हें 51-49 के मामूली अंतर से बहुमत हासिल हुआ। डेमोक्रेट सांसदों ने काश पटेल की नियुक्ति का विरोध किया। उनकी योग्यता पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि काश पटेल ट्रंप के इशारे पर काम करेंगे और रिपब्लिकन नेता के विरोधियों को निशाना बनाएंगे।

ट्रंप का जताया आभार

एफबीआई के निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप का आभार व्यक्त किया और एजेंसी को 'पारदर्शी, जवाबदेह और न्याय के लिए प्रतिबद्ध' बनाने की कसम खाई। सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए, काश पटेल ने कहा, मैं संघीय जांच ब्यूरो के नौवें निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने पर सम्मानित महसूस हो रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप और अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को आपके अटूट विश्वास और समर्थन के लिए धन्यवाद।

अमेरिका के खिलाफ काम करने वालों को चेतावनी

काश पटेल ने लिखा कि डायरेक्टर के रूप में मेरा मिशन साफ है, हम एक ऐसी एफबीआई का पुनर्निर्माण करेंगे जिस पर अमेरिकी लोगों को गर्व हो। और जो लोग अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वे इसे अपनी चेतावनी मानें। हम इस दुनिया के हर कोने में आपका पता लगा लेंगे।

काश पटेल की नियुक्ति के बाद तय है कि एफबीआई में बड़े बदलाव संभव हैं। काश पटेल पहले ही कह चुके हैं कि वह एफबीआई में बड़े बदलाव करेंगे। इनमें वाशिंगटन स्थित मुख्यालय में कर्मचारियों की संख्या में कमी और खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों के बजाय अपराध से निपटने जैसे एफबीआई के पारंपरिक कामों पर नए सिरे से जोर देना शामिल है। पिछले दो दशकों में एफबीआई की भूमिका को खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों से परिभाषित किया जाता रहा है।

मोदी को हराना चाहते थे बाइडेन, इसलिए कराई करोड़ों की फंडिंग”, डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा आरोप

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अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत में खर्च करने के लिए दिए गये 21 मिलियन डॉलर लगभग 182 करोड़ रुपए के एक फंड को खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले पर एक बार फिर प्रतिक्रिया दी है। ट्रंप ने बुधवार को बड़ा दावा करते हुए कहा कि पिछली बाइडन सरकार की ओर से किसी और को जिताने की कोशिश की जा रही थी। शायद वे (पूर्ववर्ती बाइडन सरकार) भारत में किसी और की सरकार बनवाना चाहते थे। इससे पहले ट्रंप ने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले का बचाव किया था। ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दिए गए, जबकि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है।

ट्रंप ने एफआईआई प्रायोरिटी समिट में कहा, हमें भारत में मतदाता टर्नआउट पर 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की आवश्यकता क्यों है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारतीय सरकार को बताना होगा। यह एक पूरी तरह से नया खुलासा है। हमें भारत सरकार को बताना होगा, क्योंकि जब हम सुनते हैं कि रूस ने हमारे देश में 2 डॉलर का खर्च किया है तो यह हमारे लिए बड़ा मुद्दा बन जाता है।

बुधवार को भी ट्रंप ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि 'हम भारत को 2.1 करोड़ डॉलर क्यों दे रहे थे? उनके पास पहले से ही काफी पैसा है। वे सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देश हैं। हम मुश्किल से उनके बाजार में अपना सामान भेज पा रहे हैं क्योंकि उनके टैरिफ बहुत ज्यादा हैं। मैं भारत और उनके प्रधानमंत्री का सम्मान करता हूं, लेकिन भारत के चुनाव में 2.1 करोड़ की फंडिंग देने का क्या मतलब है? यहां के मतदान प्रतिशत का क्या?'

हाल ही में एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई विभाग ने विभिन्न देशों के लिए फंडिंग रोकने की घोषणा की थी, जिसमें भारत में मतदान को बढ़ावा देने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि भी शामिल थी। डीओजीई कहा था कि अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए बनाए गए 21 मिलियन डॉलर के कार्यक्रम में कटौती करने का फैसला किया है। डीओजीई अमेरिकी सरकार के खर्चे में कटौती कर रहा है। सरकारी दक्षता विभाग ने फिलहाल यूएसएआईडी द्वारा की जाने वाली अधिकतर फंडिंग पर रोक लगा दी है।डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने संघीय सरकार की लागत में कटौती करने के उद्देश्य से सरकारी दक्षता विभाग का गठन किया था।

भारत को मिलने वाला है दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार, क्या एफ-35 पर डील हो गई पक्की?


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भारत को दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार मिलने वाला है। दरअसल, अमेरिका ने भारत को दुनिया के सबसे खतरनाक स्टेल्थ फाइटर जेट F-35 बेचने की पेशकश कर दी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट बेचेगा। ट्रंप ने वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, इस साल से हम भारत को कई अरब डॉलर के हथियार बेचने जा रहे हैं। हम भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट देने का रास्ता भी साफ कर रहे हैं।

ट्रंप की इस पेशकश के बाद भारत ने कहा है कि अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान खरीदने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है। यह अभी सिर्फ एक प्रस्ताव के स्तर पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात के बाद विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, यह अभी प्रस्ताव के चरण में है। मुझे नहीं लगता कि इस बारे में औपचारिक प्रक्रिया अभी तक शुरू हुई है।

क्यों है F-35 लड़ाकू विमान की डील मुश्किल?

वहीं, अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान के सौदे में कई अड़चनें आ सकती हैं। भारत के रूस के साथ अच्छे रक्षा संबंध हैं और अमेरिका उन देशों को एफ-35 बेचने में सावधानी बरतता है जहां से इसकी तकनीक लीक होने का खतरा हो सकता है। इसी वजह से अमेरिका ने तुर्की को एफ-35 देने से मना कर दिया था, क्योंकि उसे डर था कि रूस इसकी तकनीक चुरा सकता है। यह सौदा भारत को रूस से दूर करने की अमेरिका की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. क्योंकि भारत ने 2018 में रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था।

F-35 की खासियत

F-35 लाइटनिंग-II एक अत्याधुनिक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर विमान है। अमेरीका की लॉकहीड मार्टिन ने इसे विकसित किया है। यह फाइटर अलग अलग तरह के कांबेट मिशनों को अंजाम देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें एयर टू एयर, एयर टू ग्राउंड और इंटेलिजेंस जानकारी इकट्ठा करने और स्ट्रेजिक मिशन को अंजाम दिया जा सकता है। इसके 3 वेरियंट है। एयर फोर्स के लिए F-35A, F-35B वर्टिकल टेक ऑफ लैंडिंग क्षमता वाला और F-35C नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर से इस्तेमाल किए जाने वाला है। यह एक सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट है। इसकी रफ्तार 1.6 मैक प्रतिघंट है. अधिकत्म 50000 फिट की ऊंचाई तक आसानी से उड़ान भर सकता है। एक बार टेकऑफ लेने के बाद यह 2200 किलोमीटर तक उड़ सकता है। इसमें स्टील्थ तकनीक के चलते यह दुश्मन की रड़ार की पकड़ में नहीं आता। F-35 KS इंटर्नल कंपार्टमेंट में AMRAAM, AIM-120, और एंटी-शिप मिसाइल जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें आसानी से ले जा सकता है। इस एयरक्राफ्ट में एक 25 MM की गन भी लगी है। इसका कॉकपिट पूरी तरह से डिजिटल है।

अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के खिलाफ ट्रंप का बड़ा फैसला, जानिए क्यों लगाया बैन?

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अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद से ही लगातार वो अपने एक्‍शन मोड में हैं। ट्रंप एक के बाद एक फैसलों से दुनिया का ध्‍यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। अब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका और उसके करीबी इजरायल को निशाना बनाने वाले अंतरराष्‍ट्रीय अपराध न्यायालय पर प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल, आईसीसी ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इसी के आधार पर अमेरिका ने ये कार्रवाई की है।

डोनाल्ड ट्रंप ने आईसीसी पर बैन लगाने की वजह बताते हुए कहा, अमेरिका और हमारे करीबी सहयोगी इजराइल को निशाना बनाने वाली नाजायज और निराधार कार्रवाइयों में शामिल होने और नेतन्याहू और उनके पूर्व रक्षा मंत्री, योव गैलेंट के खिलाफ “आधारहीन गिरफ्तारी वारंट” जारी करके अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की वजह से बैन लगाया गया है। साथ ही आदेश में कहा गया है कि अमेरिका और इजराइल पर आईसीसी का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। इसी के साथ आदेश में कोर्ट को लेकर कहा गया है कि अदालत ने दोनों देशों के खिलाफ अपने एक्शन से एक “खतरनाक मिसाल” सामने रखी है।

आदेश में कहा गया है कि अमेरिका आईसीसी के “उल्लंघनों” के लिए जिम्मेदार लोगों पर ठोस एक्शन लेगा। उल्लंघन करने पर एक्शन में लोगों की प्रोपर्टी को ब्लॉक किया जा सकता है। इसी के साथ आईसीसी अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों को अमेरिका में एंट्री भी नहीं दी जाएगी।

नेतन्याहू के वाशिंगटन दौरे के बाद कार्रवाई

ट्रंप की यह कार्रवाई कोर्ट पर तब हुई है जब इजराइल के पीएम नेतन्याहू वाशिंगटन के दौरे पर पहुंचे थे। उन्होंने और ट्रंप ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में बातचीत की और नेतन्याहू ने गुरुवार का कुछ समय कैपिटल हिल में सांसदों के साथ बैठक में बिताया। इसी के बाद अब ट्रंप ने उस कोर्ट पर बैन लगा दिया है जिसने नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था।

आईसीसी को मान्यता नहीं देते अमेरिका-इजराइल

बता दे कि अमेरिका और न ही इजराइल इस अदालत के सदस्य है और वो इसको मान्यता भी नहीं देते हैं। इजराइल की ही तरह अमेरिका भी कोर्ट के सदस्य देशों में शामिल नहीं है। कोर्ट के सदस्यों में 124 देश शामिल है। इससे पहले भी कोर्ट पर ट्रंप का चाबुक चला है। साल 2020 में, अफगानिस्तान पर अमेरिका सहित कई जगह से हुए युद्ध के चलते जांच शुरू की गई थी, लेकिन इस जांच के चलते ट्रंप ने वकील फतौ बेनसौदा पर बैन लगा दिया था. हालांकि, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन प्रतिबंधों को हटा दिया था।

दुनिया भर में आर्थिक मदद पहुँचाने वाली अमेरिकी एजेंसी यूएसएड बंद, जानें भारत के लिए क्यों अहम

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजेंसी यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले विश्व भर में यूएसएड एजेंसी के प्रत्यक्ष कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया उसके बाद उसपर “ताला जड़” दिया।

मंगलवार कोऑआनलाइन पोस्ट किए गए एक नोटिस में कर्मचारियों को घर लौटने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है। वाशिंगटन में भी यूएसएड के सैकड़ों कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और उनसे कहा गया है कि शहर में एजेंसी के कार्यालय सप्ताह के शेष दिनों के लिए बंद रहेंगे।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को पदभार संभालने के बाद अरबपति एलन मस्क को तकरीबन सभी अमेरिकी विदेशी सहायता की समीक्षा करने का निर्देश दिया था। ट्रंप की ओर से विदेशी सहायता पर रोक लगाए जाने के बाद हजारों यूएसएड कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया और दुनियाभर में इसके कार्यक्रम बंद कर दिए गए।

ट्रंप ने कहा- एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे

राष्ट्रपति ट्रंप और उनके सबसे शीर्ष के सलाहकार, अरबपति एलन मस्क यूएसएड के कड़े आलोचक रहे हैं। बीते सोमवार को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया कि इस एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और नाम और अन्य जानकारियां साझा नहीं कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन में सरकारी खर्च कटौती के लिए बने विभाग के अनौपचारिक प्रमुख एलन मस्क ने भी यूएसएड को बंद करने की बात कही थी। बीते एक सप्ताह में यूएसएड के दो शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और एजेंसी की वेबसाइट डाउन हो गई। यूएसएड पर भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता के आरोपों के अलावा मस्क ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

मस्क ने बताया आपराधिक संगठन

अपने मालिकाना हक वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर मस्क ने यूएसएड को 'बुराई', 'एक आपराधिक संगठन' और 'कट्टर वामपंथी राजनीतिक मनोवैज्ञानिक अभियान' (आम तौर पर षड्यंत्रकारी या बुरे कारनामों को ढंकने के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) कहा। सोमवार को एक्स पर एक लाइव स्ट्रीम के दौरान उन्होंने कहा, इस पूरे मामले से निजात पाने की जरूरत है। यह लाइलाज है... हम इसे बंद करने जा रहे हैं।

भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को भी मिली मदद

बता दें कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) अमेरिकी सरकार की एक वैधानिक निकाय है। यूएसएड पूरी दुनिया में गैर सरकारी संगठनों, सहायता ग्रुपों और ग़ैर लाभकारी संस्थाओं को अरबों डॉलर की मदद देती है। हालांकि, ये बात कम ही लोगों को पता है कि इस एजेंसी से मिलने वाला पैसा भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को जाता था। फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (FIF), जो कि हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (LET) का मुखौटा संगठन है। इस समूह को यूएसएड के माध्यम से फंडिंग मिलती थी। यह फाउंडेशन पाकिस्तान से संचालित होता है और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया गया है।

भारत को कितनी मदद मिलती है?

यूएसएड के जरिए भारत को भी मदद मिलती है। भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, स्वच्छ ऊर्जा, पानी और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में सहायता मिली है। खुद यूएसएड की वेबसाइट पर भारत को दी गई मदद के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, इसने पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता, पर्यावरण, क्लीन एनर्जी, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई।

यूएसएड की मदद से भारत में 8 कृषि विश्वविद्यालय, 14 इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, देश का पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी यूएसएड की मदद से स्थापित किया गया था।

पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली

लेकिन साल 2004 में सूनामी के दौरान भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सशर्त विदेशी मदद लेने की नीति में बदलाव किया, जिसके बाद यूएसएड से भारत को मिलने वाली मदद में अपेक्षाकृत कमी आई। हालांकि कोविड महामारी के बाद से भारत को मिलने वाली यूएसएड मदद में बढ़ोतरी देखी गई। अमेरिकी सरकार के फॉरेन असिस्टेंस पोर्टल के मुताबिक़, पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली। जबकि 2001 से लेकर अबतक भारत को 2.86 अरब डॉलर की मदद मिल चुकी है। पोर्टल के अनुसार, यूएसएड की ओर से भारत को 2022 में सबसे अधिक 22.82 करोड़ डॉलर की मदद मिली, 2023 में 17.57 करोड़ डॉलर और 2024 में 15.19 करोड़ डॉलर की मदद मिली। यूएसएड से मदद पाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर रहा है।

गाजा पर कब्जा करेगा अमेरिका, नेतन्याहू से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप का ऐलान, जानें क्या है प्लान?

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर बड़ा बयान देकर खलबली मचा दी है।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा पट्टी को लेकर चौंकाने वाला बयान दिया है। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका गाजा पट्टी पर अपना नियंत्रण करेगा। मंगलवार को नेतन्याहू के साथ बातचीत के बाद वॉइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने ये बड़ा बयान दिया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि हम गाजा का मालिकाना लेना चाहते हैं, इसके बाद गाजा में मौजूद खतरनाक बमों और अन्य हथियारों को नष्ट करने की जिम्मेदारी हमारी होगी। अमेरिका ध्वस्त या जर्जर हो चुकी इमारतों का पुनर्निर्माण कराएगा और गाजा का आर्थिक विकास करेगा। इससे गाजा में रोजगार और लोगों को घर मिलेंगे।

गाजा को अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र बनाने का प्लान

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि गाजा एक 'अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र' होगा। ट्रंप ने आगे बताया कि अमेरिका द्वारा पुनर्निर्माण पूरा करने के बाद दुनिया भर के लोग गाजा में रहेंगे। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी उनमें से हो सकते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह गाजा में सुरक्षा शून्य को भरने के लिए अमेरिकी सैनिकों को भेजने के लिए तैयार हैं, ट्रंप ने इससे इनकार नहीं किया।

सेना उतारने को तैयार ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि गाजा के पुनर्निर्माण में अगर अमेरिकी सेना की जरूरत पड़ी तो वे सेना को भी गाजा में तैनात करने पर विचार कर सकते हैं। ट्रंप ने कहा कि अगर यह जरूरी हुआ तो हम ऐसा करेंगे।

फिलिस्तीनियों को निकालने की बात

ट्रंप ने एक बार फिर दोहराया कि फिलिस्तीनियों को गाजा के 'नरक के गड्ढे' से निकाल दिया जाना चाहिए। ट्रंप ने कहा कि गाजा को एक ही लोगों के पुनर्निर्माण और कब्जे की प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहिए। उन्होंने कहा कि गाजा की आबादी को इंसानी दिल रखने वाले देशों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए और दावा किया कि कई लोग हैं जो ऐसा करना चाहते हैं।

नेतन्याहू ने किया ट्रंप की योजना का समर्थन

ट्रंप के साथ उस वक्त बेंजामिन नेतन्याहू भी बैठे थे और खुश हो रहे थे। जब ट्रंप यह सब बोल रहे थे, तब नेतन्याहू मुस्कुरा रहे थे। बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ट्रंप की इस योजना का समर्थन किया और इसे पर खुशी जाहिर की। नेतन्याहू ने कहा कि हम चाहते हैं कि गाजा भविष्य में अब कभी भी इस्राइल के लिए खतरा न बने, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप इसे एक नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं। ट्रंप का विचार अलग है और इससे गाजा का भविष्य बदल जाएगा। इस विचार पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। नेतन्याहू ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो इससे इतिहास बदल सकता है।

बैकफुट पर डोनाल्ड ट्रंप! कनाडा और मैक्सिको पर टैरिफ का फैसला टाला, इतने दिनों की दी राहत

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लगता है ग्लोबल टैरिफ वॉर टल गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा और मेक्सिको पर टैरिफ लगाने के फैसले को 30 दिन के लिए टाल दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मेक्सिको के बाद अब कनाडा को भी टैरिफ से 30 दिनों के लिए राहत दे दी है। सोमवार को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्रंप से फोन पर बातचीत के बाद बताया कि अमेरिका ने शनिवार को लगाए गए टैरिफ को 30 दिनों के लिए रोकने का फैसला किया है। इसके पहले अमेरिका ने मेक्सिको के खिलाफ भी टैरिफ पर 30 दिन की रोक लगाई थी। ट्रंप ने टैरिफ को रोकने का फैसला तब लिया है, जब दोनों देशों ने सीमा सुरक्षा और ड्रग्स की तस्करी को रोकने के लिए कदम उठाए हैं।

ट्रंप ने बताया कि ट्रूडो और शिनबाम के साथ उनकी बातचीत अच्छी रही। दोनों देशों ने अमेरिका के साथ बॉर्डर को सिक्योर करने पर सहमति जताई है। इसके बाद ट्रम्प ने दोनों देशों पर टैरिफ रोकने से जुड़े कार्यकारी आदेश पर साइन किए। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा कि ‘बहुत ही दोस्ताना बातचीत’ के बाद उन्होंने ‘एक महीने की अवधि के लिए टैरिफ को तुरंत रोकने पर सहमति जताई। ट्रंप ने कहा कि इस एक महीने के दौरान दोनों देशों के बीच और बातचीत होगी, ताकि एक ‘डील’ हासिल की जा सके।

फेंटेनाइल तस्करी पर रोक लगाने की दिशा में कदम

ट्रंप के फैसले के बाद ट्रूडो ने एक्स पर पोस्ट कर बताया कि टैरिफ पर रोक के बदले में कनाडा बॉर्डर सिक्योरिटी में भारी निवेश करेगा। साथ ही संगठित अपराध, फेंटेनाइल की तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए दोनों देश मिलकर कनाडा-यूएस ज्वाइंट स्ट्राइक फोर्स बनाएंगे। इसके अलावा कनाडा फेंटेनाइल जार (फेंटेनाइल की तस्करी रोकने वाला अधिकारी) की नियुक्ति भी करेगा। तस्करी में शामिल कार्टेल (समूह) को आतंकवादी समूहों की सूची में शामिल किया जाएगा। ट्रूडो ने इस आदेश पर साइन भी कर दिए हैं। कनाडा इस पर 200 मिलियन डॉलर खर्च करेगा।

टैरिफ से बचने के लिए मेक्सिको करेगा ये काम

मेक्सिको ने भी ट्रंप की चिंताओं को दूर करने के लिए बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिका में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए सीमा पर 10000 नेशनल गार्ड्स की तैनाती का आदेश दिया है।

इससे पहले शनिवार को ट्रंप ने घोषणा की थी कि वे कनाडा और मैक्सिको से इम्पोर्टेड सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर 10 फीसदी टैरिफ का प्रस्ताव भी किया। उन्होंने कनाडा से आयातित ऊर्जा संसाधनों पर भी 10 फीसदी टैरिफ लगाने की योजना बनाई थी।

शपथ के बाद से ही एक्शन में ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ के बाद कनाडा, मेक्सिको और चीन पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। उन्होंने 1 फरवरी को इससे जुड़े आदेशों पर साइन भी कर दिया था। ट्रंप के इस फैसले के बाद कनाडा ने भी 2 फरवरी को अमेरिका पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। इसमें अमेरिका से होने वाले 106 अरब डॉलर के निर्यात को शामिल किया गया था। दूसरी तरफ मेक्सिको ने भी जवाबी कार्रवाई की बात कही थी।

शुरू हुआ ट्रे़ड वॉरः ट्रंप ने कनाडा-चीन-मैक्सिको को दिया आयात शुल्क का झटका, मिला करारा जवाब

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मेक्सिको और चीन पर नए टैरिफ लगा दिए हैं। ट्रंप ने कनाडा, मेक्सिको और चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है, जो शनिवार शाम से लागू हो गया। शनिवार को उन्होंने कनाडा और मैक्सिको से आयात होने वाले सामानों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने के आदेश पर साइन किया। ट्रंप ने चीन से आने वाले सामानों पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगाया है। अमेरिका के इस फैसले से एक ट्रे़ड वॉर (व्यापार युद्ध) छिड़ गया है। ट्रेड के क्षेत्र में ये तनातनी आने वाले दिनों में और ज्यादा बढ़ने जा रही है। ऐसा होता है तो सालाना 2.1 ट्रिलियन डॉलर ( करीब 181.72 लाख करोड़ रुपए) से अधिक का कारोबार प्रभावित होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से आने वाले समान पर टैरिफ और चीनी प्रोडक्ट्स पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का फैसला किया है। ट्रंप के इस ऐलान का कई देशों में विरोध किया जा रहा है और कनाडा, मेक्सिको से लेकर चीन तक ने अमेरिका को करारा जवाब दिया है।

कनाडा- मेक्सिके ने दिखाए कड़े तेवर

कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि कनाडा भी अमेरिकी सामानों पर 25% शुल्क लगाएगा। ट्रूडो ने ऐलान किया कि ओटावा भी इसी तरह जवाब देगा और 155 बिलियन डॉलर तक के अमेरिकी आयातों पर 25 फीसद टैरिफ लगाएगा। ट्रूडो ने कहा कि इन टैरिफ में अमेरिकी बीयर, वाइन और बॉर्बन के साथ-साथ फल और फलों के जूस भी शामिल होंगे, जिसमें ट्रम्प के गृह राज्य फ्लोरिडा का संतरे का जूस भी शामिल है। कनाडा कपड़ों, खेल के प्रोडक्ट और घरेलू उपकरणों सहित अन्य समान को भी लक्षित करेगा।

अमेरिकी सरकार के मुताबिक 2022 में कनाडा देश के सामानों का सबसे बड़ा खरीदार था, जिसकी खरीद 356.5 बिलियन डॉलर है। अनुमान है कि 2023 में हर दिन 2.7 बिलियन डॉलर का सामान और सर्विस अमेरिका-कनाडा के बीच हुआ है।

इसी तरह मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने भी घोषणा की कि उन्होंने अपने अर्थव्यवस्था मंत्री को मैक्सिकन निर्यात पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए व्यापक शुल्कों के विरुद्ध नई टैरिफ और गैर-टैरिफ नीतियां लागू करने का आदेश दिया है।

चीन ने जताया विरोध

चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाने के अमेरिकी आदेश को लेकर चीन ने तीखा विरोध दर्ज कराया है। रविवार को वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि चीन विश्व व्यापार संगठन में मुकदमा दायर करेगा और अपने हितों की रक्षा के लिए उचित जवाबी कदम उठाएगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने कहा, अमेरिका की ओर से एकतरफा टैरिफ वृद्धि विश्व व्यापार संगठन के नियमों का गंभीर उल्लंघन है। यह कदम न केवल अमेरिका के अपने मुद्दों को हल करने में नाकाम है बल्कि चीन-अमेरिका के सामान्य आर्थिक और व्यापार सहयोग को भी बाधित करता है। चीन अमेरिकी फैसले का कड़ा विरोध करता है और इससे बेहद असंतुष्ट है।

भारत के बजट से अमेरिका को क्या होगा फायदा? ट्रंप के 'टैरिफ वॉर' के बीच सीतारमण का जवाब

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को लोकसभा में बजट पेश किया। इस बजट में मध्य वर्ग को बड़ी राहत दी गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती और विकास दर पर उठ रहे सवालों के बीच इस बजट में अलग अलग वर्ग को राहत देने की कोशिश दिखाई दे रही है। इन सबके बीच देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक ऐसा भी ऐलान किया है, जो डोनाल्ड ट्रंप को काफी खुश कर सकता है। जी हां, सरकार ने कुछ कस्टम ड्यूटी कम की है। जिसका असर अमेरिका से होने वाले निर्यात पर पड़ता हुआ दिखाई दे सकता है।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने रविवार को कहा कि मोटरसाइकिल और स्वाद बढ़ाने वाले कृत्रिम तत्व जैसे प्रोडक्ट्स पर बजट में कस्टम ड्यूटी घटाई गई है। इससे अमेरिकी निर्यात को लाभ होगा। जीटीआरआई ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत की‘टैरिफ किंग’के रूप में आलोचना करने के बाद देश के बजट ने कई उत्पादों पर महत्वपूर्ण शुल्क कटौती की गई है। इनमें से कई प्रोडक्ट्स अमेरिकी एक्सपोर्ट को फायदा पहुंचाने वाले हैं। जीटीआरआई ने बयान में कहा,‘‘टेक्नोलॉजी, व्हीकल, इंडस्ट्रीयल रॉ मटेरियल और स्क्रैप के आयात पर शुल्क कटौती के साथ भारत व्यापार को सुविधाजनक बनाने की दिशा में कदम उठाता दिख रहा है।

बदलेगा ट्रंप का नजरिया?

डोनाल्ड ट्रंप हमेशा भारत की टैरिफ किंग के तौर पर आलोचना करते हैं, लेकिन बजट ने कई उत्पादों पर महत्वपूर्ण शुल्क कटौती से अमेरिकी निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। उम्मीद की जा रही है कि बजट में इस ऐलान के बाद ट्रंप का नजरिया बदलेगा।

बता दें कि अप्रैल-नवंबर, 2024-25 के दौरान अमेरिका 82.52 अरब डॉलर व्यापार के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। इसके पहले 2021-24 के दौरान अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था।

इन चीजों से शुल्क घटी

फ्रोजेन मछली पेस्ट (सुरीमी) और जलीय चारे के लिए मछली हाइड्रोलाइजेट पर शुल्क घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है. इन पर अभी तक लागू शुल्क क्रमश: 30 प्रतिशत और 15 प्रतिशत था. रसायन क्षेत्र में, पिरिमिडीन और पिपरेजीन यौगिकों पर शुल्क को मौजूदा 10 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया गया है. इनका उपयोग खाद्य और पेय पदार्थों को एक निश्चित स्वाद देने के लिए किया जाता है. इसी तरह कम कैलोरी वाले यौगिक सोर्बिटोल पर शुल्क मौजूदा 30 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके अलावा, प्रमुख खनिजों (लिथियम, कोबाल्ट, सीसा, जस्ता, तांबा) और कोबाल्ट पाउडर के अपशिष्ट और स्क्रैप पर सीमा शुल्क खत्म कर दिया गया है. मंत्रालय ने कहा कि इन उपायों से आयात निर्भरता कम होगी, उत्पादन लागत कम होगी और प्रमुख उद्योगों में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी

ट्रंप भारत के दोस्त या दुश्मन? जानें विदेश मंत्री एस जयशंकर का जवाब

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बन चुके हैं। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप की वापसी के बाद से ही दुनियाभर में हड़कंप मचा हुआ है। ट्रंप ने भारत का नाम लेकर भी धमकी दी है। ऐसे में भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर खुलकर बात की है।

जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों का उल्लेख करते हुए डोनाल्ड ट्रंप को लेकर अहम बात कही। जयशंकर ने ट्रंप को एक 'अमेरिकी राष्ट्रवादी' बताया। विदेश मंत्री जयशंकर दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एक कार्यक्रम में मौजूद थे। इस दौरान ट्रंप भारत के मित्र हैं या शत्रु, इस बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए जयशंकर ने कहा कि मैंने हाल ही में उनके (ट्रंप के) शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था और हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया गया। मेरा मानना है कि वह एक अमेरिकी राष्ट्रवादी हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि ट्रंप की नीतियां वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की विदेश नीति राष्ट्रीय हित से निर्देशित होती रहेगी।

जयशंकर ने कहा, ट्रंप बहुत सी चीजें बदलेंगे। हो सकता है कि कुछ चीजें उम्मीद के अनुरूप नहीं हों, लेकिन हमें देश के हित में विदेश नीतियों के संदर्भ में खुला रहना होगा। कुछ मुद्दे हो सकते हैं जिन पर हम एकमत न हों, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे होंगे जहां चीजें हमारे दायरे में होंगी। जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंधों पर भी जोर देते हुए कहा क‍ि अमेरिका के साथ हमारे संबंध मजबूत हैं और मोदी के ट्रंप के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं।

भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव पर क्या बोले

इस दौरान, एस जयशंकर ने भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और देश के बारे में बदलती धारणाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा, यहां तक कि अब गैर-भारतीय भी खुद को भारतीय कहते हैं, उन्हें लगता है कि इससे उन्हें विमान में सीट मिलने में मदद मिलेगी।

खुद के राजनीति में आने पर क्या कहा?

डॉ. एस. जयशंकर ने शिक्षा क्षेत्र और कूटनीति से राजनीति में आने का उल्लेख करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नौकरशाह बनूंगा। राजनीति में मैं अचानक आ गया, या तो इसे भाग्य कहें, या इसे मोदी कहें। उन्होंने (प्रधानमंत्री मोदी) मुझे इस तरह से आगे बढ़ाया कि कोई भी मना नहीं कर सका। उन्होंने रेखांकित किया कि विदेश में रहने वाले भारतीय अभी भी समर्थन के लिए अपनी मातृभूमि पर निर्भर हैं और कहा, जो भी देश के बाहर जाते हैं, वे हमारे पास ही आते हैं। बाहर हम ही रखवाले हैं।

ट्रंप के वफादार काश पटेल एफबीआई निदेशक बने, सीनेट की मंजूरी मिलते ही दहाड़ा

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय मूल के काश पटेल को फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी एफबीआई का निदेशक नियुक्त किया है। डोनाल्ड ट्रंप के कट्टर समर्थक काश पटेल की एफबीआई चीफ के रूप में नियुक्ति को सीनेट ने हरी झंडी दिखा दी। सीनेट में हुए मतदान में उन्हें 51-49 के मामूली अंतर से बहुमत हासिल हुआ। डेमोक्रेट सांसदों ने काश पटेल की नियुक्ति का विरोध किया। उनकी योग्यता पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि काश पटेल ट्रंप के इशारे पर काम करेंगे और रिपब्लिकन नेता के विरोधियों को निशाना बनाएंगे।

ट्रंप का जताया आभार

एफबीआई के निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप का आभार व्यक्त किया और एजेंसी को 'पारदर्शी, जवाबदेह और न्याय के लिए प्रतिबद्ध' बनाने की कसम खाई। सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए, काश पटेल ने कहा, मैं संघीय जांच ब्यूरो के नौवें निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने पर सम्मानित महसूस हो रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप और अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को आपके अटूट विश्वास और समर्थन के लिए धन्यवाद।

अमेरिका के खिलाफ काम करने वालों को चेतावनी

काश पटेल ने लिखा कि डायरेक्टर के रूप में मेरा मिशन साफ है, हम एक ऐसी एफबीआई का पुनर्निर्माण करेंगे जिस पर अमेरिकी लोगों को गर्व हो। और जो लोग अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वे इसे अपनी चेतावनी मानें। हम इस दुनिया के हर कोने में आपका पता लगा लेंगे।

काश पटेल की नियुक्ति के बाद तय है कि एफबीआई में बड़े बदलाव संभव हैं। काश पटेल पहले ही कह चुके हैं कि वह एफबीआई में बड़े बदलाव करेंगे। इनमें वाशिंगटन स्थित मुख्यालय में कर्मचारियों की संख्या में कमी और खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों के बजाय अपराध से निपटने जैसे एफबीआई के पारंपरिक कामों पर नए सिरे से जोर देना शामिल है। पिछले दो दशकों में एफबीआई की भूमिका को खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों से परिभाषित किया जाता रहा है।

मोदी को हराना चाहते थे बाइडेन, इसलिए कराई करोड़ों की फंडिंग”, डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा आरोप

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अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत में खर्च करने के लिए दिए गये 21 मिलियन डॉलर लगभग 182 करोड़ रुपए के एक फंड को खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले पर एक बार फिर प्रतिक्रिया दी है। ट्रंप ने बुधवार को बड़ा दावा करते हुए कहा कि पिछली बाइडन सरकार की ओर से किसी और को जिताने की कोशिश की जा रही थी। शायद वे (पूर्ववर्ती बाइडन सरकार) भारत में किसी और की सरकार बनवाना चाहते थे। इससे पहले ट्रंप ने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले का बचाव किया था। ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दिए गए, जबकि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है।

ट्रंप ने एफआईआई प्रायोरिटी समिट में कहा, हमें भारत में मतदाता टर्नआउट पर 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की आवश्यकता क्यों है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारतीय सरकार को बताना होगा। यह एक पूरी तरह से नया खुलासा है। हमें भारत सरकार को बताना होगा, क्योंकि जब हम सुनते हैं कि रूस ने हमारे देश में 2 डॉलर का खर्च किया है तो यह हमारे लिए बड़ा मुद्दा बन जाता है।

बुधवार को भी ट्रंप ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि 'हम भारत को 2.1 करोड़ डॉलर क्यों दे रहे थे? उनके पास पहले से ही काफी पैसा है। वे सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देश हैं। हम मुश्किल से उनके बाजार में अपना सामान भेज पा रहे हैं क्योंकि उनके टैरिफ बहुत ज्यादा हैं। मैं भारत और उनके प्रधानमंत्री का सम्मान करता हूं, लेकिन भारत के चुनाव में 2.1 करोड़ की फंडिंग देने का क्या मतलब है? यहां के मतदान प्रतिशत का क्या?'

हाल ही में एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई विभाग ने विभिन्न देशों के लिए फंडिंग रोकने की घोषणा की थी, जिसमें भारत में मतदान को बढ़ावा देने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि भी शामिल थी। डीओजीई कहा था कि अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए बनाए गए 21 मिलियन डॉलर के कार्यक्रम में कटौती करने का फैसला किया है। डीओजीई अमेरिकी सरकार के खर्चे में कटौती कर रहा है। सरकारी दक्षता विभाग ने फिलहाल यूएसएआईडी द्वारा की जाने वाली अधिकतर फंडिंग पर रोक लगा दी है।डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने संघीय सरकार की लागत में कटौती करने के उद्देश्य से सरकारी दक्षता विभाग का गठन किया था।

भारत को मिलने वाला है दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार, क्या एफ-35 पर डील हो गई पक्की?


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भारत को दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार मिलने वाला है। दरअसल, अमेरिका ने भारत को दुनिया के सबसे खतरनाक स्टेल्थ फाइटर जेट F-35 बेचने की पेशकश कर दी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट बेचेगा। ट्रंप ने वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, इस साल से हम भारत को कई अरब डॉलर के हथियार बेचने जा रहे हैं। हम भारत को एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट देने का रास्ता भी साफ कर रहे हैं।

ट्रंप की इस पेशकश के बाद भारत ने कहा है कि अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान खरीदने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है। यह अभी सिर्फ एक प्रस्ताव के स्तर पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात के बाद विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, यह अभी प्रस्ताव के चरण में है। मुझे नहीं लगता कि इस बारे में औपचारिक प्रक्रिया अभी तक शुरू हुई है।

क्यों है F-35 लड़ाकू विमान की डील मुश्किल?

वहीं, अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान के सौदे में कई अड़चनें आ सकती हैं। भारत के रूस के साथ अच्छे रक्षा संबंध हैं और अमेरिका उन देशों को एफ-35 बेचने में सावधानी बरतता है जहां से इसकी तकनीक लीक होने का खतरा हो सकता है। इसी वजह से अमेरिका ने तुर्की को एफ-35 देने से मना कर दिया था, क्योंकि उसे डर था कि रूस इसकी तकनीक चुरा सकता है। यह सौदा भारत को रूस से दूर करने की अमेरिका की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. क्योंकि भारत ने 2018 में रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था।

F-35 की खासियत

F-35 लाइटनिंग-II एक अत्याधुनिक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर विमान है। अमेरीका की लॉकहीड मार्टिन ने इसे विकसित किया है। यह फाइटर अलग अलग तरह के कांबेट मिशनों को अंजाम देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें एयर टू एयर, एयर टू ग्राउंड और इंटेलिजेंस जानकारी इकट्ठा करने और स्ट्रेजिक मिशन को अंजाम दिया जा सकता है। इसके 3 वेरियंट है। एयर फोर्स के लिए F-35A, F-35B वर्टिकल टेक ऑफ लैंडिंग क्षमता वाला और F-35C नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर से इस्तेमाल किए जाने वाला है। यह एक सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट है। इसकी रफ्तार 1.6 मैक प्रतिघंट है. अधिकत्म 50000 फिट की ऊंचाई तक आसानी से उड़ान भर सकता है। एक बार टेकऑफ लेने के बाद यह 2200 किलोमीटर तक उड़ सकता है। इसमें स्टील्थ तकनीक के चलते यह दुश्मन की रड़ार की पकड़ में नहीं आता। F-35 KS इंटर्नल कंपार्टमेंट में AMRAAM, AIM-120, और एंटी-शिप मिसाइल जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें आसानी से ले जा सकता है। इस एयरक्राफ्ट में एक 25 MM की गन भी लगी है। इसका कॉकपिट पूरी तरह से डिजिटल है।

अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के खिलाफ ट्रंप का बड़ा फैसला, जानिए क्यों लगाया बैन?

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अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद से ही लगातार वो अपने एक्‍शन मोड में हैं। ट्रंप एक के बाद एक फैसलों से दुनिया का ध्‍यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। अब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका और उसके करीबी इजरायल को निशाना बनाने वाले अंतरराष्‍ट्रीय अपराध न्यायालय पर प्रतिबंध लगा दिया है। दरअसल, आईसीसी ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। इसी के आधार पर अमेरिका ने ये कार्रवाई की है।

डोनाल्ड ट्रंप ने आईसीसी पर बैन लगाने की वजह बताते हुए कहा, अमेरिका और हमारे करीबी सहयोगी इजराइल को निशाना बनाने वाली नाजायज और निराधार कार्रवाइयों में शामिल होने और नेतन्याहू और उनके पूर्व रक्षा मंत्री, योव गैलेंट के खिलाफ “आधारहीन गिरफ्तारी वारंट” जारी करके अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने की वजह से बैन लगाया गया है। साथ ही आदेश में कहा गया है कि अमेरिका और इजराइल पर आईसीसी का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। इसी के साथ आदेश में कोर्ट को लेकर कहा गया है कि अदालत ने दोनों देशों के खिलाफ अपने एक्शन से एक “खतरनाक मिसाल” सामने रखी है।

आदेश में कहा गया है कि अमेरिका आईसीसी के “उल्लंघनों” के लिए जिम्मेदार लोगों पर ठोस एक्शन लेगा। उल्लंघन करने पर एक्शन में लोगों की प्रोपर्टी को ब्लॉक किया जा सकता है। इसी के साथ आईसीसी अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों को अमेरिका में एंट्री भी नहीं दी जाएगी।

नेतन्याहू के वाशिंगटन दौरे के बाद कार्रवाई

ट्रंप की यह कार्रवाई कोर्ट पर तब हुई है जब इजराइल के पीएम नेतन्याहू वाशिंगटन के दौरे पर पहुंचे थे। उन्होंने और ट्रंप ने मंगलवार को व्हाइट हाउस में बातचीत की और नेतन्याहू ने गुरुवार का कुछ समय कैपिटल हिल में सांसदों के साथ बैठक में बिताया। इसी के बाद अब ट्रंप ने उस कोर्ट पर बैन लगा दिया है जिसने नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था।

आईसीसी को मान्यता नहीं देते अमेरिका-इजराइल

बता दे कि अमेरिका और न ही इजराइल इस अदालत के सदस्य है और वो इसको मान्यता भी नहीं देते हैं। इजराइल की ही तरह अमेरिका भी कोर्ट के सदस्य देशों में शामिल नहीं है। कोर्ट के सदस्यों में 124 देश शामिल है। इससे पहले भी कोर्ट पर ट्रंप का चाबुक चला है। साल 2020 में, अफगानिस्तान पर अमेरिका सहित कई जगह से हुए युद्ध के चलते जांच शुरू की गई थी, लेकिन इस जांच के चलते ट्रंप ने वकील फतौ बेनसौदा पर बैन लगा दिया था. हालांकि, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन प्रतिबंधों को हटा दिया था।

दुनिया भर में आर्थिक मदद पहुँचाने वाली अमेरिकी एजेंसी यूएसएड बंद, जानें भारत के लिए क्यों अहम

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजेंसी यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले विश्व भर में यूएसएड एजेंसी के प्रत्यक्ष कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया उसके बाद उसपर “ताला जड़” दिया।

मंगलवार कोऑआनलाइन पोस्ट किए गए एक नोटिस में कर्मचारियों को घर लौटने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है। वाशिंगटन में भी यूएसएड के सैकड़ों कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और उनसे कहा गया है कि शहर में एजेंसी के कार्यालय सप्ताह के शेष दिनों के लिए बंद रहेंगे।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को पदभार संभालने के बाद अरबपति एलन मस्क को तकरीबन सभी अमेरिकी विदेशी सहायता की समीक्षा करने का निर्देश दिया था। ट्रंप की ओर से विदेशी सहायता पर रोक लगाए जाने के बाद हजारों यूएसएड कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया और दुनियाभर में इसके कार्यक्रम बंद कर दिए गए।

ट्रंप ने कहा- एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे

राष्ट्रपति ट्रंप और उनके सबसे शीर्ष के सलाहकार, अरबपति एलन मस्क यूएसएड के कड़े आलोचक रहे हैं। बीते सोमवार को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने आरोप लगाया कि इस एजेंसी को 'कट्टर वामपंथी सनकी' चला रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं और नाम और अन्य जानकारियां साझा नहीं कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन में सरकारी खर्च कटौती के लिए बने विभाग के अनौपचारिक प्रमुख एलन मस्क ने भी यूएसएड को बंद करने की बात कही थी। बीते एक सप्ताह में यूएसएड के दो शीर्ष अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया और एजेंसी की वेबसाइट डाउन हो गई। यूएसएड पर भ्रष्टाचार और आर्थिक अनियमितता के आरोपों के अलावा मस्क ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

मस्क ने बताया आपराधिक संगठन

अपने मालिकाना हक वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर मस्क ने यूएसएड को 'बुराई', 'एक आपराधिक संगठन' और 'कट्टर वामपंथी राजनीतिक मनोवैज्ञानिक अभियान' (आम तौर पर षड्यंत्रकारी या बुरे कारनामों को ढंकने के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द) कहा। सोमवार को एक्स पर एक लाइव स्ट्रीम के दौरान उन्होंने कहा, इस पूरे मामले से निजात पाने की जरूरत है। यह लाइलाज है... हम इसे बंद करने जा रहे हैं।

भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को भी मिली मदद

बता दें कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) अमेरिकी सरकार की एक वैधानिक निकाय है। यूएसएड पूरी दुनिया में गैर सरकारी संगठनों, सहायता ग्रुपों और ग़ैर लाभकारी संस्थाओं को अरबों डॉलर की मदद देती है। हालांकि, ये बात कम ही लोगों को पता है कि इस एजेंसी से मिलने वाला पैसा भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठनों को जाता था। फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (FIF), जो कि हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (LET) का मुखौटा संगठन है। इस समूह को यूएसएड के माध्यम से फंडिंग मिलती थी। यह फाउंडेशन पाकिस्तान से संचालित होता है और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया गया है।

भारत को कितनी मदद मिलती है?

यूएसएड के जरिए भारत को भी मदद मिलती है। भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, स्वच्छ ऊर्जा, पानी और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में सहायता मिली है। खुद यूएसएड की वेबसाइट पर भारत को दी गई मदद के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, इसने पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता, पर्यावरण, क्लीन एनर्जी, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई।

यूएसएड की मदद से भारत में 8 कृषि विश्वविद्यालय, 14 इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, देश का पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी यूएसएड की मदद से स्थापित किया गया था।

पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली

लेकिन साल 2004 में सूनामी के दौरान भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सशर्त विदेशी मदद लेने की नीति में बदलाव किया, जिसके बाद यूएसएड से भारत को मिलने वाली मदद में अपेक्षाकृत कमी आई। हालांकि कोविड महामारी के बाद से भारत को मिलने वाली यूएसएड मदद में बढ़ोतरी देखी गई। अमेरिकी सरकार के फॉरेन असिस्टेंस पोर्टल के मुताबिक़, पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली। जबकि 2001 से लेकर अबतक भारत को 2.86 अरब डॉलर की मदद मिल चुकी है। पोर्टल के अनुसार, यूएसएड की ओर से भारत को 2022 में सबसे अधिक 22.82 करोड़ डॉलर की मदद मिली, 2023 में 17.57 करोड़ डॉलर और 2024 में 15.19 करोड़ डॉलर की मदद मिली। यूएसएड से मदद पाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर रहा है।

गाजा पर कब्जा करेगा अमेरिका, नेतन्याहू से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति ट्रंप का ऐलान, जानें क्या है प्लान?

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर बड़ा बयान देकर खलबली मचा दी है।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा पट्टी को लेकर चौंकाने वाला बयान दिया है। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका गाजा पट्टी पर अपना नियंत्रण करेगा। मंगलवार को नेतन्याहू के साथ बातचीत के बाद वॉइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने ये बड़ा बयान दिया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि हम गाजा का मालिकाना लेना चाहते हैं, इसके बाद गाजा में मौजूद खतरनाक बमों और अन्य हथियारों को नष्ट करने की जिम्मेदारी हमारी होगी। अमेरिका ध्वस्त या जर्जर हो चुकी इमारतों का पुनर्निर्माण कराएगा और गाजा का आर्थिक विकास करेगा। इससे गाजा में रोजगार और लोगों को घर मिलेंगे।

गाजा को अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र बनाने का प्लान

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि गाजा एक 'अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र' होगा। ट्रंप ने आगे बताया कि अमेरिका द्वारा पुनर्निर्माण पूरा करने के बाद दुनिया भर के लोग गाजा में रहेंगे। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी उनमें से हो सकते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह गाजा में सुरक्षा शून्य को भरने के लिए अमेरिकी सैनिकों को भेजने के लिए तैयार हैं, ट्रंप ने इससे इनकार नहीं किया।

सेना उतारने को तैयार ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि गाजा के पुनर्निर्माण में अगर अमेरिकी सेना की जरूरत पड़ी तो वे सेना को भी गाजा में तैनात करने पर विचार कर सकते हैं। ट्रंप ने कहा कि अगर यह जरूरी हुआ तो हम ऐसा करेंगे।

फिलिस्तीनियों को निकालने की बात

ट्रंप ने एक बार फिर दोहराया कि फिलिस्तीनियों को गाजा के 'नरक के गड्ढे' से निकाल दिया जाना चाहिए। ट्रंप ने कहा कि गाजा को एक ही लोगों के पुनर्निर्माण और कब्जे की प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहिए। उन्होंने कहा कि गाजा की आबादी को इंसानी दिल रखने वाले देशों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए और दावा किया कि कई लोग हैं जो ऐसा करना चाहते हैं।

नेतन्याहू ने किया ट्रंप की योजना का समर्थन

ट्रंप के साथ उस वक्त बेंजामिन नेतन्याहू भी बैठे थे और खुश हो रहे थे। जब ट्रंप यह सब बोल रहे थे, तब नेतन्याहू मुस्कुरा रहे थे। बेंजामिन नेतन्याहू ने भी ट्रंप की इस योजना का समर्थन किया और इसे पर खुशी जाहिर की। नेतन्याहू ने कहा कि हम चाहते हैं कि गाजा भविष्य में अब कभी भी इस्राइल के लिए खतरा न बने, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप इसे एक नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं। ट्रंप का विचार अलग है और इससे गाजा का भविष्य बदल जाएगा। इस विचार पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। नेतन्याहू ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो इससे इतिहास बदल सकता है।

बैकफुट पर डोनाल्ड ट्रंप! कनाडा और मैक्सिको पर टैरिफ का फैसला टाला, इतने दिनों की दी राहत

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लगता है ग्लोबल टैरिफ वॉर टल गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा और मेक्सिको पर टैरिफ लगाने के फैसले को 30 दिन के लिए टाल दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मेक्सिको के बाद अब कनाडा को भी टैरिफ से 30 दिनों के लिए राहत दे दी है। सोमवार को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्रंप से फोन पर बातचीत के बाद बताया कि अमेरिका ने शनिवार को लगाए गए टैरिफ को 30 दिनों के लिए रोकने का फैसला किया है। इसके पहले अमेरिका ने मेक्सिको के खिलाफ भी टैरिफ पर 30 दिन की रोक लगाई थी। ट्रंप ने टैरिफ को रोकने का फैसला तब लिया है, जब दोनों देशों ने सीमा सुरक्षा और ड्रग्स की तस्करी को रोकने के लिए कदम उठाए हैं।

ट्रंप ने बताया कि ट्रूडो और शिनबाम के साथ उनकी बातचीत अच्छी रही। दोनों देशों ने अमेरिका के साथ बॉर्डर को सिक्योर करने पर सहमति जताई है। इसके बाद ट्रम्प ने दोनों देशों पर टैरिफ रोकने से जुड़े कार्यकारी आदेश पर साइन किए। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा कि ‘बहुत ही दोस्ताना बातचीत’ के बाद उन्होंने ‘एक महीने की अवधि के लिए टैरिफ को तुरंत रोकने पर सहमति जताई। ट्रंप ने कहा कि इस एक महीने के दौरान दोनों देशों के बीच और बातचीत होगी, ताकि एक ‘डील’ हासिल की जा सके।

फेंटेनाइल तस्करी पर रोक लगाने की दिशा में कदम

ट्रंप के फैसले के बाद ट्रूडो ने एक्स पर पोस्ट कर बताया कि टैरिफ पर रोक के बदले में कनाडा बॉर्डर सिक्योरिटी में भारी निवेश करेगा। साथ ही संगठित अपराध, फेंटेनाइल की तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए दोनों देश मिलकर कनाडा-यूएस ज्वाइंट स्ट्राइक फोर्स बनाएंगे। इसके अलावा कनाडा फेंटेनाइल जार (फेंटेनाइल की तस्करी रोकने वाला अधिकारी) की नियुक्ति भी करेगा। तस्करी में शामिल कार्टेल (समूह) को आतंकवादी समूहों की सूची में शामिल किया जाएगा। ट्रूडो ने इस आदेश पर साइन भी कर दिए हैं। कनाडा इस पर 200 मिलियन डॉलर खर्च करेगा।

टैरिफ से बचने के लिए मेक्सिको करेगा ये काम

मेक्सिको ने भी ट्रंप की चिंताओं को दूर करने के लिए बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिका में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए सीमा पर 10000 नेशनल गार्ड्स की तैनाती का आदेश दिया है।

इससे पहले शनिवार को ट्रंप ने घोषणा की थी कि वे कनाडा और मैक्सिको से इम्पोर्टेड सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर 10 फीसदी टैरिफ का प्रस्ताव भी किया। उन्होंने कनाडा से आयातित ऊर्जा संसाधनों पर भी 10 फीसदी टैरिफ लगाने की योजना बनाई थी।

शपथ के बाद से ही एक्शन में ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ के बाद कनाडा, मेक्सिको और चीन पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। उन्होंने 1 फरवरी को इससे जुड़े आदेशों पर साइन भी कर दिया था। ट्रंप के इस फैसले के बाद कनाडा ने भी 2 फरवरी को अमेरिका पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। इसमें अमेरिका से होने वाले 106 अरब डॉलर के निर्यात को शामिल किया गया था। दूसरी तरफ मेक्सिको ने भी जवाबी कार्रवाई की बात कही थी।

शुरू हुआ ट्रे़ड वॉरः ट्रंप ने कनाडा-चीन-मैक्सिको को दिया आयात शुल्क का झटका, मिला करारा जवाब

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मेक्सिको और चीन पर नए टैरिफ लगा दिए हैं। ट्रंप ने कनाडा, मेक्सिको और चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है, जो शनिवार शाम से लागू हो गया। शनिवार को उन्होंने कनाडा और मैक्सिको से आयात होने वाले सामानों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने के आदेश पर साइन किया। ट्रंप ने चीन से आने वाले सामानों पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगाया है। अमेरिका के इस फैसले से एक ट्रे़ड वॉर (व्यापार युद्ध) छिड़ गया है। ट्रेड के क्षेत्र में ये तनातनी आने वाले दिनों में और ज्यादा बढ़ने जा रही है। ऐसा होता है तो सालाना 2.1 ट्रिलियन डॉलर ( करीब 181.72 लाख करोड़ रुपए) से अधिक का कारोबार प्रभावित होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से आने वाले समान पर टैरिफ और चीनी प्रोडक्ट्स पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का फैसला किया है। ट्रंप के इस ऐलान का कई देशों में विरोध किया जा रहा है और कनाडा, मेक्सिको से लेकर चीन तक ने अमेरिका को करारा जवाब दिया है।

कनाडा- मेक्सिके ने दिखाए कड़े तेवर

कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि कनाडा भी अमेरिकी सामानों पर 25% शुल्क लगाएगा। ट्रूडो ने ऐलान किया कि ओटावा भी इसी तरह जवाब देगा और 155 बिलियन डॉलर तक के अमेरिकी आयातों पर 25 फीसद टैरिफ लगाएगा। ट्रूडो ने कहा कि इन टैरिफ में अमेरिकी बीयर, वाइन और बॉर्बन के साथ-साथ फल और फलों के जूस भी शामिल होंगे, जिसमें ट्रम्प के गृह राज्य फ्लोरिडा का संतरे का जूस भी शामिल है। कनाडा कपड़ों, खेल के प्रोडक्ट और घरेलू उपकरणों सहित अन्य समान को भी लक्षित करेगा।

अमेरिकी सरकार के मुताबिक 2022 में कनाडा देश के सामानों का सबसे बड़ा खरीदार था, जिसकी खरीद 356.5 बिलियन डॉलर है। अनुमान है कि 2023 में हर दिन 2.7 बिलियन डॉलर का सामान और सर्विस अमेरिका-कनाडा के बीच हुआ है।

इसी तरह मैक्सिकन राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने भी घोषणा की कि उन्होंने अपने अर्थव्यवस्था मंत्री को मैक्सिकन निर्यात पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए व्यापक शुल्कों के विरुद्ध नई टैरिफ और गैर-टैरिफ नीतियां लागू करने का आदेश दिया है।

चीन ने जताया विरोध

चीनी वस्तुओं पर टैरिफ लगाने के अमेरिकी आदेश को लेकर चीन ने तीखा विरोध दर्ज कराया है। रविवार को वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि चीन विश्व व्यापार संगठन में मुकदमा दायर करेगा और अपने हितों की रक्षा के लिए उचित जवाबी कदम उठाएगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने कहा, अमेरिका की ओर से एकतरफा टैरिफ वृद्धि विश्व व्यापार संगठन के नियमों का गंभीर उल्लंघन है। यह कदम न केवल अमेरिका के अपने मुद्दों को हल करने में नाकाम है बल्कि चीन-अमेरिका के सामान्य आर्थिक और व्यापार सहयोग को भी बाधित करता है। चीन अमेरिकी फैसले का कड़ा विरोध करता है और इससे बेहद असंतुष्ट है।

भारत के बजट से अमेरिका को क्या होगा फायदा? ट्रंप के 'टैरिफ वॉर' के बीच सीतारमण का जवाब

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को लोकसभा में बजट पेश किया। इस बजट में मध्य वर्ग को बड़ी राहत दी गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती और विकास दर पर उठ रहे सवालों के बीच इस बजट में अलग अलग वर्ग को राहत देने की कोशिश दिखाई दे रही है। इन सबके बीच देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक ऐसा भी ऐलान किया है, जो डोनाल्ड ट्रंप को काफी खुश कर सकता है। जी हां, सरकार ने कुछ कस्टम ड्यूटी कम की है। जिसका असर अमेरिका से होने वाले निर्यात पर पड़ता हुआ दिखाई दे सकता है।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने रविवार को कहा कि मोटरसाइकिल और स्वाद बढ़ाने वाले कृत्रिम तत्व जैसे प्रोडक्ट्स पर बजट में कस्टम ड्यूटी घटाई गई है। इससे अमेरिकी निर्यात को लाभ होगा। जीटीआरआई ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत की‘टैरिफ किंग’के रूप में आलोचना करने के बाद देश के बजट ने कई उत्पादों पर महत्वपूर्ण शुल्क कटौती की गई है। इनमें से कई प्रोडक्ट्स अमेरिकी एक्सपोर्ट को फायदा पहुंचाने वाले हैं। जीटीआरआई ने बयान में कहा,‘‘टेक्नोलॉजी, व्हीकल, इंडस्ट्रीयल रॉ मटेरियल और स्क्रैप के आयात पर शुल्क कटौती के साथ भारत व्यापार को सुविधाजनक बनाने की दिशा में कदम उठाता दिख रहा है।

बदलेगा ट्रंप का नजरिया?

डोनाल्ड ट्रंप हमेशा भारत की टैरिफ किंग के तौर पर आलोचना करते हैं, लेकिन बजट ने कई उत्पादों पर महत्वपूर्ण शुल्क कटौती से अमेरिकी निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। उम्मीद की जा रही है कि बजट में इस ऐलान के बाद ट्रंप का नजरिया बदलेगा।

बता दें कि अप्रैल-नवंबर, 2024-25 के दौरान अमेरिका 82.52 अरब डॉलर व्यापार के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। इसके पहले 2021-24 के दौरान अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था।

इन चीजों से शुल्क घटी

फ्रोजेन मछली पेस्ट (सुरीमी) और जलीय चारे के लिए मछली हाइड्रोलाइजेट पर शुल्क घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है. इन पर अभी तक लागू शुल्क क्रमश: 30 प्रतिशत और 15 प्रतिशत था. रसायन क्षेत्र में, पिरिमिडीन और पिपरेजीन यौगिकों पर शुल्क को मौजूदा 10 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया गया है. इनका उपयोग खाद्य और पेय पदार्थों को एक निश्चित स्वाद देने के लिए किया जाता है. इसी तरह कम कैलोरी वाले यौगिक सोर्बिटोल पर शुल्क मौजूदा 30 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके अलावा, प्रमुख खनिजों (लिथियम, कोबाल्ट, सीसा, जस्ता, तांबा) और कोबाल्ट पाउडर के अपशिष्ट और स्क्रैप पर सीमा शुल्क खत्म कर दिया गया है. मंत्रालय ने कहा कि इन उपायों से आयात निर्भरता कम होगी, उत्पादन लागत कम होगी और प्रमुख उद्योगों में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी

ट्रंप भारत के दोस्त या दुश्मन? जानें विदेश मंत्री एस जयशंकर का जवाब

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बन चुके हैं। 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप की वापसी के बाद से ही दुनियाभर में हड़कंप मचा हुआ है। ट्रंप ने भारत का नाम लेकर भी धमकी दी है। ऐसे में भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस बीच उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर खुलकर बात की है।

जयशंकर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों का उल्लेख करते हुए डोनाल्ड ट्रंप को लेकर अहम बात कही। जयशंकर ने ट्रंप को एक 'अमेरिकी राष्ट्रवादी' बताया। विदेश मंत्री जयशंकर दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में एक कार्यक्रम में मौजूद थे। इस दौरान ट्रंप भारत के मित्र हैं या शत्रु, इस बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए जयशंकर ने कहा कि मैंने हाल ही में उनके (ट्रंप के) शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था और हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया गया। मेरा मानना है कि वह एक अमेरिकी राष्ट्रवादी हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि ट्रंप की नीतियां वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती हैं, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की विदेश नीति राष्ट्रीय हित से निर्देशित होती रहेगी।

जयशंकर ने कहा, ट्रंप बहुत सी चीजें बदलेंगे। हो सकता है कि कुछ चीजें उम्मीद के अनुरूप नहीं हों, लेकिन हमें देश के हित में विदेश नीतियों के संदर्भ में खुला रहना होगा। कुछ मुद्दे हो सकते हैं जिन पर हम एकमत न हों, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे होंगे जहां चीजें हमारे दायरे में होंगी। जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंधों पर भी जोर देते हुए कहा क‍ि अमेरिका के साथ हमारे संबंध मजबूत हैं और मोदी के ट्रंप के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध हैं।

भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव पर क्या बोले

इस दौरान, एस जयशंकर ने भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और देश के बारे में बदलती धारणाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा, यहां तक कि अब गैर-भारतीय भी खुद को भारतीय कहते हैं, उन्हें लगता है कि इससे उन्हें विमान में सीट मिलने में मदद मिलेगी।

खुद के राजनीति में आने पर क्या कहा?

डॉ. एस. जयशंकर ने शिक्षा क्षेत्र और कूटनीति से राजनीति में आने का उल्लेख करते हुए कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नौकरशाह बनूंगा। राजनीति में मैं अचानक आ गया, या तो इसे भाग्य कहें, या इसे मोदी कहें। उन्होंने (प्रधानमंत्री मोदी) मुझे इस तरह से आगे बढ़ाया कि कोई भी मना नहीं कर सका। उन्होंने रेखांकित किया कि विदेश में रहने वाले भारतीय अभी भी समर्थन के लिए अपनी मातृभूमि पर निर्भर हैं और कहा, जो भी देश के बाहर जाते हैं, वे हमारे पास ही आते हैं। बाहर हम ही रखवाले हैं।