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जेलेंस्की के “झुकने” के बाद भी कम नहीं हुआ ट्रंप का “गुस्सा”, अमेरिका ने यूक्रेन की सैन्य मदद पर लगाई रोक

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर बुरी तरह भड़के हुए है। बीते दिनों राष्ट्रपति ट्रंप और जेलेंस्की के बीच नोंकझोंक के बाद स्थिति और बिगड़ गई। इस तकरार के बाद अमेरिका ने तुरंत प्रभाव से यूक्रेन की सैन्य सहायता रोक दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को दी जाने वाली सभी सैन्य सहायता को रोकने का आदेश दिया है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी रक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि ट्रंप प्रशासन ने फैसला किया है कि जब तक यूक्रेन के नेता शांति के लिए साफ नीयत नहीं दिखाते, तब तक सभी सैन्य सहायता रोकी जाएगी। इसका मतलब है कि जो भी अमेरिकी सैन्य उपकरण यूक्रेन को भेजे जाने थे, उन्हें फिलहाल रोक दिया गया है। इसमें वे हथियार भी शामिल हैं जो पहले से जहाजों या विमानों में लोड हो चुके थे या पोलैंड के ट्रांजिट क्षेत्रों में थे।

ब्लूमबर्ग न्यूज ने ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों के हवाले से बताया कि ट्रंप तब तक सभी सहायता रोक देंगे जब तक कि कीव शांति के लिए बात करने के लिए प्रतिबद्धता न दिखाए। ट्रंप ने ये आदेश अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में ज़ेलेंस्की पर आरोप लगाने के कुछ घंटों बाद दिया है। ट्रंप ने आरोप लगाया था कि जेलेंस्की जब तक अमेरिका का समर्थन उनके साथ है शांति नहीं चाहते हैं।

बताया जा रहा है कि ट्रंप रूस के साथ चल रहे युद्ध को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए यूक्रेन पर दबाव बनाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि जेलेंस्की भी इसमें उनका साथ दें। मगर जेलेंस्की ने युद्ध समाप्त करने के लिए सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं। इससे पहले जब जेलेंस्की ने कहा कि रूस के साथ युद्ध समाप्ति का समझौता करने का समय अभी नहीं है। तो ट्रंप ने इसे यूक्रेनी नेता का सबसे खराब बयान बताया था। ट्रंप ने कहा था कि जेलेंस्की के इस बयान को अमेरिका अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं करेगा।

बता दें कि शुक्रवार को वाशिंगटन में व्हाइट हाउस में जेलेंस्की और ट्रंप की मीटिंग के दौरान विवाद हुआ था। जेलेंस्की वहां एक खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करने आए थे, लेकिन जब उन्होंने अमेरिका से भविष्य में रूस के हमले के खिलाफ सुरक्षा गारंटी मांगी। जिसके बाद विवाद बढ़ता गया और यह सौदा रद्द हो गया। बैठक के बाद अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने ज़लेंस्की को 'अकृतज्ञ' कहा, जबकि दूसरी तरफ ट्रंप ने उन पर 'तीसरे विश्व युद्ध के लिए आग भड़काने का आरोप लगाया। डोनाल्ड ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी बहस सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।

ट्रंप ने एक बार फिर पूरी दुनिया को चौंकायाःUN में रूस का दिया साथ, यूक्रेन युद्ध के लिए दोषी मानने से इनकार

#americarefusestoblamerussiaforukraine_war

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद वैश्विक राजनीति में बड़े स्तर पर बदलाव की बात कही जा रही थी। ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद इसकी झलकी देखी भी जा रही है। इस बार तो ट्रंप ने ऐसा कुछ किया है कि पूरी दुनिया हैरान है। दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष को लेकर अमेरिका ने अपनी नीतियों में परिवर्तन करते हुए संयुक्त राष्ट्र में रूस का साथ दिया है।

रूस और यूक्रेन युद्ध को तीन साल हो गए हैं। यूरोपीय संघ और यूक्रेन की ओर से रूस के हमले की निंदा से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका ने वोट दिया। यानी, अब तक यूक्रेन का साथ निभा रहा अमेरिका अब रूस के पक्ष में खड़ा होता दिखाई दे रहा है। वहीं अमेरिका ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस को दोषी ठहराने से इनकार कर दिया है।

दरअसल, तीन साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए सोमवार को संयुक्त राष्ट्र में तीन प्रस्ताव लाए गए थे। इन प्रस्तावों के खिलाफ में अमेरिका ने वोटिंग की है। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर रूस के जैसे ही वोटिंग की है, जिसमें क्रेमलिन को आक्रामक नहीं बताया गया, और न ही यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को स्वीकार किया। अमेरिका, रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद की झलक

यह पहली बार है जब रूस-यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के खिलाफ कोई कदम उठाया है। डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद यह अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव दिखाता है। यह डोनाल्ड ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद और पुतिन के साथ करीबी को दिखाता है।

अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव किया पेश

इसके बाद, अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें युद्ध समाप्त करने की अपील की गई थी, लेकिन रूस की आक्रामकता का जिक्र नहीं था। जब फ्रांस और यूरोपीय देशों ने इसमें संशोधन जोड़कर रूस को आक्रमणकारी घोषित कर दिया, तो अमेरिका ने मतदान से बचने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी अमेरिका ने अपने मूल प्रस्ताव पर मतदान कराया, लेकिन 15 सदस्यीय परिषद में 10 देशों ने समर्थन किया, जबकि 5 यूरोपीय देशों ने मतदान से परहेज किया। इससे यह साफ है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोप के बीच गहरा मतभेद उभर रहा है। अमेरिका अब रूस को सीधे तौर पर दोष देने से बच रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

भारत का मतदान से परहेज

93 देशों ने यूरोप के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 18 देशों ने इसका विरोध किया। भारत ने इस दौरान मतदान से परहेज किया। प्रस्ताव में रूस को एक आक्रामक देश बताया गया और उसे यूक्रेन से अपने सैनिकों को हटाने का आह्वान किया गया।

अवैध भारतीय प्रवासी: एक गहरी समस्या और अमेरिका में उनकी स्थिति

#whoaretheseillegalmigrantsofamerica

Picture used in reference (CNN)

अमेरिका, जो विश्व में अपने सशक्त अर्थव्यवस्था और बेहतरीन अवसरों के लिए प्रसिद्ध है, लाखों लोगों का सपना है। हर साल, हजारों भारतीय नागरिक अमेरिका में नौकरी, शिक्षा, और बेहतर जीवन के लिए जाते हैं। हालांकि, कुछ लोग कानूनी तरीके से अमेरिका में प्रवेश करने में नाकाम रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे अवैध प्रवासी बन जाते हैं। भारत के नागरिकों के लिए यह मुद्दा दिन-ब-दिन गंभीर होता जा रहा है। हाल ही में, अमेरिका द्वारा 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को स्वदेश भेजने के कदम ने इस समस्या को और भी उजागर किया है।

अवैध प्रवासी कौन होते हैं?

अवैध प्रवासी वे लोग होते हैं जो किसी भी देश में बिना कानूनी दस्तावेजों या अनुमति के रहते हैं। ये लोग या तो वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी वहां बने रहते हैं, या फिर बिना वीज़ा के ही देश में प्रवेश कर लेते हैं। अमेरिका में भारतीय अवैध प्रवासी के रूप में रहने वाले लोग, अधिकतर या तो रोजगार के लिए अमेरिका गए थे, या फिर परिवारों के साथ रहते हुए वीज़ा की अवधि समाप्त कर चुके हैं।

अवैध भारतीय प्रवासियों का अमेरिका में प्रवेश

1. वीज़ा समाप्त होने के बाद अतिक्रमण

  अमेरिका में जाने वाले भारतीय नागरिकों की बड़ी संख्या पर्यटक वीज़ा, छात्र वीज़ा या कार्य वीज़ा पर जाते हैं। हालांकि, इनमें से कई लोग वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी अमेरिका में रहते हैं और उनके पास वैध दस्तावेज नहीं होते।  

2. फर्जी दस्तावेजों का उपयोग

  कुछ लोग फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से अमेरिका प्रवेश करते हैं। ये दस्तावेज़ वीज़ा, शरण या अन्य कानूनी कारणों के रूप में हो सकते हैं। जब यह धोखाधड़ी सामने आती है, तो इन्हें अवैध प्रवासी के रूप में माना जाता है।  

3. शरणार्थी के रूप में प्रवेश 

  कुछ भारतीय नागरिक राजनीतिक या धार्मिक कारणों से शरणार्थी के रूप में अमेरिका आते हैं। हालांकि, कई बार इनकी स्थिति की सही जांच नहीं होती और वे अवैध रूप से अमेरिका में रह जाते हैं।  

अवैध प्रवासियों के लिए अमेरिका में जीवन

अवैध रूप से अमेरिका में रहने वाले भारतीय नागरिकों को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं में प्रमुख हैं:

1.कानूनी सुरक्षा की कमी  

  अवैध प्रवासियों के पास कोई कानूनी सुरक्षा नहीं होती। यदि अमेरिकी सरकार द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है, तो वे बिना किसी बचाव के देश से बाहर भेजे जा सकते हैं।  

2. आर्थिक कठिनाइयाँ

  अवैध प्रवासी रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करते हैं, क्योंकि उन्हें काम करने के लिए कानूनी दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है। हालांकि, वे अक्सर अंशकालिक या असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहाँ मजदूरी कम और अधिकार न के बराबर होते हैं।  

3. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी 

  अवैध प्रवासी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकते। वे बिना बीमा या अन्य सरकारी सेवाओं के मेडिकल सेवाओं के लिए संघर्ष करते हैं।  

4. शैक्षिक अवसरों की कमी

  अवैध प्रवासियों के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में समस्याएँ होती हैं। अधिकांश राज्य अवैध प्रवासियों के बच्चों को सार्वजनिक स्कूलों में दाखिला देने से मना कर सकते हैं।  

अमेरिका का रुख और कार्रवाई

अमेरिका में अवैध प्रवासियों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन ने कई बार इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है और अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें स्वदेश भेजने की प्रक्रिया को तेज किया है।

1. "डीपी" (Deferred Action for Childhood Arrivals - DACA) नीति

  यह नीति विशेष रूप से उन बच्चों के लिए है जो अवैध रूप से अमेरिका में आकर बड़े हुए हैं। इसे "ड्रीमर्स" कहा जाता है। हालांकि, यह नीति सख्त नहीं है और बार-बार इसकी स्थिति पर सवाल उठते रहे हैं।  

2. आव्रजन और कस्टम्स प्रवर्तन (ICE)

  ICE अमेरिकी सरकार का एक प्रमुख विभाग है, जो अवैध प्रवासियों को ट्रैक करता है और उन्हें देश से बाहर करने के लिए कार्रवाई करता है। 

3. स्वदेश वापसी की योजनाएं

  अमेरिकी सरकार कई कार्यक्रमों के तहत अवैध प्रवासियों को स्वदेश भेजने की योजना बनाती है। हाल ही में, 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को सी-17 विमान से स्वदेश भेजने की योजना के तहत यह कार्रवाई की गई।

भारत में अवैध प्रवासियों की स्थिति

भारत में अवैध प्रवासियों की वापसी के बाद, उन्हें स्थानीय समुदाय में समायोजित करने की प्रक्रिया भी चुनौतीपूर्ण होती है। भारत सरकार के पास इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट नीति नहीं है, जिससे इन व्यक्तियों को पुनः स्थापित करने में समस्याएँ आती हैं। 

1. स्वदेश लौटने पर चुनौतियाँ

  कई बार अवैध प्रवासियों के लिए स्वदेश लौटना कोई आसान रास्ता नहीं होता। उनके पास सीमित संसाधन होते हैं, और वे वापस अपने देश में पुनः समायोजित होने के लिए संघर्ष करते हैं।  

2.आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ

  अवैध प्रवासी अक्सर आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर होते हैं। उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ भी हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें लंबे समय तक दबाव और डर का सामना करना पड़ता है।  

अवैध प्रवासियों के लिए समाधान

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल एक देश की नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक मुद्दा बन चुकी है। इसके समाधान के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:

1. कानूनी मार्गों का विस्तार  

  देशों को अपने आव्रजन नियमों को सुधारने की आवश्यकता है। यदि उचित और वैध मार्ग उपलब्ध हों, तो लोग अवैध तरीके से प्रवेश करने की कोशिश नहीं करेंगे।  

2. कानूनी सहायता  

  अवैध प्रवासियों को कानूनी सहायता मिलनी चाहिए, ताकि वे अपनी स्थिति को समझ सकें और उचित कदम उठा सकें।  

3. शरणार्थी नीति का सुधार

  देशों को शरणार्थियों के मामलों की अधिक गहराई से जांच करनी चाहिए और उन लोगों को मान्यता देनी चाहिए जो सचमुच शरण के योग्य हैं।  

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल भारत या अमेरिका तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक समस्या है, जिसके समाधान के लिए देशों को सामूहिक रूप से कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत के नागरिकों की अमेरिका में अवैध स्थिति एक जटिल मुद्दा है, लेकिन इसे कानूनी ढंग से सुलझाया जा सकता है। इसके लिए दोनों देशों को मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके और भविष्य में इस तरह की स्थितियों से बचा जा सके।

भारतीयों के खिलाफ ट्रंप का एक्शन शुरू, अमेरिका से अवैध प्रवासियों को लेकर सेना का पहला विमान भारत रवाना

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिका ने अवैध प्रवासियों को निकालना शुरू कर दिया है। तक अमेरिका द्वारा दक्षिण अमेरिकी देशों के अवैध अप्रवासियों को निर्वासित किया जा रहा था, लेकिन अब भारत के अवैध अप्रवासियों पर भी कार्रवाई शुरू हो गई है। इसी के तहत अमेरिका से सोमवार को एक अमेरिकी सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर भारत के लिए रवाना हो गया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से बताया है कि सी-17 सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर रवाना हुआ है।

सेना की मदद से निर्वासन अभियान

अमेरिका में सत्ता संभालने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने इमिग्रेशन एजेंडे को पूरा करने के लिए सेना की मदद ली है, जिसके तहत ही सैन्य एयरक्राफ्ट की मदद से लोगों को डिपोर्ट करने का काम शुरू किया जा चुका है। इसी के बाद अब अमेरिका में बसे भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट करने के लिए अमेरिका से C-17 विमान रवाना हो गया है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा, अमेरिका का एक सैन्य विमान C-17 भारतीय प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए रवाना हो गया है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह विमान अगले 24 घंटे तक भारत नहीं पहुंचेगा।

अलग-अलग जगहों के लिए डिपोर्ट किए जा रहे अप्रवासी

इसी के साथ पेंटागन ने एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में अमेरिकी अधिकारियों द्वारा रखे गए 5,000 से अधिक अप्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए फ्लाइट देना भी शुरू कर दिया है। अब तक, सैन्य विमान प्रवासियों को ग्वाटेमाला, पेरू और होंडुरास ले गए हैं। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने कहा है कि अमेरिका के एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगा, कैलिफोर्निया से पांच हजार से ज्यादा अवैध अप्रवासियों को लेकर जल्द ही सेना के विमान उड़ान भरेंगे।

लगभग 18,000 अवैध भारतीयों की पहचान का दावा

डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद पहली बार भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट किया जाएगा। ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अपनी-अपनी बातचीत के दौरान अमेरिका में बसे अवैध भारतीयों को लेकर पहले ही चिंता जताई थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने पीएम मोदी से बातचीत के बाद कहा था कि उन्होंने इमिग्रेशन को लेकर पीएम से बात की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि जब अवैध अप्रवासियों को वापस लेने की बात आएगी तो भारत वही करेगा जो सही होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका ने लगभग 18,000 भारतीय अप्रवासियों की पहचान की है जो अवैध रूप से अमेरिका में हैं।

करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करेंगे ट्रंप

राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका से करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने की बात कही थी। पिछले सप्ताह ही अमेरिकी सेना ने लैटिन अमेरिकी देशों में अवैध अप्रवासियों को लेकर छह उड़ानें भरी हैं। हालांकि कोलंबिया ने अमेरिका के विमानों को अपने देश में उतरने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन ट्रंप के सख्त रुख के बाद कोलंबिया ने अपने नागरिकों को लाने के लिए अपने ही विमान भेजे थे।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

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भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

अमेरिका में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक, मीटिंग के बाद यूएस के नए विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

#quadministerialmeetingjaishankarmetamericanewforeignminister

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में शपथ के बाद मंगलवार को क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया। नए ट्रंप प्रशासन में होने वाली ये पहली बड़ी बैठक थी। इसमें मीटिंग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की ये पहली बैठक थी। वे पद संभालने के महज 1 घंटे बाद ही इसमें शामिल हुए। इसके बाद मार्को रुबियो ने अपनी पहली द्विपक्षीय बातचीत भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ की।

क्वाड मंत्रिस्तरीय बैठक के तुरंत बाद अमेरिका के नए विदेश मंत्री रुबियो की जयशंकर के साथ पहली द्विपक्षीय बैठक हुई, जो एक घंटे से अधिक समय तक चली। बैठक में अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा भी मौजूद थे। रुबियो और जयशंकर बैठक के बाद एक फोटो सेशन के लिए प्रेस के सामने आए, हाथ मिलाया और कैमरों की ओर देखकर मुस्कुराए।

मार्को रुबियो से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा कि अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक के लिए मिलकर खुशी हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘आज वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. मार्को रूबियो का आभार, जिन्होंने हमारी मेजबानी की। पेनी वोंग और ताकेशी इवाया का भी शुक्रिया, जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया। ये अहम है कि ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। इससे पता चलता है कि ये अपने सदस्य देशों की विदेश नीति में कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी व्यापक चर्चाओं में एक स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करने के अलग-अलग पहलुओं पर बात हुई। इस बात पर सहमति बनी कि हमें बड़ा सोचने, एजेंडा को और गहरा करने और अपने सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है। आज की बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में क्वाड देश वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बने रहेंगे।

डॉ जयशंकर और मार्को रुबियो की मुलाकात के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, 'विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने आज वाशिंगटन डीसी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को मजबूत करने के लिए साझा प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों और अमेरिका-भारत संबंधों को और गहरा करने के अवसरों सहित कई विषयों पर चर्चा की।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई। इस बैठक में चीन को साफ-साफ सुना दिया गया। बैठक में चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि वे किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं, जो बल या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है। यह बात चीन की उस धमकी के संदर्भ में कही गई है, जिसमें उसने लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है। क्वाड बैठक में यह तय किया गया कि वे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका के लिए भारत अहम

ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई। ट्रंप के शपथ के अगले दिन ही इस बैठक से यह समझ आता है कि अमेरिका के लिए भारत और अन्य सहयोगी कितने अहम साथी हैं। यही नहीं, अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने मंगलवार को एस जयशंकर से अलग से मुलाकात भी की।

क्वाड के लिए भारत आ सकते हैं ट्रम्प

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस साल क्वाड देशों की बैठक के लिए भारत के दौरे पर आ सकते हैं। भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है। ये सम्मेलन अप्रैल या अक्टूबर में आयोजित किया जा सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस साल के अंत तक अमेरिकी दौरे पर जा सकते हैं। इस दौरान वे व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ औपचारिक बैठक में हिस्सा लेंगे।

अमेरिका के न्‍यू ऑर्ल‍ियन्‍स हमले में 15 लोगों की जान लेने वाला आर्मी का पूर्व सैनिक, ISIS से जुड़े तार

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अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस में नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ पर आतंकी हमला हुआ। अधिकारियों ने बताया कि नरसंहार पर आमादा हमलावर ने भीड़ की ओर अपना वाहन मोड़ दिया और लोगों को रौंदते हुए निकल गया। रॉटर्स के मुताबिक अब तक 15 लोगों की मौत हो गई है और 35 घायल हैं। इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकी की पहचान कर ली गई है। इस आतंकी साजिश को लेकर अमेरिका की फेडरल जांच एजेंसी (एफबीआई) ने कई बड़े खुलासे किए हैं।

संदिग्ध का नाम शम्सुद दीन जब्बार

न्यू ऑर्लियंस पुलिस ने अब हमलावर के बारे में कई जानकारी जारी की हैं। हमलावर की पहचान की पहचान 42 साल के शम्सुद दीन जब्बार के रूप में हुई है और वह अमेरिका में ही जन्मा है। हैरान करनी वाली बात ये है कि शम्सुद दीन जब्बार ने अमेरिका सेना में भी काम किया है। जांच एजेंसिया हमले के दूसरे पहलुओं की जांच कर रही हैं। एफबीआई को हमलावर का आईएसआईएस से भी लिंक मिला हैं, जिसके बाद अमेरिका में बढ़ती आईएसआईएस की पकड़ पर चिंता बढ़ गई है।

कैसे दिया हमले को अंजाम?

शम्सुद दीन जब्बार एक पिकअप ट्रक पर सवार होकर न्यू ऑर्लियंस के बॉर्बन स्ट्रीट पहुंचा। जहां उसने रास्ते में चल रही भीड़ पर ट्रक चढ़ा दिया, फिर गोलीबारी शुरू कर दी और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। पुलिस के अनुसार, यह घटना स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 3:15 बजे फ्रेंच क्वार्टर के मध्य में घटी, जहां नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ थी।

चश्मदीदों के मुताबिक जब्बार एक सफेद फोर्ड एफ-150 इलेक्ट्रिक पिकअप में आया और पैदल चलने वालों के एक ग्रुप में घुसा दिया, भीड़ को रौंदने के बाद वह बार निकला और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। हमलावर के ट्रक से एक काले कलर का झंडा भी मिला है, जिसको आईएसआईएस का झंडा माना जा रहा है।

एफबीआई ने कहा हमले के पीछे अकेले जब्बार नहीं

न्यू ओर्लियंस हमले के बाद एफबीआई ने मामले की जांच की कमान अपने हाथ में संभाल ले ली है। हमले पर एफबीआई ने भी अपना बयान जारी किया है। एफबीआई एजेंट एलेथिया डंकन ने कहा कि हम यह नहीं मानते कि बॉर्बन स्ट्रीट हमले के लिए अकेले जब्बार पूरी तरह जिम्मेदार था। हम उसके ज्ञात सहयोगियों समेत अन्य सभी सुराग पर आक्रामकता से काम कर रहे हैं। इसलिए हमें जनता की मदद की जरूरत है। हम पूछ रहे हैं कि क्या पिछले 72 घंटों में किसी ने जब्बार से कोई बातचीत की है, तो हमसे संपर्क करे। जिस किसी के पास इससे जुड़ी कोई जानकारी, वीडियो या तस्वीरें हैं, उसे एफबीआई से साझा करें।

जो बाइडेन ने जताया दुख

अमेरिका के न्यू ओर्लियंस पर नये साल के मौके पर हुए आतंकी हमले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने इस हमले में मारे गए लोगों पर गहरा शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा, "...जो लोग न्यू ओर्लियंस के आतंकी हमले में मारे गए हैं और जो घायल हुए हैं, उन सभी लोगों के लिए आज शोक मना रहे परिवारों से मैं कहना चाहता हूं कि मैं भी उनके इस दुख में शामिल हूं। बाइडेन ने कहा कि पूरा राष्ट्र आपके साथ दुखी है। जो लोग घायल हुए हैं उम्मीद है कि वह भी आने वाले हफ्तों में ठीक हो जाएंगे। तो भी हम आपके साथ खड़े रहेंगे। बाइडेन ने कहा कि एफबीआई यह पता लगाने के लिए जांच कर रही है कि क्या हुआ, क्यों हुआ और क्या सार्वजनिक सुरक्षा को और कोई खतरा बना हुआ है।

पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइल के खिलाफ क्यों हो गया अमेरिका, खुद के लिए किस खतरे की कर रहा बात?

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पाकिस्तान अब अमेरिका के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल विकसित कर रहा है। वह ऐसी मिसाइलें बनाने में लगा है जिसमें दक्षिण एशिया के बाहर अमेरिका पर भी हमला करने की क्षमता हो। जिसके बाद अमेरिका ने एक अहम फैसले में पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम में शामिल चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के उप सलाहकार जॉन फाइनर ने कहा कि पाकिस्तान की गतिविधियां उसके इरादों पर गंभीर सवाल उठाती हैं। कार्नेगी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक भाषण के दौरान जॉन फाइनर ने कहा, 'साफ तौर पर हमें पाकिस्तान की गतिविधियां अमेरिका के लिए एक उभरते हुए खतरे के रूप में ही दिखाई देती हैं।'

फाइनर के मुताबिक ऐसे सिर्फ तीन ही देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार और अमेरिका तक मिसाइल हमला करने की क्षमता है। इनमें रूस, चीन और नॉर्थ कोरिया शामिल हैं। ये तीनों ही देश अमेरिका के विरोधी हैं। ऐसे में पाकिस्तान के ये कदम अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बनते जा रहे हैं।

फाइनर ने कहा,पाकिस्तान का ये कदम चौंकाने वाला है, क्योंकि वह अमेरिका का सहयोगी देश रहा है। हमने पाकिस्तान के सामने कई बार अपनी चिंता जाहिर की है। हमने उसे मुश्किल समय में समर्थन दिया है और आगे भी संबंध बनाए रखने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में पाकिस्तान का ये कदम हमें ये सवाल करने पर मजबूर करता है कि वह ऐसी क्षमता हासिल क्यों करना चाहता है, जिसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ किया जा सकता है।

एक दिन पहले ही अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल से जुड़ी चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। विदेश विभाग की वेबसाइट पर जारी बयान में कहा गया है कि यह निर्णय पाकिस्तान की लंबी दूरी की मिसाइलों के विकास से होने वाले खतरे को देखते हुए लिया गया है।अमेरिका ने गुरुवार को बताया कि चार संस्थाओं को कार्यकारी आदेश 13382 के तहत प्रतिबंधित किया गया है, जो विनाशकारी हथियारों और उनके वितरण के साधनों के प्रसार से जुड़े लोगों पर लागू होता है। बयान के मुताबिक पाकिस्तान की 'नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स' और उससे जुड़ी अन्य संस्थाएं जैसे अख्तर एंड संस प्राइवेट लिमिटेड और रॉकसाइड एंटरप्राइज पर पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम के लिए उपकरण आपूर्ति करने का आरोप है।

पाकिस्तान ने बैन को बताया पक्षपातपूर्ण

अमेरिका के प्रतिबंधों की पाकिस्तान ने कड़ी निंदा करते हुए इसे पक्षपाती करार दिया है और कहा कि यह फैसला क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक परिणाम लाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा, 'पाकिस्तान की रणनीतिक क्षमताएं उसकी संप्रभुता की रक्षा और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हैं। प्रतिबंध शांति और सुरक्षा के उद्देश्य को विफल करते हैं।

चीन की 3 कंपनियों पर लगाया था बैन

इससे पहले इसी साल अप्रैल में अमेरिका ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के लिए तकनीक सप्लाई करने पर चीन की 3 कंपनियों पर बैन लगा दिया था। इस लिस्ट में बेलारूस की भी एक कंपनी शामिल थी।

80 के दशक में शुरू हुआ पाकिस्तान का मिसाइल प्रोग्राम

पाकिस्तान ने 1986-87 में अपने मिसाइल प्रोग्राम हत्फ की शुरुआत की थी। भारत के मिसाइल प्रोग्राम का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हुई थी।

हत्म प्रोग्राम में पाक रक्षा मंत्रालय को फौज से सीधा समर्थन हासिल था। इसके तहत पाकिस्तान ने सबसे पहले हत्फ-1 और फिर हत्फ-2 मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, हत्फ-1 80 किमी और वहीं हत्फ-2 300 किमी तक मार करने में सक्षम थी।

यह दोनों मिसाइलें 90 के दशक में सेना का हिस्सा बनी थीं। इसके बाद हत्फ-1 को विकसित कर उसकी मारक क्षमता को 100 किलोमीटर बढ़ाया गया। 1996 में पाकिस्तान ने चीन की मदद से बैलिस्टिक मिसाइल की तकनीक हासिल की।

फिर 1997 में हत्फ-3 का सफल परीक्षण हुआ, जिसकी मार 800 किलोमीटर तक थी। साल 2002 से 2006 तक भारत के साथ तनाव के बीच पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा मिसाइलों की टेस्टिंग की थी।

सरकारी शटडाउन पर ट्रंप समर्थित बिल को नहीं मिला पूर्ण बहुमत, 38 रिपब्लिकंस ने भी विरोध में की वोटिंग

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अमेरिका पर इस समय आर्थिक संकट आ गया है। उसके पास इतना पैसा नहीं बचा है कि वह सरकारी कर्मचारियों को सैलरी दे सके। हालात शटडाउन जैसे हो चुके हैं। सरकार को फंड जुटाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थित बिल गुरुवार रात अमेरिकी संसद में गिर गया।इससे बचने के लिए अमेरिका के पास 24 घंटे से भी कम का समय बचा है।

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की फेडरल ऑपरेशन को फंड देने और गवर्नमेंट शटडाउन से एक दिन पहले कर्ज सीमा को बढ़ाने या सस्पेंड करने के प्लान को खारिज कर दिया है। गुरुवार रात अमेरिकी संसद में सरकारी शटडाउन से बचने के लिए बिल लाया गया था। इस बिल को ट्रंप का समर्थन था। करीब 3 दर्जन रिपब्लिकन ने डेमोक्रेट्स के साथ मिलकर ट्रंप समर्थित इस बिल के खिलाफ वोटिंग की। संसद में यह बिल 174-235 से गिर गया और बहुमत वोट भी हासिल करने में विफल रहा।

दरअसल, डेमोक्रेट्स ट्रंप को उनके नए कार्यकाल के पहले साल के दौरान बातचीत का फायदा नहीं देना चाहते। इस वजह से उन्होंने इस बिल का विरोध किया। ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से जीते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी शटडाउन को रोकने के लिए देश की कर्ज सीमा को बढ़ाने या निलंबित करने का प्रावधान को कानून में शामिल किए जाने की मांग की थी, खास बात यह है कि इस कदम का उनकी अपनी पार्टी नियमित तौर पर विरोध करती रही है। उन्होंने बुधवार को एक बयान में कहा कि इसके अलावा कुछ भी हमारे देश के साथ विश्वासघात है।

क्या होता है सरकार का शटडाउन?

अमेरिकी सरकार में शटडाउन तब होता है, जब सरकार के खर्च संबंधी विधेयक अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले लागू नहीं हो पाते हैं। शटडाउन के चलते संघीय सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ती है और गैर जरूरी सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजना पड़ता है। इस दौरान सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली जरूरी एजेंसियों के कर्मचारी ही काम करते हैं। शटडाउन के चलते संघीय और राज्य सरकारों के बीच का समन्वय भी बाधित होता है। फंडिंग में अंतराल के चलते साल 1980 में अमेरिका में शटडाउन को लेकर पहली बार कानूनी राय दी गई थी। साल 1990 से शटडाउन लागू होने लगे और फरवरी 2024 तक अमेरिका में 10 फंडिंग शटडाउन हो चुके हैं।

क्यों जरूरी है इसका पास होना?

दरअसल, अमेरिका को अपने खर्च चलाने के लिए फंड की जरूरत होती है। यह फंड कर्ज लेकर पूरा किया जाता है। इसके लिए एक बिल अमेरिकी संसद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में लाया जाता है। मौजूदा बिल को ट्रंप की ओर से लाया गया था, जिसे विपक्ष से खारिज कर दिया। इसका सीधा का मतलब है कि अमेरिका को खर्च के लिए पैसा नहीं मिलेगा। अमेरिका इस पैसे से ही न केवल सरकारी अधिकारियों को सैलरी देती है बल्कि दूसरे खर्च भी चलते हैं।

तो अमेरिका में हो जाएगा शटडाउन

इस बिल को पास कराने के लिए शुक्रवार रात तक का ही समय है। यानी अमेरिकी सरकार के पास 24 घंटे खर्च चलाने लायक पैसा भी नहीं है। अगर यह पास नहीं हो पाया तो अमेरिका में शटडाउन लग जाएगा। ऐसा होने पर अमेरिका पर बड़ी मुसीबत आ जाएगी। उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। इसका सबसे ज्यादा असर ट्रंप पर पड़ेगा

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

जेलेंस्की के “झुकने” के बाद भी कम नहीं हुआ ट्रंप का “गुस्सा”, अमेरिका ने यूक्रेन की सैन्य मदद पर लगाई रोक

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर बुरी तरह भड़के हुए है। बीते दिनों राष्ट्रपति ट्रंप और जेलेंस्की के बीच नोंकझोंक के बाद स्थिति और बिगड़ गई। इस तकरार के बाद अमेरिका ने तुरंत प्रभाव से यूक्रेन की सैन्य सहायता रोक दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को दी जाने वाली सभी सैन्य सहायता को रोकने का आदेश दिया है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी रक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि ट्रंप प्रशासन ने फैसला किया है कि जब तक यूक्रेन के नेता शांति के लिए साफ नीयत नहीं दिखाते, तब तक सभी सैन्य सहायता रोकी जाएगी। इसका मतलब है कि जो भी अमेरिकी सैन्य उपकरण यूक्रेन को भेजे जाने थे, उन्हें फिलहाल रोक दिया गया है। इसमें वे हथियार भी शामिल हैं जो पहले से जहाजों या विमानों में लोड हो चुके थे या पोलैंड के ट्रांजिट क्षेत्रों में थे।

ब्लूमबर्ग न्यूज ने ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों के हवाले से बताया कि ट्रंप तब तक सभी सहायता रोक देंगे जब तक कि कीव शांति के लिए बात करने के लिए प्रतिबद्धता न दिखाए। ट्रंप ने ये आदेश अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में ज़ेलेंस्की पर आरोप लगाने के कुछ घंटों बाद दिया है। ट्रंप ने आरोप लगाया था कि जेलेंस्की जब तक अमेरिका का समर्थन उनके साथ है शांति नहीं चाहते हैं।

बताया जा रहा है कि ट्रंप रूस के साथ चल रहे युद्ध को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए यूक्रेन पर दबाव बनाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि जेलेंस्की भी इसमें उनका साथ दें। मगर जेलेंस्की ने युद्ध समाप्त करने के लिए सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं। इससे पहले जब जेलेंस्की ने कहा कि रूस के साथ युद्ध समाप्ति का समझौता करने का समय अभी नहीं है। तो ट्रंप ने इसे यूक्रेनी नेता का सबसे खराब बयान बताया था। ट्रंप ने कहा था कि जेलेंस्की के इस बयान को अमेरिका अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं करेगा।

बता दें कि शुक्रवार को वाशिंगटन में व्हाइट हाउस में जेलेंस्की और ट्रंप की मीटिंग के दौरान विवाद हुआ था। जेलेंस्की वहां एक खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करने आए थे, लेकिन जब उन्होंने अमेरिका से भविष्य में रूस के हमले के खिलाफ सुरक्षा गारंटी मांगी। जिसके बाद विवाद बढ़ता गया और यह सौदा रद्द हो गया। बैठक के बाद अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने ज़लेंस्की को 'अकृतज्ञ' कहा, जबकि दूसरी तरफ ट्रंप ने उन पर 'तीसरे विश्व युद्ध के लिए आग भड़काने का आरोप लगाया। डोनाल्ड ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी बहस सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।

ट्रंप ने एक बार फिर पूरी दुनिया को चौंकायाःUN में रूस का दिया साथ, यूक्रेन युद्ध के लिए दोषी मानने से इनकार

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद वैश्विक राजनीति में बड़े स्तर पर बदलाव की बात कही जा रही थी। ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद इसकी झलकी देखी भी जा रही है। इस बार तो ट्रंप ने ऐसा कुछ किया है कि पूरी दुनिया हैरान है। दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष को लेकर अमेरिका ने अपनी नीतियों में परिवर्तन करते हुए संयुक्त राष्ट्र में रूस का साथ दिया है।

रूस और यूक्रेन युद्ध को तीन साल हो गए हैं। यूरोपीय संघ और यूक्रेन की ओर से रूस के हमले की निंदा से जुड़ा प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका ने वोट दिया। यानी, अब तक यूक्रेन का साथ निभा रहा अमेरिका अब रूस के पक्ष में खड़ा होता दिखाई दे रहा है। वहीं अमेरिका ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस को दोषी ठहराने से इनकार कर दिया है।

दरअसल, तीन साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए सोमवार को संयुक्त राष्ट्र में तीन प्रस्ताव लाए गए थे। इन प्रस्तावों के खिलाफ में अमेरिका ने वोटिंग की है। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर रूस के जैसे ही वोटिंग की है, जिसमें क्रेमलिन को आक्रामक नहीं बताया गया, और न ही यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को स्वीकार किया। अमेरिका, रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद की झलक

यह पहली बार है जब रूस-यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका अपने यूरोपीय सहयोगियों के खिलाफ कोई कदम उठाया है। डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद यह अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव दिखाता है। यह डोनाल्ड ट्रंप का यूरोप के साथ बढ़ते मतभेद और पुतिन के साथ करीबी को दिखाता है।

अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव किया पेश

इसके बाद, अमेरिका ने अपना एक अलग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें युद्ध समाप्त करने की अपील की गई थी, लेकिन रूस की आक्रामकता का जिक्र नहीं था। जब फ्रांस और यूरोपीय देशों ने इसमें संशोधन जोड़कर रूस को आक्रमणकारी घोषित कर दिया, तो अमेरिका ने मतदान से बचने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी अमेरिका ने अपने मूल प्रस्ताव पर मतदान कराया, लेकिन 15 सदस्यीय परिषद में 10 देशों ने समर्थन किया, जबकि 5 यूरोपीय देशों ने मतदान से परहेज किया। इससे यह साफ है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोप के बीच गहरा मतभेद उभर रहा है। अमेरिका अब रूस को सीधे तौर पर दोष देने से बच रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।

भारत का मतदान से परहेज

93 देशों ने यूरोप के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 18 देशों ने इसका विरोध किया। भारत ने इस दौरान मतदान से परहेज किया। प्रस्ताव में रूस को एक आक्रामक देश बताया गया और उसे यूक्रेन से अपने सैनिकों को हटाने का आह्वान किया गया।

अवैध भारतीय प्रवासी: एक गहरी समस्या और अमेरिका में उनकी स्थिति

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Picture used in reference (CNN)

अमेरिका, जो विश्व में अपने सशक्त अर्थव्यवस्था और बेहतरीन अवसरों के लिए प्रसिद्ध है, लाखों लोगों का सपना है। हर साल, हजारों भारतीय नागरिक अमेरिका में नौकरी, शिक्षा, और बेहतर जीवन के लिए जाते हैं। हालांकि, कुछ लोग कानूनी तरीके से अमेरिका में प्रवेश करने में नाकाम रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे अवैध प्रवासी बन जाते हैं। भारत के नागरिकों के लिए यह मुद्दा दिन-ब-दिन गंभीर होता जा रहा है। हाल ही में, अमेरिका द्वारा 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को स्वदेश भेजने के कदम ने इस समस्या को और भी उजागर किया है।

अवैध प्रवासी कौन होते हैं?

अवैध प्रवासी वे लोग होते हैं जो किसी भी देश में बिना कानूनी दस्तावेजों या अनुमति के रहते हैं। ये लोग या तो वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी वहां बने रहते हैं, या फिर बिना वीज़ा के ही देश में प्रवेश कर लेते हैं। अमेरिका में भारतीय अवैध प्रवासी के रूप में रहने वाले लोग, अधिकतर या तो रोजगार के लिए अमेरिका गए थे, या फिर परिवारों के साथ रहते हुए वीज़ा की अवधि समाप्त कर चुके हैं।

अवैध भारतीय प्रवासियों का अमेरिका में प्रवेश

1. वीज़ा समाप्त होने के बाद अतिक्रमण

  अमेरिका में जाने वाले भारतीय नागरिकों की बड़ी संख्या पर्यटक वीज़ा, छात्र वीज़ा या कार्य वीज़ा पर जाते हैं। हालांकि, इनमें से कई लोग वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद भी अमेरिका में रहते हैं और उनके पास वैध दस्तावेज नहीं होते।  

2. फर्जी दस्तावेजों का उपयोग

  कुछ लोग फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से अमेरिका प्रवेश करते हैं। ये दस्तावेज़ वीज़ा, शरण या अन्य कानूनी कारणों के रूप में हो सकते हैं। जब यह धोखाधड़ी सामने आती है, तो इन्हें अवैध प्रवासी के रूप में माना जाता है।  

3. शरणार्थी के रूप में प्रवेश 

  कुछ भारतीय नागरिक राजनीतिक या धार्मिक कारणों से शरणार्थी के रूप में अमेरिका आते हैं। हालांकि, कई बार इनकी स्थिति की सही जांच नहीं होती और वे अवैध रूप से अमेरिका में रह जाते हैं।  

अवैध प्रवासियों के लिए अमेरिका में जीवन

अवैध रूप से अमेरिका में रहने वाले भारतीय नागरिकों को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं में प्रमुख हैं:

1.कानूनी सुरक्षा की कमी  

  अवैध प्रवासियों के पास कोई कानूनी सुरक्षा नहीं होती। यदि अमेरिकी सरकार द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है, तो वे बिना किसी बचाव के देश से बाहर भेजे जा सकते हैं।  

2. आर्थिक कठिनाइयाँ

  अवैध प्रवासी रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करते हैं, क्योंकि उन्हें काम करने के लिए कानूनी दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है। हालांकि, वे अक्सर अंशकालिक या असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जहाँ मजदूरी कम और अधिकार न के बराबर होते हैं।  

3. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी 

  अवैध प्रवासी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकते। वे बिना बीमा या अन्य सरकारी सेवाओं के मेडिकल सेवाओं के लिए संघर्ष करते हैं।  

4. शैक्षिक अवसरों की कमी

  अवैध प्रवासियों के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में समस्याएँ होती हैं। अधिकांश राज्य अवैध प्रवासियों के बच्चों को सार्वजनिक स्कूलों में दाखिला देने से मना कर सकते हैं।  

अमेरिका का रुख और कार्रवाई

अमेरिका में अवैध प्रवासियों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन ने कई बार इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है और अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें स्वदेश भेजने की प्रक्रिया को तेज किया है।

1. "डीपी" (Deferred Action for Childhood Arrivals - DACA) नीति

  यह नीति विशेष रूप से उन बच्चों के लिए है जो अवैध रूप से अमेरिका में आकर बड़े हुए हैं। इसे "ड्रीमर्स" कहा जाता है। हालांकि, यह नीति सख्त नहीं है और बार-बार इसकी स्थिति पर सवाल उठते रहे हैं।  

2. आव्रजन और कस्टम्स प्रवर्तन (ICE)

  ICE अमेरिकी सरकार का एक प्रमुख विभाग है, जो अवैध प्रवासियों को ट्रैक करता है और उन्हें देश से बाहर करने के लिए कार्रवाई करता है। 

3. स्वदेश वापसी की योजनाएं

  अमेरिकी सरकार कई कार्यक्रमों के तहत अवैध प्रवासियों को स्वदेश भेजने की योजना बनाती है। हाल ही में, 205 अवैध भारतीय प्रवासियों को सी-17 विमान से स्वदेश भेजने की योजना के तहत यह कार्रवाई की गई।

भारत में अवैध प्रवासियों की स्थिति

भारत में अवैध प्रवासियों की वापसी के बाद, उन्हें स्थानीय समुदाय में समायोजित करने की प्रक्रिया भी चुनौतीपूर्ण होती है। भारत सरकार के पास इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट नीति नहीं है, जिससे इन व्यक्तियों को पुनः स्थापित करने में समस्याएँ आती हैं। 

1. स्वदेश लौटने पर चुनौतियाँ

  कई बार अवैध प्रवासियों के लिए स्वदेश लौटना कोई आसान रास्ता नहीं होता। उनके पास सीमित संसाधन होते हैं, और वे वापस अपने देश में पुनः समायोजित होने के लिए संघर्ष करते हैं।  

2.आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ

  अवैध प्रवासी अक्सर आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर होते हैं। उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ भी हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें लंबे समय तक दबाव और डर का सामना करना पड़ता है।  

अवैध प्रवासियों के लिए समाधान

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल एक देश की नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक मुद्दा बन चुकी है। इसके समाधान के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:

1. कानूनी मार्गों का विस्तार  

  देशों को अपने आव्रजन नियमों को सुधारने की आवश्यकता है। यदि उचित और वैध मार्ग उपलब्ध हों, तो लोग अवैध तरीके से प्रवेश करने की कोशिश नहीं करेंगे।  

2. कानूनी सहायता  

  अवैध प्रवासियों को कानूनी सहायता मिलनी चाहिए, ताकि वे अपनी स्थिति को समझ सकें और उचित कदम उठा सकें।  

3. शरणार्थी नीति का सुधार

  देशों को शरणार्थियों के मामलों की अधिक गहराई से जांच करनी चाहिए और उन लोगों को मान्यता देनी चाहिए जो सचमुच शरण के योग्य हैं।  

अवैध प्रवासियों की समस्या केवल भारत या अमेरिका तक सीमित नहीं है। यह एक वैश्विक समस्या है, जिसके समाधान के लिए देशों को सामूहिक रूप से कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत के नागरिकों की अमेरिका में अवैध स्थिति एक जटिल मुद्दा है, लेकिन इसे कानूनी ढंग से सुलझाया जा सकता है। इसके लिए दोनों देशों को मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके और भविष्य में इस तरह की स्थितियों से बचा जा सके।

भारतीयों के खिलाफ ट्रंप का एक्शन शुरू, अमेरिका से अवैध प्रवासियों को लेकर सेना का पहला विमान भारत रवाना

#americastartsdeportingindianmigrants

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद अमेरिका ने अवैध प्रवासियों को निकालना शुरू कर दिया है। तक अमेरिका द्वारा दक्षिण अमेरिकी देशों के अवैध अप्रवासियों को निर्वासित किया जा रहा था, लेकिन अब भारत के अवैध अप्रवासियों पर भी कार्रवाई शुरू हो गई है। इसी के तहत अमेरिका से सोमवार को एक अमेरिकी सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर भारत के लिए रवाना हो गया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से बताया है कि सी-17 सैन्य विमान प्रवासियों को लेकर रवाना हुआ है।

सेना की मदद से निर्वासन अभियान

अमेरिका में सत्ता संभालने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने इमिग्रेशन एजेंडे को पूरा करने के लिए सेना की मदद ली है, जिसके तहत ही सैन्य एयरक्राफ्ट की मदद से लोगों को डिपोर्ट करने का काम शुरू किया जा चुका है। इसी के बाद अब अमेरिका में बसे भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट करने के लिए अमेरिका से C-17 विमान रवाना हो गया है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा, अमेरिका का एक सैन्य विमान C-17 भारतीय प्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए रवाना हो गया है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह विमान अगले 24 घंटे तक भारत नहीं पहुंचेगा।

अलग-अलग जगहों के लिए डिपोर्ट किए जा रहे अप्रवासी

इसी के साथ पेंटागन ने एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगो, कैलिफोर्निया में अमेरिकी अधिकारियों द्वारा रखे गए 5,000 से अधिक अप्रवासियों को डिपोर्ट करने के लिए फ्लाइट देना भी शुरू कर दिया है। अब तक, सैन्य विमान प्रवासियों को ग्वाटेमाला, पेरू और होंडुरास ले गए हैं। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने कहा है कि अमेरिका के एल पासो, टेक्सास और सैन डिएगा, कैलिफोर्निया से पांच हजार से ज्यादा अवैध अप्रवासियों को लेकर जल्द ही सेना के विमान उड़ान भरेंगे।

लगभग 18,000 अवैध भारतीयों की पहचान का दावा

डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद पहली बार भारतीय अवैध प्रवासियों को भारत डिपोर्ट किया जाएगा। ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अपनी-अपनी बातचीत के दौरान अमेरिका में बसे अवैध भारतीयों को लेकर पहले ही चिंता जताई थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने पीएम मोदी से बातचीत के बाद कहा था कि उन्होंने इमिग्रेशन को लेकर पीएम से बात की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि जब अवैध अप्रवासियों को वापस लेने की बात आएगी तो भारत वही करेगा जो सही होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका ने लगभग 18,000 भारतीय अप्रवासियों की पहचान की है जो अवैध रूप से अमेरिका में हैं।

करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करेंगे ट्रंप

राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका से करीब 1.1 करोड़ अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने की बात कही थी। पिछले सप्ताह ही अमेरिकी सेना ने लैटिन अमेरिकी देशों में अवैध अप्रवासियों को लेकर छह उड़ानें भरी हैं। हालांकि कोलंबिया ने अमेरिका के विमानों को अपने देश में उतरने की इजाजत नहीं दी थी, लेकिन ट्रंप के सख्त रुख के बाद कोलंबिया ने अपने नागरिकों को लाने के लिए अपने ही विमान भेजे थे।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

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भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

अमेरिका में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक, मीटिंग के बाद यूएस के नए विदेश मंत्री से मिले जयशंकर

#quadministerialmeetingjaishankarmetamericanewforeignminister

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर ने अमेरिका में शपथ के बाद मंगलवार को क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया। नए ट्रंप प्रशासन में होने वाली ये पहली बड़ी बैठक थी। इसमें मीटिंग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की ये पहली बैठक थी। वे पद संभालने के महज 1 घंटे बाद ही इसमें शामिल हुए। इसके बाद मार्को रुबियो ने अपनी पहली द्विपक्षीय बातचीत भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ की।

क्वाड मंत्रिस्तरीय बैठक के तुरंत बाद अमेरिका के नए विदेश मंत्री रुबियो की जयशंकर के साथ पहली द्विपक्षीय बैठक हुई, जो एक घंटे से अधिक समय तक चली। बैठक में अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा भी मौजूद थे। रुबियो और जयशंकर बैठक के बाद एक फोटो सेशन के लिए प्रेस के सामने आए, हाथ मिलाया और कैमरों की ओर देखकर मुस्कुराए।

मार्को रुबियो से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा कि अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक के लिए मिलकर खुशी हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘आज वाशिंगटन डीसी में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुआ. मार्को रूबियो का आभार, जिन्होंने हमारी मेजबानी की। पेनी वोंग और ताकेशी इवाया का भी शुक्रिया, जिन्होंने इसमें हिस्सा लिया। ये अहम है कि ट्रंप प्रशासन के शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। इससे पता चलता है कि ये अपने सदस्य देशों की विदेश नीति में कितनी महत्वपूर्ण है। हमारी व्यापक चर्चाओं में एक स्वतंत्र, खुले, स्थिर और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को सुनिश्चित करने के अलग-अलग पहलुओं पर बात हुई। इस बात पर सहमति बनी कि हमें बड़ा सोचने, एजेंडा को और गहरा करने और अपने सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है। आज की बैठक एक स्पष्ट संदेश देती है कि अनिश्चित और अस्थिर दुनिया में क्वाड देश वैश्विक भलाई के लिए एक ताकत बने रहेंगे।

डॉ जयशंकर और मार्को रुबियो की मुलाकात के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया, 'विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने आज वाशिंगटन डीसी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को मजबूत करने के लिए साझा प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने क्षेत्रीय मुद्दों और अमेरिका-भारत संबंधों को और गहरा करने के अवसरों सहित कई विषयों पर चर्चा की।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई। इस बैठक में चीन को साफ-साफ सुना दिया गया। बैठक में चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि वे किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करते हैं, जो बल या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करती है। यह बात चीन की उस धमकी के संदर्भ में कही गई है, जिसमें उसने लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है। क्वाड बैठक में यह तय किया गया कि वे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका के लिए भारत अहम

ट्रंप के शपथ समारोह के बाद क्वाड देशों की अमेरिका में एक अहम बैठक हुई। ट्रंप के शपथ के अगले दिन ही इस बैठक से यह समझ आता है कि अमेरिका के लिए भारत और अन्य सहयोगी कितने अहम साथी हैं। यही नहीं, अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने मंगलवार को एस जयशंकर से अलग से मुलाकात भी की।

क्वाड के लिए भारत आ सकते हैं ट्रम्प

यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस साल क्वाड देशों की बैठक के लिए भारत के दौरे पर आ सकते हैं। भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के नेताओं के साथ क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है। ये सम्मेलन अप्रैल या अक्टूबर में आयोजित किया जा सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस साल के अंत तक अमेरिकी दौरे पर जा सकते हैं। इस दौरान वे व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ औपचारिक बैठक में हिस्सा लेंगे।

अमेरिका के न्‍यू ऑर्ल‍ियन्‍स हमले में 15 लोगों की जान लेने वाला आर्मी का पूर्व सैनिक, ISIS से जुड़े तार

#americaneworleansattackerwasinspiredby_isis

अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस में नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ पर आतंकी हमला हुआ। अधिकारियों ने बताया कि नरसंहार पर आमादा हमलावर ने भीड़ की ओर अपना वाहन मोड़ दिया और लोगों को रौंदते हुए निकल गया। रॉटर्स के मुताबिक अब तक 15 लोगों की मौत हो गई है और 35 घायल हैं। इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकी की पहचान कर ली गई है। इस आतंकी साजिश को लेकर अमेरिका की फेडरल जांच एजेंसी (एफबीआई) ने कई बड़े खुलासे किए हैं।

संदिग्ध का नाम शम्सुद दीन जब्बार

न्यू ऑर्लियंस पुलिस ने अब हमलावर के बारे में कई जानकारी जारी की हैं। हमलावर की पहचान की पहचान 42 साल के शम्सुद दीन जब्बार के रूप में हुई है और वह अमेरिका में ही जन्मा है। हैरान करनी वाली बात ये है कि शम्सुद दीन जब्बार ने अमेरिका सेना में भी काम किया है। जांच एजेंसिया हमले के दूसरे पहलुओं की जांच कर रही हैं। एफबीआई को हमलावर का आईएसआईएस से भी लिंक मिला हैं, जिसके बाद अमेरिका में बढ़ती आईएसआईएस की पकड़ पर चिंता बढ़ गई है।

कैसे दिया हमले को अंजाम?

शम्सुद दीन जब्बार एक पिकअप ट्रक पर सवार होकर न्यू ऑर्लियंस के बॉर्बन स्ट्रीट पहुंचा। जहां उसने रास्ते में चल रही भीड़ पर ट्रक चढ़ा दिया, फिर गोलीबारी शुरू कर दी और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। पुलिस के अनुसार, यह घटना स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 3:15 बजे फ्रेंच क्वार्टर के मध्य में घटी, जहां नए साल का जश्न मना रहे लोगों की भीड़ थी।

चश्मदीदों के मुताबिक जब्बार एक सफेद फोर्ड एफ-150 इलेक्ट्रिक पिकअप में आया और पैदल चलने वालों के एक ग्रुप में घुसा दिया, भीड़ को रौंदने के बाद वह बार निकला और पुलिस के साथ गोलीबारी में मारा गया। हमलावर के ट्रक से एक काले कलर का झंडा भी मिला है, जिसको आईएसआईएस का झंडा माना जा रहा है।

एफबीआई ने कहा हमले के पीछे अकेले जब्बार नहीं

न्यू ओर्लियंस हमले के बाद एफबीआई ने मामले की जांच की कमान अपने हाथ में संभाल ले ली है। हमले पर एफबीआई ने भी अपना बयान जारी किया है। एफबीआई एजेंट एलेथिया डंकन ने कहा कि हम यह नहीं मानते कि बॉर्बन स्ट्रीट हमले के लिए अकेले जब्बार पूरी तरह जिम्मेदार था। हम उसके ज्ञात सहयोगियों समेत अन्य सभी सुराग पर आक्रामकता से काम कर रहे हैं। इसलिए हमें जनता की मदद की जरूरत है। हम पूछ रहे हैं कि क्या पिछले 72 घंटों में किसी ने जब्बार से कोई बातचीत की है, तो हमसे संपर्क करे। जिस किसी के पास इससे जुड़ी कोई जानकारी, वीडियो या तस्वीरें हैं, उसे एफबीआई से साझा करें।

जो बाइडेन ने जताया दुख

अमेरिका के न्यू ओर्लियंस पर नये साल के मौके पर हुए आतंकी हमले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने इस हमले में मारे गए लोगों पर गहरा शोक प्रकट किया है। उन्होंने कहा, "...जो लोग न्यू ओर्लियंस के आतंकी हमले में मारे गए हैं और जो घायल हुए हैं, उन सभी लोगों के लिए आज शोक मना रहे परिवारों से मैं कहना चाहता हूं कि मैं भी उनके इस दुख में शामिल हूं। बाइडेन ने कहा कि पूरा राष्ट्र आपके साथ दुखी है। जो लोग घायल हुए हैं उम्मीद है कि वह भी आने वाले हफ्तों में ठीक हो जाएंगे। तो भी हम आपके साथ खड़े रहेंगे। बाइडेन ने कहा कि एफबीआई यह पता लगाने के लिए जांच कर रही है कि क्या हुआ, क्यों हुआ और क्या सार्वजनिक सुरक्षा को और कोई खतरा बना हुआ है।

पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइल के खिलाफ क्यों हो गया अमेरिका, खुद के लिए किस खतरे की कर रहा बात?

#americasaidweareindangerfrompakistansmissile_program

पाकिस्तान अब अमेरिका के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल विकसित कर रहा है। वह ऐसी मिसाइलें बनाने में लगा है जिसमें दक्षिण एशिया के बाहर अमेरिका पर भी हमला करने की क्षमता हो। जिसके बाद अमेरिका ने एक अहम फैसले में पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम में शामिल चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के उप सलाहकार जॉन फाइनर ने कहा कि पाकिस्तान की गतिविधियां उसके इरादों पर गंभीर सवाल उठाती हैं। कार्नेगी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में एक भाषण के दौरान जॉन फाइनर ने कहा, 'साफ तौर पर हमें पाकिस्तान की गतिविधियां अमेरिका के लिए एक उभरते हुए खतरे के रूप में ही दिखाई देती हैं।'

फाइनर के मुताबिक ऐसे सिर्फ तीन ही देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार और अमेरिका तक मिसाइल हमला करने की क्षमता है। इनमें रूस, चीन और नॉर्थ कोरिया शामिल हैं। ये तीनों ही देश अमेरिका के विरोधी हैं। ऐसे में पाकिस्तान के ये कदम अमेरिका के लिए एक नई चुनौती बनते जा रहे हैं।

फाइनर ने कहा,पाकिस्तान का ये कदम चौंकाने वाला है, क्योंकि वह अमेरिका का सहयोगी देश रहा है। हमने पाकिस्तान के सामने कई बार अपनी चिंता जाहिर की है। हमने उसे मुश्किल समय में समर्थन दिया है और आगे भी संबंध बनाए रखने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में पाकिस्तान का ये कदम हमें ये सवाल करने पर मजबूर करता है कि वह ऐसी क्षमता हासिल क्यों करना चाहता है, जिसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ किया जा सकता है।

एक दिन पहले ही अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल से जुड़ी चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। विदेश विभाग की वेबसाइट पर जारी बयान में कहा गया है कि यह निर्णय पाकिस्तान की लंबी दूरी की मिसाइलों के विकास से होने वाले खतरे को देखते हुए लिया गया है।अमेरिका ने गुरुवार को बताया कि चार संस्थाओं को कार्यकारी आदेश 13382 के तहत प्रतिबंधित किया गया है, जो विनाशकारी हथियारों और उनके वितरण के साधनों के प्रसार से जुड़े लोगों पर लागू होता है। बयान के मुताबिक पाकिस्तान की 'नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स' और उससे जुड़ी अन्य संस्थाएं जैसे अख्तर एंड संस प्राइवेट लिमिटेड और रॉकसाइड एंटरप्राइज पर पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम के लिए उपकरण आपूर्ति करने का आरोप है।

पाकिस्तान ने बैन को बताया पक्षपातपूर्ण

अमेरिका के प्रतिबंधों की पाकिस्तान ने कड़ी निंदा करते हुए इसे पक्षपाती करार दिया है और कहा कि यह फैसला क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक परिणाम लाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा, 'पाकिस्तान की रणनीतिक क्षमताएं उसकी संप्रभुता की रक्षा और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए हैं। प्रतिबंध शांति और सुरक्षा के उद्देश्य को विफल करते हैं।

चीन की 3 कंपनियों पर लगाया था बैन

इससे पहले इसी साल अप्रैल में अमेरिका ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के लिए तकनीक सप्लाई करने पर चीन की 3 कंपनियों पर बैन लगा दिया था। इस लिस्ट में बेलारूस की भी एक कंपनी शामिल थी।

80 के दशक में शुरू हुआ पाकिस्तान का मिसाइल प्रोग्राम

पाकिस्तान ने 1986-87 में अपने मिसाइल प्रोग्राम हत्फ की शुरुआत की थी। भारत के मिसाइल प्रोग्राम का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हुई थी।

हत्म प्रोग्राम में पाक रक्षा मंत्रालय को फौज से सीधा समर्थन हासिल था। इसके तहत पाकिस्तान ने सबसे पहले हत्फ-1 और फिर हत्फ-2 मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, हत्फ-1 80 किमी और वहीं हत्फ-2 300 किमी तक मार करने में सक्षम थी।

यह दोनों मिसाइलें 90 के दशक में सेना का हिस्सा बनी थीं। इसके बाद हत्फ-1 को विकसित कर उसकी मारक क्षमता को 100 किलोमीटर बढ़ाया गया। 1996 में पाकिस्तान ने चीन की मदद से बैलिस्टिक मिसाइल की तकनीक हासिल की।

फिर 1997 में हत्फ-3 का सफल परीक्षण हुआ, जिसकी मार 800 किलोमीटर तक थी। साल 2002 से 2006 तक भारत के साथ तनाव के बीच पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा मिसाइलों की टेस्टिंग की थी।

सरकारी शटडाउन पर ट्रंप समर्थित बिल को नहीं मिला पूर्ण बहुमत, 38 रिपब्लिकंस ने भी विरोध में की वोटिंग

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अमेरिका पर इस समय आर्थिक संकट आ गया है। उसके पास इतना पैसा नहीं बचा है कि वह सरकारी कर्मचारियों को सैलरी दे सके। हालात शटडाउन जैसे हो चुके हैं। सरकार को फंड जुटाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थित बिल गुरुवार रात अमेरिकी संसद में गिर गया।इससे बचने के लिए अमेरिका के पास 24 घंटे से भी कम का समय बचा है।

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की फेडरल ऑपरेशन को फंड देने और गवर्नमेंट शटडाउन से एक दिन पहले कर्ज सीमा को बढ़ाने या सस्पेंड करने के प्लान को खारिज कर दिया है। गुरुवार रात अमेरिकी संसद में सरकारी शटडाउन से बचने के लिए बिल लाया गया था। इस बिल को ट्रंप का समर्थन था। करीब 3 दर्जन रिपब्लिकन ने डेमोक्रेट्स के साथ मिलकर ट्रंप समर्थित इस बिल के खिलाफ वोटिंग की। संसद में यह बिल 174-235 से गिर गया और बहुमत वोट भी हासिल करने में विफल रहा।

दरअसल, डेमोक्रेट्स ट्रंप को उनके नए कार्यकाल के पहले साल के दौरान बातचीत का फायदा नहीं देना चाहते। इस वजह से उन्होंने इस बिल का विरोध किया। ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से जीते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी शटडाउन को रोकने के लिए देश की कर्ज सीमा को बढ़ाने या निलंबित करने का प्रावधान को कानून में शामिल किए जाने की मांग की थी, खास बात यह है कि इस कदम का उनकी अपनी पार्टी नियमित तौर पर विरोध करती रही है। उन्होंने बुधवार को एक बयान में कहा कि इसके अलावा कुछ भी हमारे देश के साथ विश्वासघात है।

क्या होता है सरकार का शटडाउन?

अमेरिकी सरकार में शटडाउन तब होता है, जब सरकार के खर्च संबंधी विधेयक अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले लागू नहीं हो पाते हैं। शटडाउन के चलते संघीय सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ती है और गैर जरूरी सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजना पड़ता है। इस दौरान सिर्फ कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली जरूरी एजेंसियों के कर्मचारी ही काम करते हैं। शटडाउन के चलते संघीय और राज्य सरकारों के बीच का समन्वय भी बाधित होता है। फंडिंग में अंतराल के चलते साल 1980 में अमेरिका में शटडाउन को लेकर पहली बार कानूनी राय दी गई थी। साल 1990 से शटडाउन लागू होने लगे और फरवरी 2024 तक अमेरिका में 10 फंडिंग शटडाउन हो चुके हैं।

क्यों जरूरी है इसका पास होना?

दरअसल, अमेरिका को अपने खर्च चलाने के लिए फंड की जरूरत होती है। यह फंड कर्ज लेकर पूरा किया जाता है। इसके लिए एक बिल अमेरिकी संसद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में लाया जाता है। मौजूदा बिल को ट्रंप की ओर से लाया गया था, जिसे विपक्ष से खारिज कर दिया। इसका सीधा का मतलब है कि अमेरिका को खर्च के लिए पैसा नहीं मिलेगा। अमेरिका इस पैसे से ही न केवल सरकारी अधिकारियों को सैलरी देती है बल्कि दूसरे खर्च भी चलते हैं।

तो अमेरिका में हो जाएगा शटडाउन

इस बिल को पास कराने के लिए शुक्रवार रात तक का ही समय है। यानी अमेरिकी सरकार के पास 24 घंटे खर्च चलाने लायक पैसा भी नहीं है। अगर यह पास नहीं हो पाया तो अमेरिका में शटडाउन लग जाएगा। ऐसा होने पर अमेरिका पर बड़ी मुसीबत आ जाएगी। उसकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। इसका सबसे ज्यादा असर ट्रंप पर पड़ेगा

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।