*शहीदों के याद में बने स्मारक का उद्घाटन, गोपीगंज मिर्जापुर तिराहे पर आंदोलनकारियो की दी गई थी कच्ची फांसी*
रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव
भदोही- स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास रणबांकुरों से भरा पड़ा है। देश को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए लाखों लोगों ने प्राणों की आहुति दी है। ऐसे शहीदों की संख्या अनगिनत है। काशी-प्रयाग के मध्य गंगा की माटी में पले-बढ़े शहीद झूरी सिंह को याद करना जरूरी है। तत्कालीन जनपद मिर्जापुर के भदोही में अंग्रेजों के खिलाफ शहीद झूरी सिंह के नेतृत्व में बगावत का बिगुल फूंका गया था। झूरी सिंह का जन्म भदोही जनपद के परऊपुर गांव में 21 अक्टूबर 1816 में हुआ था। उनके पिता का नाम सुदयाल सिंह था।अंग्रेजों के खिलाफ 28 फरवरी को अभोली में सभासिंह के बाग में मीटिंग आयोजित कि गयी थी जिसका मकसद था, अंग्रेजों को नील की खेती से रोकना। बाद में खुद की सेना को संगठित कर अंग्रेजों के खजाने को लूट कर देश को गुलामी से मुक्त कराना था।
अंग्रेजों के खिलाफ इस रणनीति में उदवंत सिंह, रामबक्श सिंह, भोला सिंह, रघुवीर सिंह, दिलीप सिंह, माता भक्त सिंह, सर्वजीत सिंह, राजकरण सिंह, संग्राम सिंह, महेश्वरी प्रसाद, बलभद्र सिंह, शिवदीन, रामटहल हनुमान जैसे युवा शामिल हुए। देश में 1857 की क्रांति भड़कने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ गांव-गांव में आक्रोश फैलने लगा था। जनता नील की खेती का विरोध करने लगी थी।शहीद झूरी सिंह के प्रपौत्र रामेश्वर सिंह ने बताया कि यूरोपीयन इतिहासकार जक्शन ने लिखा है कि 10 जून 1857 को भदोही में क्रांति ने इतना व्यापक रूप ले लिया था कि अंग्रेज सिपाहियों को मिर्जापुर की पहाड़ी पर भागना पड़ा था। भंडा गांव में अंग्रेजों द्वारा नियुक्त सजावल को घायल कर दिया गया और जीटी रोड पर अवरोध उत्पन्न कर मालखाने को लूट लिया गया। इस सफलता के बाद संगठित सेना गठित कर अपने सिपाहियों की नियुक्त कर उदवंत सिंह को राजा घोषित कर दिया गया। उदवंत सिंह की गतिविधियों की खबर जब अंग्रेजों को मिली तो खलबली मच गयी। जिसका नतीजा हुआ कि 16 जून को अंग्रेजों ने अपनी चाल बदलते हुए मिर्जापुर के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट बिलियन रिचर्ड म्योर जो बंगाल सिविल सेवा का अधिकारी था, उसकी नियुक्ति भदोही के पाली गोदाम पर कर दी गयी। अंग्रेज यहाँ नील की खेती कराते थे। इसके बाद अंग्रेज अफसर ने एक साजिश रची और क्रांति का नेतृत्व कर रहे उदवंत सिंह को निमंत्रण पत्र भेजकर बुलवाया। फिर उदवंत सिंह के साथ दो और और क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर गोपीगंज के शाही मार्ग पर इमली के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया।
फांसी की घटना के बाद भदोही की जनता का आक्रोश फूट पड़ा। शहीद उदवंत सिंह की धर्मपत्नी रत्ना सिंह ने तलवार उठाकर मजिस्ट्रेट बिलियन रिचर्ड म्योर का वध करने का प्रण लिया। बाद में इस आंदोलन का नेतृत्व झूरी सिंह ने अपने हाथ में ले लिया। झूरी सिंह मजिस्ट्रेट बिलियन रिचर्ड म्योर को जिंदा नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने अपने क्रांतिकारी साथियों को लेकर पाली स्थित नील गोदाम पर आक्रमण कर दिया। हमले में तीन अंग्रेज अधिकारी और कुछ सिपाहियों की हत्या कर दी गयी।रामेश्वर सिंह के अनुसार क्राउन बनाम झूरी सिंह की गवाही में बताया गया है कि करीब 300 आजादी के दीवानों ने 4 जुलाई शाम 4:00 बजे पाली गोदाम पर आक्रमण किया था।
आंदोलनकारियों के हमले से बचने के लिए पाली गोदाम से रिचर्ड म्योर जान बचा कर भागना चाहा। लेकिन वहां शीतक पाल नामक गडेरिया अपनी भेड़ चरा रहा था। झूरी सिंह ने उसे ललकारा कि अंग्रेज भागने न पाए, उसके पैर में लग्गा फसाओ। शीतल पाल ने वैसा ही किया और अंग्रेज अफसर गिर पड़ा। इसके बाद फौरन झूरी सिंह शेर की माफिक उस पर टूट पड़े और तलवार से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। बाद में 16 साल का मुसई सिंह रिचर्ड म्योर का सिर हाथ में पकड़ कर झूरी सिंह के साथ उदवंत सिंह की पत्नी रत्ना सिंह के पास पहुंच कर सामने पटक दिया। क्योंकि रत्ना सिंह ने कसम खाई थी कि जब तक उदवंत सिंह की हत्या का बदला उन्हें नहीं मिल जाता वह चैन से नहीं जी सकतीं। इस घटना के बाद मुसई सिंह को पांच जुलाई को काला पानी की सजा सुनायी गयी और अन्डमान भेज दिया गया।
Aug 14 2024, 17:26