प्राइवेट जॉब्स में 100 फीसदी आरक्षण पर बवाल, घिरे तो सिद्धारमैया ने डिलीट की पोस्ट, अब नया ट्वीट कर दी सफाई

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कर्नाटक सरकार का कन्नड़ लोगों को निजी नौकरियों में 50-75% तक का आरक्षण देने वाला बिल गले की फांस बनता जा रहा है।कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की ओर से प्राइवेट सेक्टर में कन्नड़ भाषियों को आरक्षण दिए जाने से जुड़ा विधायक लाने के फैसले पर उद्योग जगत के कई दिग्गजों नेगहरी आपत्ति जताई, साथ ही इसे फासीवादी और अदूरदर्शी कदम करार दिया। वहीं विवाद के बीच सीएम सिद्दारमैया ने आरक्षण से जुड़ा एक पोस्ट डिलीट कर दिया। अब नया ट्वीट कर सफाई दी है।

कर्नाटक में कन्नड़ों को निजी कंपनियों में नौकरी के लिए आरक्षण देने वाले विधेयक पर गहराते विवाद में खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मुश्किलों में घिर गए हैं। दरअसल, उन्होंने पहले एक ट्वीट कर निजी उद्योगों में ‘सी और डी’ श्रेणी के 100 प्रतिशत पदों को कन्नडिगा (कन्नड़भाषी) लोगों के लिए आरक्षित करने की बात कही। इस पर जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने इसे डिलीट कर नया ट्वीट किया। इसमें उन्होंने लिखा, 'सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में राज्य के निजी उद्योगों और अन्य संगठनों में कन्नड़ लोगों के लिए प्रशासनिक पदों के लिए 50% और गैर-प्रशासनिक पदों के लिए 75% आरक्षण तय करने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी गई। हमारी सरकार की इच्छा है कि कन्नड़ लोगों को उनकी ही धरती पर नौकरियों से वंचित न होना पड़े और उन्हें मातृभूमि में आरामदायक जीवन जीने का अवसर मिले। हम कन्नड़ समर्थक सरकार हैं। हमारी प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण का ध्यान रखना है।'

इससे पहले सीएम सिद्धारमैया ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा था, "कल कैबिनेट बैठक में राज्य के सभी निजी उद्योगों में 'सी और डी' ग्रेड के पदों पर 100 प्रतिशत कन्नड़ लोगों की भर्ती अनिवार्य करने के विधेयक को मंजूरी दी गई।" उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार की इच्छा है कि कन्नड़ भाषी स्थानीय लोगों को अपने राज्य में आरामदेह जीवन जीने का मौका दिया जाए। उन्हें अपनी 'कन्नड़ भूमि' में नौकरियों से वंचित न किया जाए। बाद में सीएम ने वह पोस्ट हटा दी।

बता दें कि उद्योग जगत ने इस विधेयक की मुखर आलोचना की है। इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टीवी। मोहनदास पाई ने विधेयक की आलोचना करते हुए इसे फासीवादी करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर अपने पोस्ट में कहा, “इस विधेयक को रद्द कर दिया जाना चाहिएष यह पक्षपातपूर्ण, प्रतिगामी और संविधान के खिलाफ है। यह अविश्वसनीय है कि कांग्रेस इस तरह का कोई विधेयक लेकर आई है। सरकारी अफसर प्राइवेट सेक्टर की भर्ती समितियों में बैठेंगे? लोगों को अब भाषा की भी परीक्षा देनी होगी?”

फार्मा कंपनी बायोकॉन की एमडी किरण मजूमदार शॉ ने कहा, “एक प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की दरकार होती है और हमारा मकसद हमेशा स्थानीय लोगों को रोजगार देना होता है। हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए।” एसोचैम की कर्नाटक इकाई के सह अध्यक्ष आरके मिश्रा ने भी आलोचना करते हुए कहा, “कर्नाटक सरकार का एक और प्रतिभावान कदम।”

प्रमुख कारोबारियों के बाद अब आईटी कंपनी संगठन नेशनल असोसिएशन फॉर सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेस कंपनीस (एनएएसएससीओएम) ने भी इस निर्णय अपनी चिंताएँ जाहिर की हैं। एनएएसएससीओएम ने कर्नाटक सरकार से इस बिल को वापस लेने की माँग की है और कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें राज्य से बाहर जाने का कदम उठाना पड़ सकता है।

एनएसएससीओएम ने एक पत्र जारी करके इस नए बिल को लेकर समस्याएँ बताई हैं। इस पत्र में एनएएसएससीओएम ने कहा, “टेक सेक्टर कर्नाटक की अर्थव्यवस्था और समाज के विकास में बड़ा कारक रहा है। टेक सेक्टर राज्य की GDP में लगभग 25% योगदान देता है और प्रदेश के रफ़्तार से तरक्की में बड़ा सहायक रहा है जिससे राज्य की प्रति व्यक्ति आय देश के औसत से ऊँची हो गई है। राज्य में देश के 30% GCC (ग्लोबल कैपेसिटी सेंटर) और 11,000 स्टार्टअप हैं।

केजरीवाल की जमानत पर फैसला सुरक्षित, जानिए हाई कोर्ट में वकील सिंघवी और सीबीआई ने दीं क्या-क्या दलीलें

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दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शराब नीति घोटाले में तिहाड़ जेल में बंद हैं। केजरीवाल ने जमानत के अलावा अपनी गिरफ्तारी को भी दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है। सोमवार को हाई कोर्ट में सीबीआई से जुड़े भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के मामले में सुनवाई हुई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। जमानत पर अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी।

अदालत ने कहा है कि फैसला लिखने में 5-7 दिनों का समय लगेगा। सुनवाई के दौरान केजरीवाल के वकील ने कहा कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी ईडी मामले में अंतरिम ज़मानत दे दी है। आज वो बाहर होते, अगर सीबीआई इंश्योरेंस अरेस्ट नहीं करती। सीबीआई की तरफ से स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर डी. पी. सिंह ने अपनी दलील में कहा कि जांच एजेंसी होने के नाते हमारे पास अपने अधिकार है। हमारे पास अपने अधिकार हैं कि किस आरोपी के खिलाफ कब चार्जशीट करनी है और किस आरोपी को किस समय बुलाना है।

अरविंद केजरीवाल की ओर से सिंघवी की दलीलें

• अरविंद केजरीवाल एक मुख्यमंत्री हैं कोई आतंकवादी नहीं कि उनको जमानत ना मिले

• तारीखें इस बात का बयान देती है की गिरफ्तारी की कोई जरूरत नही थी। ये केवल इंश्योरेंस अरेस्ट था

• सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना ने अपने आदेश में साफ कहा है कि इंटेरोगेशन गिरफ़्तारी का आधार नहीं हो सकता

• सीबीआई ने अपनी अर्जी में गिरफ्तारी का कोई आधार नही दिया। 

• एक भी आधार नही बताए गए कि आखिर गिरफ्तारी क्यों की जा रही हैं। मुझे बिना सुने 25 जून को सीबीआई की अर्जी को मंजूरी मिल गई और मुझे गिरफ्तार किया गया

• अरविंद केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलील समाप्त करते हुए कहा

• अरविंद केजरीवाल की ब्लड शुगर 5 बार सोते हुए 50 के नीचे जा चुकी है

• इस मामले में सबको जमानत मिल रही है, मेरी पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी है लेकिन मुझे बेल नहीं मिल रही

बता दें कि दिल्‍ली शराब घोटाला से जुड़े मामले में ट्रायल कोर्ट ने मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमान दे दी थी। ईडी की तमाम दलीलाों को खारिज करते हुए राउज एवेन्‍यू कोर्ट ने सीएम केजरीवाल को जमानत दी थी। जांच एजेंसी राउज एवेन्‍यू कोर्ट के फैसले को दिल्‍ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सीएम केजरीवाल की जमानत को लेकर दिए गए निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके बाद मुख्‍यमंत्री केजरीवाल के जेल से बाहर आने की उम्‍मीदें धूमिल हो गई थीं। उनकी अंतरिम जमानत याचिका पर बुधवार को भी हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, लेकिन कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।

हरियाणा सरकार का बड़ा ऐलान, अग्निवीरों के लिए पुलिस और माइनिंग गार्ड भर्ती में 10 फीसदी आरक्षण

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हरियाणा की नायब सैनी सरकार ने अग्निवीरों को लेकर बड़ा ऐलान किया है।प्रदेश की नायब सिंह सैनी सरकार ने पुलिस और माइनिंग गार्ड में पूर्व अग्निवीरों को 10 फीसद तक आरक्षण देने की घोषणा की है।साथ ही राज्य की ग्रुप C और D भर्ती में भी उम्र सीमा में भी छूट दी जाएगी। वहीं, अपना बिजनेस करने के लिए बिना ब्याज के लोन भी दिया जाएगा। बता दें कि हरियाणा में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्तारुढ़ बीजेपी चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने को बेताब है। ऐसे में चुनाव से पहले हरियाणा की बीजेपी सरकार का ये ऐलान फायदेमंद साबित हो सकता है।

मुख्यमंत्री सैनी ने आज बुधवार को अग्निवीरों के लिए बड़ी योजना का ऐलान किया। मुख्यमंत्री सैनी ने कहा कि पीएम मोदी की ओर से 14 जून 2022 को अग्निपथ योजना लागू की गई है। इस योजना के तहत अग्निवीरों को 4 साल के लिए भारतीय सेना में तैनात किया जाता है। हमारी सरकार अब हरियाणा में अग्निवीरों के लिए राज्य सरकार द्वारा भर्ती किए जाने वाले कांस्टेबल, माइनिंग गार्ड, फॉरेस्ट गार्ड, जेल वार्डन और एसपीओ के पदों पर सीधी भर्ती में 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करेगी।

बिना ब्‍याज लोन 

अग्निवीर सैनिकों को 500000 तक बिना ब्याज का लोन दिया जाएगा। पूर्व अग्निवीर सरकारी लोन लेकर चाहें तो अपना कामकाज भी शुरू कर सकते हैं, ताकि वे आत्‍मनिर्भर बन सकें और अपने परिवार का भरण-पोषण भी अच्‍छी तरह से कर सकें। साथ ही पूर्व अग्निवीरों को आर्म्‍स लाइसेंस भी दिया जाएगाय़

अग्निवीरों को यातायात दुर्घटना में घायल होने पर मुआवजा

सरकार अग्निवीर सैनिकों को यातायात दुर्घटना में घायल होने पर मुआवजा देगी। सड़क दुर्घटना में घायलों का पूरा खर्च भी सरकार उठाएगी। इसके लिए हर जिले में कमेटी का गठन किया गया है। अगर पीड़ित की मौत हो जाती है तो परिजनों को मुआवजा मिलेगा। इस खर्च का वहन हरियाणा रोड सेफ्टी फंड से किया जाएगा । इस स्कीम के तहत बीमाकृत तथा बीमा रहित वाहनों और टक्कर मारकर भागने वाले मोटर वाहन दुर्घटनाओं के पीड़ितों को कैशलेस उपचार की सुविधा प्रदान की जाएगी।

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने इस दौरान कांग्रेस पर भी निशाना साधा और कहा कि कांग्रेस ने अग्निवीर योजना को लेकर दुष्प्रचार किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अग्निवीर प्रधानमंत्री की लोकहित योजना है। इसलिए कांग्रेस इसके बारे में लोगों को भ्रमित करने का काम कर रही है। 

हरियाणा सरकार का ये ऐलान ऐसे वक्त में आया है जब अग्निवीर योजना का मुद्दा संसद में उठा था। लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र की अग्निवीर योजना का हवाला देते हुए कहा था कि मैं अग्निवीर परिवार से मिला हूं अग्निवीर जवान को केंद्र सरकार शहीद का दर्जा नहीं देती। अग्निवीर जवान यूज एंड थ्रो मजदूर हैं। इस योजना को लेकर युवकों के मन में डर व्याप्त है। वहीं राज्य में आने वाले वक्त में विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं।

45 साल से संस्कृत में लड़ रहे केस, आज तक कोई नहीं हरा पाया, जब भी अदालत की चौखट पर कदम रखा, संस्कृत भाषा का ही किया इस्तेमाल

आज तक अदालतों में हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू इन्हीं तीनों भाषाओं का इस्तेमाल होते अक्सर देखा गया है. लेकिन आज ऐसे वकील के बारे में जानिए जिन्होंने जब भी अदालत की चौखट पर कदम रखा, संस्कृत भाषा का ही इस्तेमाल किया. इनका नाम है आचार्य श्यामजी उपाध्याय.

श्यामजी उपाध्याय उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बीते 45 साल से संस्कृत भाषा में वकालत कर रहे हैं. श्यामजी से जब पूछा गया कि हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू को छोड़ उन्होंने वकालत के लिए संस्कृत क्यों चुना तो उन्होंने 70 साल पुराना अपने जीवन से जुड़ा एक किस्सा सुनाया. वो साल 1954 था, जब श्याम जी उपाध्याय सात साल की उम्र में अपने पिता पंडित संकठा प्रसाद उपाध्याय के साथ मिर्ज़ापुर कचहरी गए हुए थे. पिताजी को किसी से कहते सुना कि यहां अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में तो बहस हो रही है, लेकिन संस्कृत में नही, बहुत अफ़सोस है कि यहां संस्कृत में कोई बहस करने वाला नहीं है.

सात साल के श्यामजी उपाध्याय ने पिता की इच्छा के लिए प्रण लिया कि अब वकील ही बनना है और संस्कृत में ही मुकदमा लड़ना है.1978 मार्च से बनारस कचहरी में मुकदमा लड़ने की शुरुआत हुई. फौजदारी मामले के वकील श्री श्यामजी उपाध्याय 1978 से अभी तक कई केस लड़ चुके हैं, लेकिन उनका दावा है कि अभी तक कोई केस नही हारे हैं. वह वाराणसी के सेशन कोर्ट में वकालत करते हैं.

श्यामजी कहते हैं कि सुनवाई के दौरान संस्कृत के आसान शब्दों का ही इस्तेमाल करते हैं. पास में ही ट्रांसलेटर रहता है, जो कि वहीं अनुवाद करके समझा देता है. श्यामजी कहते हैं कई बार तो वह खुद भी अदालत को हिंदी में मतलब समझा देते हैं. श्यामजी शपथ पत्र सहित अन्य दस्तावेज भी संस्कृत में ही अदालत में पेश करते हैं.

श्यामजी उपाध्याय अपने चैम्बर में बाबा विश्वनाथ को स्थापित कर रखे हैं. बाबा विश्वनाथ को पुष्प अर्पित कर धूप दिखाकर ही काम की शुरुआत करते हैं. पिछले 70 सालों से गंगा स्नान और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करना उनके दिनचर्या का हिस्सा रहा है. 2003 में भारत सरकार ने श्री श्यामजी उपाध्याय को संस्कृत मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया. श्यामजी उपाध्याय हिन्दी और संस्कृत में एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं. इनके कानून, संस्कृति, धर्म और दर्शन पर दर्जनों लेख भी छप चुके हैं.

इलेक्ट्रिक गाड़ी खरीदने वालों की अब बल्ले-बल्ले, सरकार ने किया बड़ा ऐलान, इन कारों पर 3 लाख तक की बचत!

 इलेक्ट्रिक गाड़ियों की खरीदारी पर मिलने वाला प्रोत्साहन जारी रहेगा. उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पॉलिसी को 2027 तक बढ़ा दिया है. जिसके बाद नीति की सब्सिडी और प्रोत्साहन तीन साल से थोड़ा अधिक समय तक जारी रहेगा. हाल में यूपी सरकार ने स्ट्रांग हाइब्रिड वाहनों के रजिस्ट्रेशन पर छूट का ऐलान किया था अब इलेक्ट्रिक वाहनों पर मिलने वाली सब्सिडी की समय-सीमा बढ़ा दी गई है.

बता दें कि, उत्तर प्रदेश सरकार ने अक्टूबर 2022 को इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को तेजी से अपनाने और बढ़ावा देने के लिए राज्य में EV पॉलिसी की घोषणा की थी. ये पॉलिसी इसी अक्टूबर 2025 तक समाप्त होने वाली थी. लेकिन इससे पहले ही इस विस्तार दे दिया गया है. समयसीमा बढ़ाने का फैसला राज्य सरकार द्वारा सभी हाइब्रिड वाहनों को रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन फीस से छूट देने के कुछ दिनों बाद आया है, जो वाहन की लागत का लगभग 10% है.

नई इलेक्ट्रिक व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग और मोबिलिटी पॉलिसी-2022 तीन अलग-अलग इंसेंटिव रिजीम प्रोवाइड करती है. जिसमें इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वाले उपभोक्ताओं, इलेक्ट्रिक व्हीकल निर्माता, बैटरी और संबंधित कंपोनेंट्स के निर्माताओं और चार्जिंग/स्वैपिंग सुविधाएँ विकसित करने वाले सर्विस प्रोवाइडर्स को लाभ उपलब्ध कराने जैसे बेनिफिट्स शामिल हैं.

इतना ही नहीं, इस नीति का उद्देश्य 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आकर्षित करना और दस लाख से अधिक लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पैदा करना है. ये पॉलिसी राज्य में न्यूनतम 1 गीगावाट ऑवर (GWh) उत्पादन क्षमता वाले बैटरी निर्माण प्लांट की स्थापना के लिए 1,500 करोड़ रुपये या उससे अधिक निवेश करने वाली अधिकतम प्रथम दो अल्ट्रा मेगा बैटरी परियोजनाओं को प्रति परियोजना अधिकतम 1,000 करोड़ रुपये के निवेश पर 30% की दर से पूंजी सब्सिडी प्रदान करती है.

यूपी सरकार के इस पॉलिसी को बढ़ाए जाने के बाद इलेक्ट्रिक टू व्हीलर गाड़ियाँ की ख़रीद पर 5,000 रुपये और इलेक्ट्रिक चारपहिया वाहनों पर 1 लाख रुपये तक की सब्सिडी अब अक्टूबर 2027 तक मिलेगी. राज्यपाल ने सरकार के इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है. अधिसूचना के मुताबिक़ दो पहिया गाड़ियों के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान है, जिससे लगभग 20 लाख गाड़ियों को सब्सिडी मिल सकेगी. वहीं चार पहिया गाड़ियों पर एक लाख रुपये की छूट 25 हज़ार गाड़ियों के लिए मंज़ूर की गई है. राज्यपाल ने 250 करोड़ रुपये चार पहिया गाड़ियों के लिए आवंटित किया है. यहां ध्यान देना जरूरी है कि, इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वाले को सिर्फ़ एक गाड़ी पर ही छूट दी जाएगी. दूसरी गाड़ी लेने पर रियायत मान्य नहीं होगी.

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने स्ट्रांग हाइब्रिड कारों के रजिस्ट्रेशन पर टैक्स छूट की घोषणा की है. जिससे कार खरीदारी में भारी बचत होगी. सरकार के इस फैसले से ग्राहकों को हाइब्रिड कार खरीदारी के दौरान संभावित रूप से 3 लाख रुपये तक की बचत हो सकती है. यूपी सरकार स्ट्रांग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों और प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए रजिस्ट्रेशन शुल्क पर 100 प्रतिशत छूट दे रही है. उत्तर प्रदेश में 10 लाख रुपये से कम कीमत वाले वाहनों पर 8% और 10 लाख रुपये से ज़्यादा कीमत वाले वाहनों पर 10% रोड टैक्स वसूला जाता है, इसलिए ये फैसला काफी राहत भरा होगा.

मारुति सुजुकी इंडिया (MSIL), होंडा कार्स इंडिया (HCIL) और टोयोटा किर्लोस्कर मोटर (TKM) जैसी कंपनियों को यूपी सरकार के इस फैसले से बड़ा फायदा होने की उम्मीद है. क्योंकि वो प्रमुख कार ब्रांड्स हैं जो भारतीय बाजार में हाइब्रिड कारों की मैन्युफैक्चरिंग और बिक्री करती हैं. ग्राहक मारुति इनविक्टो और टोयोटा इनोवा हाईक्रॉस जैसी कारों पर 3 लाख रुपये और मारुति ग्रैंड विटारा, टोयोटा अर्बन क्रूजर हाइराइडर और होंडा सिटी ई: HEV पर 2 लाख रुपये तक की बचत कर सकते हैं.

Innova Hycross ZX(O) टॉप मॉडल की लखनऊ में ऑनरोड कीमत तकरीबन 36.03 लाख रुपये है. जिसमें 3.12 लाख रुपये RTO चार्ज शामिल है. अब ये रजिस्ट्रेशन शुल्क नहीं देना होगा. दूसरी ओर Maruti Grand Vitara हाइब्रिड के टॉप मॉडल अल्फा प्लस की लखनऊ में ऑनरोड कीमत तकरीबन 22.80 लाख रुपये है. जिसमें 2 लाख रुपये के करीब RTO चार्ज है. यानी इन वाहनों की खरीदारी पर रजिस्ट्रेशन पर खर्च होने वाले लाखों रुपये की भारी बचत होगी.

NEET पेपर लीक मामले में अब तक की सबसे बड़ी गिरफ्तारी, CBI के हत्थे चढ़ा पेपर चोरी करने वाला आरोपी

 नीट पेपर लीक मामले में सीबीआई ने 2 और लोगों को गिरफ्तार किया है.गिरफ्तार किए गए आरोपियों की पहचान पंकज सिंह ऊर्फ और राजू के रूप में हुई है. पंकज सिंह पर आरोप है कि उसने हजारीबाग ट्रंक से नीट के पेपर चोरी किए थे, जिन्हें बाद में लीक कर दिया गया था. पंकज सिंह सिविल इंजीनियरिंग भी कर चुका है. वहीं, राजू पर आरोप है कि उसने लीक पेपर को सर्कुलेट किया था यानी बांटा था.

सीबीआई की टीम ने पंकज सिंह को पटना से गिरफ्तार किया है. वहीं, लीक कांड में उसका साथ देने वाले राजू को झारखंड के हजारीबाग से गिरफ्तार किया गया है. हजारीबाग जिसे पेपर लीक कांड का अड्डा बताया जा रहा है. नीट के पेपर यहीं पर ट्रंक में रखे गए थे. सीबीआई ने इससे पहले हजारीबाग के ओएसिस स्कूल के प्रिंसिपल और वाइस प्रिंसिपल को भी गिरफ्तार किया था. सीबीआई की टीम दोनों को गिरफ्तार करके पटना ले आई थी.

इस मामले में सीबीआई 13 लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है. अब दो और लोग सीबीआई के हत्थे चढ़ गए हैं. इस तरह से देखें तो इस मामले में अब तक 15 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. पटना हाईकोर्ट से शुक्रवार को सभी 13 आरोपियों की रिमांड मिलने के बाद सीबीआई आज बेऊर जेल भी पहुंची थी. जेल में बंद कुछ आरोपियों से पूछताछ करने के बाद टीम सभी को लेकर पटना स्थित अपने दफ्तर चली गई थी. जहां, टीम के सदस्य सभी आरोपियों से वन टून वन पूछताछ की थी.

सीबीआई की टीम ने 11 जुलाई को झारखंड से पेपर लीक के मास्टरमाइंड रॉकी को गिरफ्तार किया था. नीट परीक्षा के प्रश्न पत्र आउट कराने में इसकी भूमिका अहम थी. सीबीआई अब इसकी निशानदेही पर मुख्य सेंटर तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. गिरफ्तार रॉकी के बारे में बताया जाता है कि वो बिहार के नवादा जिले का रहने वाला है और संजीव मुखिया के करीबी रिश्तेदार है. रॉकी ही वो शख्स है जिसके मोबाइल पर सबसे पहले प्रश्नपत्र आया था. जिसे उसने रांची के ही डॉक्टर की टीम से सॉल्व कराने के बाद पटना में चिंटू को भेज दिया था. रॉकी फिलहाल सीबीआई की रिमांड पर है.

EVM की गड़बड़ी से हार गए..', कहने वाले उम्मीदवारों के लिए चुनाव आयोग ने लिया बड़ा फैसला, अब मिलेंगे ये विकल्प

''EVM में गड़बड़ी थी, इसलिए हम हार गए।'' अक्सर चुनावों में हारने वाले उम्मीदवारों, पार्टियों और उनके समर्थकों के मुंह से आपने ये बातें जरूर सुनी होंगी। लेकिन अब चुनाव आयोग ने इसका तोड़ निकाल लिया है। अब निर्वाचन आयोग असंतुष्ट उम्मीदवारों को बड़ी छूट देने जा रहा है। दरअसल, चुनाव आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ की जांच के लिए आवेदन करने वाले असंतुष्ट उम्मीदवारों के लिए कई विकल्प उपलब्ध कराए हैं। इन विकल्पों में विधानसभा क्षेत्र के किसी भी मतदान केंद्र से ईवीएम का चयन करना और मॉक पोल और मॉक वीवीपैट स्लिप काउंटिंग का विकल्प चुनना शामिल है।

चुनाव आयोग द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध विभिन्न यादृच्छिक परीक्षणों की रूपरेखा दी गई है। यह सुनिश्चित करता है कि नियंत्रित वातावरण से परे बर्न मेमोरी की जांच और सत्यापन प्रक्रिया फर्मवेयर में किसी भी पूर्वाग्रह या छिपी हुई कार्यक्षमता को हटा देती है। चुनाव आयोग को 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ईवीएम के माइक्रो-कंट्रोलर चिप्स में छेड़छाड़ या संशोधन के सत्यापन की मांग करने वाले कांग्रेस सहित विपक्ष के असंतुष्ट उम्मीदवारों से आठ आवेदन मिले हैं।

इससे पहले, 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम में हेरफेर के बारे में चिंताओं को "निराधार" बताते हुए पुरानी पेपर बैलट प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को खारिज कर दिया था। न्यायालय ने दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे असफल उम्मीदवारों को चुनाव आयोग को लिखित अनुरोध करके और शुल्क देकर प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत ईवीएम में माइक्रो-कंट्रोलर चिप्स को सत्यापित करने की अनुमति भी दी।

योग्य उम्मीदवार सत्यापन के लिए विधानसभा क्षेत्र के भीतर मतदान केंद्रों या मशीनों की क्रम संख्या निर्दिष्ट कर सकते हैं, बशर्ते कि यह उस क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली ईवीएम के अधिकतम पांच प्रतिशत को कवर करे। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि आवेदक की पसंद के अनुसार पूरे निर्वाचन क्षेत्र से ईवीएम का चयन किया जाता है, बिना किसी तीसरे पक्ष या आधिकारिक भागीदारी के।

उम्मीदवार विधानसभा क्षेत्र के किसी भी मतदान केंद्र से ईवीएम इकाइयों को मिला सकते हैं। यदि किसी मतदान केंद्र से एक विशिष्ट इकाई का चयन किया जाता है, तो उसी सेट से अन्य इकाइयों की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बजाय, उम्मीदवार निर्वाचन क्षेत्र के भीतर अन्य मतदान केंद्रों से अपनी पसंद की इकाइयों को मिला सकते हैं। प्रत्येक ईवीएम में कम से कम एक बैलट यूनिट, एक कंट्रोल यूनिट और एक वीवीपीएटी या पेपर ट्रेल मशीन होती है।

सभी चयनित ईवीएम इकाइयों का स्व-निदान किया जाएगा, और बर्न मेमोरी विश्वसनीयता सहित कई विद्युत मापदंडों की जाँच की जाएगी। केवल स्व-निदान वाली इकाइयाँ ही आगे के सत्यापन के लिए आगे बढ़ेंगी। चुनी गई ईवीएम इकाइयों को पहले स्व-निदान से गुजरना होगा, उसके बाद पारस्परिक प्रमाणीकरण होगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल वास्तविक इकाइयाँ ही जुड़ी हुई हैं। यह प्रक्रिया नकली या अनधिकृत इकाइयों को ईसीआई-ईवीएम के साथ इंटरफेस करने से रोकती है।

उम्मीदवार मॉक पोल के लिए कोई भी क्रम या पैटर्न चुन सकते हैं, जिसकी अधिकतम सीमा 1400 वोट है। वीवीपैट पर्चियों की गिनती आयोग द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करेगी। 4 जून को परिणाम घोषित होने के बाद ईवीएम की बर्न मेमोरी या माइक्रोकंट्रोलर की पुष्टि के लिए लोकसभा चुनाव के लिए कुल आठ और विधानसभा चुनाव के लिए तीन आवेदन प्राप्त हुए।

जल्द शादी करेंगी तमन्ना भाटिया! इस अभिनेता संग लेंगी सात फेरे! जानिए कब शुरू हुई लव स्टोरी

फिल्म एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया इन दिनों सुर्खियों में चल रही है। तमन्ना भाटिया और विजय वर्मा का अफेयर इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। विजय वर्मा और तमन्ना भाटिया की लव स्टोरी वेब सीरिज लस्ट स्टोरी के सेट पर शुरू हुई थी। इस सीरीज में दोनों काफी बोल्ड सीन दिए थे। एक्टर विजय वर्मा ओटीटी पर धूम मचा रहे हैं। इस बीच वे अपनी शादी को लेकर चर्चा में आ गए हैं। 

विजय से कई बार तमन्ना संग उनकी शादी को लेकर सवाल किए जा चुके हैं. इस बार एक्टर ने अपने वेडिंग प्लान्स का खुलासा कर दिया है.

तमन्ना भाटिया और विजय वर्मा पिछले काफी समय से अपने रिलेशनशिप को लेकर चर्चा में हैं। विजय वर्मा और तमन्ना की जोड़ी को 'लस्ट स्टोरीज 2' में खूब पसंद किया गया था, और उनके बीच इंटिमेट सीन्स भी थे। इस सीरीज के कुछ दिन बाद विजय वर्मा और तमन्ना ने अपना रिलेशनशिप ऑफिशियल कर दिया था।

हालांकि फैंस Vijay Varma और Tamannaah Bhatia के रिलेशनशिप को डेढ़ साल से सेलिब्रेट कर रहे हैं। दोनों के अफेयर के चर्चे तब शुरू हुए थे, जब गोवा में न्यू ईयर पार्टी से उनके किसिंग की तस्वीरें सामने आई थीं। तभी से उनके अफेयर की चर्चा शुरू हो होने लगी थी, जिन्हें तब और हवा मिली जब Lust Stories 2 के लिए विजय और तमन्ना के नाम की घोषणा की गई।

बता दें कि, विजय वर्मा और तमन्ना भाटिया की लव स्टोरी वेब सीरिज लस्ट स्टोरी के सेट पर शुरू हुई थी. इस सीरीज में दोनों काफी बोल्ड सीन दिए थे.

विजय वर्मा ने बताया था कि उन्होंने और तमन्ना ने 'लस्ट स्टोरीज 2' के बाद एक-दूसरे को डेट करना शुरू किया। पहली डेट पर जाने में उन्हें 20-25 दिन लगे। उन्होंने तमन्ना से एक यूट्यूब चैनल पर बातचीत में कहा, 'लस्ट स्टोरीज 2' तो हमारे लिए सिर्फ एक क्यूपिड की तरह रही, लेकिन असल जिंदगी की प्रेम कहानी बाद में शुरू हुई। हम 'लस्ट स्टोरीज 2' के बाद एक रैप पार्टी करने की प्लानिंग कर रहे थे, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। पार्टी में सिर्फ चार लोग आए, और उस दिन मुझे महसूस हुआ। मैंने तमन्ना से कहा कि मैं तुम्हारे साथ और हैंगआउट करना चाहता हूं। पार्टी के बाद पहली डेट होने में 20-25 दिन लग गए।'

वहीं, तमन्ना भाटिया ने विजय वर्मा संग रिलेशनशिप के बारे में 'फिल्म कंपैनियन' से कहा था कि एक्टर ने उन्हें बिना किसी एटिट्यूड के अप्रोच किया था। तमन्ना ने कहा था कि विजय वर्मा के साथ उन्हें काफी खुश महसूस होता है, और वह उनकी बहुत परवाह करते हैं। प्रोफेशनल फ्रंट की बात करें, तो विजय वर्मा हाल ही 'मर्डर मुबारक' में नजर आए थे, और 'मिर्जापुर सीरीज 3' में भी नजर आए।

बंद करिए सबका साथ, सबका विकास का नारा, अल्पसंख्यक मोर्चे की भी जरूरत नहीं’, शुभेंदु अधिकारी का ये कैसा बयान

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था। 10 साल बाद अब नारे का पश्चिम बंगाल भाजपा विधायक और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने विरोध किया है। पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा है क‍ि ‘सबका साथ-सबका विकास’ नहीं चाह‍िए। पार्टी को तुरंत अल्‍संख्‍यक मोर्चा भंग कर देना चाह‍िए।बंगाल के चुनावों में मिली हार और ह‍िन्‍दुओं पर हो रहे हमले को लेकर उन्‍होंने यह बयान दिया, जिसके बाद सियासी भूचाल आ गया है।

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शुभेंदु अधिकारी ने अहम बयान दिया। उन्होंने कहा कि 'मैं राष्ट्रवादी मुस्लिमों की बात करता था और आपने भी नारा दिया था कि 'सबका साथ, सबका विकास', लेकिन अब मैं ऐसा नहीं कहूंगा। इसकी जगह मैं कहूंगा कि 'जो हमारे साथ, हम उनके साथ'। बंद करिए ये 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा। हमें अल्पसंख्यक मोर्चे की भी जरूरत नहीं है।'

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि 'हम जीतेंगे, हम हिंदुओं को बचाएंगे और संविधान को बचाएंगे।' इसके बाद शुभेंदु अधिकारी ने जय श्री राम के नारे लगाए और भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी तालियां बजाकर उनका स्वागत किया।

अधिकारी की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब वोटिंग पैटर्न के विश्लेषण से पता चला है कि बंगाल में बीजेपी की जीत में अल्पसंख्यक समुदाय बड़ी बाधा बनकर उभरा है। हाल ही में शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव और हालिया उपचुनाव में 50 लाख हिंदुओं को वोट नहीं देने दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि बंगाल में लोकतंत्र मर चुका है।

लोकसभा चुनाव 2024 में पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में बीजेपी के खाते में केवल 12 सीटें आई। 2019 में 18 सीट पर जीत मिली थी। बीजेपी को इस बार 6 सीट का नुकसान हुआ। बीजेपी ने इस बार लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 30 सीटें जीतने का टारगेट रखा था। सीएए, आरक्षण, संदेशखाली और करप्शन जैसे मुद्दे उठाने के बावजूद पार्टी कामयाब नहीं हो पाई। पार्टी के बड़े नेता जैसे निशीथ प्रमाणिक, लॉकेट चटर्जी और एसएस आहलूवालिया अपनी सीट नहीं बचा पाए।

15 जुलाई को पश्चिम बंगाल की 4 विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव का रिजल्ट आया था। बीजेपी को यहां भी नुकसान हुआ। ममता बनर्जी की टीएमसी ने चारों पर जीत दर्ज की। जिन सीटों को बीजेपी को हार मिली, पिछली बार इनमें से 3 सीटें भाजपा के पास थीं, लेकिन इस बार टीएमसी ने तीनों सीटें छीन लीं।

लगातार पांचवें साल मानसरोवर की यात्रा नहीं कर सकेंगे श्रद्धालु, दोनों आधिकारिक रास्ते बंद, चीन की ये कैसी चाल

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चीन लाख दुहाई दे की भारत के साथ वो रिश्ते सुधारना चाहती है, हालांकि ऐसा है नहीं। चीन हर बार उस मौके की तलाश में होता है, जिससे भारत को परेशान किया जा सके। कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है।भारतीयों के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा 2020 से लगातार पांचवें साल भी बंद है।महामारी के कारण सीमा चार साल तक बंद रही और पिछले साल अप्रैल में फिर से खोल दी गई। हालांकि, कड़े नियमों के चलते भारतीयों के लिए ये व्यावहारिक रूप से बंद है। कोरोना को यात्रा बंद होने का कारण बताया जा रहा है, लेकिन असल में 2020 से भारत-चीन सीमा तनाव के बाद से यह चीन की एक रणनीति लगती है।

हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच स्थित ओल्ड लिपुपास, भारत को चीन से जोड़ता है, साथ ही कैलाश मानसरोवर जाने का सबसे पुराना प्रमुख मार्ग भी रहा है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास माना जाता है और हर साल हजारों श्रद्धालु इसकी परिक्रमा करने के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा का हिस्सा बनते रहे हैं। कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने के लिए भारत को चीन पर निर्भर होना पड़ता था। बावजूद इसके चीन ने लगातार 5 वें साल भी यात्रा की अनुमति नहीं दी है।

न्यूज़18 को विदेश मंत्रालय द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा के बारे में दिए गए आरटीआई जवाब मिले हैं, जिसमें चीन के साथ 2013 और 2014 में किए गए दो समझौतों की प्रतियां हैं। दोनों समझौतों में यह स्पष्ट किया गया है कि चीन बिना किसी पूर्व सूचना के समझौतों को एकतरफा तरीके से समाप्त नहीं कर सकता। उनका कहना है कि किसी भी तरह का संशोधन आम सहमति से ही होना चाहिए।

पहला समझौता

2013 में हुए पहले समजझौते के मुताबिक तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुआ था। इसमें लिपुलेख दर्रे से यात्रा का रास्ता खोला गया था। पहले समझौते के मुताबिक, यह 2013 से पांच साल के लिए वैलिड था और हर पांच साल के लिए अपने आप बढ़ता जाएगा, जब तक कि कोई पक्ष छह महीने पहले लिखित नोटिस न दे। समझौते में कहा गया है कि दोनों पक्ष सहमति से इसमें बदलाव कर सकते हैं।

दूसरा समझौता

2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वांग यी के बीच नाथू ला दर्रे से यात्रा शुरू करने के लिए दूसरा समझौता हुआ था। दूसरे समझौते में भी ऐसी ही कुछ बात थी। समझौते में कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारतीय तीर्थयात्री टूर ऑपरेटरों के जरिए कैलाश मानसरोवर जाते हैं। चीन ने इन तीर्थयात्रियों को जरूरी सुविधाएं देने पर सहमति जताई थी। दूसरे समझौते में कहा गया कि भारतीय तीर्थयात्री नाथू ला दर्रे से चीन में प्रवेश या निकल सकेंगे। इसकी प्रक्रिया राजनयिक माध्यमों से तय हुई थी। तीसरा विकल्प नेपाल के रास्ते निजी ऑपरेटरों के जरिए चीन जाना था। सभी मामलों में भारतीयों को चीन का वीजा चाहिए था।

भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प

भारतीयों के लिए तीसरा विकल्प नेपाल जाना और फिर निजी ऑपरेटरों के माध्यम से चीन में प्रवेश करना था। सभी मामलों में, भारतीयों को माउंट कैलाश और मानसरोवर की यात्रा करने के लिए चीन से वीज़ा की आवश्यकता थी। जबकि दोनों आधिकारिक मार्ग बंद हैं, चीन ने पिछले साल नेपाल की ओर से अपनी सीमाएं खोल दीं, लेकिन विदेशियों, विशेष रूप से भारतीयों के लिए नियम कड़े कर दिए और शुल्क बढ़ाने सहित कई प्रतिबंध लगा दिए, जिससे भारतीयों के लिए नेपाल के माध्यम से माउंट कैलाश जाना व्यावहारिक रूप से असंभव हो गया।

 

ज़्यादातर लोगों को लगता है कि कैलाश मानसरोवर भारत में होगा जबकि ऐसा है नहीं।कैलाश मानसरोवर एक भारतीय तीर्थस्थल है लेकिन यहां जाने के लिए चीन की सीमा में प्रवेश करना पड़ता है। ऐसे में यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा लेना होता है। आप समझिए कि आप नेपाल से जाएं या सिक्क्मि से जाएं आपको चीन का बॉर्डर पार करना ही पड़ेगा। सरहद पार करने के बाद पांच दिन यात्रा करके आप मानसरोवर पहुंचते हैं जहां दायचिंग बेस कैंप है। वहां से फिर आपको तीन दिन मानसरोवर की परिक्रमा करने में लगते हैं। फिर वापसी में पांच दिन और लगते हैं। 

तो ये समझ लीजिए कि चीन जब चाहे, जहां चाहे, इस यात्रा को रोक सकता है। एक तो बॉर्डर पर ही वो यात्रियों को रोक सकता है और इसके बाद यात्रियों के जत्थे को अपनी सीमा में जहां चाहे रोक कर वापस कर सकता है। क्योंकि ये सामान्य कानून है कि आप जिस देश में हैं उस देश के क़ानून का आपको पालन करना ही पड़ेगा। मानसरोवर की यात्रा कठिन होती है। बर्फ़ीले रास्तों पर चलना होता है। चीन में सरहद पार करने के बाद आप बस या कार से यात्रा करते हैं और फिर पहुंचते हैं दायचिंग के इलाक़े में जहां बेस कैंप है। कई बार चीनी अधिकारी आपको मानसरोवर झील के पास कैंप करने से भी रोक देते हैं और कहते हैं कि कैंपिंग कहीं और करें। ये सब उनके अधिकार क्षेत्र में है। वो मौसम ख़राब होने की बात कह कर भी यात्रा को बाधित कर सकते हैं।

समुद्र तल से 17 हजार फीट ऊंचे उत्तराखंड के लिपूलेख दर्रे से हर साल यह यात्रा जून माह में शुरू होती थी।प्राचीन काल से ही यह यात्रा लिपूलेख दर्रे से होती रही है। वर्ष 1962 के भारत -चीन युद्ध के बाद भी इस यात्रा को दोनों देशों के तनावपूर्ण संबंधों के कारण पूरी तरह से बंद कर दिया गया। तब डेढ़ दशक से अधिक समय बाद यह यात्रा वर्ष 1981 में फिर शुरू की सकी । तब से कोरोना काल से पूर्व तक इस मार्ग से 16 हजार 800 से अधिक देश भर के लोगों ने शिवधाम मानसरोवर जाकर अपने अराध्य के दर्शन किए। लेकिन पिछले पांच सालों से चीन ने अपनी चालाकियां दिखाते हुए यात्रा का बाधित किया है।