सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन द्वारा मनाया गया अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस

समाज के अंतिम पायदान के हर व्यक्ति को सम्मानजनक रोजगार उपलब्ध कराना आधुनिक समाज, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व बिरादरी की जिम्मेवारी।
आज दिनांक 1 मई 2023 को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, डॉ महबूब रहमान ने संयुक्त रूप से दुनिया भर में विगत वर्षों में काम के दौरान मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि प्रत्येक वर्ष 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर उन्होंने आधुनिक सभ्य समाज, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व बिरादरी से समाज के अंतिम पायदान के हर व्यक्ति को सम्मानजनक रोजगार उपलब्ध कराने की वकालत करते हुए कहा कि
दुनिया में सबसे ज़्यादा बंधुआ मजदूर एशिया एवं अफ्रीका है।. विश्व में करोड़ों लोग "आधुनिक गुलामी" में जीवन जी रहे थे. यानी औसतन एक हज़ार में से छह को अपने काम का मेहनताना नहीं मिल रहा था।
साल 2020 के सर्वे के मुताबिक महामारी की वजह से मजदूरों के कर्ज़ में फंसने का जोख़िम तीन गुना बढ़ गया है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार साल 2016 में दुनिया भर में 4 करोड़ से ज़्यादा लोग बंधुआ मज़दूरी का शिकार थे।
दुनिया में बाल मज़दूरों की तादाद बढ़कर 16 करोड़ हो गई है. रिपोर्ट ये भी आगाह करती है कि कोविड-19 महामारी के असर से इस संख्या में साल 2022 के अंत तक 90 लाख तक का इजाफा हुआ।
सरकार के अपने आँकड़े बताते हैं कि देश के कुल श्रमिकों में से 93 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. यानी उनके लिए न्यूनतम वेतन जैसी सामाजिक सुरक्षा के हक पाना और मुश्किल है।
"देश में करोड़ों शहरी असंगठित मज़दूर और ग्रामीण खेत मज़दूर है जो किसी भी कानून के दायरे में नहीं आते. आज तक हम खेत मज़दूरों के लिए एक केंद्रीय क़ानून नहीं बना पाए हैं. इसलिए मज़दूर दिवस न केवल अधिक प्रासंगिक हो गया है बल्कि हमारी पीढ़ी की ज़िम्मेदारी बन गया।
दुनिया भर की समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के संगठन ने साल 1889 के पेरिस सम्मेलन में मज़दूरों के हक़ों की आवाज़ बुलंद करने के लिए 1 मई का दिन चुना था।ये पश्चिम में औद्योगीकरण का दौर था और मज़दूरों से सूर्योदय से सूर्यास्त तक काम करने की उम्मीद की जाती थी.
अक्टूबर 1884 में अमेरिका और कनाडा की ट्रेड यूनियनों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज़्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन ने तय किया कि मज़दूर 1 मई, 1886 के बाद रोज़ाना 8 घंटे से ज़्यादा काम नहीं करेंगे. जब वो दिन आया तो अमेरिका के अलग-अलग शहरों में लाखों श्रमिक हड़ताल पर चले गए।इन विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में शिकागो था. यहां दो दिन तक हड़ताल शांतिप्रिय तरीके से चली.
लेकिन तीन मई की शाम को मैकॉर्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी के बाहर भड़की हिंसा में दो मज़दूर पुलिस फायरिंग में मारे गए थे।अगले दिन फिर दोनों पक्षों के बीच झड़पें हुईं जिनमें 7 पुलिसवालों समेत 12 लोगों को जान गँवानी पड़ी. इसी वजह से 1 मई का दिन चुना था. शुरुआत में दुनिया भर के मज़दूरों से सिर्फ रोज़ाना 8 घंटे काम की मांग को लेकर एकजुट होने के लिए कहा गया था.
इसके बाद 1889 से लेकर 1890 तक अलग अलग देशों में मज़दूरों ने प्रदर्शन किए. ब्रिटेन के हाइड पार्क में 1890 की पहली मई को तीन लाख मज़दूरों 8 घंटे काम की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे. जैसे-जैसे वक्त बीता ये दिन श्रमिकों के बाकी अधिकारों की तरफ ध्यान दिलाने का भी एक मौका बन गया।
May 04 2023, 15:22