ट्रंप ने यूक्रेन को दिया बड़ा झटका, अमेरिकी मदद पर रोक, इजराइल-मिस्र की जारी रहेगी मदद

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डोनाल्ड ट्रंप एक्शन मोड में हैं। शपथ लेने के बाद वह लगातार सबको झटका दे रहे हैं। पहले कनाडा और मैक्सिको को चोट दी। अब अमेरिका ने अपने दोस्त यूक्रेन को ही घाव दे दिया है। उन्होंने कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है। इसी कड़ी में उन्होंने यूक्रेन को दी जाने वाली मदद को भी रोकने का ऐलान किया है। ट्रंप का ये फैसला यूक्रेन के लिए तगड़ा झटका है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद अमेरिकी प्रशासन लगातार नए आदेश जारी कर रहा है। शुक्रवार को अमेरिका के विदेश विभाग ने लगभग सभी विदेशी वित्तपोषण पर रोक लगा दी है और अपवाद के तौर पर सिर्फ मानवीय खाद्य कार्यक्रमों और इस्राइल और मिस्त्र को मदद जारी रखी जाएगी। इसके साथ ही अमेरिका दुनियाभर में स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास, नौकरी प्रशिक्षण की जो भी मदद देता है, उन पर तत्काल प्रभाव से रोक लग जाएगी।

बता दें कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि सभी सहायता कार्यक्रम अमेरिका के हित में नहीं हैं। इस संबंध में सभी अमेरिकी दूतावास को यह आदेश जारी कर दिया गया है। जिसमें बताया गया है कि नई सरकार वैश्विक आर्थिक सहायता के मद में कोई खर्च नहीं करेगी और दूतावास के पास ही जो फंड बचा है, उसके खत्म होने तक वे सहायता कार्यक्रम चला सकते हैं।

अमेरिका के इस फैसले से सबसे बड़ा झटका यूक्रेन को लगेगा, जो रूस के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन पहले ही बड़ी मात्रा में यूक्रेन के लिए फंडिंग की मंजूरी दे गए हैं, लेकिन अमेरिकी विदेश विभाग के फैसले से नई फंडिंग पर रोक लग गई है। ऐसे में यूक्रेन के सामने भारी चुनौती आने वाली है।

यही नहीं अमेरिका अन्य देशों को भी जो मदद देता है, उसको भी ट्रंप प्रशासन ने रोकने का निर्णय लिया है.हालांकि, इसमें इजराइल, इजिप्ट को शामिल नहीं किया गया, यानी इन देशों को अमेरिका की मदद मिलती रहेगी. यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के अनुरूप है, जिसमें विदेशों में सहायता को सख्ती से प्रतिबंधित किया गया है। इस आदेश से डेवलपमेंट से लेकर मिलिट्री सहायत तक काफी कुछ प्रभावित होने की उम्मीद है. जो बाइडेन के कार्यकाल में रूस का सामना करने के लिए यूक्रेन को अरबों डॉलर के हथियार मिले थे। अमेरिकी मदद की वजह से यूक्रेन इनतें दिनों तक युद्ध में डटा रहा. अमेरिका ने 2023 में यूक्रेन को 64 बिलियन डॉलर से अधिक की मदद दी थी. पिछले साल कितनी की मदद दी गई, रिपोर्ट में इसकी जानकारी नहीं दी है

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी जिसे खत्म करने जा रही ट्रंप सरकार, क्या भारत पर भी होगा असर?

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डोनाल्‍ड ट्रंप ने सोमवार को अमेरिका के 47वें राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के बाद अपने संबोधन में कई बड़े ऐलान किये और इसके बाद कई एग्‍जीक्‍यूटिव आदेशों पर हस्‍ताक्षर किए। दुनिया के कई देशों के लिए यह आदेश मुसीबत लेकर आए हैं तो खुद उनके ही देश में ऐसे आदेशों ने बहुत से लोगों की परेशान बढ़ा दी है। नागरिकता को लेकर डोनाल्‍ड ट्रंप के एक एग्‍जीक्‍यूटिव आदेश ने अमेरिका में रहने वाले कई देशों के लोगों के साथ लाखों भारतीयों के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है। इस आदेश के मुताबिक, यदि किसी बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के नागरिक नहीं हैं और बच्‍चे का अमेरिका में जन्‍म होता है तो भी उसे नागरिकता नहीं दी जाएगी।

अमेरिका के कानून के मुताबिक अब तक वहां जन्म लेने वाला हर शख्स अमेरिकी नागरिक होता है। अमेरिका में यदि किसी बच्‍चे का जन्‍म होता है तो उसे स्‍वत: ही अमेरिका का नागरिक मान लिया जाता है। फिर चाहे बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के हों या नहीं। साथ ही यदि बच्‍चे के माता-पिता अवैध रूप से यहां पर आए हैं और बच्‍चे का जन्‍म अमेरिका में होता है तो भी उसे अमेरिकी नागरिक माना जाएगा। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी

यह जानने से पहले की ट्रंप ने बर्थराइट पॉलिसी में किन चीजों को बदलने की मांग की है यह जानना जरूरी है कि देश की बर्थराइट पॉलिसी क्या है? अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन जोकि 1868 में किया गया, उसके मुताबिक, देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता दी जाती है। इस संशोधन का मकसद पूर्व में देश में गुलाम बनाए गए व्यक्तियों को नागरिकता और समान अधिकार देना था।

संविधान के मुताबिक, अमेरिका में जिन सभी बच्चों का जन्म हुआ उनके अधिकार क्षेत्र के अधीन वो अमेरिका और जिस भी राज्य में पैदा हुए वहां के नागरिक बन जाते हैं।

इस बर्थराइट पॉलिसी में विदेशी राजनयिकों के बच्चों को छोड़ कर, अमेरिका में पैदा हुए लगभग सभी व्यक्तियों को शामिल किया गया है। हालांकि, जहां संविधान देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता देने की बात करता है, वहीं अब ट्रंप के प्रशासन का मकसद इस खंड को फिर से परिभाषित करना है। ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि जन्मजात नागरिकता में गैर-दस्तावेजी आप्रवासियों के बच्चों को बाहर रखा जाना चाहिए और उन्हें जन्मजात नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।

क्‍या है ट्रंप का आदेश?

अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने कहा है कि उनकी सरकार अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वाले लोगों के अमेरिका में बच्‍चों को नागरिक नहीं मानेगी। ट्रंप ने फेडरल एजेंसी को आदेश दिया है कि वह 30 दिनों के बाद ऐसे बच्‍चों को नागरिकता दस्‍तावेज जारी न करे। ट्रंप काफी वक्‍त से यह मुद्दा उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि वैध स्थिति के बिना आप्रवासियों के बच्चों को अमेरिका की नागरिकता प्रदान करना उन्हें स्‍वीकार्य नहीं है।

किन पर ज्यादा असर

अमेरिका के इमिग्रेशन नियमों में इस बड़े बदलाव का असर एच-1बी, एच-4 या एफ-1 वीजा पर रह रहे माता-पिता के बच्चों पर पड़ेगा। ये नियम उन बच्चों पर लागू होगा जिनके माता-पिता ग्रीन कार्ड होल्डर या अमेरिकी नागरिक नहीं हैं। इस फैसले से रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे दस लाख से अधिक भारतीयों पर सीधा असर पड़ेगा। इनमें से कई लोग तो पिछले कई दशकों से ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं।

भारत पर असर

अमेरिका के जनसंख्‍या ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की संख्‍या करीब 50 लाख है जो कि वहां की जनसंख्या का करीब 1.47 फीसदी है। इनमें से महज 34 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो कि अमेरिका में पैदा हुए हैं। शेष दो तिहाई आप्रवासी हैं। अमेरिका में काम कर रहे अधिकतर भारतीय वहां एच1-बी विजा के आधार पर काम कर रहे हैं। इस दौरान वहां पैदा होने वाले भारतीय मूल के बच्चों को अब स्वत: अमेरिका की नागरिकता नहीं मिल पाएगी। ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार कर रहे 10 लाख से ज्‍यादा भारतीय भी इस फैसले से प्रभावित होंगे।

डोनाल्ड ट्रंप का भारत के लिए महत्व: रणनीतिक सहयोग, व्यापारिक चुनौतियाँ और कूटनीतिक अवसर

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Donald Trump (President of USA)

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए पहलू सामने आए, जो दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों के संदर्भ में महत्वपूर्ण थे। ट्रंप की विदेश नीति और उनकी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस लेख में हम यह देखेंगे कि ट्रंप का भारत के लिए क्या मतलब था, उनके कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते कैसे विकसित हुए, और उनके निर्णयों के परिणामस्वरूप भारत को किन चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ा।

भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंध

1. चीन के खिलाफ साझा चिंता

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत साझेदारी ने चीन को दोनों देशों के लिए साझा चिंता का विषय बना दिया। भारत और अमेरिका की रणनीतिक सहयोगिता का मुख्य ड्राइवर चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय प्रभाव था।

  - क्वाड का गठन इस साझेदारी का प्रमुख हिस्सा था, जो चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देता है।

  - ट्रंप ने चीन के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया, जिससे भारत को इसके मुकाबले अपनी स्थिति को मजबूती से पेश करने का अवसर मिला।

2. सुरक्षा और रक्षा सहयोग

  - भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में भी वृद्धि हुई, विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग में। ट्रंप प्रशासन के दौरान, अमेरिकी हथियारों और रक्षा प्रणाली के साथ भारत के सहयोग को बढ़ावा मिला।

  - डोकलाम, बालाकोट और गलवान जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं पर भारत और अमेरिका ने एक साथ काम किया, जो उनके सहयोग को और सुदृढ़ करता है।

3. पार्टी और वैचारिक संरेखण

  - नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे, और दोनों के बीच एक विचारधारात्मक समानता थी, जो उनके कार्यों और नीतियों में भी दिखाई दी।

  - ट्रंप ने मोदी के नेतृत्व में भारत को एक अहम साझेदार माना और दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए।

चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ

1. अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितता

  - ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में अस्थिरता और अनिश्चितता देखी गई। उनके अप्रत्याशित निर्णय और रणनीतियाँ, जैसे कि कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बाहर निकलना, भारत के लिए कुछ मुद्दों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते थे।

  - उदाहरण के तौर पर, इंडो-पैसिफिक नीति पर ट्रंप का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं था, और इसमें कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हुए।

2. व्यापारिक असंतुलन और टैरिफ़ नीति

  - ट्रंप के दृष्टिकोण में व्यापारिक असंतुलन को लेकर चिंता थी, और भारत से संबंधित व्यापार अधिशेष के कारण अमेरिका ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाए जाने की संभावना जताई।

  - ट्रंप का यह मानना था कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार में उचित स्थान नहीं दिया और इसका फायदा उठाया। यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि भारत को अपने निर्यात को संतुलित करने और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश और भारतीय कंपनियाँ

  - ट्रंप का मानना था कि भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश किए बिना अमेरिकी निवेश को आकर्षित कर रही हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और इस निवेश के परिणामस्वरूप हजारों नौकरियाँ पैदा हुई थीं।

  - भारत को अपने निवेश और व्यापारिक रणनीति को सही तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी ताकि अमेरिका में भारतीय योगदान को सही रूप से पहचाना जा सके।

भारत के लिए लाभकारी रणनीतियाँ

1. भारत के लिए उपयुक्त कूटनीतिक संबंध

  - भारत के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह राजनीतिक और रणनीतिक संरेखण बनाए रखे, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय कूटनीति को सही दिशा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता था।

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत को अपने कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए अपनी राजनीतिक समझ और कूटनीतिक योग्यता का इस्तेमाल करना पड़ा।

2. चीन के खिलाफ एकजुटता

  - चीन के बढ़ते प्रभाव और उसके खिलाफ साझा चिंता ने भारत और अमेरिका को एकजुट किया। यह साझा रणनीति दोनों देशों के लिए फायदेमंद रही, विशेषकर सुरक्षा, तकनीकी और आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्रों में।

3. व्यापार और निवेश संबंधों का संतुलन

  - भारत को यह स्पष्ट करना था कि मेक इन इंडिया और मेड इन अमेरिका के बीच कोई टकराव नहीं है। अगर भारत ने सही तरीके से अपने व्यापारिक मुद्दों को हल किया, तो वह ट्रंप प्रशासन को एक राजनीतिक जीत दे सकता था और अमेरिका के साथ व्यापारिक संतुलन बना सकता था।

4. अमेरिका में निवेश का विस्तार

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और यह स्थिति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर थी। भारत को यह सुनिश्चित करना था कि उसके निवेश के प्रभाव को उचित तरीके से अमेरिका में समझा जाए और उसे पहचान मिले।

भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध

1. व्यापारिक संघर्ष

  - भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा व्यापारिक टैरिफ़ था, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने की संभावना जताई थी। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती थी, क्योंकि इसे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करने से बचना था।

  

2. आवश्यक रणनीतिक सहयोग

  - भारत को अमेरिका के साथ अपनी व्यापार नीति को और मजबूत करने के लिए अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित करना था। इस संदर्भ में, दोनों देशों के व्यापार संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक राजनीतिक इच्छाशक्ति और लचीलेपन की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश का मौका

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश करके लाभ कमा रही थीं, लेकिन यह भारत के लिए एक अनकहा पक्ष था। भारतीय निवेश को अमेरिकी कूटनीति में ज्यादा प्रमुखता से उठाना था ताकि इसके महत्व को समझा जा सके।

भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य

भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में चुनौती और अवसर दोनों थे। ट्रंप प्रशासन के दौरान, भारत ने अपनी कूटनीति, व्यापारिक रणनीतियों और सुरक्षा सहयोग को मजबूती से पेश किया। हालांकि, कुछ मुद्दों पर अनिश्चितता और संघर्ष रहा, लेकिन साझा रणनीतिक हित और व्यक्तिगत कूटनीतिक संबंधों ने दोनों देशों के बीच सहयोग को बनाए रखा। भारत को ट्रंप प्रशासन के अंतर्गत अपनी रणनीति को और मजबूती से आकार देना होगा, खासकर व्यापारिक और निवेश संबंधों में।  

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह, कई देशों के नेता हो रहे शामिल

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डोनाल्ड ट्रंप आज संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। इस मौके पर कैपिटल परिसर में एक भव्य उद्घाटन समारोह आयोजित किया जाएगा। ट्रंप का उद्घाटन उसी यूएस कैपिटल में होगा, जहां नवंबर में उन्होंने जबर्दस्त राजनीतिक वापसी की थी। यह वही जगह है, जहां चार साल पहले उनके समर्थकों ने 2020 के चुनावी हार के बाद हमला किया था।

इंडोर में होगा शपथ ग्रहण समारोह

इस वक्त पूरी दुनिया में उनके शपथ समारोह की चर्चा हो रही है, क्योंकि अमेरिका के इतिहास में 40 साल के बाद पहली बार डोनाल्ड ट्रंप खुले आसमान में नहीं, बल्कि संसद हॉल के अंदर शपथ लेंगे। डोनाल्ड ट्रंप भीषण ठंड पड़ने की वजह से खुले मैदान में शपथ न लेकर इंडोर में शपथ लेंगे। इस साल अमेरिका में सर्दी ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं और तापमान -10 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। जिसके वजह से कार्यक्रम को इंडोर शिफ्ट कर दिया गया है।

शपथ लेने के बाद समर्थकों से मिलेंगे ट्रंप

इसे लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि ऐसा करने के पीछे वजह ये है कि वे लोगों को ठंड से बीमार पड़ते नहीं देखना चाहते हैं। उनके समर्थकों के लिए 20 हजार की क्षमता वाले कैपिटल एरिया में बड़े स्क्रीन लगाकर शपथ ग्रहण के लाइव टेलीकास्ट की व्यवस्था की गई है। शपथ के बाद वे यहां खुद समर्थकों के बीच आएंगे।

शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो रहे कई देशों के नेता

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण समारोह में दुनिया के कई देशों के नेता आने वाले हैं। नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी समेत कई देशों के नेताओं को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है। शी अपने प्रतिनिधि के रूप में अपने उपराष्ट्रपति को भेज रहे हैं।

एस जयशंकर करेंगे भारत सरकार का प्रतिनिधित्व

सोमवार को होने वाले डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे। समारोह के लिए क्वाड देशों के सभी विदेश मंत्रियों को भी न्योता भेजा गया है। इस मौके पर क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक भी प्रस्तावित है, जिसमें जयशंकर भी हिस्सा लेंगे।

डोनाल्ड ट्रम्प और H-1B: उनकी कथनी और करनी पर एक वास्तविकता जाँच

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डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ऐसे विषय पर अपनी राय रखी है जिस पर उनके समर्थकों के बीच बहस चल रही है - संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था में कुशल अप्रवासी श्रमिकों की भूमिका। निर्वाचित राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने उन श्रमिकों के लिए अक्सर वीज़ा का इस्तेमाल किया है और कार्यक्रम का समर्थन किया है।

ट्रम्प ने न्यूयॉर्क पोस्ट से कहा, "मेरी संपत्तियों पर कई H-1B वीज़ा हैं।" "मैं H-1B में विश्वास करता रहा हूँ। मैंने इसका कई बार इस्तेमाल किया है। यह एक बढ़िया कार्यक्रम है।"

हालाँकि, वास्तव में, ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रम्प ने H-1B वीज़ा कार्यक्रम का बहुत कम इस्तेमाल किया है। यह सॉफ़्टवेयर इंजीनियरों जैसे कुशल श्रमिकों को तीन साल तक अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है, और इसे छह साल तक बढ़ाया जा सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प की कथनी और करनी पर एक वास्तविकता जाँच

ट्रम्प ने वास्तव में H-2B वीज़ा कार्यक्रम का अधिक बार इस्तेमाल किया है, जो माली और गृहस्वामियों जैसे अकुशल श्रमिकों के लिए है, और H-2A कार्यक्रम, जो कृषि श्रमिकों के लिए है। ये वीजा श्रमिकों को देश में 10 महीने तक रहने की अनुमति देते हैं। संघीय आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रपति-चुनाव की कंपनियों को पिछले दो दशकों में दो H-2 कार्यक्रमों के माध्यम से 1,000 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने की स्वीकृति मिली है। 

आउटलेट ने बताया कि ट्रम्प संक्रमण टीम ने न्यूयॉर्क पोस्ट साक्षात्कार में ट्रम्प द्वारा संदर्भित वीजा के प्रकार पर स्पष्टता प्रदान नहीं की। हालाँकि, इसने कार्य वीजा पर ट्रम्प की स्थिति के बारे में एक पूर्व प्रश्न का उत्तर उनके द्वारा 2020 में दिए गए भाषण का पाठ साझा करके दिया। प्रतिक्रिया में कहा गया कि "अमेरिकियों को इस चमत्कारी कहानी को कभी नहीं भूलना चाहिए।" ट्रम्प ने 2016 में चुनाव प्रचार करते समय कहा था कि H-1B कार्यक्रम "श्रमिकों के लिए बहुत बुरा" था और जोर देकर कहा कि "हमें इसे समाप्त कर देना चाहिए।"

हालांकि, एलन मस्क के अनुयायियों सहित टेक उद्योग में कई लोगों ने ट्रम्प के शनिवार के साक्षात्कार की सराहना की। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर इयान माइल्स चेओंग ने एक्स पर पोस्ट किया, "डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा पर एलन मस्क का समर्थन किया।" मस्क, जो दक्षिण अफ्रीका में जन्मे एक प्राकृतिक नागरिक होने के नाते H-1B वीजा पर देश में आए थे, ने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि उनके हिसाब से वीजा कितना महत्वपूर्ण है क्योंकि तकनीकी कंपनियों की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम अमेरिकी नागरिकों की कमी है। उन्होंने क्रिसमस के दिन X पर लिखा, "उत्कृष्ट इंजीनियरिंग प्रतिभा की स्थायी कमी है।" श्रम विभाग H-1B और H-2 दोनों कार्यक्रमों की देखरेख करता है और प्रत्येक के लिए अलग-अलग नियम लागू करता है। वर्तमान में, कुशल श्रमिक कार्यक्रम में प्रति वर्ष 65,000 की सीमा है। दूसरी ओर, H-2B वीजा की सीमा 66,000 है। H-2A वीजा की कोई सीमा नहीं है, लेकिन यह उद्योग के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। 

श्रम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, ट्रम्प की कंपनियों को 2003 से 2017 तक फ्लोरिडा के पाम बीच में मार-ए-लागो और साथ ही फ्लोरिडा के जुपिटर में ट्रम्प नेशनल गोल्फ क्लब सहित उनकी संपत्तियों पर रसोइये, हाउसकीपर और वेटर जैसी नौकरियों के लिए 1,000 से अधिक एच-2 वीजा के लिए मंजूरी दी गई थी। इन सभी मामलों में कंपनियों को यह प्रमाणित करना था कि कोई भी अमेरिकी नागरिक नहीं है जो इन नौकरियों को कर सकता है।

ट्रम्प के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान भी, उनकी कंपनियों ने एच-2 कर्मचारियों को काम पर रखना जारी रखा। उदाहरण के लिए, उन्होंने 2018 के मध्य में मार-ए-लागो में 78 हाउसकीपर, रसोइये और खाद्य सर्वर के लिए वीजा के लिए आवेदन पोस्ट किए। सबसे हालिया H-1B आवेदन 2022 में ट्रम्प मीडिया एंड टेक्नोलॉजी ग्रुप द्वारा पोस्ट किया गया था, जो $65,000 के वेतन के साथ "उत्पाद डेटा विश्लेषक" की तलाश कर रहा था। यह स्पष्ट नहीं है कि पद भरा गया था या नहीं। वर्जीनिया के चार्लोट्सविले में राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए राष्ट्रपति की वाइनरी को एच-2ए कार्यक्रम के तहत 31 विदेशी वाइनयार्ड फार्मवर्कर्स की तलाश है। उन्हें प्रति घंटे 15.81 डॉलर की पेशकश की जा रही है।

पनामा नहर की क्या है अहमियत, अमेरिका के कंट्रोल की दी धमकी, ट्रंप के बयान से मची खलबली

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पनामा नहर पर नियंत्रण वापस लेने के बयान से विवाद खड़ा हो गया है। ट्रंप ने रविवार को कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा से कहा है कि वह पनामा नहर की फीस कम करे या तो उस पर नियंत्रण अमेरिका को वापस कर दे। ट्रंप ने आरोप लगाया कि मध्य अमेरिकी देश पनामा अमेरिकी मालवाहक जहाज़ों से ज़्यादा क़ीमत वसूल रहा है। वहीं पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने इस धारणा को अपने देश की संप्रभुता का अपमान बताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया।

ट्रंप के पास अगले महीने अमेरिका की कमान आने वाली है।इससे पहले ट्रंप ने रविवार को कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है जिसे अमेरिका ने ‘मूर्खतापूर्ण’ तरीके से अपने मध्य अमेरिकी सहयोगी को सौंप दिया था। ट्रंप ने अपनी इस बात के पीछे तर्क दिया कि अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली इस अहम नहर से गुजरने के लिए जहाजों से ‘बेवजह’ शुल्क वसूला जाता है।

एरिजोना में ‘टर्निंग प्वाइंट यूएसए अमेरिकाफेस्ट’ में समर्थकों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने ये बातें कहीं। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने इस धारणा को अपने देश की संप्रभुता का अपमान बताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि पनामा कभी भी सौदेबाजी का विषय नहीं होगा। पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने ट्रंप के बयान को खारिज कर कहा, 'नहर और उसके आसपास का हर वर्ग मीटर पनामा का है और पनामा का ही रहेगा। पनामा के लोगों के कई मुद्दों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन जब हमारी नहर और हमारी संप्रभुता की बात आती है तो हम सभी एकजुट हैं। इसलिए नहर का नियंत्रण पनामा का है और यह कभी भी सौदेबाजी का विषय नहीं होगा।'

पनामा नहर अहम क्यों?

82 किलोमीटर लंबी पनामा नहर अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। हर साल पनामा नहर से क़रीब 14 हज़ार पोतों की आवाजाही होती है। इनमें कार ले जाने वाले कंटेनर शिप के अलावा तेल, गैस और अन्य उत्पाद ले जाने वाले पोत भी शामिल हैं। पनामा की तरक़्क़ी का इंजन उसकी यही नहर है। पनामा के पास जब से नहर का नियंत्रण आया है, तब से उसके संचालन की तारीफ़ होती रही है। पनामा की सरकार को इस नहर से हर साल एक अरब डॉलर से ज़्यादा की ट्रांजिट फीस मिलती है। हालांकि पनामा नहर रूट से कुल वैश्विक ट्रेड का महज पाँच फ़ीसदी करोबार ही होता है।

अमेरिका ने पनामा को क्यों सौंपी थी नहर

अमेरिका ने 1900 के दशक की शुरुआत में इस नहर का निर्माण किया था। उसका मकसद अपने तटों के बीच वाणिज्यिक और सैन्य जहाजों के आवागमन को सुविधाजनक बनाना था। 1977 तक इस पर अमेरिका का नियंत्रण था। इसके बाद पनामा और अमेरिका का संयुक्त नियंत्रण हुआ लेकिन 1999 में इस पर पूरा नियंत्रण पनामा का हो गया था। अमेरिका ने 1977 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि के तहत 31 दिसंबर 1999 को जलमार्ग का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया था।

पनामा नहर विवादों में क्यों?

यह नहर जलाशयों पर निर्भर है और 2023 में पड़े सूखे से यह काफी प्रभावित हुई थी, जिसके कारण देश को इससे गुजरने वाले जहाजों की संख्या को सीमित करना पड़ा था। इसके अलावा नौकाओं से लिया जाने वाला शुल्क भी बढ़ा दिया गया था। इस वर्ष के बाद के महीनों में मौसम सामान्य होने के साथ नहर पर पारगमन सामान्य हो गया है लेकिन शुल्क में वृद्धि अगले वर्ष भी कायम रहने की उम्मीद है।

हश मनी केस में ट्रंप की बढ़ीं ट्रंप की मुश्किलें, सजा बरकरार, जानें कोर्ट ने क्या कहा?

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हश मनी मामले में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा झटका लगा है। हश मनी मामले में जज ने डोनाल्ड ट्रंप की हश मनी केस की सजा को खारिज करने की मांग को ही खारिज कर दिया है। जज ने फैसले में कहा है कि स्कैंडल को छुपाने के लिए रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई और इसलिए डोनाल्ड ट्रंप की सजा बरकरार रहनी चाहिए। बता दे कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को गुप्त धन (हश मनी केस) समेत 34 मामलों में दोषी ठहराया गया था।

मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक न्यूयॉर्क के एक न्यायाधीश ने सोमवार को कहा कि हश मनी मामले में उन्हें राष्ट्रपति बनने के बाद भी कोई राहत नहीं मिलेगी और उनकी मई की सजा बरकरार रहेगी। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायाधीश जुआन मर्चेन ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपतियों को आधिकारिक कामों के लिए व्यापक प्रतिरक्षा देने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू नहीं होता क्योंकि मुकदमे में गवाही "पूरी तरह से अनाधिकारिक आचरण से संबंधित थी, जिसके लिए कोई प्रतिरक्षा संरक्षण का अधिकार नहीं था।" न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी यही जानकारी दी है।

दरअसल ट्रंप ने याचिका दायर कर अपने खिलाफ चल रहे हश मनी मामले को खारिज करने की मांग की थी। ट्रंप के वकीलों ने याचिका में तर्क दिया था कि केस के बरकरार रहने से राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप की क्षमताएं बाधित होंगी और वह अच्छी तरह से सरकार नहीं चला पाएंगे। हालांकि जज ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट के इस फैसले से यह संभावना बढ़ गई है कि ट्रंप, जूरी के फैसले के खिलाफ अपील लंबित रहने तक, एक गंभीर अपराध के साथ व्हाइट हाउस में जाने वाले पहले राष्ट्रपति बन सकते हैं।

क्या है हश मनी केस?

एडल्ट स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स के साथ डोनाल्ड ट्रंप का संबंध 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में खूब चर्चा में रहा था। वहीं स्टॉर्मी डेनियल्स ट्रंप के साथ अपने रिश्ते को सार्वजनिक करने की धमकी दे रही थीं। इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें गुपचुप तरीके से पैसे दिए। जिसके बाद ट्रंप को डेनियल्स को 1 लाख 30 हजार डॉलर के भुगतान को छिपाने के लिए व्यावसायिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करने के आरोप में दोषी ठहराया गया है।

ट्रंप ने जज पर लगाया था आरोप

बता दें कि 77 साल के ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्हें अपराधी घोषित किया गया है। हालांकि, ट्रंप ने अपने खिलाफ चलाए जा रहे इस मुकदमे को धांधलीपूर्ण बताया था। मैनहट्टन कोर्ट रूम के बाहर हाल ही में ट्रंप ने जज पर पक्षपात और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि जज बहुत भ्रष्ट हैं। उन्होंने कहा था कि मुकदमे में धांधली हुई।

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?

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अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं।

भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट

भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है।

चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?

चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही।

ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे।

भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह

शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है।

यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई

इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।

‘तीसरा विश्व युद्ध होगा शुरू': ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से पहले ‘आक्रामक’ नीतियों को आगे बढ़ाने का आरोप

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Donald Trump and Joe Biden

डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर ने बिडेन प्रशासन पर आरोप लगाया है कि वह जनवरी में अपने पिता के व्हाइट हाउस में लौटने से पहले तनाव को बढ़ावा दे रहा है, जो “तीसरा विश्व युद्ध” का कारण बन सकता है। यह दावा राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा यूक्रेनी सेना को रूसी क्षेत्र को निशाना बनाने के लिए अमेरिकी आपूर्ति की गई लंबी दूरी की मिसाइलों का उपयोग करने के लिए अधिकृत करने के बाद किया गया है, एक ऐसा कदम जो अमेरिका और रूस के बीच तनाव को बढ़ा सकता है - ट्रम्प का दावा है कि तनाव को आसानी से संभाला जा सकता है।

रिपोर्ट बताती हैं कि उत्तर कोरिया ने कुर्स्क क्षेत्र में 15,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है, जबकि कीव कथित तौर पर रूस के भीतर महत्वपूर्ण लक्ष्यों पर हमला करने के लिए उन्नत मिसाइलों का उपयोग करने की तैयारी कर रहा है।

ट्रम्प जूनियर ने बिडेन की नीतियों और सैन्य-औद्योगिक परिसर की आलोचना की

"सैन्य औद्योगिक परिसर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मेरे पिता को शांति स्थापित करने और लोगों की जान बचाने का मौका मिलने से पहले ही वे तीसरा विश्व युद्ध शुरू कर दें," ट्रम्प जूनियर, 46, ने 18 नवंबर को ट्वीट किया, कुछ ही समय पहले रिपोर्टों ने पुष्टि की थी कि यूक्रेनी सेना को रूस को निशाना बनाने के लिए पूर्वोत्तर सीमा पर सेना की सामरिक मिसाइल प्रणालियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। यह यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के महीनों के अनुरोधों के बाद हुआ है, जबकि ट्रम्प ने बिडेन के उत्तराधिकारी बनने के बाद युद्ध को समाप्त करने की कसम खाई थी। जैसा कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने अभियान के दौरान कहा है, वह एकमात्र व्यक्ति हैं जो शांति वार्ता के लिए दोनों पक्षों को एक साथ ला सकते हैं, और युद्ध को समाप्त करने और हत्या को रोकने की दिशा में काम कर सकते हैं," ट्रम्प के प्रवक्ता स्टीवन चेउंग ने पहले NY पोस्ट को बताया था।

तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत?

जवाब में, रूस के फेडरेशन काउंसिल के एक वरिष्ठ सदस्य आंद्रेई क्लिशास ने टेलीग्राम के माध्यम से चेतावनी दी कि पश्चिम की ओर से की गई कार्रवाई "सुबह तक" यूक्रेनी राज्य के पूर्ण पतन का कारण बन सकती है, रॉयटर्स के अनुसार।

रूस के ऊपरी सदन अंतर्राष्ट्रीय मामलों की समिति के प्रथम उप प्रमुख व्लादिमीर दज़बारोव ने चेतावनी दी कि मॉस्को की प्रतिक्रिया तेज़ होगी, उन्होंने इस कार्रवाई को "तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत की ओर एक बहुत बड़ा कदम" बताया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सितंबर में पहले कहा था कि यूक्रेन को पश्चिम से मिसाइलों के साथ रूसी भूमि पर हमला करने देने से पश्चिम और रूस के बीच सीधी लड़ाई होगी, जिससे पूरे संघर्ष की प्रकृति बदल जाएगी।

बाइडेन के इस फैसले ने ऑनलाइन भी भारी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है, जिसमें कई लोगों ने इस कृत्य को "मूर्खतापूर्ण" करार दिया है। "बाइडेन तीसरा विश्व युद्ध शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। यह रोगात्मक और पूरी तरह से पागलपन है। अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल रूस के अंदरूनी हिस्सों में गोलीबारी करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए! कल्पना कीजिए कि अगर रूस ने अमेरिका में मिसाइलें दागने के लिए आपूर्ति की होती!" MAGA समर्थक चार्ली किर्क ने कहा। "अमेरिकी लोगों ने शांति लाने के लिए ट्रम्प को भारी मतों से वोट दिया, और अब बिडेन हमें तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा रहे हैं," एक अन्य नेटिजन ने टिप्पणी की।

ट्रंप ने यूक्रेन को दिया बड़ा झटका, अमेरिकी मदद पर रोक, इजराइल-मिस्र की जारी रहेगी मदद

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डोनाल्ड ट्रंप एक्शन मोड में हैं। शपथ लेने के बाद वह लगातार सबको झटका दे रहे हैं। पहले कनाडा और मैक्सिको को चोट दी। अब अमेरिका ने अपने दोस्त यूक्रेन को ही घाव दे दिया है। उन्होंने कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है। इसी कड़ी में उन्होंने यूक्रेन को दी जाने वाली मदद को भी रोकने का ऐलान किया है। ट्रंप का ये फैसला यूक्रेन के लिए तगड़ा झटका है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद अमेरिकी प्रशासन लगातार नए आदेश जारी कर रहा है। शुक्रवार को अमेरिका के विदेश विभाग ने लगभग सभी विदेशी वित्तपोषण पर रोक लगा दी है और अपवाद के तौर पर सिर्फ मानवीय खाद्य कार्यक्रमों और इस्राइल और मिस्त्र को मदद जारी रखी जाएगी। इसके साथ ही अमेरिका दुनियाभर में स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास, नौकरी प्रशिक्षण की जो भी मदद देता है, उन पर तत्काल प्रभाव से रोक लग जाएगी।

बता दें कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि सभी सहायता कार्यक्रम अमेरिका के हित में नहीं हैं। इस संबंध में सभी अमेरिकी दूतावास को यह आदेश जारी कर दिया गया है। जिसमें बताया गया है कि नई सरकार वैश्विक आर्थिक सहायता के मद में कोई खर्च नहीं करेगी और दूतावास के पास ही जो फंड बचा है, उसके खत्म होने तक वे सहायता कार्यक्रम चला सकते हैं।

अमेरिका के इस फैसले से सबसे बड़ा झटका यूक्रेन को लगेगा, जो रूस के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन पहले ही बड़ी मात्रा में यूक्रेन के लिए फंडिंग की मंजूरी दे गए हैं, लेकिन अमेरिकी विदेश विभाग के फैसले से नई फंडिंग पर रोक लग गई है। ऐसे में यूक्रेन के सामने भारी चुनौती आने वाली है।

यही नहीं अमेरिका अन्य देशों को भी जो मदद देता है, उसको भी ट्रंप प्रशासन ने रोकने का निर्णय लिया है.हालांकि, इसमें इजराइल, इजिप्ट को शामिल नहीं किया गया, यानी इन देशों को अमेरिका की मदद मिलती रहेगी. यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के अनुरूप है, जिसमें विदेशों में सहायता को सख्ती से प्रतिबंधित किया गया है। इस आदेश से डेवलपमेंट से लेकर मिलिट्री सहायत तक काफी कुछ प्रभावित होने की उम्मीद है. जो बाइडेन के कार्यकाल में रूस का सामना करने के लिए यूक्रेन को अरबों डॉलर के हथियार मिले थे। अमेरिकी मदद की वजह से यूक्रेन इनतें दिनों तक युद्ध में डटा रहा. अमेरिका ने 2023 में यूक्रेन को 64 बिलियन डॉलर से अधिक की मदद दी थी. पिछले साल कितनी की मदद दी गई, रिपोर्ट में इसकी जानकारी नहीं दी है

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी जिसे खत्म करने जा रही ट्रंप सरकार, क्या भारत पर भी होगा असर?

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डोनाल्‍ड ट्रंप ने सोमवार को अमेरिका के 47वें राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के बाद अपने संबोधन में कई बड़े ऐलान किये और इसके बाद कई एग्‍जीक्‍यूटिव आदेशों पर हस्‍ताक्षर किए। दुनिया के कई देशों के लिए यह आदेश मुसीबत लेकर आए हैं तो खुद उनके ही देश में ऐसे आदेशों ने बहुत से लोगों की परेशान बढ़ा दी है। नागरिकता को लेकर डोनाल्‍ड ट्रंप के एक एग्‍जीक्‍यूटिव आदेश ने अमेरिका में रहने वाले कई देशों के लोगों के साथ लाखों भारतीयों के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है। इस आदेश के मुताबिक, यदि किसी बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के नागरिक नहीं हैं और बच्‍चे का अमेरिका में जन्‍म होता है तो भी उसे नागरिकता नहीं दी जाएगी।

अमेरिका के कानून के मुताबिक अब तक वहां जन्म लेने वाला हर शख्स अमेरिकी नागरिक होता है। अमेरिका में यदि किसी बच्‍चे का जन्‍म होता है तो उसे स्‍वत: ही अमेरिका का नागरिक मान लिया जाता है। फिर चाहे बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के हों या नहीं। साथ ही यदि बच्‍चे के माता-पिता अवैध रूप से यहां पर आए हैं और बच्‍चे का जन्‍म अमेरिका में होता है तो भी उसे अमेरिकी नागरिक माना जाएगा। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी

यह जानने से पहले की ट्रंप ने बर्थराइट पॉलिसी में किन चीजों को बदलने की मांग की है यह जानना जरूरी है कि देश की बर्थराइट पॉलिसी क्या है? अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन जोकि 1868 में किया गया, उसके मुताबिक, देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता दी जाती है। इस संशोधन का मकसद पूर्व में देश में गुलाम बनाए गए व्यक्तियों को नागरिकता और समान अधिकार देना था।

संविधान के मुताबिक, अमेरिका में जिन सभी बच्चों का जन्म हुआ उनके अधिकार क्षेत्र के अधीन वो अमेरिका और जिस भी राज्य में पैदा हुए वहां के नागरिक बन जाते हैं।

इस बर्थराइट पॉलिसी में विदेशी राजनयिकों के बच्चों को छोड़ कर, अमेरिका में पैदा हुए लगभग सभी व्यक्तियों को शामिल किया गया है। हालांकि, जहां संविधान देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता देने की बात करता है, वहीं अब ट्रंप के प्रशासन का मकसद इस खंड को फिर से परिभाषित करना है। ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि जन्मजात नागरिकता में गैर-दस्तावेजी आप्रवासियों के बच्चों को बाहर रखा जाना चाहिए और उन्हें जन्मजात नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।

क्‍या है ट्रंप का आदेश?

अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने कहा है कि उनकी सरकार अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वाले लोगों के अमेरिका में बच्‍चों को नागरिक नहीं मानेगी। ट्रंप ने फेडरल एजेंसी को आदेश दिया है कि वह 30 दिनों के बाद ऐसे बच्‍चों को नागरिकता दस्‍तावेज जारी न करे। ट्रंप काफी वक्‍त से यह मुद्दा उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि वैध स्थिति के बिना आप्रवासियों के बच्चों को अमेरिका की नागरिकता प्रदान करना उन्हें स्‍वीकार्य नहीं है।

किन पर ज्यादा असर

अमेरिका के इमिग्रेशन नियमों में इस बड़े बदलाव का असर एच-1बी, एच-4 या एफ-1 वीजा पर रह रहे माता-पिता के बच्चों पर पड़ेगा। ये नियम उन बच्चों पर लागू होगा जिनके माता-पिता ग्रीन कार्ड होल्डर या अमेरिकी नागरिक नहीं हैं। इस फैसले से रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे दस लाख से अधिक भारतीयों पर सीधा असर पड़ेगा। इनमें से कई लोग तो पिछले कई दशकों से ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं।

भारत पर असर

अमेरिका के जनसंख्‍या ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की संख्‍या करीब 50 लाख है जो कि वहां की जनसंख्या का करीब 1.47 फीसदी है। इनमें से महज 34 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो कि अमेरिका में पैदा हुए हैं। शेष दो तिहाई आप्रवासी हैं। अमेरिका में काम कर रहे अधिकतर भारतीय वहां एच1-बी विजा के आधार पर काम कर रहे हैं। इस दौरान वहां पैदा होने वाले भारतीय मूल के बच्चों को अब स्वत: अमेरिका की नागरिकता नहीं मिल पाएगी। ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार कर रहे 10 लाख से ज्‍यादा भारतीय भी इस फैसले से प्रभावित होंगे।

डोनाल्ड ट्रंप का भारत के लिए महत्व: रणनीतिक सहयोग, व्यापारिक चुनौतियाँ और कूटनीतिक अवसर

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Donald Trump (President of USA)

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नए पहलू सामने आए, जो दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक हितों के संदर्भ में महत्वपूर्ण थे। ट्रंप की विदेश नीति और उनकी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। इस लेख में हम यह देखेंगे कि ट्रंप का भारत के लिए क्या मतलब था, उनके कार्यकाल में दोनों देशों के रिश्ते कैसे विकसित हुए, और उनके निर्णयों के परिणामस्वरूप भारत को किन चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ा।

भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंध

1. चीन के खिलाफ साझा चिंता

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच एक मजबूत साझेदारी ने चीन को दोनों देशों के लिए साझा चिंता का विषय बना दिया। भारत और अमेरिका की रणनीतिक सहयोगिता का मुख्य ड्राइवर चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय प्रभाव था।

  - क्वाड का गठन इस साझेदारी का प्रमुख हिस्सा था, जो चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देता है।

  - ट्रंप ने चीन के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया, जिससे भारत को इसके मुकाबले अपनी स्थिति को मजबूती से पेश करने का अवसर मिला।

2. सुरक्षा और रक्षा सहयोग

  - भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में भी वृद्धि हुई, विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य तकनीकी सहयोग में। ट्रंप प्रशासन के दौरान, अमेरिकी हथियारों और रक्षा प्रणाली के साथ भारत के सहयोग को बढ़ावा मिला।

  - डोकलाम, बालाकोट और गलवान जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं पर भारत और अमेरिका ने एक साथ काम किया, जो उनके सहयोग को और सुदृढ़ करता है।

3. पार्टी और वैचारिक संरेखण

  - नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मजबूत व्यक्तिगत संबंध थे, और दोनों के बीच एक विचारधारात्मक समानता थी, जो उनके कार्यों और नीतियों में भी दिखाई दी।

  - ट्रंप ने मोदी के नेतृत्व में भारत को एक अहम साझेदार माना और दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग को बेहतर बनाने के लिए कई प्रयास किए।

चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ

1. अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितता

  - ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में अस्थिरता और अनिश्चितता देखी गई। उनके अप्रत्याशित निर्णय और रणनीतियाँ, जैसे कि कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बाहर निकलना, भारत के लिए कुछ मुद्दों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते थे।

  - उदाहरण के तौर पर, इंडो-पैसिफिक नीति पर ट्रंप का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं था, और इसमें कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हुए।

2. व्यापारिक असंतुलन और टैरिफ़ नीति

  - ट्रंप के दृष्टिकोण में व्यापारिक असंतुलन को लेकर चिंता थी, और भारत से संबंधित व्यापार अधिशेष के कारण अमेरिका ने भारत पर उच्च टैरिफ लगाए जाने की संभावना जताई।

  - ट्रंप का यह मानना था कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार में उचित स्थान नहीं दिया और इसका फायदा उठाया। यह भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि भारत को अपने निर्यात को संतुलित करने और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश और भारतीय कंपनियाँ

  - ट्रंप का मानना था कि भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश किए बिना अमेरिकी निवेश को आकर्षित कर रही हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और इस निवेश के परिणामस्वरूप हजारों नौकरियाँ पैदा हुई थीं।

  - भारत को अपने निवेश और व्यापारिक रणनीति को सही तरीके से प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी ताकि अमेरिका में भारतीय योगदान को सही रूप से पहचाना जा सके।

भारत के लिए लाभकारी रणनीतियाँ

1. भारत के लिए उपयुक्त कूटनीतिक संबंध

  - भारत के लिए यह महत्वपूर्ण था कि वह राजनीतिक और रणनीतिक संरेखण बनाए रखे, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय कूटनीति को सही दिशा देना चुनौतीपूर्ण हो सकता था।

  - ट्रंप के नेतृत्व में भारत को अपने कूटनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए अपनी राजनीतिक समझ और कूटनीतिक योग्यता का इस्तेमाल करना पड़ा।

2. चीन के खिलाफ एकजुटता

  - चीन के बढ़ते प्रभाव और उसके खिलाफ साझा चिंता ने भारत और अमेरिका को एकजुट किया। यह साझा रणनीति दोनों देशों के लिए फायदेमंद रही, विशेषकर सुरक्षा, तकनीकी और आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्रों में।

3. व्यापार और निवेश संबंधों का संतुलन

  - भारत को यह स्पष्ट करना था कि मेक इन इंडिया और मेड इन अमेरिका के बीच कोई टकराव नहीं है। अगर भारत ने सही तरीके से अपने व्यापारिक मुद्दों को हल किया, तो वह ट्रंप प्रशासन को एक राजनीतिक जीत दे सकता था और अमेरिका के साथ व्यापारिक संतुलन बना सकता था।

4. अमेरिका में निवेश का विस्तार

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी थीं, और यह स्थिति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर थी। भारत को यह सुनिश्चित करना था कि उसके निवेश के प्रभाव को उचित तरीके से अमेरिका में समझा जाए और उसे पहचान मिले।

भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध

1. व्यापारिक संघर्ष

  - भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा व्यापारिक टैरिफ़ था, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने की संभावना जताई थी। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती थी, क्योंकि इसे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करने से बचना था।

  

2. आवश्यक रणनीतिक सहयोग

  - भारत को अमेरिका के साथ अपनी व्यापार नीति को और मजबूत करने के लिए अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित करना था। इस संदर्भ में, दोनों देशों के व्यापार संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक राजनीतिक इच्छाशक्ति और लचीलेपन की आवश्यकता थी।

3. अमेरिका में निवेश का मौका

  - भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में निवेश करके लाभ कमा रही थीं, लेकिन यह भारत के लिए एक अनकहा पक्ष था। भारतीय निवेश को अमेरिकी कूटनीति में ज्यादा प्रमुखता से उठाना था ताकि इसके महत्व को समझा जा सके।

भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य

भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में चुनौती और अवसर दोनों थे। ट्रंप प्रशासन के दौरान, भारत ने अपनी कूटनीति, व्यापारिक रणनीतियों और सुरक्षा सहयोग को मजबूती से पेश किया। हालांकि, कुछ मुद्दों पर अनिश्चितता और संघर्ष रहा, लेकिन साझा रणनीतिक हित और व्यक्तिगत कूटनीतिक संबंधों ने दोनों देशों के बीच सहयोग को बनाए रखा। भारत को ट्रंप प्रशासन के अंतर्गत अपनी रणनीति को और मजबूती से आकार देना होगा, खासकर व्यापारिक और निवेश संबंधों में।  

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह, कई देशों के नेता हो रहे शामिल

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डोनाल्ड ट्रंप आज संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। इस मौके पर कैपिटल परिसर में एक भव्य उद्घाटन समारोह आयोजित किया जाएगा। ट्रंप का उद्घाटन उसी यूएस कैपिटल में होगा, जहां नवंबर में उन्होंने जबर्दस्त राजनीतिक वापसी की थी। यह वही जगह है, जहां चार साल पहले उनके समर्थकों ने 2020 के चुनावी हार के बाद हमला किया था।

इंडोर में होगा शपथ ग्रहण समारोह

इस वक्त पूरी दुनिया में उनके शपथ समारोह की चर्चा हो रही है, क्योंकि अमेरिका के इतिहास में 40 साल के बाद पहली बार डोनाल्ड ट्रंप खुले आसमान में नहीं, बल्कि संसद हॉल के अंदर शपथ लेंगे। डोनाल्ड ट्रंप भीषण ठंड पड़ने की वजह से खुले मैदान में शपथ न लेकर इंडोर में शपथ लेंगे। इस साल अमेरिका में सर्दी ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं और तापमान -10 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। जिसके वजह से कार्यक्रम को इंडोर शिफ्ट कर दिया गया है।

शपथ लेने के बाद समर्थकों से मिलेंगे ट्रंप

इसे लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि ऐसा करने के पीछे वजह ये है कि वे लोगों को ठंड से बीमार पड़ते नहीं देखना चाहते हैं। उनके समर्थकों के लिए 20 हजार की क्षमता वाले कैपिटल एरिया में बड़े स्क्रीन लगाकर शपथ ग्रहण के लाइव टेलीकास्ट की व्यवस्था की गई है। शपथ के बाद वे यहां खुद समर्थकों के बीच आएंगे।

शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो रहे कई देशों के नेता

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण समारोह में दुनिया के कई देशों के नेता आने वाले हैं। नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी समेत कई देशों के नेताओं को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है। शी अपने प्रतिनिधि के रूप में अपने उपराष्ट्रपति को भेज रहे हैं।

एस जयशंकर करेंगे भारत सरकार का प्रतिनिधित्व

सोमवार को होने वाले डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे। समारोह के लिए क्वाड देशों के सभी विदेश मंत्रियों को भी न्योता भेजा गया है। इस मौके पर क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक भी प्रस्तावित है, जिसमें जयशंकर भी हिस्सा लेंगे।

डोनाल्ड ट्रम्प और H-1B: उनकी कथनी और करनी पर एक वास्तविकता जाँच

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डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ऐसे विषय पर अपनी राय रखी है जिस पर उनके समर्थकों के बीच बहस चल रही है - संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था में कुशल अप्रवासी श्रमिकों की भूमिका। निर्वाचित राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने उन श्रमिकों के लिए अक्सर वीज़ा का इस्तेमाल किया है और कार्यक्रम का समर्थन किया है।

ट्रम्प ने न्यूयॉर्क पोस्ट से कहा, "मेरी संपत्तियों पर कई H-1B वीज़ा हैं।" "मैं H-1B में विश्वास करता रहा हूँ। मैंने इसका कई बार इस्तेमाल किया है। यह एक बढ़िया कार्यक्रम है।"

हालाँकि, वास्तव में, ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रम्प ने H-1B वीज़ा कार्यक्रम का बहुत कम इस्तेमाल किया है। यह सॉफ़्टवेयर इंजीनियरों जैसे कुशल श्रमिकों को तीन साल तक अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है, और इसे छह साल तक बढ़ाया जा सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प की कथनी और करनी पर एक वास्तविकता जाँच

ट्रम्प ने वास्तव में H-2B वीज़ा कार्यक्रम का अधिक बार इस्तेमाल किया है, जो माली और गृहस्वामियों जैसे अकुशल श्रमिकों के लिए है, और H-2A कार्यक्रम, जो कृषि श्रमिकों के लिए है। ये वीजा श्रमिकों को देश में 10 महीने तक रहने की अनुमति देते हैं। संघीय आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रपति-चुनाव की कंपनियों को पिछले दो दशकों में दो H-2 कार्यक्रमों के माध्यम से 1,000 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने की स्वीकृति मिली है। 

आउटलेट ने बताया कि ट्रम्प संक्रमण टीम ने न्यूयॉर्क पोस्ट साक्षात्कार में ट्रम्प द्वारा संदर्भित वीजा के प्रकार पर स्पष्टता प्रदान नहीं की। हालाँकि, इसने कार्य वीजा पर ट्रम्प की स्थिति के बारे में एक पूर्व प्रश्न का उत्तर उनके द्वारा 2020 में दिए गए भाषण का पाठ साझा करके दिया। प्रतिक्रिया में कहा गया कि "अमेरिकियों को इस चमत्कारी कहानी को कभी नहीं भूलना चाहिए।" ट्रम्प ने 2016 में चुनाव प्रचार करते समय कहा था कि H-1B कार्यक्रम "श्रमिकों के लिए बहुत बुरा" था और जोर देकर कहा कि "हमें इसे समाप्त कर देना चाहिए।"

हालांकि, एलन मस्क के अनुयायियों सहित टेक उद्योग में कई लोगों ने ट्रम्प के शनिवार के साक्षात्कार की सराहना की। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर इयान माइल्स चेओंग ने एक्स पर पोस्ट किया, "डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा पर एलन मस्क का समर्थन किया।" मस्क, जो दक्षिण अफ्रीका में जन्मे एक प्राकृतिक नागरिक होने के नाते H-1B वीजा पर देश में आए थे, ने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि उनके हिसाब से वीजा कितना महत्वपूर्ण है क्योंकि तकनीकी कंपनियों की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम अमेरिकी नागरिकों की कमी है। उन्होंने क्रिसमस के दिन X पर लिखा, "उत्कृष्ट इंजीनियरिंग प्रतिभा की स्थायी कमी है।" श्रम विभाग H-1B और H-2 दोनों कार्यक्रमों की देखरेख करता है और प्रत्येक के लिए अलग-अलग नियम लागू करता है। वर्तमान में, कुशल श्रमिक कार्यक्रम में प्रति वर्ष 65,000 की सीमा है। दूसरी ओर, H-2B वीजा की सीमा 66,000 है। H-2A वीजा की कोई सीमा नहीं है, लेकिन यह उद्योग के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। 

श्रम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, ट्रम्प की कंपनियों को 2003 से 2017 तक फ्लोरिडा के पाम बीच में मार-ए-लागो और साथ ही फ्लोरिडा के जुपिटर में ट्रम्प नेशनल गोल्फ क्लब सहित उनकी संपत्तियों पर रसोइये, हाउसकीपर और वेटर जैसी नौकरियों के लिए 1,000 से अधिक एच-2 वीजा के लिए मंजूरी दी गई थी। इन सभी मामलों में कंपनियों को यह प्रमाणित करना था कि कोई भी अमेरिकी नागरिक नहीं है जो इन नौकरियों को कर सकता है।

ट्रम्प के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान भी, उनकी कंपनियों ने एच-2 कर्मचारियों को काम पर रखना जारी रखा। उदाहरण के लिए, उन्होंने 2018 के मध्य में मार-ए-लागो में 78 हाउसकीपर, रसोइये और खाद्य सर्वर के लिए वीजा के लिए आवेदन पोस्ट किए। सबसे हालिया H-1B आवेदन 2022 में ट्रम्प मीडिया एंड टेक्नोलॉजी ग्रुप द्वारा पोस्ट किया गया था, जो $65,000 के वेतन के साथ "उत्पाद डेटा विश्लेषक" की तलाश कर रहा था। यह स्पष्ट नहीं है कि पद भरा गया था या नहीं। वर्जीनिया के चार्लोट्सविले में राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए राष्ट्रपति की वाइनरी को एच-2ए कार्यक्रम के तहत 31 विदेशी वाइनयार्ड फार्मवर्कर्स की तलाश है। उन्हें प्रति घंटे 15.81 डॉलर की पेशकश की जा रही है।

पनामा नहर की क्या है अहमियत, अमेरिका के कंट्रोल की दी धमकी, ट्रंप के बयान से मची खलबली

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पनामा नहर पर नियंत्रण वापस लेने के बयान से विवाद खड़ा हो गया है। ट्रंप ने रविवार को कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा से कहा है कि वह पनामा नहर की फीस कम करे या तो उस पर नियंत्रण अमेरिका को वापस कर दे। ट्रंप ने आरोप लगाया कि मध्य अमेरिकी देश पनामा अमेरिकी मालवाहक जहाज़ों से ज़्यादा क़ीमत वसूल रहा है। वहीं पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने इस धारणा को अपने देश की संप्रभुता का अपमान बताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया।

ट्रंप के पास अगले महीने अमेरिका की कमान आने वाली है।इससे पहले ट्रंप ने रविवार को कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है जिसे अमेरिका ने ‘मूर्खतापूर्ण’ तरीके से अपने मध्य अमेरिकी सहयोगी को सौंप दिया था। ट्रंप ने अपनी इस बात के पीछे तर्क दिया कि अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली इस अहम नहर से गुजरने के लिए जहाजों से ‘बेवजह’ शुल्क वसूला जाता है।

एरिजोना में ‘टर्निंग प्वाइंट यूएसए अमेरिकाफेस्ट’ में समर्थकों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने ये बातें कहीं। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने इस धारणा को अपने देश की संप्रभुता का अपमान बताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि पनामा कभी भी सौदेबाजी का विषय नहीं होगा। पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने ट्रंप के बयान को खारिज कर कहा, 'नहर और उसके आसपास का हर वर्ग मीटर पनामा का है और पनामा का ही रहेगा। पनामा के लोगों के कई मुद्दों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन जब हमारी नहर और हमारी संप्रभुता की बात आती है तो हम सभी एकजुट हैं। इसलिए नहर का नियंत्रण पनामा का है और यह कभी भी सौदेबाजी का विषय नहीं होगा।'

पनामा नहर अहम क्यों?

82 किलोमीटर लंबी पनामा नहर अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। हर साल पनामा नहर से क़रीब 14 हज़ार पोतों की आवाजाही होती है। इनमें कार ले जाने वाले कंटेनर शिप के अलावा तेल, गैस और अन्य उत्पाद ले जाने वाले पोत भी शामिल हैं। पनामा की तरक़्क़ी का इंजन उसकी यही नहर है। पनामा के पास जब से नहर का नियंत्रण आया है, तब से उसके संचालन की तारीफ़ होती रही है। पनामा की सरकार को इस नहर से हर साल एक अरब डॉलर से ज़्यादा की ट्रांजिट फीस मिलती है। हालांकि पनामा नहर रूट से कुल वैश्विक ट्रेड का महज पाँच फ़ीसदी करोबार ही होता है।

अमेरिका ने पनामा को क्यों सौंपी थी नहर

अमेरिका ने 1900 के दशक की शुरुआत में इस नहर का निर्माण किया था। उसका मकसद अपने तटों के बीच वाणिज्यिक और सैन्य जहाजों के आवागमन को सुविधाजनक बनाना था। 1977 तक इस पर अमेरिका का नियंत्रण था। इसके बाद पनामा और अमेरिका का संयुक्त नियंत्रण हुआ लेकिन 1999 में इस पर पूरा नियंत्रण पनामा का हो गया था। अमेरिका ने 1977 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि के तहत 31 दिसंबर 1999 को जलमार्ग का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया था।

पनामा नहर विवादों में क्यों?

यह नहर जलाशयों पर निर्भर है और 2023 में पड़े सूखे से यह काफी प्रभावित हुई थी, जिसके कारण देश को इससे गुजरने वाले जहाजों की संख्या को सीमित करना पड़ा था। इसके अलावा नौकाओं से लिया जाने वाला शुल्क भी बढ़ा दिया गया था। इस वर्ष के बाद के महीनों में मौसम सामान्य होने के साथ नहर पर पारगमन सामान्य हो गया है लेकिन शुल्क में वृद्धि अगले वर्ष भी कायम रहने की उम्मीद है।

हश मनी केस में ट्रंप की बढ़ीं ट्रंप की मुश्किलें, सजा बरकरार, जानें कोर्ट ने क्या कहा?

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हश मनी मामले में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा झटका लगा है। हश मनी मामले में जज ने डोनाल्ड ट्रंप की हश मनी केस की सजा को खारिज करने की मांग को ही खारिज कर दिया है। जज ने फैसले में कहा है कि स्कैंडल को छुपाने के लिए रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई और इसलिए डोनाल्ड ट्रंप की सजा बरकरार रहनी चाहिए। बता दे कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को गुप्त धन (हश मनी केस) समेत 34 मामलों में दोषी ठहराया गया था।

मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक न्यूयॉर्क के एक न्यायाधीश ने सोमवार को कहा कि हश मनी मामले में उन्हें राष्ट्रपति बनने के बाद भी कोई राहत नहीं मिलेगी और उनकी मई की सजा बरकरार रहेगी। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायाधीश जुआन मर्चेन ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपतियों को आधिकारिक कामों के लिए व्यापक प्रतिरक्षा देने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू नहीं होता क्योंकि मुकदमे में गवाही "पूरी तरह से अनाधिकारिक आचरण से संबंधित थी, जिसके लिए कोई प्रतिरक्षा संरक्षण का अधिकार नहीं था।" न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी यही जानकारी दी है।

दरअसल ट्रंप ने याचिका दायर कर अपने खिलाफ चल रहे हश मनी मामले को खारिज करने की मांग की थी। ट्रंप के वकीलों ने याचिका में तर्क दिया था कि केस के बरकरार रहने से राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप की क्षमताएं बाधित होंगी और वह अच्छी तरह से सरकार नहीं चला पाएंगे। हालांकि जज ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट के इस फैसले से यह संभावना बढ़ गई है कि ट्रंप, जूरी के फैसले के खिलाफ अपील लंबित रहने तक, एक गंभीर अपराध के साथ व्हाइट हाउस में जाने वाले पहले राष्ट्रपति बन सकते हैं।

क्या है हश मनी केस?

एडल्ट स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स के साथ डोनाल्ड ट्रंप का संबंध 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में खूब चर्चा में रहा था। वहीं स्टॉर्मी डेनियल्स ट्रंप के साथ अपने रिश्ते को सार्वजनिक करने की धमकी दे रही थीं। इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें गुपचुप तरीके से पैसे दिए। जिसके बाद ट्रंप को डेनियल्स को 1 लाख 30 हजार डॉलर के भुगतान को छिपाने के लिए व्यावसायिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करने के आरोप में दोषी ठहराया गया है।

ट्रंप ने जज पर लगाया था आरोप

बता दें कि 77 साल के ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्हें अपराधी घोषित किया गया है। हालांकि, ट्रंप ने अपने खिलाफ चलाए जा रहे इस मुकदमे को धांधलीपूर्ण बताया था। मैनहट्टन कोर्ट रूम के बाहर हाल ही में ट्रंप ने जज पर पक्षपात और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि जज बहुत भ्रष्ट हैं। उन्होंने कहा था कि मुकदमे में धांधली हुई।

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?

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अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं।

भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट

भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है।

चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?

चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही।

ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे।

भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह

शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है।

यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई

इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।

‘तीसरा विश्व युद्ध होगा शुरू': ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से पहले ‘आक्रामक’ नीतियों को आगे बढ़ाने का आरोप

#worldwarthreepredictedtrumpaccusedofagressivepolicies

Donald Trump and Joe Biden

डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर ने बिडेन प्रशासन पर आरोप लगाया है कि वह जनवरी में अपने पिता के व्हाइट हाउस में लौटने से पहले तनाव को बढ़ावा दे रहा है, जो “तीसरा विश्व युद्ध” का कारण बन सकता है। यह दावा राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा यूक्रेनी सेना को रूसी क्षेत्र को निशाना बनाने के लिए अमेरिकी आपूर्ति की गई लंबी दूरी की मिसाइलों का उपयोग करने के लिए अधिकृत करने के बाद किया गया है, एक ऐसा कदम जो अमेरिका और रूस के बीच तनाव को बढ़ा सकता है - ट्रम्प का दावा है कि तनाव को आसानी से संभाला जा सकता है।

रिपोर्ट बताती हैं कि उत्तर कोरिया ने कुर्स्क क्षेत्र में 15,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है, जबकि कीव कथित तौर पर रूस के भीतर महत्वपूर्ण लक्ष्यों पर हमला करने के लिए उन्नत मिसाइलों का उपयोग करने की तैयारी कर रहा है।

ट्रम्प जूनियर ने बिडेन की नीतियों और सैन्य-औद्योगिक परिसर की आलोचना की

"सैन्य औद्योगिक परिसर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मेरे पिता को शांति स्थापित करने और लोगों की जान बचाने का मौका मिलने से पहले ही वे तीसरा विश्व युद्ध शुरू कर दें," ट्रम्प जूनियर, 46, ने 18 नवंबर को ट्वीट किया, कुछ ही समय पहले रिपोर्टों ने पुष्टि की थी कि यूक्रेनी सेना को रूस को निशाना बनाने के लिए पूर्वोत्तर सीमा पर सेना की सामरिक मिसाइल प्रणालियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। यह यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के महीनों के अनुरोधों के बाद हुआ है, जबकि ट्रम्प ने बिडेन के उत्तराधिकारी बनने के बाद युद्ध को समाप्त करने की कसम खाई थी। जैसा कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने अभियान के दौरान कहा है, वह एकमात्र व्यक्ति हैं जो शांति वार्ता के लिए दोनों पक्षों को एक साथ ला सकते हैं, और युद्ध को समाप्त करने और हत्या को रोकने की दिशा में काम कर सकते हैं," ट्रम्प के प्रवक्ता स्टीवन चेउंग ने पहले NY पोस्ट को बताया था।

तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत?

जवाब में, रूस के फेडरेशन काउंसिल के एक वरिष्ठ सदस्य आंद्रेई क्लिशास ने टेलीग्राम के माध्यम से चेतावनी दी कि पश्चिम की ओर से की गई कार्रवाई "सुबह तक" यूक्रेनी राज्य के पूर्ण पतन का कारण बन सकती है, रॉयटर्स के अनुसार।

रूस के ऊपरी सदन अंतर्राष्ट्रीय मामलों की समिति के प्रथम उप प्रमुख व्लादिमीर दज़बारोव ने चेतावनी दी कि मॉस्को की प्रतिक्रिया तेज़ होगी, उन्होंने इस कार्रवाई को "तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत की ओर एक बहुत बड़ा कदम" बताया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सितंबर में पहले कहा था कि यूक्रेन को पश्चिम से मिसाइलों के साथ रूसी भूमि पर हमला करने देने से पश्चिम और रूस के बीच सीधी लड़ाई होगी, जिससे पूरे संघर्ष की प्रकृति बदल जाएगी।

बाइडेन के इस फैसले ने ऑनलाइन भी भारी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है, जिसमें कई लोगों ने इस कृत्य को "मूर्खतापूर्ण" करार दिया है। "बाइडेन तीसरा विश्व युद्ध शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। यह रोगात्मक और पूरी तरह से पागलपन है। अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल रूस के अंदरूनी हिस्सों में गोलीबारी करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए! कल्पना कीजिए कि अगर रूस ने अमेरिका में मिसाइलें दागने के लिए आपूर्ति की होती!" MAGA समर्थक चार्ली किर्क ने कहा। "अमेरिकी लोगों ने शांति लाने के लिए ट्रम्प को भारी मतों से वोट दिया, और अब बिडेन हमें तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा रहे हैं," एक अन्य नेटिजन ने टिप्पणी की।