शिव ज्योतिर्लिंग-6: अपने चमत्कारिक रहस्यों के कारण केदारनाथ है जाग्रत शिवलिंग, ,जिसके दर्शन मात्र से होता है आप का उद्धार,
विनोद आनंद
भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक केदारनाथ मन्दिर भी है जो हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र और जाग्रत शिवधाम माना जाता है।केदारनाथ यह मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकिनी नदी के पास गढ़वाल हिमालय पर्वतमाला पर स्थित है।यह मंदिर हिन्दुओं के लिए प्रसिद्ध धार्मिक मंदिर है। केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है।इसलिए इसका धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है।
इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं जो इसकी आध्यात्मिकता को बढ़ा देती है ।साथ हीं इस मंदिर में छिपे कई रहस्य हैं जो इसे और भी विशेष बना देती हैं।
रहस्य की बात करें तो यह मंदिर पांच नदियों का संगम स्थल और तीन प्राचीन पहाड़ों से घिरा है।इस विशेषता के कारण, इस स्थल की पवित्रता और भी अधिक मानी जाती है। मंदाकिनी नदी, जो अभी भी मौजूद है, इस संगम का एक मुख्य भाग है और केदारेश्वर धाम के निकट बहती है।
दूसरा रहस्य है विशालकाय संरचना और इंटरलॉकिंग तकनीक से बना यह मंदिर। मंदिर की विशालकाय संरचना, जिसमें 6 फुट ऊंचा चबूतरा, 85 फुट ऊंची दीवारें, और 12 फुट मोटी दीवारें शामिल हैं,यह एक आश्चर्यजनक है। इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराशना और इंटरलॉकिंग टेक्निक का उपयोग करके इस मंदिर का निर्माण करना एक अद्भुत कला को दर्शाता है।
इस मंदिर को लेकर तीसरा रहस्य है दीपावली महापर्व से अनवरत रूप से जलता हुआ दीपक। यह दीपक दीपावली के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है और एक दीपक अनवरत रूप से 6 महीने तक जलता रहता है। यह परंपरा केदारनाथ मंदिर के अद्भुत रहस्यों में से एक है। जब 6 महीने बाद मंदिर के कपाट फिर से खोले जाते हैं, तो दीपक उस समय भी जल रहा होता है, जो भक्तों और यात्रियों के लिए आश्चर्य का विषय होता है। इस घटना को भगवान शिव की दिव्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
ज्योतिर्लिंग को जागृत शिव क्यों कहा जाता है ?
केदारनाथ मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को 'जागृत शिव' कहा जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि यहाँ भगवान शिव स्वयं अपनी दिव्य ज्योति के रूप में निवास करते हैं। इस लिंग में स्वयं शिव की ज्योति विद्यमान होने के कारण, भक्तों का विश्वास है कि यहाँ की पूजा और दर्शन से उन्हें सीधा शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके समस्त पाप धुल जाते हैं।
केदारनाथ जाने का साधन
केदारनाथ मंदिर ऋषिकेश से 223 किमी (139 मील) दूर, 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊंचाई पर, गंगा की एक सहायक नदी मंदाकिनी नदी के तट पर, स्थित है। हिमालय पर्वतमाला के गढ़वाल में स्थित होने के कारण यहां की यात्रा थोड़ा दुर्गम है।यहां सीधे सड़क मार्ग से नही आया जा सकता है।
यहां तक पहुंचने के लिए आपको देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे पर पहुंचना होगा, और फिर गौरीकुंड के लिए हरिद्वार या ऋषिकेश से बस लेनी होगी। गौरीकुंड से, आपको केदारनाथ मंदिर तक 18 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी, जिसके लिए आप चालक घोड़े, पालकी, या हेलिकॉप्टर सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं।शरीर से स्वस्थ लोग पद यात्रा करके भी गौरी कुंड से मंदिर तक पहुंचते हैं।गौरी कुंड से मंदिर तक मनोरम दृश्य और पहाड़ी सौंदर्य के कारण यह यात्रा अत्यंत उत्साह वर्धक बन जाता है।इस यात्रा में आपको कम से कम 4-5 दिन का समय लग सकता है।
2013 में आये प्रलयंकारी बाढ़ से भी इस मंदिर को नही हुआ ज्यादा क्षति
16 जून 2013 को उत्तराखंढ के केदारनाथ वासियों को प्रलयकारी बाढ़ का सामना करना पड़ा था। बाढ़ की त्रासदी सदियों तक लोगों के जेहन में रहेगी। इस आपदा में हजारों लोगों की जानें चली गईं। कई घरों का नामोनिशान मिट गया। केदारनाथ और इसका तीर्थ स्थान दोनों इस प्राकृतिक आपदा की चपेट में आए थे, लेकिन जल प्रलय में भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ ,इसे ईश्वर का चमत्कार कहें या जिस तकनीक से यह मंदिर बनी है उसकी वैज्ञानिकता यह रिसर्च का विषय है।
यहां बादल फटने से आई इस विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन, 2004 की सूनामी के बाद से देश की सबसे खराब प्राकृतिक आपदा मानी जाती है ।उस महीने हुई बारिश राज्य में आमतौर पर होने वाली बारिश से कहीं अधिक थी, जिसके कारण नदियों में मलबे भरने लगे और पानी तीव्र गति से रिहायशी इलाकों में फैल गया।
केदारनाथ त्रासदी में बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए। 16 जुलाई 2013 तक, उत्तराखंड सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 5,700 से अधिक लोगों को मृत घोषित कर दिया गया था। कुल मृतकों में 934 स्थानीय निवासी शामिल थे। मरने वालों की संख्या बाद में 6,054 बताई गई ।
पुलों और सड़कों के नष्ट होने से लगभग 3,00,000 तीर्थयात्री और पर्यटक घाटियों में फंस गए. भारतीय वायु सेना, भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्र से 1,10,000 से अधिक लोगों को प्रभावित क्षेत्र से बाहर निकाला।
केदारनाथ उत्तर भारत में 2013 में आये बाढ़ के दौरान सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र था। मंदिर परिसर, आस-पास के इलाकों और केदारनाथ शहर में भारी तबाही हुआ, लेकिन मंदिर की संरचना को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, सिवाय चारों दीवारों के एक तरफ कुछ दरारों के, जो ऊंचे पहाड़ों से बहकर आए मलबे के कारण हुई थीं।
मलबे के बीच एक बड़ी चट्टान ने एक अवरोधक के रूप में काम किया, जिसने मंदिर को बाढ़ से बचाया। आसपास के परिसर और बाजार क्षेत्र में अन्य इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा।
केदारनाथ के मंदिर निर्माण को लेकर मान्यता
मान्यता है कि केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। स्वयंभू शिवलिंग का अर्थ है जो स्वयं प्रकट हुआ है। माना जाता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडव राजा जनमेजय ने करवाया था।
केदारनाथ के बारे में एक लोक कथा हिंदू महाकाव्य महाभारत के नायकों पांडवों से संबंधित है।जो इस प्रकार, पांडवों ने अपने राज्य की बागडोर अपने परिजनों को सौंप दी और शिव की खोज में और उनका आशीर्वाद लेने के लिए निकल पड़े। लेकिन, शिव उन्हें टालना चाहते थे और उन्होंने एक बैल (नंदी) का रूप धारण कर लिया। पांच पांडव भाइयों में से दूसरे भीम ने तब गुप्तकाशी के पास बैल को चरते देखा। भीम ने तुरंत पहचान लिया कि यह बैल शिव है। भीम ने बैल की पूंछ और पिछले पैरों को पकड़ लिया। लेकिन बैल रूपी शिव जमीन में लुप्त हो गए और बाद में टुकड़ों में फिर से प्रकट हुए, केदारनाथ में कूबड़ उठा, तुंगनाथ में भुजाएं दिखाई दीं, रुद्रनाथ में चेहरा दिखाई दिया, मध्यमहेश्वर में नाभि और पेट सतह पर आए और कल्पेश्वर में बाल दिखाई दिए।
एक दंत कथा के एक संस्करण में भीम को न केवल बैल को पकड़ने बल्कि उसे गायब होने से रोकने का श्रेय दिया गया है।
परिणामस्वरूप, बैल को पांच भागों में फाड़ दिया गया और हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र के केदार खंड में पांच स्थानों पर प्रकट हुआ। पंच केदार मंदिरों के निर्माण के बाद, पांडवों ने मोक्ष के लिए केदारनाथ में ध्यान किया, यज्ञ किया और फिर महापंथ नामक स्वर्गीय मार्ग से स्वर्ग या मोक्ष प्राप्त किया।
पंच केदार मंदिरों का निर्माण उत्तर-भारतीय हिमालयी मंदिर वास्तुकला में किया गया है, जिसमें केदारनाथ, तुंगनाथ और मध्यमहेश्वर मंदिर एक जैसे दिखते हैं। पंच केदार मंदिरों में शिव के दर्शन की तीर्थयात्रा पूरी करने के बाद, बद्रीनाथ मंदिर में विष्णु के दर्शन करना एक अलिखित धार्मिक अनुष्ठान है, जो भक्त द्वारा शिव का आशीर्वाद लेने के अंतिम पुष्टिकरण के रूप में होता है।
महाभारत, जो पांडवों और कुरुक्षेत्र युद्ध का विवरण देता है, में केदारनाथ नामक किसी स्थान का उल्लेख नहीं है। केदारनाथ का सबसे पहला उल्लेख स्कंद पुराण लगभग 7वीं-8वीं शताब्दी में मिलता है, जिसमें गंगा नदी की उत्पत्ति का वर्णन करने वाली एक कहानी है।
पाठ में केदार (केदारनाथ) को उस स्थान के रूप में वर्णित किया गया है जहाँ शिव ने अपनी जटाओं से पवित्र जल छोड़ा था। माधव के संक्षेप-शंकर-विजय पर आधारित जीवनी के अनुसार, 8वीं शताब्दी के दार्शनिक आदि शंकराचार्य की मृत्यु केदारनाथ के पास पहाड़ों पर हुई थी; हालांकि आनंदगिरि के प्राचीन-शंकर-विजय पर आधारित अन्य जीवनी में कहा गया है कि उनकी मृत्यु कांचीपुरम में हुई थी। शंकराचार्य की कथित मृत्यु स्थली को चिह्नित करने वाले स्मारक के खंडहर केदारनाथ में स्थित हैं। केदारनाथ निश्चित रूप से 12वीं शताब्दी तक एक प्रमुख तीर्थस्थल था, जब इसका उल्लेख गढ़वाल मंत्री भट्ट लक्ष्मीधर द्वारा लिखित कृत्य-कल्पतरु में किया गया है।माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ और उत्तराखंड के अन्य मंदिरों के साथ इस मंदिर को पुनर्जीवित किया था। माना जाता है कि उन्होंने केदारनाथ में महासमाधि प्राप्त की थी।
केदारनाथ तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र के प्राचीन ब्राह्मण हैं, उनके पूर्वज (ऋषि-मुनि) नर-नारायण और दक्ष प्रजापति के समय से ही लिंग की पूजा करते आ रहे हैं।
पांडवों के पौत्र राजा जन्मेजय ने उन्हें इस मंदिर की पूजा करने का अधिकार दिया और पूरा केदार क्षेत्र दान कर दिया, और तब से वे तीर्थयात्रियों की पूजा करते आ रहे हैं।
अंग्रेज पर्वतारोही एरिक शिप्टन द्वारा 1926 में दर्ज की गई एक परंपरा के अनुसार, "कई सौ साल पहले" एक पुजारी केदारनाथ और बद्रीनाथ दोनों मंदिरों में सेवाएं आयोजित करता था, जो रोजाना दोनों स्थानों के बीच यात्रा करता था।
इस मंदिर में बद्रीनाथ और उत्तराखंड के अन्य मंदिरों के साथ-साथ केदारनाथ में भी पूजा की जाती है; ऐसा माना जाता है कि उन्होंने केदारनाथ में महासमाधि प्राप्त की थी।
इस मंदिर के निर्माण और पुनरुद्धार को लेकर चर्चा
यूं तो इस मंदिर को सर्वप्रथम पांडवों ने बनवाया था, लेकिन वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। बाद में 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा।
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है। इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं, तब भी यह मंदिर मौजूद था।
माना जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार किया था।
पहले शंकराचार्य, फिर राजा भोज ने कराया पुनर्निर्माण
केदारघाटी में बाबा के धाम में लकड़ी और पत्थरों पर की गई सुंदर नक्काशी कत्यूरी शैली की बताई जाती है, ऐसा कहा जाता है कि पांडव वंश के राजा जन्मेजय ने मंदिर को पूरा कराया था। इसके बाद 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। ग्वालियर से मिले राजा भोज के एक ताम्र पत्र में ये दावा किया गया है कि मंदिर का पुर्ननिर्माण 10 वीं शताब्दी में राजा भोज ने भी कराया था। हालांकि राहुल सांकृत्यायन ने ये दावा किया है कि मंदिर 12 और 13 वीं शताब्दी का है।
केदारनाथ मंदिर में सोना लगाने का इतिहास
केदारनाथ मंदिर में सोना लगाने के इतिहास का जिक्र नहीं मिलता है। हालांकि ऐसा दावा किया जाता है कि केदारनाथ मंदिर के निर्माण के बाद से 12 वीं शताब्दी तक यहां सोना-चांदी लगाया जाता था, इसके बाद यह प्रथा खत्म हो गई। पिछले साल जब यहां सोने की परत चढ़ाने काम काम शुरू हुआ था उससे पहले यहां दीवारों पर चांदी की परत चढ़ी थी। जब सोने की परत का काम शुरू हुआ तो पुजारियों ने विरोध किया था। उस वक्त केदार सभा के पूर्व अध्यक्ष महेश बगवाड़ी ने कहा था कि मंदिर की दीवारों पर सोना चढ़ाना हिंदू मान्यताओं और परंपराओं के अनुरूप है। उस वक्त BKTC के चेयरमैन अजेंद्र अजय ने भी कहा था कि यह सामान्य प्रक्रिया है, पहले छत लकड़ी से बनती थी, फिर पत्थर से बनी, इसके बाद तांबें की प्लेंटे आईं. उन्होंने विरोध को साजिश बताया था।
Jul 10 2024, 07:40