कृषि विभाग ने जारी की एडवाइजरी : बदलते मौसम में फसल का रखें ध्यान, मटर में निकाई-गुराई करें
बेगूसराय : मौसम में अचानक काफी बदलाव हो गया है। शुक्रवार को हर ओर कुहासा छाने से राहगीरों की परेशानी बढ़ी है। लेकिन किसानों के चेहरे खिल उठे हैं। इसके मद्देनजर कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा 31 दिसंबर तक का मौसम पूर्वानुमान एवं एडवाइजरी जारी किया गया है।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया कि पूर्वानुमान की अवधि में बेगूसराय सहित उत्तर बिहार के जिलों में आसमान में हल्के बादल रह सकते हैं। इस दौरान मौसम के शुष्क रहने का अनुमान है। इस अवधि में अधिकतम तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री सेल्सियस अधिक रहने की संभावना है। इसके चलते यह तापमान 27-28 डिग्री सेल्सियस के आसपास रह सकता है। न्यूनतम तापमान भी सामान्य से 2-3 डिग्री सेल्सियस अधिक रहने की संभावना है। यह तापमान 13-14 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने का अनुमान है। औसतन 2-3 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से पुरवा हवा चल सकती है।
उन्होंने कहा कि बिलंब से बोयी गयी गेहूं की जो फसल 21 से 25 दिनों की हो गयी हो, उसमें 30 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से दें। गेहूं की बुआई के 30 से 35 दिनों के बाद की अवस्था में पहली सिंचाई के बाद गेहूं की फसल में कई प्रकार के खर-पतवार उग आते है। इन खरपतवारों का विकास काफी तेजी से होता है।
गेहूं की वृद्धि प्रभावित होने से उपज कम हो जाता है। खरपतवारों के नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फयुरॉन 33 ग्राम प्रति हेक्टर एवं मेटसल्फयुरॉन 20 ग्राम प्रति हेक्टर दवा 500 लीटर पानी में मिलाकर खड़ी फसल में छिडकाव करें। गेहूं की फसल 40-45 दिनों की तो उसमें दूसरी सिंचाई कर 30 किलो यूरिया का प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन करें।
मक्का की फसल में तना बेधक कीट की निगरानी करें। इसकी सूड़ियां कोमल पत्तियों को खाती है तथा मध्य कलिका की पत्तियों के बीच घुसकर तने में पहुंच जाती है। तने के गुदे को खाती हुई जड़ की तरफ बढ़ती हुई सुरंग बनाती है। जिससे मध्य कलिका मुरझायी नजर आती है जो बाद में सुख जाती है।
एक ही पौधे को कई सूड़ियां मिलकर खाती है काफी नुकसान होता है।उपचार के लिए फसल में अंकुरण के दो सप्ताह बाद फोरेट 10 जी. या कार्बोफ्यूारान 3 जी. का 7-8 दाना गाभा में दें। अधिक नुकसान होने पर डेल्टामिथिन 250-300 एमएल प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। नवंबर माह के शुरु में बोयी गई मक्का की फसल 50 से 60 दिनों की है तो 50 किलोग्राम यूरिया देकर मिट्टी चढ़ायें।
खड़ी रबी फसलों आलू, गाजर, मटर, टमाटर, धनियां, लहसून में झुलसा रोग की निगरानी करें। बादलनुमा मौसम तथा वातावरण में नमी होने पर यह बीमारी फसलों में काफी तेजी से फैलती है। इस रोग में फसलों की पत्तियों के किनारे और सिरे से झुलसना प्रारंभ होती है, जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। इस रोग के लक्षण दिखने पर 2.5 ग्राम डाई-इथेन एम० 45 फफूंदनाशक दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर समान रुप से फसल पर 2-3 छिड़काव 10 दिनों के अन्तराल पर करें। आलू की फसल में कटवर्म या कजरा पिल्लू की निगराणी करें। यह कीट आलू में काफी हानी पहुंचाता है। फसल की शुरुआती अवस्था में यह कीट रात्री बेला में जमीन की सतह से पौधे को काट डालता है।
फसल के बाद की अवस्था में यह पौधे की शाखाओं एवं पत्तियों को काटता है। कंद बनने की अवस्था में यह कंद को खाता है। इस कीट का प्रकोप फसल में दिखनें पर बचाव के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी दवा का 2.5 से 3 मिली प्रति लीटर पानी की दर से से घोल बनाकर छिड़काव करें। आलू की फसल से खरपतवार निकालें।
पिछात मटर में निकाई-गुराई करें, फसल में फली छेदक कीट की निगरानी करें। इस कीट के पिल्लू फलियों में जालीनूमा आवरण बनाकर उसके नीचे फलियों में प्रवेश कर अन्दर ही अन्दर मटर के दानों को खाती रहती हैं। एक पिल्लू एक से अधिक फलियों को नष्ट करता है। इससे फलियां खाने योग्य नहीं रह जाती है तथा उपज में अत्यधिक कमी आती है।
बेगूसराय से नोमानुल हक की रिपोर्ट
Jan 01 2024, 16:21