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भाई को तिलक लगा बहनें करती हैं मंगल कामना संदर्भ : भाई दूज बहनों के स्नेह को करता है अभिव्यक्त
रंगीन रोशनियों के त्योहार दीपावली के दो दिन बाद आता है भ्रातृ द्वितीया यानी भाई दूज ।  यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिंदू धर्म का पर्व है। इसे  यम द्वितीया भी कहते हैं। यह ऐसा पर्व है जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है ।
रक्षाबंधन से है अलग : भारतीय त्योहारों में रक्षाबंधन और भाई दूज दोनों ऐसे त्योहार हैं, जो भाई बहन के आपसी स्नेह और प्रेम को दर्शाते हैं । वहीं दोनों का अलग-अलग पौराणिक महत्व भी है । 
सावन माह की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं, वहीं दूसरी ओर भाई दूज के दौरान बहनें भाई के माथे पर तिलक और अक्षत लगा अपने भाई की रक्षा का वचन लेती हैं। साथ ही भाई भी बहनों को अपना स्नेह और उपहार देते हैं ।
पौराणिक कथा के अनुसार भाई दूज वाले दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने उसके घर जाते हैं । उन्होंने यमुना को आशीष दिया है कि भाई दूज वाले दिन जो भाई अपनी बहन के घर जा तिलक लगवाते हैं वे अपने ऊपर आने वाले संकट से मुक्त रहेंगे।
यह पर्व पश्चिम बंगाल में भाई फोटा , महाराष्ट्र में भाऊ बीज, बिहार और झारखंड में गोधन कुटाई और दक्षिण भारत में यम द्वितीया के रूप में मनाया जाता है।
दमघोंटू स्थिति में पहुंचा वायु प्रदूषण संदर्भ : बिहार के लगभग सभी शहरों में हवा हुई प्रदूषित
मानव स्वास्थ्य के लिए 200 से ऊपर  एक्यूआई नुकसानदेह और 300 से ऊपर खतरनाक माना जाता है। रंगीन रोशनी के पर्व दीपावली के  अवसर पर लोगों ने जमकर आतिशबाजी की, जिससे वायु प्रदूषण अपने खतरनाक स्तर से भी ऊपर चला गया ।
बढ़ता वायु प्रदूषण सेहत के लिए  कई तरह के खतरे ला रहा है। प्रदूषित हवा में सांस लेने की वजह से ना सिर्फ
बुजुर्ग बल्कि छोटे बच्चे भी कई  तरह की समस्याओं को झेल रहे हैं ।  प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ता है , जिसकी वजह से व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है ।  मगर बढ़ते वायु प्रदूषण का असर न सिर्फ फेफड़ों पर पड़ता है बल्कि आंखों और कानों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
प्रदूषण के कण आंखों में इन्फेक्शन के कारण बनते हैं। इसके  कारण कंजेक्टिवाइटिस  जैसी आंख की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है ।  वहीं प्रदूषण की वजह से आंखों में खुजली होने पर आंखें रगड़ने पर कॉर्निया पर असर पड़ता है।
प्रदूषण की वजह से कान के पर्दे सिकुड़ने लगते हैं, जिसकी वजह से लोगों में बहरेपन की समस्या सामने आ सकती है ।  साथ ही कान में इन्फेक्शन और दर्द की परेशानी होने लगती है ।
मालूम कि वायु प्रदूषण सभी चीजों को प्रभावित करता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।  यह दृश्यता को कम करके और सूरज की रोशनी  तक को  अवरूद्ध कर अम्लीय वर्षा का कारण भी बन सकता है ।
क्या करें उपाय : सुबह और शाम में बहुत ज्यादा प्रदूषित हवा में बाहर न घूमें। अगर आप ज्यादा प्रदूषण वाले इलाके में रह रहे हैं तो रोजाना अपनी आंखों को दिन में चार-पांच बार पानी से धोएं ।  रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें ।  खाने में विटामिन से भरपूर सब्जियां और फल अपनी डाइट में शामिल करें। स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं और नियमित रूप से अपना हेल्थ चेकअप कराते रहें।
प्रदूषण कैसे हो नियंत्रित : वायु प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण के लिए कल - कारखानों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित किया जाना चाहिए । वहीं दूसरी तरफ जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है ताकि खाद्य और आवास के लिए पेड़ों और वनों को न काटना पड़े । धुआं रहित चूल्हे और सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करना होगा ।  साथ इस विषय को पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों में इसके प्रति चेतना जागृत करनी होगी ।
और अंत में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं पर ही प्रश्नचिन्ह लग सकता है। बोतल बंद पानी की तरह बोतल बंद हवा का कारोबार फैल सकता है ।  साथ ही प्रदूषण के कारण कृषि और जलवायु पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है गाय संदर्भ : गोवर्धन पूजा- गौ वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का दिन
धनतेरस से शुरू पांच दिवसीय  पर्व के दौरान दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है ।  गोवर्धन पूजा में गो धन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। ( ऐसे 2023 में गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को मनायी जायेगी, क्योंकि 13 नवंबर को अमावस्या तिथि दोपहर तक रहेगी।)
इस त्योहार का लोक जीवन में काफी महत्व माना गया है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है । शास्त्रों में कहा गया है कि गाय उतनी ही पवित्र होती है जितनी नदियों में गंगा। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख - समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से मनुष्य को स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं।
दूसरी ओर इसे अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। गोवर्धन पूजा के संबंध में कहा जाता है कि देवताओं के राजा इंद्र के कोप से ब्रजमंडल और अपने लोगों की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को 7 दिनों तक उठा रखा था । उसके नीचे सभी ब्रजवासियों और गौ वंश ने शरण ली थी। तभी से गोवर्धन पूजा के बाद अंन्नकूट उत्सव मनाया जाने लगा। क्या है गोवर्धन : गोवर्धन का इतिहास भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है । यह जिला मुख्यालय मथुरा से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।  गोवर्धन जाने के लिए हर समय जीप ,बस ,टैक्सी उपलब्ध रहती हैं। गोवर्धन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले की एक नगर पंचायत है। गोवर्धन और उसके आसपास के क्षेत्र को ब्रजभूमि भी कहा जाता है । इसे भगवान कृष्ण की लीला स्थली भी कहा जाता है । 
गोवर्धन पर्वत को भक्तजन के गिरिराज जी भी कहते हैं। सदियों से यहां दूर- दूर से लोग गिरिराज जी  की परिक्रमा करने आते रहते हैं जो कि सात कोस यानि 21 किलोमीटर की परिक्रमा 5 से 6 घंटे में पूरी करते हैं ।  परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहां एक पुराना और प्रसिद्ध मंदिर है जिसे दान घाटी मंदिर कहा जाता है । हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार गिरिराज जी की परिक्रमा करने से सभी कामनाएं पूरी होती हैं।
अंधेरे से रोशनी की ओर बढ़ने का पर्व है दीपावली संदर्भ : तमसो मा ज्योतिर्गमय
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली का पर्व मनाया जाता है । इस दिन सभी लोग माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश जी की पूजा करते हैं । मालूम हो कि गणेश जी के साथ मां लक्ष्मी का जब लोग पूजन करते हैं तो उनमें धन का सदुपयोग करने की क्षमता विकसित होती है ।
इसलिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है ताकि घर में लक्ष्मी का वास हो और शुभता और समृद्धि बनी रहे। पौराणिक रूप से यह वह दिन माना जाता है जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के लंबे वनवास के बाद लंका पति रावण का वध कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ  अयोध्या लौटे थे । वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार  उनके छोटे भाई भरत ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि यदि राम वनवास के बाद समय पर अयोध्या नहीं लौटे तो वह अपने प्राण त्याग देंगे ।
अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना :  दूसरी ओर आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्य वैज्ञानिक उपलब्धियां से प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है ।  मनुष्य अब अपने आप को सुपर मानव घोषित करने के प्रयास में है । मगर यह प्रयास मानव जीवन के लिए घातक है । पर वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य के लिए अपने भीतर व्याप्त अंधकार ( आसक्ति और मोह का अंधकार , काम, क्रोध , लोभ और मोह का अंधकार, ईष्या, द्वेष, पर निंदा, आत्म प्रवचना, धन, पद , प्रतिष्ठा के बल पर अहित की भावना का अंधकार) से मुक्त होकर प्रकाश की ओर चलना ही दीपावली पर्व का उद्देश्य है । 
वहीं मनुष्य जब अज्ञान के अंधकार से  ज्ञान के प्रकाश की ओर जाता है तो उसे शांति और संतोष की अनुभूति होती है ।
और, अंत में दीपावली का त्योहार रंगीन रोशनी, लजीज व्यंजन ,ध्वनि, सुगंध आदि का पर्व है । इसे हमें आपसी सौहार्द तथा परिजनों के साथ मिलकर खुशी के साथ मनाना चाहिए ।
हैप्पी दिवाली
हर निवाला हो सजगता भरा संदर्भ : हेल्दी दीपावली के लिए खानपान का रखें ख्याल
हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में दीपावली है जो सभी के जीवन में खुशियां , हर्ष , उल्लास और उमंग लेकर आती है पर थोड़ी सी लापरवाही अनेक समस्याओं का कारण बन सकती है ।  त्योहारों के मौसम में सेहत पर असर पड़ना स्वाभाविक है ।  खास तौर पर दीपावली के अवसर पर । ऐसे में सावधानी बरतने की जरूरत है । आप एक साथ भर पेट नहीं खाएं ।  थोड़े -थोड़े अंतराल पर कुछ-कुछ खाते रहें।
वहीं जिन्हें डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल,अस्थमा तथा सांस से संबंधित समस्या है, उन्हें सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।  दीपावली की तैयारी के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें । इसलिए खानपान से लेकर पटाखे शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। लजीज व्यंजन का अधिक लुत्फ उठाने के चक्कर में तबीयत बिगड़ सकती है। पर्व- त्योहार पर मसालेदार भोजन और मिठाइयों का इस्तेमाल बढ़ जाता है । इससे पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं हो सकती हैं ।  वहीं अगर आप पर्याप्त मात्रा में पानी पीते हैं तो आपका पेट भरा रहता है और आप बहुत अधिक व अतिरिक्त कैलोरी लेने से बच जाते हैं। इसलिए स्वस्थ खानपान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए ।
तेज आवाज वाले पटाखों से बचें : बच्चों के लिए ऐसे पटाखे ना खरीदें जो काफी तेज आवाज करते हो ।  इसके अलावा ज्यादा बारूद और धुआं वाले पटाखे नहीं खरीदें। वही बच्चों को अकेले में भी पटाखे चलाने नहीं देना चाहिए। साथ ही अपने और बच्चों को पहनने पर भी ध्यान रखें ।  पटाखे छोड़ते वक्त रेशमी कपड़े न पहनें और ना बच्चों को पहनाएं । दीये और मोमबत्ती से बच्चों को दूर रखें क्योंकि बच्चे शरारती होते हैं ।  जरा सी लापरवाही परेशानी का कारण बन सकती है । घर में फर्स्ट एड का सामान जरूर रखें ।
और अंत में दीपावली के दौरान खुद का ख्याल रखने के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों का भी ख्याल रखना बहुत जरूरी होता है ।  खासकर बच्चे और बुजुर्गों का। इसलिए खुद के साथ-साथ घर के अन्य सदस्यों के साथ सुरक्षित माहौल में दीपावली का त्योहार खुशी के साथ मनाएं ।
हैप्पी दीपावली
धन से महत्वपूर्ण है स्वास्थ्य संदर्भ : धनतेरस से शुरू हो जाता है दीपावली का पांच दिवसीय पर्व
दीपावली का त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। इसकी शुरुआत धनतेरस के साथ होती है और भाई दूज के दिन पांच दिवसीय पर्व का समापन होता है । त्रेता युग में भगवान श्री राम  वनवास के दौरान रावण का वध कर जब लंका से अयोध्या लौटे थे तब अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या को दीप मालाओं से सजाया था । तभी से दीपावली पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है । यह पांच दिन का पर्व लक्ष्मी जी, भगवान राम और श्री कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित होता है ।
पहला दिन : कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अक्षय पात्र के साथ प्रकट हुए थे। तभी से धनतेरस का पर्व शुरू हुआ। इसलिए इस दिन  नये बर्तन आदि की खरीदारी करना शुभ माना जाता है ।
दूसरा दिन : कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। तब से नरक चतुर्दशी पर्व मनाया जाता है ।  इस दिन को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन 5 या सात दीये जलाने की परंपरा है ।
तीसरा दिन : कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी प्रकट हुईं थीं और उसी दिन भगवान विष्णु से उनका विवाह हुआ था। यह दिन महालक्ष्मी पूजन के लिए विशेष होता है ।
चौथा दिन : दीपावली के अगले दिन यानी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी । इस दिन 56 तरह के पकवान आदि बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है।
पांचवा दिन : शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान कृष्ण नरकासुर नामक राक्षस को मारने के बाद अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गये थे । वहीं इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर उसके आमंत्रण पर गये थे और यमुना जी ने उनका तिलक लगाकर आदर सत्कार किया था । तभी से यह दिन भाई दूज पर्व के रूप में मनाया जाता है।
और अंत अत्युत्तम ,अनुपम , अमित ,अद्भुत ,अपरंपार। सुंदर, सरस ,सुहावना दीपों का त्योहार।। (नवीन)
ज्यादा गुस्सा भी कर सकता है बीमार संदर्भ : पति से झगड़ा के बाद पत्नी ने 2 साल के बेटे को गंडासे से काटा
इंसान कई सारे रिश्तों और इमोशन से बंधा होता है। वह हंसता है, रोता है , गुस्सा करता है और इमोशनल भी होता है। मनुष्य का स्वभाव एक जैसा नहीं होता। कहते हैं ज्यादा गुस्सा खून जलाता है यानी ज्यादा गुस्सा मन पर तो असर डालता ही है साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है ।
मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि ऐसी अवस्था लोगों में समस्या का कारण बन सकती है। गुस्से की अधिकता कई बार व्यक्ति को हिंसा और अपराध की ओर भी ले जाती है।दुनिया भर के लोगों में अलग-अलग कारणों से गुस्से और तनाव जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
कई वैज्ञानिक और समाजशास्त्री आज के इस युग को "एज आफ एंजायटी" युग के नाम से भी संबोधित करने लगे हैं । ज्यादा गुस्सा लोगों के कामकाजी , सामाजिक और पारिवारिक जीवन, सोचने और समझने की क्षमता आदि को भी प्रभावित करता है । ज्यादा गुस्सैल लोग न सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रिक मीडिया में गुस्से के कारण हुए अपराध की घटनाएं भरी रहती हैं। ताजा घटना सीतामढ़ी की है , जहां पति से झगड़ा होने के बाद पत्नी ने अपने 2 साल के बेटे को गंडासे से काट डाला  और दो अन्य छोटे बच्चों को घायल कर दिया ।  यह घटना तो बस एक उदाहरण है गुस्से की पराकाष्ठा का । 
क्या है इलाज : ज्यादा गुस्सा जब डिसऑर्डर में बदल जाता है जो जीवन की गुणवत्ता को खराब कर देता है । ऐसे व्यक्ति को आवश्यक काउंसलिंग के साथ काग्निटिक बिहेवियर थेरेपी , कम्युनिकेशन ट्रेनिंग तथा एंगर मैनेजमेंट स्किल डेवलपमेंट थेरेपी दी जाती है । साथ ही अनुशासित जीवन शैली का पालन करना जरूरी है । काम के साथ-साथ परिवार को भी समय देने और परिजनों के साथ समय बिताने से भी इस तरह की समस्या को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है । इसलिए तनाव रहित जीवन  जिएं तथा मस्त रहें और स्वस्थ रहें।
मर्यादा क्यों खो देते हैं माननीय संदर्भ : स्त्री शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण पर सीएम का बयान
आज का आधुनिक समाज एक नयी सोच रखता है और रही सही कसर सोशल मीडिया पूरी कर देता है । आज की सोच में संस्कारों को महत्वहीन माना जाता है। यह स्थिति ठीक नहीं । हम संस्कारों में बंधे रहते हैं तो मन, क्रम और वचन से मर्यादित रहते हैं ।
सूबे के सीएम विस और विप में स्त्री शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण पर बोलते- बोलते कुछ ऐसी बातें कह गये जो सदन की मर्यादा की विपरीत थीं। कुछ शब्द छिपे रहने में ही ठीक लगते हैं । आजकल ट्रेंड बन गया है माननीय पहले बोल देते हैं फिर बाद में माफी मांग लेते हैं । इस तरह के बयान से पद की गरिमा को ठेस पहुंचती है। विपक्ष मामले को लेकर हमलावर है। महिला आयोग ने भी इसकी निंदा की है। मामले को बढ़ता देख सीएम ने माफी मांग ली। पर महा गठबंधन ने विपक्ष को बैठे - बिठाये एक मुद्दा दे दिया है।
गंभीर होता जा रहा वायु प्रदूषण संदर्भ : नमी बढ़ने के साथ ही बढ़ा प्रदूषण
ठंड के मौसम में हवा सघन होती है और गर्म हवा की तुलना में धीमी गति से चलती है । इसका मतलब है कि ठंडी हवा प्रदूषण को रोक लेती है लेकिन उसे दूर नहीं ले जाती। सर्दियों में वायु प्रदूषण काफी लंबे समय तक बना रहता है। वायु प्रदूषण तब होता है जब गैस, धूल , गंदगी, पराग, कालिख, वायरस आदि हवा को दूषित करते हैं, जिससे यह अशुद्ध , अस्वास्थ्यकर और विषाक्त बन जाती है ।  हवा में मौजूद वायु प्रदूषण की मात्रा मनुष्यों , जानवरों और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र प्रभाव डालती है । वाहन, कल- कारखाने, कचरा जलाना ,धूल, बिजली संयंत्र , निर्माण, विध्वंसक  गतिविधियां , विमान और विमानों  से उत्सर्जन, जंगलों में लगी आग , ज्वालामुखी विस्फोट भी वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं । 
वायु प्रदूषण के कारण क्या बीमारियां होती है : वायु प्रदूषण से चक्कर आना ,सांस लेने में कठिनाई ,अस्थमा, आंख नाक और गले में जलन  आदि परेशानियां होने लगती हैं।
कैसे करें कम : सरकार की तरफ से तो वायु प्रदूषण कम करने के प्रयास लगातार किये जा रहे हैं ,वहीं कुछ प्रयास हम लोगों को भी करने होंगे। प्रदूषण पर रोक लगाने में पेड़- पौधे सबसे पहले स्थान पर आते हैं । पूरे विश्व में जो वायु प्रदूषण बढ़ रहा है उसका एक कारण यह  भी है कि विकास के लिए अंधाधुंध पेड़ों की कटायी की जा रही है, इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करना चाहिए।
वायु प्रदूषण का सबसे बुनियादी समाधान जीवाश्म ईंधन से दूर जाना है। उसकी जगह सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और भूतापीय ऊर्जा वैकल्पिक समाधान हो सकते हैं ।
वहीं लोग निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का उपयोग  करें ।  सड़कों के किनारे अधिक से अधिक पेड़ लगाये जायें। आबादी वाले क्षेत्र खुले और हवादार हों। कल- कारखाने आबादी वाले क्षेत्रों से  होने चाहिए।
दूसरी ओर देश की राजधानी दिल्ली में बुरी तरह बढ़ चुके प्रदूषण को देखते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए उचित उपाय करने का निर्देश दिया है। प्रदूषण चाहे वह किसी तरह का हो जब वह हद से बढ़ जाता है तो मनुष्य के लिए हानिकारक बन जाता है।
बच्चों को दें संस्कार जो जीवन मूल्यों की शिक्षा देंगे संदर्भ : कलह युग बन रहा कलियुग
यह संसार है जो मधुर और कटु भी है। कटु भी मनुष्य बनता है और मधुर भी मनुष्य ही बनता है ।  इसे दो दृश्यों से समझते हैं। पहला दृश्य  लगभग 40 वर्ष की आयु की एक विधवा मां थी । उसके दो लड़के थे। लड़के काम पर लगे । संसार में सामान्यतः जैसा होता है उसी प्रकार लड़कों का विवाह हुआ । बहुएं आयीं। पर कहावत है ना सब दिन होत  न एक समान ।  मां के दिन भी पलटे। बहुएं  तो कहती ही थी ,बेटे भी  माँ की उपेक्षा करने लगे। धीरे-धीरे मां को तिरस्कार का कटु अनुभव होने लगा। कभी-कभी ऐसे शब्द भी  सुनाई पड़ते कि बुढ़िया मरती भी नहीं है ।
एक बार छोटी सी बात पर दोनों भाइयों और बहुओं में झगड़ा हो गया । दोनों अलग-अलग रहने की बात करने लगे ।  मां ने समझाया लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। बेटे अलग हो गय। मां का क्या करना है या प्रश्न उठा। छोटे ने कहा भाई आप बड़े हैं मां को आप रखो । बड़े ने कहा मां मुझ अकेले की थोड़े ही है। छोटे ने कहा कि मैं अपने हिस्से वाला खर्च देता रहूंगा। इस पर बड़े ने कहा कि मैं ही मां की सार-संभाल अकेले क्यों करूं। दोनों ने अस्विकृति दे दी।   माँ भगवान से प्रार्थना करने लगी, हे संसार के रक्षक मुझे बुला ले । पेट का जाया लड़का ही खाने को नहीं देता यह दुख किसे सुनाऊं। न किसी से कहा जाता है न  सहा जाता है।
अब एक दूसरा दृश्य देखिए ,एक मां के तीन बेटे थे। वह सभी पढ़े-लिखे । पहला प्रोफेसर बन गया,दूसरे ने व्यापार करना शुरू किया और तीसरा डॉक्टर बना। भाग्य का खेल मां लगभग 45 वर्ष की आयु में विधवा हो गयी। पिता के जाने का पुत्रों को अपार दुख हुआ परंतु उन्होंने मां के दुख के आगे अपना दुख भुलाकर मां को सान्त्वना दी।  अलग-अलग व्यवसाय होने के  कारण भाइयों को अलग-अलग रहना पड़ता था ।  मां बड़े लड़के के पास रहने लगी। एक दिन मंझला भाई बड़े के घर आय और बोला कि बड़े भाई मां आपके यहां बहुत रह चुकी अब मैं मां को ले जाना चाहता हूं । तभी छोटा भाई भी पत्नी के साथ आ गया  और दोनों कहने लगे कि मां हम आपको ले जाने के लिए आये हैं।
यह सुन कर बड़े भाई ने कहा कि मां को तो हमारे पास ही रहने दो , मां तो बड़े के पास ही अच्छी लगती है । मां एक मधुर उलझन का अनुभव करने लगी । आंखों से आंसू बहने लगे।  मन ही मन कहने लगी, बेटे हों  तो ऐसे ही हों। पहला दृश्य कलियुग या कलह युग का और दूसरा दृश्य है सत्य युग ,कर्तव्य और त्याग का उदाहरण है । अच्छा  या बुरा सभी समझते हैं परंतु ऐसे प्रसंग देख सुनकर या पढ़कर कुछ लोग ही आचरण में लाते हैं।