औरंगाबाद सांसद सुशील कुमार सिंह ने प्रेस-वार्ता का किया आयोजन, केन्द्र सरकार द्वारा उत्तरी कोयल जलाशय एवं एक अंतर-राज्यीय प्रमुख सिंचाई परियोजना के लिए आवंटित किए राशि की दी जानकारी
औरंगाबाद : बिहार के औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में पिछले दो चुनाव से चुनावी मुद्दा बने बिहार-झारखंड के चार जिलों में 1 लाख 11 हजार 521 हेक्टेयर खेतों की सिचाईं के लिए जीवनदायिनी बनने वाली अटकती, भटकती तथा लटकती उतर कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को पूरा कराने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति द्वारा राशि की मंजूरी दिए जाने के बावजूद परियोजना के समय पर पूरा होने में बाधा आने और 2024 के चुनाव में भी चुनावी मुद्दा बनने के आसार प्रबल है।
औरंगाबाद के बीजेपी सांसद सुशील कुमार सिंह ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के एक प्रस्ताव पर उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को संशोधित 2,430.76 करोड़ के केंद्रांश की मंजूरी दी है।जबकि इससे पहले अगस्त, 2017 में परियोजना की स्वीकृत शेष लागत राशि 1,622.27 करोड़ रुपये थी। परियोजना के शेष कार्यों के पूरा होने पर झारखंड के पलामू, गढ़वा और बिहार के औरंगाबाद तथा गया जिले के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।
उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना एक अंतर-राज्यीय प्रमुख सिंचाई परियोजना है। इसका कमान क्षेत्र दो राज्यों बिहार और झारखंड में है। इस परियोजना में झारखंड के लातेहार जिले के कुटकू गांव के पास उत्तरी कोयल नदी पर एक बांध, बांध के नीचे 96 किमी. पर झारखंड के ही पलामू जिले में मोहम्मदगंज बराज, राईट बटाने कैनाल (आरएमसी) और बैराज से बाए मुख्य नहर लेफ्ट बटाने कैनाल(एलएमसी) शामिल हैं। नवंबर 2009 में झारखंड के अस्तित्व में आने के पहले बिहार सरकार ने अपने संसाधनों से वर्ष 1972 में कुटकु में डैम(बांध) के निर्माण के साथ-साथ अन्य सहायक गतिविधियां शुरू की थी। 1993 तक काम भी जारी रहा लेकिन उसी साल बिहार सरकार के वन विभाग की आपत्ति पर काम रोक दिया गया।
वन विभाग ने बांध में जमा पानी से बेतला नेशनल पार्क और पलामू टाइगर रिजर्व को खतरा होने की आशंका जताई थी। इसी कारण बांध निर्माण का काम रुक गया था। बांध के निर्माण का काम रुकने के बावजूद यह परियोजना 71,720 हेक्टेयर में वार्षिक सिंचाई प्रदान कर रही थी। नवंबर 2009 में बिहार विभाजन के बाद परियोजना का बांध और बैराज का मुख्य कार्य झारखंड में हैं। इसके अलावा मोहम्मदगंज बैराज से 11.89 किमी की दूरी पर बाई मुख्य नहर (एलएमसी) झारखंड में है। हालांकि, दाहिनी मुख्य नहर (आरएमसी) के 110.44 किमी में से पहला 31.40 किमी झारखंड में है और शेष 79.04 किमी बिहार में है। वर्ष 2016 में, भारत सरकार ने परिकल्पित लाभों को प्राप्त करने के लिए परियोजना को संचालित करने के लिए उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के शेष कार्यों को पूरा करने के लिए सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया।इसके तहत पलामू टाइगर रिजर्व के मुख्य क्षेत्र को बचाने के लिए जलाशय के स्तर को कम करने का निर्णय लिया गया।
परियोजना के शेष कार्यों को 1622.27 करोड़ रुपये के अनुमानित व्यय पर पूरा करने के प्रस्ताव को अगस्त 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था। दोनों राज्य सरकारों के अनुरोध पर कुछ अन्य घटकों को परियोजना में शामिल करना आवश्यक पाया गया था। परिकल्पित सिंचाई क्षमता प्राप्त करने के लिए तकनीकी दृष्टि से आरएमसी और एलएमसी की पूर्ण लाइनिंग को भी आवश्यक माना गया। इस प्रकार वितरण प्रणाली के कार्य, आरएमसी और एलएमसी की लाइनिंग, रास्ते में संरचनाओं की रीमॉडलिंग, कुछ नई संरचनाओं का निर्माण और परियोजना से प्रभावित परिवारों (पीएएफ) के राहत एवं पुनर्वासन(आर एंड आर) के लिए एकबारगी विशेष पैकेज को अद्यतन लागत अनुमान में प्रदान किया जाना था। इसी वजह से परियोजना के लिए संशोधित लागत अनुमान तैयार किया गया था। शेष कार्यों की लागत 2430.76 करोड़ रुपये में से केंद्र 1836.41 करोड़ रुपये उपलब्ध कराएगा।
सांसद ने कहा कि बिहार और झारखंड की सरकार ने बेहतर सहयोग किया तो यह परियोजना तीन महीने में पूरी हो जाएगी। परियोजना के लिए कुटकु डैम पहले ही बना हुआ है। डैम से सिर्फ लोहे का फाटक लगाने का काम बाकी है। लेफ्ट मेन कैनाल(एलएमसी) में बिहार के क्षेत्र में 103 आरडी से लेकर कररबार तक कंक्रीट लाईनिंग के लिए टेंडर हो चुका है। बरसात बाद इस पर काम भी शुरू हो जाएगा। उन्होने कहा कि उतर कोयल नहर परियोजना देश की ऐसी परियोजना है, जिसके लिए विस्थापितों को दो बार मुआवजा दिया जाएगा। कहा कि सरकार परियोजना के लिए अधिग्रहित जमीन का शुरु में ही मुआवजा भुगतान कर चुकी है। इसके बाद बंद परियोजना का काम जब आगे बढ़ा तो अधिग्रहित जमीन पर काबिज विस्थापितों ने यह कहकर कब्जा छोड़ने से इंकार कर दिया कि उनके पूर्वजों को मुआवजा मिलने की कोई जानकारी नही है। बिना मुआवजा भुगतान के वें कब्जा नही छोड़ेंगे। इस मामले में केंद्र सरकार ने पुनः मुआवजा देना स्वीकार कर लिया है। साथ ही शर्त रखा है कि मुआवजा की आधी राशि मिलने के बाद वें कब्जा छोड़ देंगे। कब्जा छोड़ने के बाद ही उन्हे मुआवजा की शेष 50 प्रतिशत राशि का भुगतान किया जाएगा।
सांसद की बातों में ही परियोजना के पूरा हाेने में विलंब और रोड़ा अटकाये जाने का संकेत मिला। उन्होने कहा कि 2009 तक यह परियोजना मृतप्राय पड़ी थी। परियोजना बंद होने के बाद की सरकारों ने इसमें रुचि नही ली। जब केंद्र सरकार इसे लेकर चिंतित हुई तो राज्य सरकारों ने रुचि नही ली जबकि सिंचाई राज्य का विषय है। जब भारत सरकार परियोजना के लिए धन देने और कानूनी बाधाओं को दूर करने को तैयार हुई तो राज्य सरकारों ने सहयोग नही किया। झारखंड सरकार ने सुरक्षा मुहैया कराने तक में रुचि नही ली। सुरक्षाकर्मियों के रहने के लिए भवन बनवाने की भी जिम्मेवारी नही ली। अब केंद्र सरकार अपने खर्च पर सुरक्षाकर्मियों के रहने के लिए भवन बनवा रही है। कहा कि अब यदि असहयोग के बजाय राज्य सरकारो का बेहतर सहयोग मिला तो परियोजना तीन माह में पूरी हो जाएगी और किसानों के खेतों में उतर कोयल नहर का लाल पानी आने लगेगा।
प्रेसवार्ता में भाजपा के वरीय नेता सुनील सिंह, जिला महामंत्री मुकेश सिंह, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अशोक सिंह एवं मीडिया प्रभारी मितेंद्र सिंह आदि मौजूद रहे।
औरंगाबाद से धीरेन्द्र
Oct 06 2023, 21:47