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अमीर-गरीब सबको मिलेगा निःशुल्क आयुष्मान योजना का लाभ, आईए जानते हैं बुजुर्गों को कौन-कौन सी बीमारियों में मिलेगा लाभ

सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को बड़ी राहत देते हुए 70 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों को आयुष्मान योजना का लाभ देने का फैसला किया है, ऐसे में बुजुर्गों को अपना इलाज कराने में बड़ी सुविधा होगी साथ ही उनका बड़ी बीमारियों में फ्री इलाज होगा। आइए जानते हैं कि बुजुर्गों को किन बीमारियों में इस योजना का लाभ मिलेगा।

केंद्र सरकार ने बुजुर्गों को बड़ी राहत देते हुए 70 साल से अधिक उम्र वालों को भारत की सबसे बड़ी सरकारी हेल्थ योजना का लाभ देने का फैसला लिया है। इस फैसले के तहत आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य स्कीम में बड़ा बदलाव किया गया है। जहां ये योजना पहले सिर्फ गरीबों के लिए थी वहीं अब 70 साल से ऊपर के अमीर बुजुर्ग भी इसका लाभ उठा पाएंगें।12 सितंबर को हुई कैबिनेट की बैठक में इस पर फैसला लिया गया है।

बुजुर्गों को हेल्थ इंश्योरेंस कवर

अक्सर बुजुर्गों में बढ़ती उम्र के साथ कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है ऐसे में कोई आमदनी न होने की वजह से बुजुर्गों का ठीक से इलाज नहीं हो पाता। ऐसे में इस कवर के तहत बुजुर्ग ठीक से अपना इलाज कराने की स्थिति में होंगे। ये 5 लाख का हेल्थ इंश्योरेंस कवर हर सरकारी और कुछ चुनिंदा प्राइवेट अस्पतालों में मिलेगा जहां इस योजना का लाभ कवर हो। ऐसे में किसी भी बड़ी बीमारी से बचाव की गुंजाइश पहले के मुकाबले बढ़ जाएगी।

बढ़ती उम्र के साथ बीमारियां

बुजुर्गों में बढ़ती उम्र के साथ कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है जिसका इलाज अपेक्षाकृत महंगा हो जाता है। इसमें सबसे ऊपर है हार्ट संबंधी बीमारियां। बुजुर्गों में अक्सर हाई ब्लड प्रेशर और डायबीटिज के चलते बढ़ती उम्र में हार्ट की गंभीर समस्याएं देखने को मिलती है जिसमें सर्जरी और इलाज में लाखों रूपये का खर्च होता है।

इसके बाद दूसरी गंभीर बीमारी है कैंसर जिसमें पुरुषों को इस उम्र में अमूमन प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है।कैंसर का इलाज भी काफी महंगा होता है ऐसे में ये योजना इन लोगों के लिए काफी हितकारी साबित होगी।

हार्ट डिजीज और कैंसर के अलावा इस उम्र में अक्सर बुजुर्गों में आर्थराइटिस और गठिया की समस्या देखने को मिलती है । हालांकि इसका इलाज इतना महंगा नहीं है लेकिन ये समस्या बुजुर्गों को काफी लंबे समय तक परेशान करती है जिसके लिए समय पर दवाई लेना आवश्यक हो जाता है।

मोतियाबिंद और डिमेंशिया

आंखों की समस्या भी बढ़ती उम्र के साथ बेहद आम है, इसमें ज्यादातर मामलों में बुजुर्गों को मोतियाबिंद की शिकायत हो जाती है जिसका इलाज सर्जरी के द्वारा किया जाता है। इसकी सर्जरी में भी काफी पैसा खर्च होता है। इन समस्याओं के अलावा डेमेंशिया की बीमारी भी बुजुर्गों में काफी अधिक देखी जाती है। जिसमें न्यूरोलॉजिक्ल समस्याओं के कारण बुजुर्गों की याद्दाश्त कमजोर हो जाती है जिससे उन्हें कोई बात याद रखना बेहद मुश्किल हो जाता है।

ये सभी समस्याएं बढ़ती उम्र में काफी सामान्य हैं इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज की समस्याएं बेहद आम है। इन उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए सरकार का ये फैसला बुजुर्गों के पक्ष में काफी हितकारी साबित होगा। जिसकी मदद से बुजुर्ग अपना बेहतर इलाज कराने की स्थिति में होंगे ।

योजना के तहत इन बीमारियों का कवरेज

इस योजना के तहत बुजुर्गों में होने वाली कई बड़ी और अहम बीमारियों का फ्री में इलाज कराया जा सकेगा।इसमें कैंसर जैसी बड़ी बीमारी के साथ हार्ट डीजिज, किडनी डिजीज, लंग डिजीज और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां भी कवर होंगी।

आइए जान लेते हैं कि कहां से आया यूनिफाइड पेंशन सिस्टम और यह किन-किन देशों से मिलता-जुलता है

केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की घोषणा की है। इसे एक अप्रैल 2025 से लागू करने की तैयारी है। पुरानी पेंशन की मांग कर रहे कर्मचारियों को इस स्कीम के जरिए थोड़ी राहत देने की कोशिश की गई है। इससे सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को पेंशन की गारंटी मिलेगी। आइए जान लेते हैं कि कहां से आया यूनिफाइड पेंशन सिस्टम और यह किन-किन देशों से मिलता-जुलता है।

वास्तव में यूनिफाइड पेंशन स्कीम एक तरह से सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली पुरानी पेंशन और नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) के बीच का रास्ता है। यूपीएस में कई चीजें ओल्ड पेंशन स्कीम की तरह लागू करने की कोशिश की गई है। हालांकि, इसमें पुरानी पेंशन स्कीम जितना फायदा नहीं। यूपीएस के तहत सरकारी कर्मचारियों को न्यूनतम और निश्चित पेंशन की गारंटी दी जाएगी।

दरअसल, 1 जनवरी 2004 को केंद्र सरकार पुरानी पेंशन स्कीम की जगह पर कर्मचारियों के लिए न्यू पेंशन स्कीम लाई थी। पुरानी पेंशन योजना के तहत अंतिम वेतन के आधार पर सुनिश्चित पेंशन की गारंटी मिलती थी नई पेंशन स्कीम में इसे खत्म कर दिया गया, जिसके कारण कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम की मांग कर रहे थे।विपक्ष भी इसके लिए सरकार पर कई तरह के आरोप लगा रहा था।

इसको देखते हुए केंद्र सरकार ने वित्त सचिव टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। इस समिति ने लगभग सभी राज्यों और श्रमिक संगठनों के साथ बात की। इसके अलावा दुनिया के दूसरे देशों में मौजूद पेंशन के सिस्टम को समझा  इसके बाद इस समिति ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम की सिफारिश की। इस स्कीम का कर्मचारियों पर भार नहीं पड़ेगा। पहले कर्मचारी पेंशन के लिए 10 फीसदी अंशदान करते थे और केंद्र सरकार भी 10 फीसदी अंशदान करती थी । साल 2019 में सरकार ने अपने योगदान को 14 फीसदी कर दिया था। अब सरकार अपने अंशदान को बढ़ाकर 18.5 फीसदी करेगी।

न्यूनतम 10 हजार रुपए मिलेगी पेंशन

इससे यूपीएस में कर्मचारियों को न्यूनतम और निश्चित पेंशन की गारंटी मिलेगी । अगर किसी कर्मचारी ने 25 साल तक कम से कम नौकरी की होगी तो उसे सेवानिवृत्ति से पहले के 12 महीनों के औसत बेसिक वेतन का 50 फीसदी हिस्सा पेंशन के रूप में मिलेगा। उदाहरण के लिए अगर किसी सरकारी कर्मचारी का औसत बेसिक वेतन 50 हजार रुपए होगा, उसे हर महीने 25 हजार रुपए पेंशन मिलेगी। हालांकि, किसी की सेवा अवधि इससे कम है तो उसकी पेंशन उसी हिसाब से कम हो जाएगी। यूपीएस में यह भी प्रावधान किया गया है कि 10 साल या इससे कम समय तक किसी ने नौकरी की है तो उसको 10 हजार रुपए की निश्चित पेंशन दी जाएगी।

एनपीएस या यूपीएस में से करना होगा चुनाव

यूपीएस में पारिवारिक पेंशन का भी प्रावधान है। यह पेंशन कर्मचारी के मूल वेतन का 60 फीसदी होगी, जो कर्मचारी की मौत के बाद उसके परिवार को दी जाएगी। इसमें किसी कर्मचारी को अगर हर महीने 30 हजार रुपए पेंशन मिल रही थी, तो उसकी पत्नी को 60 फीसदी यानी 18000 रुपये पेंशन मिलेगी। 1 जनवरी 2004 के बाद नियुक्त जितने कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं या एक अप्रैल 2025 तक जो सेवानिवृत्त होंगे, उनको भी इसको चुनने का अवसर मिलेगा। यानी इस पेंशन स्कीम का लाभ कर्मचारियों को खुद नहीं मिलेगा, बल्कि उनको नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) या यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) में से किसी एक का चुनाव करना होगा।

इन देशों में बेहतरीन पेंशन की व्यवस्था

वैसे यूनिफाइड पेंशन के मामले में दुनिया भर में नीदरलैंड, आइसलैंड, डेनमार्क और इजराइल को बेहतरीन देश बताया गया है। कर्मचारियों के लिए लागू पेंशन स्कीम पर की गई एक रिसर्च में इन देशों को ग्रेड दिया गया है, जिनमें नीदरलैंड पहले स्थान पर है।

मर्सर सीएफए सीएफए इंस्टीट्यूट ग्लोबर पेंशन इंडेक्स में नीदरलैंड को 85 सूचकांक दिया गया है. यहां सरकारी कर्मचारियों को एक निश्चित दर पर पेंशन दी जाती है, जबकि आय और इंडस्ट्रियल एग्रीमेंट के हिसाब से सेमी मैंडेटरी ऑक्युपेशनल पेंशन की भी व्यवस्था है।नीदरलैंड के ज्यादातर कर्मचारी इस ऑक्युपेशनल प्लान के सदस्य हैं।

आइसलैंड है को पेंशन के हिसाब से 84.8 सूचकांक दिया गया है।आइसलैंड के पेंशन प्लान में बेसिक सरकारी पेंशन के साथ पूरक और प्राइवेट ऑक्युपेशनल पेंशन शामिल हैं, जिसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों को अंशदान देना होता है। डेनमार्क इस सूचकांक में 81.3 अंक के साथ तीसरे स्थान पर है। डेनमार्क में सरकारी बेसिक पेंशन, आय से जुड़ी पूरक पेंशन और मैंडेटरी ऑक्युपेशनल स्कीम की व्यवस्था है।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
पुरुषों की अपेक्षा कई मामलों में महिलाएं ज्यादा बेहतर होती हैं, महिलाओं में कई ऐसे गुण हैं जो पुरुषों में कम होते हैं
हमेशा इस बात को लेकर सवाल किया जाता है कि पुरुषों और महिलाओं में ज्यादा बेहतर कौन है। इसे लेकर डिबेट भी होती रहती हैं। इसपर चाणक्य नीति में भी कई सारी बातें की गई हैं। चाणक्य अपनी नीति में बताते हैं कि महिलाओं में पुरुषों से ज्यादा गुण होते हैं। महिलाएं कई मामलों में पुरुषों से मजबूत होती हैं। पुरुष हमेशा इस भ्रम में रहते हैं कि वे ज्यादा ताकतवर हैं। चाणक्य ने महिलाओं के 4 ऐसे गुण बताए हैं जो उन्हें पुरुषों से प्रबल बनाते हैं।

भावनाओं के मामले में

महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भावुक होती हैं। भावनाओं पर उनका नियंत्रण ज्यादा है। लोगों को भ्रम रहता है कि महिलाओं का अधिक भावुक होना उनकी कमजोरी है लेकिन ऐसा नहीं है। ये उनकी मजबूती है और महिलाएं खुद को इस हिसाब से ढाल लेती हैं।ऐसे में वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में जल्दी हार नहीं मानतीं और मनोबल बनाए रखती हैं।

खाने के मामले में

चाणक्य नीति की मानें तो मिहलाओं को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा भूख लगती है। महिलाएं खूब खाती हैं और ऐसा उनकी शारीरिक संरचना की वजह से होता है। महिलाओं को ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता होती है और इसलिए वे आमतौर पर पुरुषों से दो गुना खा सकती हैं।

समझदारी के मामले में

चालाकी और समझदारी के मामले में भी महिलाओं का कोई सानी नहीं होता है। महिलाएं कई मामलों में काफी समझदारी से काम लेती हैं और अपने दिमाग की चपलता से मुश्किल से मुश्किल परिस्थियों से बाहर निकलना जानती हैं।

साहस के मामले में

पुरुषों को इस बात का भ्रम रहता है कि महिलाएं उनसे कमजोर हैं। ऐसा हो सकता है शारीरिक बल के हिसाब से लगता हो लेकिन जब बात साहस की आती है तो महिलाएं पुरुषों से 6 गुना ज्यादा साहसी होती हैं।वे मुश्किल से मुश्किल परिस्तिथियों का सामना करने से पीछे नहीं हटती हैं।

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लिए अच्छा होता है। फल न्यूट्रिशन्स से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें खाने की सलाह दी जाती है। फलों को एनर्जी और न्यूट्रिशन्स का पावर हाउस कहा जाता
फल खाना हमारी सेहत के लिए अच्छा होता है। फल न्यूट्रिशन्स से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें खाने की सलाह दी जाती है। फलों को एनर्जी और न्यूट्रिशन्स का पावर हाउस कहा जाता है। फल खाने चाहिए इसमें बेशक कोई दोराय नहीं है लेकिन फल खाने के टाइम को लेकर कई राय हैं। कुछ लोग सुबह नाश्ते में फल खाते हैं, कुछ लंच या डिनर के बाद फल लेते हैं तो वहीं कुछ लोग शाम के वक्त फल खाना प्रेफर करते हैं। फलों को खाने का सही समय क्या है, एक्सपर्ट्स की इस बारे में अलग-अलग राय है। खासकर, क्या मील्स के बाद फल खाने चाहिए, ये सवाल अक्सर पूछा जाता है।

खाना खाने के तुरंत बाद नहीं खाने चाहिए फल

एक्सपर्ट की मानें तो खाने के बाद फल नहीं खाने चाहिए। इसकी वजह ये है हमारे खाने में कार्ब्स और प्रोटीन मौजूद होता है। जब हम खाने के बाद फल खाते हैं तो फलों में मौजूद शुगर, कार्ब्स और प्रोटीन के साथ फरमेंट हो जाती है। इसलिए डाइजेशन प्रोसेस स्लो हो जाता है। इससे हमारी पाचन प्रणाली पर दबाव बढ़ जाता है और इसकी वजह से पेट में दर्द या बेचैनी हो सकती है। अगर आप खाने के तुरंत बाद फल खाएंगे तो इससे आपको अपच की समस्या हो सकती है। खाने के तुरंत बाद हमारा पेट खाने को पचाने में लगा होता है। ऐसे में जब हम इसके तुरंत बाद फल खा लेते हैं तो फल सही तरह से पच नहीं पाते हैं और इस वजह से कब्ज की दिक्कत हो सकती है। खासकर जिन फलों में पानी की मात्रा ज्यादा होती है उन्हें खाने के तुरंत बाद पचाना मुश्किल होता है।

ये है फल खाने का सही समय

अगर हम खाने से एक घंटा पहले फल खाते हैं तो ये हमारी डाइट कंट्रोल करने में मदद करता है। इससे पेट भरा हुआ महसूस होता है और हम ओवरईटिंग से बचते हैं। फलों में मौजूद फाइबर से डाइजेशन प्रोसेस सही होता है और हमारे पेट को आराम मिलता है। इसके अलावा खाने के एक या दो घंटे बाद भी फल खाए जा सकते हैं। नाश्ते में भी फल लेना हेल्दी माना जाता है।

अपनी डाइट में हमेशा मौसमी फलों को शामिल करना चाहिए। यूं तो आजकल ज्यादातर फल हर मौसम में मिल जाते हैं लेकिन मौसम के हिसाब से फलों को अपनी डाइट में शामिल करने से पोषण ज्यादा मिलता है। इससे कई मौसमी बीमारियों से हमारा बचाव होता है।

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सपने में क्या दिखता है इसका सीधा संबंध आपके निजी जीवन से होता है. अगर किसी को ये 5 चीजें सपने में दिख रही हैं तो समझ जाइये कि बात बन गई
लक्ष्मी मां को शास्त्रों में धन का प्रतीक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब लक्ष्मी मां खुश होती हैं तो धन की वर्षा होती है।कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी के पास हमेशा पैसों की दिक्कत बनी रहती है।जबकी कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि किसी पर अचानक लक्ष्मी जी की कृपा बनती है और वो अमीर हो जाता है। इंसान को सपने में कई तरह की चीजें दिखती हैं।अगर इंसान को सपने में ये 5 चीजें दिखने लग जाएं तो इसे इस बात का संकेत मान लेना चाहिए कि उसके दिन बदलने वाले हैं और वो अमीर होने वाला है।

1-उल्लू

उल्लू मां लक्ष्मी की सवारी है और मां लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है।ऐसे में अगर आपको सपने में उल्लू नजर आया है तो इससे भी ये समझ लेना चाहिए कि आपके जीवन में धन लाभ की संभावना बन रही है और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा आप पर हो सकती है।उल्लू दिखना स्वप्न शास्त्र में बहुत ही शुभ माना गया है।

2- सांप

बहुत लोगों को ऐसा भ्रम होता है कि सपने में सांप का दिखना अशुभ ही होता है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है । सांप को दिखना शुभ भी माना जाता है। बस निर्भर ये करता है कि सांप को आपने जब सपने में देखा तो वो किस अवस्था और स्थान में था।अगर आपने सपने में सांप को उसके बिल के आस-पास देखा है तो इसे भी स्वप्न शास्त्र के हिसाब से धन आने का संकेत माना जाता है।

3- गरुड़

गरुड़ को भगवान विष्णु की सवारी माना जाता है जो इस जगत के पालनहार हैं। अगर आपको सपने में कभी भी गरुड़ नजर आए तो समझ जाइये कि भगवान विष्णु की कृपा आपपर बन रही है। ऐसा माना जाता है कि अगर आपको सपने में गरुड़ देव दिख रहे हैं तो मतलब की आप जीवन में जल्द ही अमीर बन सकते हैं।

4- सोना

अगर आपको सपने में कहीं सोना दिख जाए तो समझ लो की बात बन गई। सपने में सोने का दिखना बहुत शुभ माना जाता है। इसे आपके जीवन में मां लक्ष्मी के आगमन के रूप में जाना जाता है और ऐसा माना जाता है कि अगर सपने में सोना दिखा तो मतलब जल्द ही आपके घर में पैसों की वर्षा हो सकती है।

5- दीपक

दीपक की हिंदू धर्म में विशेष महत्ता है और हर तीज-त्योहार पर दीपक जरूर जलाया जाता है। अगर आपको सपने में जलता हुआ दीपक दिख जाए तो इसे शुभ संकेत माना जाता है। इससे ये माना जाता है कि इंसान के अच्छे दिन आने वाले हैं और उसे लंबे समय से चली आ रही किसी आर्थिक समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
आईए जानते हैं व्रत में खाने-पीने की कौन-सी गलतियां कर सकती हैं सेहत खराब?

डेस्क:– हिंदू धर्म में कई ऐसे तीज-त्योहार हैं जिनपर व्रत किया जाता है। व्रत करना सिर्फ धार्मिक लिहाज से ही नहीं, बल्कि विज्ञान के नजरिए से भी बहुत लाभकारी माना जाता है। अगर व्रत ठीक से किया जाए तो शरीर को यह डिटॉक्स करने में मदद करता है। लेकिन व्रत में लोग कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जो उनके शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है।


व्रत में खाने-पीने की कौन-सी गलतियां कर सकती हैं सेहत खराब?

व्रत का मतलब ऐसे तो यह है कि आप नियंत्रित भोजन करके अपने शरीर को डिटॉक्स करें। लेकिन कई बार हम अनजाने में ऐसा कुछ खा लेते हैं, जो हमारी सेहत पर गलत असर डालता है। आज हम खाने-पीने की उन गलतियों के बारे में बात करने जा रहे हैं जो हम व्रत के दौराान करते हैं। व्रत में खाने-पीने की गलतियों के बारे में डॉ. दीक्षा भवसार सावलिया ने अपने सोशल मीडिया पर बताया है। डॉ. दीक्षा, आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं।

फ्रूट के साथ ना मिलाएं दूध से बनीं चीजें व्रत में ज्यादातर लोग मिल्क शेक और फलों के साथ दही का सेवन करते हैं। लेकिन यह आपके पेट के लिए नुकसानदायक हो सकता है। डेयरी प्रोडक्ट्स में हाई फैट और प्रोटीन होता है, जो फलों के साथ देर से डाइजेस्ट होता है। फलों में मौजूद एसिड्स और एन्जाइम्स दूध के साथ पाचन की प्रक्रिया पर असर डाल सकते हैं। पाचन प्रक्रिया पर असर पड़ने से पेट की समस्या हो सकती है, जिसमें गैस, ब्लोटिंग और बदहजमी भी शामिल है। व्रत में दूध और दूध से बनी चीजों का सेवन, फलों के साथ नहीं बल्कि 2 घंटे के गैप में किया जा सकता है।

शाम को फलों का सेवन आयुर्वेद के मुताबिक, सूरज ढलने के बाद यानी शाम के समय कच्चा भोजन करने से बचना चाहिए। क्योंकि उसका डाइजेशन करना मुश्किल होता है, कच्चा खाने में सलाद, फल और अधपकी सब्जियां भी शामिल हैं। अधपके भोजन का अगर शाम के समय सेवन किया जाए तो गैस और ब्लोटिंग जैसी परेशानी हो सकती है। अगर आप फल और सालाद का सेवन कर रहे हैं, तो उन्हें दिन में 12 से 4 बजे के बीच खाने की कोशिश करें।शाम 4 बजे के बाद फलों का सेवननहीं करने से बचना चाहिए।

तला-भुना खाना व्रत में कई लोग बहुत ज्यादा तला-भुना भोजन करते हैं। कई लोग चिप्स, पूरी, टिक्की और तले हुए आलू खाते हैं लेकिन इनमें हाई फैट कंटेंट होता है जो सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। ज्यादा तला-भुना भोजन करने से वजन और दिल की बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है। इसलिए कोशिश करें कि व्रत में तले-भुने भोजन की जगह उन चीजों का सेवन करें, जो बेक्ड या रोस्टेड हों।

ज्यादा मीठा खाना व्रत में मिठाई और चीनी से बनी चीजों का बहुत ज्यादा सेवन करना आपके शरीर को हानि पहुंचा सकता है। लिमिट से ज्यादा मीठा वजन तो बढ़ता ही है, साथ ही यह शरीर में इंसुलिन की मात्रा को भी बढ़ा देता है और इससे डायबिटीज की समस्या हो सकती है। व्रत में मिठाई की जगह नेचुरल शुगर वाली चीजों का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है। साथ ही चीनी की जगह आप गुड़ और शहद का इस्तेमाल कर सकती हैं।

थोड़ी-थोड़ी देर में खाते रहना

जब हम व्रत करते हैं तो अपनी भूख पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। ऐसे में थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ-कुछ खाने लगते हैं। कई बार तो प्यास को भी भूख समझ लेते हैं और भोजन करने बैठ जाते हैं। इसके लिए कोशिश करें कि भरपूर मात्रा में पानी पिएं और दिन में दो से तीन बार हर्बल चाय भी पी सकते हैं, यह आपको बेकार की क्रेविंग्स को रोकने में मदद करती हैं।

व्रत में इन अन्य गलतियों से भी बचें

व्रत में सिर्फ खाने-पीने के अलावा भी हम ऐसी गलतियां करते हैं जो हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं। जिसमें सबसे पहले बहुत लंबे समय तक व्रत रखना भी शामिल है। एक दिन यानी 24 घंटे से ज्यादा का व्रत करना आपकी सेहत खराब कर सकता है।

व्रत में स्ट्रेस को ठीक से मैनेज नहीं करना भी सेहत पर असर डाल सकता है। क्योंकि जब स्ट्रेस होता है तब बॉडी में ऐसे कैमिकल रिएक्शन होते हैं जो डाइजेशन और मेटाबॉलिज्म को खराब करता है। इसलिए व्रत के दौरान मेडिटेशन, योगा और डीप ब्रिथिंग से स्ट्रेस को कंट्रोल किया जा सकता है।

फिट रहने के लिए नींद बहुत जरूरी होती है लेकिन यह व्रत के दौरान और भी जरूरी हो जाती है। नींद की कमी शरीर में एनर्जी लेवल को कम कर देती है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। व्रत के दौरान कोशिश करें कि आप रात में 7-8 घंटे की नींद लें।


नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
आज हम आपको ऐसे बैंक के बारे में बताने वाले हैं, जो फिक्स्ड डिपॉजिट पर मार्केट में बेस्ट रिटर्न ऑफर कर रहे हैं
जब भी बात निवेश की आती है तब सब के दिमाग में पहला ख्याल शेयर मार्केट का आता है ज्यादा रिटर्न के लिए लोग अक्सर शेयर मार्केट में निवेश की सलाह देते है, लेकिन ज्यादा रिटर्न के साथ शेयर मार्केट में ज्यादा रिस्क भी होता है।और ऐसा नहीं है कि ज्यादा रिटर्न के लिए आप शेयर मार्केट का ही रुख करें। आज हम आपको उन बैकों के बारे में बताने जा रहे है जो फिक्ड डिपॉजिट पर ज्यादा इंटरेस्ट रेट दे रहे हैं। अब आप इन बैंक में फिक्ड डिपॉजिट कर के भी ज्यादा पैसे कमा सकते हैं।वैसे तो बैंक के ये ऑफर सभी के लिए हैं लेकिन सीनियर सिटीजन को प्रायोरिटी दे रहे है । कुछ बैंक तो 10 प्रतिसत तक का रिर्टन दे रहे है । तो आज हम आपको ऐसे 5 बैंक के बारे में बताते है जो फिक्ड डिपॉजिट पर हाई रिर्टन दे रहे हैं। इस लिस्ट में दिए गए रेट का सोर्स पैसा बाज़ार डॉट कॉम है ।

यूनिटी स्मॉल फाइनेंस बैंक

यूनिटी स्मॉल फाइनेंस बैंक 1 साल की अवधि के लिए 7.85% की एफडी रेट, 3 साल और 5 साल की अवधि के लिए 8.15% और रेगुलर कस्टमर के लिए 9% की अधिकतम दर के साथ रिटर्न दे रहे हैं, जो लिस्ट में सबसे आगे है। सिनीयर सिटीजन को अतिरिक्त 50आधार अंक(bps) मिलते हैं, उनका रेट 9.50% हो जाता है।

उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक

उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक 1 साल की एफडी पर 8% का ब्याज, 3 साल के लिए 8.50% और 5 साल के लिए 7.75% का ब्याज ऑफर करता है। सीनियर सिटीजन को अतिरिक्त 60 आधार अंक(bps) मिलता है, जिससे उनका एफडी रेट 9.10% हो जाती है।

शिवालिक स्मॉल फाइनेंस बैंक

शिवालिक स्मॉल फाइनेंस बैंक 1 साल की एफडी दर 6%, 3 साल के लिए 7.50% और 5 साल के लिए 6.50% रेट देता है. सीनियर सिटीजन को 9.05% की रेट देता है।

जन स्मॉल फाइनेंस बैंक

जन स्मॉल फाइनेंस बैंक 1 साल और 3 साल की एफडी दर 8.25% का रेट देता कर है, जबकि 5 साल की अवधि के लिए 7.25% रेट पर उपलब्ध है। सीनियर सिटीजन को उच्चतम दर 8.75% तक का ब्याज मिलता है।

डीसीबी बैंक

डीसीबी बैंक 1 साल की एफडी पर 7.10%, 3 साल के लिए 7.55% और 5 साल के लिए 7.40% का रिटर्न ऑफर करता है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए अतिरिक्त 50 बीपीएस के साथ उच्चतम एफडी दर 8.55% मिलता है।



नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
आइए जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर की सबसे पहली पॉलिटिकल पार्टी कौन सी थी
कश्मीर की पहली राजनीतिक पार्टी 1932 में बनी थी। उसका नाम था – ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस। बाद में इसका नाम नेशनल कॉन्फ्रेंस कर दिया गया और यह आज भी कश्मीर में एक प्रमुख राजनीतिक दल बनी हुई है।

किस घटना के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस की नींव पड़ी?

शेख अब्दुल्ला ने मीरवाइज यूसुफ शाह और चौधरी गुलाम अब्बास के सात मिलकर ‘ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ की स्थापना की थी। पार्टी के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का जन्म 5 दिसंबर 1905 को कश्मीर के श्रीनगर के बाहरी इलाके में एक गांव में हुआ था। उनकी पहली बड़ी राजनीतिक भागीदारी जुलाई 1931 में हुई थी। दरअसल, उस समय पुलिस गोलीबारी में 21 लोगों की मौत हो गई थी। इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया था। अपनी रिहाई के तुरंत बाद, उन्होंने अक्टूबर 1932 में ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की।

नाम बदलने पर दो हिस्सों में टूट गई पार्टी

शेख अब्दुल्ला को जल्द ही एहसास हुआ कि कश्मीरी राजनीति को खुद को धर्मनिरपेक्ष के सिद्धांत पर स्थापित करने की जरूरत है। इस सोच के साथ उन्होंने 1939 में पार्टी का नाम ‘ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ से बदलकर ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’ कर दिया।लेकिन इस फैसले से कई नेता खुश नहीं थे। उन असंतुष्ट नेताओं ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर ‘मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ की स्थापना की। दूसरी तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कश्मीर के अल्पसंख्यक नेताओं और कांग्रेस नेतृत्व दोनों के साथ संबंध स्थापित किए। जवाहरलाल नेहरू के साथ उनकी साझा विचारधारा ने इसमें सहायक स्थापित हुई।

भारत में कश्मीर के विलय को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस की क्या राय थी?

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सत्तारूढ़ डोगरा राजवंश के खिलाफ बड़े पैमाने पर ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन शुरू किया था. एक समय पर कश्मीर महाराजा ने अब्दुल्ला को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। पंडित नेहरू ने इस दमन का विरोध किया था।

नेशनल कॉन्फ्रेंस कश्मीर के भारत में विलय के पक्ष में थी। उन्होंने पाकिस्तान की ओर से भेजे आदिवासी हमलावरों के खिलाफ कश्मीर की रक्षा के लिए लोगों को संगठित किया था।पार्टी ने महाराजा से भारत में विलय स्वीकार करने का आग्रह किया।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नेशनल कॉन्फ्रेंस का इतिहास

पंडित नेहरू की अंतरिम सरकार ने 5 मार्च 1948 को शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।इसके बाद जब सितंबर 1951 में चुनाव हुए , तो नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की सभी 75 सीटें जीतीं।

हालांकि, नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख शेख अब्दुल्ला को देश के खिलाफ साजिश करने के आधार पर अगस्त 1953 में प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। 1965 में, नेशनल कॉन्फ्रेंस का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) में विलय हो गया. यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जम्मू और कश्मीर शाखा बन गई।शेख अब्दुल्ला को राज्य के खिलाफ साजिश के आरोप में 1965 से 1968 तक फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।

केंद्र सरकार के साथ एक समझौते के बाद फरवरी 1975 में अब्दुल्ला को सत्ता में लौटने की अनुमति मिल गई गई और 1977 में वो फिर से भारी बहुमत से राज्य विधानसभा चुनाव जीत गए।शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। 8 सितंबर 1982 को उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। जून 1983 के चुनावों में, फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) ने फिर से बहुमत हासिल किया।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव आखिरी बार दस साल पहले 2014 में हुए थे।  तब कांग्रेस ने JKNC के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया। JKNC ने सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल 15 सीटें जीतीं, यानी बहुमत से 13 सीट कम। PDP ने 28 सीटें जीतीं और विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई।इस चुनाव में किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका था. इसके बाद पीडीपी-भाजपा ने गठबंधन कर प्रदेश सरकार बनाई थी।


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जानिए सरकारी नौकरियों में टैटू क्यों बढ़ाता है रिजेक्शन, कौन-कौन सी नौकरियों में टैटू के कारण नहीं मिलती नौकरी

डेस्क :– शरीर पर बना टैटू भी सरकारी नौकरी मिलने में मुश्किल खड़ी कर सकता है।हाल में एक ऐसा ही मामला चर्चा में आया  उत्तर प्रदेश के बागपत के 20 वर्षीय दीपक यादव को टैटू के कारण दिल्ली पुलिस भर्ती में रिजेक्ट कर दिया गया। दीपक ने इसके लिए बकायदा कानूनी लड़ाई लड़ी ।अब दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया है। फैसले में कहा गया है कि हल्के पड़ चुके टैटू के निशान के आधार पर उम्मीदवार को सरकारी नौकरी से रिजेक्ट नहीं किया जा सकता।

टैटू क्यों बढ़ाता है रिजेक्शन?

टैटू बनवाया है तो कोई भी सरकारी नौकरी के लिए रिजेक्ट कर दिया जाएगा, यह पूरी तरह से सच नहीं है। कुछ ऐसी जॉब प्रोफाइल हैं जहां पर टैटू को लेकर सख्ती है और कुछ में पाबंदियां हैं। टैटू के नाम पर उम्मीदवारों को रिजेक्ट क्यों कर दिया जाता है, अब इसे समझ लेते हैं।इसकी कई वजह बताई गई हैं।

माना जाता है कि टैटू कई तरह के रोगों जैसे एचआईवी, स्किन डिजीज, हेपेटाइटिस ए और बी को बढ़ावा दे सकता है। टैटू बनवाने वाले लोग अपने काम को गंभीरता से नहीं करते। सबसे बड़ा कारण यह बताया जाता है कि ऐसा नौकरियों में समानता दिखाने के लिए किया जाता है। वहीं, सेना में ऐसे उम्मीदवारों की भर्ती नहीं की जाती है जिनकी बॉडी पर बड़े टैटू होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि टैटू बनवाने से उस शख्स की पहचान आसानी से हो जाती है और सेना में सुरक्षा के लिहाज से ऐसा ठीक नहीं होता। टैटू को लेकर क्या हैं नियम?

टैटू को लेकर कई बार मामले कोर्ट तक पहुंच चुके हैं। इसको लेकर फैसले भी आए। भारत सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक, जनजाति के प्रचलित रीति-रिवाजों और परंपराओं से जुड़े शख्स के शरीर में किसी भी हिस्से पर स्थायी टैटू पहनने की अनुमति है। हालांकि, अन्य लोगों के लिए केवल छोटे, सुरक्षित टैटू की अनुमति है। इसमें धार्मिक प्रतीक या किसी अपने प्रियजन का नाम नहीं होना चाहिए।

टैटू के ज्यादातर मामले सेना से जुड़ी भर्ती के रहे हैं, जहां इसको लेकर गाइडलाइन सख्ती से लागू की जाती है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, भारतीय नौसेना, तटरक्षा और पुलिस विभाग में शामिल होने शख्स के शरीर के किसी बाहरी हिस्से में, कोहनी से कहलाई तक या हथेली के पिछले हिस्से में टैटू की अनुमति नहीं है। शरीर के अंदरूनी हिस्से में छोटे टैटू की अनुमति है। टैटू अभद्र, लैंगिकवादी या नस्लवादी नहीं होने चाहिए। आमतौर पर अगर टैटू आपत्तिजनक नहीं है तो भर्ती के कैंडिडेट को अयोग्य नहीं घोषित किया जा सकता। टैटू के मामले जो कोर्ट तक पहुंचे

बागपत के दीपक ने साल 2023 में कर्मचारी चयन आयोग का विज्ञापन देखा, जिसमें दिल्ली पुलिस कॉन्सटेबल भर्ती का जिक्र था। उन्होंने आवेदन किया। दिसम्बर 2023 में लिखित परीक्षा पास की. मेडिकल परीक्षा में फिटनेस टेस्ट के लिए दीपक के दाहिने हाथ पर बने मां के टैटू को मिटवाने की कोशिश की थी। फिटनेस टेस्ट में वो सफल रहे, लेकिन मिटाए हुए टैटू के कारण उन्हें अनफिट बता दिया गया। फिर मामला कोर्ट पहुंचा और दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया।

अब दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया है।फैसले में कहा गया है कि हल्के पड़ चुके टैटू के निशान के आधार पर उम्मीदवार को सरकारी नौकरी से रिजेक्ट नहीं किया जा सकता।

ऐसा ही एक मामला दो साल पहले आया था। एक शख्स ने अपने दाहिने हाथ के पिछले हिस्से में धार्मिक टैटू बनवाया था। उसने CRPF, NIA समेत अन्य बलों में भर्ती के लिए परीक्षा दी तो उसे रिजेक्ट कर दिया गया।इसके बाद मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
क्या आप जानते हैं राम मंदिर बनाने में कितना  खर्च हुआ और कितना मिला पैसा?

डेस्क :– अयोध्या में बने राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा हुई। इसके बाद रामलला के दरबार में भक्तों ने जमकर दान दिया। साथ ही मंदिर को भव्य रूप देने के लिए करोड़ों का खर्चा किया गया। मंदिर पर आज भी निर्माण कार्य जारी है। इस बीच रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर में आय-व्यय का लेखा-जोखा जारी किया है । ट्रस्ट ने एक अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2024 तक हुए खर्चे और दान में मिली रकम को लेकर जानकारी सार्वजनिक की है।

रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बताया कि भक्तों से रामलला के दरबार में एक साल में 363 करोड़ 34 लाख रुपये प्राप्त हुए। यह अलग-अलग मदों से भक्तों ने दान के रूप में मंदिर में पेश किए हैं  इसके साथ ही एक साल में राम मंदिर और उसके परिसर में 776 करोड़ रुपये निर्माण में खर्च हुए हैं। केवल मंदिर निर्माण की बात करें तो इसमें 540 करोड़ रुपये खर्चा एक साल में आ चुका है।

भक्तों ने दिया जमकर दान

राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने वित्तीय वर्ष के आयव्यय का लेखाजोखा सार्वजनिक करते हुए बताया कि एक साल में मंदिर को दान के रूप में 363 करोड़ 34 लाख रुपये मिले । इनमें ट्रस्ट के दान पत्र में 53 करोड़ रुपये । रामलला की हुंडी में 24.50 करोड़। रामलला को ऑनलाइन 71.51 करोड़ रुपये मिले हैं। इसके अलावा विदेशी राम भक्तों ने रामलला को 10.43 करोड़ रुपये का दान दिया ।

इतना आया खर्चा, मिला सोना-चांदी
ट्रस्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि 4 वर्षों में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को 13 कुंतल चांदी और 20 किलो सोना राम भक्तों ने रामलला को समर्पित किया है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष के नाम से 2100 करोड़ रुपये का चेक प्राप्त हुआ है। चंपत राय ने जानकारी दी कि वित्तीय वर्ष में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण सहित अन्य निर्माण पर 776 करोड़ रुपए खर्च हुए। सिर्फ मंदिर निर्माण में 1 साल में 540 करोड रुपए खर्च हुए।1 अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2025 तक मंदिर के निर्माण में 670 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव पास किया गया है।

जन्मभूमि पथ पर जर्मन हैंगर, बनेगा टाइटेनियम राम दरबार

मंदिर में दर्शन करने वाले भक्तों की सुविधाओं को लेकर खास ख्याल रखा जा रहा है। ट्रस्ट ने बैठक में बताया कि श्रद्धालुओं को गर्मी और बरसात में राहत देने के लिए राम जन्मभूमि पथ पर जर्मन हैंगर लगाया जाएगा।इसका काम अक्टूबर से शुरू हो जाएगा। जर्मन हैंगर डेढ़ किलोमीटर जन्मभूमि पथ पर लगाया जाएगा। इसके अलावा राम मंदिर के प्रथम तल पर टाइटेनियम के राम दरबार का निर्माण किया जाएगा। इसको उत्सव मूर्ति के रूप में स्थापित किया जाएगा। इसकी ऊंचाई डेढ़ फीट और चौड़ाई एक फीट की होगी।

कामगारों के लिए राजस्थान में कैंपिंग

ट्रस्ट ने बताया कि राम जन्मभूमि पर भगवान राम लला के मंदिर के द्वितीय तल का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। राम मंदिर के शिखर के निर्माण को लेकर भी कार्यदाई संस्थाओं को कामगारों की संख्या बढ़ाने का निर्देश ट्रस्ट ने जारी किया है। इसके लिए लार्सन ऐंड टुब्रो के अधिकारी शिखर निर्माण में पारंगत कामगारों की खोज में राजस्थान में कैंपिंग कर रहे हैं। शिखर निर्माण में कुशल 24 कामगारों को अयोध्या लाने की तैयारी की जा रही है।

बैठक में ऑनलाइन भी शामिल हुए महंत

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नित्य गोपाल दास के आश्रम मणिराम दास छावनी में गुरुवार को एक महत्वपूर्ण बैठक की गई थी। यह बैठक राममंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष निपेंद्र मिश्र और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नित्य गोपाल दास के नेतृत्व में आयोजित हुई थी। ट्रस्ट की इस बैठक में कुल आठ ट्रस्टियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वहीं कुछ ट्रस्टी ऑनलाइन के माध्यम से ट्रस्ट की बैठक में शामिल हुए थे।

ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी, अनिल मिश्र, विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, महंत दिनेंद्र दास और पदेन ट्रस्टी अयोध्या के जिला अधिकारी भी इस बैठक में शामिल हुए, जबकि जगत गुरु विश्व प्रसन्न तीर्थ, केशव पारासारण , युग पुरुष परमानंद, केंद्र सरकार के सचिव प्रशांत लोखंडे , जगद्गुरु वासुदेवानंद सरस्वती, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ट्रस्ट ट्रस्ट की बैठक में शामिल हुए। राम मंदिर के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल अस्वस्थ होने के करण बैठक में शामिल नहीं हुए।


नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।