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विनेश फोगाट का कांग्रेस में जाना तय, छोड़ी रेलवे की नौकरी

#phogat_resign_from_railway

भारतीय पहलवान विनेश फोगाट ने रेलवे से इस्तीफा दे दिया है। विनेश के रेलवे की नौकरी छोड़ने के बाद ये तय माना जा रहा है कि वो कांग्रेस में सामिल होनें वाली है साथ ही हरियाणा विधानसभा चुनाव के “दंगल” में दो-दो हाथ करती नजर आएंगी।

विनेश फोगाट ने रेलवे की सेवा छोड़ने की जानकारी साझा की है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा- "भारतीय रेलवे की सेवा मेरे जीवन का एक यादगार और गौरवपूर्ण समय रहा है। जीवन के इस मोड़ पर मैंने स्वयं को रेलवे सेवा से पृथक करने का निर्णय लेते हुए अपना त्यागपत्र भारतीय रेलवे के सक्षम अधिकारियों को सौप दिया है। राष्ट्र की सेवा में रेलवे द्वारा मुझे दिये गये इस अवसर के लिए मैं भारतीय रेलवे परिवार की सदैव आभारी रहूँगी।"

कुछ दिन पहले दोनों पहलवानों ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी जिसके बाद से दोनों के राजनीति में आने की चर्चाएं तेज हो गई थी। इस मुलाकात के बाद माना जा रहा है कि विनेश जुलाना और बजरंग पूनिया बादली सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। या फिर दोनों में से कोई एक पहलवान चुनावी मैदान में आ सकता है। राहुल से मिलने के बाद बजरंग व विनेश ने कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल से भी मुलाकात की। पेरिस से लौटने के बाद जब विनेश फोगाट दिल्ली एयरपोर्ट पहुंची थीं तो कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा उनके स्वागत में पहुंचे थे। विनेश के स्वागत में निकाले गए जुलूस में भी दीपेंद्र काफी दूर तक साथ चले थे। उस दौरान बजरंग पूनिया भी साथ थे। तभी से अटकलें लगाई जा रही थीं कि विनेश फोगाट व बजरंग पूनिया कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं।

सशस्त्र बलों को युद्ध के लिए तैयार रहने की जरूरत”,रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऐसा क्यों कहा?

#armed_forces_need_to_be_prepared_for_war_rajnath_singh_said

दुनियाभर में भारत की पहचान शांति दूत के रूप में रही है। आज भी जब दुनिया के दो मुहानों युद्द के हालात है भारत शांति की बात कर रहा है। इस बीच केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बड़ा बयान दिया है। राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जिसने 'वसुधैव कुटुम्बकम' का संदेश दिया है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि शांति बनाए रखने के वास्ते सेना के जवानों को जंग के लिए तैयार रहने की जरूरत है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय सेना के तीनों अंगों थलसेना, नौसेना और वायु सेना के शीर्ष कमांडरों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने भविष्य में होने वाली किसी जंग से तुरंत मिल-जुलकर मुकाबले के लिए ज्वाइंट थिएटर कमांड बनाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, भारत एक शांतिप्रिय राष्ट्र है और शांति बनाए रखने के वास्ते सशस्त्र बलों को युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने यूक्रेन और गाजा में छिड़ी जंग के साथ-साथ बांग्लादेश के हालात पर भी बात की और कहा कि सेना को ऐसे किसी हालात से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।

राजनाथ सिंह ने कहा कि आधुनिक युद्ध में साइबर और अंतरिक्ष-आधारित क्षमताओं के रणनीतिक महत्व पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, जो भविष्य के संघर्षों की तैयारी की आवश्यकता को रेखांकित करता है। हमें अपने वर्तमान पर ध्यान रखना होगा। मौजूदा समय में हमारे आस-पास हो रही गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत है। इसके लिए हमारे पास एक मजबूत और राष्ट्रीय सुरक्षा घटक होना चाहिए। हमारे पास हर तरह के इंतजाम होने चाहिए।

राजनाथ सिंह ने अंतरिक्ष और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के क्षेत्र में क्षमता के विकास पर जोर दिया और उन्हें आधुनिक समय की चुनौतियों से निपटने के लिए अभिन्न अंग बताया। उन्होंने सैन्य नेतृत्व से डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी प्रगति के इस्तेमाल को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा, ये घटक किसी भी संघर्ष या युद्ध में सीधे तौर पर भाग नहीं लेते हैं। उनकी अप्रत्यक्ष भागीदारी काफी हद तक युद्ध की दिशा तय कर रही है।

कांग्रेस में शामिल होंगे विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया, कुश्ती के बाद अब सियासी “दंगल” में आजमाएंगे हाथ

#vineshphogatandbajrangpuniawilljoincongresstoday

हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। इस बीच खबर है कि कुश्ती के दो धाकड़ खिलाड़ी विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया आज कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं।मिली जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस मुख्यालय में शुक्रवार को कुछ नेताओं को शामिल करने के लिए संवाददाता सम्मेलन हो रहा है। इस सम्मेलन में पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा आप विधायक राजेंद्र गौतम के भी हाथ थामने की खबर है।

इससे पहले चार सितंबर को विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया ने दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की थी और सियासी संभावनाओं को लेकर चर्चा की थी। मुलाकात की जानकारी खुद कांग्रेस ने दी थी और इससे माना जा रहा था कि विनेश को चुनाव में उतारने के लिए कांग्रेस मंथन कर रही है।

इस सीट से किस्मत आजमा सकतीं हैं फोगाट

खबरों की मानें तो कांग्रेस ने विनेश फोगाट से संपर्क किया है और उनकी इच्छा पूछी गई है कि वह किस सीट से लड़ना चाहती हैं। फिलहाल कांग्रेस ने उन्हें दो सीटों में से किसी एक का ऑप्शन दिया है। पहली है बधरा और दूसरी दादरी। दोनों सीटें चरखी दादरी में ही आती हैं। इसमें से दादरी सीट पर बबीता फोगाट भाजपा के टिकट पर 2019 में चुनाव लड़ चुकी हैं। हालांकि, वह तीसरे नंबर पर रहीं थी। निर्दलीय रहे सोमबीर सांगवान यहां से चुनाव जीते थे। कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी। अब सोमबीर कांग्रेस में हैं। अगर विनेश यहां से चुनाव लड़ती हैं तो फिर इस सीट पर दो बहनों के बीच मुकाबला होगा। हालांकि, कांग्रेस ने विनेश को साफ तौर पर कहा है कि वो जिस सीट पर भी कहेंगी, उन्हें टिकट मिल जाएगा।

पुनिया किस सीट से लड़ेंगे चुनाव?

वहीं, दूसरी तरफ बजरंग पूनिया ने कांग्रेस से बादली विधानसभा सीट मांगी है। इस सीट पर सीटिंग विधायक कुलदीप वत्स को टिकट फाइनल कर दिया है। कुलदीप ब्राम्हण नेता हैं। ऐसे में कांग्रेस कुलदीप का टिकट काटकर ब्राह्मणों को नाराज नहीं करना चाहती। इसलिए बजरंग को बहादुरगढ़ और भिवानी का ऑप्शन दिया है। साथ ही हरियाणा की किसी भी जाट बाहुल्य सीट का ऑप्शन भी दिया गया है। अब गेंद बजरंग पूनिया के पाले में है कि वो किस सीट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।

बता दें कि विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने अब तक कोई लिस्ट जारी नहीं की है। प्रत्याशियों की पहली सूची गठबंधन को लेकर कोई नतीजा न निकलने से अटक गई है। शुक्रवार को आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ हरियाणा में गठबंधन को लेकर कांग्रेस हाईकमान की बैठक होगी। इस बैठक में ही तय होगा कि गठबंधन होगा या नहीं, अगर होगा तो कितनी और कौन सी सीटों पर यह समझौता होगा। राहुल गांधी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक के बाद ही सूची जारी होगी।

क्या जाएगी कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो की कुर्सी? खालिस्तान समर्थक एनडीपी ने सरकार से वापस लिया समर्थन

#canada_justin_trudeau_govt_in_turmoil_as_ndp_announce_to_withdraw_its_support

कनाडा की ट्रूडो सरकार अब मुश्किलों में है।खालिस्तानियों के हमदर्द कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की कुर्सी खतरे में आ गई है।ट्रूडो सरकार में शामिल न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता और कनाडा में खालिस्तानियों के समर्थक जगमीत सिंह ने समर्थन वापस लेने की घोषणा की है। सिंह ने एक वीडियो संदेश में कहा कि वह दोनों लोग के बीच 2022 में हुए समझौते को तोड़ रहे हैं। उन्होंने विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी का सही ढंग से मुकाबला न कर पाने के लिए ट्रूडो की आलोचना की।

जगमीत सिंह ने एक वीडियो में कहा कि लिबरल बहुत कमजोर हैं, बहुत स्वार्थी हैं और लोगों के लिए लड़ने के लिए कॉर्पोरेट हितों के प्रति समर्पित हैं। वो बदलाव नहीं ला सकते- वो उम्मीदों पर खड़े नहीं उतर सकते। उन्होंने आगे कहा, ‘उन्होंने लोगों को निराश किया है। वे कॉर्पोरेट लालच पर अंकुश लगाने में विफल रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि उनका संगठन ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो अगले चुनाव में पियरे पोइलीवर की कंजर्वेटिव पार्टी की जीत की कोशिश को नाकाम कर सकती है।

ट्रूडो सरकार गिरने का जोखिम

जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) ने सप्लाई-एंड-कॉन्फिडेंस डील से खुद को अलग कर लिया।जगमीत सिंह की एनडीपी जस्टिन ट्रूडो की अल्पमत वाली लिबरल सरकार को सत्ता में बनाए रखने में मदद कर रही थी। हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि ट्रूडो के सामने तुरंत पद छोड़ने और नए सिरे से चुनाव कराने का खतरा है। लेकिन सरकार गिरने का जोखिम बना हुआ है। सप्लाई और कॉन्फिडेंस डील गठबंधन सरकारों से अलग होती हैं, जहां कई पार्टियां संयुक्त रूप से कैबिनेट में काम करती हैं और साथ मिलकर सरकार चलाती हैं। जस्टिन ट्रूडो को अब हाउस ऑफ कॉमन्स चैंबर में अन्य विपक्षी सांसदों का समर्थन हासिल करना होगा। तभी वो बजट पास करा पाएंगे और विश्वास मत जीत सकेंगे।

एनडीपी ने साल 2022 में जस्टिन ट्रूडो के साथ हाथ मिलाया था, जिसमें 2025 के मध्य तक उनकी सरकार का समर्थन करने का वादा किया गया था। ट्रूडो और जगमीत के बीच हुए इस समझौते को सप्लाई एंड कॉन्फिडेंस के नाम से जाना जाता है। इसके तहत ट्रूडो की पार्टी लिबरल को पार्टियां विश्वास मत के लिए समर्थन देती है। बदले में एनडीपी को सामाजिक कार्यक्रमों के लिए बढ़ी हुई धनराशि हासिल की थी।

जगमीत सिंह की पार्टी एनडीपी और ट्रूडो की पार्टी के बीच समझौते की कुछ शर्तें तय की गई थीं। ये समझौता संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की सूरत में सरकार को बचाने के लिए किया गया था। उस दौरान यह तय किया गया था कि इसके बदले में लिबरल पार्टी संसद में एनडीपी की प्रमुख प्राथमिकताओं का समर्थन करेगी। इन प्राथमिकताओं में कम आय वाले परिवारों के लिए लाभ, नेशनल फार्माकेयर प्रोग्राम और हड़ताल के दौरान दूसरे वर्कर्स के इस्तेमाल को रोकने वाले कानून की बात थी। पिछले महीने कनाडा में दो सबसे बड़े रेलवे ने अपना काम बंद कर दिया। इसके बाद ट्रूडो की कैबिनेट ने इंडस्ट्रियल बोल्ट को बाध्यकारी मध्यस्थता लागू करने का निर्देश दिया। इस वजह से ही एनडीपी ने अपनी प्राथमिकताओं पर नए सिरे से विचार करना शुरू कर दिया।

हरियाणा विस चुनावः क्या है विधायक-मंत्रियों के टिकट काटने की वजह*
#haryana_election_why_bjp_cut_tickets_of_9_sitting_mlas

हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने पहली लिस्ट जारी कर दी है। बीजेपी की पहली लिस्ट में 67 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है। टिकट देने से पहले पार्टी ने काफी मंथन किया, तब जाकर नामों पर मुहर लग सकी। बीजेपी ने कई मौजूदा विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटे। बीजेपी की इस लिस्ट में कई संदेश छिपे हुए हैं।बताया जा रहा है कि बीजेपी को इन सीटों पर फील्ड से जो फीडबैक मिला था उस आधार पर उम्मीदवारों का बदलाव किया गया है। *सर्वे में जीतने वाले उम्मीदवारों पर ही दांव खेला* बताया जा रहा है कि बीजेपी को इन सीटों पर फील्ड से जो फीडबैक मिला था उस आधार पर उम्मीदवारों का बदलाव किया गया है। बीजेपी ने मौजूदा 9 विधायकों का टिकट काट दिया है। इनमें पलवल से दीपक मंगला, फरीदाबाद से नरेंद्र गुप्ता, गुरुग्राम से सुधीर सिंगला, बवानी खेड़ा से विशंभर वाल्मीकि, रनिया से कैबिनेट मंत्री रणजीत चौटाला, अटेली से सीताराम यादव, पेहवा से पूर्व मंत्री संदीप सिंह शामिल हैं। सोनहा से राज्यमंत्री संजय सिंह, रतिया से लक्ष्मण नापा को भी टिकट नहीं दिया गया है। पार्टी ने सर्वे में जीतने वाले उम्मीदवारों पर ही दाव खेला है। भाजपा ने जिन पांच पूर्व मंत्रियों को टिकट दिए हैं, वह पार्टी के सर्वे में बाकी दावेदारों से काफी आगे थे। *लिस्ट के बाद पार्टी का साथ छोड़ने वाले नेताओं की लाइन लगी* लिस्ट जारी होने के बाद टिकट से वंचित नेताओं और उनके समर्थकों ने बगावती तेवर अपना लिए हैं। पहली लिस्ट के बाद हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ने वाले नेताओं की लाइन लग गई है। पार्टी छोड़ने वालों में कैबिनेट मंत्री से लेकर कई पूर्व विधायक भी शामिल हैं। बीजेपी किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इसमें हरियाणा के कैबिनेट मंत्री चौधरी रणजीत सिंह चौटाला का नाम भी शामिल है। उन्होंने रानिया विधानसभा से टिकट नहीं देने पर नाराजगी जताई। यही नहीं रणजीत चौटाला ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है। *टिकट बंटवारे के पीछे खास प्लानिंग* बीजेपी नेतृत्व ने जिस तरह से टिकट बंटवारा किया है उसके पीछे खास प्लानिंग मानी जा रही है। पार्टी ने इसी साल जून में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए टिकट बंटवारा किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार लोकसभा चुनाव में राज्य की 10 में से 5 सीट पर ही बीजेपी कब्जा जमाने में सफल रही। बाकी बची 5 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं। इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां सभी 10 सीटों पर कब्जा जमाया था। 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। इसके पीछे एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर भी अहम है।
आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और करीबियों पर ईडी का शिकंजा, 100 से ज्यादा अफसर खंगाल रहे ठिकाने

#ed_raids_on_multiple_locations_of_sandeep_ghosh_and_his_allied_in_rg_kar_case

आर.जी. कार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। सीबीआई के बाद अब ईडी ने संदीप घोष पर शिकंजा कसा है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार सुबह-सुबह ही डॉ. संदीप घोष के आवास सहित कोलकाता में कई जगहों पर छापेमारी शुरू कर दी। ये छापेमारी वित्तीय अनियमितताओं की चल रही जांच का हिस्सा है, जिसमें ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज किया है।

ईडी के 100 अफसरों की टीम लगभग 8 जगहों पर सर्च अभियान चला रही है। इसमें मुख्य रूप से संदीप घोष और उसके सहयोगियों के ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है। ईडी की टीम ने संदीप घोष के करीबी कौशिक कोले, प्रसून चटर्जी, बिल्पब सिंह के घर छापेमारी की है। बता दें कि संदीप घोष और बिप्लब सिंह सहित कुल चार लोगों को सीबीआई पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है। कौशिक कोले, संदीप घोष का करीबी बताया जा रहा है। फिलहाल हावड़ा, सोनारपुर समेत अन्य जगहों पर ईडी की छापेमारी चल रही है।

डॉ. संदीप घोष फिलहाल केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की हिरासत में हैं। पहले से ही सीबीआई के अधिकारी आरजी कर रेप और मर्डर केस मामले में जांच कर रहे हैं। सीबीआई ने घोष के अलावा आरजी कर के पूर्व चिकित्सा अधीक्षक संजय वशिष्ठ, अस्पताल के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के देबाशीष सोम से मामले में पूछताछ की है। सीबीआई की एफआईआर में घोष और तीन व्यापारिक संस्थाओं के नाम शामिल हैं। तीनों संस्थाओं को कथित वित्तीय घोटाले का लाभार्थी माना जा रहा है।

बुधवार को, संदीप घोष ने कलकत्ता हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें सीबीआई को उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की जांच करने का आदेश दिया गया था। उनकी याचिका 6 सितंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गई है।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया, बोले अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस
#attacks_on_hindus_in_bangladesh_muhammad_yunus_say_not_communal_issue
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद से अशांति बनी हुई है। खासकर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं को निसाना बनाया जा रहा है। इस बीच, बांग्लादेश में हिंदूओं पर हुए हमलों को लेकर अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ने बड़ी बात कही है। यूनुस ने कहा कि हिंदुओं पर हमले सांप्रदायिक नहीं हैं इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है। साथ ही उन्होंने भारत द्वारा इसे पेश करने के तरीके पर भी सवाल उठाया। अपने आधिकारिक आवास पर पीटीआई के साथ एक इंटरव्यू में यूनुस ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हुए हमले सांप्रदायिक से ज्यादा राजनीतिक थे। उन्होंने कहा कि हमले सांप्रदायिक नहीं थे। बल्कि राजनीतिक अस्थिरता का नतीजा थे। मोहम्मद यूनुस ने कहा कि मैंने पीएम मोदी से भी यह कहा है कि यह इस मुद्दे को बढ़ाकर बताया जा रहा है, जबकि इस मुद्दे के कई आयाम हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं का मतलब अवामी लीग के समर्थक- मो यूनुस मोहम्मद यूनुस ने आगे कहा कि देश शेख हसीना और अवामी लीग के अत्याचारों के बाद उथल-पुथल से गुजरा, तो जो लोग उनके साथ थे। उन्हें भी हमलों का सामना करना पड़ा। अब अवामी लीग के कार्यकर्ताओं की पिटाई करते समय, उन्होंने हिंदुओं को पीटा था क्योंकि ऐसी धारणा है कि बांग्लादेश में हिंदुओं का मतलब अवामी लीग के समर्थक हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि जो हुआ वह सही है, लेकिन कुछ लोग इसे संपत्ति जब्त करने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। शेख हसीना के बयान पर जताई आपत्ति बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने भारत में रहते हुए पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बयान को लेकर आपत्ति जताई। मुहम्मद यूनुस ने कहा कि शेख हसीना द्वारा भारत से राजनीतिक टिप्पणी करना एक अमित्र भाव है। जब तक ढाका द्वारा उनके प्रत्यर्पण नहीं हो जाता तब तक दोनों देशों को असुविधा से बचाने के लिए उन्हें चुप रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि भारत उन्हें तब तक रखना चाहता है, जब तक बांग्लादेश (सरकार) उन्हें वापस नहीं बुला लेता, तो शर्त यह होगी कि उन्हें चुप रहना होगा। बांग्लादेश भारत के साथ मजबूत संबंधों को महत्व देता है, लेकिन नई दिल्ली भी यह संबंध बनाए रखने के लिए इसपर विचार करना चाहिए। भारत को शेख हसीना के उस बयान से बचना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा कि शेख हसीना के बिना देश अफगानिस्तान में बदल जाएगा। पिछले महीने अंतरिम सरकार का प्रमुख बनने के बाद यूनुस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की थी। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया था कि ढाका हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यक समहूों की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा। बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दिया था।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया, बोले अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस

#attacks_on_hindus_in_bangladesh_muhammad_yunus_say_not_communal_issue

बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद से अशांति बनी हुई है। खासकर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं को निसाना बनाया जा रहा है। इस बीच, बांग्लादेश में हिंदूओं पर हुए हमलों को लेकर अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस ने बड़ी बात कही है। यूनुस ने कहा कि हिंदुओं पर हमले सांप्रदायिक नहीं हैं इसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है। साथ ही उन्होंने भारत द्वारा इसे पेश करने के तरीके पर भी सवाल उठाया।

अपने आधिकारिक आवास पर पीटीआई के साथ एक इंटरव्यू में यूनुस ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हुए हमले सांप्रदायिक से ज्यादा राजनीतिक थे। उन्होंने कहा कि हमले सांप्रदायिक नहीं थे। बल्कि राजनीतिक अस्थिरता का नतीजा थे। मोहम्मद यूनुस ने कहा कि मैंने पीएम मोदी से भी यह कहा है कि यह इस मुद्दे को बढ़ाकर बताया जा रहा है, जबकि इस मुद्दे के कई आयाम हैं।

बांग्लादेश में हिंदुओं का मतलब अवामी लीग के समर्थक- मो यूनुस

मोहम्मद यूनुस ने आगे कहा कि देश शेख हसीना और अवामी लीग के अत्याचारों के बाद उथल-पुथल से गुजरा, तो जो लोग उनके साथ थे। उन्हें भी हमलों का सामना करना पड़ा। अब अवामी लीग के कार्यकर्ताओं की पिटाई करते समय, उन्होंने हिंदुओं को पीटा था क्योंकि ऐसी धारणा है कि बांग्लादेश में हिंदुओं का मतलब अवामी लीग के समर्थक हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि जो हुआ वह सही है, लेकिन कुछ लोग इसे संपत्ति जब्त करने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।

शेख हसीना के बयान पर जताई आपत्ति

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने भारत में रहते हुए पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बयान को लेकर आपत्ति जताई। मुहम्मद यूनुस ने कहा कि शेख हसीना द्वारा भारत से राजनीतिक टिप्पणी करना एक अमित्र भाव है। जब तक ढाका द्वारा उनके प्रत्यर्पण नहीं हो जाता तब तक दोनों देशों को असुविधा से बचाने के लिए उन्हें चुप रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि भारत उन्हें तब तक रखना चाहता है, जब तक बांग्लादेश (सरकार) उन्हें वापस नहीं बुला लेता, तो शर्त यह होगी कि उन्हें चुप रहना होगा। बांग्लादेश भारत के साथ मजबूत संबंधों को महत्व देता है, लेकिन नई दिल्ली भी यह संबंध बनाए रखने के लिए इसपर विचार करना चाहिए। भारत को शेख हसीना के उस बयान से बचना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा कि शेख हसीना के बिना देश अफगानिस्तान में बदल जाएगा।

पिछले महीने अंतरिम सरकार का प्रमुख बनने के बाद यूनुस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की थी। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया था कि ढाका हिंदुओं और अन्य सभी अल्पसंख्यक समहूों की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा। बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दिया था।

बढ़ती आबादी से भी तेज रफ्तार से बढ़ रहे छात्रों की आत्महत्या के मामले, आंकड़े देखकर खुद से पूछेंगे सवाल*
#student_suicide_cases_increased_rapidly_in_india आज लोग तनाव और दबाद के बीच जी रहे हैं। सुकून को किसी बक्से में बंद कर हम रेस में शामिल हो गए हैं। वास्तव में इंसान की प्रवृति ऐसी नहीं है। हां ये बात अलग है कि कुछ लोगों ने खुद को इस बातावरण में समायोजित कर लिया है। हालांकि, ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत बड़ी है जो वातावरण के लिहाज से खुद को नहीं ढाल सकते। यहीं आता है टर्निंग प्वाइंट। यही वो जगह जब लोग खुदखुशी की ओर कदम बढ़ाते हैं। हाल ही मे जारी एक आंकड़े की मानें तो देश में कुल आत्महत्या के केस में सालाना 2 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, भारत में छात्र आत्महत्या की घटनाएं चिंताजनक दर से बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, छात्र आत्महत्या भारत में फैलती महामारी है। 'छात्र आत्महत्याएं: भारत में फैली महामारी' रिपोर्ट वार्षिक आईसी3 सम्मेलन और एक्सपो 2024 में जारी की गई। जिसमें बताया गया है कि जहां देश में कुल आत्महत्या के केस में सालाना 2 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में यह वृद्धि 4 पर्सेंट से ज्यादा है। ये हालात तब हैं जब स्टूडेंट्स की स्यूसाइड की पुलिस में रिपोर्ट कम दर्ज कराई जाती है। आईसी3 इंस्टीट्यूट द्वारा सामने आी रिपोर्ट में ये सामने आया है कि पिछले दो दशकों में, छात्र आत्महत्या की घटनाओं में 4 प्रतिशत की सालाना दर से वृद्धि हुई है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है. साल 2022 में कुल छात्र आत्महत्या के मामलों में 53 प्रतिशत पुरुष छात्रों ने खुदकुशी की. 2021 और 2022 के बीच, छात्रों की आत्महत्या में छह प्रतिशत की कमी आई जबकि छात्राओं की आत्महत्या में सात प्रतिशत की वृद्धि हुई। रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि छात्र आत्महत्या की घटनाएं जनसंख्या वृद्धि दर और कुल आत्महत्या ट्रेंड दोनों को पार करती जा रही हैं। पिछले दशक में जबकि 0-24 साल की आयुवर्ग आबादी 58.2 करोड़ से घटकर 58.1 करोड़ हो गई, वहीं छात्र आत्महत्याओं की संख्या 6,654 से बढ़कर 13,044 हो गई है। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में स्टूडेंट्स ने सबसे ज्यादा स्यूसाइड किया। राजस्थान का कोटा आत्महत्या के मामलों में हमेशा चर्चा में रहता है, लेकिन इस रिपोर्ट में वह 10वें स्थान पर है। एनसीआरबी द्वारा संकलित डेटा पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी रिपोर्ट (एफआईआर) पर आधारित है। हालांकि, यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि छात्रों की आत्महत्या की वास्तविक संख्या संभवतः कम रिपोर्ट की गई है। इस कम रिपोर्टिंग के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिसमें आत्महत्या से जुड़ा सामाजिक कलंक और भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या के प्रयास और सहायता प्राप्त आत्महत्या का अपराधीकरण शामिल है। हालांकि 2017 मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के लिए आत्महत्या के प्रयासों को अपराध से मुक्त करता है ॉ
अग्निपथ योजना में हो सकता है बड़ा बदलाव, क्या दबाव में है केंद्र सरकार?

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केंद्र सरकार की बहुचर्चित अग्निपथ योजना को लेकर बड़ी जानकारी सामने आ रही है। सरकारी कर्मचारियों को यूनिफाइड पेंशन स्कीम का तोहफा देने के बाद मोदी सरकार की ओर से अग्निपथ योजना में भी बड़ा बदलाव करने की खबर सामने आ रही है। दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा से लोगों की नाराजगी का बड़ा कारण अग्निपथ योजना भी थी। बीजेपी के नुकसान का इसे भी एक बड़ा कारण माना जा रहा था। जिसको लेकर केन्द्र सरकार ने अब काम शुरू कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार योजना में बदलाव का विचार कर रही है, जिसके तहत सेना में अग्निवीरों की संख्या बढ़ाने, उनके पात्रता और वेतन को लेकर भी फैसला लिया जाएगा।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक केंद्र ने अग्निपथ भर्ती योजना में बदलाव करने की योजना बनाई है। इस बदलाव में सेना में अग्निवीरों को स्थाई तौर से रखने का हिस्सा बढ़ाया सकता है। इसके साथ ही वेतन और योग्यता की शर्तों में भी बदलाव किया जा सकता है। इन बदलावों का मकसद अग्निपथ योजना के पूरे ढांचे और लाभों में सुधार करना है। जिसकी विपक्ष आलोचना कर रहा है। सेना में भर्ती होने के इच्छुक लोगों का एक बड़ा तबका भी इस योजना के खिलाफ है।

क्या-क्या हो सकते हैं बदलाव?

सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, जमीन पर लड़ाकू ताकत बनाए रखने के लिए एक चौथाई बहुत कम संख्या है। सेना ने सिफारिश की है कि चार साल के अंत में अग्निवीरों का प्रतिशत बढ़कर लगभग 50 फीसद हो जाना चाहिए।अभी केवल 25 प्रतिशत अग्निवीरों को ही प्रारंभिक सेवा अवधि के बाद रखा जाता है, जबकि सैन्य विशेषज्ञ यह संख्या अपर्याप्त मानते हैं। इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का विचार है। हालांकि अभी तक इसको लेकर कोई ऑफिशियल ऐलान नहीं किया गया है।

क्या है अग्निपथ योजना?

अग्निपथ योजना को जून 2022 में लागू किया गया था। इसके तहत सेना के तीनों अंगों में साढ़े 17 साल से 23 साल के युवाओं को 4 साल के लिए सेना में भर्ती किया जाता है।इन्हें अग्रिवीर कहा जाता है। 4 साल बाद इनमें से 25 प्रतिशत को स्थायी, जबकि बाकी 75 प्रतिशत को सेवा मुक्त कर दिया जाता है।अग्रिवीरों का वेतन नियमित भर्ती किए जवानों की तुलना में कम होता है और इन्हें पेंशन नहीं मिलेगी।