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ज्योतिर्लिंग-3: शिप्रा नदी के पावन तट पर स्थित अपने अद्भुत महिमा और महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर

   - विनोद आनंद 

शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से तीसरे सबसे शक्तिशाली ज्योतिर्लिंग की दर्शन कराने के लिए आप को मध्यप्रदेश को उज्जैन ले चलते हैं जहां विश्वविख्यात तीर्थ स्थल महाकालेश्वर मंदिर है।इसके पहले स्ट्रीटबज़ज़ पर आप गुजरात के जूनागढ़ रियासत स्थित अरब सागर के किनारे के भव्य मंदिर सोमनाथ और आंध्र प्रदेश के शैल पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन के बारे में पढ़ चुके हैं। अब विश्वविख्यात धार्मिक स्थल उज्जैन के माहाकालेश्वर शिव की दर्शन कराते हैं। जो भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। 

यह दुनिया के प्रसिद्ध 10 तंत्र मंदिरों में से एक है जिसमें भगवन शिव लिंग के स्वरुप में विद्यमान है। ऐसी मान्यता है की इस जयोतिर्लिंग को भगवान शिव ने स्वयं स्थापित किया था। जिस कारन से इसे 'स्वयंभू' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'स्वयं स्थापित' है।

 महाकाल मंदिर की महिमा अद्भुत है , जिसका वर्णन कई वेद-पुराणों में व् कई महान कवियों की रचनाओं में पाया गया है। यह भारत की माहान धरोहरों में से एक माना जाता है। मान्यता है की महाकालेश्वर जयोतिर्लिंग समय और काल से परे है, जहाँ महाकाल की अनुमति के बिना कुछ संभव नहीं है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के प्राचीन शहर उज्जैन में स्थित है, जो अवंतिका के नाम से भी जाना जाता है। राजा विक्रमादित्य के समय से उज्जैन अवंतिका शिक्षा का श्रेष्ठ केंद्र रहा है, जिसके चलते जन मानस में शिक्षा, शैली, वैभव, सामर्थ्य और विज्ञानं का प्रचार प्रसार हुआ। 

 महाकाल मंदिर शिप्रा नदी के पावन तट पर स्थित है, जहाँ 12 वर्ष में एक बार सिंघस्थ का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु जमा होकर महाकाल का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं व् मेले का आनंद उठाते हैं। यह स्थान तप, तंत्र विद्या और क्रियाओं के लिए भीविशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। महाकालेश्वर एक मात्रा ऐसा ज्योतिर्लिंग हैं जो दक्षिणमुखी है, जिसे तांत्रिक शिवनेत्र प्रथा में आस्था रखने वाले एक प्रतीक के रूप में देखते हैं। 

 श्री महाकालेश्वर मंदिर तीन स्तरीय अद्भुत ईमारत है जिसके प्रांगण में प्रति दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन एवं पूजा अर्चना के लिए आते हैं। सबसे नीचे भूमिगत स्तर पर महाकालेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इसके साथ ही भगवान शिव के परिवार के सदस्यों की मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हैं। शिवपत्नी माता पार्वती उतर दिशा में, पुत्र गणेशएवं कार्तिकेय पश्चिम तथा पूर्व में विराजमान हैं। शिव वाहन नंदी दक्षिण दिशा में सुशोभित हैं।

 सबसे ऊपरी स्थल पर भगवन शिव नागेश्वर रूप में सुसज्जित हैं, जिनके दर्शन वर्ष में केवल नाग पंचमी के पावन उत्सव पर ही संभव हैं। महाकालेश्वर मंदिरके मध्य में एक पवित्र कुंड है जिसके जल में श्रद्धालु दुबाकी लगाकर अपने आप को धन्य मानते हैं। स्नानोपरांत यात्री महाकाल मंदिर की परिक्रमा करते हैं, जिसके दौरान वहां पर सुशोभित भगवान शिव के जीवन से दर्शायी गयीझांकियों का मंत्र गुनगुनाते हुए प्रफुलित महसूस करते हैं।  

महाकालेश्वर मंदिर की पूजा विधि का एक एहम हिस्सा भस्म आरती भी है। इस धार्मिक संस्कार के दौरान महाकाल का श्रृंगार भस्म से किया जाता है और साधु संतइससे भस्म से स्नान करते हैं अथवा मस्तक पे इससे लगते हैं। ऐसी धरना है की कुछ वर्ष पूर्तक यह भस्म शमशान से लायी जाती थी।

मंदिर परिसर से कुछ ही दूर मंदिर द्वारा आयोजित भोजन भंडार स्थित है जहाँ सभी तीर्थार्थीयों को नि:शुल्क भोजन उपलब्ध कराया जाता है। ऐसी परंपरा है की कोई भी मानव मंदिर परिसर के 5 किलोमीटर की परिधि के अंदर भूखे पेट न सोये, यह भोजनालय इसको चरितार्थ करता है।

मंदिर में मिलने वाला मेवा प्रसाद ग्रहण किये बिना कोई भी तीर्थार्थी की यात्रा को पूर्ण नहीं माना जाता है। भोजनालय के अलावा मंदिर परिसर के आस पास कई अखाड़े एवं धर्मशालायें उपलब्ध हैं।

सावन के पावन माह में महाकाल के तीरथ स्थल का नज़ारा देखते ही बनता है। देश व् दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस अवसर पहुँचते हैं। महाशिवरात्रिके पर्व पर भी एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भरी संख्या में विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं।

महाकाल के मंदिर ने उज्जैन को विश्व के पर्यटक केंद्र के मान चित्र पर खड़ा कर दिया है। उज्जैन सभी बड़े शहरों से सड़क व् रेलमार्ग के द्वारा भली भांति जुड़ा है। हवाई यात्री इंदौर में स्थित देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा का इस्तेमाल करते हुए आसानी से उज्जैन पहुँच सकते हैं।  उज्जैन से यह करीब 54 किलोमीटर की दूरी पर है।

क्या है इस मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता..?


शिव पुराण के अनुसार , एक बार ब्रह्मा और विष्णु में इस बात पर बहस हुई कि सृष्टि में सर्वोच्च कौन है ..? इसके परीक्षण के लिए, शिव ने तीनों लोकों को प्रकाश के एक अंतहीन स्तंभ, ज्योतिर्लिंग के रूप में भेद दिया। विष्णु और ब्रह्मा ने प्रकाश के अंत को खोजने के लिए क्रमशः स्तंभ के साथ नीचे और ऊपर की ओर यात्रा करने का निर्णय लिया। ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्हें अंत मिल गया है, जबकि विष्णु ने अपनी हार मान ली। शिव प्रकाश के दूसरे स्तंभ के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा को शाप दिया कि उन्हें समारोहों में कोई स्थान नहीं मिलेगा, जबकि विष्णु की पूजा अनंत काल तक की जाएगी। 

ज्योतिर्लिंग सर्वोच्च अखंड वास्तविकता है, जिसमें से शिव आंशिक रूप से प्रकट होते हैं। इस प्रकार, ज्योतिर्लिंग मंदिर वे स्थान हैं जहाँ शिव प्रकाश के एक ज्वलंत स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। शिव के 64 रूप हैं इन सभी स्थलों पर, प्राथमिक छवि लिंगम है जो अनादि और अंतहीन स्तम्भ स्तंभ का प्रतिनिधित्व करता है, जो शिव की अनंत प्रकृति का प्रतीक है। ये बारह ज्योतिर्लिंग हैं जिसके बारे में आप को पूर्व में बता चुके हैं,आप के स्मरण के लिए पुनः एक बार बता रहा हूँ कि यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के वेरावल में सोमनाथ , आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन , मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर , मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर , उत्तराखंड राज्य में हिमालय में केदारनाथ , महाराष्ट्र में भीमाशंकर , उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्वनाथ , महाराष्ट्र में त्रयंबकेश्वर , झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ मंदिर , महाराष्ट्र में औंधा में नागेश्वर , तमिलनाडु के रामेश्वरम में रामेश्वर और महाराष्ट्र के संभाजीनगर में घृष्णेश्वर है ।

उज्जैन को लेकर अन्य किंवदंतियां


पुराणों के अनुसार , उज्जैन शहर को अवंतिका कहा जाता था और यह अपनी सुंदरता और भक्ति के 

केंद्र के रूप में अपनी स्थिति के लिए प्रसिद्ध था। यह उन प्राथमिक शहरों में से एक था जहाँ छात्र पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करने जाते थे।

 किंवदंती के अनुसार, उज्जैन के एक शासक थे, जिनका नाम चंद्रसेन था, जो शिव के महान भक्त थे और हर समय उनकी पूजा करते थे। एक दिन, श्रीखर नाम का एक किसान का लड़का महल के मैदान में टहल रहा था और उसने राजा को शिव का नाम जपते हुए सुना और उनके साथ प्रार्थना करने के लिए मंदिर में भाग गया।

 हालाँकि, पहरेदारों ने उसे बलपूर्वक हटा दिया और उसे क्षिप्रा नदी के पास शहर के बाहरी इलाके में भेज दिया । उज्जैन के प्रतिद्वंद्वियों, मुख्य रूप से पड़ोसी राज्यों के राजा रिपुदमन और राजा सिंघादित्य ने इस समय के आसपास राज्य पर हमला करने और इसके खजाने पर कब्जा करने का फैसला किया। यह सुनकर, श्रीखर ने प्रार्थना करना शुरू कर दिया और यह खबर वृद्धि नामक एक पुजारी तक फैल गई। यह सुनकर वह चौंक गया और अपने बेटों की तत्काल विनती पर, क्षिप्रा नदी पर शिव से प्रार्थना करना शुरू कर दिया । राजाओं ने आक्रमण करने का निर्णय लिया और सफल भी हुए; शक्तिशाली राक्षस दूषण, जिसे ब्रह्मा द्वारा अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था, की सहायता से उन्होंने शहर को लूटा और सभी शिव भक्तों पर हमला किया।

अपने असहाय भक्तों की विनती सुनकर शिव अपने महाकाल रूप में प्रकट हुए और राजा चंद्रसेन के शत्रुओं का नाश किया। अपने भक्तों श्रीखर और वृद्धि के अनुरोध पर, शिव नगर में निवास करने और राज्य के मुख्य देवता बनने और शत्रुओं से इसकी देखभाल करने तथा अपने सभी भक्तों की रक्षा करने के लिए सहमत हुए। 

उस दिन से, शिव महाकाल के रूप में अपने प्रकाश रूप में शिव और उनकी पत्नी पार्वती की शक्तियों से बने लिंगम में निवास करने लगे । शिव ने अपने भक्तों को आशीर्वाद भी दिया और घोषणा की कि जो लोग इस रूप में उनकी पूजा करेंगे, वे मृत्यु और बीमारियों के भय से मुक्त हो जाएंगे। साथ ही, उन्हें सांसारिक खजाने दिए जाएंगे और वे स्वयं शिव के संरक्षण में रहेंगे।

भरथरी राजा गंधर्वसेन के बड़े पुत्र थे और उन्हें देवराज इंद्र और धरा के राजा से उज्जैन का राज्य प्राप्त हुआ था।


एक अन्य जन श्रुति के अनुसार जब भर्तृहरि 'उज्जयनी' (आधुनिक उज्जैन) के राजा थे, उनके राज्य में एक ब्राह्मण रहता था, जिसे वर्षों की तपस्या के बाद कल्पवृक्ष के दिव्य वृक्ष से अमरता का फल दिया गया था। ब्राह्मण ने इसे अपने सम्राट, राजा भर्तृहरि को दिया, जिन्होंने इसे अपनी प्रेमिका, सुंदर, पिंगला रानी या अनंग सेना राजा भर्तृहरि की अंतिम और सबसे छोटी पत्नी को दे दिया।

 रानी, ​​राज्य के मुख्य पुलिस अधिकारी महिपाल के साथ प्रेम में थी, उसने फल उसे उसे दे दिया, जिसने इसे आगे उसकी प्रेमिका लाखा, जो सम्मान की दासियों में से एक थी, को दे दिया। अंततः लाखा ने राजा के प्रेम में पड़कर फल को राजा को वापस दे दिया। चक्र पूरा करने के बाद, फल ने राजा को बेवफाई के नुकसान बताए, उसने रानी को बुलाया

बाद में वे पट्टिनाथर के शिष्य बन गए, जिन्होंने सबसे पहले राजा भर्तृहरि के साथ संसार और संन्यासी के बारे में बहस की। बाद में बातचीत के दौरान पट्टिनाथर ने कहा कि सभी महिलाओं में 'दोहरे मन' होते हैं और यह परमेश्वरी के साथ भी सच हो सकता है। राजा ने यह खबर रानी पिंगला को बताई और उन्होंने पट्टिनाथर को दंडित करने और कालू मरम (पेड़, जिसका शीर्ष भाग एक पेंसिल की तरह तेज होता है और पूरा पेड़ पूरी तरह से तेल से लिपटा होता है, जिस व्यक्ति को शीर्ष पर बैठने की सजा दी जाती है, वह दो टुकड़ों में विभाजित हो जाता है) में बैठने का आदेश दिया, उन्होंने पट्टिनाथर को मारने की कोशिश की, लेकिन कालू मरम जलने लगा और पट्टिनाथर को कुछ नहीं हुआ, राजा को खबर मिली और वह सीधे पट्टिनाथर के पास गया और उसे अगले दिन मरने के लिए तैयार रहने के लिए कहा, लेकिन पट्टिनाथर ने कहा, "मैं अभी मरने के लिए तैयार हूं"। अगले दिन राजा आंखों में आंसू लिए आए और संत को जेल से रिहा कर दिया क्योंकि उन्होंने वास्तव में रानी पिंगला को उस रात घुड़सवारों के साथ प्यार करते देखा था, उन्होंने अपना साम्राज्य, धन, यहां तक ​​कि पूरा कोट ड्रेस भी फेंक दिया और एक साधारण कोवनम (लंगोटी) पहन लिया, राजा पट्टिनात्थर के शिष्य बन गए और आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्तीश्वर मंदिर में मोक्ष (मोक्ष) प्राप्त किया, जिसमें शिव के पंचभूत स्थलम का एक हिस्सा वायु लिंगम है ।

उस समय के महान संस्कृत कवि कालिदास , जो संभवतः राजा पुष्यमित्र शुंग के समकालीन थे , ने मेघदूत में अपने कार्यों में मंदिर के अनुष्ठानों का उल्लेख किया है। उन्होंने नाद-आराधना , शाम के अनुष्ठानों के दौरान कला और नृत्य के प्रदर्शन का उल्लेख किया है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में भी महाकाल मंदिर का चर्चा मिलता हैं। द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा प्राप्त करने आए थे, तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था। गोस्वामी तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है। छठी शताब्दी में राजा चंद्रप्रद्योत के समय महाकाल उत्सव हुआ था। यानी भगवान बुद्ध के समय में भी महाकाल उत्सव मनाया गया था।

मुस्लिम आक्रांतओं के कारण 500 साल तक ज्योतिर्लिंग को जल समाधि में रहना पड़ा


भारत में मुस्लिम आक्रांतओं का हमेशा यह उद्देश्य रहा कि भारत के मंदिर को नष्ट कर वहां अपना अधिपत्य स्थापित करना । महाकाल मंदिर पर भी कई बार मुस्लिम आक्रांतओं ने हमला किया जिसके कारण यह मंदिर कई बार टूटा और फिर इसका निर्माण हुआ। 

महाकाल मंदिर आज जिस स्वरूप में दिखता है, वैसा पहले नहीं था। मुस्लिम शासकों ने महाकाल मंदिर पर हमला कर इसे कई बार तोड़ा और फिर कई बार इसका पुनर्निर्माण हुआ।

1107 से 1728 ई. तक उज्जैन में यवनों का शासन था। इस दौरान हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को नष्ट करने का प्रयास किया गया। 11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद सन् 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर पर हमला कर यहां कत्लेआम किया।

इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण के दौरान महाकाल मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। उस वक्त पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को कुंड में छिपा दिया था। करीब 500 साल तक भगवान महाकाल को जल समाधि में रहना पड़ा। इसके बाद औरंगजेब ने मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद बनवा दी थी।

करीब 500 साल तक महाकाल की पूजा मंदिर के अवशेषों में ही पूजा जाता रहा था। साल 1728 में मराठों ने उज्जैन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव फिर से लौटा। 1731 से 1809 तक उज्जैन मालवा की राजधानी रहा। 

मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। पहली महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया और दूसरी शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ शुरू हुआ।

मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था। उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत हुई। मंदिर के पुनर्निर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुन: प्राणप्रतिष्ठा कराने से पहले राणोजी सिंधिया ने उस मस्जिद को ध्वस्त करा दिया था जो औरंगजेब ने बनाया था।

12 ज्योतिर्लिंग में सबसे अलग विशेषता हैं महाकालेश्वर की


महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणामूर्ति मानी जाती है , जिसका अर्थ है कि वह दक्षिण की ओर मुख करके खड़ी है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक शिवनेत्र परंपरा द्वारा कायम रखा गया है जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से केवल महाकालेश्वर में ही पाई जाती है। 

ओंकारेश्वर महादेव की मूर्ति महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश , पार्वती और कार्तिकेय की छवियां स्थापित हैं। दक्षिण में शिव के वाहन नंदी की छवि है । तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नाग पंचमी के दिन दर्शन के लिए खुलती है । मंदिर के पाँच स्तर हैं, जिनमें से एक भूमिगत है। मंदिर स्वयं एक विशाल प्रांगण में स्थित है जो एक झील के पास विशाल दीवारों से घिरा है। शिखर या शिखर मूर्तिकला की सजावट से सुशोभित है ऐसा माना जाता है कि यहां देवता को चढ़ाया गया प्रसाद (पवित्र प्रसाद) अन्य सभी मंदिरों के विपरीत दोबारा चढ़ाया जा सकता है। समय के देवता शिव अपनी पूरी महिमा के साथ उज्जैन शहर में हमेशा राज करते हैं ।

 महाकालेश्वर का मंदिर, जिसका शिखर आसमान में ऊंचा है, क्षितिज के सामने एक भव्य अग्रभाग है, जो अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को जगाता है। महाकाल आधुनिक व्यस्तताओं की व्यस्त दिनचर्या के बीच भी शहर और उसके लोगों के जीवन पर हावी हैं और प्राचीन हिंदू परंपराओं के साथ एक अटूट संबंध प्रदान करते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है और रात भर पूजा-अर्चना चलती है। 

मंदिर में राम मंदिर के पीछे पालकी द्वार के पीछे पार्वती के लिए एक मंदिर है, जिसे अवंतिका देवी (उज्जैन शहर की देवी) के रूप में जाना जाता है। 

इस तरह अपने महत्व और खास विशेषताओं के कारण उज्जैन नगरी क़ी विश्व स्तरीय पहचान महा कालेश्वर मंदिर को लेकर हैं । जिसका दर्शन हर लोगों को करना चाहिए

आज का राशिफल : 4 जुलाई 2024 :जानिये राशि के अनुसार आज कैसा रहेगा आप का दिन

मेष राशि : -आज आपका प्रभावशाली व्यक्तियों से परिचय होगा. भूमि,भवन,दुकान व फैक्टरी आदि खरीदने की योजना बनेगी.आज पारिवारिक शांति बनाए रखें. वाद-विवाद से दूर रहें. माता का स्वास्थ्य खराब हो सकता है. धन और प्रतिष्ठा में हानि होने की संभावना है.मध्याहन के बाद स्वभाव में भावुकता बढ़ सकती है.शाम को दोस्तों के साथ घूमने जा सकते है वृष राशि- आज मित्रों और प्रियजनों के साथ भेंट हो सकती है .आज कोई पुराना रोग परेशान कर सकता है .व्यापार में नए ग्राहक बनेंगे जिनसे आगे चलकर बहुत लाभ मिलेगा.छोटे से प्रवास का आयोजन हो सकता है. भाईयों के साथ संबंधों में निकटता आएगी. मध्याहन के बाद अप्रिय घटनाओं से मन उदास हो सकता है. मिथुन राशि – आज बने बनाये काम बिगड़ सकते हैं.जीवन में किसी बड़ी बाधा से सामना हो सकता है.आज क्रोध और वाणी पर संयम रखें.नकारात्मक विचार मन में न आने दें.जितना संभव हो विवाद से बचकर रहें.आज फिजूलखर्ची बढ़ सकती है.खान-पान में भी संयम बरतें.वैचारिक स्थिरता के साथ हाथ में आए हुए कार्यों को पूर्ण कर पाएंगे. कर्क राशि- आज यात्रा से नुकसान संभव है.अप्रत्याशित खर्च सामने आ सकते हैं.स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा.स्वास्थ्‍य पर बड़ा खर्च भी हो सकता है.मित्रों से मतभेद हो सकते हैं.आज आप स्वयं पर से नियंत्रण खो सकते हैं .पेशेवर जीवन में आपको अपने सहकर्मी का पूरा सहयोग मिलेगा जो आपके बहुत काम आएगा.कार्यस्थल पर जन हानि के योग हैं. सिंह राशि – आज के दिन प्रेम-प्रसंग में जल्दबाजी न करें.उन्नति में बाधा आयेगी.लेन-देन में सावधानी रखें.आज अकारण किसी विवाद में फंस सकते हैं.यदि वैवाहिक जीवन में उथल – पुथल चल रही थी तो आज उसके खतम होने की उम्मीद है .भाइयों का सहयोग प्राप्त होगा. कोई खुशखबरी सुन सकते हैं. यात्रा सुखद रहेगी. कन्या राशि – आज आप में भावुकता अधिक रहेगी. विद्यार्थिगण आज अभ्यास और करियर संबंधित विषयों में सफलता प्राप्त कर सकेंगे. घर के वातावरण में सुख-शांति बनी रहेगी. व्यवसाय में सफलता प्राप्त होगी.आत्मविश्वास बढ़ेगा.पराक्रम व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी.शाम के समय घर से बाहर निकलने से बचे.घर में किसी की तबियत खराब हो सकती है. तुला राशि – आज का दिन आपके लिए शुभ फलदायी है.आज के दिन अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे.स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा.नौकरी में उच्चाधिकारी प्रसन्न रहेंगे.नए कार्य का शुभारंभ करने के लिए समय अनुकूल है.परिजनों के साथ समय आनंदपूर्वक बीतेगा.धार्मिक कार्यों में खर्च होगा.कार या बाइक में खराबी आ सकती है,जिससे आप परेशान हो सकते हैं . वृश्चिक राशि – आज आपको मेहनत का फल मिलेगा.प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी.व्यापार में लाभ होगा.कम समय में अधिक लाभ पाने के विचार में आप फंस न जाएं इसका ध्यान रखें.कोर्ट-कचहरी के मामलों में न पड़ें.शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें. धन संबंधित लेन-देन में सावधानी रखें .समाज में आपकी छवि सुधरेगी और आपका मान-सम्मान बढ़ेगा. धनु राशि – आज अनजाने में कोई बड़ी गलती हो सकती है.आज शत्रु आपसे पराजित होंगे.आय के स्रोतों में वृद्धि हो सकती है.व्यवसाय ठीक चलेगा.कुछ चीजों को लेकर सकारात्मक बदलाव आएगा तो कुछ मामलो में हानि भी हो सकती है.सरकार विरोधी प्रवृत्तियों से दूर रहें. परिजनों के साथ कलह हो सकती है. मकर राशि – आज जीवनसाथी के साथ विवाद हो सकता है.उच्च अधिकारियों के साथ बात करते समय वाणी पर नियंत्रण रखें. शारीरिक रूप से अस्वस्थता और मानसिक चिंता बनी रहेगी.व्यापार में विघ्न की संभावना है.कोई दु:खद समाचार सुनने को मिल सकता है.किसी बाहरी व्यक्ति का घर के मामलो में दखल हो सकता है जो आपको पसंद नही आएगा. कुंभ राशि – आज का दिन आपके लिए लाभदायी है.आज दोस्तों के साथ मेलजोल बढ़ेगा. व्यवसायिक क्षेत्र में उच्च अधिकारीगण की कृपादृष्टि से आपकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा.आज आपको अच्छे वैवाहिक प्रस्ताव प्राप्त हो सकते हैं. व्यापार में आय बढऩे की संभावना है.राजनीति के क्षेत्र में संभल कर काम करने की जरूरत है.सामाजिक मान सम्मान बढ़ेगा. मीन राशि- आज अनजान लोगों पर भरोसा न करें. संतान संबंधी शुभ समाचार मिलेंगे. पुराने व बचपन के मित्रों से भेंट के कारण मन आनंदित रहेगा. व्यवसायिक और आर्थिक रूप से लाभ होगा. विद्यार्थी वर्ग सफलता प्राप्त करेगा.स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है .वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें.वाहन,मशीनरी व अग्नि आदि के प्रयोग में सावधानी रखें.
आज का पंचांग- 3 जुलाई 2024:जानिये पंचांग के अनुसार आज कैसा रहेगा

विक्रम संवत- 2081, पिंगल शक सम्वत- 1946, क्रोधी पूर्णिमांत- आषाढ़ अमांत- ज्येष्ठ तिथि त्रयोदशी - 05:54 ए एम तक चतुर्दशी - 04:57 ए एम, जुलाई 05 तक नक्षत्र मॄगशिरा - 03:54 ए एम, जुलाई 05 तक योग गण्ड - 07:00 ए एम तक वृद्धि - 05:14 ए एम, जुलाई 05 तक सूर्य और चंद्रमा का समय सूर्योदय- 5:28 AM सूर्यास्त- 7:23 PM चन्द्रोदय- जुलाई 05 4:24 AM चन्द्रास्त-06:17 पी एम अशुभ काल राहू- 02:10 पी एम से 03:54 पी एम यम गण्ड-05:28 ए एम से 07:13 ए एम कुलिक- 08:57 ए एम से 10:41 ए एम दुर्मुहूर्त- 10:06 ए एम से 11:02 ए एम वर्ज्यम्- 09:40 ए एम से 11:15 ए एम शुभ काल अभिजीत मुहूर्त-11:58 ए एम से 12:53 पी एम अमृत काल- 07:11 पी एम से 08:46 पी एम ब्रह्म मुहूर्त- 04:07 ए एम से 04:48 ए एम
आज का पंचांग- 3 जुलाई 2024:जानिये पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

विक्रम संवत- 2081, पिंगल

शक सम्वत- 1946, क्रोधी

पूर्णिमांत- आषाढ़

अमांत- ज्येष्ठ

तिथि

कृष्ण पक्ष द्वादशी- जुलाई 02 08:42 AM- जुलाई 03 07:10 AM

कृष्ण पक्ष त्रयोदशी- जुलाई 03 07:10 AM- जुलाई 04 05:54 AM

नक्षत्र

रोहिणी- जुलाई 03 04:40 AM- जुलाई 04 04:07 AM

म्रृगशीर्षा- जुलाई 04 04:07 AM- जुलाई 05 03:54 AM

योग

शूल- जुलाई 02 11:16 AM- जुलाई 03 09:01 AM

गण्ड- जुलाई 03 09:01 AM- जुलाई 04 06:59 AM

सूर्य और चंद्रमा का समय

सूर्योदय- 5:49 AM

सूर्यास्त- 7:12 PM

चन्द्रोदय- जुलाई 03 2:57 AM

चन्द्रास्त- जुलाई 03 5:03 PM

अशुभ काल

राहू- 12:31 PM- 2:11 PM

यम गण्ड- 7:30 AM- 9:10 AM

कुलिक- 10:50 AM- 12:31 PM

दुर्मुहूर्त- 12:04 PM- 12:57 PM

वर्ज्यम्- 08:18 PM- 09:52 PM

शुभ काल

अभिजीत मुहूर्त- Nil

अमृत काल- 12:59 AM- 02:32 AM

ब्रह्म मुहूर्त- 04:13 AM- 05:01 AM

शुभ योग

सर्वार्थसिद्धि योग- जुलाई 04 04:07 AM- जुलाई 04 05:50 AM (मृगशीर्ष और बुधवार)

सर्वार्थसिद्धि योग- जुलाई 03 05:49 AM- जुलाई 04 04:07 AM (मृगशीर्ष और बुधवार)

आज का राशिफल 3 जुलाई:जानिये राशि के अनुसार आज कैसा रहेगा आप का दिन..?

ग्रह-नक्षत्रों की चाल से राशिफल का आकंलन किया जाता है। 3 जुलाई को बुधवार है।बुधवार का दिन कुछ राशि वालों के लिए शुभ तो कुछ राशि वालों के लिए सामान्य रहेगा।

मंगल मेष राशि में, गुरु व चंद्रमा का गजकेसरी योग वृषभ राशि में, सूर्य व बुध मिथुन राशि में, बुध कर्क राशि में, केतु कन्या राशि में, शनि कुंभ राशि में, राहु मीन राशि के गोचर में चल रहे हैं।

मेष राशि- धन आगमन बढ़ेगा। कुटुंबों में वृद्धि होगी। वाणी से आप शब्द साधक बने रहेंगे। जो लोग गायन के क्षेत्र में हैं उनके लिए बहुत ही अच्छा समय। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। पीली वस्तु पास रखें।

वृषभ राशि- ओजस्वी-तेजस्वी बने रहेंगे। आकर्षण के केंद्र बने रहेंगे। जरूरत के हिसाब से वस्तुएं उपलब्ध होंगी। शुभता के केंद्र बने रहेंगे। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। पीली वस्तु का दान करें।

मिथुन राशि- खर्च की अधिकता रहेगी हालांकि शुभ कार्यों में खर्च होगा। खर्च की अधिकता कर्ज की स्थिति ला सकती है। प्रेम-संतान अच्छा। व्यापार अच्छा। पीली वस्तु का दान करें।

कर्क राशि- आय के नवीन स्रोत बनेंगे। पुराने स्रोत से भी पैसे आएंगे। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम-संतान का साथ होगा। व्यापार बहुत अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

सिंह राशि- कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगी। व्यापारिक स्थिति अत्यंत शुभकारी रहेगी। पैतृक संपत्ति में बढ़ोतरी होगी। पिता का साथ होगा। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा। सफेद वस्तु का दान करें।

कन्या राशि- भाग्य साथ देगा। यात्रा में लाभ होगा। धर्म-कर्म में हिस्सा लेंगे। भाग्यवश आपके बहुत सारे काम बनेंगे। प्रेम, संतान, व्यापार सबकुछ बहुत अच्छा है। हरी वस्तु पास रखें।

तुला राशि- चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाएंगी। बचकर पार करें। स्वास्थ्य मध्यम, प्रेम-संतान अच्छा। व्यापार अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

वृश्चिक राशि- शादी-ब्याह तय हो सकता है। प्रेमी-प्रेमिका की मुलाकात संभव है। नौकरी-चाकरी की स्थिति बहुत सुदृढ़ दिख रही है। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

धनु राशि- शत्रु भी मित्र बनने की कोशिश करेंगे। अरोगयता होगी। स्वास्थ्य पहले से बेहतर। प्रेम संतान अच्छा। व्यापार अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

मकर राशि- विद्यार्थियों के लिए बहुत अच्छा समय। जो लोग एक्टिंग के क्षेत्र में हैं, गायन के क्षेत्र में हैं उन लोगों के लिए बहुत अच्छा समय। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। प्रेम में नयापन आएगा। बच्चों की सेहत में सुधार होगा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कुंभ राशि- भूमि, भवन व वाहन की खरीदारी होगी। घर में कुछ उत्सव होगा। स्वास्थ्य में सुधार। प्रेम संतान का साथ। व्यापार बहुत अच्छा। हरी वस्तु पास रखें।

मीन राशि- व्यापारिक स्थिति सुदृढ़ होगी। अपनों का साथ होगा। प्रेम संतान का साथ होगा। स्वास्थ्य में ध्यान दें, बाकी सब कुछ बहुत अच्छा है। काली वस्तु का दान करना शुभ होगा

दक्षिण भारत का कैलाश धाम कहे जाने वाले शिव भगवान का दूसरा ज्योतिर्लिंग है मल्लिकार्जुन

आइये जानते हैं इस धाम का महामात्य, पौराणिक अवधारणा और इतिहास


  - विनोद आनंद 

हिन्दू धर्म में देवों के देव शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में आपने प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के बारे कल स्ट्रीटबजज पर पढ़ा. आज हम आप को दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के बारे में बताते हैं जिसे दक्षिण भारत का कैलाश कहा जाता है. जहाँ एक साथ भगवान् शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय विराजमान हैं.

श्री शैल पर्वत पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं. ऐसा माना जाता है कि इस पर्वत पर जो भी व्यक्ति भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं,उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और उसकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी हो जाती हैं.

पौराणिक कथा


मल्लिकार्जुन मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान और पवित्र महाकाव्यों में गहराई से निहित हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती ने सृजन और विनाश के अपने दिव्य नृत्य में एक बार मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा का रूप धारण किया था. माना जाता है कि यह मंदिर वह स्थान है जहाँ भगवान मल्लिकार्जुन और देवी ब्रह्मराम्बा ने दिव्य विवाह किया था.

किंवदंती है कि ऋषि नारद ने इस पवित्र स्थान पर भगवान शिव और पार्वती के दिव्य मिलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा का दिव्य विवाह ब्रह्मांडीय संतुलन और ब्रह्मांड में पुरुष और महिला ऊर्जा के शाश्वत नृत्य का प्रतीक है.

महाभारत से भी जुड़ा है इसकी दंतकथाएं


मल्लिकार्जुन मंदिर महान महाकाव्य महाभारत से भी जुड़ा हुआ है. लोककथाओं के अनुसार, पांडव भाई अपने वनवास के दौरान भगवान मल्लिकार्जुन का आशीर्वाद लेने के लिए इस पवित्र स्थल पर आए थे. कहा जाता है कि इस मंदिर में महाभारत के कई प्रसंग घटित हुए हैं, जो इसके पौराणिक आख्यान को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं.

अन्य दंतकथाएं


मल्लिकार्जुन मंदिर कई किंवदंतियों से सुशोभित है जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं, जो इसकी पवित्रता में एक आकर्षक आभा जोड़ती हैं. ऐसी ही एक किंवदंती मल्लन्ना नामक एक भक्त चरवाहे की कहानी बताती है, जिसकी भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति थी.मल्लन्ना की गहरी श्रद्धा और निस्वार्थ भक्ति ने दिव्य हृदय को छू लिया और भगवान शिव, उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर, इस पवित्र स्थान पर मल्लिकार्जुन के रूप में प्रकट हुए.

दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर, इस क्षेत्र के सांस्कृतिक ताने-बाने में बुने गए इतिहास, पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों के समृद्ध ताने-बाने का एक प्रमाण है. भगवान शिव के एक रूप भगवान मल्लिकार्जुन को समर्पित, यह पवित्र निवास सदियों से तीर्थयात्रियों, विद्वानों और भक्तों को आकर्षित करता रहा है. इस खोज में, हम मंदिर के इतिहास, इसकी पौराणिक जड़ों और किंवदंतियों के बारे में जानेंगे, जिन्होंने इसकी पहचान को आकार दिया है.

एक अन्य दंत कथा के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा मान्यता है कि एक बार भगवान श्री गणेश और भगवान कार्तिकेय के बीच पहले विवाह करने को लेकर विवाद हो गया है. तब भगवान शिव ने उसका हल निकालते हुए कहा कि जो कोई पृथ्वी की सात बार परिक्रमा करके पहले आ जाएगा, उसका विवाह पहले होगा. इसके बाद भगवान कार्तिकेय मोर पर सवार होकर परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े लेकिन भगवान श्री गणेश ने माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा की क्योंकि शास्त्रों में जो पुण्य पृथ्वी की परिक्रमा करने पर मिलता है वहीं माता-पिता की परिक्रमा से भी प्राप्त हो जाता है. 

इसके बाद जब भगवान ​श्री गणेश का विवाह हो जाने पर भगवान कार्तिकेय नाराज होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए.तब हुआ इस ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य होने कि 

मान्यता है. इस घटना के बाद उन्हें तमाम तरह से मनाने की कोशिश की गई लेकिन वे नहीं माने. इसके बाद जब तब माता पार्वती और भगवान शिव उनसे मिलने के लिए क्रोंच पर्वत पहुंचे तो इसकी जानकारी पाते ही वे भगवान कार्तिकेय और दूर चले गए. अंतत: भगवान शिव माता पार्वती के साथ उसी स्थान पर ज्योति स्वरूप धारण कर विराजमान हो गए. तब से यह पावन धाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.

मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास


मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास इस क्षेत्र के ऐतिहासिक विकास के साथ जुड़ा हुआ है.हालांकि सटीक तिथियों को निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि वर्तमान मंदिर के स्वरूप कि उत्पत्ति एक हज़ार साल से भी पहले की है. चालुक्य राजवंश, जो कला और वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाना जाता है, ने मंदिर के शुरुआती विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

मंदिर की स्थापत्य शैली में चालुक्यों का प्रभाव स्पष्ट है, जिसकी विशेषता जटिल नक्काशी, अलंकृत स्तंभ और विभिन्न कलात्मक तत्वों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण है.सदियों से, मंदिर काकतीयों और विजयनगर साम्राज्य सहित विभिन्न राजवंशों के शासन के दौरान जीर्णोद्धार और विस्तार हुआ.

पाताल गंगा को लेकर किंवदंती


मंदिर के पास स्थित पवित्र जल निकाय पाताल गंगा के बारे में एक और रोचक कथा प्रचलित है। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, पाताल गंगा पवित्र गंगा नदी से जुड़ी हुई है, और इसके जल में डुबकी लगाने से आत्मा के पापों से मुक्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि गौतम की तपस्या से अभिभूत होकर गंगा नदी स्वयं धरती में समा गई और पाताल गंगा के रूप में मल्लिकार्जुन मंदिर में प्रकट हुई।

मल्लिकार्जुन मंदिर में महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, यह पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इस शुभ रात्रि पर भगवान शिव और देवी पार्वती अपनी दिव्य उपस्थिति से मंदिर को सुशोभित करते हैं, और भक्त मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा के दिव्य विवाह को देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं.

निष्कर्ष


मल्लिकार्जुन मंदिर सिर्फ़ एक भौतिक इमारत नहीं है, बल्कि इतिहास, पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों का जीवंत अवतार है। इसकी वास्तुकला पुराने राजवंशों की कहानियाँ बयान करती है, इसकी पौराणिक कथाएँ देवी-देवताओं के लौकिक नृत्य को बुनती हैं और इसकी किंवदंतियाँ विनम्र भक्तों की भक्ति को प्रतिध्वनित करती हैं। जैसे-जैसे तीर्थयात्री इस पवित्र निवास पर आते रहते हैं, मल्लिकार्जुन मंदिर भारत की स्थायी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक कालातीत प्रमाण बना हुआ है।

प्रेरक प्रसंग:जो होना है होकर रहेगा, जहाँ होना है वहीं होगा यह शाश्वत सत्य है!वह कैसे आइये एक राजा की कहानी से जानते हैं!

विनोद आनंद 

जो शाश्वत है, जो सत्य है वह होकर रहता है. आप उसे नहीं टाल सकते. होनी को कोई नहीं टाल सकता है. हर प्राणी को उस दौर से गुजरना होता है. जो लोग जन्म लेते हैं उनकी मौत निश्चित है.आप मौत से जितना भागोगे मौत होंगी हीं, इसी लिए जीवन के जो क्षण मिले उसे ज़ीओ, अच्छे कर्म करके जिओ...., किसी के तकलीफ से खुश होने की जरूरत नहीं.. किसी को सता कर लूटने की जरुरत नहीं, कुछ भी तुम्हारा अपना नहीं. खाली हाथ आये हो खाली जाओगे. यही शाश्वत सत्य है.

  यह कैसे आओ एक कहानी के द्वारा आप को बताने का कोशिश करता हुँ. यह कहानी सत्य है. ऐसा हुआ है.और होता रहेगा.

क्या है कहानी..?


एक राजा ने सपना देखा. रात को सपने में उसने मौत को देखा. वह डर गया. उसने पूछा, "क्या बात है? तुम मुझे इतना डरा क्यों रही हो?"

मौत ने कहा, "मैं तुम्हें यह बताने आई हूं कि कल सूर्यास्त तक मैं आ रही हूं, इसलिए तैयार हो जाओ. यह सिर्फ दया के कारण है ताकि तुम तैयार हो सको."

राजा को इतना झटका लगा, उसकी नींद टूट गई. 

आधी रात हो चुकी थी; उसने अपने मंत्रियों को बुलाया और उसने कहा, "ऐसे लोगों को खोजो जो सपने की व्याख्या कर सकें, क्योंकि समय कम है। हो सकता है कि यह सच हो!"

फिर व्याख्याकार आए, लेकिन जैसा कि व्याख्याकार हमेशा होते आए हैं, वे महान विद्वान थे. 

वे कई बड़ी-बड़ी किताबें लेकर आए, और उन्होंने चर्चा और विवाद और तर्क करना शुरू कर दिया। और सूरज उगने लगा, और सुबह हो गई.

और एक बूढ़ा आदमी जो राजा का बहुत भरोसेमंद नौकर था, वह राजा के पास आया, और उसने उसके कान में फुसफुसाया,-

 "मूर्ख मत बनो. ये लोग हमेशा-हमेशा के लिए झगड़ते रहेंगे, और वे कभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेंगे."

अब, हर कोई कोशिश कर रहा था कि उसकी व्याख्या सही हो, और राजा पहले से भी ज्यादा उलझन में था.

इसलिए उसने बूढ़े आदमी से पूछा, “तो मुझे क्या करना चाहिए?”

उसने कहा, - “उन्हें अपनी चर्चा जारी रखने दो. वे इतनी जल्दी समाप्त नहीं होने वाले हैं - और सूरज डूब जाएगा, क्योंकि एक बार उगने के बाद सूर्यास्त बहुत दूर नहीं है. बल्कि, मेरी सलाह मानो और भाग जाओ - कम से कम इस महल से भाग जाओ.

 कहीं और रहो! शाम तक जहां तक ​​संभव हो सके कहीं दूर पहुंच जाओ.”

राजा को तर्क सही लगा.

 राजा के पास बहुत तेज घोड़ा था, दुनिया का सबसे तेज. 

वह दौड़ा, वह भाग निकला. उसने सैकड़ों मील पार कर लिए.जब ​​तक वह एक निश्चित शहर में पहुंचा, सूरज बस डूबने ही वाला था. वह बहुत खुश था. 

उसने अपने घोड़े को थपथपाया और कहा, “तुमने अच्छा किया। हम बहुत दूर आ गए हैं.”

और जब वह अपने घोड़े को थपथपा रहा था, अचानक उसे लगा कि उसके पीछे कोई खड़ा है.

 उसने पीछे देखा - वही मौत की छाया. और मौत हंसने लगी. और राजा ने कहा, “क्या बात है? तुम क्यों हंस रहे हो?”

मृत्यु ने कहा, “मैं चिंतित थी क्योंकि तुम्हें इसी पेड़ के नीचे मरना था - और मुझे चिंता थी कि तुम कैसे पहुंचोगे.

तुम्हारा घोड़ा वास्तव में महान है! यह अच्छा रहा। मुझे भी अपने घोड़े को थपथपाने दो. 

इसीलिए मैं तुम्हारे सपने में आया था: मैं चाहता था कि तुम महल से भाग जाओ क्योंकि मैं बहुत चिंतित था कि यह कैसे होगा, तुम कैसे पहुँच पाओगे.

 जगह बहुत दूर लग रही थी, और केवल एक दिन बचा था। लेकिन तुम्हारे घोड़े ने अच्छा किया, तुम समय पर आ गए.”

तुम जहाँ भी जाओगे, तुम पाओगे कि मौत तुम्हारा इंतज़ार कर रही है। सभी दिशाओं में मौत इंतज़ार कर रही है.

 सभी जगहों पर मौत इंतज़ार कर रही है। इसलिए, इससे बचा नहीं जा सकता - तब मन इससे बचने का कोई तरीका सोचने लगता है.

यही सत्य है. यह कहानी यही बताता है की जो होना है होकर रहेगा. जो जहाँ होना है वहीँ होगा.

बहुतों के परिजन को किसी दुर्घटना में मौत होती है तो उसे अफ़सोस होता काश ये अगर घर से निकला नहीं होता तो उसकी मौत नहीं होती.

इंदिरा गाँधी को जब गोली लगी तो लोग सोच रहे थे सतबन्त व्यंत की ड्यूटी पीएम अवसर में नहीं होता तो उनकी हत्या नहीं होती. सच बात है. लेकिन दूसरी पहलू भी है हो सकता उनकी मौत उसी तरह लिखी हो. इसी लिए जिसकी मौत जहाँ जब लिखा हो उसी रूप में होंगी.

भारत का धार्मिक स्थल: 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ का अस्तित्व आक्रांताओं के हमले भी नहीं मिटा सके

 *  विनोद आनंद

सोमनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम होने के साथ अपने में कई कहानियां और संदेश समेटे हुए हैं. ये ज्योतिर्लिंग हिंदू आस्था का बड़ा केंद्र भी रहा है.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की ऊंचाई लगभग 155 फीट है. मंदिर के ऊपर एक कलश स्थापित है, जिसका वजन करीब 10 टन है. मंदिर में लहरा रहे ध्वज की ऊंचाई 27 फीट है.

शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंग कि बात करें जिसे शिव के प्राचीन और सिद्ध ज्योतिर्लिंग माना जाता है और उसका पौराणिक महत्व है तो यह 12 ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र (गुजरात) में सोमनाथ, शैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन, क्षिप्रा नदी के किनारे पर महाकालेश्वर, उज्जैन में ओंकारेश्वर या अमलेश्वर, झारखंड में वैद्यनाथ, नासिक में भीमशंकर, तमिलनाडु में रामेश्वरम, दारुकवन में नागेश्वर, वाराणसी में विश्वनाथ, गोदावरी तट पर त्र्यम्बेश्वर, उत्तराखंड में केदारनाथ, तथा औरंगाबाद में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर है.इन 12 ज्योतिर्लिंग में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की यहां चर्चा करते हैं और इन 12 ज्योतिर्लिंग कि फर्शन हम आप को स्ट्रीटबज्ज के सनातन पेज पर करम्बद्ध कराएँगे साथ हीं उस ज्योतिर्लिंग के महत्व, उसकी पौराणिक महत्व और उस से जुड़े इतिहास की जानकारी देंगे.

तो आइये सबसे पहले हम चर्चा करते हैं सोमनाथ मंदिर की.

सोमनाथ गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल स्थित प्रभास पाटन में समुद्र तट के किनारे स्थित एक भव्य मंदिर है। भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ भी है। सोमनाथ मंदिर का उल्लेख शिव पुराण के अध्याय 13 में भी किया गया है।

सोमनाथ मंदिर कहाँ है..?


सोमनाथ मंदिर ,गुजरात के जूनागढ़ से करीब 95 किमी की दूरी पर स्थित हैं.यह मंदिर अरब सागर के किनारे स्थित है. वैसे जूनागढ़ पर्यटन के तौर पर बहुत प्रसिद्ध है. यहां कई बौद्ध गुफाये ,महबत मकबरा ,गिरनार हिल ,स्वामी नारायण मंदिर ,संग्रहालय आदि है जो पर्यटकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.जहाँ घुमा जा सकता है.

सोमनाथ मंदिर से समुद्र के नज़ारे देखने पर आप आनंद से सरोबार हो जायेंगे.समुद्र और उसकी आगे पीछे आती लहरों की आवाज़ ,मानो शिव की पूजा में लीन ओँकार की ध्वनि हो.सोमनाथ अरब सागर के किनारे बसा हुआ ज्योतिर्लिंग हैं.

यहाँ से वेरावल बंदरगाह भी काफी नजदीक हैं ,जहाँ कई बड़ी बड़ी व्यापारिक जहाज आप देख सकते हैं।मंदिर परिसर के बाहर चारो तरफ कई सारी दुकाने हैं. जहाँ से दूर से ही यह मंदिर साफ़ नजर आता हैं. बाजार के पास से ही शुरू होते इस मंदिर के परिसर को चारो ओर लोहे की ऊँची ऊँची झालिया लगी हैं ,और इन्ही के साथ एक जगह प्रवेश द्वार हैं ,जहाँ से अंदर सिक्योरिटी द्वारा चेक करके अंदर भेजा जाता हैं.

मंदिर के बायीं ओर पत्थर के पथ के बीच समुद्र की ओर इशारा करते हुए एक बड़ा स्तम्भ भी बना हुआ हैं ,जो कि यहाँ के लिए एक बड़ा आकर्षण का केंद्र हैं. जिस पर कुछ श्लोक भी लिखा हुआ हैं. उस श्लोक का मतलब समझाया हुआ हैं कि - इस दिशा में अगर आप सीधे सीधे समुद्र की ओर जाओगे ,तो दक्षिण ध्रुव तक कोई भी भूखंड बीच में नहीं आएगा.

अर्थात पुरे रास्ते दक्षिण ध्रुव तक केवल समुद्र ही समुद्र मिलेगा. इसे बाण स्तम्भ कहते हैं. हालाँकि यह ज्यादा पुराना नहीं लगता हैं ,परन्तु यह स्तम्भ और श्लोक यहाँ पहले भी रहा होगा ,जिसे केवल नया बनवाया गया हैं. मतलब इस बात की जानकारी काफी प्राचीन समय से लोगो को थी.

सोमनाथ मंदिर को लेकर है पौराणिक कथा


सोमनाथ मंदिर का जिक्र ऋग्वेद में भी बताया जाता हैं जो कि सबसे पुराना वेद हैं.माना जाता हैं यह मंदिर हर युग में बनता आया हैं.सबसे पहले इस मंदिर के बनने की कहानी कुछ इस प्रकार बताई जाती हैं कि - दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों की शादी चंद्रदेव सोम का मतलब चंद्र होता हैं. से हुई जिनमे से एक ,'रोहिणी' से चंद्रदेव बहुत स्नेह करते थे. तो बाकी 26 बहनो ने यह शिकायत दक्ष प्रजापति से की ,जिन्होंने चंद्र को क्षय रोग होने का श्राप दिया.

चंद्र की शक्ति अब खत्म होने लग रही थी तो ब्रम्हा जी के कहने पर चंद्रदेव ने यहाँ शिव आराधना की और भगवान शिव ने यहाँ अवतरित होकर ,उनके श्राप मुक्त किया.

माना जाता हैं फिर चंद्रदेव ने यहाँ पहला सोमनाथ मंदिर स्वर्ण से बनवाया.दूसरी बार यह मंदिर रावण ने चांदी से बनवाया ,तीसरा श्री कृष्णा (द्वारका यहाँ नजदीक ही हैं )ने चन्दन से बनवाया था. इसके बाद यह मंदिर कई बार बनवाया गया.इस पर कई बार आक्रांताओं के आक्रमण और यहाँ नरसंहार भी हुए.लेकिन हर बार यह मंदिर वापस बनाया गया हैं.

आक्रांताओं के हमले और लूट के वाबजूद मंदिर का अस्तित्व और आस्था रहा क़ायम


 सोमनाथ मंदिर पर हमले की पहली कहानी एक यात्रा वृतांत (किताब उल हिन्द एवं तारीख उल हिन्द किताब )जो कि एक अरबी यात्री 'अलबरूनी ' ने लिखा था ,उस से शुरू होती हैं.

इस से वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान के ग़जनी इलाके के तुर्क आक्रांता एवं लूटेरे महमूद गजनवी को सोमनाथ की समृद्धि एवं हवा में तैरते (मैग्नेटिक फिल्ड की वजह से )शिवलिंग के बारे में पता चला. 1026 ईसवी में अब वह इसे लूटने के लिए भारत पर अपना 16वा हमला करने को निकला,मतलब वो पहले भी भारत में 15 बार हमले कर चूका था। जिसमे कन्नौज पर आक्रमण एवं यह सोमनाथ पर आक्रमण सबसे भीषण था. करीब 30000 सैनिको की फौज लिए उसने भारत में प्रवेश किया तो कई जगह उसका रास्तों के छोटे बड़े राज्यों से सामना हुआ। परन्तु वो आगे बढ़ता गया,मंदिर के पास करीब 5000 राजपूत इसकी हिफाज़त के लिए ग़जनवी की सेना से भिड़े परन्तु ग़जनवी आखिरकार मंदिर में पहुंचने में सफल हुआ.

उसने यहाँ से अपार सम्पति लूटी ,शिवलिंग को तहस नहस कर दिया और बहुत ही भीषण नरसंहार किया. कहा जाता हैं कि वह सोमनाथ के दरवाजे से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें भी अपने साथ ग़जनी ले गया और उन्हें अपनी क़ब्र पर लगवाने की इच्छा रखी हुई थी. हालाँकि 1842 में जब अंग्रेजो ने किसी हिन्दू मुस्लिम मुद्दे के तहत ग़जनी स्थित उसकी कब्र से दरवाजे उखाड़ कर वापस भारत लाये तो पता चला कि उसकी कब्र पर सोमनाथ मंदिर वाले दरवाजे नहीं लगे थे. ये कब्र वाले दरवाजे अभी भी आगरा के लाल किले में रखे हुए हैं.

लेकिन कुछ सालों बाद गुजरात के राजा भीमदेव एवं मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को पुनः बनवा दिया. उसके बाद 1297 में अलाउदीन खिलजी के सेनापति 'अफ़ज़ल ' का इस जगह आना हुआ तो उसने खिलजी को इस मंदिर के बारे में बताया. 

खिलजी ने इसपर आक्रमण कर इसे फिर ध्वंस्त कर दिया और नरसंहार किया. स्थानीय लोगो ने फिर इस मंदिर को वापस बनवा दिया. 

100 साल के अंदर अंदर फिर ,गुजरात के राजा मुजफ्फरशाह ने यहा हमला कर नष्ट किया.

और 1412 मे मुजफ्फरशाह के बेटे ने भी इस मंदिर को तुड़वा दिया. यह मंदिर जितनी बार आक्रांताओं द्वारा तोडा गया ,हमारी आस्थाओं ने इसे फिर से और ज्यादा मजबूती के साथ इसे फिर से खड़ा कर दिया. 

1665 में औरंगजेब ने भी इसे तुड़वाया तो लोगों ने टूटे हुए मंदिर के खंडहर पर ही पूजा पाठ करना चालू कर दिया. औरंगजेब इस चीज से इतना चिढ़ा कि उसने खंडहर पर पूजा पाठ करते लोगो को भी मारने के लिए सेना भेज दी और नरसंहार करवा दिया. तो इस प्रकार यह मंदिर कई बार ऐसे हमले झेलता रहा और फिर खड़ा होता रहा.

सोमनाथ हमले का बदला लेकर गोगादेव जी ने किया वीरगति प्राप्त


जब गजनवी सोमनाथ हमले के लिए रेगिस्तानी इलाके में प्रवेश हुआ तो वहा के शासक गोगाजी के पराक्रम की गाथाये उसने सुनी थी. गोगाजी भी उधर अपने आराध्य देव शिव की रक्षा के लिए गजनवी से भिड़ने को तैयार थे.लेकिन गजनवी ने उनके पराक्रम की वजह से 3 बार उनके पास दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया और हीरों के थाल उनके लिए भेजे. लेकिन गोगाजी ने उन थालो को फेक कर उसे युद्ध के लिए तैयार रहने का संदेश भिजवा दिया. लेकिन गजनवी इस युद्ध से बचने के लिए रास्ता बदल कर सोमनाथ की तरफ बढ़ गया.लेकिन गोगाजी ने आगे आने वाले राज्यों के राजाओं को सचेत कर दिया था. फिर भी सोमनाथ में लूट मचा जब वो वापस जाने को इसी रेगिस्तानी रास्ते से आया तो अब वो गोगाजी से मुकाबला करने की तैयारी में था. उधर गोगाजी ने भी पडोसी राज्यों के राजाओं को मदद के लिए आने का सन्देश भेज दिया था. गजनवी ने चालाकी दिखाई और निर्धारित दिन से कुछ दिन पहले ही अचानक गोगाजी के राज्य पहुंच हमला बोल दिया. गोगाजी के पास उस समय मात्र 1000 राजपूत सैनिक थे. कोई पडोसी मदद को ना पहुंच सके. करीब 80 वर्ष की उम्र के गोगाजी महाराज अपने 82 पुत्र,प्रपोत्र के साथ वीर गति प्राप्त हो गए. इसके बाद उनकी रानियों ने जोहर कर लिया. इनके 2 पुत्र जान बचाकर ,भेष बदल कर उसकी सेना मैं भी शामिल हुए. इन दोनों ने रेगिस्तान के भीषण गर्मी के इलाकों में उन्हें रास्ता भटकवा दिया.जिस से गजनवी के कई हज़ारो सैनिक मारे गए ,लेकिन उनके साथ साथ ये दोनों भी उन इलाकों में खुद को बचा ना पाए.

जहाँ गोगाजी महाराज वीरगति प्राप्त हुए उसी के पास एक जगह पर उनका एक मंदिर बनवाया गया ,जिसे गोगामेड़ी तीर्थ बोला जाता हैं. उनके वंश के जो राजपूत सैनिक बाद में मुस्लिम धर्म अपना चुके थे ,वे भी इन्हे आज काफी मानते हैं ,वो इन्हे गोगापीर के नाम से पुकारते हैं

 यह जगह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर मैं स्थित हैं.यहाँ हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोग पूजा करते हैं एवं चढ़ावे में प्याज चढ़ाते हैं.

आज़ादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कराया मंदिर का पुनरुद्धार


भारत को आजाद होने के बाद 1947 -48 में जूनागढ़ रियासत के नवाब चाहते थे कि यह क्षेत्र पाकिस्तान में मिल जाए. तब सरदार वल्लभ भाई पटेल की सूझबूझ से इसे भारत में ही रखा गया. फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यहाँ स्थित सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार का प्रण लिया एवं इसकी जिम्मेदारी श्री के. एम . मुंशी जी को दी. मंदिर का निर्माण कार्य चालू हुआ जिसमे सरकारी धन का इस्तेमाल बिलकुल नहीं हुआ क्योकि नेहरू जी नहीं चाहते थे कि भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में किसी भी एक धर्म के काम में कोई राजनितिक योगदान हो. वल्लभ भाई पटेल का देहांत तो 1950 में ही हो गया था।1951 तक अब मंदिर बन चूका था एवं 11 मई 1951 को मंदिर को बड़े स्तर पर सभी के लिए खोलने की तैयारी के लिए कार्यक्रम किया गया जिसमे आने के लिए नेहरू जी ने साफ़ साफ़ मना कर दिया. डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने यहाँ आने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया. नेहरू जी ने उन्हें खत लिखकर उनके इस कार्यक्रम में शामिल होने को देश के लिए एक धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गतिविधि बताया एवं उन्हें भी उस दिन मंदिर जाने से मना किया. लेकिन डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने जी उनकी बात ठुकरा कर ना केवल वहा गए ,बल्कि काफी अच्छा भाषण भी दिया.तब से नेहरू जी की नाराजगी भी उनके लिए बढ़ गयी थी.

वर्तमान का सोमनाथ मंदिर सरदार वल्लभ भाई पटेल ,K. M. मुंशी जी एवं डॉ.राजेंद्र प्रसाद के ही सहयोग से सीना ताने अरब सागर के किनारे खड़ा हैं। सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट ,मंदिर विकास के लिए काफी प्रोजेक्ट्स पर भी काम करता हैं। वर्तमान में सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं।

मंदिर के एवं इसके आसपास के क्षेत्र के नीचे दबा हैं कई रहस्य -


कुछ ही महीने पहले IIT गांधीनगर एवं पुरातत्व विभाग की इस जमींन पर अध्यन की एक 32 पेज की रिपोर्ट सामने आयी.जिसमे यह बताया गया कि मन्दिर परिसर की 4 जगहों के नीचे कुछ इमारते एवं गुफाये स्थित हैं. GPR तकनीक के तहत उन्होंने पता लगाया हैं कि जमीन में 2 से 7 मीटर तक अंदर कुछ तीन मंजिला भवन बने हुए हैं. इन चार जगहों में मंदिर का मुख्य द्वार एवं सरदार पटेल की मूर्ति वाली जगह भी शामिल हैं.सरदार पटेल की मूर्ति के निचे कुछ गुफाये होने के बारे में बताया जा रहा हैं. इस रिपोर्ट पर आगे जांच करने के आदेश को अब हरी झंडी मिल गयी हैं ,जिसके अगले भाग में खुदाई करके इन चीजों का पता लगाया जायेगा.

आज का पंचांग, 2 जुलाई 2024:जानिये पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

राष्ट्रीय मिति आषाढ़ 11, शक सम्वत् 1946, आषाढ़, कृष्णा, एकादशी, मंगलवार, विक्रम सम्वत् 2081।

 सौर आषाढ़ मास प्रविष्टे 19, जिल्हिजा 25, हिजरी 1445 (मुस्लिम) तदनुसार अंगे्रजी तारीख 02 जुलाई सन् 2024 ई। 

सूर्य दक्षिणायन, उत्तर गोल, वर्षा ऋतु। राहुकाल अपराह्न 03 बजे से 04 बजकर 30 मिनट तक।

एकादशी तिथि प्रातः 08 बजकर 43 मिनट तक उपरांत द्वादशी तिथि का आरंभ।

 कृतिका नक्षत्र अगले दिन तड़के 04 बजकर 40 मिनट तक उपरांत रोहिणी नक्षत्र का आरंभ। 

धृतिमान योग पूर्वाह्न 11 बजकर 17 मिनट तक उपरांत शूल योग का आरंभ।

 बालव करण प्रातः 08 बजकर 43 मिनट तक उपरांत तैतिल करण का आरंभ। 

चन्द्रमा पूर्वाह्न 11 बजकर 14 मिनट तक मेष उपरांत वृष राशि पर संचार करेगा।

आज के व्रत त्योहार योगिनी एकादशी व्रत, सर्वार्थ सिद्धि योग।

सूर्योदय का समय 2 जुलाई 2024 : सुबह 5 बजकर 27 मिनट पर।

सूर्यास्त का समय 2 जुलाई 2024 : शाम में 7 बजकर 23 मिनट पर।

आज का शुभ मुहूर्त 2 जुलाई 2024 :

ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 7 मिनट से 4 बजकर 47 मिनट तक। 

विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 45 मिनट से 3 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।

 निशिथ काल मध्‍यरात्रि रात में 12 बजकर 5 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक। 

गोधूलि बेला शाम 7 बजकर 22 मिनट से 7 बजकर 42 मिनट तक। 

अमृत काल सुबह 10 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 25 मिनट तक।

आज का अशुभ मुहूर्त 2 जुलाई 2024 :

राहुकाल दोपहर में 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक। 

दोपहर में 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल। सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक यमगंड। 

दुर्मुहूर्त काल सुबह 8 बजकर 14 मिनट से 9 बजकर 10 मिनट तक। 

इसके बाद 11 बजकर 25 मिनट से 12 बजकर 5 मिनट तक।

उपाय : आज हनुमानजी को चोला चढ़ाएं और बजरंग बाण का पाठ करें।

आज का राशिफल, 2जुलाई 2024:जानिये राशिफल के अनुसार आज आप का दिन कैसा रहेगा...?

मेष राशि- स्वास्थ्य की स्थिति पहले से बेहतर होगी। धन का आवक बढ़ेगा। प्रेम की स्थिति सुदृढ़ होगी। बच्चों की सेहत में सुधार होगा। व्यापार बहुत अच्छा रहेगा। पीली वस्तु पास रखें।

वृषभ राशि- चली आ रही परेशानी दूर होगी। स्वास्थ्य पहले से बेहतर होगा। प्रेम-संतान का साथ होगा। व्यापार भी बहुत अच्छा। पीली वस्तु का दान करें।

मिथुन राशि- खर्च की अधिकता मन को परेशान करेगी। स्वास्थ्य थोड़ा नरम-गरम रहेगा। प्रेम संतान ठीक रहेगा, व्यापार भी अच्छा है। पीली वस्तु का दान करें।

कर्क राशि- रुका हुआ धन वापस आएगा। आय के नवीन साधन बनेंगे। शुभ समाचार की प्राप्ति होगी। आय में सुधार होगा। प्रेम-संतान, व्यापार सब कुछ बहुत अच्छा है। लाल वस्तु पास रखें।

सिंह राशि- व्यापारिक स्थिति सुदृढ़ होगी। कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगी। स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम-संतान अच्छा है। व्यापार बहुत अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कन्या राशि- भाग्य साथ देगा। यात्रा में लाभ होगा। धर्म-कर्म में हिस्सा लेंगे। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम, संतान, व्यापार सबकुछ बहुत अच्छा है। पीली वस्तु का दान करें।

तुला राशि- महत्वपूर्ण कार्य दोपहर से पहले निपटा लें, इसके बाद समय खराब हो जाएगा। चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाएंगी। स्वास्थ्य मध्यम, प्रेम-संतान अच्छा। व्यापार ठीक ठाक रहेगा। भगवान विष्णु को प्रणाम करते रहें।

वृश्चिक राशि- जीवनसाथी का भरपूर सहयोग मिलेगा। रोजी-रोजगार में तरक्की करेंगे। नौकरी-चाकरी की स्थिति अच्छी रहेगी। प्रेमी-प्रेमिका की मुलाकात हो सकती है और शादी-ब्याह तय हो सकता है। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। पीली वस्तु पास रखें।

धनु राशि- शत्रुओं पर विजय पाएंगे। स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम संतान की स्थिति अच्छी है। व्यापार अच्छा है। लेकिन थोड़ी परेशानी बनी रहेगी। पीली वस्तु पास रखें।

मकर राशि- भावुकता पर काबू रखें। स्वास्थ्य करीब-करीब ठीक है। प्रेम संतान की स्थिति थोड़ी मध्यम रहेगी लेकिन खराब नहीं रहेगी। व्यापार अच्छा रहेगा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कुंभ राशि- भौतिक सुख-संपदा में वृद्धि होगी। प्रेम कलह के संकेत हैं लेकिन कुछ अच्छा माहौल भी रहेगा। भूमि, भवन व वाहन की खरीदारी हो सकती है। स्वास्थ्य ठीक ठाक है, प्रेम संतान अच्छा। व्यापार अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

मीन राशि- व्यापारिक स्थिति सुदृढ़ होगी। अपनों का साथ होगा। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम संतान का साथ। व्यापार बहुत अच्छा। पीली वस्तु पास रखें।