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*झटकों से उबर नहीं पा रही कांग्रेस, अब गौरव वल्लभ ने दिया पार्टी से इस्तीफा, बोले-सनातन विरोधी नारे नहीं लगा सकता*
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लोकसभा चुनाव की तैयारियां पूरे जोर-शोर से चल रही है। हालांकि, इस बीच कांग्रेस किसी डूबते हुए नाव की तरह दिख रही है। जिसपर सवार एक-एक कर उससे उतरते जा रहे हैं। कांग्रेस को एक-एक कर लगातार बड़े झटके लग रहे हैं। पार्टी के बड़े चेहरे ही हाथ को झटक रहे हैं। कांग्रेस का हाथ छोड़ने वालों में एक और नाम जुड़ गया है। कांग्रेस के तेज तर्रार प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।गौरव वल्लभ ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है।गौरव वल्लभ ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए कहा कि वो सनातन विरोधी नारे नहीं लगा सकते। ऐसे में पार्टी में बना रहना मुश्किल है। *’मैं सहज महसूस नहीं कर पा रहा’* गौरव वल्लभ ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अपना त्यागपत्र भेज दिया है। खरगे को भेजे इस्तीफे की फोटो शेयर पोस्ट कर लिखा -'कांग्रेस पार्टी आज जिस प्रकार से दिशाहीन होकर आगे बढ़ रही है, उसमें मैं ख़ुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहा। मैं ना तो सनातन विरोधी नारे लगा सकता हूं और ना ही सुबह-शाम देश के वेल्थ क्रिएटर्स को गाली दे सकता। इसलिए मैं कांग्रेस पार्टी के सभी पदों व प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे रहा हूं।' *‘सच को छुपाना भी अपराध, मैं भागी नहीं बनना चाहता’* उन्होंने खरगे को भेजे इस्तीफा लेटर में लिखा कि भावुक हूं और मन व्यथित है। काफी कुछ कहना चाहता हूं, लिखना चाहता हूं और बताना चाहता हूं। लेकिन मेरे संस्कार ऐसा कुछ भी कहने से मना करते हैं। फिर भी मैं आज अपनी बातों को आपके समक्ष रख रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि सच को छुपाना भी अपराध है। ऐसे में मैं अपराध का भागी नहीं बनना चाहता। *‘कांग्रेस पार्टी में युवाओं और आइडिया का कद्र नहीं‘* गौरव वल्लभ ने कहा-‘जब मैंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन किया, तब मेरा मानना था कि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, जहां पर युवा, बौद्धिक लोगों की, उनके आइडिया की कद्र होती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में महसूस हुआ कि पार्टी का मौजूदा स्वरूप नए आइडिया वाले युवाओं के साथ खुद को एडजस्ट नहीं कर पाती। पार्टी का ग्राउंड लेवल कनेक्ट पूरी तरह से टूट चुका है, जो नए भारत की आकांक्षा को बिल्कुल भी नहीं समझ पा रही है, जिसके कारण न तो पार्टी में आ पा रही है और ना ही मजबूत विपक्ष की भूमिका ही निभा पा रही हैं। इससे मेरे जैसे कार्यकर्ता हतोत्साहित होता है। *‘बड़े नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं से बढ़ी दूरी’* गौरव वल्लभ ने कहा, ‘कांग्रेस का ग्राउंड लेवल कनेक्ट पूरी तरह से टूट चुका है। बड़े नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच की दूरी पाटना बेहद कठिन है। उन्होंने अयोध्या में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस के कदम को लेकर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा में कांग्रेस के स्टैंड से क्षुब्ध हूं। मैं जन्म से हिंदू और कर्म से शिक्षक हूं। पार्टी के इस स्टैंड ने मुझे हमेशा असहज किया है। पार्टी और गठबंधन के कई लोग सनातन विरोधी बोलते हैं और पार्टी का चुप रहना उसे मौन स्वीकृति देने जैसा है।
संजय निरूपम पर कांग्रेस का एक्शन, 6 साल के लिए पार्टी से निकाला, जानें अब क्या हो सकता है अगला कदम*
#sanjay_nirupam_removed_from_congress_expelled_by_party_for_6_years कांग्रेस ने महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता संजय निरुपम को छह साल तक के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण कार्रवाई की गई है। पिछले काफी दिनों से वह लगातार पार्टी विरोधी बयानबाजी भी कर रहे थे। जिसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने निरुपम को छह साल तक के लिए पार्टी से निष्कासित किया है। संजय निरुपम मुंबई पश्चिम की सीट पर उद्धव ठाकरे की ओर से अमोल कीर्तिकार को टिकट दिए जाने के बाद से संजय कांग्रेस पर भड़के हुए थे और लगातार पार्टी के विरोध में बयानबाजी कर रहे थे। इसके अलावा वह अमोल पर भी लगातार निशाना साध रहे थे। इसके बाद से ही माना जा रहा था कि या तो निरुपम कांग्रेस को छोड़ सकते हैं या फिर कांग्रेस उन पर कोई कार्रवाई कर सकती है। बुधवार दोपहर कांग्रेस ने स्टार प्रचारकों की सूची से निरुपम को बाहर कर इसके संकेत भी दिए थे। कांग्रेस से निष्कासित नेता संजय निरुपम ने पार्टी की कार्रवाई को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'ऐसा लगता है कि पार्टी ने कल रात मेरा इस्तीफा पत्र मिलने के तुरंत बाद मेरा निष्कासन जारी करने का फैसला किया। इतनी तत्परता देखकर अच्छा लगा। बस यह जानकारी साझा कर रहा हूं। मैं आज सुबह 11.30 से दोपहर 12 बजे के बीच एक विस्तृत बयान दूंगा। *निरूपम ने बायो और कवर फोटो बदला* कांग्रेस से निष्कासित किए जाने के बाद संजय निरुपम ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर अपना बायो बदलकर कर अपनी कवर फोटो भी हटा दी है। इसके अलावा निरुपम ने नई प्रोफाइल पिक भी अपलोड कर दी है। अभी तक संजय निरुपम अपनी कवर फोटो और प्रोफाइल पिक में राहुल गांधी के साथ नजर आ रहे थे। संजय निरुपम ने पहले अपने प्रोफाइल में खुद को ‘ए कांग्रेस मैन’ लिखा था और अब उन्होंने यह भी हटा लिया है। *निरुपम का अगला कदम क्या होगा?* अब जब पार्टी ने निरूपम को निकाल दिया है तब सवाल खड़ा हो है कि संजय निरुपम का अगला कदम क्या होगा? संजय निरुपम शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में आए थे। मुंबई नार्थ वेस्ट से लड़ने के इच्छुक संजय निरुपम के पास काफी सीमित विकल्प है। उनके बीजेपी में जाने की आसार बेहद कदम है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि संजय निरुपम मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना में शामिल हो सकते हैं। ऐसे में अगर वे शिवसेना में प्रवेश लेते हैं तो इसे घरवापसी के तौर पर पेश कर सकेंगे। अगर संजय निरुपम की शिवसेना से डील फिक्स होती है तो फिर मुंबई नार्थ वेस्ट सीट से उद्धव ठाकरे गुट ग्रुप के कैंडिडेट अमोल कीर्तिकर के सामने उतर सकते हैं। शिवसेना काफी समय से इस सीट के मजबूत कैंडिडेट की खोजबीन में जुटी हुई थी। ऐसे में अगर निरुपम पर दांव ठीक बैठता है तो नार्थ वेस्ट सीट पर निरुपम बना कीर्तिकर की लड़ाई संभव है, हालांकि इसमें एक पेच यह है कि मुख्यमंत्री शिंदे पहले से अपने 13 सांसदों को एडजस्ट नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में वह अगर निरुपम को पार्टी में लेते हैं तो विरोध बढ़ सकता है।
कृष्ण की नगरी मथुरा में है जाटों का दबदबा, जिसने उन्हें साधा, उसने जीता “रण”

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कृष्ण की नगरी कही जाती है “जाट लैण्ड”

मथुरा में 18 लाख से ज्यादा हैं मतदाता

मथुरा की राजनीति जाटों का दबदबा

सबसे अधिक साढ़े चार लाख जाट वोटर्स

जाट वोटरों के इर्दगिर्द बुने जाते रहे सियासी समीकरण

16 बार जाट जाति के प्रत्याशी ने जीता चुनाव

“जाट लैण्ड” में अब तक कोई स्थानीय जाट नेता उभरा

भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा को भी राजनीतिक रूप से अहम माना जाता है। धर्म नगरी होने की वजह से मथुरा जिले पर सभी की नजर रहती है। इन दिनों श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के कारण मथुरा सुर्खियों में बना हुआ है। ऐसे में स्वाभाविक हैं, इस सीट पर भी धर्म और जाति का प्रभाव चुनावों में अपना असर जरूर दिखाता है। ऐसे में सबसे पहले हम यह जानते हैं कि आखिर मथुरा की राजनीति में किन जातियों का दबदबा है। यहां के सियासतदानों की किस्मत कौन तय करते हैं। मथुरा लोकसभा सीट पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आती है। इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटरों का दबदबा माना जाता है। कहा जाता है कि 2014 में इस सीट के जाट और मुस्लिम वोट अलग-अलग बंट गए थे, जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला। 

मथुरा सीट के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें

मथुरा लोकसभा के अंतर्गत मथुरा जिले की पांच विधानसभा – छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा एवं बलदेव (सु.) आती हैं। मथुरा लोकसभा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली पांच विधानसभा में से चार विधानसभा सीटों पर वर्तमान में बीजेपी का कब्जा है। 

सीट का जातीय समीकरण

आंकड़ों के मुताबिक मथुरा में 18 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। मथुरा लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक साढ़े चार लाख जाट वोट है। ऐसे में हर राजनीतिक दल की नजर जाट वोट बैंक पर टिकी है। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण मतदाता हैं। ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या लगभग तीन लाख के आसपास है। ठाकुर मतदाताओं की संख्या भी लगभग 3 लाख है। जाटव मतदाता करीब डेढ़ लाख हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी करीब डेढ़ लाख के बराबर है। वैश्य मतदाता की बात करें तो मथुरा लोकसभा सीट पर करीब एक लाख हैं। यादव मतदाताओं की संख्या करीब 70 हजार है। अन्य जातियों के करीब एक लाख वोटर हैं

अब तक 16 बार जाट जाति के प्रत्याशी ने चुनाव जीता

लोकसभा के लिए हुए चुनाव में मथुरा लोकसभा सीट से 16 बार जाट जाति का प्रत्याशी चुनाव जीता है। तीन बार मानवेन्द्र सिंह और एक बार चकलेश्वर सिंह चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे। ये दोनों ठाकुर जाति से आते हैं। 1991 में साक्षी महाराज भी मथुरा से चुनाव जीते हैं, जो लोधी राजपूत हैं। ब्राह्मण, वैश्य अथवा किसी दूसरी जाति के प्रत्याशी को कभी मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव जीतने का सौभाग्य नहीं मिला है। यही वजह है कि मथुरा लोकसभा सीट को जाट लैण्ड कहा जाता है। यहां से चुनाव कोई भी पार्टी जीते लेकिन राजनीतिक दलों के समीकरण जाट वोटरों के इर्दगिर्द ही बुने जाते रहे हैं।

कोई स्थानीय जाट नेता नहीं उभरा

इतना सबकुछ होने के बाद भी लम्बे समय से यहां से कोई स्थानीय जाट नेता उभर कर नहीं आ पाया है। इसकी एक वजह यह भी रही है कि रालोद जाट वोटरों पर अपना हक समझता रहा है। रालोद अक्सर यह मानकार चलता रहा है कि उसे जाट वोट तो मिलेंगे ही इसलिए जातीय समीकरण साधने के लिए वह दूसरी जाति के प्रत्याशी पर दांव आजमाता रहा है। रालोद के पास दूसरा विकल्प अपने परिवार के किसी सदस्य को इस सीट पर लोकसभा पहुंचाने का रहा है। यही वजह है कि 2009 में जयंत चैधरी यहां से चुनाव लड़े और जीत कर लोकसभा पहुंचे। इससे पहले उनकी बुआ ज्ञानवती भी मथुरा लोकसभा सीट से भाग्य अजमा चुकी थीं लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई थी। चौधरी परिवार की काट निकालने के लिए 2014 में भाजपा ने हेमा मालिनी को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र की पत्नी के नाते जाट होने का दावा किया और जीत कर लोकसभा पहुंची।

पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की राहें जुदा, महबूबा मुफ्ती की पार्टी घाटी की सभी 3 लोकसभा सीटों पर लड़ेगी चुनाव

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लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग में कुछ ही दिन बाकी है और उससे पहले जम्मू- कश्मीर भी उस सूची में शामिल हो गया है जहां इंडिया गठबंधन के सहयोगी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कश्मीर में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी कश्मीर की तीनों सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। इसके लिए मंथन चल रहा है। एक से दो दिन में प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की जाएगी।

दरअसल, जब नेशनल कॉन्फ्रेंस ने लोकसभा चुनाव को लेकर अपने उम्मीदवारों की घोषणा करनी शुरू कर दी। इस पर महबूबा मुफ्ती ने भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। पीडीपी मुखिया नेशनल कॉन्फ्रेंस के फैसले से आहत हैं। उन्होंने अपना दर्द भी बयां किया है। महबूबा ने कहा, उमर अब्दुल्ला के रवैये से मैं और मेरी पार्टी के कार्यकर्ता आहत हैं। आहत कार्यकर्ताओं से नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन देने की बात कैसे कहूं। हमारे बीच इंडिया गठबंधन में फारूक अब्दुल्ला वरिष्ठ नेता थे। वो कॉल करके बता सकते थे कि वो खुद चुनाव लडेंगे। हमने निर्णय लिया है कि हम लोकसभा चुनाव लडेंगे।

मुफ्ती ने कहा, उमर अब्दुल्ला ने पार्टी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के साथ हुई बातचीत का भी अनादर किया और पीडीपी पर यह आरोप लगाया कि पार्टी का कोई वजूद नहीं। ऐसे में नेशनल कॉन्फ्रेंस की तरफ हाथ बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। अब नेशनल कांफ्रेंस की तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। पीडीपी सभी तीन सीटों पर चुनाव लड़ेगी लेकिन जम्मू की दो सीट पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। 

दरअसल, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस देश स्तर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा हैं और प्रदेश स्तर पर ‘पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’ यानी पीएजीडी में साथ हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले ही एलान कर चुकी है कि जम्मू कश्मीर की पांच सीटों में से तीन पर उम्मीदवार उतारेगी, जो कश्मीर घाटी में आती हैं। इनमें अनंतनाग-राजोरी, श्रीनगर, बारामुला सीट शामिल है।नेकां ने जम्मू संभाग की दो लोकसभा सीटों को कांग्रेस को समर्थन दिया है। कांग्रेस ने जम्मू में रमण भल्ला और उधमपुर में चौधरी लाल सिंह को मैदान में उतारा है। मंगलवार को फारूक अब्दुल्ला रमण भल्ला के नामांकन के दौरान जम्मू पहुंचे थे। सोमवार को उमर अब्दुल्ला ने अनंतनाग-राजोरी सीट से अपने पहले उम्मीदवार मियां अल्ताफ के नाम की घोषणा कर दी है।

जम्मू कश्मीर ही नहीं विपक्षी दलों का गठबंधन 'इंडिया' में दूसरे राज्यों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। बंगाल और पंजाब में पहले ही इंडिया गठबंधन के बीच बात नहीं बनी। इंडिया गठबंधन में शामिल दल यहां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। बिहार में सीट बंटवारे के ऐलान के बाद भी सब कुछ ठीक नहीं। भले ही बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) 26 और कांग्रेस 9, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) तीन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) एक-एक सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है लेकिन पूर्णिया सीट सीट ने पूरे बिहार में महागठबंधन की टेंशन बढ़ा दी है। घोषणा के अनुसार, कांग्रेस को पूर्णिया लोकसभा छोड़ने के लिए मजबूर किया गया जहां से पप्पू यादव को चुनाव लड़ने की उम्मीद थी। पप्पू यादव ने दावा किया है कि उन्हें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कांग्रेस से टिकट मिलने का आश्वासन दिया था। पूर्णिया सीट से बीमा भारती को उम्मीदवार बनाया है जिन्होंने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। वहीं पप्पू यादव अब भी अपनी जिद पर कायम हैं और कहा है कि मर जाएंगे लेकिन पूर्णिया नहीं छोड़ेंगे।

वहीं यूपी जैसे बड़े राज्य में एक नया गठबंधन बनने से 'इंडिया' गठबंधन की चुनौती और भी बढ़ गई है। 'इंडिया' गठबंधन से अलग होकर अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल ने एक नया गठबंधन बनाया है। अपना दल (कमेरावादी) और मजलिस ए इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के बीच नया गठबंधन बना है।

गले में पट्टी बांधकर जान की भीख मांग रहे अपराधी’, आगरा में सपा-बसपा पर जमकर बरसे CM योगी

यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ ने बुधवार को फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र के शमसाबाद में आयोजित जन चौपाल को संबोधि‍त करते हुए व‍िपक्ष पर जमकर हमला बोला। सीएम योगी ने कहा क‍ि देश में वर्तमान में जो चुनावी लड़ाई चल रही है वह स्पष्ट दिखाई दे रही है। एक तरफ फैमिली फर्स्‍ट वाले लोग हैं, दूसरी ओर नेशन फर्स्‍ट वाले हैं। एक तरह देश के संशाधनों पर डकैती डालने वाले हैं और दूसरी ओर 140 करोड़ भारतीयों को अपना मानने वाले।

सीएम योगी ने कहा क‍ि एक तरफ तुष्टिकरण वाले लोग हैं, पर्व नहीं मनने देते थे। दूसरी ओर मोदी के नेतृत्व में कांवड यात्रा ही सुरक्षित नहीं निकल रही, अयोध्या में प्रभु राम विराज रहे हैं। जो जातिवाद के नाम पर बांट रहे हैं, वे कभी अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर बना पाते क्या? गरीबों को राशन रसोई गैस का कनैक्शन दे पाते? बेटी और व्यापारी को सुरक्षा भाजपा ने दिया।

 

सीएम ने कहा, सीकरी क्षेत्र में पहले सूर्यास्त होने के बाद थानों में भी ताले लग जाते थे। यह किसी से छिपा नहीं है।अब ज्यादातर अपराधी जेल में हैं। बहुत से गले में पट्टी डालकर जान बख्शने की भीख मांग रहे हैं। यह कानून का भय अगर माफिया और अपराधी में न हो तो ये गरीबों का जीना हराम कर देंगे, इसीलिए उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में सपा और बसपा की दंगा पालिसी झेली थी, अब यह बर्दाश्‍त नहीं होगा। अब उत्सव होगा। इसीलिए हम आए हैं।

सीएम योगी ने कहा, यह प्रदेश अब मोदी जी की गारंटी पर विश्वास करता है। मोदी जी की गारंटी वही है, जहां पर 12 करोड़ किसानों को किसान सम्मान निधि, चार करोड़ गरीबों को आवास, 12 करेाड़ परिवारों को देश में 5 लाख का बीमा कवर मिलता है। 12 करोड? लोगों के लिए शौचालय, 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन मिलता है, यही मोदी जी की गारंटी है। जो नारी सुरक्षा का भी ध्यान रखती है और देश की संप्रभुता का भी ध्यान रखती है।

‘सीकरी तब व‍िकस‍ित होगा, जब भाजपा प्रत्‍याशी जीतेगा’  

सीएम योगी ने आगे कहा क‍ि उत्तर प्रदेश तक विकसित होगा जब सीकरी विकसित होगा। सीकरी तब विकसित होगा, जब भाजपा प्रत्याशी जीतेगा। राजकुमार चाहर को प्रत्याशी बनाया है। अन्य पार्टियों ने भी समर्थन दिया है। मैं आपके पास आज आह्वान करने आया हूं कि राजकुमार चाहर किसानों की समस्या को लेकर देश में कार्य कर रहे हैं। इन्होंने पूरा जीवन समर्पित किया है। ये सभी राज्यों में में जाकर अन्नदाता किसानों की समस्या को लेकर जाते हैं। आज के दिन आपका सौभाग्य है कि राजकुमार चाहर जैसा प्रत्याशी आपके बीच आया है। उनको पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है। पार्टी ने आपके सामने प्रस्तुत किया है। यह यहां के प्रबुद्धजन और जनता से अपील करूंगा कि वे अपना आशीर्वाद दें।

सीएम योगी ने कहा, ”मैं भरोसा दिलाना चाहता हूं कि जो समाज के लिए जो प्रस्ताव आए स्वीकृत होगा। विकास के लिए आपको ताकझांक नहीं करनी पड़ेगी। इस क्षेत्र का संबंध पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी से भी है। वहां विकास हुआ है। आज प्रचार अभियान का शुभारंभ हुआ है। घर-घर जाकर मोदी जी के तीसरे कार्यकाल को समर्थन मांगिए। इसके लिए आपका आशीर्वाद चाहिए। मोदीजी के लिए 80 सीट में सीकरी का नाम भी होना चाहिए।

केरल में धन का गलत प्रबंधन, इसलिए बढ़ा संकट..', विजयन सरकार को राहत देने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

सुप्रीम कोर्ट ने केरल की वित्तीय संकट के लिए धन के गलत प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराते हुए, तत्काल राहत के लिए राज्य सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया। उधारी सीमा बढ़ाने की मांग वाली केरल की याचिका खारिज कर दी गई, और अदालत ने केंद्र की उधारी प्रतिबंधों के खिलाफ राज्य की चुनौती को आगे की जांच के लिए संविधान पीठ के पास भेज दिया।

जानकारी के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि केरल उधार सीमा पर अंतरिम निषेधाज्ञा के लिए आवश्यक मानदंडों को पूरा करने में विफल रहा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस तरह की राहत देने से राज्यों को वित्तीय कुप्रबंधन के बावजूद राजकोषीय नीतियों को दरकिनार करने में सक्षम बनाने की एक मिसाल कायम हो सकती है। यह स्वीकार करते हुए कि याचिका के बाद केंद्र द्वारा 13,608 करोड़ रुपये जारी करने से केरल को पहले ही महत्वपूर्ण राहत मिल चुकी है, अदालत ने मामले की जांच के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को निर्देश दिया। इसने बड़ी पीठ के सामने संबोधित करने के लिए चार प्रमुख प्रश्न रखे, जिनमें भारतीय संघवाद में राजकोषीय विकेंद्रीकरण और केंद्र के कार्यों द्वारा संवैधानिक सिद्धांतों के संभावित उल्लंघन के मुद्दे शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला केरल सरकार, खासकर वामपंथी प्रशासन के लिए एक झटका है। राज्य के भीतर वित्तीय कुप्रबंधन पर अदालत की टिप्पणी ने LDF के केंद्र के ऋण और आवश्यक धन से इनकार करके केरल के विकास में बाधा डालने के दावों का खंडन किया। अदालत को केंद्र के कार्यों से हुई अपूरणीय क्षति का कोई सबूत नहीं मिला, जिससे एलडीएफ की दलीलें और कमजोर हो गईं।

अगर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत दी होती, तो इससे एलडीएफ की राजनीतिक स्थिति को बढ़ावा मिल सकता था और राज्य सरकार द्वारा लंबित बकाया और बकाया की निकासी की सुविधा मिल सकती थी। हालाँकि, केंद्र के रुख के साथ अदालत के तालमेल का मतलब है कि केरल को अपने आंतरिक वित्तीय कुप्रबंधन के कारण वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट के सवालों का केंद्र के साथ राज्य के संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, खासकर राजकोषीय नीतियों और संघीय सिद्धांतों के संबंध में। इस मुद्दे पर अब संविधान पीठ द्वारा विचार-विमर्श किया जाएगा, जिसमें भारतीय संघवाद ढांचे के भीतर इन जटिल मामलों को संबोधित करने के महत्व पर प्रकाश डाला जाएगा।

महाराष्ट्र में भाजपा को झटका, टिकट न मिलने से नाराज सांसद ने उद्धव ठाकरे से की मुलाकात, जानिए, क्या हैं इसके मायने

 सियासी रूप से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र में भाजपा को बड़ा झटका लगा है. राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से अधिकतर पर चुनाव लड़ रही भाजपा के एक निवर्तमान सांसद ने बगावत कर दी है. वह भाजपा के जलगांव से सांसद हैं. पार्टी ने उन्हें दरकिनार कर एक युवा विधायक को सांसदी का टिकट थमाया है. इस कारण वह नाराज बताए जा रहे थे. इस नाराजगी के बीच उन्होंने मातोश्री में शिवसेना (उद्धव बाला ठाकरे) के नेता उद्धव ठाकरे से मुलाकात की है. ऐसी संभावना जताई जा रही है कि वह जल्दी ही भाजपा छोड़ शिवसेना उद्धव गुट में शामिल होंगे.

लोकसभा टिकट नहीं मिलने से नाराज भाजपा सांसद उन्मेश पाटिल मंगलवार को सीधे उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचे. इस दौरान उन्होंने मीडिया से कहा कि वह उनसे आराम से बात करेंगे. अब बात करने को कुछ नहीं है. उन्होंने कहा कि वह और संजय राउत एक दूसरे को कई वर्षों से जानते हैं. हम संसद में एक साथ थे और हम दोस्त हैं. ठाकरे से पाटिल की मुलाकात के सूत्रधार संजय राउत को बताया जा रहा है.

भाजपा ने मौजूदा सांसद उन्मेश पाटिल को जलगांव लोकसभा क्षेत्र से दोबारा उम्मीदवार नहीं बनाया है. इससे खफा उन्मेश पाटिल ने मंगलवार सुबह ठाकरे गुट के नेता संजय राउत से मुलाकात की. उसके बाद वह पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचे. उनके बाद संजय राउत भी मातोश्री में दाखिल हुए. अगर उन्मेश पाटिल की उद्धव ठाकरे से सकारात्मक चर्चा होती है तो संभावना है कि वह आज शिवसेना ठाकरे गुट में शामिल हो जाएंगे.

वो शक्ति पैदा नहीं हुई..', घूँघट हटाकर लोगों के बीच पहुंची कमलनाथ की बहू, दलबदलुओं पर बोला जमकर हमला

लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जोर-शोर से प्रचार अभियान में जुट गई हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के बेटे नकुल नाथ छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी बीच एक उल्लेखनीय कदम में, उनकी पत्नी प्रिय नाथ घूँघट हटाकर लोगों के बीच पहुँच गईं हैं और अपने पति के चुनावी अभियान में शामिल हो गई हैं। उन्होंने कमल नाथ के खेमे से अलग होकर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं की कड़ी आलोचना की और अग्निपरीक्षा के वक़्त उन पर विश्वासघात करने का आरोप लगाया।

अपना संकल्प व्यक्त करते हुए, कमल नाथ की बहू प्रिया ने कहा, "हममें से कोई भी हिम्मत नहीं हारेगा। हर जगह लोग मुझे सलाह देते हैं कि डरो मत, और मैं जवाब देती हूं कि मैं डरती नहीं हूं, बस दुखी हूं। यह देखकर निराशा होती है कि पिताजी कमल नाथ जिन्हे अपना मानते थे, जिन पर हमने विपत्ति के समय में भरोसा किया था, उन लोगों द्वारा हमें धोखा दिया जा रहा है। हालांकि, हमारी ताकत अटूट बनी हुई है।'

अपने स्थायी बंधन पर जोर देते हुए, प्रिया ने पुष्टि की, "हम 44 साल से एक साथ हैं और वो शक्ति पैदा नहीं हुई, जो 44 दिनों में इस रिश्ते को तोड़ सके। हम एक नई क्रांति के साथ आगे बढ़ेंगे।" गौरतलब है कि प्रिया नाथ पहले घूंघट में प्रचार करती थीं, लेकिन अब वह बिना घूंघट के ही लोगों से सीधे जुड़ रही हैं।  

हाल ही में, छिंदवाड़ा के मेयर विक्रम अहाके और विधायक कमलेश शाह सहित कई कांग्रेस नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं। कमल नाथ के गृह जिले छिंदवाड़ा में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होगा। नकुल नाथ ने 2019 के चुनाव में छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के लिए राज्य की एकमात्र सीट जीती थी। कमलनाथ खुद इस सीट से नौ बार सांसद चुने जा चुके हैं। इस बार बीजेपी ने विवेक बंटी साहू को अपना उम्मीदवार बनाया है।

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को एक और बड़ा झटका, बॉक्सर विजेंदर सिंह बीजेपी में शामिल

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लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। बॉक्सर विजेंदर सिंह कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा में शामिल हो गए हैं। विजेंदर सिंह कांग्रेस पार्टी की तरफ से चुनाव भी लड़ चुके हैं। बता दें कि 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले विजेंदर सिंह ने कांग्रेस जॉइन की थी और साउथ दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें बीजेपी उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी के हाथों 6 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। बॉक्सर सिंह के बीजेपी में शाामिल होने से पार्टी को दिल्ली से लेकर हरियाणा तक फायदे की उम्मीद है।

भाजपा में शामिल होने को बताया घर वापसी जैसा

दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में विजेंदर सिंह ने पार्टी की सदस्यता ली। भाजपा नेता विनोद तावड़े ने उन्हें भाजपा सदस्यता ग्रहण कराई और पटका पहनाकर स्वागत किया। भाजपा मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद बॉक्सर विजेंदर सिंह ने कहा कि मैं आज भाजपा में शामिल हो रहा हूं, यह मेरे लिए घर वापसी जैसा है। मैं देश की जनता और विकास के लिए बीजेपी में शामिल हुआ हूं। उन्होंने केंद्र सरकार का खिलाड़ियों को सम्मान देने के लिए भी आभार जताया।

बीजेपी के प्रति जाटों की नाराजगी होगी दूर?

विजेंदर हरियाणा के भिवानी के रहने वाले हैं औैर जाट समुदाय से आते हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जाटों की नाराजगी की जो चर्चाएं चलती हैं, उससे निपटने में पार्टी को मदद मिलने की उम्मीद है। दरअसल, हरियाणा में कुछ दिन पहले भाजपा ने जजपा से गठबंधन तोड़ लिया। मनोहर लाल खट्टर की जगह बीजेपी आलाकमान ने नायब सिंह सैनी को सीएम बना दिया। मनोहर लाल जब यहां के सीएम थे तभी प्रदेश में किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के आंदोलन भी हुए हैं। इसके चलते प्रदेश में यह चर्चा थी कि पार्टी को जाट समाज की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा, लेकिन विजेंदर सिंह जैसे युवा नेता की एंट्री से भाजपा को उस नैरेटिव की काट करने में मदद मिलेगी।

दिल्ली साउथ से मिली थी हार

बॉक्सर विजेंदर सिंह ने 2019 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। पहले ही चुनाव में पार्टी ने उन्हें दक्षिण दिल्ली से चुनावी मैदान में उतारा था। पहले ही चुनाव में उन्हें भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद विजेंदर सिंह राजनीति में उतने एक्टिव नहीं रहे। दिसंबर 2023 में उन्होंने राजनीति से संन्यास के भी संकेत दिए थे। हालांकि कुछ दिन पहले से ही इस बात की अटकलें लगाई जा रही थीं कि वह राजनीति में वापसी कर सकते हैं। इससे पहले चर्चा थी कि कांग्रेस मथुरा से बीजेपी की उम्मीदवार हेमा मालिनी के सामने विजेंदर को चुनावी मैदान में उतार सकती है।

राजस्थान की बीजेपी प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के बयान पर मचा बवाल, जानें क्या कहा कि गरमा गई दिल्ली तक की सियासत

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राजस्थान के नागौर से बीजेपी उम्मीदवार ज्योति मिर्धा का भाषण सुर्खियां बटोर रहा है। भाजपा प्रत्याशी डॉ ज्योति मिर्धा के एक बयान ने सियासी पारा गरमा गया है। दरअसल, डॉ मिर्धा ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान एक सभा में दिए भाषण में संविधान बदलने का ज़िक्र किया, जिसके बाद से वे विरोधियों के निशाने पर आ गई हैं। इस बयान को लेकर कांग्रेस बीजेपी पर हमलावर है। दरअसल, विपक्ष लगातार ये दावा कर रहा है कि अगर इस बार केंद्र में एनडीए की सरकार बनी तो देश के लोकतंत्र और संविधान को खतरा है। विपक्ष के इन दावों के बीच राजस्थान के नागौर से बीजेपी उम्मीदवार ज्योति मिर्धा के बयान ने राजस्थान से लेकर दिल्ली तक का तापमान बढ़ाने का काम किया है।

ज्योति मिर्धा के संविधान बदलने वाले बयान पर कांग्रेस लगातार मोदी सरकार पर हमलावर है। कांग्रेस ने कहा कि अनंत कुमार हेगड़े के बाद बीजेपी के एक और उम्मीदवार ने संविधान बदलने की बात की है। इन दोनों नेताओं के बयान से ये साफ है कि बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी संविधान और लोकतंत्र से नफरत करते हैं।

बीजेपी का लक्ष्य संविधान को बदलना है-थरूर

संविधान में बदलाव को लेकर भाजपा प्रत्याशी डॉ ज्योति मिर्धा के बयान पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, 'जब अनंत हेगड़े ने संविधान बदलने का राग छेड़ा था, तब भाजपा ने जल्दबाजी में इसे रफा-दफा कर उन्हें उम्मीदवारी से बाहर कर दिया था। अब एक और भाजपा उम्मीदवार कह रही हैं कि भाजपा का लक्ष्य संविधान बदलना है। सच सामने लाने के लिए भाजपा और कितने उम्मीदवारों से मुंह मोड़ेगी?'

ज्योति मिर्धा ने क्या कहा

सांसद शशि थरूर ने ज्योति मिर्धा के वीडियो से जुड़े एक पोस्ट को सोशल मीडिया पर साझा करके ‘एक्स’ पर फिर से पोस्ट किया। इसमें ज्योति मिर्धा यह कहती सुनी जा सकती हैं कि संवैधानिक बदलाव के लिए लोकसभा और राज्यसभा में प्रचंड बहुमत होना चाहिए।

थरूर के बयान पर मिर्धा का पलटवा

वहीं, शशि थरूर वार पर ज्योति मिर्धा ने पलटवार करते हुए लिखा, भाजपा का उद्देश्य राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित की सेवा करना है। अगर उन उद्देश्यों के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता पड़े तो ऐसा होगा। हाल ही में पिछले साल सितंबर में महिला आरक्षण विधेयक के लिए संविधान में संशोधन किया गया। 1950 से पिछले साल तक संविधान में 106 संशोधन हुए हैं। इस ऐतिहासिक संशोधन के कारण महिलाओं के संसद में 33 फीसदी आरक्षण का सपना साकार हो पाया।