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कन्हैयालाल का क़त्ल, सांप्रदायिक दंगे, हिन्दू त्योहारों पर प्रतिबंध ! क्या राजस्थान में कांग्रेस के पिछड़ने की वजह 'तुष्टिकरण' ? , पढ़िए, पूरी खबर

चार राज्यों में मतगणना जारी है। इसमें भाजपा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आसानी से सरकार बनाती नज़र आ रही है। वहीं, तेलंगाना में सत्ताधारी BRS के हाथ से सत्ता जाती नज़र आ रही है और कांग्रेस बढ़त में है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी और अब वहाँ भाजपा आगे चल रही है। वहीं, मध्य प्रदेश में भाजपा सत्ता में वापसी करती नज़र आ रही है।

इन सब चुनावों में राजस्थान के चुनाव का एक अलग ही महत्व था। यहाँ काँटे की टक्कर की उम्मीद थी, लेकिन भाजपा यहाँ सत्ता में आती दिख रही है। कुछ सियासी जानकारों का मानना था कि राज्यों में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार फिर से वापसी करेगी और हर पाँच वर्ष पर सरकार बदलने का यहाँ का पुराना रिवाज टूटेगा। हालाँकि, पीएम नरेंद्र मोदी ने राजस्थान की एक रैली में कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने की अपील की थी। राजस्थान के चुनाव में आतंकी हमले के शिकार हुए दर्जी कन्हैया लाल का मुद्दा भी जमकर उठा था। 

राजस्थान कांग्रेस की सरकार में महिला उत्पीड़न और हिंदुओं पर हमलों हुए निरंतर हमलों ने कांग्रेस सरकार को बैकफुट ला दिया था। राज्य में आतंकियों के मनोबल ने इतना बढ़ गया था कि वे खुलेआम हमले कर रहे थे और सरकार भी हिंदुओं के रामनवमी और हनुमान जयंती पर्व में शोभायात्रा निकालने पर बैन लगा रही थी। कांग्रेस सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की पुरानी नीति ने राजस्थान में हिंदुओं को उद्वेलित किया और एक बार फिर पुरानी सियासी दल को दोहराते हुए भाजपा की वापसी का रास्ता स्पष्ट किया। सामने आ रहे रूझानों से स्पष्ट पता चल रहा है कि राजस्थान में कन्हैयालाल के क़त्ल वाले फैक्टर ने काफी असर दिखाया है। हालाँकि, ‘लाल डायरी’, परीक्षा पत्र का आउट होना, भर्तियों में भ्रष्टाचार, महिलाओं के प्रति हिंसा आदि ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई।

 

बता दें कि 28 जून 2022 को उदयपुर के कन्हैयालाल की ही दुकान में घुसकर कट्टरपंथी मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद ने उनकी निर्मम हत्या कर दी थी। उनकी अस्थियों को आज भी विसर्जन की प्रतीक्षा है, क्योंकि कातिलों को अब तक सजा नहीं हुई है। कन्हैयालाल की निर्मम हत्या के बाद कट्टरपंथियों ने इसका वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट भी किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने चितौड़गढ़ की एक जनसभा को संबोधित करते हुए 2 अक्टूबर को कहा था कि, “यहाँ अशोक गहलोत सोते-जागते अपनी कुर्सी बचाने में लगे थे और आधी कांग्रेस उनकी कुर्सी गिराने में लगी हुई थी। जनता को अपने हाल पर छोड़कर ये लोग आपसी जंग में व्यस्त रहे। कांग्रेस ने राजस्थान को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी।'

पीएम मोदी ने जनसभा में कहा था कि, '5 वर्षों में कांग्रेस सरकार ने राजस्थान की साख को नष्ट कर दिया है। मैं बेहद दुखी मन से कहता हूँ कि जब अपराध, दंगे, महिलाओं-दलितों पर जुल्म की बात होती है, तो राजस्थान शीर्ष पर आता है। मैं बेहद दुःख के साथ आपने पूछता हूँ कि क्या 5 वर्ष पूर्व आपने इसलिए राजस्थान को वोट दिया था?' प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि उदयपुर में जो हुआ, उसकी किसी ने सोचा भी नहीं होगा था। लोग कपड़े सिलवाने के बहाने आते हैं और बगैर किसी डर या दहशत के दर्जी का गला काट देते हैं, इस मामले में भी कांग्रेस को वोट बैंक दिखाई दिया। उन्होंने कांग्रेस से सवाल किया कि उदयपुर दर्जी हत्याकांड में कांग्रेस पार्टी ने क्या किया, वोट बैंक की सियासत की?'

 राजस्थान में परीक्षाओं में हिजाब-बुर्के की अनुमति दी गई, लेकिन अन्य बच्चियों के सलवार-कमीज़ की आस्तीनें काटकर उनकी तलाशी ली गई, इससे भी जनता में आक्रोश पनपा। REET परीक्षा में महिलाओं के मंगलसूत्र, कान की बालियां​ तक उतरवा ली गई थीं, लेकिन हिजाब में युवतियां परीक्षा देने पहुंची थीं।​ वहीं, राजस्थान के करौली में हिन्दू नव वर्ष के अवसर पर हिंदुओं की शोभायात्रा पर कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा हमला कर दिया गया था। वो अपने घरों की छतों पर हिंदुओं की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। जैसे ही जुलूस मुस्लिम बहुल इलाके से निकलने लगा, तो पथराव शुरू हो गया। बाइक पर सवार हिंदुओं को पत्थर मारे गए। जुलूस में शामिल 40-50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए। इस दौरान भी राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगा। करौली में दंगों से पीड़ित हिन्दू अपने घरों पर 'यह घर बिकाऊ है' के पोस्टर लगाने और पलायन करने के लिए भी मजबूर हो गए थे। इसी तरह के हमले जोधपुर और भीलवाड़ा में भी हुए थे। ये एक ट्रेंड की तरह था, कोई भी हिन्दू त्यौहार हो, लोग शोभायात्रा निकालें तो, मुस्लिम इलाके में उसपर हमला होना ही है। ये ट्रेंड देश के कई राज्यों में देखा गया, हालाँकि, कई जगह आरोपियों पर कार्रवाई भी हुई, लेकिन कांग्रेस सरकारों पर उचित कार्रवाई न करने के आरोप लगे। अजमेर और अलवर में हज़ारों लोगों ने सड़कों पर 'सर तन से जुदा' के नारे लगाए, लेकिन गहलोत सरकार उन्हें रोकने में भी विफल दिखी। 

इन हमलों में केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए गए कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) का नाम सामने आया था। ये संगठन 2047 तक भारत में इस्लामी शासन लागू करने के मिशन पर काम कर रहा था। लेकिन, ये PFI राजस्थान में खुलेआम रैलियां निकाल रहा था। इसे भी कांग्रेस सरकार की बड़ी भूल माना गया और पार्टी पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगे। सियासी जानकारों का मानना है कि, कन्हैयालाल की हत्या, बढ़ता कट्टरपंथ, हिन्दू त्योहारों पर प्रतिबंध, तुष्टिकरण के चलते आरोपियों पर कार्रवाई न करना, राजस्थान में कांग्रेस को पीछे रखने में इन सभी चीज़ों की भूमिका रही है। चुनाव आयोग के अनुसार, राजस्थान में भाजपा 113 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि कांग्रेस को 70 पर बढ़त है, राज्य में बहुमत का आंकड़ा 101 है, जिसे भाजपा आसानी से हासिल करती दिख रही है।

क्या दतिया से चुनाव हार जाएंगे लगातार 3 बार के विधायक व एमपी के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ? लगातार चल रहे पीछे

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री और दतिया विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार नरोत्तम मिश्रा को इन चुनावों में बड़ा झटका मिलता दिखाई दे रहा है। लगातार तीन बार दतिया से विधायक रहे नरोत्तम मिश्रा लागतार पीछे चल रहे हैं। उनके सामने कांग्रेस ने भारती राजेंद्र को मैदान में उतारा है। चुनाव आयोग के मुताबिक, दतिया में 2 राउंड की काउंटिंग पूरी हो चुकी है और इसमें कांग्रेस उम्मीदवार भारती राजेंद्र को 15348 वोट मिले हैं, वहीं, नरोत्तम मिश्रा 13105 वोट प्राप्त हुए हैं। इस तरह से नरोत्तम मिश्रा 2243 वोटों से पीछे चल रहे हैं। 

वहीं, दिमनी से भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर दो हजार से अधिक मतों से आगे हैं। इंदौर-1 से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं भाजपा प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय आठ हजार से अधिक मतों से आगे चल रहे हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार निवास से भाजपा के प्रत्याशी एवं केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते पांच हजार से अधिक वोटों से पीछे हैं। नरसिंहपुर से केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा उम्मीदवार प्रहलाद पटेल एक हजार से अधिक मतों से बढ़त बनाए हुए हैं। 

कुल मिलाकर मध्य प्रदेश की सत्ता में भाजपा वापसी करती हुई नज़र आ रही है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में भाजपा ने 155 सीटों पर बढ़त बना रखी है और कांग्रेस 73 सीटों पर आगे चल रही है । राज्य में बहुमत का आंकड़ा 116 है, जिसे भाजपा आसानी से पार करती नज़र आ रही है।

राजस्थान में कौन संभालेगा “कुर्सी”, बीजेपी वसुंधरा राजे को देगी कमान या होगा कोई नया चेहरा

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राजस्‍थान में 199 सीटों पर हुए मतदान पर आज 3 दिसंबर को वोटिंग सुबह 8 बजे से शुरू हो चुकी है।इलेक्‍शन कमीशन के रुझानों में बीजेपी बहुमत में दिख रही है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी 110 सीटों पर बढ़ बनाए हुए है।जबकि अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस धूल चाटते हुए दिख रही है। ऐसे में लोगों के बीच ये सवाल फिर से उठने लगा है कि क्‍या इस बार भी राजस्‍थान की कुर्सी को वसुंधरा राजे ही संभालेंगी या सूबे की कमान किसी दूसरे के हाथ आएगी। 

चुनावी नतीजों में अब तक नतीजों में भाजपा बढ़त बनाए हुए है। इसको देखते हुए सीएम फेस को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। खास बात यह है कि इस बार अभी तक कांग्रेस या भाजपा दोनों ही दलों ने अपने सीएम फेस से पर्दा नहीं हटाया है। ऐसे में लोग जानना चाहते हैं कि आखिर राजस्थान का नया सीएम कौन होगा? क्या बीजेपी की जीत पर वसुंधरा राजे को एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाएगा? या फिर पार्टी अपने दिग्गजों को छोड़कर किसी नए चेहरे को कमान सौंपेगी।

राजस्थान में वसुंधरा राजे सहित सीएम पद के कई दावेदार हैं। मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर वसुंधरा राजे, अर्जुन राम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र राठौड़ से लेकर दीयाकुमारी तक के नाम चल चुके हैं। अब दिल्ली से ओम बिरला के नाम की भी एंट्री इस रेस में जुड़ गई है। राजस्थान में हाड़ौती से बीजेपी के सबसे कद्दावर चेहरों में शुमार ओम बिड़ला फिलहाल लोकसभा अध्यक्ष हैं। उनका कार्यकाल मई में पूरा हो रहा है। ऐसे में उनकी अगली भूमिका राजस्थान में ही होगी। क्या होगी फिलहाल इस पर कुछ भी कहना मुश्किल है।

सीएम बनने की रेस में वसुंधरा राजे सबसे आगे हैं। वह राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उन्हें सरकार चलाने का अनुभव है। इसके साथ ही राज्य की सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। ऐसे में पार्टी अपनी दिग्गज और अनुभवी नेता पर एक बार फिर भरोसा जता सकती है।

हालांकि, यहां एक और प्रश्चचिन्ह है। दरअसल, भाजपा आलकमान और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बीच लंबे समय से खटपट चल रही है। ये नाराजगी उस समय और बढ़ गई थी जब भाजपा ने राजस्थान चुनाव में सीएम फेस के बिना उतरना तय किया था। यह फैसला वसुंधरा राजे को कतई पसंद नहीं आया था। उनके कई समर्थकों ने तो खुलकर इस बात पर नाराजगी जताई थी और राजे को सीएम फेस घोषित करने की मांग की थी। हालांकि भाजपा ने चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ा था। इसके बाद ही ये तय मान लिया गया था कि भाजपा पूर्व सीएम राजे को तीसरी बार सीएम बनाने के मूड में नहीं हैं।

दरअसल, राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे की अपनी एक अलग धमक है, फिर भी बीते पांच साल वह सक्रिय तौर पर नजर नहीं आईं। खास तौर से 2020 में ऑपरेशन लोटस की असफलता का ठीकरा भी राजे के सिर ही फोड़ा गया था, जब एक तरह से ये मान लिया गया था कि राजस्थान से गहलोत सरकार जा सकती है। इसके अलावा सचिन पायलट ने खुद अपनी ही सरकार पर वसुंधरा राजे के खिलासफ कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए पद यात्रा निकाली थी। इसके बाद भी वसुंधरा राजे पार्टी के चुनाव अभियान से एक किनारा किए हुए नजर आईं थीं। न तो गहलोत सरकार के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों में दिखीं और न ही भाजपा की बैठकों में। इसके बाद से ही इस बात के कयास लगाए जाने लगे थे कि राजे और भाजपा आलकमान में सब कुछ ठीक नहीं है।

फ्रांस में अल्लाहु अकबर चिल्लाकर 3 लोगों को मारे चाक़ू, गिरफ्तार होने पर बोला- गाज़ा में मुस्लिमों की मौत से परेशान था...

 फ्रांस की राजधानी पेरिस से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। आंतरिक मंत्री गेराल्ड डर्मैनिन ने शनिवार को बताया है कि मध्य पेरिस में एफिल टॉवर के पास एक व्यक्ति ने पर्यटकों पर हमला किया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए। डार्मिनिन ने प्रेस वालों को बताया कि पुलिस ने 26 वर्षीय फ्रांसीसी नागरिक को टेसर स्टन गन का इस्तेमाल करते हुए अरेस्ट कर लिया है।

आंतरिक मंत्री ने कहा कि संदिग्ध को एक और हमले की योजना बनाने के लिए 2016 में चार साल जेल की सजा सुनाई गई थी और वह फ्रांसीसी सुरक्षा सेवाओं की निगरानी सूची में था, और उसे मानसिक विकारों के लिए भी जाना जाता था। यह हमला 1900 GMT के आसपास हुआ जब व्यक्ति ने एफिल टॉवर से कुछ फीट की दूरी पर क्वाई डी ग्रेनेले पर एक पर्यटक जोड़े पर चाकू से हमला किया, जिसमें एक जर्मन नागरिक घायल हो गया। फिर पुलिस ने उसका पीछा किया और गिरफ्तार होने से पहले दो अन्य लोगों पर हथौड़े से हमला किया।

दारमानिन ने कहा कि, संदिग्ध आरोपी ने "अल्लाहु अकबर" चिल्लाया था और पुलिस को बताया था कि वह परेशान था क्योंकि "अफगानिस्तान और फिलिस्तीन में इतने सारे मुसलमान मर रहे थे" और गाजा की स्थिति से भी परेशान था। आतंकवाद विरोधी अभियोजक के कार्यालय ने कहा कि वह जांच का प्रभारी था। मध्य पेरिस में शनिवार रात की घटना फ्रांसीसी राजधानी में ओलंपिक खेलों की मेजबानी से आठ महीने से भी कम समय पहले हुई और इससे वैश्विक खेल आयोजन में सुरक्षा पर सवाल उठ सकते हैं। पेरिस सीन नदी पर एक अभूतपूर्व उद्घाटन समारोह की योजना बना रहा है जिसमें 600,000 से अधिक दर्शक आ सकते हैं।

चुनाव मतगणना अपडेट, अपनी-अपनी सीट पर पिछड़े सचिन पायलट और रमन सिंह, बाबा बालकनाथ 5000 वोटों से आगे

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावी परिणाम सामने आ रहे हैं। फिलहाल मध्य प्रदेश, राजस्थान में भाजपा ने बढ़त ले रखी है। वहीं तेलंगाना में कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही है। हालांकि, मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ, राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह और सीएम भूपेश बघेल पीछे चल रहे हैं। हालांकि, छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम टी एस सिंह देव ने बढ़त बना रखी है। 

इसके अलावा राजस्थान के झोटवाड़ा से भाजपा उम्मीदवार राज्यवर्धन सिंह राठौर पीछे चल रहे हैं। चुनाव आयोग के डेटा के हिसाब से छत्तीसगढ़ राज्य में भी भाजपा को बढ़त मिलती दिखाई दे रही है। यहां अब तक भाजपा ने 23 और कांग्रेस ने 18 पर बढ़त ले रखी है। वहीं, राजस्थान के तिजारा के पहले राउंड में भाजपा प्रत्याशी बालकनाथ 5000 मतों से आगे चल रहे हैं। बता दें कि, राजस्थान में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का जो चलन रहा है, वो इस बार भी जारी दिख रहा है। राजस्थान में इस बार भाजपा आगे चलती दिख रही है। 

मध्य प्रदेश में भाजपा की बढ़त के पीछे महिलाओं को अहम फैक्टर माना जा रहा है। लाड़ली लक्ष्मी योजना के चलते महिलाओं ने भाजपा को जमकर वोट किया है। माना जा रहा है, भाजपा को पुरुषों के मुकाबले 10 फीसदी अधिक महिलाओं ने वोट किया है।

चुनावी रुझानों के बीच कांग्रेस को आई INDIA गठबंधन के साथियों की याद, मल्लिकार्जुन खड़गे ने खुद TMC-DMK को लगाया फोन, बुलाई बैठक

आज रविवार (3 दिसंबर) को मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आ रहे हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा आसानी से सरकार बनाती हुई नज़र आ रही है। छत्तीसगढ़ में कांटे की टक्कर है। जबकि, तेलंगाना में कांग्रेस को बड़ी सफलता मिलती दिख रही है। 2014 में तेलंगाना की स्थापना होने के बाद से यहां के चंद्रशेखर राव (KCR) शासन कर रहे थे, अब पहली बार कांग्रेस यहाँ सरकार बनाती नज़र आ रही है। 

चुनावी नतीजों को बीच कांग्रेस को भाजपा को सत्ता से बेदकहल करने के लिए बनाए गए भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA) की याद आई है। दरअसल, बीते 2-3 महीनों से विधानसभा चुनावों के प्रचार में लगी कांग्रेस एक तरह से INDIA गठबंधन को भूल ही चुकी थी, बिहार के सीएम नितीश कुमार ने भी सबसे पुरानी पार्टी पर यही आरोप लगाया था। उनका कहना था कि, कांग्रेस इस तरफ ध्यान ही नहीं दे रही है। वहीं, मध्य प्रदेश चुनावों में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव में जबरदस्त कहासुनी देखने को मिली थी, कमलनाथ ने सपा प्रमुख को अखिलेश-वखिलेश कह दिया था, जबकि दोनों पार्टियां INDIA गठबंधन की दोस्त पार्टियां थीं। लेकिन तब अतिआत्मविश्वास में कांग्रेस ने अपने साथियों का अपमान कर दिया था। वहीं, आम आदमी पार्टी (AAP) भी कांग्रेस से नाराज़ है और लोकसभा चुनावों में अकेले ताल ठोंकने का मन बना चुके हैं। अभी तक कांग्रेस इनकी तरफ ध्यान नहीं दे रही थी। शायद उसे लग रहा था कि, चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद अन्य पार्टियां खुद ही उसके पास आ जाएंगी और वो गठबंधन में बिग ब्रदर बन जाएगी, लेकिन अब पास उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है और देश पर सबसे अधिक समय तक शासन करने वाली पार्टी को अब क्षेत्रिय पार्टियों के साथ सहयोग करके और उनको साथ लेकर चलने की जरुरत महसूस हो रही है। 

लेकिन, अब चुनावी रुझानों में कांग्रेस के हाथ से मध्य प्रदेश और राजस्थान खिसकता नज़र आ रहा है। छत्तीसगढ़ में भी मामला कांटे का है, तो कांग्रेस ने अब INDIA के अपने सहयोगियों को साधने की कवायद शुरू कर दी है। कांग्रेस ने बुधवार, 6 दिसंबर को नई दिल्ली में अगली भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA) सहयोगियों की बैठक बुलाई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने खुद फोन करते हुए द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सहित अन्य गठबंधन सहयोगियों से बात की है और उन्हें बैठक की जानकारी दी है।

सिलक्यारा सुरंग हादसा के रेस्क्यू ऑपरेशन के नायक मुन्ना कुरैसी की कहानी भावुक कर देगी, अपने बच्चों से ज्यादा थी मजदूरों की जिंदगी की चिंता…

 28 नवंबर को सिलक्यारा सुरंग के आखिरी हिस्से की खोदाई कर जब रैट माइनर्स मुन्ना कुरैशी अंदर पहुंचा तो 17 दिन से जिंदगी की राह देख रहे श्रमिकों ने उसे गले लगाकर पलकों पर बैठा दिया। इतना स्नेह पाकर मुन्ना भावुक हो उठा। उसे अपने तीनों नन्हें बच्चों की याद आ गई, जिन्हें वह 22 नवंबर को दिल्ली में अपनी खाला (मौसी) के पास छोड़ आया था।

सिलक्यारा आते हुए मुन्ना ने सिर्फ अपने दस वर्षीय बेटे को बताया था कि वह दो दिन में काम खत्म कर लौट आएगा। लेकिन, निकास सुरंग में औगर मशीन का एक हिस्सा फंस जाने के कारण समय अधिक लग गया। मुन्ना कुरैशी ने मीडिया को बताया कि नियति उसकी हमेशा परीक्षा लेती रही है। उसका मूलगांव उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में पड़ता है। वहां किसी ने उनकी जमीन हड़प ली थी, इसलिए उसके पिता को दिल्ली आना पड़ा। बताया कि 12 वर्ष की उम्र में माता-पिता का साया उसके सिर से उठ गया था। तब चाचा व अन्य रिश्तेदारों ने उसे पाला। होश संभाला तो रोजगार के लिए भटकना पड़ा।

गर्भवती पत्नी की हो गई थी मौत

इसी बीच वह जोखिमपूर्ण कार्य करने वाले रैट माइनर्स के संपर्क में आया और दिल्ली के राजीव नगर स्थित खजूरीखास श्रीराम कालोनी में किराये का एक कमरा लेकर रहने लगा। मुन्ना ने बताया कि वर्ष 2021 में उसकी गर्भवती पत्नी की मृत्यु हो गई। घटना उसके लिए सिर पर पहाड़ टूटने जैसी थी। फिर भी जैसे-तैसे उसने स्वयं को संभाला। तब कोविड चल रहा था, इसलिए उसने मास्क भी बांटे। बताया कि उसका बेटा दस वर्ष का है और चौथी कक्षा में पढ़ता है, जबकि बड़ी बेटी आठ और छोटी पांच वर्ष की है।

 41 जिंदगियां बच गईं

मुन्ना ने बताया कि 22 नवंबर को जब वह उत्तराखंड के सिलक्यारा के लिए रवाना हुआ तो इस बावत उसने अपने चाचा को भी कुछ नहीं बताया। सिर्फ बेटे को बताकर ही चला आया। खैर! खुशी इस बात की है, सब-कुछ अच्छा हुआ और 41 जिंदगी बच गईं। बकौल मुन्ना, ‘मैंने सुरंग के अंदर का आखिरी पत्थर और मलबे का हिस्सा हटाया तो वहां कैद लोग मुझे देखकर खुशी से झूम उठे। फिर उन्होंने मुझे बारी-बारी से गले लगाया और चाकलेट व बादाम खिलाए। इससे मुझे बच्चों की याद आ गई। श्रमिकों तक पहुंचना मेरे जीवन का वह क्षण है, जिसे मैं धरोहर की तरह संजोकर रखूंगा।’ मुन्ना की सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि उसे नियमित कार्य नहीं मिल पाता। कहता है, तीन हजार रुपये महीने का कमरा है। बस! किसी तरह जीवन की गाड़ी खींच रहा हूं।

19 दिन में 21 महत्वपूर्ण बिल और 15 बैठक..', संसद के शीतकालीन सत्र का कार्यक्रम जारी, 'हंगामा' नहीं हुआ तो होंगे बड़े काम !

संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान दो वित्तीय विधेयकों समेत कुल 21 विधेयक लाए जाने की संभावना है। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि, 'हम 19 विधेयक ला रहे हैं और दो वित्तीय आइटम हैं। कुल 21 आइटम हैं। तीनों बिल गृह मंत्रालय के हैं। उन्होंने कहा कि, केंद्रीय विश्वविद्यालय पर एक विधेयक है और संवैधानिक व्यवस्था पर एक बिल है। यह सूची उस दिन जारी की गई जब 4 दिसंबर को शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले 2 दिसंबर को सर्वदलीय बैठक हुई थी। 

बता दें कि, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम उन प्रमुख विधेयकों में से हैं जिन्हें इस सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। जिन अन्य विधेयकों पर विचार किया जाएगा उनमें निरसन और संशोधन विधेयक (लोकसभा द्वारा पारित), अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक (राज्यसभा द्वारा पारित) और प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक (राज्यसभा द्वारा पारित) शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री जोशी ने कहा कि शीतकालीन सत्र 4 दिसंबर को शुरू होगा और 22 दिसंबर को समाप्त होगा। 

उन्होंने कहा कि, ''19 दिनों की अवधि में 15 बैठकें होंगी।'' सर्वदलीय बैठक के बारे में बोलते हुए जोशी ने कहा, ''राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में आज की सर्वदलीय बैठक में 23 पार्टियों के 30 नेता मौजूद थे। हमें कई सुझाव मिले हैं।” उन्होंने बताया कि, संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक, संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक, जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक भी होंगे। इसके अलावा, डाकघर विधेयक और मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक भी कार्ड में हैं।

बॉयलर विधेयक, करों का अनंतिम संग्रह विधेयक, केंद्रीय माल और सेवा कर (दूसरा संशोधन) विधेयक, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) दूसरा (संशोधन) विधेयक और केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023 पर भी विचार किया जा सकता है। वित्तीय व्यवसाय के बीच, वर्ष 2023-24 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के पहले बैच पर एक प्रस्तुति, चर्चा और मतदान होगा और संबंधित विनियोग विधेयक की शुरूआत, विचार और पारित किया जाएगा। वर्ष 2020-21 के लिए अतिरिक्त अनुदान की मांगों पर प्रस्तुतीकरण, चर्चा और मतदान और संबंधित विनियोग विधेयक का परिचय, विचार और पारित करने का कार्य भी किया जाएगा।

एक तरह से देखा जाए तो इस बार शीतकालीन सत्र में सरकार ने कई अहम मुद्दों पर बिल पारित करने की योजना बनाई है, लेकिन संसद में होने वाला हंगामा इसमें खलल डाल सकता है। दरअसल, बीते कई संसद सत्रों में ऐसा देखा गया है कि, सत्र शुरू होने से पहले ही कोई न कोई ऐसा मुद्दा आ जाता है, जिसपर पूरे संसद सत्र के दौरान हंगामा होते रहता है। विपक्ष कभी, चीन को, कभी अडानी को, कभी पेगासस को, तो कभी किसी अन्य बात को मुद्दा बनाकर संसद में हंगामा शुरू कर देता है और पूरा सत्र उसी हंगामे की भेंट चढ़ जाता है। हमने देखा था कि, चीन मुद्दे पर कानून मंत्री और रक्षा मंत्री के जवाब देने के बावजूद विपक्ष का हंगामा जारी रहा था, वहीं अडानी मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट की जांच में भेजने के बावजूद भी पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया था। यहाँ तक कि, यदि हंगामा करने वाले कुछ सांसदों को निलंबित कर दिया जाता है, तो उन निलंबित सांसदों का मुद्दा बनाकर अन्य विपक्षी सांसद हंगामा शुरू कर देते हैं और फिर सदन की कार्रवाई स्थगित पर स्थगित होती जाती है। अब इस बार देखना ये है कि, क्या हर बार की तरह इस बार भी संसद सत्र शुरू होने से ठीक पहले कोई मुद्दा विपक्ष के हाथ लगता है, या फिर सरकार अपने बिल पारित करवाने में कामयाब रहती है। उम्मीद है इस बार संसद में सार्थक चर्चा होगी और सवाल-जवाब के साथ काम भी होगा, लेकिन हंगामा और सदन स्थगन नहीं।

*एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना के चुनावी नतीजों को क्यों कहा जा रहे 2024 का सेमीफाइनल? जानें बीजेपी के लिए कैसे है अच्छे संकेत*

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मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव को 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है।देश के पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से चार राज्यों के नतीजे आज आने शुरू भी हो गए हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे हिंदी भाषी राज्यों और दक्षिण भारत के तेलंगाना राज्य के चुनावी नतीजे आ रहे हैं। वहीं मिज़ोरम के चुनाव परिणामों को एक दिन के लिए आगे बढ़ा दिया गया है। मिज़ोरम विधानसभा चुनाव के नतीजे 4 नवंबर को आएंगे।अब तक मिले रूझानों में चार में से तीन राज्यों यानी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कमल खिलता दिख रहा है। जी हैं, रूझानों में बीजेपी ने इन तीन राज्यों में बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस को बहुमत मिलता दिख रहा है। 

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए इन राज्यों के परिणामों को एक तरह से सेमीफ़ाइनल के तौर पर देखा जा रहा है।इन पाँच राज्यों के परिणामों को सेमीफ़ाइनल इस वजह से भी कहा जा रहा है क्योंकि अगले ही साल लोकसभा चुनाव हैं और इन राज्यों में अच्छी ख़ासी लोकसभा सीटें हैं।मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें, राजस्थान में 25 सीटें, छत्तीसगढ़ में 11 सीटें, तेलंगाना में 17 सीटें और मिज़ोरम में सिर्फ़ एक सीट है। इन सीटों को जोड़ दिया जाए तो इनका योग 83 हो जाता है।इन राज्यों में जिस भी पार्टी की सरकार बनती है तो वो लोकसभा चुनाव की सीटों पर जीत को लेकर भी आश्वस्त रहेगी।

क्या कहते हैं राजस्थान के आंकड़े?

राजस्थान की बात करें तो, राजस्थान में 1998 में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न बिल्कुल अलग है। भले ही दोनों चुनाव के बीच कुछ महीने का अंतर हो, लेकिन दोनों के रिजल्ट का एक दूसरे पर कोई खास असर नहीं पड़ता। जैसेःसाल 1998 के विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस सरकार बंपर वोट से सत्ता में आई तो अगले साल यानी 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा भारी पड़ी। 2003 से लेकर 2014 तक यह परिणाम बदल गए। जो पार्टी विधानसभा चुनाव जीतती थी वो लोकसभा चुनावों में और भी बड़े अंतर से चुनाव जीतती। हालांकि, साल 2018 में ये पैटर्न बदला क्योंकि उस साल कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीता लेकिन 2019 में बीजेपी ने 25 में से 24 सीटें जीती थीं जबकि एक सीट आरएलपी ने जीती थी।

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश की सियासत भी लगभग राजस्थान जैसी है। 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी तो अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी भारी पड़ी। 2003-2004 में हुए विधानसभा व लोकसभा चुनाव दोनों में बीजेपी का पलड़ा भारी रहा। 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन दोहरा नहीं पाई।साल 2013 में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीता तो वहीं 2014 में भी बीजेपी ने और भी बड़े अंतर से लोकसभा की सीटें जीती थीं।2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रहे लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ़ एक सीट पर सिमट गई।

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 सीटे हैं, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से 9 सीटें अपने नाम की थी। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में 15 सालों से लगातार सत्ता पर काबिज रमन सिंह की सरकार को कांग्रेस ने बेदखल कर दिया था और 90 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 68 पर शानदार जीत हासिल की थी और बीजेपी को 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा, लेकिन एक साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हार का बदला ले लिया।

तेलंगाना

साल 2013 में गठन के बाद से तेलंगाना में अब तक दो विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव हुए हैं। विधानसभा चुनावों में जहां बीआरएस (पहले टीआरएस) ने भारी जीत दर्ज की। वहीं लोकसभा चुनावों में मिले-जुले परिणाम रहे।तेलंगाना की 119 विधानसभा सीटों में से बीजेपी के पास भले ही 3 विधायक हैं, लकिन 17 सांसदों वाले इस राज्य में उसके सांसद 4 हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 4 सीटें, कांग्रेस के पास 3 सीटें, बीआरएस को 9 और अन्य को एक सीट पर जीत मिली थी।

*3 में से 4 राज्यों से बीजेपी की सरकार, एमपी-राजस्थान और छत्तीसगढ़ से आ रही खुशखबरी

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आज चार राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित किए जा रहे हैं। चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कमाल का प्रदर्शन किया है। रुझानों में तीन राज्यों में बीजेपी को बहुमत मिलता दिख रहा है। एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी बहुमत हासिल कर ली है। वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस को बहुमत मिला है। 

चार राज्यों के रुझान लगभग-लगभग वैसी ही तस्वीर पेश कर रहे हैं, जिसका अनुमान एग्जिट पोल्स और राजनीतिक विश्लेषकों ने लगाया था। सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की। सुबह आठ बजे जब मतगणना की शुरुआत हुई तो भाजपा के मुकाबले कांग्रेस एक सीट से आगे थी, लेकिन सुबह साढ़े नौ बजे तक यहां तस्वीर पलट गई और भाजपा बहुमत के आंकड़े को पार कर गई। राजस्थान में भी ऐसा ही था। कांग्रेस ने शुरुआत तो बढ़त के साथ की, लेकिन मतगणना शुरू होने के 15 मिनट बाद ही वह भाजपा से पिछड़ गई। डेढ़ घंटे बाद कांग्रेस के मुकाबले भाजपा तकरीबन 20 सीटों से आगे हो गई। छत्तीसगढ़ में शुरुआती नब्बे मिनट के रुझानों में कांग्रेस भाजपा से आगे रही, लेकिन 91वें मिनट से मामला बराबरी पर आ गया। उधर, तेलंगाना में बीआरएस शुरुआत से ही पीछे रही और कांग्रेस मजबूती के साथ बहुमत के आंकड़ों से आगे निकल गई।

कौन कितनी सीटों पर आगे

राजस्थान: बीजेपी- 114, कांग्रेस 68

मध्य प्रदेश: बीजेपी- 155, कांग्रेस 68

छत्तीसगढ़: बीजेपी-48, कांग्रेस 38

तेलंगाना: बीआरएस-37, कांग्रेस-59 और बीजेपी-9