Shashikant66

May 05 2024, 00:09

वोट फ़ॉर डेमोक्रेसी -------------------------
वोटर आईडी लेकर वोटर लिस्ट से नाम का मिलान किये,बटन दबाए,सेल्फी लिए और हो गया मतदान। ऐसा नही होता। आज के दौर में वोट देना बहुत बड़ी जिम्मेवारी का काम है। इसके लिए आत्ममंथन की जरूरत है। चुनाव मैदान में सभी राजनीतिक पार्टियां जनता को लुभाने के लिए बड़े-बड़े दावे करती है। ऐसे में मतदाताओं को सावधानीपूर्वक सभी पार्टियों के दावों की खुद से समीक्षा करने के बाद ही अपने वोट का इस्तेमाल करना होता है। जो एक बहुत ही कठिन कार्य है।
इस बार वोट देने से पहले महंगाई,भ्रस्टाचार,हर साल दो करोड़ नौकरी,शिक्षा,स्वास्थ्य आदि पर सरकार से नही तो खुद से सवाल जरूर पूछियेगा। इन मुद्दों पर आत्ममंथन जरूर कीजियेगा। तभी EVM का बटन दबाईयेगा। अगर इस बार भी आपलोग जाति-धर्म के आधार पर वोट देंगे तो,आनेवाला समय इस दस साल से भी ज्यादा बद्तर हो जाएगा। भाजपा 2024 का चुनाव अपने किये हुए कार्यो या जन मुद्दों पर नही,बल्कि जाति,धर्म और झूठ पर लड़ रही है। बीजेपी सरकार ने दस सालों में किया ही क्या है सिवाय झूठ और प्रोपगेंडा के। अगर दस सालों में इन्होंने जनता के पक्ष में कुछ किया होता तो,चुनावी रैलियों में मुद्दे की बात करते। विकास की बात करते। पर यहाँ तो उल्टी गंगा बह रही है।
SC/ST का हक छीनना चाहती है कांग्रेस:मोदी। शहजादे को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए उतावला है पाकिस्तान:मोदी। या तो मोदी जी डर गए है या सठिया गए है। या फिर फ्रॉस्टिंया गए है। तभी तो चुनावी रैलियों में उटपटांग बाते कर रहे हैं। दस साल की अपनी उपलब्धियां बताने के बजाय पाकिस्तान,मुस्लिम लीग,मुसलमान और मंगलसूत्र जैसी वाहियात बाते कर रहे है। अपने दस साल के विकास का डाटा देने के बजाय 370 और राम मंदिर बनवाने का दावा ठोक रहे। जबकी राम मंदिर सरकार नही सुप्रीम कोर्ट की देन है। क्या दस सालों में सरकार ने केवल यही दो काम किये है? चुनावी रैलियों में मोदी जी अपने पुराने चुनावी वादों और नए मैनिफेस्टो पर बात नही करते। बीजेपी के मैनिफेस्टो में क्या है,जनता को पता ही नही। अपने मैनिफेस्टो की खूबियां बताने के बजाय वे कांग्रेस के मैनिफेस्टो पर झूठ फैला कर जनता को गुमराह कर रहे। जबकि कांग्रेस (इंडिया गठबंधन) हर रैलियों में जनता के बीच अपने मैनिफेस्टो पर चर्चा करती नजर आ रही है। कांग्रेस दावा कर रही है कि,अगर वो सत्ता में आएंगे तो
1.अग्निवीर योजना खत्म
2.पुडुचेरी को पूर्ण राज्य का दर्जा
3.MSP का कानून बनेगा
4.मनरेगा के तहत न्यूनतम मजदूरी दर 400 रुपये प्रतिदिन
5.गरीब महिला को साल में एक लाख की राशि 6.मीडिया की पूर्ण स्वतंत्रता सहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहाल करेंगे
7.केंद्र सरकार की खाली पड़ी 30 लाख पदों को भरेंगे।
8.जातिगत जनगणना करवाएंगे।
9.2025 से केंद्र सरकार की आधी नौकरियां महिलाओं के लिए आरक्षित करेंगे आदि।
उधर मोदी जी चार सौ पार, हिन्दू-मुसलमान और पाकिस्तान का राग अलाप रहे है। आखिर मोदी जी को 400 सीट क्यो चाहिए? यह बात जनता को सरकार से पूछना चाहिए। वो कौन सा काम है जो 300 प्लस सीट जीतने के बाद भी मोदी जी नही कर पा रहे? मोदी जी ने कहा था- 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। 2022 तक सब को पक्का मकान का भी वादा किया था। 2022 तक 100 स्मार्ट सिटी का लक्ष्य भी पूरा नही हो पाया। जब ये सारे सपने फेल हो गए तो,अब लोगो को 2047 का सपना दिखाया जा रहा। जहाँ लोगो का वर्तमान ठीक नही उन्हें उनका भविष्य ठीक करने का दावा किया जा रहा। जिसे पूरा करने में एक मजबूत सरकार को अगले 23 साल तक का समय लगेगा। ये सपना सुंदर है या डरावना,इसे जनता को तय करना है। अपने वोट की चोट से।
आपलोग मतदान केंद्र पर जाने से पहले मई 2023 की मणिपुर में हुई उस घटना को जरूर याद करना। जहाँ दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया गया था। वोट देने से पहले crpf के उन 40 शहीदों को जरूर याद कर लेना। जिनकी शहादत पर किस तरह केंद्र सरकार ने 2019 में अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकी थी। इसका एहसास तो आपलोगो को होगा ही। पांच साल गुजर गए। पर इस केस की जांच कहा तक पहुची,आज तक किसी को कुछ नही पता।
सरकार से सवाल पूछने पर शिक्षाविद एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को अर्बन नक्सल के नाम पर जेलों में ठूस दिया जा रहा। स्टेन स्वामी को सरकार ने जेल में ही मार डाला। आपके सवाल या आपकी विचारधारा सरकार के विचारधारा से मेल नही खाती तो, आपको वामपंथी,अर्बन नक्सल या देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है। ऐसा ही एक मामला 2016 में हुआ था। जब कन्हैया कुमार को टुकड़े-टुकड़े गैंग बात कर देशद्रोही घोषित कर दिया गया और JNU जैसी यूनिवर्सिटी के शाख पर सवाल खड़े किए गए। जबकि आज तक इस केस में चार्जशीट तक दाखिल नही हो पाया है।
भाजपा आज कुकर्मियों, भ्रस्टाचारियो और बलात्कारियों की पार्टी बन गई है। दूसरे दलों के जो भी भ्रस्टाचारी और बलात्कारी थे उन सब ने भाजपा जॉइन कर लिया है। जहाँ वे पूरी तरह से सुरक्षित और सर्बमान्य है। इसका ताजा उदाहरण है-प्रज्वल रेवान्न। बार-बार नारी शक्ति का बखान करने वाली बीजेपी प्रज्वल रेवान्न जैसे शक्श को टिकट देती है जो न जाने कितनी ही महिलाओं का बलात्कार कर उन्हें ब्लैकमेल करता रहा है। आज उसके 2500 से अधिक अश्लील वीडियो वायरल है। और वह देश से फरार हो गया। किसके शह पर?
बीजेपी की राजनीति का आधार ही जाति और धर्म रहा है। फिर वो अपनी विचारधारा के विपरीत काम कैसे कर सकता है? इनके पुरखे 'गोलवलकर' को न बाबा साहेब का संविधान पसंद था न हमारा तिरंगा। तिरंगे को सलामी और संविधान की सपथ तो इनकी मजबूरी है। इसलिए ये संविधान को खत्म कर के अपनी मजबूरी की इस बेड़ी को काटने में लगे है। भाजपा का सत्ता में आने का मकसद देश चलाना नही बल्कि देश को बांटना है। बीजेपी सत्ता में देश पर शाशन करने नही बल्कि आरक्षण और 370 को हटाना,राम मंदिर का निर्माण और संविधान को खत्म करना ही इनका मकसद है। इसलिए इन्होंने अबकी बार 400 पर का नारा दिया। ताकि ये 400 सीट जीत कर संविधान को बदल दे। संविधान बदलने पर देश का क्या होगा यह तो नही पता। पर देश के sc/st/obc/ और अल्पसंख्यक समाज के हालात बद से बदतर जरूर हो जाएंगे।
2024 का लोकसभा चुनाव, लोकतंत्र बचाने का चुनाव है। यह देश का प्रधानमंत्री चुनने का चुनाव नही बल्कि खुद की आज़ादी चुनने का चुनाव है। इसलिए-Vote for Democracy not for Priminister.

Shashikant66

Jan 23 2024, 02:37

अंधभक्तो के शंकराचार्य
धर्मगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी का सिर्फ इतना ही कहना था कि,"अर्ध-निर्मित मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा नही हो सकता।" इसके बावजूद मोदी जी अयोध्या के अर्ध-निर्मित राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा करने की जिद पर अड़े रहे। इसको ले कर लोगो के बीच बहुत से सवाल थे। मोदी जी खुद प्राण-प्रतिष्ठा करना क्यो चाह रहे? प्राण-प्रतिष्ठा की इतनी जल्दी क्यो है? क्या मोदी जी साधु-संत है या सनातन धर्म के धर्म गुरु? यह किसी भवन या मंदिर का शिलान्यास नही है। जो किसी गरिमामय ओहदे वाले व्यक्ति मसलन प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से करवा दिया जाए। यह एक धार्मिक और वैदिक अनुष्ठान है। जो किसी पुजारी या संत के द्वारा किया जाना चाहिए था। धर्मिक अनुष्ठान में राजनीतिज्ञ का क्या काम? पर मोदी जी ने राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान को भी राजनीतिक अनुष्ठान बना दिया।
मोदी जी ने लोगो को दो धर्मो में नही बांटा। बल्कि सनातन धर्म को ही दो फाड़ कर दिया। जहां एक तरफ मोदी जी खड़े है तो दूसरी तरफ शंकराचार्य। अब समस्या लोगो के पास है कि,वो किस तरफ जाए। अगर शंकराचार्य के साथ जाते है तो मोदी जी को नाखुश करेंगे। और यदि मोदी जी के साथ जाते है तो धर्म गुरु की अवहेलना होगी। सच्चा सनातनी कौन? शंकराचार्य को मानने वाले या मोदी को मानने वाले। धर्म और राजनीति दोनों अलग चीज है। दोनों का मिलन संभव नही। अगर दोनों एक दूसरे में समाहित होती है तो,दोंनो का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। पर मोदी जी ने धर्म को सत्ता प्राप्ति का साधन बना दिया है। आज सनातन धर्मावलंबियों की आस्था शंकराचार्य पर नही,मोदी जी पर शिफ्ट हो गई है। धर्म के राजनीतिकरण का इससे अच्छा उदाहरण नही हो सकता।
खुद को सुपर बॉस समझने वाले मोदी जी अपनी जिद के कारण राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा को विवादों में लाकर सनातन धर्म का छीछालेदर करवा दिया। सनातन धर्म ऐसा कैसे हो गया जो आज अपने धर्मगुरु की बातों को ही अनसुना कर रहा। मोदी जी ने धर्म को राजनीति में मिला कर धर्म को बौना बना दिया है। धर्म का ज्ञान शंकराचार्य को है न कि मोदी जी को। पर मोदी काल मे धर्म गुरु की कोई हैसियत नही रह गई है। मोदी जी हर जगह दिखना चाहते है। छोटे से छोटे शिलान्यास से ले कर राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा तक। राम मंदिर निर्माण का क्रेडिट भी मोदी जी खुद को ही देते है। जबकि यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला था। राम मंदिर के निर्माण में मोदी जी का कोई योगदान नही रहा है। राम मंदिर आंदोलन के मुख्य आगुआ लाल कृष्ण आडवाणी जी,मुरली मनोहर जोशी,अशोक सिंघल,ऋतम्भरा तथा विनय कटियार जैसे लोग थे। जिन्हें आज साइड लाइन कर के मोदी जी खुद राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा की अगुआई कर रहे है।
यह बहुत अजीब बात है कि,हमारे प्राचीन सनातन धर्म मे एक साधारण से धार्मिक अनुष्ठान की कार्यविधि का स्पष्ट वर्णन नही है। तभी तो अलग-अलग संतो का इस पर अलग-अलग राय है। जिसके कारण राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम विवादों में पड़ गया। राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के बाद एक बात उभर कर सामने आई है कि,इस मोदी काल मे राजनीति धर्म पर भारी है। अगर ऐसा नही है तो,सनातनी लोग अपने धर्मगुरु की बातों पर गौर फरमाते। पर ऐसा नही हुआ। उल्टे लोगो ने शंकराचार्य अवीमुक्तेश्वरानंद जी पर कांग्रेस समर्थित होने का इल्जाम लगा कर उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया। उनके खिलाफ़ सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा चलाये गए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,ये वही अविमुक्तेश्वरानंद जी है जिनकी गवाही में रखे गए तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने माना था कि राम लल्ला का जन्म उसी स्थान पर हुआ है जहाँ आज मोदी जी ने प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम सम्पन्न किया।
धर्म की आड़ में अधिकांश लोग धर्म की राजनीति के शिकार हो गए है। लोगो को धर्म मे इस कदर डुबो दिया गया है कि,उन्हें धर्म और राजनीति में अंतर समझ नही आ रहा। मोदी काल मे ऐसे ही लोगों को "अंधभक्त" की उपाधि से नवाजा गया है। राम,कृष्ण,शिव और विष्णु का अवतार बता चुके अंधभक्त लोग अब मोदी जी को अपना पांचवा और अंतिम शंकराचार्य मान लिया है।

Shashikant66

Oct 07 2023, 20:29

मिशन ट्वेंटी फोर
केंद्र सरकार इलेक्शन मोड में आ गयी है। सर्जीकल स्ट्राइक के तर्ज पर सरकार ने "इलेक्शन स्ट्राइक" शुरू कर दिया है। मीडिया संस्थान न्यूज़ क्लिक के ऑफिस और पत्रकारों के घरों पर छापा;और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी तो ट्रेलर है। फ़िल्म तो अभी शुरू हुई है। 2024 के लोकसभा चुनाव तक बहुत कुछ घटनेवाला है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,सांसद,विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक को सलाखों के पीछे भेजा जा सकता है।
पिछले नौ सालो में ऐसे ढेरो पत्रकार,कवि,लेखक और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अर्बन नक्सल घोषित कर,यूएपीए (गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून) की धारा लगा कर जेल में डाल दिया गया। उत्तर प्रदेश के हाथरस की घटना को कवर करने पहुचे केरल के पत्रकार सिद्दिकी कप्पन पर यूएपीए लगा कर जेल में डाल दिया गया। जिन्हें दो साल बाद जमानत मिली। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर केरल के न्यूज चैनल मीडियावन को बैन कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बैन हटाया गया।
जो पत्रकार सरकार की भाषा नही बोलता उनकी नौकरी से छुट्टी कर दी जाती है।अभिसार शर्मा, अजित अंजुम, पूण्य प्रसून वाजपेयी और प्रज्ञा मिश्रा जैसे कई पत्रकार है जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया या निकलने के लिए मजबूर किया गया। एनडीटीवी के पत्रकार रविश कुमार को निकालने के लिए सरकार के शुभचिंतक गौतम अडानी ने एनडीटीवी ही खरीद लिया। अभी कुछ दिन पहले की घटना है। सवाल पूछने पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने उस पत्रकार को नौकरी से निकलवा दिया। एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पगारिया चाहते थे कि पत्रकार सोहित मिश्रा,राहुल गांधी के प्रेस कॉन्फ्रेस में हंगामा खड़ा करे। सोहित मिश्रा को यह बात पत्रकारिता के खिलाफ लगी। इसलिए उसने एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया। यह हाल हो गया है मदर ऑफ डेमोक्रेसी का।
सरकार 'इलेक्शन स्ट्राइक' के जरिये विपक्ष और बागियों (सरकार के खिलाफ आवाज उठानेवाले) पर दबिश बना रही है। वही दूसरी तरफ मध्य प्रदेश और राजस्थान में जनता पर उपहारों की बारिस हो रही है। अनेको योजनाओं का शिलान्यास और नौकरियों का पिटारा खुलने लगा है। बम्पर बहाली की खबर अखबार,टेलीविज़न और रेडियो के माध्यम से जन-जन तक पहुचाई जाएगी। ताकि युवाओं का वोट सरकार की झोली में आ सके।
2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए मुश्किल नजर आ रहा। बीजेपी के पास कोई ठोस मुद्दा नही है,जिस पर वह चुनाव लड़ सके। धारा 370 का मुद्दा पुराना हो गया। हिन्दू राष्ट्र का नशा भी उतरता जा रहा। मंदिर-मस्जिद की राजनीति भी लोगो को रास नही आ रही। ले-देकर वही हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का नारा बचा है। जिसके दम पर बीजेपी सत्ता में आई थी। पर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के भरोसे बीजेपी लंबे समय तक सत्ता पर काबिज नही रह सकती। जनता अब समझने लगी है कि हिंदुत्व से रोजगार नही मिलता न ही राष्ट्रवाद से भूख मिटती है। इसलिए बीजेपी मुद्दा क्रिएट करने में लगी है। 'राम मंदिर निर्माण' मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में मदद तो करेगा पर यह काफी नही होगा। इसके साथ-साथ कुछ और ठोस मुद्दे चाहिए जो सरकार को सत्ता तक पहुँचा सके।
2024 में होनेवाला लोकसभा चुनाव कोई मामूली चुनाव नही है। यह बीजेपी के लिए नाक का चुनाव है।और बीजेपी किसी कीमत पर नाक कटाना नही चाहेगी। जैसे भी हो 2024 फतेह करना ही मिशन है बीजेपी का। चाहे कोई भी कीमत चुकानी क्यो न पड़े। 2024 का चुनाव दो मायनो में और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। एक तो यह प्रधानमंत्री मोदी की हैट्रिक पारी है। और दूसरा,यह मोदी जी की आखरी पारी है। इसलिए मोदी जी और बीजेपी चाहेगी की,मोदी जी की विदाई जीत के साथ हो। इसके लिए बीजेपी ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। मोदी सरकार ने घोषणा कर दी है कि,उज्ज्वला योजना के लाभार्थियो को गैस सिलिंडर अब 600 रुपये में मिलेगा। उज्ज्वला योजना के करीब दस करोड़ महिला लाभार्थियों के वोट बैंक पर मोदी सरकार का यह "इलेक्शन स्ट्राइक" है। उसी तरह पांच किलो अनाज वाली योजना के अंतर्गत करीब अस्सी करोड़ लोगों के वोट को भी मोदी सरकार ने पहले से ही अपने पाले में डाले हुए है।
युवाओं को रोजगार,कर्मचारियों को पेंशन और अवाम बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा चाहती है। देश के आवाम को इन चार चीजो की सख्त जरूरत है। देश मे अभी दो मुद्दे काफी उबाल पर है- मणिपुर और ओपीएस। मणिपुर की घटना बीजेपी के लिए गले की फांस बन सकती है। जबकि ओपीएस बीजेपी को सत्ता में बने रहने के लिए एक मजबूत जरिया बन सकता है।ओपीएस 2024 के चुनाव में सरकार और विपक्ष के लिय टर्निंग पॉइंट हो सकता है। और इसके कयास भी लगाए जा रहे है। अब देखना है कि इस आग को हाथ कौन लगाता है। अगर बीजेपी ओपीएस को मुद्दा बनाकर चुनाव में जाती है तो, निःसंदेह 2024 में उसका सत्ता हस्तांतरण मुश्किल होगा।

Shashikant66

Sep 30 2023, 01:20

...मिलन अभी आधा अधूरा है।
वर्षो से लंबित महिला आरक्षण बिल 21सितंबर 2023 को संसद के दोनों सदनों से बिना किसी अवरोध के पास हो गया है। इसको लेकर महिलाओं में खुशी है। खुशी होनी भी चाहिए। क्योकि,यह बिल महिलाओं के उत्थान और विधायकी में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हैं। अलग-अलग महिला संगठनों ने भी इस बहुप्रतीक्षित बिल का स्वागत किया है। सबसे ज्यादा खुशी बीजेपी की महिला मोर्चा में देखने को मिला। पर ऐसा भी नही है कि,इस बिल से देश की सारी महिलाएं खुश है। क्योंकि,इस बिल में ओबीसी महिलाओं को आरक्षण नही दिया गया है। जाहिर है महिलाओं का ओबीसी समुदाय इस फैसले से खुश नही होगा।
'महिला आरक्षण बिल' शायद अंग्रेजो का दिया नाम था। इसलिए सरकार ने इसका नया नाम 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' रखा है। यह नाम भी कुछ जचा नही। अच्छा होता अगर इस बिल का नाम संस्कृत में होता। कम से कम हमारी एक हजार साल पुरानी संस्कृति की झलक तो मिलती।
देश की महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है। कोई ऐसा क्षेत्र या उपक्रम नही,जहां महिलाओं की उपस्थिति न हो। इसके बावजूद उनके साथ भेद-भाव होता है। लोकतंत्र के मंदिर (संसद) में महिलाओं का प्रवेश सुनिश्चित तो है,पर भगवान के मंदिर में उनका प्रवेश आज भी वर्जित है। देश में ऐसे कुछ बड़े और विख्यात मंदिर है जहाँ धर्मशास्त्र और परंपरा के आधार पर महिलाओं का प्रवेश निषेध हैं। क्या आज के दौर में भी महिलाओं के अधिकार धर्मशास्त्र से तय किये जायेंगे? जब संविधान में संशोधन कर महिलाओं को संसद में आरक्षण दिए जा सकते है तो फिर,धर्मशास्त्रों में संशोधन कर महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार क्यो नही दिए जा सकते?
'महिला आरक्षण बिल' और महिलाओं के बीच करीब छः वर्षो का फासला है। इन दोनो का मिलन अभी आधा अधूरा है। अर्थात,महिलाओं को इस बिल का फायदा आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में नही मिलेगा। इसके लिए उन्हें 2029 के लोकसभा चुनाव तक इंतज़ार करना पड़ेगा। यह बात मोदी सरकार को पता थी। फिर भी आनन-फानन में महिला आरक्षण बिल को संसद से पास कराया गया। मेरे अनुसार इसके दो कारण हो सकते है। पहला- संसद के विशेष सत्र के माध्यम से जनता के ध्यान को अडानी और कैग रिपोर्ट से हटा कर संसद पर शिफ्ट करना। ताकि जनता कैग रिपोर्ट और अडानी पर सरकार से सवाल न करे। लोग मणिपुर की घटना पर सवाल न करे। मणिपुर अब भी जल रहा है। जिस पर सरकार चुप्पी साधे हुए है। दूसरा कारण-जनता के मूड को चुनाव के मोड में फिट कर देना। इसलिए राजनीति के बोतल से 'महिला आरक्षण बिल' के जिन को समय से पहले बाहर निकाला गया। "प्रधानमंत्री और बीजेपी गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाएगी और जनता को बताएगी की,हमने महिला आरक्षण बिल पास करा कर महिलाओं को अधिकार देने का काम किया है।" जिसका सीधा संबंध चुनाव से है। और जनता के दिमाग मे यह बात फिट हो गया कि,देश में चुनाव होने वाला है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 25 सितंबर 2023 को भोपाल के चुनाव प्रचार अभियान से ही 'महिला आरक्षण बिल' को भजाना शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी का दावा है कि काँग्रेस ने मजबूरी में महिला आरक्षण बिल का समर्थन किया। अगर कांग्रेस महिला आरक्षण बिल का समर्थन नही करती तो,मोदी सरकार काँग्रेस को महिला विरोधी,देश विरोधी और न जाने क्या-क्या कहती। कांग्रेस ने बिल का समर्थन कर दिया तो भी मोदी सरकार को दिक्कत है। चलो मान लेते है काँग्रेस ने मजबूरी में ही सही,अपना वादा तो निभाया। आप तो अपने ही किये वादे को जुमला कह कर निकल जाते है। गजब के जीव है आप।
प्रधानमंत्री मोदी अपने स्वागत कार्यक्रम में कहते है- "महिलाओं को अधिकार देने के इस पवित्र कार्य के लिए ईश्वर ने मुझे चुना है।" अगर मोदी जी को सच मे महिलाओं के अधिकार की चिंता थी तो,तैतीस क्यो? पूरे पचास प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करना था। तब जाकर बराबरी की बाते सार्थक होती। मोदी सरकार ने महिलाओं को आरक्षण नही दिया बल्कि 'महिला आरक्षण' के नाम पर झुनझुना थमा दिया। सरकार ने तैतीस प्रतिशत आरक्षण के खेल में ओबीसी महिलाओं को दूर रखा। वही एससी/एसटी महिलाओं के आरक्षण में भी सेंधमारी कर दी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में अभी एससी की 84 सीटे और एसटी के लिए 47 सीटे आरक्षित है। महिला आरक्षण बिल लागू होने के बाद एससी की 84 सीटों में से केवल 28 और एसटी के 47 सीटों में से केवल 16 सीट ही रिज़र्व होगी। अर्थात एससी/एसटी की कुल सीटे 131से घट कर 44 रह जायेगी।
जिस महिला आरक्षण बिल को लेकर बीजेपी इतना खुश नजर आ रही है,एक्चुअली में तो वह कांग्रेस का ही प्रोजेक्ट था। जिसे आज बीजेपी पास करा कर सीन चौड़ा कर रही है। इस बिल में बीजेपी का अपना कुछ विज़न नही है। "ना ही एक्स्ट्रा 2ab जैसी कोई चीज।"
इसके बावजूद अगर कोई इस बिल को कांग्रेस का बिल बता रहा तो,यह बीजेपी को इतना चुभ रहा कि,भरी संसद में बीजेपी के सांसद 'राजेश बिधुड़ी' ने बसपा के सांसद दानिश अली' को गाली-गलौज और धमकी दे डाला। यह बिल बीजेपी का तब कहलाता, जब बीजेपी इसमें कुछ बदलाव करती या कुछ नई चीजें इसमें जोड़ती। "नारी शक्ति वंदन अधिनियम" ये तो नई बोतल में पुरानी शराब वाली बात हो गई। वैसे भी बीजेपी को पका-पकाया खाने की आदत है। बस नमक अपने स्वादानुसार डाल लेना है।

Shashikant66

Sep 26 2023, 17:27

डाकिया डाक लाया
पोस्ट ऑफिस बंद है या डाकियों की छुट्टी कर दी गयी। आज से दस बरस पहले तक तो सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र पोस्ट ऑफिस के मार्फत घर के पते पर आता था। अब मोदी जी ने यह काम भी खुद के जिम्मे ले लिया है। हर चार-पांच महीने के अंतराल पर रोजगार मेले का आयोजन कर नियुक्ति पत्र बाटने पहुँच जाते है। अब बेचारे मोदी जी भी क्या करे? उनके कैबिनेट में कोई काबिल नेता-मंत्री है ही नही। इनमें से अधिकांश तो मोदी जी के नाम पर ही चुनाव जीत कर आए है। इसलिए तो मोदी जी के सामने मंत्रियों की पतलून ढीली रहती है। सब के सब मोदी जी के चरण वंदना में लगे रहते है। "और लोग बेवजह भारतीय मीडिया को बदनाम कर रहे। कोई गोदी मीडिया बुलाता है तो,कोई दलाल कह कर पुकारता है। अब तो विपक्षी गठबंधन (I.N.D.I.A) ने भी चौदह एंकरों (पत्रकार) के बॉयकॉट का एलान कर दिया है।" तभी मैं सोचू की,सारे मंत्री-संतरी मोदी जी के सामने चु तक नही करते। उनके सामने बोलना तो दूर,सीधा खड़ा तक नही हो पाते। मोदी जी ने जो बोल दिया, उसे चापलूसो की तरह चुप-चाप फॉलो करते है। मजबूरी बस इसे अनुशाशन और संस्कार से जोड़ कर खुद को तसल्ली देते है। क्योकि,उन्हें पता है कि,अकेले चुनाव जीतना उनके बस की बात नही।आज भी मोदी कैबिनेट के अधिकांश नेता-मंत्री मोदी जी के भरोसे ही खड़े हैं। "अब मोदी जी अकेले तो सारे जगहों से खड़े नही हो सकते न! नही तो मोदी जी वह भी कर के दिखा देते। हो सकता है भविष्य में संविधान संशोधन कर उसमें ऐसे नियम जोड़ने का प्रस्ताव बीजेपी दे सकती है।" मोदी की बदौलत नेताओ की पहचान तो बन गयी,पर क्षेत्र और जनता के बीच उनकी पकड़ नही है। ऐसे में मोदी जी की जी हजूरी तो करनी ही पड़ेगी।
आज के अखबार (प्रभात खबर) में रोजगार मेले का विज्ञापन छपा है। जिसमे प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्ति पत्र देने की खबर पूरे पेज पर छपी है। प्रधानमंत्री मोदी आज (26/9/2023) 51 हज़ार से अधिक अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र सौपेंगे। विज्ञापन में बस एक कमी रह गयी। मोदी जी की तस्वीर अगर डाकिये के कॉस्ट्यूम में होती तो,विज्ञापन कही ज्यादा मीनिंगफुल होता।
मन की बात वही करेंगे। वंदे भारत को झंडी वही दिखाएंगे। तमाम छोटे-बड़े निर्माणों का शिलान्यास वही करेंगे। G20 के पोस्टरों पर वही रहेंगे। उज्ज्वला सिलिंडर पर उन्ही की तस्वीर है। अभ्यर्थियों को नौकरी का नियुक्ति पत्र वही देंगे। फिर इतने सारे मंत्री-सन्तरी रख कर सरकारी खजाना लुटाने का क्या मतलब? मोदी जी ने कमाल का आइडिया निकाला हैं। खुद का प्रचार करने और खबरों में बने रहने का। Modi's Show is Going On...

Shashikant66

Sep 17 2023, 23:50

घमंडिया प्रधानमंत्री
G20 की अपार सफलता के उपलक्ष्य में 13 सितंबर 2023 को नई दिल्ली के बीजेपी कार्यालय में प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत का कार्यक्रम आयोजित किया गया। "एक साल से देश केअलग-अलग शहरों में आयोजित G20 की बैठको से शायद सरकार का मन नही भरा। इसलिए बीजेपी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत का एक स्पेशल कार्यक्रम रखा गया। सरकार इस कार्यक्रम के माध्यम से देश की जनता को यह बताने की कोशिश कर रही है कि,G20 की मेजवानी हमे मोदी जी के बदौलत हासिल हुई है। पर ऐसा नही है।
मोदी जी कहते है, 'मैं बचपन मे चाय बेचता था।' मुझे लगता है वे चाय बेचते कम थे,चाय का प्रचार ज्यादा करते थे। G20 के आयोजन को बीजेपी और मोदी जी इस तरह प्रचारित कर रहे जैसे देश के हाथ मे "G20" नाम की जादूई छड़ी आ गयी हैं। जो देश की बेरोजगारी और महंगाई को एक झटके में दूर कर देगी;और हम पांच ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। G20 के मेहमानों को सोने-चांदी के बर्तन में खाना परोसा गया। इधर देश की 80 करोड़ जनता 5 किलो अनाज पर आश्रित है;और सरकार जनता को विश्व गुरु का सपना दिखा रही है।"
उस दिन देश मे एक बड़ी घटना घटी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकियों संग मुठभेड़ में हमारे तीन जवान कर्नल मनप्रीत सिंह,मेजर आशीष ढोंचक तथा जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट्ट शहीद हो गए। प्रधानमंत्री मोदी अपने खुद के स्वागत कार्यक्रम में इतने व्यस्त थे कि,उनका राष्ट्रवाद और देश प्रेम नागपुर मुख्यालय में सो रहा था। बॉर्डर पर सेना के जवानों के साथ सेना की वर्दी पहनकर फ़ोटो खिंचवाने वाले हमारे प्रधानमंत्री इतने व्यस्त थे कि,उन्हें देश के जवानों की शहादत पर दो शब्द बोलने की फुरसत नही मिली। क्रिकेटर की उंगली फ्रैक्चर होती है तो,मोदी जी ट्वीट कर देते है। पर अनंतनाग में शहीद हुए जवानों की शहादत पर एक शब्द नही बोले। बीजेपी का देश-प्रेम और राष्ट्रवाद कही जुमला तो नही!
2019 के पुलवामा हमले के बाद का मंजर याद कीजिये। किस तरह से सरकार के नेता-मंत्रियों की होड़ लगी थी शहीदों के शव यात्रा में शामिल होने के लिए। सरकार कोई भी मौका गवाना नही चाह रही थी। क्योंकि,दो महीने बाद देश मे लोकसभा का चुनाव था। प्रधानमंत्री मोदी ने तो पुलवामा के उन शहीदों के नाम पर वोट भी मांगा था। शायद मोदी जी सिर्फ चुनाव के वक्त ही शहीदों को नमन करते है। अभी तो चुनाव में वक्त है। इसलिए प्रधानमंत्री मौन है। चुनाव नजदीक आते ही उनका देश-प्रेम और राष्ट्रवाद उफान मारने लगेगा।
मदर ऑफ डेमोक्रेसी वाले देश के प्रधानसेवक अपने उस राज्य की तरफ देखना तो दूर,उस पर बात करना भी उन्हें गवारा नही;जो आज चार महीने से दंगो की आग में जल रहा। राज्य सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पत्रकारों पर एफ.आई.आर करती है। मणिपुर के हालात बद से बद्तर होते जा रहे। इसके बाद भी केंद्र सरकार ने अब तक मणिपुर के मुख्यमंत्री को बर्खास्त नही किया। क्यो? आखिर किस बात का अभिमान है प्रधानमंत्री को। खोखले देश-प्रेम और राष्ट्रवाद का ढोंग करने वाले आज जवानो की शहादत पर चुप क्यो है? जलते मणिपुर पर राष्ट्रवाद कहाँ गायब हो गया?

Shashikant66

Sep 14 2023, 18:15

हिंदी दिवस
आज पूरे देश मे हिंदी दिवस की धूम है। इस बार का हिंदी दिवस धुंआधार होगा। क्योंकि इस बार भारत ने "इंडिया" को हरा दिया है। वैसे संविधान ने "भारत" और "इंडिया" को बराबर का अधिकार दिया है। आप दोनों का इस्तेमाल कर सकते है या दोनों में से किसी का भी इस्तेमाल कर सकते है। पर दोनो में से किसी एक को हटा नही सकते। हिंदी और अंग्रेजी दोनो हमारे देश की आधिकारिक भाषा है। मुझे इससे कोई दिक्कत या शिकायत नही है। शिकायत वैसे लोगो से है,जिन्हें हिंदी दिवस का मतलब ही नही पता और हिंदी को हिंदुस्तान से जोड़कर दूसरी अन्य भाषा मसलन अंग्रेजी,उर्दू तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को टारगेट करते है। वैसे लोग रोजमर्रा की ज़िन्दगी में बिना अंग्रेजी और उर्दू के एक वाक्य नही बोल पाते। पर हिंदी की वकालत स्वदेशी भाषा के तौर पर करते फिरते हैं।
14 सितंबर,1949 को संविधान सभा के निर्णय के बाद हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया गया। परंतु दक्षिण भारतीयों के विरोध के बाद अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा के रूप मे शामिल किया गया। 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। हिंदी और हिंदी दिवस का मतलब किसी अन्य भाषा का तिरस्कर करना नही होता। आप अंग्रेजी का तिरस्कार इसलिए कर रहे क्योकि वो अंग्रेजो द्वारा बोली जाती है;और अंग्रेजो ने हम पर शासन किया था। इस हिसाब से तो आपको हिंदी का भी तिरस्कार करना चाहिए। क्योकि लोगो द्वारा बोली जानेवाली हिंदी में करीब नब्बे प्रतिशत शब्द अरबी,फ़ारसी ,उर्दू और अंग्रेजी के है।
कंप्यूटर। जिसको हिंदी में संगणक कहते है। कितने लोग कंप्यूटर के लिए संगणक का प्रयोग करते है? मौत शब्द अरबी भाषा से लिया गया है। जिसका हिंदी "मृत्यु" होता है। कितने लोग मृत्यु शब्द का इस्तेमाल करते है? उसी तरह आदमी शब्द फ़ारसी से लिया गया है। जिसका इस्तेमाल उर्दू और हिंदी दोनो में होता है। आदमी शब्द का हिंदी मनुष्य है। कितने लोग आदमी के लिए मनुष्य शब्द का इस्तेमाल करते है? उर्दू,फ़ारसी,अरबी,अंग्रेजी आदि के हज़ारों शब्द हमारी बोली जानेवाली हिंदी में शामिल है। हम उसका निरंतर प्रयोग कर रहे है। और यह स्वीकार्य भी है। गजब तो तब लगता है जब पढ़े-लिखे लोग भी उर्दू से इसलिए नफरत करते है; क्योंकि उनका मानना है कि उर्दू मुसलमानों की भाषा है। एक बार मेरे एक मित्र ने "मुबारकबाद" को मुस्लिम शब्द बता दिया। उर्दू न तो इस्लाम की भाषा है न मुसलमान की भाषा है। उर्दू हिंदुस्तान की भाषा है। उर्दू भारत की जुबान है। यही उर्दू हिंदी के साथ मिलकर उसको खूबसूरत बनाती है। हमारे मशहूर शायर और गीतकार गुलजार साहब अपनी नज़्म, गीत,शेरो-शायरी उर्दू में लिखते है। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लेखनी भी उर्दू में चलती थी। हम जिस हिंदी पर गर्व करते है। उसकी खूबसूरती उर्दू,अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्दों के योगदान से ही गुलजार है। रही बात अंग्रेजी की तो,अंग्रेजी हमारी न हो कर भी हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा बोली जानेवाली भाषा है। आलम यह है कि आज आप बगैर अंग्रेजी के अधूरे है।
भारत विविधताओं का देश हैं और यही हमारी पहचान है;हमारी खूबसूरती है। हमारी राजभाषा हिंदी में डाइवर्सिटी है। जो इसे औरो से अलग तथा खास बनाती है। हिंदी पर हमें नाज है। हमें अपने हिंदी का उत्सव मनाना चाहिए। सिर्फ इसलिए नही की हमे दूसरी भाषा को नीचा दिखाना है। बल्कि हिंदी को सम्मान देने के लिए हमे हिंदी दिवस मनाना चाहिए। साथ-साथ उस भाषा का भी सम्मान करना है जिसका हमारे भविष्य के निर्माण में अहम योगदान है।

Shashikant66

Jun 20 2023, 04:24

#सम्राट सोता रहा,मणिपुर जलता रहा#
डेढ़ महीने जे अधिक हो गया मणिपुर को जलते हुए। केंद्र सरकार कान में तेल डाल कर,चादर ताने सोई पड़ी है। तो क्या यह मान लिया जाए की, मणिपुर का जलना राजनीतिक राणनीति का हिस्सा है। मणिपुर की हिंसा से निपटने के लिए सरकार ने उपद्रवियो को गोली मारने के आदेश तक दिए थे। इसके बाद भी हिंसा में कोई कमी नही आई। सोचिए कि वहाँ के लोगो मे सरकार के प्रति कितना गुस्सा है कि,लोग जान देने और जान लेने पर उतारू है। आखिर ऐसा माहौल क्यो बनने दिया गया? बीजेपी सरकार के नेता-मंत्री सिर्फ गोली मारने की बात करते है, या फिर मन की बात करते है। जन की बात इनकी डिक्शनरी में है ही नही।
केंद्र में बीजेपी की सरकार,मणिपुर में बीजेपी की सरकार। इसके बावजूद मणिपुर पिछले डेढ़ महीने से सुलग रहा है। करीब 35 लाख आबादी वाले मणिपुर में लगभग 40 हजार से अधिक सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद हालात संभल नही रहे। क्या यह सरकार की विफलता नही है? या फिर सरकार ने जानबूझ कर ऐसे हालात पैदा किये है। राज्य सरकार फेल,केंद्र सरकार चुप और मणिपुर रक्तरंजित हो रहा। क्या यह महज़ संयोग है या साजिस?
3 मई 2023 को मणिपुर के मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में आदिवासी समुदाय के "आदिवासी एकजुटता मार्च" के आयोजन के बाद दंगा भड़क गया। मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत और कुकी समुदाय की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है। मणिपुर की घटना को लेकर गोदी मीडिया पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। मणिपुर में इंटरनेट सेवा ठप्प है। मणिपुर से बाहर रह रहे लोगो का अपने घरों से कोई संपर्क नही। उन्हें थोड़ी बहुत जानकारी मीडिया रिपोर्ट से ही मिल पा रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, " मणिपुर में करीब 250 चर्च,1500 गांव और 4000 लोगो के घर जला दिए गए। वही 100 से अधिक लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया। 300 से अधिक लोग घायल है और 50 हज़ार से ज्यादा लोग विस्थापित हुए है।"
मणिपुर के लोग ही नही बल्कि बीजेपी के मंत्री (आर.के.रंजन) खुद बयान दे रहे है की,"मणिपुर में कानून व्यवस्था खत्म हो चुका है। मौजूदा सरकार मणिपुर में शांति कायम करने में असफल रही है।" इसके बावजूद केंद्र की बीजेपी सरकार मणिपुर हिंसा पर मौन धारण किये हुए है। आखिर इस चुप्पी का सबब क्या है? केंद्र ने अब तक राज्य सरकार को बर्खास्त तक नही किया। जबकि मणिपुर की हिंसा को डेढ़ महीने हो चुके है।
मणिपुर हिंसा के एक महीने बाद गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर दौरे पर गए। पर हुआ कुछ नही। उल्टा उनके दौरे से लौटते ही केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री आर.के.रंजन और मणिपुर सरकार में शामिल महिला मंत्री नेमचा किपजेन के घर में उपद्रवियों ने आग लगा दी। मणिपुर जल रहा और मंत्री जी केरल के दौरे में व्यस्त है। उससे भी कमाल की बात है कि, मन की बात करनेवाले प्रधानमंत्री ने अब तक मणिपुर हिंसा पर एक शब्द नही बोले। मणिपुर हिंसा को रोकने में विफल मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह से खफ़ा,दिल्ली में रह रहे मणिपुर के लोग केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे है। मणिपुर के दोनों समुदाय (मैतेई और कुकी) के लोगो की नज़रे प्रधानमंत्री मोदी पर टिकी है। मणिपुर की घटना पर प्रधानमंत्री की चुप्पी से मणिपुर के लोग काफी दुःखी है। याद रखिये की, प्रधानमंत्री ने तब भी एक शब्द नही बोला था,जब महिला पहलवान जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रही थी। विश्वगुरु देश के विश्वविख्यात प्रधानमंत्री देश को जलता छोड़ कर अमेरिका की यात्रा पर जा रहे है। तो उधर बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा,मणिपुर की स्थिति से बेखबर त्रिपुरा में रैली कर रहे है। शायद इनके लिए लोगो की मौत से ज्यादा जरूरी रैली है।
"रोम जलता रहा और नीरो बांसुरी बजाता रहा।" ठीक वैसे ही हालात आज मणिपुर का है। "सम्राट सोता रहा और मणिपुर जलता रहा।" सरकार को मणिपुर और मणिपुर के लोगो की चिंता नही। बल्कि अपने नेता-मंत्रियों की चिंता है। तभी तो,जब उपद्रवी लोग बीजेपी मंत्रियों के घर फुकने लगे,तब जाकर सरकार हरकत में आई है।

Shashikant66

Jun 20 2023, 03:58

सम्राट सोता रहा,मणिपुर जलता रहा
*# "सम्राट सोता रहा,मणिपुर जलता रहा" #*


डेढ़ महीने जे अधिक हो गया मणिपुर को जलते हुए। केंद्र सरकार कान में तेल डाल कर,चादर ताने सोई पड़ी है। तो क्या यह मान लिया जाए की, मणिपुर का जलना राजनीतिक राणनीति का हिस्सा है। मणिपुर की हिंसा से निपटने के लिए सरकार ने उपद्रवियो को गोली मारने के आदेश तक दिए थे। इसके बाद भी हिंसा में कोई कमी नही आई। सोचिए कि वहाँ के लोगो मे सरकार के प्रति कितना गुस्सा है कि,लोग जान देने और जान लेने पर उतारू है। आखिर ऐसा माहौल क्यो बनने दिया गया? *बीजेपी सरकार के नेता-मंत्री सिर्फ गोली मारने की बात करते है, या फिर मन की बात करते है। जन की बात इनकी डिक्शनरी में है ही नही।*
केंद्र में बीजेपी की सरकार,मणिपुर में बीजेपी की सरकार। इसके बावजूद मणिपुर पिछले डेढ़ महीने से सुलग रहा है। करीब 35 लाख आबादी वाले मणिपुर में लगभग 40 हजार से अधिक सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद हालात संभल नही रहे। क्या यह सरकार की विफलता नही है? या फिर सरकार ने जानबूझ कर ऐसे हालात पैदा किये है। राज्य सरकार फेल,केंद्र सरकार चुप और मणिपुर रक्तरंजित हो रहा। क्या यह महज़ संयोग है या साजिस?
3 मई 2023 को मणिपुर के मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में आदिवासी समुदाय के "आदिवासी एकजुटता मार्च" के आयोजन के बाद दंगा भड़क गया। मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत और कुकी समुदाय की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है। मणिपुर की घटना को लेकर गोदी मीडिया पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। मणिपुर में इंटरनेट सेवा ठप्प है। मणिपुर से बाहर रह रहे लोगो का अपने घरों से कोई संपर्क नही। उन्हें थोड़ी बहुत जानकारी मीडिया रिपोर्ट से ही मिल पा रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, " मणिपुर में करीब 250 चर्च,1500 गांव और 4000 लोगो के घर जला दिए गए। वही 100 से अधिक लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया। 300 से अधिक लोग घायल है और 50 हज़ार से ज्यादा लोग विस्थापित हुए है।"
मणिपुर के लोग ही नही बल्कि बीजेपी के मंत्री (आर.के.रंजन) खुद बयान दे रहे है की,"मणिपुर में कानून व्यवस्था खत्म हो चुका है। मौजूदा सरकार मणिपुर में शांति कायम करने में असफल रही है।" इसके बावजूद केंद्र की बीजेपी सरकार मणिपुर हिंसा पर मौन धारण किये हुए है। आखिर इस चुप्पी का सबब क्या है? केंद्र ने अब तक राज्य सरकार को बर्खास्त तक नही किया। जबकि मणिपुर की हिंसा को डेढ़ महीने हो चुके है।
मणिपुर हिंसा के एक महीने बाद गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर दौरे पर गए। पर हुआ कुछ नही। उल्टा उनके दौरे से लौटते ही केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री *आर.के.रंजन* और मणिपुर सरकार में शामिल महिला मंत्री *नेमचा किपजेन* के घर में उपद्रवियों ने आग लगा दी। मणिपुर जल रहा और मंत्री जी केरल के दौरे में व्यस्त है। उससे भी कमाल की बात है कि, मन की बात करनेवाले प्रधानमंत्री ने अब तक मणिपुर हिंसा पर एक शब्द नही बोले।
मणिपुर हिंसा को रोकने में विफल *मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह* से खफ़ा,दिल्ली में रह रहे मणिपुर के लोग केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे है। मणिपुर के दोनों समुदाय (मैतेई और कुकी) के लोगो की नज़रे प्रधानमंत्री मोदी पर टिकी है। मणिपुर की घटना पर प्रधानमंत्री की चुप्पी से मणिपुर के लोग काफी दुःखी है। याद रखिये की, प्रधानमंत्री ने तब भी एक शब्द नही बोला था,जब महिला पहलवान जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रही थी।
विश्वगुरु देश के विश्वविख्यात प्रधानमंत्री देश को जलता छोड़ कर अमेरिका की यात्रा पर जा रहे है। तो उधर बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा,मणिपुर की स्थिति से बेखबर त्रिपुरा में रैली कर रहे है। शायद इनके लिए लोगो की मौत से ज्यादा जरूरी रैली है। "रोम जलता रहा और नीरो बांसुरी बजाता रहा।" ठीक वैसे ही हालात आज मणिपुर का है। "सम्राट सोता रहा और मणिपुर जलता रहा।" सरकार को मणिपुर और मणिपुर के लोगो की चिंता नही। बल्कि अपने नेता-मंत्रियों की चिंता है।जब उपद्रवी लोग बीजेपी मंत्रियों के घर फुकने लगे,तब जाकर सरकार हरकत में आई है।

Shashikant66

Feb 14 2023, 17:26

*# हंगामा है क्यो बरपा...#*

*हंगामा* है क्यो बरपा,थोड़ा सच ही तो बोला है...। पिछले करीब एक महीने से राजनीतिक गलियारे में रामचरितमानस की एक चौपाई को लेकर हंगामा मचा हुआ है।
....ढोल,गवार,शुद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
यही वो चौपाई है, जिस पर बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने आपत्ति जताई है। शिक्षा मंत्री ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि, 'रामचरितमानस समाज को बाटने वाली पुस्तक है। जिसमे शुद्रो और स्त्रियों को दंड का अधिकारी बताया गया है। जो कि गलत और अपमानजनक है।' मैं शिक्षा मंत्री के बात से इतेफाक रखता हूं। उन्होंने वही कहा,जो रामचरितमानस में लिखा हुआ है। उन्होंने अलग से कुछ नही कहा। और यह छुपाने वाली बात भी नही है। कोई भी रामचरितमानस की चौपाइयों और उसके हिंदी अनुवाद को पढ़ कर समझ सकता है। शिक्षा मंत्री के बयान के बाद से बिहार के विपक्षी कुनबे में हलचल मचा है। विपक्ष ने इसे हिन्दुओ और भगवान राम का अपमान बता कर शिक्षा मंत्री को बर्खास्त करने की मांग कर दी। पर यह भगवान राम का विरोध कैसे हो गया? क्या रामचरितमानस भगवान राम ने लिखा है? यह हिन्दुओं का अपमान कैसे हो गया? *क्या शुद्र हिन्दू नही है?* अगर बीजेपी मानती है कि शूद्र हिन्दू नही है तो, बेशक यह हिन्दुओ का अपमान है।
ऐसा नही है कि यह अपने तरह की पहली घटना है। रामचरितमानस/रामायण तथा तुलसीदास पर पहले भी विवाद होते रहे है। अतीत में भी रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल खड़े हुए है। अगर किसी धार्मिक या साहित्यिक किताब में किसी धर्म या समुदाय विशेष पर आपत्तिजनक बाते लिखी गई है तो, निसंदेह यह उस धर्म/समुदाय तथा व्यक्ति विशेष के लिए अपमानजनक है। इस पर शांतिपूर्वक मंथन करने की जरूरत है। न कि हो-हल्ला मचा कर राजनीतिक रंग देने की।
विरोध न तो राम का है न धर्म का; न ही हिन्दुओ का। यहाँ विरोध रामचरितमानस की उस चौपाई से है,जिसमे शुद्रो और स्त्रियों के प्रति अपमानजनक बाते लिखी गई है। जाहिर सी बात है,किसी धर्मग्रंथ या साहित्यिक पुस्तक में किसी एक जाति विशेष/समुदाय का महिमामंडन किया गया है तो, उस जाती विशेष के लोगो को तो अच्छा ही लगेगा। पर जिसकी बुराई की गई है। उस व्यक्ति/जाती के लोगो को तो बुरा लगेगा ही। बस इसी बात का झगड़ा है। जिन लोगो के बारे में बुरा लिखा गया है,उनलोगों ने सवाल खड़ा कर दिया तो,लोगो को मिर्ची लग गई।
ब्राह्मणों ने शुरू से समाज मे ऐसा भ्रम फैला रखा है कि, ब्राह्मण सर्बोपरि है। श्रेष्ठ है। ब्राह्मण की बात ब्रह्मा की लकीर है। ब्राह्मण अगर किसी को गाली भी दे दे तो,उसे आशीर्वाद समझना चाहिए। बगैरा, बगैरा।रामचरितमानस,"वाल्मिकी रामायण" तथा "मनुस्मृति" में भी शुद्रो और स्त्रियों के प्रति लिखी गई जहरीली बातों की चर्चा दलित चिंतको के लेखों और पत्र-पत्रिकाओं में मिलता है। अफसोस कि हमारे समाज मे आज भी उन किताबो को बड़े श्रद्धा के साथ पढ़ा जा रहा है।
राम को पढ़ने, समझने और जपने के लिए जब "वाल्मीकि रामायण" है ही तो,ये रामचरितमानस बीच मे कहाँ से आ गया? और क्यो आया? यह बड़ा प्रश्न है। वास्तव में रामचरितमानस "वाल्मिकी रामायण" का संपादित प्रतिलिपि है। जिसे तुलसीदास ने अपने हिसाब से ब्राह्मणवादी विचारधारा को ध्यान में रख कर रचा। अगर ऐसा नही है तो, फिर रामचरितमानस की चौपाइयों में शुद्रो के लिए अपमानजनक बाते क्यो लिखी गई? आज "वाल्मिकी रामायण" कम और रामचरितमानस ज्यादा पढ़ा जाता है। क्यो? अवधि भाषा मे होने के कारण या ब्राह्मण रचित होने के कारण। अवधि या हिंदी में "रामायण" का भी अनुवाद किया जा सकता था। शम्बूक वध और सीता की अग्नि परीक्षा को लेकर भी "रामायण" पर प्रश्नचिन्ह लगे है। तुलसीदास ने "वाल्मिकी रामायण" के कुछ प्रसंगों का जिक्र रामचरितमानस में नही किया है। शायद ऐसा करने पर वे रामचरितमानस में "राम" को नायक के रूप में स्थापित नही कर पाते। और उनका रामचरितमानस जनप्रिय/लोकप्रिय नही बन पाता। बहुत से विद्वान यह मानते है कि, "उत्तरकांड" रामायण का चैप्टर नही है। इसे बाद में जोड़ा गया है। पर किसने जोड़ा? कब जोड़ा?इसकी जानकारी उनके पास नही है। है न कमाल की बात!
पिछले महीने से राजनीतिक गलियारे में जो विवाद छिड़ा हुआ है,उसके दो मायने हो सकते है। पहला राजनीतिक विरोध। दूसरा राजनीतिक विरोध की आड़ में जातिवादी विरोध।
*राजनीतिक विरोध:-* बिहार में बीजेपी विपक्ष में है तो,सरकार का विरोध लाज़मी है। वह भी तब,जब मुद्दा धर्मिक हो तो, विपक्ष (बीजेपी) कोई कसर नही छोड़ेगा। बिहार के शिक्षा मंत्री ने जब रामचरितमानस की चौपाई पर आपत्ति जताई तो,सिर कलम करने का फतवा आ जाता है। वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद साहब ने तो राम के जन्म पर ही सवाल खड़े कर दिए। उनको लेकर कही कोई चर्चा नही। कोई फतवा नही। क्यो? क्योकि संजय निषाद बीजेपी के सहयोगी पार्टीवाले जो ठहरे।
*राजनीति की आड़ में जातिवादी विरोध:-* आज से करीब दो महीने पहले, डॉ. विकास दिब्यकीर्ति (दृस्टि कोचिंग) ने "रामायण" के शम्बूक वध और माता सीता पर "राम" द्वारा आपत्तिजनक शब्द प्रयोग करने पर सवाल खड़े किए थे। तब कोई हो-हल्ला नही मचा। कोई विवाद नही। कोई फतवा नही। तब किसी हिन्दू की भावना आहत नही हुई। क्यो? क्योकि, "रामायण" के उन श्लोकों पर सवाल खड़े करनेवाला कोई शुद्र नही,ब्राह्मण था।
ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी लोग नही चाहते थे कि,शुद्र लोग पढ़े। इसलिए तो इन्होंने शुद्रो के पढ़ने का अधिकार छीन रखा था। आज शुद्र पढ़- लिख रहे है। समाज मे समानता और अपने हक़ की बात कर रहे तो,इन्हें दर्द हो रहा है। जैसे-जैसे ये ( ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी विचारधारा) एक्सपोज़ हो रहे है,धर्मग्रंथो में लिखित अपनी विकृत मानसिकता वाली चौपाइयों/श्लोको को जायज ठहराने के लिए,लोगो के सामने उसे तोड़-मरोड़कर परिभाषित कर रहे है। शब्दो के अर्थ को ही बदल दे रहे है। इस तरह तो वे खुद रामचरितमानस को झूठा साबित कर रहे है। और यदि कोई दूसरा रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल खड़ा कर रहा तो, इनकी नजर में वो धर्मविरोधी हो जा रहा। अगर रामचरितमानस की चौपाई सही है तो, *उसको संपादित कर के "ताड़ना" की जगह शिक्षा शब्द क्यो जोड़ा गया?*
*क्या यह सही नही है कि, शुद्रो को पढ़ने-लिखने का अधिकार नही था।*

*शूद्र अगर शास्त्र सुन ले तो उसके कानों में पिघला हुआ शीशा डालने की बात इनके ग्रंथो में नही है?*

*क्या दासी प्रथा झूंठ था?*

*क्या ये आज शुद्रो को अपने तुल्य मानते है?*

क्या ये सब भी झूठ है? आज ये अपनी गलती मानने के बजाय,शास्त्रों में वर्णित शुद्रो के लिए आपत्तिजनक बातों को जायज ठहराने पर अड़े है। यही सबसे बड़ी समस्या है। ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी विचारधारा की यही हठता हिंदुओं को ले डूबेगी। इनका यही रवैया रहा तो,अगले पन्द्रह-बीस सालों में शुद्रो का एक बड़ा तबका धीरे-धीरे दूसरे धर्मों के तरफ प्रस्थान कर जाएंगे और हिंदुस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक बन जायेगा।
तुलसीदास की चौपाई "...ढोल,गवार,शुद्र,पशु नारी,सकल ताड़ना के अधिकारी" से यह साबित होता है कि, उस दौर में ब्राह्मणों का वर्चस्व था। उनके नजरो में शुद्र और नारी की दशा ग़ुलामों वाली थी। गृह मंत्री अमित शाह कहते है कि,'हमारा इतिहास ठीक से नही लिखा गया। इसलिए उसे फिर से लिखने की जरूरत है।' जब आप इतिहास को फिर से लिख सकते है तो, शास्त्रों में शुद्रो (दलित,आदिवासी, पिछड़ा) के लिए लिखी गई अपमानजनक बातों को क्यो नही हटा सकते? मेरी समझ मे आज शुद्र (दलित,आदिवासी और पिछड़ा) जिसका विरोध कर रहे है,वो तुलसीदास का विरोध नही है। ना ही रामचरितमानस और हिन्दू धर्म का विरोध है। बल्कि यह ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद का विरोध है। जिसे बहुत चालाकी से ब्राह्मणवादी विचारधारा के लोगो ने,धर्म और भगवान का विरोध बना दिया। ताकि देश और समाज मे उन्माद फैले। शुद्रो के इस आवाज को धर्म और भगवान के अपमान के नाम पर दबा दिया जाए। पर वो दौर कुछ और था,आज का दौर कुछ और है। ये लड़ाई इतनी जल्दी खत्म होनेवाली नही है।