राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त की आज 138 वीं जयंती,आइए जानते है उनके साहित्यिक जीवन के बारे में
मैथिलीशरण गुप्त भारतीय साहित्य के एक प्रमुख कवि और लेखक थे, जिन्हें "राष्ट्रकवि" की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के चिरगांव में हुआ था। उनकी 138वीं जयंती के अवसर पर, हम उनके साहित्यिक जीवन पर एक नज़र डालते हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म एक संपन्न और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था। उनके पिता, सेठ रामचरण गुप्त, एक सम्मानित व्यापारी थे। प्रारंभिक शिक्षा के बाद, मैथिलीशरण गुप्त ने स्वाध्याय के माध्यम से संस्कृत, हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी का अध्ययन किया।
साहित्यिक करियर
मैथिलीशरण गुप्त ने अपने साहित्यिक करियर की शुरुआत बाल्यावस्था में ही कर दी थी। उनकी पहली कविता "रंग में भंग" 1904 में प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने "भारत-भारती" (1912) नामक काव्य रचना की, जो उन्हें राष्ट्रीय ख्याति दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हुई। इस काव्य में उन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा, और स्वतंत्रता संग्राम की भावनाओं को उजागर किया।
प्रमुख रचनाएँ
मैथिलीशरण गुप्त की साहित्यिक यात्रा में अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का योगदान रहा। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:
साकेत: इस महाकाव्य में उन्होंने रामायण के लक्ष्मण और उर्मिला के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है।
पंचवटी: इसमें रामायण के पात्रों की मनोवैज्ञानिक विश्लेषण को दर्शाया गया है।
जयद्रथ वध:
यह महाभारत के एक प्रमुख घटना पर आधारित है।
द्वापर: इसमें कृष्ण के जीवन और महाभारत की कथा को चित्रित किया गया है।
साहित्यिक शैली
मैथिलीशरण गुप्त की काव्य शैली सरल, सुगम और सुबोध थी। उनकी भाषा में एक विशेष प्रकार की प्रवाहमयता और सौंदर्य था, जो पाठकों को आकर्षित करता है। उन्होंने अपने काव्यों में देशभक्ति, समाज सुधार और मानवता की भावनाओं को प्रमुखता दी।
सम्मान और पुरस्कार
मैथिलीशरण गुप्त को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। इसके अलावा, उन्हें "राष्ट्रकवि" की उपाधि भी मिली, जो उनकी देशभक्ति और साहित्यिक योगदान को स्वीकार करने का प्रतीक है।
उपसंहार
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक जीवन भारतीय साहित्य के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनकी काव्य रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज को प्रेरणा देने वाली भी हैं। उनकी 138वीं जयंती के अवसर पर, हमें उनके साहित्यिक योगदान को याद करते हुए उनके आदर्शों को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए।
Aug 03 2024, 16:22