वे मौके जब मालदीव के लिए “संकटमोचक” बना भारत, जानें कब-कब की मदद
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भारत और मालदीव के रिश्ते इन दिनों चर्चा में है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद मालदीव सरकार के उप मंत्रियों द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। जिसके बाद से दोनों देशों के बीच के रिश्ते तल्ख होते दिख रहे हैं। भारत की आपत्ति के बाद मालदीव सरकार ने इन उप मंत्रियों को निलंबित कर दिया था।हालंकि, इससे पहले दोनों देशों के सम्बंधों में खटास की शुरुआत हो चुकी थी। इसकी शुरूआत खुद राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने की थी। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में इंडिया आउट का भारत विरोधी नारा दिया और सत्ता हासिल कर ली।
अपने चुनाव प्रचार में “इंडिया आउट” का नारा देने वाले मुइज़्ज़ू के नवंबर, 2023 में राष्ट्रपति बनने के बाद से भारत और मालदीव के संबंधों पर सवाल उठे हैं, लेकिन ऐतिहासिक तौर पर दोनों देश के बीच दोस्ताना संबंध रहे हैं। आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद मालदीव की पूर्व रक्षा मंत्री मारिया अहमद दीदी का दिया ये बयान इसकी तस्दीक करता है, जिसमें वे कहती हैं कि भारत हमारे लिए 911 कॉल की तरह है और जब भी हमें जरूरत होती है, हम भारत से मदद मांगते हैं। तो बचाव के लिए भारत के लोग हमारे पास तुरंत आ जाते हैं। भारत हमारा उस तरह का दोस्त है जब हमें तकलीफ होती है वे मदद के लिए आते हैं। मारिया अहमद दीदी के बयान से साफ जाहिर है कि बारत हमेसा से मालदीव का मददगार रहा है। भारत हमेशा से मालदीव के अच्छे और बुरे समय में उसके साथ खड़ा रहा है। भारत 1965 में इस द्वीप राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था और उसने मालदीव के साथ राजनयिक संबंध भी स्थापित किए थे।
जब तख्तापलट से बचाने के लिए भारत ने चलाया 'ऑपरेशन कैक्टस'
1988 की एक घटना दोनों देशों के संबंधों में मील का एक पत्थर मानी जाती है। उस वक्त मालदीव में एक विद्रोह हुआ था, जिसे भारत की फ़ौज की मदद से नाकाम किया गया था। उस अभियान का नाम था - 'ऑपरेशन कैक्टस'। 3 नवंबर, 1988 को मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम भारत यात्रा पर आने वाले थे। उनको लाने के लिए एक भारतीय विमान दिल्ली से माले के लिए उड़ान भर चुका था। अभी वो आधे रास्ते में ही था कि भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अचानक एक चुनाव के सिलसिले में दिल्ली से बाहर जाना पड़ गया। राजीव गांधी ने ग़यूम से बात कर ये तय किया कि वो फिर कभी भारत आएंगे। लेकिन ग़यूम के ख़िलाफ़ विद्रोह की योजना बनाने वाले मालदीव के व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफ़ी और उनके साथी सिक्का अहमद इस्माइल मानिक ने तय किया कि बग़ावत को स्थगित नहीं किया जाएगा। उन्होंने श्रीलंका के चरमपंथी संगठन 'प्लोट' (पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम) के भाड़े के लड़ाकुओं को पर्यटकों के भेष में स्पीड बोट्स के ज़रिए पहले ही माले पहुंचा दिया था। देखते ही देखते राजधानी माले की सड़कों पर विद्रोह शुरू हो गया और सड़कों पर भाड़े के लड़ाकू गोलियां चलाते हुए घूमने लगे। इस मुश्किल वक्त में मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम, एक सेफ हाउस में जा छिपे। राष्ट्रपति गयूम ने उन्हें और उनकी सरकार बचाने के लिए भारत से मदद मांगी। अब तक राजधानी माले के हुलहुले हवाई अड्डे और टेलीफोन एक्सचेंज पर सैकड़ों विद्रोहियों कब्जा कर चुके थे। ऐसी स्थिति में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव में भारतीय सेना भेजने का फैसला किया और कुछ ही देर में 6 पैरा के 150 कमांडो से भरे विमान ने आगरा के खेरिया हवाई अड्डे से मालदीव के लिए उड़ान भर दी। थोड़ी देर में दूसरा विमान उतरा मालदीव पहुंचा और उसने आनन फानन में एटीसी, जेटी और हवाई पट्टी के उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर नियंत्रण कर लिया। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने राष्ट्रपति के सेफ हाउस को सुरक्षित किया। कुछ ही घंटों में भारतीय सैनिकों ने मालदीव की सरकार गिराने की कोशिश को नाकाम कर दिया।
ऑपरेशन सी वेव्स
साल 2004 के आखिर में समुंद्र के अंदर भूकंप आया था, जिसने मालदीव के तटों को तबाह कर दिया था। इस वक्त भी भारत मालदीव की मदद के लिए आगे आया और उसने 'ऑपरेशन सी वेव्स' चलाया। तभी भारत से हर प्रकार की राहत सामग्री मालदीव भेजी गई। हेलीकॉप्टरों की मदद से लोगों को रेस्क्यू किया गया। इतना ही नहीं, पैसों की तंगी से जूझ रहे मालदीव को भारत ने 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दी। इसके बाद भी भारत ने करोड़ों रूपये की मदद की।
बूंद-बूंद के लिए तरह रहे मालदीप की ‘ऑपरेशन नीर’ से की मदद
जब-जब मालदीव में मुश्किल आई तो भारत ने दोनों हाथों से मदद की। साल 2014 में चलाया गया ‘ऑपरेशन नीर’ इसका एक उदाहरण है। 2014 में मालदीव में पानी का संकट खड़ा हो गया। संकट ऐसा था कि मालदीव को भारत से मदद मांगनी पड़ी। भारत सरकार ने मालदीव को उस संकट से निकाला। मालदीव की राजधानी माले का आरओ प्लांट खराब होने यहां पीने के पानी का संकट पैदा हो गया। पूरे शहर में बूंद-बूंद पानी के लिए त्राहि मच गई। मालदीव ने भारत सरकार मदद मांगी।उस समय विदेशी मंत्री थीं सुषमा स्वराज और विदेश सचिव थे जयशंकर। इंडियन एयरफोर्स की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, माले शहर को रोजाना 100 टी पीने के पानी की जरूरत थी। वहां मदद भेजने की जिम्मेदारी भारतीय वायु सेना को सौंपी गई। भारतीय वायु सेना ने तीन सी-’17 और तीन आई एल-76 वायुयानों की तैनाती की। पैक किया हुआ पानी दिल्ली से अराक्कोणम और वहां से माले के लिए रवाना किया। सेना ने वायुयानों के जरिए 5 से 7 सितंबर के बीच 374 टन पीने का पानी वहां पहुंचाया।
कोविड में ऑपरेशन संजीवनी चलाया
इसके अलावा भी भारत में कई मौकों पर मालदीव को मदद भेजी। कोविड के दौरान भारत ने ऑपरेशन संजीवनी चलाया। मालदीव सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार ने परिवहन विमान C-130J से दवाओं और इलाज से जुड़ी जरूरी चीजों को मालदीव तक पहुंचाया। इतना ही नहीं, इससे पहले भारतीय सेना ने वायरल टेस्ट लैब बनाने के लिए 14 सदस्यीय मेडिकल दल मालदीव भेजा था। भारत सरकार ने 5.5 टन जरूरी दवाएं मालदीव को उपहार के रूप में दी थीं।
Jan 10 2024, 16:21